उन्होंने उमर खालिद के मामले को ‘विशेष’ कहा और साफ किया कि ये विशेष ‘खूबियों’ वाला नहीं है। उन्होंने बताया कि उमर खालिद को जो बेल नहीं मिली है उसकी वजह कोई और नहीं बल्कि खुद उमर खालिद और उनके वकील हैं जिन्होंने कोर्ट में बेल याचिकाएँ लंबित रहने के दौरान ही कम से कम 7 बार मामले में एडजर्न कराया।
याद दिला दें कि फरवरी 2024 में ऐसा हुआ था। उमर खालिद की बेल याचिका सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पास पहुँची, लेकिन बाद में कपिल सिब्बल ने उसे वापस ले लिया ये कहते हुए कि परिस्थितियों में थोड़ा बदलाव हुआ है और वो ट्रायल कोर्ट के समक्ष नए सिरे से जमानत की माँग करेंगे।
इसी तरह उन्होंने 2023 में किया था और तब तो पूरी लेफ्ट लॉबी ये साबित करने पर जुट गई थी कि सुप्रीम कोर्ट ही उमर खालिद की याचिका पर सुनवाई नहीं कर रहा है। द वायर जैसे संस्थान उमर खालिद के अब्बा (पूर्व में सिमी आतंकी) का इंटरव्यू ले रहे थे। विदेशी वामपंथी आउटलेट्सस द्वारा प्रपंच फैलाया जा रहा था कि उमर खालिद मुस्लिम होने की सजा भुगत रहा है और अपने देश में इसे हवा दे रहे थे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण जैसे लोग।
4 years in Jail w/o trial. The price of dissent in Modi’s India.
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) October 24, 2024
Fine piece in New York Times#UmarKhalid pic.twitter.com/jYq8v5KCWe
ऑपइंडिया ने पहले ही किया था खुलासा
उस समय ऑपइंडिया ने आपको इस पूरे खेल से बारे में विस्तार से समझाया था जिसकी पुष्टि आज पूर्व जस्टिव डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा भी कर दी गई है। हमने आपको पुराने लेख में जानकारी दी थी कि उमर खालिद मामले में कोर्ट द्वारा देर की ही नहीं जा रही, ये सारा विलंब याचिका डालने और फिर उसे वापस लेने में चक्कर में हो रहा है।
संक्षेप में बताएँ तो सत्र न्यायालय मे 8 माह के भीतर ही खालिद की याचिका खारिज की थी, फिर हाईकोर्ट ने 6 महीने में। इसके बाद वो जब सुप्रीम कोर्ट गया तो 14 में से 7 बार मामला उसके वकील के कारण स्थगित हुआ
केस को कैसे घुमाया गया
दरअसल, 31 अक्टूबर 2023 को जब उमर खालिद का मामला जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला त्रिवेदी के पास पहुँचा उसी के बाद कपिल सिब्बल द्वारा कोर्ट की कार्यवाही स्थगित करने का भी सिलसिला शुरू हो गया था। जजों ने इस दौरान खालिद की जमानत याचिका को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले अन्य मामलों के साथ जोड़ दिया था।
29 नवंबर 2023 को इन मामलों के याचिकाकर्ताओं द्वारा फिर मामले को डी-टैग करने की बात सामने आई। आगे पता चला कि प्रशांत भूषण चाहते हैं कि इस मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ करें। हालाँकि, एक अन्य मामले में जवाब देते हुए डीवाई चंद्रचूड़ ने यह साफ कह दिया था- “अगर मामला किसी जज के सामने सूचीबद्ध है, तो जज ही फैसला लेंगे। मैं कुछ नहीं कहूँगा।“
केस को एएसजी और कपिल सिब्बल की अनुपलब्धता के कारण पहले जनवरी 2024 तक के लिए टाला गया। फिर एएसजी के मौजूद न होने के कारण इसे 17 जनवरी 2024 तक के लिए और फिर कपिल सिब्बल के ही अनुरोध पर इसे 24 जनवरी 2024 तक बढ़ाया। धीरे-धीरे मामला 14 फरवरी तक खिंचा और जब जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू हुई तो सिब्बल ने जमानत याचिका ही वापस ले ली।
पूर्व CJI ने उठाया का जवाब
पूरी टाइमलाइन से साफ था कि उमर खालिद के मामले में सुनवाई के लिए कपिल सिब्बल ‘फोरम शॉपिंग’ के जरिए अपनी किस्मत आजमा रहे थे। खुद बरखा दत्त ने जब डीवाई चंद्रचूड़ से सवाल किया तो उन्होंने ये कहते हुए शुरुआत की थी कि डीवाई चंद्रचूड़ दोनों पक्षों (वामपंथी और दक्षिणपंथी) को जमानत देने के दावे करते हैं, जिसे सुन साफ पता चलता है कि आखिर क्यों कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण चाहते थे कि मामला कहीं और नहीं बल्कि डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा सुना जाए। बरखा दत्त के साथ बातचीत में पूर्व सीजेआई ने मुद्दे पर गहराई से बात की और कपिल सिब्बल का नाम लिए बिन पूछा कि वह अदालत के समक्ष मामले पर बहस करने में अनिच्छुक क्यों थे और इसके बजाय, बार-बार स्थगन की माँग कर रहे थे?
(जानकारी- फ़ोरम शॉपिंग तब होती है जब कोई पक्ष किसी ऐसे न्यायालय या न्यायक्षेत्र को चुनता है जिसके बारे में उन्हें लगता है कि वह उनके पक्ष मेैं फैसले दे सकते हैं।)
नोट- यह लेख नुपूर जे शर्मा द्वारा अंग्रेजी में लिखे गए आर्टिकल पर आधारित है। आप उनके मूल लेख को इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। इसके अलावा इस मुद्दे पर ऑपइंडिया द्वारा किया गया खुलासा यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं।