Sunday, April 28, 2024
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पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ शिकायत दर्ज, बदायूँ हत्या के बाद ‘छोटे नरसिंहानंद’ पहुँचे थाने: 39 साल पहले ऐसे ही मामले में भड़के थे दंगे, मारे गए थे हिंदू

1985 में कुरान से संबंधित मामला दर्ज हुआ था कलकत्ता हाई कोर्ट में। कट्टर इस्लामी भीड़ ने दंगे किए थे बंगाल, बिहार, बांग्लादेश, कश्मीर में। कोई जज इस मामले को सुनने को नहीं था तैयार, इधर-उधर भटकाने के बाद कर देना पड़ा था खारिज।

उत्तर प्रदेश के बदायूँ में रमजान के दिनों में साजिद द्वारा दो मासूम बच्चों का गला रेतकर की गई हत्या से पूरा देश सन्न है। ऐसे में डासना के शिव शक्ति धाम से जुड़े अनिल यादव ने आहत होकर माँग की है कि इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो। यादव ने शिकायत में कहा है कि कुरान के कारण दुनिया में जघन्य अपराध हो रहे हैं। यादव ने अपनी इस शिकायत को गाजियाबाद के थाना वेब सिटी में दिया है।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में मौजूद जानकारी के अनुसार, अनिल यादव ने कहा है, “पिछले 1400 सालों से हिंदू महिलाओं से बलात्कार लूटपाट, बच्चों की नृशंस हत्या की वजह कुछ और नहीं बल्कि कुरान है। हजरत पैगंबर मुहम्मद द्वारा दी गई तालीम व कुरान में जो कानून लिखा है आज तक वही दोहराया जा रहा है। बदायूँ में बच्चों की हत्या ने गजवा-ए-हिंद की घंटी बजा दी है जो कि हजरत मुहम्मद का सपना है। इससे मेरी भावना आहत हुई है। हजारों हिंदुओं को गजवा-ए-हिंद से बचाने के लिए ये FIR होना जरूरी है।”

बता दें कि जिस गजवा-ए-हिंद का मुद्दा अनिल यादव ने अपनी शिकायत में उठाया है, उसी के संबंध में महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद बात करने जामा मस्जिद जा रहे थे, मगर बताया जा रहा है कि उन्हें रास्ते में ही हिरासत में ले लिया गया।

याद दिला दें कि डासना का शिव शक्ति धाम यति नरसिंहानंद के कारण ही 2021 में खूब चर्चा में रहा था। अब उसी जगह अनिल यादव (जिन्हें छोटा नरसिंहानंद कहा जाता है) ने ऐसी शिकायत दी है। यादव की शिकायत पर आगे क्या कार्रवाई हुई इसका पता अभी नहीं चला है लेकिन संभावना है कि इस मामले को आगे न सुना जाए या अगर मामला कोर्ट तक पहुँचे तो वहाँ से खारिज हो जाए। ऐसा क्यों कहा जा सकता है इसके लिए 36 साल पहले दर्ज केस और उसकी डिटेल जानने की जरूरत है जब इस्लाम की ‘पवित्र पुस्तक’ पर सवाल उठते ही न्यायपालिका के भी हाथ-पाँव फूल गए थे

कलकत्ता कुरान याचिका

36 साल पहले 1985 में कुरान को प्रतिबंधित करने की माँग लेकर वकील चाँदमल चोपड़ा और शीतल सिंह कलकत्ता हाईकोर्ट पहुँचे थे। 29 मार्च, 1985 को उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय से सरकार को ‘पवित्र पुस्तक’ की प्रत्येक प्रति को ‘जब्त’ करने का निर्देश देने की अपील की गई थी।

याचिका में तर्क दिया गया था कि भारतीय दंड संहिता (IPC) धारा 153A और 295A के आधार पर कुरान की प्रत्येक प्रति दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 95 के तहत ज़ब्त किए जाने के लिए उत्तरदायी है। इसमें चाँदमल चोपड़ा और शीतल सिंह ने ‘काफिरों’ के खिलाफ हिंसा को लेकर आवाज उठाई थी। उन्होंने कुरान के एक आयत को उद्धृत किया, जिसमें कहा गया था, “जब पवित्र महीने समाप्त हो जाते हैं तो जहाँ भी मूर्ति-पूजा करने वाले मिले, उसे मार डालो।”

जिस जज के पास पहुँची कुरान से जुड़ी याचिका उसका भी हुआ बहिष्कार

यह मामला शुरू में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति खस्तगीर जे के समक्ष आया था जिसके बाद 70 से अधिक अधिवक्ताओं द्वारा ‘खस्तगीर जे’ की अदालत का बहिष्कार करने का आग्रह अन्य वकीलों से किया। वहीं वरिष्ठ वकील सीएफ अली ने कहा था, “यह बेतुका है। पृथ्वी पर कोई भी नश्वर पवित्र धर्मग्रंथ को चुनौती नहीं दे सकता है और दुनिया की किसी भी अदालत को इस पर कोई अधिकार नहीं है।”

बंगाल से लेकर बांग्लादेश में सड़कों पर थी इस्लामी भीड़

इसके बाद तमाम इस्लामवादी विरोध में आ उतरे। नतीजतन बताया जाता है कि भारत से लेकर बांग्लादेश तक में दंगे होने लगे। विकीपीडिया पर मौजूद जानकारी बताती है कि दंगों में हिंदुओं को निशाना बनाया गया था। हजारों की भीड़ ने सड़क पर उतरकर बांग्लादेश में भारतीय उच्च आयोग के सामने हल्ला की थी। बांग्लादेश के सीमाई इलाके में स्थित शहर में 12 लोग मारे गए थे जबकि 100 घायल हुए थे ये सारे हिंदू थे। इसी तरह 20000 मुस्लिमों की भीड़ ढाका में निकलकर आई थी। वहीं अन्य दंगे कश्मीर और बिहार समेत कई जगह देखे गए थे।

बंगाल सरकार ने कहा था- नहीं बदला जा सकता एक शब्द

वहीं सीपीआई (एम) शासित पश्चिम बंगाल सरकार ने याचिका और कलकत्ता उच्च न्यायालय में इसके प्रवेश के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया था। अपने हलफनामे में सरकार ने कहा था कि यह, “अदालत को दुनिया भर के मुसलमानों के पवित्र धर्मग्रंथ कुरान पर फैसला सुनाने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, जिसका प्रत्येक शब्द, इस्लामी मान्यता के अनुसार, अपरिवर्तनीय है।” सरकार का कहना था कि यह याचिका दुर्भावनापूर्ण इरादे से दायर की गई थी और भारतीय इतिहास में ऐसी याचिका कभी दायर नहीं की गई है।

याचिका पर सुनवाई तक नहीं, पुस्तक प्रकाशित करने पर गिरफ्तारी

एक याचिका से मामला इतना गरमा गया था कि राजनीतिक दबाव के कारण, न्यायमूर्ति खास्तगीर ने इसे अपनी सूची से हटा दिया और इसे न्यायमूर्ति सतीश चंद्रा की अदालत को भेज दिया। उसके बाद राज्य के महाधिवक्ता एसके आचार्य की सलाह पर, मामला न्यायमूर्ति बिमल चंद्र बसाक की पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया, जिन्होंने 17 मई, 1985 को याचिका खारिज कर दी। 18 जून को फिर चंद्रमल चोपड़ा ने रिव्यू याचिका डाली जिसे बाद में 21 जून को ही खारिज कर दिया गया। इसके बाद इस याचिका को लेकर चंद्राल चोपड़ा ने सीता राम गोयल के साथ मिलकर 1986 में ‘द कलकत्ता कुरान याचिका’ नाम की पुस्तक प्रकाशित की थी, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। वहीं गोयल को गिरफ्तारी से बचने के लिए भागना पड़ा था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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