सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (7 अप्रैल, 2025) को एक पूर्व जज को बड़ी राहत दी है। उस पर बलात्कार, धोखाधड़ी और धमकी का आरोप है। महिला ने दावा किया है कि पूर्व न्यायिक अधिकारी ने शादी का झूठा वादा किया और उसका शोषण किया था।
जस्टिस BV नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि पूर्व अधिकारी और महिला दोनों के बीच संबंध सहमति से बने थे और महिला को पूरी जानकारी थी कि पुरुष शादीशुदा है। हालाँकि, वो अपने पार्टनर से अलग रहता था।
कोर्ट ने कहा कि महिला इस रिश्ते के परिणाम को अच्छी तरह से जानती थी और रिश्ते में खटास आने के बाद उसने आपराधिक मुकदमा दायर किया था।
सहमति से संबंध के बाद विवाह के लिए मजबूर नहीं कर सकते: कोर्ट
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यदि कोई एक पक्ष दूसरे से अलग होने का निर्णय ले लेता है तो उसे संबंध से हटने का अधिकार है। सहमति से बनाए गए संबंधों के आधार पर शादी करने के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता।
खंडपीठ ने कहा, “हमने पाया है कि रिश्तों में खटास आने पर आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हर सहमति पर आधारित संबंध, जिसमें विवाह की संभावना हो सकती है, यदि बाद में रिश्ता टूट जाए तो उसे झूठे विवाह के बहाने का रंग नहीं दिया जा सकता।” सुप्रीम कोर्ट फरवरी 2024 के कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें 2015 के मामले से पूर्व न्यायिक अधिकारी को बरी करने से इनकार कर दिया था।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि वह हल्दिया में तत्कालीन न्यायाधीश से अपने तलाक के केस के दौरान मिली थी। उसने दावा किया कि न्यायाधीश ने उससे शादी करने का वादा किया, आर्थिक मदद की और कुछ दिनों तक उसके साथ शारीरिक संबंध भी बनाए।
महिला ने आरोप लगाया कि तलाक हो जाने के बाद पूर्व जज उससे मिलने में आनाकानी करने लगा और धीरे-धीरे सारे संपर्क तोड़ दिए। पहले न्यायाधीश ने उसके बेटे की परवरिश का खर्च भी उठाने की बात कही थी लेकिन बाद में मुकर गया।