उन्होंने जोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से कहे गए राजनीतिक विचारों का समर्थन करने के लिए बाध्य नहीं है। अशोका यूनिवर्सिटी को लेकर उन्होंने कहा कि इसे एक गैर-राजनीतिक विश्वविद्यालय बने रहना चाहिए।
साथी ट्रस्टी के साथ इस्तीफा देना चाहते थे बिखचंदानी
बिखचंदानी ने एक आंतरिक ईमेल में कहा है कि उन्होंने और उनके साथी ट्रस्टी प्रमथ राज सिन्हा और संस्थापक अध्यक्ष आशीष धवन ने अपने पदों से हटने पर गंभीरता से विचार किया है। उनका ये मेल सामने आ गया है।
उन्होंने पूछा, “आप और अन्य पूर्व छात्र आगे आकर कार्यभार क्यों नहीं संभालते? प्रमथ, आशीष और मैंने गंभीरता से इस विकल्प पर चर्चा की है कि क्या हम इससे दूर हो सकते हैं। अशोका बहुत ज्यादा सिरदर्द है। क्या यह प्रयास के लायक है?”
उन्होंने जोर देकर कहा, “फेसबुक या ट्विटर (एक्स) या इंस्टाग्राम पर व्यक्त की गई राजनीतिक राय अकादमिक विद्वता नहीं है। नतीजतन, सोशल मीडिया पर किसी अकादमिक द्वारा व्यक्त की गई राजनीतिक राय के बारे में कोई भी सार्वजनिक आक्रोश अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला नहीं है, भले ही उस राय को व्यक्त करने वाला व्यक्ति अकादमिक के रूप में काम करता हो।” उन्होंने सोशल मीडिया में कहा कि वह कोरोना से भी आजकल पीड़ित हैं।
बिखचंदानी ने कहा, “यदि कोई नियामक या सरकार या कानून प्रवर्तन आपके सोशल मीडिया पोस्ट के लिए आपके पीछे पड़ जाता है, तो यह अकादमिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है। हालाँकि संविधान और कानून के भीतर ऐसे प्रावधान हैं, जहाँ आप सुरक्षा पा सकते हैं।”
उन्होंने महमूदाबाद पर भी निशाना साधा और टिप्पणी की, “आप एक वयस्क हैं। आप अपने कार्यों और उसके किसी भी परिणाम के लिए जिम्मेदार हैं। अशोका आपकी व्यक्तिगत क्षमता में व्यक्त की गई राजनीतिक राय के लिए आपका समर्थन करने के लिए बाध्य नहीं है। आपने सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से पहले अशोका की सहमति नहीं ली, अब आप अशोका से समर्थन की उम्मीद नहीं कर सकते। यह सुनने में भले ही क्रूर लगे, लेकिन आप अपनी पसंद बनाते हैं और परिणाम के साथ जीते हैं।”
अली खान महमूदाबाद हरियाणा के सोनीपत स्थित अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और राजनीति शास्त्र विभाग के डायरेक्टर हैं। उन्होने सोशल मीडिया पर पोस्ट करके ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफिंग करने वाली सेना की दो अधिकारियों विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ टिप्पणी की थी। इसकी वजह से उन्हें पिछले महीने गिरफ्तार कर लिया गया था।
अली खान ने सोशल मीडिया पर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि महिला अधिकारियों को प्रेस ब्रीफिंग के लिए भेजना दिखावा और ढोंग है। इस बयान से विवाद बढ़ा और हरियाणा महिला आयोग ने उसे नोटिस भेजा।
एक्टिव होना और विश्वविद्यालय एक- दूसरे से अलग है
बिखचंदानी ने कहा, “राजनीतिक रूप से एक्टिव होना और विश्वविद्यालय एक दूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं। अशोका यूनिवर्सिटी एक लिबरल आर्ट और साइंस यूनिवर्सिटी है। राजनीतिक कार्यकर्ता बनना या न बनना लोगों का अपना निर्णय है।”
उन्होंने ये भी कहा कि पहले भी उन्होंने अशोका यूनिवर्सिटी में ‘सक्रियता’ को लेकर चिंता जताई थी और हर बार उन्हें यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे कर्मचारियों और छात्रों की प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है। अशोक यूनिवर्सिटी के अंदर और बाहर के छात्र, शिक्षक और कर्मचारी इसमें शामिल हैं।
उन्होंने दावा किया, “यदि आप एक विश्वविद्यालय चला रहे हैं, तो आप ऐसी समस्याओं में फँसते है”। उन्होने कहा “मैं एक स्वाभिमानी ऑनर हूँ, बुरी सोच वाले लोग यह नहीं समझते कि एक विश्वविद्यालय कैसे चलता है? (वे भूल जाते हैं कि वही व्यवसायी उन्हें वेतन दे रहे हैं)।”
अशोका यूनिवर्सिटी के सह संस्थापक ने कहा, ” अशोका यूनिवर्सिटी देश के कानून द्वारा शासित होता है। यह नियामकों और सरकारी अधिकारियों के प्रति जवाबदेह है। यह एक राजनीतिक दल या आंदोलन नहीं है। यह एक शैक्षणिक संस्थान है।”
बिखचंदानी ने एक “नीतिगत मुद्दे” की ओर भी इशारा किया। इस पर अशोका यूनिवर्सिटी की सत्तारूढ़ परिषद को विचार करने की आवश्यकता थी। उन्होंने पूछा, “क्या एक पूर्णकालिक शिक्षाविद भी राजनीतिक करियर बना सकता है? निजी क्षेत्र में हम आम तौर पर उन लोगों से दूर रहते हैं जिन्हें ‘राजनीतिक व्यक्ति’ कहा जाता है। क्या अशोका यूनिवर्सिटी के पास ऐसी नीति नहीं होनी चाहिए?”
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दे दी, लेकिन महमूदाबाद की टिप्पणियों की बिखचंदानी ने भी निंदा की। उनकी भाषा को असम्मानजनक बताया। कोर्ट ने भी भाषा की मर्यादा को रेखांकित किया था। अदालत ने जोर देकर कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल इस तरह नहीं हो सकता। इसे लोकप्रियता के लिए नहीं बल्कि जवाबदेही के साथ इस्तेमाल करने की जरूरत है।
महमूदाबाद ने कहा था विंग कमांड व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी द्वारा सशस्त्र बलों का प्रतिनिधित्व “दिखावा और पाखंड” है। महमूदाबाद ने कहा, “कर्नल सोफिया को सरकार मात्र मीडिया में दिखावा करने के लिए आगे लेकर आ रही है। वैसे तो सरकार मुस्लिम लोगों के खिलाफ उनके धर्म के खिलाफ काम करती रहती है और अब कर्नल सोफिया कुरैशी को आगे कर रही है। प्रो. अली खान द्वारा यह भी कहा गया कि दोनों देशों में कुछ पागल फौजी लोगों के कारण ही इस तरह सीमा पर तनाव बना है। मनमानी से, अप्रत्याशित तरीके से और बेमतलब ही लोगों को मौत के मुंह में फेंका जा रहा है।”
उन्होंने अपनी टिप्पणियों को उचित ठहराते हुए कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से समझा गया है और इसका उद्देश्य महिलाओं के प्रति विद्वेष फैलाना नहीं है।
महमूदाबाद की गिरफ्तारी, सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों और अब बिखचंदानी के पत्र ने विश्वविद्यालय में वामपंथी सक्रियता को सुर्खियों में ला दिया है। हालाँकि यह लंबे समय से वामपंथी राजनीति का केंद्र रहा है। इजरायल विरोधी सक्रियता, ब्राह्मण विरोध से लेकर चुनाव में हेराफेरी के झूठे दावों तक, संस्थान के छात्रों और शिक्षकों ने अपने भ्रामक आख्यान को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
मई 2024 में, अशोक विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपने दीक्षांत समारोह में फिलिस्तीन समर्थक तख्तियाँ दिखाईं। इस कार्यक्रम को कैप्चर करने वाले एक वीडियो ने सोशल मीडिया पर काफी सुर्खियाँ बटोरी। इसमें डिग्री प्रदान करने के लिए तैयार छात्रों को उनके सिर के ऊपर “फ़्री फिलिस्तीन” और “नरसंहार रोकें” के नारे लगाने वाले पोस्टर पकड़े हुए दिखाया गया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि अशोका विश्वविद्यालय छात्र संघ (एयूएसजी) इजरायल के तेल अवीव विश्वविद्यालय के साथ संबंध विच्छेद की वकालत कर रही थी।
मार्च 2024 में, अशोका विश्वविद्यालय के छात्रों पर विश्वविद्यालय परिसर में हिंदू विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा था। खास तौर पर “ब्राह्मण-बनियावाद मुर्दाबाद” के नारे। इन छात्रों के वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए। ब्राह्मण और बनिया समुदायों को अपमानित करने के अलावा, उन्होंने “जय भीम-जय मीम” और “जय सावित्री-जय फातिमा” जैसे नारे भी लगाए। उन्होंने अशोका में जाति जनगणना और आरक्षण की माँग की।
फरवरी 2024 में, AUSG ने गाजा में इजरायल की सैन्य कार्रवाइयों की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया और जोर देकर कहा कि गाजा में हो रहे “नरसंहार” को रोका जाना चाहिए। सोशल मीडिया पोस्ट में यहूदी राज्य के भीतर 7 अक्टूबर को हमास आतंकवादियों द्वारा किए गए भयानक आतंकी हमले को “7 अक्टूबर 2023 को होने वाली घटनाओं” के रूप में वर्णित किया गया। जैसा कि अनुमान था, 1,300 इजरायली और विदेशी नागरिकों की हत्या, महिलाओं के बलात्कार या गाजा में बंधकों को ले जाने का कोई संदर्भ नहीं था। हमास के सभी अत्याचारों को जानबूझकर अनदेखा कर दिया गया।
सोशल मीडिया पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर चुनावी हेराफेरी करने का आरोप लगाने वाले इस लेख ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया। इसे प्रोफेसर सब्यसाची दास ने प्रकाशित किया था। अध्ययन में कई त्रुटियां थीं और शोधपत्र की जाँच के मद्देनजर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया। AUSG ने शोधपत्र का समर्थन किया और आरोप लगाया कि प्रोफेसरों द्वारा किया गया शोध “अत्याधुनिक” है।
नवंबर 2021 में प्रोफेसर नीलांजन इरकर ने गलत दावा किया कि राष्ट्रपति भवन में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस के चित्र में बंगाली अभिनेता प्रसनजीत चटर्जी को दर्शाया गया है। उन्होंने भाजपा की आलोचना के नाम पर भगवान राम का मजाक उड़ाने की कोशिश की। विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत इसरार ने अब डिलीट हो चुके ट्वीट में कहा, “बिलकुल आश्चर्यजनक! यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं हैं। यह प्रसिद्ध बंगाली अभिनेता प्रसेनजीत चटर्जी की एक फिल्म में नेताजी का किरदार निभाते हुए तस्वीर है।”
विश्वविद्यालय के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए कहा जा सकता है कि महमूदाबाद की हालिया कार्रवाई और बिखचंदानी की आलोचना अप्रत्याशित नहीं है।