Saturday, April 27, 2024
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सवाल: 60 साल में कॉन्ग्रेस ने क्या किया, जवाब: AIIMS की ‘चोरी’

दिलचस्प यह है कि PMSSY योजना पर आगे बढ़ने का फैसला करने के बावजूद 10 साल सत्ता में रही यूपीए की सरकार ने इन छह एम्स के अलावा नए एम्स की स्थापना के लिए कोई उल्लेखनीय पहल नहीं किया। करीब-करीब उसने वैसी ही खामोशी अख्तियार कर रखी थी, जैसा दिल्ली एम्स की स्थापना के बाद दशकों तक जारी रहा था।

स्वास्थ्य का क्षेत्र हो या शिक्षा का या फिर कोई अन्य क्षेत्र। हमारी पीढ़ी के लोग बार-बार एक सवाल खुद से पूछते हैं कि कई दशकों तक सत्ता में रही कॉन्ग्रेस ने क्या किया? कोरोना महामारी के कारण उपजे हालात से चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था ने फिर से यह सवाल खड़ा किया है।

दिलचस्प यह है कि यह सवाल पूर्व केंद्रीय मंत्री और कभी राहुल गाँधी के करीबी माने जाने वाले कॉन्ग्रेस नेता मिलिंद देवरा ने भी खुद से ट्विटर पर पूछा है और जवाब दिया है। लेकिन, हकीकत बयां करने, ईमानदार स्वीकारोक्ति की जगह उन्होंने जानकारी देने के नाम पर गुमराह करने का काम किया है। वैसे यह एक ऐसी चीज है, जिसकी अपेक्षा हर कॉन्ग्रेसी से की भी जाती है।

देवरा ने ​ट्वीट कर सवाल किया है कि 60 सालों में कॉन्ग्रेस ने क्या किया? फिर खुद जवाब देते हुए कुछ सरकारी अस्पतालों और कुछ निजी क्षेत्र की कंपनियों के नाम का उल्लेख किया है। जिन अस्पतालों का उन्होंने जिक्र किया है, उनमें दिल्ली एम्स के अलावा 6 और एम्स के नाम हैं। ये हैं: एम्स भोपाल, रायपुर, ऋषिकेश, पटना, जोधपुर और भुवनेश्वर। इन एम्स के नाम के आगे देवरा ने साल 2012 का उल्लेख किया है, जिस वक्त मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र में यूपीए की सरकार चल रही थी।

देवरा ने जो कुछ कहा वह सच से मुँह मोड़ने जैसा है। 1956 में दिल्ली में पहले एम्स की स्थापना के बाद देश में कई सरकारें आईं। इंदिरा और राजीव की भी हुकूमत रही। लेकिन एम्स जैसे और संस्थानों को लेकर गहरी खामोशी ही छाई रही। यह 47 साल बाद 2003 में टूटी जब केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चल रही थी।

पहले एम्स की स्थापना ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट मेडिकल साइंस एक्ट, 1956 के तहत अमृत कौर के स्वास्थ्य मंत्री रहते दिल्ली में हुई थी। वे देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री थीं और इस उत्कृष्ट संस्थान के खड़े होने के पीछे उनकी व्यक्तिगत रूचि और दृष्टिकोण को महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बाद 47 साल तक इस पर गहरी खामोशी रही। यह 2003 में टूटी जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने ‘प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY)’ की घोषणा की। इसका प्राथमिक उद्देश्य स्वास्थ्य क्षेत्र में मौजूद क्षेत्रीय असमानता को दूर करना था।

2003 के 15 अगस्त को लाल किले से देश को संबोधित करते हुए वाजपेयी ने कहा था, “मैं जानता हूँ कि पिछड़े राज्यों के लोगों को अच्छे अस्पताल की कमी के कारण क्या नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत अगले तीन वर्षों में पिछड़े राज्यों में दिल्ली के एम्स जैसी आधुनिक सुविधाओं से युक्त छह नए अस्पताल स्थापित किए जाएँगे।”

जैसा कि हम जानते हैं कि इसके बाद वाजपेयी सरकार करीब 9 महीने ही सत्ता में रही और 2004 में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार आई। उस सरकार के दौरान उन छह एम्स का कार्य आगे बढ़ा जिनकी नींव वाजपेयी सरकार में डल गई थी। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में चुनावों के बाद सत्ता में बदलाव के बाद ऐसा होना सामान्य बात है। इन 6 एम्स के गठन का गजट नोटिफिकेशन 2 जुलाई 2013 में जारी किया गया था। दिलचस्प यह है कि PMSSY योजना पर आगे बढ़ने का फैसला करने के बावजूद 10 साल सत्ता में रही यूपीए की सरकार ने इन छह एम्स के अलावा नए एम्स की स्थापना के लिए कोई उल्लेखनीय पहल नहीं किया। करीब-करीब उसने वैसी ही खामोशी अख्तियार कर रखी थी, जैसा दिल्ली एम्स की स्थापना के बाद दशकों तक जारी रहा था।

2014 में जब केंद्र में मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी तो युद्धस्तर पर इस योजना को आगे बढ़ाया गया। इसी साल 12 मार्च को लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में केंद्र सरकार की ओर से बताया गया था कि 2014 के बाद से इस योजना के तहत 15 नए एम्स को मँजूरी मिली है। साथ ही यह भी बताया गया था कि अरुणाचल, गोवा, कर्नाटक, केरल, त्रिपुरा, सिक्किम, मिजोरम जैसे राज्यों से भी एम्स जैसे संस्थान की स्थापना को लेकर प्रस्ताव मिले हैं। चरणबद्ध तरीके से देश के विभिन्न हिस्सों में बढ़ रहे इन 15 एम्स के कार्य को लेकर सरकार ने पूरा ब्यौरा पटल पर रखा था।

पिछले साल एम्स ऋषिकेश के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा था कि देश के दूसरों हिस्सों में भी एम्स का सपना अटल बिहारी वाजपेयी का था। इस सरकार का लक्ष्य है कि कम से कम हर राज्य में एक एम्स हो। जाहिर है कि एम्स जैसे संस्थान रातोंरात तैयार नहीं होते। यहाँ तक कि जिन एम्स का श्रेय देवरा ने कॉन्ग्रेस को दिया है यूपीए सरकार के जाने के बाद भी वे संसाधनों की कमी से जूझ रहे थे। लेकिन अपने ट्वीट से उन्होंने यह जरूर बतला दिया है कि कॉन्ग्रेस कितनी क्रेडिटखोर है और क्यों इस देश के हर शहर में नेहरू से लेकर राजीव तक के नाम पर कोई न कोई सरकारी दुकान मिल ही जाती है। यह ऐसा काम है जिसमें कॉन्ग्रेस का कोई सानी नहीं।

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अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

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