पहलगाम – ये नाम सुनते ही ख़ौफ़ का एक मंज़र सामने आ जाता है, मंगलवार (22 अप्रैल, 2025) को जो हुआ वो याद करके रक्त में उबाल उठने लगता है। अनंतनाग जिले में स्थित इसी क्षेत्र की बैसरन घाटी में आतंकियों ने उस दिन जो ख़ूनी खेल खेला, हर हिन्दू उसे व्यक्तिगत क्षति मानकर चल रहा है। कारण – हिन्दुओं को निशाना बनाया गया, पैंट खोलवाकर देखा गया कि खतना हुआ है या नहीं। जो कलमा नहीं पढ़ पाए, उन्हें मार डाला गया। जिनकी आईडी कार्ड में मुस्लिम नाम नहीं था, उन्हें मार डाला गया।
एक-एक कर 28 लाशें गिरा दी गईं। महिलाओं को छोड़ दिया गया, उन्हें कहा गया कि जाओ मोदी को बता देना। पहलगाम के कई स्थानीय लोग वो घोड़े पर पर्यटकों को घुमाने वाले भी इस साज़िश में शामिल मिले, कइयों की जाँच चल रही है। इस घटना के बारे में सुनकर आपकी राय ऐसी ही बनेगी कि पहलगाम कोई इस्लामी इलाक़ा है, तो आप ग़लत हैं। आज भले ही पहलगाम में 81% मुस्लिम हों और हिन्दुओं की जनसंख्या मात्र 17% पर सीमित होकर रह गई हो, पहलगाम के कण-कण में शिवत्व का वास है। आइए, समझाते हैं कैसे।
पहलगाम का ऐतिहासिक महत्व, हिन्दू धर्म से जुड़ा है इतिहास
अनंतनाग जिले में स्थित पहलगाम ही वो तहसील है, जहाँ बाबा बर्फानी विराजते हैं, हर वर्ष अमरनाथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। लिद्दर नदी के किनारे स्थित पहलगाम, अनंतनाग के जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर की दूसरी पर स्थित है, समुद्र-तल से 7200 फ़ीट ऊपर। यही कारण है कि गर्मियों में लंबे समय से ये एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल रहा है, ख़ासकर के जोड़ों के लिए। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता उन्हें लुभाती है। वहीं विदेशी पर्यटक भी यहाँ आते रहे हैं। बैसरन के अलावा ‘बेताब’ (1983) फिल्म के नाम पर लोकप्रिय ‘बेताब घाटी’ भी यहाँ आकर्षण का केंद्र रही है।
‘मिशन कश्मीर’ (2000), ‘जब तक है जान’ (2012), ‘हैदर’ (2014) और ‘बजरंगी भाईजान’ (2015) जैसी बड़ी फिल्मों की शूटिंग यहाँ पर हो चुकी है। पहलगाम के इतिहास की बात करें तो यहाँ पाषाणकालीन संस्कृति के ही प्रमाण मिलते हैं। अमरनाथ यात्रा का पारंपरिक रूट भी पहलगाम होकर ही जाता है, यात्री यहीं पहला पड़ाव डालते हैं। पहलगाम तहसील मुख्यालय से अमरनाथ धाम की दूरी 42 किलोमीटर है। शेषनाग और पंचतरणी – इन दोनों स्थलों पर यात्री रात्रि-पड़ाव डालते हैं।
इन नामों से ही आपको पता चल रहा होगा कि इस क्षेत्र का इतिहास कैसा रहा है। शेषनाग नामक स्थान पर मान्यता है कि यहाँ स्वयं शेषनाग विराजते हैं। रात्रि विश्राम करने वाले यात्रियों को लिद्दर नदी की कल-कल बहती धारा शांति देती है और वहाँ का जलवायु व ठंडी हवाएँ श्रद्धालुओं को शीतलता प्रदान करती है। श्रद्धालु लिद्दर नदी में स्नान भी करते हैं। रास्ते में अमरनाथ धाम जाने के लिए पिस्सू घाटी को पार करना पड़ता है। ये भी जानने वाली बात है कि कारगिल युद्धक्षेत्र से अमरनाथ धाम की दूरी 80 किलोमीटर ही है।
अमरनाथ गुफा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, 12वीं सदी के महाकवि कल्हण रचित इतिहास-ग्रन्थ ‘राजतरंगिणी’ में भी इसका वर्णन मिलता है। अमरनाथ धाम का महत्व ये है कि यहीं पर भगवान शिव ने अमरता का सूत्र माँ पार्वती को दिया था। कहते हैं कि कोई और ये रहस्य न सुन पाए, इसीलिए उन्होंने इतनी दूर इस ऊँचे स्थल को चुना। उन्होंने पहलगाम में नंदी बैल को, चंदनबाड़ी में चन्द्रमा को, शेषनाग झील के किनारे सर्पों को और महागुणस पर्वत पर अपने बेटे गणेश को छोड़ा। 19वीं सदी में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह ने कई तीर्थस्थलों का विकास करवाया, जिसमें अमरनाथ धाम भी शामिल है।
छठी शताब्दी में मिहिरकुल नामक हूण शासक ने पहलगाम में मिहिरेश्वर मंदिर की स्थापना कराई थी, जिसे आज मामलेश्वर के रूप में भी जाना जाता है। सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने वाले स्वतंत्रता सेनानी कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने युवावस्था के दौरान पहलगाम की घाटी में लिद्दर नदी के किनारे बैठकर ही ‘जय सोमनाथ’ नामक उपन्यास की रचना की, जिसमें सोमनाथ के विभाग और ध्वंस का वर्णन किया गया। महमूद गजनी के हमले के बारे में लिखते हुए उन्होंने हिन्दुओं की वेदना को उकेरा।
जम्मू कश्मीर का इतिहास: सनातन में हैं जड़ें, पुराना विभाग वापस लाने की ज़रूरत
कहीं भी जब कश्मीर का नाम आता है तो आपने क्या पढ़ा है? कहीं आपने पढ़ा होगा कि जहाँगीर ने इसे ‘धरती का स्वर्ग’ कहा, तो कहीं आपने पढ़ा होगा कि मुगलों को ये ख़ास प्रिय था। जिन महर्षि कश्यप के नाम पर कश्मीर का नाम पड़ा, कितनी बार कश्मीर के साथ अपने उनका नाम पढ़ा है? कितनी बार आपने कवि कल्हण और उनकी कृति ‘राजतरंगिणी’ के बारे में सुना है? कल्हण ने कश्मीर को माता कहा, उन्होंने तभी भविष्यवाणी कर दी थी कि अगर कश्मीर असुरक्षित हो गया तो सबकुछ नष्ट हो जाएगा।
उन्होंने कश्मीर के राजाओं को शिव का अंश माना। कितनी बार आपने पढ़ा है कि कश्मीर माँ शारदा की भूमि है? कितनी बार आपको बताया गया कि ऐतिहासिक ग्रंथों में इसे ‘शारदा क्षेत्र’ कहा गया है। ‘नीलमत पुराण’ में कश्मीर को ‘कश्मीरा’ कहा गया है, इस क्षेत्र को साक्षात् देवी पार्वती का रूप बताया गया है – कितने बच्चों ने किताबों में पढ़ा ये? अगर महाभारत में अर्जुन के दिग्विजय का वर्णन पढ़ा दिया जाए तो कश्मीर का उस समय का भूगोल पता चल जाएगा। मुगलों ने ये बोला, मुगलों ने वो बोला – बाकी का इतिहास कहाँ गया? डेमोग्राफी के साथ गायब?
जम्मू कश्मीर स्थित शारदापीठ आज पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर है। जब शंकराचार्य यहाँ आए थे तो उन्हें यहाँ के पंडितों को शास्त्रार्थ के जरिए हराना पड़ा था, तभी उनके लिए मंदिर के दरवाजे खुले थे। हिन्दू धर्म में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है, हथियारों के जरिए अपनी बात मनवाने की नहीं। कश्मीर का इतिहास शैव इतिहास है, हिन्दू धर्म का इतिहास है। श्रीनगर से पहलगाम जाते समय रास्ते में अवंतीपुरा पड़ता है, वहाँ के मंदिर भी काफी प्राचीन व लोकप्रिय हैं।
मान्यता ये भी है कि पहले पहलगाम का नाम ‘बैलगाम’ था, क्योंकि शिव ने अपने बैल को यहाँ छोड़ा था। इस बार भी अमरनाथ यात्रा 27 जून से शुरू होने वाली है, इस आतंकी हमले को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करके रखी जाएगी। जब भी पहलगाम का नाम आए तो ये ज़रूर ध्यान में रखें कि ये क्षेत्र शिवत्व को अपने भीतर समेटे हुए है, इसका कण-कण शिव-शिव बोलता है। पहलगाम कहिए या बैलगाम, अगर ये क्षेत्र पाकिस्तान में होता तो शायद इसका भी कुछ उर्दू नाम रख दिया जाता।