Thursday, March 28, 2024
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‘दाढ़ी वाले आदमी’ ने 7 साल की बच्ची के कपड़े खोले, मलद्वार को हाथ से… हाईकोर्ट ने दी जमानत, कहा- प्राइवेट पार्ट में कोई पदार्थ डालना रेप नहीं

आरोपित ने गिरफ्तारी के बाद निचली अदालत में अगस्त 2020 में को याचिका दी थी, लेकिन अदालत ने आरोपित की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद उसने जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में आवेदन दिया था।

मुंबई स्थित बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने सात साल की बच्ची का यौन शोषण के आरोपित शख्स को जमानत देते हुए कहा कि प्राइवेट पार्ट में किसी चीज को डालना प्रथम दृष्ट्या रेप की परिभाषा के दायरे में नहीं आता। हाईकोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत संभोग के दौरान शरीर में अंग का प्रवेश जरूरी होता है।

आरोपित व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 और पॉक्सो (POCSO) कानून की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज है। इस मामले में आरोपित पिछले तीन साल से जेल में बंद था। पिछले हफ्ते बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपित को उपरोक्त आधार पर जमानत दे दी।

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस भारती डांग्रे ने कहा, “हाथ से गुदा द्वार को फैलाने और उसमें को पदार्थ डालने की क्रिया को प्रथम दृष्ट्या शारीरिक संभोग में शामिल नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसमें त्वचा से त्वचा का संपर्क और कामुक आनंद शामिल ना हो।”

नई मुंबई के कोपरखैरणे पुलिस स्टेशन के अंतर्गत एक इलाके में 27 सितंबर 2019 को सात साल की एक बच्ची अपने दोस्तों के साथ खेल रही थी। जब बच्चे अपने घर लौटे तो बच्ची के साथियों ने उसकी माँ को बताया कि एक दाढ़ी वाला व्यक्ति उसके कपड़ों को खोल दिया था। इसके बाद उसके गुदा को फैलाकर उसमें लाल रंग का कोई पदार्थ डाल दिया था।

बच्ची की माँ ने कोपरखैरणे पुलिस स्टेशन में जाकर मामले की शिकायत की। पुलिस ने IPC की धारा 377 और पॉक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया। उसके बाद बच्चों द्वारा बताए गए हुलिया के आधार पर पुलिस ने 30 सितंबर 2019 को आरोपित को पास के ही एक बिल्डिंग से गिरफ्तार कर लिया।

आरोपित ने गिरफ्तारी के बाद निचली अदालत में अगस्त 2020 में को याचिका दी थी, लेकिन अदालत ने आरोपित की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद आरोपित ने जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में आवेदन दिया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट में बहस के दौरान आरोपित के वकील ने तर्क दिया कि धारा 377 के तहत आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। जस्टिस डांग्रे ने कहा कि अप्राकृतिक कृत्य परिभाषित नहीं है और धारा 377 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जानबूझकर किसी व्यक्ति, महिला या पशु के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। अप्राकृतिक शारीरिक संबंध और शारीरिक संबंध में अंतर है।

जस्टिस डांग्रे ने बच्ची के बयान को उद्धृत करते हुए कहा कि एक ‘अंकल’ ने बच्ची के कपड़े खोलने के साथ-साथ अपने कपड़े भी खोल दिए। जब बच्ची ने चिल्लाने की कोशिश की तो शख्स ने उसका मुँह बंद कर दिया और उसके ऊपर लेट गया। बाद में उसके गुदा को हाथ से फैलाकर उसमें लाल रंग का पदार्थ डाल दिया।

साल 2019 में कराए गए मेडिकल रिपोर्ट में ‘संभोग/शोषण के अनुरूप निष्कर्ष’ और ‘गुदा में कोई भी जख्म नहीं’ कहा गया था। मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर जस्टिस डांग्रे ने कहा कि न तो माँ की शिकायत में शरीर में अंग प्रवेश कर यौन प्रताड़ित करने की बात कही गई है और ना ही लड़की ने इसका जिक्र किया। लेकिन, मेडिकल रिपोर्ट में इसका जिक्र है।

जस्टिस डांगरे ने कहा, “तीन दिनों के बाद पीड़िता की जाँच की जाती है और उसके भग (clitoris) को ‘सूजन’ के रूप में वर्णित किया जाता है। इसके साथ ही उसमें कोई हाइमन मौजूद नहीं होता है। मेडिकल राय में कहा गया है कि ‘हाइमेन और मूत्रमार्ग के किनारों पर सूजन’ हैं, जबकि पीड़ित लड़की ने कहा कि उसकी योनि को न तो छुआ गया था और न ही उसके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ की गई थी।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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