सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (21 जनवरी 2025) को दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगों के आरोपित और विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम उम्मीदवार ताहिर हुसैन की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई की। यह याचिका दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए दायर की गई थी। सुनवाई के दौरान जजों के बीच मामले को लेकर गहरी चर्चा हुई। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने दिल्ली पुलिस से यह स्पष्ट करने को कहा कि ताहिर हुसैन को अंतरिम या नियमित जमानत क्यों न दी जाए।
बता दें कि ताहिर हुसैन पर 2020 के दिल्ली दंगों में शामिल होने और आईबी कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या का गंभीर आरोप है। वह इस मामले में चार साल और दस महीने से जेल में है। इससे पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी अंतरिम जमानत याचिका खारिज करते हुए सिर्फ नामांकन के लिए कस्टडी पेरोल दी थी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुनवाई की शुरुआत में जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि ताहिर हुसैन के खिलाफ 11 मामले दर्ज हैं, जिनमें से 9 मामलों में उसे जमानत मिल चुकी है। लेकिन दो मामलों में वह अभी भी जेल में हैं, जिनमें से एक मनी लॉन्ड्रिंग और आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या का मामला है। जस्टिस मित्तल ने टिप्पणी की थी, “जेल में रहते हुए चुनाव लड़ना आसान हो गया है। लेकिन ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से रोकना चाहिए।” उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल से यह भी पूछा कि ताहिर हुसैन सिर्फ अंतरिम जमानत की माँग क्यों कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “चुनाव ही जीवन में सबकुछ नहीं है। अगर जमानत लेनी है तो नियमित जमानत के लिए आवेदन करें।”
दूसरी ओर जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने मामले पर अलग नजरिया रखा। उन्होंने दिल्ली पुलिस से सवाल किया कि जब ताहिर हुसैन को अन्य 9 मामलों में जमानत दी जा चुकी है, तो इस मामले में उन्हें जमानत क्यों नहीं मिल सकती। उन्होंने कहा, “अगर अन्य मामलों में वही आरोप हैं और उनमें जमानत मिल चुकी है, तो इस मामले में क्या अलग है? अगर वह मुख्य आरोपित नहीं हैं बल्कि सिर्फ उकसाने का आरोप है, तो पाँच साल से अधिक समय तक जेल में रखने का औचित्य क्या है?”
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने अपनी दलील में कहा कि ताहिर हुसैन ने चार साल और दस महीने जेल में बिताए हैं। उन्होंने कहा कि हुसैन पर सिर्फ यह आरोप है कि उन्होंने भीड़ को उकसाया। मुख्य आरोपितों को नियमित जमानत दी जा चुकी है। अग्रवाल ने यह भी कहा कि ताहिर हुसैन ने दंगों के समय मदद के लिए कई पीसीआर कॉल किए थे।
सुनवाई के दौरान, जस्टिस मित्तल ने हाई कोर्ट के आदेश में कुछ तथ्यों को लेकर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि हुसैन को हाई कोर्ट से आदेश में गलती सुधारने के लिए अर्जी देनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत फिलहाल अंतरिम जमानत देने के पक्ष में नहीं है।
जस्टिस अमानुल्लाह ने ताहिर हुसैन की जमानत याचिका को गंभीरता से लेने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “हम मामले की मेरिट पर विचार कर रहे हैं। अगर हमें लगे कि नियमित जमानत का आधार है, तो अंतरिम जमानत क्यों न दी जाए? पाँच साल से अधिक समय से वह जेल में हैं, और जिन मामलों में आरोप समान हैं, उनमें जमानत मिल चुकी है।”
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अधिवक्ता राजत नायर ने अदालत से समय माँगा ताकि वह मामले पर अपनी दलीलें प्रस्तुत कर सकें। इस पर अदालत ने मामले की सुनवाई बुधवार तक स्थगित कर दी।
गौरतलब है कि ताहिर हुसैन पर 2020 के दिल्ली दंगों का मुख्य साजिशकर्ता होने का आरोप है। वो उस समय आम आदमी पार्टी में था और पार्षद था। उसके खिलाफ आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या सहित कई गंभीर आरोप हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले उसे चुनाव के लिए नामांकन भरने के लिए कस्टडी पैरोल दी थी, लेकिन जमानत देने से इनकार कर दिया था। अब हुसैन चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत माँग रहा है।