अमेरिकी एजेंसी USAID द्वारा भारत में कथित तौर पर 21 मिलियन डॉलर की चुनावी फंडिंग को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इस मुद्दे पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि सरकार मामले की गहराई से जाँच कर रही है और जल्द ही तथ्यों को सार्वजनिक किया जाएगा।
एस जयशंकर ने दिल्ली यूनिवर्सिटी लिट्रेचर फेस्टिवल में बोलते हुए कहा कि USAID को काम करने की अनुमति ‘गुड फेथ’ यानी सद्भावना के तहत दी गई थी, लेकिन अब अमेरिका से संकेत मिल रहे हैं कि इसमें किसी विशेष नैरेटिव को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया।
जयशंकर ने कहा, “मुझे लगता है कि ट्रंप प्रशासन के कुछ लोगों ने कुछ जानकारी सार्वजनिक की है, जो निश्चित रूप से चिंताजनक है। इससे यह संकेत मिलता है कि कुछ गतिविधियाँ किसी विशेष उद्देश्य के तहत की जा रही हैं, ताकि एक खास नैरेटिव या विचारधारा को बढ़ावा दिया जा सके।” उन्होंने कहा कि सरकार इस मामले की सक्रिय रूप से जाँच कर रही है। एक सरकार के रूप में हम इस मामले को देख रहे हैं, क्योंकि ऐसी संस्थाओं के लिए अपनी गतिविधियों की रिपोर्ट देना आवश्यक होता है। मेरा मानना है कि जल्द ही तथ्य सामने आएँगे।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस फंडिंग को लेकर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा कि अमेरिका को भारत के चुनावों में हस्तक्षेप करने की जरूरत क्यों पड़ी? ट्रंप ने इस रकम को ‘किकबैक स्कीम’ करार दिया । 20 फरवरी को मियामी में एक कार्यक्रम के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने यूएसएआईडी की 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग पर सवाल उठाते हुए संदेह जताया था कि यह फंडिंग ‘किसी अन्य व्यक्ति को जिताने’ के लिए तो नहीं की गई थी।
बता दें कि कॉन्ग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है और माँग की है कि इस फंडिंग और अमेरिका से आने वाले अन्य अनुदानों पर श्वेत पत्र (White Paper) जारी किया जाए। कॉन्ग्रेस नेता पवन खेड़ा ने दावा किया कि 2001 से अब तक $2.1 बिलियन अमेरिकी फंड भारत में आया है, जिसमें से 40% सिर्फ मोदी सरकार के कार्यकाल में आया। उन्होंने पूछा कि यह पैसा किसे और क्यों दिया गया?
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस मुद्दे पर सरकार की ओर से बयान देते हुए कहा कि विभिन्न एजेंसियाँ इसकी गहराई से जाँच कर रही हैं और आवश्यक कदम उठाए जाएँगे। सरकार ने इस फंडिंग को ‘बेहद चिंताजनक’ बताया और भरोसा दिलाया कि सच्चाई जल्द सामने आएगी।