यह कहानी है डेविड डिकॉस्टा की। लंबा-चौड़ा था, लेकिन था गरीब। लाइफ लेकिन मस्त जी रहा था। मस्ती भरे जीवन की साथी थी उसकी सुंदर बीवी। नाम था मैरी डिकॉस्टा। शादी के बाद अमूमन जो होता है, वही हुआ। मैरी प्रेगनेंट हो गई। और कुछ महीनों के बाद उनके घर आया एक नन्हा-मुन्ना बेटा।
अब कहानी है चतुर्वेदी की। डेविड डिकॉस्टा और चतुर्वेदी का है कनेक्शन। चतुर्वेदी है नेता और डेविड है कार्यकर्ता – जान तक देने वाला कार्यकर्ता! वो चतुर्वेदी को हीरो मानता है हीरो! इसीलिए अपने बेटे का नाम खुद से रखने के बजाय सुंदर सी बीवी को लेते-देते पहुँच जाता है चतुर्वेदी के बंगले पर। बेटे का नाम रख दिया जाता है – जेम्स।
अब कहानी है जेम्स की। उस जेम्स की, जिसकी माँ का बलात्कार किया गया। किसने किया – चतुर्वेदी ने। क्योंकि सुंदर महिला को देख उसका हवस जाग गया था। कैसे किया – विश्वासघात करके। जान देने वाले कार्यकर्ता को रेल रोको आंदोलन में भेजा, उसको जेल भिजवाया, फिर उसकी बीवी का बलात्कार किया। पति जेल में, गोद में दूधमुँहा बच्चा और खुद रेप-पीड़ित। बेचारी मैरी आत्महत्या कर लेती है।
धीरे-धीरे समय बीतता है। 39 साल के बाद दो नाम आते हैं – रणवीर (Ranveer Allahbadia) और समय (Samay Raina)। ऊपर वाली कहानी से इस कहानी का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। क्योंकि वो ‘आखिरी रास्ता’ की कहानी है। अमिताभ वाली फिल्म। 1986 में रिलीज हुई थी। वास्ता इसलिए भी नहीं है क्योंकि वो रील थी, ये रियल है। रील में डेविड डिकॉस्टा सिर्फ एक था, रियल में लाखों-करोड़ों डेविड डिकॉस्टा हैं।
समय बदल गया है। सिंगल स्क्रीन से मल्टीपल स्क्रीन के बाद अब तो हाथम-हाथ स्क्रीन का जमाना आ गया है। ऐसे में कब कोई रणवीर आपको अपने बीयरबायसेप्स में जकड़ ले, कब कोई रैना आपका समय बदल दे – आपको पता भी नहीं चलेगा। क्योंकि आप भले उसे अपना आदर्श बना लें, उसके लिए आप सिर्फ और सिर्फ डेविड डिकॉस्टा हैं।
चतुर्वेदी के हवस और वासना और फिर बलात्कार से अगर आप रणवीर इलाहाबादिया या समय रैना को अलग करके देख रहे हैं, इसका मतलब है आप डेविड डिकॉस्टा की श्रेणी में फिट बैठते हैं। सोशल मीडिया पर किसको कितने लोग देखते-सुनते हैं, आप विश्वास मानिए इनकी यौन संतुष्टि का पैमाना ही यही है। “माँ की योनि”, “माँ-बाप को सेक्स करते देखना” जैसे शब्द इनके फोरप्ले हैं। इसके बाद ही इनको मिलता है व्यूज का चरम-सुख!
कोई रणवीर या समय रैना आज पहली बार आया, आज के बाद खत्म हो जाएगा – इस भुलावे में भी मत रहिएगा। जब तक इस मानव-समाज में हमारे-आपके जैसे डेविड डिकॉस्टा रहेंगे, रणवीर या समय जैसे लोग न सिर्फ रहेंगे बल्कि हमारे-आपसे ऊपर की श्रेणी में बैठेंगे। रील लाइफ में हम सब पर फ्लाइंग किस फेंक मन ही मन में चूतिया बना देने के अहसास से पुष्पित-पल्लवित होते रहेंगे।
अपने हीरो को भगवान बनाने वाली मानसिकता से पैदा होता है रणवीर या समय रैना। अपने हीरो को भगवान बनाने वाली मानसिकता के कारण शाहरुख खान को देखने के चक्कर में मारा जाता है कोई। अपने हीरो को भगवान बनाने वाली मानसिकता के कारण आत्महत्या कर लेते हैं कई लोग।
बदले में हीरो क्या करता है? धंधा करता है, धंधा। व्यूज का धंधा। गूगल-फेसबुक से पैसे का धंधा। आपको क्या मिलता है? वामपंथी हैं तो ध्रुव राठी। दक्षिणपंथी हैं तो एल्विश यादव। मनोरंजनपंथी हैं तो Ranveer Allahbadia या Samay Raina या Apoorva Mukhija… कॉमेडीपंथी हैं तो Tanmay Bhat या Munawar Faruqui – और ये सब आपको मिल कर बनाते हैं चूतिया।
पटकथा लेखक-हीरो-डायरेक्टर-प्रोड्यूसर सबने ‘आखिरी रास्ता’ का वास्ता देकर आपको समझाया था कि डेविड डिकॉस्टा नहीं बनने का। लेकिन यहाँ देखता-सुनता-गुनता कौन है? पहले सब के सब ‘है साला’ डायलॉग सुन के सीटी बजाते थे, टाइम पास करके घर चले आते थे… अब “माँ की योनि”, “माँ-बाप को सेक्स करते देखना” सुन कर ठहाके लगाते हैं… सिंपल!
जीवन में आपको डेविड डिकॉस्टा नहीं बनना है।