इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (7 जनवरी 2025) को एक जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी, जो जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ संसद में दायर महाभियोग प्रस्ताव को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई थी। जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव उनके उस भाषण को लेकर है, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणियाँ की थीं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस मामले में वकील अशोक पांडे ने जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने माँग की थी कि राज्यसभा के अध्यक्ष को इस महाभियोग प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई करने से रोका जाए। याचिकाकर्ता का तर्क था कि जस्टिस यादव ने यह बयान हिंदू समुदाय के सदस्य के तौर पर दिया था और यह बयान नफरत फैलाने वाले भाषण की श्रेणी में नहीं आता।
याचिका में कहा गया कि जस्टिस यादव ने ‘कठमुल्ला’ शब्द का इस्तेमाल उन घटनाओं के संदर्भ में किया जो उनके व्यक्तिगत अनुभवों से जुड़ी थीं। इसमें यह भी कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार जजों को भी है, और उनके द्वारा अदालत के बाहर दिए गए बयान उन्हें जज के पद से हटाने का आधार नहीं हो सकते।
कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह न्यायसंगत नहीं है। जस्टिस अताउर रहमान मसूदी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने स्पष्ट किया कि जनहित याचिका केवल तभी दाखिल हो सकती है जब यह समाज के कमजोर वर्ग के लिए हो। अदालत ने यह भी कहा कि जस्टिस यादव खुद सक्षम हैं और यदि उन्हें लगता है कि उनके खिलाफ अन्याय हो रहा है, तो वे अदालत का रुख कर सकते हैं।
बता दें कि जस्टिस शेखर कुमार यादव ने 8 दिसंबर 2024 को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (विधि प्रकोष्ठ) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण दिया था। इस भाषण में उन्होंने कहा था कि भारत में शासन बहुसंख्यक समुदाय की इच्छाओं के अनुसार चलना चाहिए। साथ ही, उन्होंने ‘कठमुल्ला’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया, जिसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अपमानजनक माना जाता है। उनके इस बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया और सांसद कपिल सिब्बल सहित 54 अन्य सांसदों ने राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया।
महाभियोग प्रस्ताव में जस्टिस यादव पर ‘अप्रमाणित दुर्व्यवहार’ और ‘अक्षमता’ का आरोप लगाया गया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि उनका भाषण नफरत फैलाने वाला है और इससे न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँची है।
जस्टिस यादव ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा था कि उन्होंने सिर्फ अपनी राय जाहिर की थी। उनके अनुसार, ‘कठमुल्लापन’ मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को प्रभावित करता है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या उनके बयान ‘सिद्ध दुर्व्यवहार’ की श्रेणी में आते हैं?
इस पूरे विवाद के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने जस्टिस यादव के न्यायिक मामलों का रोस्टर बदल दिया। अब वे केवल 2010 से पहले दाखिल की गई प्रथम अपीलें सुनेंगे। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने भी जस्टिस यादव को तलब कर उनका पक्ष माँगा था।