Saturday, April 20, 2024
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‘सबको अभिव्यक्ति की आज़ादी’: सुप्रीम कोर्ट ने UAPA के तहत गिरफ्तार ‘पत्रकार’ सिद्दीकी कप्पन को दी जमानत, हाथरस दंगों की साजिश का है आरोप

इस पर न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति भट ने कहा, "2011 में भी निर्भया के लिए इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। कभी-कभी बदलाव लाने के लिए विरोध की आवश्यकता होती है। आप जानते हैं कि उसके बाद कानूनों में बदलाव हुआ था।"

यूपी के हाथरस में दलित लड़की के साथ हुई रेप और हत्या के बाद दंगों की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार केरल के कथित पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (9 सितंबर 2022) जमानत दे दी। सिद्दीकी को उत्तर प्रदेश पुलिस ने UAPA के तहत 6 अक्टूबर 2020 को गिरफ्तार किया था।

कोर्ट ने जमानत देते हुए कप्पन का पासपोर्ट जब्त कर लिया है। इसके साथ ही उसे अगले 6 सप्ताह तक दिल्ली में ही रहने और हर सप्ताह जंगपुरा थाने में हाजिर होने का आदेश दिया है। इसके बाद कोर्ट ने उसे केरल वापस जाने की अनुमति दी है और कहा है कि वहाँ स्थानीय थाने में उसे हर सप्ताह अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली जस्टिस एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है और अभियोजन द्वारा तैयार की गई सामग्री जिसे टूलकिट के रूप में कप्पन को जिम्मेदार ठहराया गया है, वह विदेशी भाषा में प्रतीत होती है।

पीठ ने कहा, “हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। वह यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि पीड़ित को न्याय की जरूरत है और एक लोग आवाज उठाएँ। क्या यह कानून की नजर में अपराध है।”

जिरह के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा कि हाथरस की घटना के नाम पर प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा था और कप्पन दंगा भड़काने के लिए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की साजिश का हिस्सा था।

उन्होंने तर्क दिया, “कप्पन सितंबर 2020 में PFI की बैठक में शामिल था, जिसमें कहा गया था कि फंडिंग बंद हो गई है। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि वे संवेदनशील क्षेत्रों में जाएँगे और दंगे भड़काएँगे। यहाँ तक ​​कि सह आरोपी ने भी ये बयान दिया था। PFI के अधिकारियों में से एक और उसने साजिश का खुलासा किया।”

जेठमलानी ने तर्क दिया कि ये कुछ हाथरस की पीड़िता को न्याय दिलाने के नाम पर किया जा रहा था। प्रदर्शन का एजेंडा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस्तीफा देने के बाध्य करना था। इसके लिए ईमेल तक भेजे गए थे।

इस पर न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति भट ने कहा, “2011 में भी निर्भया के लिए इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। कभी-कभी बदलाव लाने के लिए विरोध की आवश्यकता होती है। आप जानते हैं कि उसके बाद कानूनों में बदलाव हुआ था।”

बता दें हाथरस घटना के दौरान वहाँ जाते समय सिद्दीकी को गिरफ्तार किया गया था। इसके अलावा PFI से जुड़े अन्य 8 लोगों को भी SIT ने गिरफ्तार किया था। उस समय उसके साथ PFI का भी एक सदस्य था। गिरफ्तारी के बाद यूपी पुलिस की SIT ने सिद्दीकी कप्पन के खिलाफ 5000 पेज की चार्जशीट दाखिल की थी।

हलफनामे में कप्पन के उन 36 आर्टिकल्स को हाईलाइट किया है जो उसके लैपटॉप से बरामद हुए थे। इन लेखों में निजामुद्दीन मरकज, एंटी सीएए प्रोटेस्ट, दिल्ली दंगे, राम मंदिर, शरजील इमाम जैसे मुद्दों पर बात है।

हलफनामे में कहा गया था कि कप्पन जिम्मेदार पत्रकार की तरह नहीं लिखता था। उसका काम सिर्फ मुस्लिमों को भड़काने का था। उसकी संवेदनाएँ माओवादी और कम्युनिस्टों के साथ थीं। एएमयू में हुए सीएए प्रोटेस्ट पर लिखे लेख में उसने ऐसे दिखाया था जैसे पीटे गए मुस्लिम पीड़ित हों और पुलिस ने उन्हें पाकिस्तान जाने को कहा हो।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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