Thursday, November 14, 2024
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59 रामभक्त जलाकर मार डाले गए, साबरमती की बोगियों पर पत्थर फेंक रहा था गोधरा का फारूक: आजीवन कारावास की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने दी जमानत

इससे पहले 13 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों में से एक अब्दुल रहमान धंतिया उर्फ कानकट्टो उर्फ जम्बुरो को छह महीने की अंतरिम जमानत दी गई थी। 11 नवंबर 2022 को कोर्ट ने उसकी बेल को 31 मार्च 2023 तक बढ़ा दिया।

साल 2002 में हुए गुजरात के गोधरा के सारबमती एक्सप्रेस कांड (Sabarmati Express, Godhra Case) में उम्रकैद की सजा पाए फारूक नाम के एक दोषी को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई के दौरान गुजरात सराकर ने फारूक की जमानत का विरोध किया।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने कहा कि दंगों का दोषी फारूक 2004 से जेल में है। वह 17 साल जेल में रह चुका है। इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया जाए। गुजरात सरकार की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ दोषी पत्थरबाज जेल में लंबा समय काट चुके हैं। ऐसे में उन्हें जमानत पर दिया जा सकता है।

दोषी फारूक की तरह ही 17 अन्य दोषियों ने भी कोर्ट में जमानत के लिए अपील की है। सुप्रीम कोर्ट छुट्टियों के बाद उनकी अपील पर सुनवाई करेगा। फारूक पर जलती साबरमती एक्सप्रेस पर पत्थरबाजी करने का मामला दर्ज था और इस मामले में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

जमानत का विरोध करते हुए गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह सिर्फ पत्थरबाजी का मामला नहीं था। ये जघन्य अपराध था, क्योंकि जलती ट्रेन से लोगों को निकलने दिया गया। गुजरात सरकार ने पत्थरबाजों की भूमिका को गंभीर बताया था।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पत्थरबाजों की मंशा यह थी कि साबरमती एक्सप्रेस की जलती बोगी से कोई भी यात्री बाहर ना निकल सके और ना ही बाहर से कोई व्यक्ति उन्हें बचाने के लिए आ सके। इतना ही नहीं, उसने अन्य लोगों को भी पत्थरबाजी के लिए उकसाया था। इस हमले में कई यात्री घायल भी हुए थे। उन्होंने कहा कि सामान्य हालत में पत्थरबाजी एक अलग घटना है, लेकिन इस मामले में बिल्कुल अलग है।

साबरमती एक्स्प्रेस पर पत्थरबाजी करने का मामले में 31 लोगों को सजा सुनाई गई थी, जिनमें से एक फारूक भी शामिल है। बता दें कि 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से तीर्थयात्रियों को लेकर आ रही साबरमती एक्सप्रेस के चार डिब्बों में मुस्लिम भीड़ ने आग लगा दी थी, जिसमें 59 यात्रियों की जिंदा जलकर मौत हो गई। मरने वालों में बच्चे और महिलाएँ भी थीं। इस घटना के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर दंगे फैल गए थे।

साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन को जलाने की घटना में 100 से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उन पर मुकदमा भी चलाया गया। हालाँकि, ट्रायल कोर्ट ने फरवरी 2011 में 63 आरोपितों को बरी कर दिया और 31 को दोषी ठहराया। इन 31 दोषियों में 11 को मौत की सजा और 20 को आजीवन कारावास की सजा दी गई।

दोषियों ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील की और हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2017 में मौत की सजा पाए 11 दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। इसके साथ ही आजीवन कारावास की सजा पाए 20 दोषियों की सजा को बरकरार रखा था। इस तरह सभी 31 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। वहीं, सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका अभी भी लंबित है।

फारूक ने सु्प्रीम कोर्ट में जमानत की याचिका दी थी और साथ में दलील थी कि उसने जेल में 17 साल काट चुका है। ऐसे में उसे उसे जमानत दी जाए। फारूक की इस दलील को स्वीकार करते हुए मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने उसे जमानत दे दी।

इससे पहले 13 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों में से एक अब्दुल रहमान धंतिया उर्फ कानकट्टो उर्फ जम्बुरो को छह महीने की अंतरिम जमानत दी गई थी। 11 नवंबर 2022 को कोर्ट ने उसकी बेल को 31 मार्च 2023 तक बढ़ा दिया।

कनकट्टो ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दिया था कि उसकी पत्नी टर्मिनल कैंसर से जुझ रही है और उसकी बेटियाँ मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं। इसलिए पत्नी की देखभाल के लिए उसे जमानत दी जाए। कोर्ट ने रहमान की याचिका को स्वीकार कर लिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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