Friday, September 13, 2024
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जमानत तो मिली, लेकिन सज़ा पर रोक नहीं: सूरत की कोर्ट में दल-बल के साथ पहुँचे थे राहुल गाँधी, अगली सुनवाई में मौजूद रहना ज़रूरी नहीं

सूरत कोर्ट जाने के बीच राहुल गाँधी ने एक ट्वीट करके कहा- "ये मित्रकाल के विरुद्ध लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है। इस संघर्ष में, सत्य मेरा अस्त्र है, और सत्य ही मेरा आसरा।"

‘मोदी सरनेम’ मामले में 2 साल की सजा पाने वाले राहुल गाँधी को 13 अप्रैल 2023 तक बेल मिल गई है। उन्होंने सूरत मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले के विरुद्ध सत्र न्यायालय में अपील दायर की थी। हालाँकि अदालत ने उनकी सजा पर रोक नहीं लगाई। कोर्ट ने कहा है कि मामले पर हर पक्ष सुने बिना वो ऐसा नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई में राहुल गाँधी का मौजूद रहना जरूरी नहीं है।

बता दें कि केस की अगली सुनवाई 13 अप्रैल को होगी जबकि 10 अप्रैल तक मानहानि मामले में सभी पक्षों से जवाब दाखिल करने को कहा गया है। राहुल गाँधी आज मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील करने के लिए आज सूरत भी पहुँचे थे। इस दौरान उनके राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री भी साथ देने आए। प्रियंका गाँधी भी भाई के समर्थन में आईं। इसके अलावा अदालत के बाहर भी काफी भीड़ का जमावड़ा लगा रहा।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा उन लोगों को कोर्ट के निर्णय पर बहस नहीं करनी। वह बस अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।

इस बीच कॉन्ग्रेसियों ने राहुल गाँधी को समर्थन दिया। वहीं राहुल गाँधी ने एक ट्वीट करके कहा- “ये मित्रकाल के विरुद्ध लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है। इस संघर्ष में, सत्य मेरा अस्त्र है, और सत्य ही मेरा आसरा।”

बता दें कि मोदी सरनेम पर आपत्तिजनक बयानबाजी करने के मामले में 23 मार्च 2023 को सूरत की जिला अदालत ने काॅन्ग्रेस सांसद राहुल गाँधी को मानहानि के एक मामले में दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद उन्हें जमानत भी दे दी गई। उन्हें ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए 30 दिनों का समय दिया था।

इसके बाद उनसे उनका सरकार बंगला खाली करने को कहा गया था। 2004 से राहुल गाँधी 12, तुगलक लेन बँगला पर रहे थे। कोर्ट में दोषी करार होने के बाद लोकसभा की ‘हाउसिंग कमिटी’ ने राहुल गाँधी को सरकारी बँगला छोड़ने का नोटिस जारी किया था। सामान्यतः ऐसे मामलों में एक तय समयसीमा दी जाती है, राहुल गाँधी के मामले में उन्हें 30 दिनों (अदालत के फैसले से), अर्थात एक महीने का समय दिया गया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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