सुप्रीम कोर्ट ने 6 दशक से फँसे से एक मामले को हाल ही में निस्तारित किया है। यह मामला किराएदार और मकान मालिक के विवाद से जुड़ा हुआ था। पिछले 63 वर्षों में इस मामले में दोनों पक्ष न्यायालय में लड़ाई लड़ रहे थे। 24 अप्रैल, 2025 को जाकर इसका अंतिम फैसला हो पाया है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस MM सुंदरेश और जस्टिस KV विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में किराएदार के दावे को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में किराएदार को सम्पत्ति से बेदखल किए जाने का आदेश दिया है। किराएदार को हटाने की अनुमति मकान मालिक को मिली है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला इसी मामले में 1983 में दिए गए एक निचले अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मकान मालिक को वास्तव में अपने दिव्यांग और बेरोजगार बेटे के लिए अपनी इस सम्पत्ति की आवश्यकता थी। कोर्ट ने यह भी पाया कि उनके पास और कोई भी सम्पत्ति नहीं थी जिससे वह भरण-पोषण कर सकें।
मकान मालिक को राहत देते हुए कोर्ट ने कहा कि बेदखली केवल मकान मालिक की जरूरत के आधार पर ही नहीं बल्कि मकान मालिक के परिवार की आवश्यकता के आधार पर भी किराएदार को बेदखल किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि मकान मालिक को अधिकार दिलाने के लिए जरूरत को समझा जाए और इसी तरह परिवार के सदस्यों की आवश्यकता को इसमें भी कवर किया जाएगा।”
इस मामले में किराएदार लगातार बेदखली का विरोध कर रहा था। उसने दावा किया कि उससे अगर सम्पत्ति खाली करवाए जाने से उसे कठिनाई होगी। हालाँकि, कोर्ट के सामने किराएदार ने यह साबित नहीं किया कि उसने इन 6 दशक के समय में कोई नया ठिकाना तलाशा है या वह ऐसा करने में विफल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “इस मामले में, ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं है जो यह दर्शाता हो कि यहाँ 73 वर्षों से रहने वाला किराएदार, जिसमें से 63 वर्ष लीज की समाप्ति के बाद भी पूरे हो चुके हैं, उसने कोई वैकल्पिक आवास पाने का कोई प्रयास किया है और ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है जिससे यह पता चले कि वह इसे पाने में असमर्थ था।”
क्या था मामला?
यह फैसला 13 अक्टूबर, 1952 को हुई एक लीज को लेकर हुआ है। यह लीज 1952 में इस मकान के पहले मालिक द्वारा की गई थी। इसकी लीज 1962 में खत्म हो गई। इस बीच इस सम्पत्ति को वर्तमान मालिक ने खरीद लिया। लेकिन पट्टा खत्म होने के बावजूद किराएदार ने सम्पत्ति नहीं खाली की।
मकान मालिक ने इस संबंध में कानूनी कार्रवाई भी चालू की। उसने उत्तर प्रदेश के कानूनों के अनुसार, अपनी जरूरत भी बताई। 20 दिसंबर, 1983 को उसे इस मामले में सफलता मिली और किराएदार को मकान खाली करने का आदेश भी दिया गया ।
इस निर्णय को अपील अदालत ने पलट दिया और किराएदार को राहत दी। इसके बाद हाई कोर्ट ने भी किराएदार के हक़ में फैसला दिया। इसके चलते यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा। सुप्रीम कोर्ट ने शुरूआती फैसला बरकरार रखा और मकान मालिक को वापस उसका कब्जा देने का आदेश दिया।