Monday, October 7, 2024
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RSS को बिना किसी रिपोर्ट, सर्वे या आँकड़े के बिना इंदिरा गाँधी ने किया था बैन, हाई कोर्ट ने लताड़ते हुए कहा – फिर से न हो संविधान का उल्लंघन

कोर्ट ने प्रश्न खड़ा किया कि आखिर सरकार ने यह कैसे मान लिया कि इसका कोई कर्मचारी यदि RSS की गतिविधियों में भाग लेता है तो वह सेक्युलरिज्म के खिलाफ हो जाएगा।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का सदस्य बनने पर लगी रोक हटाने को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को अपनी गलती सुधारने में पाँच दशक का समय लग गया। कोर्ट ने RSS के राष्ट्रनिर्माण में योगदान को गिनाया और कहा कि इसे साम्प्रदायिक संगठन बताने के गंभीर परिणाम हुए।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के जस्टिस सुश्रुत धर्माधिकारी और जस्टिस गजेन्द्र सिंह की बेंच ने केंद्र सरकार के एक पूर्व कर्मचारी पुरुषोत्तम की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियाँ की हैं। पुरुषोत्तम गुप्ता ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के RSS में सदस्य बनने पर लगी रोक को लेकर याचिका दायर की थी।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस संबंध में 11 जुलाई, 2024 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसको 25 जुलाई, 2024 को सुनाया गया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इसमें हाल ही में केंद्र सरकार के RSS में भाग लेने पर प्रतिबंध को हटाने को लेकर भी टिप्पणियाँ की और इसे पाँच दशक की देरी से आया फैसला बताया।

बिना सबूत के RSS में भाग लेने पर लगा प्रतिबंध

हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि RSS में भाग लेने पर प्रतिबंध इंदिरा सरकार ने इसलिए लगाया था क्योंकि उसकी इस संगठन की गतिविधियाँ साम्प्रदायिक और सेक्युलरिज्म के विरुद्ध लगती थीं। हाई कोर्ट ने प्रश्न उठाए कि आखिर RSS को इस तरह का संगठन मानने के पीछे क्या आधार था। कोर्ट ने पूछा कि इसके पीछे कोई रिपोर्ट, कोई आँकड़े या कोई भी शोध था जो ऐसा सिद्ध करते हों कि सरकार को इसमें सदस्यता पर प्रतिबंध लगाना पड़ जाए।

कोर्ट ने प्रश्न खड़ा किया कि आखिर सरकार ने यह कैसे मान लिया कि इसका कोई कर्मचारी यदि RSS की गतिविधियों में भाग लेता है तो वह सेक्युलरिज्म के खिलाफ हो जाएगा। कोर्ट ने कहा कि उसने बार-बार इस निर्णय के आधार प्रश्न पूछा लेकिन उसे किसी भी सुनवाई में केंद्र सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। कोर्ट ने इसके बाद इंदिरा सरकार के इस फैसले को लताड़ा।

कोर्ट ने कहा कि जहाँ तक केंद्र सरकार के पास कोई ऐसा शोध, रिपोर्ट, सर्वे या आँकड़े थे ही नहीं जिनके आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुँची हो कि देश में सेक्युलरिज्म बनाए रखने के लिए RSS की गैरराजनीतिक गतिविधियों में केंद्र के कर्मचारियों की भागीदारी पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई आधार नहीं था तो क्या केवल तब की सरकार ने RSS को कुचलने के लिए ही यह निर्णय ले लिया था।

RSS अकेला बड़ा स्वयंसेवक संगठन, समाजसेवा में जुटा

हाई कोर्ट ने RSS में सदस्य बनने पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय की सुनवाई के दौरान इसके देश में योगदान पर भी बात की। हाई कोर्ट ने कहा कि वर्तमान में RSS सरकार से इतर एकमात्र राष्ट्रीय स्तर का स्वयंसेवक संस्थान है। कोर्ट ने कहा कि इसके देश के हर जिले और तालुकों से सबसे अधिक संख्या में सदस्य हैं और वहधार्मिक, सामाजिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य और कई गैर-राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि RSS से जुड़े संगठन देश में अलग-अलग कामों में जुटे हुए हैं, जो गैर राजनीतिक हैं।

कोर्ट ने कहा RSS की शाखा सेवा भारती है। कोर्ट ने कहा, “सेवा भारती पूरे देश में 45 संगठनों के माध्यम से काम कर रहा है, जिसमें सेवा भारती और 1200 अन्य ट्रस्ट और NGO शामिल हैं। सेवा भारती ने देश भर में अखिल भारतीय स्तर पर नेटवर्क स्थापित किया है, जिसमें सभी राज्यों से आए लाखों स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं।” कोर्ट ने प्रश्न उह्ताया कि क्या ऐसे किसी संगठन को राजनीतिक करार दिया जा सकता है। कोर्ट ने चेताया कि ऐसे किसी भी संगठन पर प्रतिबन्ध लगाने से पहले सरकारों को सावधान रहना होगा।

कोर्ट ने कहा कि RSS देश में सरस्वती शिशु मंदिर के जरिए लाखों बच्चों को शिक्षा देता है। कोर्ट ने कहा इन स्कूलों में गरीब परिवारों के बच्चे काफी कम पैसे में या मुफ्त शिक्षा पाते हैं। कोर्ट ने कहा कि हमारे देश में ऐसे लोग हैं जो किसी भी राजनीतिक विचारधारा से परे, केवल RSS शैक्षिक उद्यम से सक्रिय रूप से जुड़ने का इरादा रखते हैं, ताकि समाज के गरीब बच्चों के साथ अपने ज्ञान को साझा किया जा सके।

कोर्ट ने इसके बाद कहा, “RSS की सदस्यता लेने का उद्देश्य संगठन की राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होना नहीं हो सकता सांप्रदायिक या राष्ट्र-विरोधी या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों में शामिल होना तो दूर की बात है।” कोर्ट ने कहा कि इस बात को 45-50 साल तक नजरअंदाज किया गया।

RSS को वापस लिस्ट में डालना होगा संविधान का उल्लंघन

RSS को सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रतिबंध वाली सूची में दोबारा डालने को लेकर भी टिप्पणियाँ की। कोर्ट ने कहा कि अगली बार इसे इस सूची में डालने के पहले गंभीर स्टडी, रिपोर्ट और डाटा चाहिए होगा। कोर्ट ने कहा कि RSS को भविष्य में सूची में रखना और हटाना रातोंरात नहीं किया जा सकता। इसके लिए सरकार के उच्च स्तर पर गंभीर चिन्तन की आवश्यकता होगी। कोर्ट ने कहा कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और जनता के हितों की स्थिति में ही इसे इस सूची में वापस रखा जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि यदि इस परिस्थिति के अलावा RSS को इस सूची में रखा जाता है तो यह स्पष्ट रूप से उस कर्मचारी के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन होगा, जिसका RSS के साथ भावनात्मक और वैचारिक जुड़ाव है। कोर्ट ने कहा कि इसलिए, एक बार जब सरकार ने प्रतिबंधित संगठनों की सूची से RSS का नाम हटाने का फैसला कर लिया है, तो इसका उस लिस्ट से बाहर रहना केवल उस सरकार की दया पर निर्भर नहीं होना चाहिए।

RSS पर लगा प्रतिबंध गलत, यह जानने में केंद्र को लगे 50 साल

कोर्ट ने इस बात पर गुस्सा जताया कि केंद्र सरकार को अपनी गलती का एहसास होने में लगभग पाँच दशक लग गए। कोर्ट ने कहा कि यह जानने में केंद्र सरकार को 50 साल लगे RSS जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन को देश के प्रतिबंधित संगठनों में गलत तरीके से रखा गया था और उसे इससे हटाया जाना आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि इस कारण कई केंद्र सरकार कर्मचारी देशसेवा की आकांक्षाएं पूरी नहीं कर पाए।

गौरतलब है कि 9 जुलाई, 2024 को मोदी सरकार ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के RSS की गतिवधियों में भाग लेने पर लगी रोक हटा दी थी। यह रोक इंदिरा गाँधी की सरकार ने 1966 में लगाई थी और तबसे ही यह चली आ रही थी। इसका कभी भी पुनरावलोकन नहीं किया गया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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