Monday, November 18, 2024
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रवीश जी, रेप में ‘जात’ तो दिख गया आपको, पर मजहबी ‘रेप जिहाद’ पर भी आँख खोलिए

जहाँ कोई अपराधी, पीड़िता को पूरी तरह से पहचानने के बाद, अपनी पहचान छिपा कर, प्रेम का चोला ओढ़ कर, शारीरिक संबंध बनाने के बाद, जब ब्लैकमेल करने लगता है, उसका अपने दोस्तों से रेप करवाता है, उसका विडियो बनाता है, इंटरनेट पर डालता है, तो मकसद महज बलात्कार नहीं रह जाता। यहाँ तो शुरू से ही मजहबी मामला चल रहा है।

रवीश जी ने फेसबुक पर तेलंगाना की डॉक्टर के सामूहिक बलात्कार, हत्या, लाश के साथ बलात्कार और फिर उसे जला देने वाले मामले में ज्ञान दिया कि ऐसे मामलों में साम्प्रदायिक बातें नहीं होनी चाहिए क्योंकि बलात्कार इन सब बातों से परे होता है, बलात्कारी कोई भी हो सकता है, जाति-मजहब से परे… सही बात है रवीश जी, बिलकुल सही बात है। बस यही ज्ञान आप तब नहीं दे पाते जब पीड़िता समुदाय विशेष से हो और बलात्कारी हिन्दू, और हिन्दुओं में भी कहीं पांडे, तिवारी, सिंह, ठाकुर टाइप का निकल आए तो आपकी बाँछें, जहाँ-जहाँ भी होती हैं, खिल आती हैं। सॉरी, ‘पांडे’ पर नहीं खिलती, खास कर तब जब वो सेक्स रैकेट में लिप्त एक खास टीवी चैनल के प्राइम टाइम एंकर का भाई निकल आए!

रवीश जी की बातों से मैं इत्तेफाक रखता हूँ क्योंकि हैदराबाद रेप और हत्याकांड में मुख्य आरोपित मुहम्मद आरिफ है, और पीड़िता हिन्दू, बाकी तीन का नाम रवीश जी ने लिख दिया है, जिससे पता चलता है कि हिन्दू भी शामिल है, तो ‘अल्पसंख्यकों को घृणा का पात्र बनाया जा रहा है’ वाली बात कहने में थोड़ा बल मिल जाता है इसलिए रवीश जी उनके नामों पर ज्यादा ज़ोर देते हैं। तब प्रतिशत खिसक कर हिन्दुओं की संलिप्तता को 75% बना देता है, फिर ‘मुख्य आरोपित’ या योजना बनाने वाला कौन था, ये सारी बातें गायब की जा सकती हैं क्योंकि ‘अरे तीन हिन्दू भी तो थे’।

जहाँ तक हैदराबाद वाले इस बलात्कार की बात है, वो अभी तक सामने आई बातों से साम्प्रदायिक नहीं लगता। साथ ही, रवीश जी जो चिहुँक रहे हैं कि इसे लोग साम्प्रदायिक रंग दे रहे हैं, वहाँ भी वो गलत हैं क्योंकि पुलिस ने शुरू में मुख्य आरोपित मोहम्मद आरिफ (कहीं-कहीं मोहम्मद पाशा) का नाम ही जारी किया था, तो लोगों को लगा कि ये भी दोनों मजहबों के बीच वाला केस है। अब रवीश कुमार कितने घाघ हैं उसका पता इस बात से चलता है कि बहुत ही सूक्ष्म तरीके से, धूर्तता करते हुए इन्होंने बाकियों को ही धूर्त कह दिया है।

रवीश की धूर्तता यह है कि अपने चेले ध्रुव राठी वाले स्टायल में कुछ आँकड़े दे कर उन्होंने उन तमाम मजहबी बलात्कारों को पोतने की कोशिश की है, जहाँ मुख्य उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मजहब ही है। ऐसे मामलों का प्रतिशत हो सकता है कम हो, लेकिन वो होते ही नहीं, ऐसा मानना बिलकुल गलत है। इन मामलों का प्रतिशत इसलिए भी कम है क्योंकि इन मामलों को सरकार उन तरीकों से रिकॉर्ड नहीं करती। करती भी हो, तो ऐसे ऑडिट सामने नहीं आते ताकि पता चले कि किस मजहब के लोग ने दूसरे मजहब के लोगों का यौन शोषण या बलात्कार किया।

इसलिए हमारे सामने सिवाय मीडिया में आई खबरों के और स्थानीय थाना द्वारा जारी किए बयानों के, और किसी भी तरह से आँकड़े इकट्ठा करने का विकल्प है भी नहीं। दूसरी समस्या यहाँ यह भी है कि बहुत सारे मामलों में आरोपित का नाम तो पता चल जाता है, लेकिन पीड़िता का नाम बाहर नहीं आता, न ही उससे जुड़ी कोई भी पहचान। इसलिए भी, ‘रेप जिहाद’ या ‘लव जिहाद’ जैसी बातों को साबित करने के लिए बहुत ही सीमित तरीके से लाए गए आँकड़े ही सार्वजनिक हो पाते हैं। आरोपित के द्वारा किए गए अपराधों के कई मामलों को बस इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि पीड़िता के साथ प्रेम, ब्लैकमेल, निकाह और बलात्कार के बावजूद उसका नाम मीडिया में नहीं है। इसी बात का लाभ रवीश और उसका गिरोह उठाता है, जब वो बड़ी ही आसानी से कह देता है कि सरकार आँकड़े जारी नहीं करती, आप कहाँ से ला रहे हैं ये खबरें!

ख़ैर, अपने पोस्ट में रवीशानंद जी महाराज ने लिखा है कि सरकार जो आँकड़े देती है, उसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ हुए मामलों को अलग से रखा जाता है क्योंकि ऐसा संविधान और सरकार मानती है कि उच्च जातियों के दबंग घृणा और बदला लेने के लिए ऐसा काम करते हैं। रवीश जी यहाँ संविधान की छतरी के नीचे ठिठुरते हुए छुप जाते हैं और वही संविधान सब कुछ हो जाता है जिसके अंतर्गत काम करने वाले कोर्ट के न्याय पर इन्होंने राम मंदिर के फैसले से ले कर जस्टिस लोया की मृत्यु और तमाम मामलों में ‘अंतरात्मा’ की आवाज तक को सुनने का वास्ता दे दिया है।

रवीश जी, मैं कुछ मामले नीचे रखने जा रहा हूँ, जो कि बस चार महीने पुराने ही हैं, और समय तथा जगह की कमी के कारण भी इतने ही एडजस्ट हो सकते हैं, जिनमें कथित अल्पसंख्यकों द्वारा न सिर्फ हिन्दू उच्च जाति, बल्कि दलितों के साथ हुए रेप, गैंगरेप, हत्या, निकाह के बाद पारिवारिक गैंगरेप, लव जिहाद जैसी घटनाएँ पूरी तरह से मजहबी रंग से रंगी प्रतीत होती हैं।

यहाँ आपका ‘उच्च जाति घृणा और बदला लेने के लिए’ वाला तर्क शब्द बदल कर ‘समुदाय विशेष घृणा और बदनाम करने के लिए’ प्रेम का झाँसा दे कर बलात्कार कर रहा है, भगवान और अल्लाह कर रहा है, अपने भाइयों और दोस्तों से बलात्कार करवा रहा है, और हाँ, विडियो बना कर वायरल कर रहा है। इसमें दलित भी हैं सर, जिससे मजहबी आरोपित कह रहा है कि वो उससे अल्लाह के नाम पर रहम की भीख माँगे…

अब सर ये बताइए कि इसमें मजहब का एंगल है या फिर वो लड़के भटके हुए कुछ नौजवान हैं, जिन्हें पता नहीं कि वो क्या कर रहे हैं! और हाँ सर, वो ये भी कह रहे हैं कि वो तो बस चार-पाँच हैं, जो ये दुष्कृत्य करके उस नाबालिग दलित बच्ची को बचा रहे हैं वरना बीस दूसरे लड़के आ कर उसके साथ ऐसा करते! सर, मुझे पता है कि आपका ऑन-ऑफ स्विच ऐसे मौकों पर ऑफ हो कर रवीश वचनामृत बाँटते हुए ‘ऐसी खबरों पर चर्चा नहीं होनी चाहिए क्योंकि समाज में वैमनस्य बढ़ता है। जैसा कि आप लोग ममता शासित बंगाल वाले दंगों पर कहने लगते हैं कि दंगों की खबरों पर चर्चा नहीं करना चाहिए क्योंकि सामाजिक सद्भाव बिगड़ता है।

सर, पेश-ए-खिदमत हैं चंद उदाहरण:

सिर्फ अगस्त से नवम्बर की बात की जाए तो 15 से ज्यादा खबरें तो ऑपइंडिया ने कवर की हैं, जहाँ बलात्कारियों का मकसद धर्म के अलावा कुछ और दिखता ही नहीं। 1 अगस्त की एक खबर के अनुसार, पानीपत में सद्दाम एक नाबालिग को शादी के लिए फुसलाता है, और फिर उसका बलात्कार करता है। उसकी बहन उसे जबरन मांस खिलाती है। उत्तर प्रदेश के बरेली में अगस्त में ही 14 साल की दलित हिन्दू लड़की को खालिद नाम के आरोपित द्वारा प्रेमजाल में फँसाने, बलात्कार करने और उसका अश्लील वीडियो बनाकर नाबालिग को ब्लैकमेल करने का मामला सामने आया।

मुंबई में अजमल अजय बन गया और कोर्ट में निकाह करने के बाद मुँह दिखाई के मौके पर अपने भाइयों और दोस्त के साथ पीड़िता का गैंगरेप किया। सऊदी जाने से पहले यूपी के बलरामपुर में पीड़िता का मतपरिवर्तन करा कर अब्दुल ने निकाह कराया, बाद में फोन पर तलाक दिया। देवर और पति के बहनोई ने उसका रेप करने की लगातार कोशिश की। अब्दुल ने वापस आ कर दूसरी शादी कर ली।

सितम्बर माह में पश्चिम बंगाल के गंगरारपुर में शादीशुदा रहमान ने पिंटू नाम कह कर पीड़िता से सम्पर्क बनाया, उसे गर्भवती बनाया, सच का पता चलने पर लड़की को शादी करने के बहाने नदी किनारे बुलाया, दो साथियों के साथ बलात्कार किया, गला रेता और नदी में फेंक दिया। मुरादाबाद में नौकरी दिलाने का झाँसा दे कर मजहब विशेष के युवक ने पहले पीड़िता का रेप किया, बंधक बना कर रखा और बाद में जबरन इस्लाम कबूल कराया। लड़की किसी तरह जान बचा कर भागने में सफल रही।

उत्तर प्रदेश के रामपुर में दलित पीड़िता के साथ अब्दुल ने प्रेम का छलावा किया, उसकी बातें रिकॉर्ड की और फिर एक दिन अपने दोस्त नावेद के साथ बंदूक की नोक पर उसका बलात्कार किया, विडियो बनाया और इंटरनेट पर डाल दिया। वहीं, उत्तर प्रदेश की कौशाम्बी में ही, इस घटना के कुछ ही दिन बाद नाजिम, आदिल, और आकिब ने एक नाबालिग दलित के साथ सामूहिक बलात्कार किया, विडियो बनाया, इंटरनेट पर डाला। पीड़िता ने जब ‘भगवान के नाम पर’ छोड़ देने की बात की तो आरोपित ने कहा कि वो ‘अल्लाह के नाम पर रहम’ करने की भीख माँगे।

नवम्बर माह में बरेली में वसीम, सावेज, अखलाक, आरिफ और आमिर ने अपने ही गाँव की दो बहनों को अपने पास आने की धमकी दी। वो जब नहीं आईं, तो पाँचों ने तमंचा दिखा कर जबरन गन्ने के खेत में खींच लिया, बारी-बारी से बलात्कार किया, और फिर विडियो बनाया और इंटरनेट पर डाल दिया। कुछ ही दिन पहले कैमूर के मोहनिया में नाबालिग को कार में खींच कर अरबाज, सिकंदर, सोनू और कलाम ने गैंगरेप भी किया और विडियो भी बनाया! शादी का झाँसा देकर पिछले 5 महीने से अरबाज लड़की का यौन शोषण कर रहा था।

घटनाएँ बस आठ ही नहीं हैं…

ये तो बस कुछ ही घटनाएँ हैं जो सामने आई हैं, या स्थानीय मीडिया में ये छपे। ऑपइंडिया जैसी छोटी संस्थाओं के पास संसाधनों की कमी है अतः ये संख्या भी कम है, वरना आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि इन घटनाओं की कमी तो नहीं ही होगी। ये तो बस चंद घटनाएँ हैं जहाँ पीड़िता का या तो विडियो वायरल कर दिया तो घरवालों ने रिपोर्ट लिखवाई, या फिर पीड़िता ने ही हिम्मत दिखा कर पुलिस का दरवाजा खटखटाया। लेकिन हर एक घटना पर कई ऐसी घटनाएँ भी होंगी, जहाँ पीड़िता को परिवारों ने भी चुप रहने बोला होगा, या वो स्वयं ही डर से छुपी होंगी क्योंकि हमारा समाज उन्हें ही अपराधी के तौर पर देखने की गलती करता रहता है।

इसी तरह ‘लव जिहाद‘ को भी नकारा गया था, और अभी भी वामपंथी और छद्म लिबरल इसे एक साजिश के तौर पर देखते हैं। उन्हें लगता है कि रहमान जब पिंटू बन कर किसी हिन्दू लड़की से प्रेम के नाम पर बलात्कार कर के धोखा करता है तो वो प्रेम है, या फिर बेचारा रहमान उदास है कि पीड़िता ने उसके दोस्तों को भी ऐसा कुत्सित प्रेम नहीं करने दिया तो ‘हेडमास्टर का बेटा’ नाराज हो गया और उसने सामूहिक बलात्कार करने के बाद लड़की का गला रेत कर, लाश नदी में फेंकने का रास्ता अपनाया!

आखिर ऐसे मामलों में हिन्दू लड़की को ही इस्लाम क्यों कबूल करना होता है? प्रेम है तो सज्जाद शेख हिन्दू सज्जन सिंह बन कर अग्नि के सात फेरे क्यों नहीं लेता? ये कौन सा प्रेम है जहाँ लड़की को अपना धर्म त्यागना ही पड़ता है? प्रेम की यह कौन सी व्याख्या है, जहाँ छः महीने से लगातार ब्लैकमेलिंग के दम पर रेप चल रहा होता है और जब लगे कि अब ज्यादा दिन तक धोखा नहीं दिया जा सकता तो दोस्तों को बुला कर, कार में, मुँह पर पट्टी बाँध कर रेप होता है, विडियो बनाया जाता है?

तो रवीश जी, मजहब देखना पड़ता है सर! आप अपने प्राइम टाइम में कठुआ वाले मामले में तो आठ साल की बच्ची का नाम लेते वक्त सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन याद नहीं कर रहे थे जबकि वो नाबालिग भी थी, लेकिन आपको तेलंगाना के डॉक्टर की मोहम्मद आरिफ पाशा द्वारा बलात्कार, हत्या और फिर लाश को जलाने के बाद इस खबर की कवरेज में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन याद आ गई कि ये ग़ैरज़िम्मेदाराना बात है कि लोग पीड़िता का नाम बाहर कर रहे हैं! वाह रवीश जी, आप तो दिनों दिन वैचारिक दोगलेपन का पर्याय नहीं, उसका वैयक्तिक रूप होते जा रहे हैं, सर! इतनी सहजता से कैसे कर लेते हैं सर?

सर बताइए न प्लीज! कैसे कर लेते हैं ये सब? कोई ऑन-ऑफ स्विच है जहाँ फ्लो चार्ट में बूलियन अलजेबरा वाला लॉजिक गेट काम करता है कि रेप होने पर देखो कि बलात्कारी हिन्दू है, सवर्ण है, और पीड़िता दलित या गैर-हिन्दू, तो आपके आउटरेज, यानी क्रोधित होने वाला स्विच ऑन हो जाता है। वहीं, पीड़िता दलित, आरोपित मजहबी, या पीड़िता कोई भी, आरोपित मजहबी तो वो स्विच ऑफ़ हो जाता है और आप प्रवचन करने लगते हैं कि एक समाज के तौर पर हमें मजहबों में नहीं उलझना चाहिए, रेप में मजहब नहीं ढूँढना चाहिए, बलात्कार तो बलात्कार है, सारे मर्द करते हैं…

आ हा हा… सर बैठे-बैठे अयोध्या घुमा दिया आपने! आपके चरण कहाँ हैं सर? उसकी धूलि अपने माथे पर लगानी है सर और उसी पैर छूने के समय आपके जेब से वो ऑन-ऑफ स्विच भी चुराना चाहता हूँ सर। फिर उसे ओपन सोर्स करके सर्वसाधारण के लिए उसका सर्किट उपलब्ध करा दूँगा ताकि हर कोई आपकी दोगली विचारधारा के हिसाब से चले और उसी अनुपात में क्रोधित हो जहाँ उसका मकसद पीड़िता के प्रति सहानुभूति न हो, उसे अपने राज्यसभा की सीट दिख रही हो, उसे अपने राजनैतिक मालिकों की रैलियों का स्टेज दिख रहा हो, उसे चार्टर्ड प्लेन दिख रहा हो… हें हें हें… आप तो समझते ही हैं ये सब सर!

अजमल को अजय बनने की क्या ज़रूरत है?

रवीश जी आप ही बता दीजिए न कि अब्दुल अपना नाम राहुल क्यों रखता है? अजमल आखिर अजय क्यों बनता है? साजिद को अपना नाम सज्जन क्यों बताना होता है? कोई मजिदुर रहमान पिंटू क्यों बनता है? आखिर इसके पीछे की वजह क्या होती है कि मजहबी नाम वाले अपने नाम के साथ किसी हिन्दू लड़की से प्रेम नहीं कर पाते? और प्रेम के नाम पर निकाह करने पर मतपरिवर्तन, फिर ससुर और देवर से रेप कराना, या कहीं मिलने के बहाने बुला कर अपने साथियों के हवाले कर देना प्रेम की कौन सी परिभाषा है जिसमें आप ‘न उम्र की सीमा और न जन्म का बंधन’ वाली बात कर रहे हैं?

यहाँ प्रेम अंधा है या प्रेम करने के पीछे की वजह बिलकुल साफ है कि हिन्दू लड़की को फँसाना है, और फिर बलात्कार कर के उसे इसी समाज में या तो आत्महत्या के लिए मजबूर करना है, या हर दिन घुटने के लिए जिंदा रहना है जहाँ उसका परिवार पूरे समाज की नजरों में गिर जाता है। यह दुर्भाग्य है कि पीड़िता को ही समाज अपनी नजरों में गिरा देता है, उसे ही अपराधी की तरह देखता है। यह बात इन बलात्कारी मजहबियों को मालूम है, इसलिए वो न सिर्फ बलात्कार करते हैं, बल्कि बेखौफ विडियो बनाते हैं, और उसे वायरल करते हैं।

क्या आपको कौशाम्बी का बलात्कार महज सामाजिक अपराध लगता है जहाँ लड़के एक नाबालिग दलित लड़की का बलात्कार करते हुए उसे भगवान की जगह अल्लाह का नाम लेने कह रहे हैं? आपको नहीं लगता कि मकसद बिल्कुल साफ है कि एक कट्टरपंथी एक हिन्दू का बलात्कार कर रहा है, और उसे महसूस करवा रहा है कि बलात्कारी और पीड़िता के मजहब और धर्म भिन्न हैं। विडियो बनाते हुए, और उसे इंटरनेट पर डालते वक्त क्या उसे अंदाजा नहीं कि वो पकड़ा जाएगा? लेकिन वो फिर भी ऐसा करता है, कई मामलों में करता पाया जाता है क्योंकि उसका मकसद सिर्फ बलात्कार नहीं, मु##मान द्वारा हिन्दू का बलात्कार है।

आपका तर्क होता है कि शांतिप्रिय मजहब वाला हिन्दू से प्रेम करता है और लोग उसे ‘लव जिहाद’ कह देते हैं। वो हिन्दू से प्रेम करे, निकाह कर ले, जबरन मतपरिवर्तन भी करा ले निकाह करने के लिए, वहाँ तक भी ठीक है क्योंकि संविधान उसकी आजादी देता है। लेकिन यह कैसा प्रेम है जहाँ नाम बदल कर प्रेम पनपता है, तुम्हें कलावा बाँधना पड़ता है, फिर शारीरिक संबंध बनते हैं, उसका विडियो बनाते हो, ब्लैकमेल करते हो, फिर शादी के बहाने नदी किनारे बुलाते हो, और दोस्तों के साथ रेप करने के बाद गला रेत कर मार देते हो? मैं यहाँ भी मजहब न देखूँ?

क्या इन घटनाओं पर आँख मूँद ली जाए कि ये ‘लव जिहाद’ से आगे ‘रेप जिहाद’ नहीं है? राह चलते, किसी लड़की को सुनसान जगह देख कर, विकृत मानसिकता वाले, मौके का फायदा उठा कर जब बलात्कार जैसे अपराध करते हैं तो वो सामाजिक अपराध है, क्योंकि पीड़िता परिचित नहीं होती। किसी अनजान लड़की को दस दिन आते-जाते देख, बिना उसका नाम-पता जाने, कोई अपराधी जब पीछा कर के ऐसे अपराध को अंजाम देता है तो वो सामाजिक अपराध है।

ये सब मजहबी मामले नहीं है तो क्या हैं?

लेकिन, जहाँ कोई अपराधी, पीड़िता को पूरी तरह से पहचानने के बाद, अपनी पहचान छिपा कर, या बाद में बता कर, प्रेम का चोला ओढ़ कर, उससे संबंध स्थापित करने के बाद, जब ब्लैकमेल करने लगता है, उसका अपने दोस्तों से रेप करवाता है, उसका विडियो बनाता है, इंटरनेट पर डालता है, तो मकसद महज बलात्कार नहीं रह जाता। यहाँ तो शुरू से ही मजहब का मामला चल रहा है।

पूरे अपराध की शुरुआत ही धर्म और मजहब की नींव पर हुई है, वही लक्ष्य ही है क्योंकि किसी से आप प्रेम करते हैं तो आप या तो शादी करेंगे, या संबंध विच्छेद हो जाएगा ब्रेक अप के बाद। यहाँ दोस्तों के साथ बलात्कार कैसे हो जाता है? मुँहदिखाई के दिन अपने भाइयों और दोस्त के साथ गैंगरेप कैसे करते हैं? क्या ऐसा काम आम बात है ऐसे घरों में? या फिर, आपको बखूबी पता है कि आपने उससे अजमल से अजय बन कर इसी मकसद से प्रेम किया था कि आप उसका फायदा उठाएँगे, और लड़की अगर पुलिस के भी पास गई तो अपने मजहब की तो नहीं थी!

इसलिए, बीमारी को चिह्नित करना ज़रूरी है, उसके लक्षण पहचानना आवश्यक है तभी उसका समुचित इलाज संभव है। वरना हम तो पोलिटकली करेक्ट होने के चक्कर में घूमते रहेंगे और एक खास तरह के नाम वाले, जिहाद के विकृत रूप का हर पहलू सामने लाते रहेंगे। वक्त शब्दों को चाशनी में लपेट कर स्कोडा-लहसुन तहजीब के नाम पर कव्वाली सुनने का नहीं है, वक्त है अपने घरों की बच्चियों को ऐसे दरिंदों से बचने की सलाह देने का। उन्हें ये खबरें दिखाने की कि तुम किससे बात करती हो, किससे चैट करती हो, किसे कौन सी तस्वीर भेजती हो, वो कैसा निकल सकता है। जब वो तुम्हें अकेले में बुलाए तो वो क्या कर सकता है, उसे वैसी खबरें भी पढ़ाने की ज़रूरत है।

ये किसी रेडियो प्रोग्राम के ज़रिए ‘जनहित में जारी’ बन कर नहीं आएगा क्योंकि ये काम आपको अपने घर से स्वयं ही शुरू करना होगा। ये बच्चियाँ आपकी हैं, कल को आपके पास अगर उसका कोई विडियो आएगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। पुलिस और कोर्ट तो कुछ होने के बाद, कुछ करती है, वो भी सबूत मिलने पर, लेकिन पहले से तैयार रहना, आपके घरों की बच्चियों को इस ‘रेप जिहाद’ के दायरे से बाहर रख सकता है।

ये आपको करना है, क्योंकि दूसरा उपाय कुछ और नहीं है। कानूनन बालिग लड़की किसी से भी प्रेम और शादी करने को स्वतंत्र है, लेकिन उसे अपने देवर और ससुर के साथ किसी बुरे दौर से गुजरना पड़े, तो वो पाप आपके माथे भी जाएगा। हर परिवार को यही लगता है कि उसके घर की बच्ची के साथ ऐसा नहीं होगा, लेकिन जब दुर्घटना हो जाती है, तो हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं। सतर्क रहिए क्योंकि सावधानी ही बचाव है इस लगातार फैलते कैंसर का।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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