Tuesday, March 19, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्दे'पेंटर' ममता बनर्जी को गुस्सा क्यों आता है: CM की कुर्सी से उतर धरने...

‘पेंटर’ ममता बनर्जी को गुस्सा क्यों आता है: CM की कुर्सी से उतर धरने वाली कुर्सी कब तक?

कुछ नेताओं ने तो कई बार विवादास्पद बयान दिया है। ममता बनर्जी, वरुण गाँधी, दिग्विजय सिंह, शरद पवार से लेकर पिनराई विजयन और एम करुणानिधि जैसे नेता चुनाव के समय दिए गए भाषणों में अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते रहे हैं।

चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर 24 घंटे तक चुनाव प्रचार न करने का जो प्रतिबंध लगाया था वह आज ख़त्म हो जाएगा। इस तरह का प्रतिबंध इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए नया नहीं है। आयोग इससे पहले आसाम के मंत्री और भाजपा नेता हिमंत विस्व सरमा पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने के लिए 48 घंटे का प्रतिबंध लगा चुका है।

अंतर बस यह है कि जहाँ हिमंत विस्व सरमा ने आयोग के आदेश का चुपचाप पालन किया, वहीं ममता बनर्जी इसे आयोग द्वारा की गई ज़्यादती बता रही हैं। आयोग के इस आदेश के विरुद्ध वे कोलकाता में महात्मा गाँधी की मूर्ति के नीचे बैठी। चूँकि वे पेंटर हैं तो वहाँ बैठकर उन्होंने पेंटिंग भी की।

चुनाव आयोग के अनुसार ममता बनर्जी ने 3 अप्रैल को तारकेश्वर में अल्पसंख्यकों से वोट न बँटने देने की जो अपील की थी, उससे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है। अल्पसंख्यकों से वोट बँटने न देने की अपील के अलावा चुनाव आयोग ने एक लिखित शिकायत पर ममता बनर्जी के उस बयान का भी संज्ञान लिया जिसमें उन्होंने सीआरपीएफ के जवानों के घेराव की बात कही थी।

चुनाव आयोग के अनुसार, ममता बनर्जी ने निहायत ही घातक और उकसाने वाली बातें की और ऐसी बातों में क़ानून व्यवस्था को बिगाड़ने की क्षमता थी। वहीं ममता बनर्जी का कहना है कि चुनाव आयोग का यह फ़ैसला अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है।

लोकतांत्रिक राजनीति में चुनावों के समय दिए जाने वाले भाषणों में विवादास्पद बयान आना कोई नई बात नहीं है। हर दल के नेता ऐसे बयान देते रहे हैं और यह सिलसिला बहुत पहले से चलता आया है। नेता कॉन्ग्रेस के हों या भाजपा के, वामपंथी हों या समाजवादी, कोई दल या विचारधारा ऐसे नेताओं से ख़ाली नहीं।

कुछ नेताओं ने तो कई बार विवादास्पद बयान दिया है। ममता बनर्जी, वरुण गाँधी, दिग्विजय सिंह, शरद पवार से लेकर पिनराई विजयन और एम करुणानिधि जैसे नेता चुनाव के समय दिए गए भाषणों में अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते रहे हैं।

भाषणों से विवाद उत्पन्न होते रहे पर जो बात देखने की रही वह यह थी कि बयान देते समय ये नेता कौन से संवैधानिक पद पर थे या किसी संवैधानिक पद पर नहीं थे तो उनका राजनीतिक क़द कितना बड़ा था। इसके अलावा यदि इतिहास देखें तो पाएँगे कि पहले दिए गए अधिकतर बयान विरोधी नेता या दल पर व्यक्तिगत हमला या राजनीतिक आरोप लिए होते थे।

ऐसा शायद ही कभी हुआ हो जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने चुनाव में ड्यूटी करने वाले अर्ध सैनिक बलों के घेराव की बात की हो या खुलेआम किसी समुदाय से सीधे वोट न बँटने देने की अपील की हो। ऐसे विवादास्पद बयानों के अलावा इसी चुनाव में मतदान के दौरान अपने चुनाव क्षेत्र के एक बूथ पर ममता बनर्जी की उपस्थिति लोकतंत्र में उनकी आस्था को दर्शाती है।

ऐसा करना हालाँकि चुनाव आयोग के नियमों का उल्लंघन है पर इस बात के लिए आयोग ने उनपर कोई कार्यवाई न करके कुछ हद तक अपनी सहिष्णुता का ही परिचय दिया था। यह बात और है कि उसके लिए आयोग को भाजपा समर्थकों की आलोचना भी झेलनी पड़ी थी।

नेताओं द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध व्यक्तिगत आक्षेप या हमले होते रहे हैं। हाल के दशक में देखें तो 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के तत्कालीन उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर ममता बनर्जी ने बहुत बुरा व्यक्तिगत हमला करते हुए उनके कमर में डोरी बाँधकर ले जाने तक की बात की थी।

उनकी पार्टी के प्रवक्ता डेरेक ओ’ ब्रायन ने तो मोदी को गुजरात का कसाई तक कह डाला था। उसके बाद भी तृणमूल कॉन्ग्रेस की नेत्री समय-समय पर ऐसे व्यक्तिगत हमले करती रही हैं पर भाजपा या नरेंद्र मोदी की ओर से कोई बड़ी प्रतिक्रिया अब तक न आई थी। गृह मंत्री अमित शाह पर भी ऐसे हमले होते रहे हैं पर उन्होंने अपनी तरफ़ से शायद ही कभी व्यक्तिगत टिप्पणी की हो।

पर इस बार व्यक्तिगत हमलों के अलावा ऐसे बयान के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? इसका उत्तर शायद चुनावों के संभावित परिणामों में है। ज्ञात रहे कि केवल चुनावी पंडित ही नहीं बल्कि ममता बनर्जी के चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर भी पश्चिम बंगाल में बड़े बदलाव की संभावना जता चुके हैं।

इस सम्भावित बदलाव के अलावा एक और बात महत्वपूर्ण है और वह है केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों की भूमिका। पिछले लगभग पाँच दशकों से चुनाव में भीषण हिंसा देखने के आदी पश्चिम बंगाल में इस बार अब तक वोटिंग के दिनों में बहुत कम हिंसा देखना राज्य के अधिकतर नागरिकों के लिए सुखद अनुभव रहा है।

जितनी भी हिंसा देखने को मिली है उसमें अधिकतर हमले सत्ताधारी दल के लोगों द्वारा भाजपा प्रत्याशियों या कार्यकर्ताओं पर हुए हैं। इस बार हिंसा में इस कमी का श्रेय पूरी तरह से चुनाव आयोग के शेड्यूल, अर्ध सैनिक बलों की संख्या और शांतिपूर्ण मतदान के लिए उनके समर्पण को जाता है।

कहीं न कहीं अर्धसैनिक बलों का प्रभाव न केवल पहले के चुनावों से भिन्न है बल्कि सत्ताधारी दल को खटक भी रहा है। इसके ठीक विपरीत कॉन्ग्रेस पार्टी और वाम दलों ने केंद्रीय अर्ध सैनिक दलों की भूमिका के विरुद्ध कोई बड़ी आपत्ति नहीं की है।

ममता बनर्जी द्वारा चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के बीच साँठ-गाँठ की बात नई नहीं है। वे इससे पहले भी चुनाव आयोग पर ऐसे आरोप लगा चुकी हैं। उनके अलावा भी कई और नेता और दल चुनाव आयोग पर ऐसे आरोप लगाते रहे हैं पर चुनावों के नतीजे पक्ष में आने पर उन नतीजों का स्वागत भी करते हैं।

राजनीतिक दल और उनके नेता आरोप लगाते समय नहीं सोचते कि चुनावी लोकतंत्र का पहिया घूमता रहता है। पहिए के किस ओर सत्ता और किस ओर विपक्ष रहेगा यह पूरी तरह से मतदाता के हाथ में है।

ऐसे में यह आवश्यक है कि दल और उनके नेता न केवल मतदाता में बल्कि चुनावी प्रक्रिया में अपनी आस्था बरकरार रखें। ऐसा नहीं हो सकता कि जो चुनाव आयोग एक दिन दलों या नेताओं की प्रशंसा का पात्र बने उसी के फ़ैसलों को किसी और दिन अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बता दिया जाए।

इस बार के शांतिपूर्ण चुनाव का असर न केवल आने वाले चुनावों पर पड़ेगा बल्कि नागरिकों के बीच इस बहस का कारण भी बनेगा कि चार दशकों तक चुनाव के दौरान जिस हिंसा को देखने के वे आदी हो गए थे उसके कारण क्या थे? ऐसी हिंसा पहले क्यों नहीं रोकी जा सकी या ऐसी हिंसा पर पहले सार्वजनिक बहस क्यों नहीं हो सकी?

आख़िर क्या कारण थे कि पिछले लगभग तीन दशकों में समय-समय पर चुनावी हिंसा और अपराध रोकने के लिए लाए गए अधिकतर चुनाव सुधारों से पश्चिम बंगाल अछूता क्यों रहा? शायद शांतिपूर्ण विधानसभा चुनावों का असर म्यूनिसिपल और पंचायत चुनावों में भी होने वाली हिंसा को रोकने के लिए प्रेरणा दे।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘शानदार… पत्रकार हो पूनम जैसी’: रवीश कुमार ने ठोकी जिसकी पीठ इलेक्टोरल बॉन्ड पर उसकी झूठ की पोल खुली, वायर ने डिलीट की खबर

पूनम अग्रवाल ने अपने ट्वीट में दिखाया कि इलेक्टोरल बॉन्ड पर जारी लिस्ट में गड़बड़ है। इसके बाद वामपंथी मीडिया गैंग उनकी तारीफ में जुट गया। लेकिन बाद में हकीकत सामने आई।

‘प्रथम दृष्टया मनी लॉन्डरिंग के दोषी हैं सत्येंद्र जैन, ED के पास पर्याप्त सबूत’: सुप्रीम कोर्ट ने दिया तुरंत सरेंडर करने का आदेश, नहीं...

ED (प्रवर्तन जिदेशलय) के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाँच एजेंसी के पास पर्याप्त सामग्रियाँ हैं जिनसे पता चलता है कि सत्येंद्र जैन प्रथम दृष्टया दोषी हैं।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
418,000SubscribersSubscribe