आपने अक्सर वामपंथी इतिहासकारों को मुगलों का गुणगान करते देखा होगा। उन्हें उनकी प्रशासनिक क्षमता के लिए महिमामंडन का पात्र बनाते हुए देखा होगा। शाहजहाँ भी उन्हीं मुगलों में से एक था। अकबर के बारे में इतिहास में फैलाया गया कि वो एक नरमदिल और सेक्युलर बादशाह था। जबकि असल में वो ‘छिपी छुरी के अत्याचार’ में निपुण था। शाहजहाँ ने शासन संभालते ही खुलेआम इस्लामी कट्टरवादी सोच को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। उसके राज्य में भूखमरी से लाखों लोग मरे।
ताजमहल बनवाने और मुमताज महल के साथ उसके प्रेम के किस्से का बखान करने वाले इतिहासकार ये नहीं बताते कि शाहजहाँ के शासन काल में उसकी वजह से 74 लाख लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी। गुजरात, मालवा और डेक्कन में आई इस तबाही का पूरा कारण शाहजहाँ की नीतियाँ ही थीं। इसे ‘Deccan famine of 1630–1632’ भी कहा जाता है। कभी बारिश न होने और फिर अधिक बारिश होने की वजह से किसान बर्बाद हो गए थे।
मालवा और डेक्कन में शाहजहाँ उस दौरान एक बड़ी मुग़ल फ़ौज के साथ डेरा डाले हुआ था। मालवा के मुग़ल कमांडर ने निजाम शाह और आदिल शाह की डेक्कन फ़ौज के साथ हाथ मिला लिया था, जिसके बाद पूरा का पूरा क्षेत्र बड़ी तबाही से गुजर रहा था। इसका परिणाम ये हुआ कि किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं, मौसम प्रतिकूल तो था ही। भूखमरी और अकाल के कारण लोग मरने लगे। प्लेग सहित कई रोगों ने संक्रमण की जाल में पूरा क्षेत्र को ले लिया।
जो भूख से नहीं मरे, उन्हें महामारी ने निगल लिया। 30 लाख लोगों की अकेले गुजरात में मौत हो गई। डच इतिहासकारों की मानें तो सन् 1631 ख़त्म होते-होते 74 लाख लोग काल के गाल में समा गए थे। नीदरलैंड्स के ‘यूनिवर्सिटी ऑफ एम्स्टर्डम’ की रिया विंटर्स और लंदन स्थित ‘नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम’ के जूलियन ह्यूमे ने ‘ResearchGate’ पर प्रकाशित एक शोध पेपर में इसे लेकर कई बड़े खुलासे किए हैं। साथ ही इसमें कई ऐतिहासिक साक्ष्य भी दिए गए हैं।
उस दौरान कुछ विदेशी सूरत आए थे, जिनकी लेखनी के अनुवाद में इस अकाल की वीभत्स्ता का पता चलता है। उन विदेशियों ने लिखा है कि कैसे सूरत में हजारों लोग मारे गए थे। लोग इतने भूखे और गरीब हो गए थे कि-दूसरे को ही खाने लगे थे। एक महिला तो अपने ही बच्चों को खा गई। एक दोस्त दूसरे दोस्त को खा रहे थे। एक महिला की कहानी भी आती है इसमें, जो काफी गरीब थी। भूख से बेहाल उस महिला ने अपने 7 बच्चों को मार डाला और उनका मांस खा गई।
उस महिला ने अपने भतीजे पर भी पीछे से तलवार से वार कर के उसे मारना चाहा, लेकिन वो किसी तरह वहाँ से बच निकला और प्रशासन से इसकी शिकायत कर डाली। प्रशासन ने उसे सज़ा दी। सज़ा के रूप में उस महिला को तलवार से टुकड़े-टुकड़े काट डाला गया। जानवरों, खासकर हाथियों के मल में भी लोग अन्न के दाने खोज रहे थे, भोजन की कमी का ये आलम था। एक व्यक्ति के बारे में डच व्यापारी बताते हैं कि उसे काट कर उसके फेंफड़े और लिवर को भी लोग खा गए थे। किसी ने पका कर, तो किसी ने कच्चा ही।
जहाँ एक तरफ जनता त्रस्त थी, मुग़ल खानदान और उनके सिपहसालार भोग-विलास एवं ऐश्वर्य से भरी ज़िंदगी जी रहे थे। लेकिन, फर्जी इतिहासकार ये कह कर शाहजहाँ का गुणगान करते हैं कि उसने कर में छूट दे दी थी और भूखे लोगों के लिए भोजनालय बनवाया था। लेकिन, लेकिन उस दौरान वो बंगाल में पुर्तगालियों से लड़ाई में व्यस्त था। ऑटोमन साम्राज्य के साथ गिफ्ट्स के आदान-प्रदान में व्यस्त था। महाराष्ट्र के दौलताबाद में निजामशाही के किले पर कब्ज़ा करने में व्यस्त था।
गुजरात में 30 लाख और अहमदनगर व उसके आसपास 10 लाख लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया। कहीं अन्न मिल भी रहा था तो उसके दाम आसमान छू रहे थे। एक अन्य रिसर्च पेपर में बताया गया है कि किस तरह गुजरात की सड़कों पर लाशें बिछ गई थीं। लाशों के कारण सड़कों पर चलना मुश्किल था। कृषकों की हालत शाहजहाँ के पूरे शासनकाल में बदतर रही। अब्दुल हमीद लाहौरी ने इस अकाल का वर्णन करते हुए लिखा है कि लोग घोर यातनाओं का सामना कर रहे थे। जब ये सब हो रहा था, तब 1632 ईस्वी में शाहजहाँ ने ताजमहल की आधारशिला रखी।
उसने लिखा है कि किस तरह एक-एक रोटी के लिए लोग अपना जीवन तक बेचने के लिए तैयार थे, लेकिन स्थिति इतनी बदतर थी कि कोई खरीदने वाला ही नहीं था। उसने लिखा है कि कभी दूसरों को दान देने वाले भी आज अन्न के दाने-दाने के लिए हाथ फैलाने को मजबूर थे। शाहजहाँ ने लोगों में रुपए ज़रूर बाँट कर इतिश्री कर ली, लेकिन मृतकों की संख्या असंख्य थी। शाहजहाँ को तब गद्दी पर बैठे 5 साल ही हुए थे। इसी तरह शाहजहाँ के शासन के अंतिम कुछ वर्ष भी उत्तराधिकार की लड़ाई के कारण अशांति भरे रहे।
In 1632, the Country was going through one of the most devastating famines in history. Famine had claimed 7.4 million lives.
— Saral Patel (@SaralPatel) December 11, 2020
The same year, Emperor Shah Jahan laid the foundation stone of the Taj Mahal.
Come 2020, History has an eerie way of repeating itself. #NewParliament pic.twitter.com/BtHw8OXPeO
मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के बारे में कई विदेशी इतिहासकारों ने दावा किया है कि उसने अपनी ही बेटी जहाँआरा बेगम से शारीरिक सम्बन्ध बनाए थे। जहाँआरा बेगम उसकी सबसे बड़ी बेटी थी, द्वारा शिकोह और औरंगजेब की बड़ी बहन। कहा जाता है कि उसने जहाँआरा बेगम का निकाह भी नहीं होने दिया था। इस बारे में बुलाई गई मौलवियों की बैठक में कहा गया था कि बादशाह को अपने ही द्वारा लगाए गए पेड़ का फल खाने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
शाहजहाँ ने अत्याचारों की सीमा लाँघ दी थी। ओरछा में राजा राम के प्रमुख मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया। लोगों पर अत्याचार हुए। जुझार सिंह के पोते को जबरन इस्लाम कबूलवाने को मजबूर किया गया। ओरछा के चतुर्भुज मंदिर का खजाना भी लूट लिया गया। शाहजहाँ ने काशी में निर्माणाधीन या बन कर तैयार हो चुके 76 मंदिरों को ध्वस्त करवा दिया था। उसके राज में मंदिर के निर्माण पर पूरी तरह पाबंदी लगी हुई थी। शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके अब्बू जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने अब्बू की ‘संपत्ति’ को और बढ़ाया।