Thursday, October 10, 2024
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जम्मू-कश्मीर में चुनाव से पहले परिसीमन: कितनी बदल जाएगी राजनीति, महबूबा की पार्टी को क्यों लगी है मिर्ची

जम्मू-कश्मीर में होने जा रहे इस परिसीमन का राजनीतिक महत्व इसलिए भी है, क्योंकि कयास लगाए जा रहे हैं कि इससे जम्मू के लोगों की वर्षों पुरानी शिकायत को दूर करने की दिशा में कोई कदम उठाया जा सकता है। यह बात शायद घाटी के राजनीतिक दलों के लिए सुखद न हो।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन (Delimitation) राजनीतिक चर्चा का विषय बना हुआ है। मार्च 2020 में गठित परिसीमन कमीशन के आजकल जम्मू-कश्मीर के दौरे पर होने के कारण राजनीतिक दलों से प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है। साल 2019 में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद केंद्र सरकार के लिए आवश्यक था कि अगले चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो।

प्रदेश की सीमाएँ नए रूप में तय के करने के कारण विधानसभा में सदस्यों की संख्या बदलने के आसार हैं। साथ ही जम्मू और कश्मीर घाटी में विधानसभा सीटों की संख्या को लेकर वर्षों से जो विवाद रहा है, उसका भी हल निकलने की संभावना है। यही कारण है कि घाटी के राजनीतिक दलों ने इस प्रक्रिया को लेकर प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है। महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) को छोड़ सभी राजनीतिक दल परिसीमन कमीशन से मिलने के लिए तैयार भी हैं।

क्या है परिसीमन

किसी लोकसभा या विधानसभा सीट के पुनः आरेखण (Redrawing) को परिसीमन (Delimitation) कहते हैं। जनसंख्या के घटकों में बदलाव के कारण लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र को समय-समय पर परिसीमन की आवश्यकता पड़ती है ताकि राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों में डेमोग्राफी में हुए बदलाव के अनुसार लोकसभा या विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाई जा सके। इसके साथ ही न केवल होने वाले बदलाव का पता चल सके, बल्कि उसके अनुसार सीट का परिसीमन किया जा सके।

परिसीमन की इसी प्रक्रिया को तय करने के लिए परिसीमन कमीशन का गठन होता है जो एक स्वतंत्र कमीशन होता है और अपनी कार्यप्रणाली खुद तय करता है। यह कमीशन सरकार के अधीन नहीं रहता और न ही इसके काम करने के तरीके पर सरकार का कोई हस्तक्षेप होता है। परिसीमन कमीशन की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश करते हैं। कमीशन के सदस्यों का चयन कमीशन अध्यक्ष केंद्रीय चुनाव आयोग और राज्य निर्वाचन आयोग से करते हैं।

वर्तमान परिसीमन कमीशन के अध्यक्ष जस्टिस (अवकाश प्राप्त) रंजन प्रकाश देसाई कर रहे हैं। कमीशन को मिले मैंडेट के अनुसार उसे जम्मू-कश्मीर के साथ ही अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, असम और मणिपुर की लोकसभा और विधानसभा की सीटों का पुनः आरेखण (Redrawing) करना है।

अब तक कुल चार परिसीमन कमीशन

केंद्रीय स्तर पर भारत में अभी तक कुल चार परिसीमन कमीशन का गठन हो चुका है। अंतिम कमीशन का गठन वर्ष 2002 में किया गया था। यह अलग बात है कि पिछले लगभग पचास वर्षों में लोकसभा की सीटों में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है और 1972 से उनकी संख्या 543 रही है।

परिसीमन की प्रक्रिया के तहत कमीशन अंतिम जनगणना के आँकड़ों का अध्ययन, वर्तमान सीटों में जनसंख्या का अध्ययन, परिसीमन के लिए सीटों का चुनाव और उनमें किए जाने वाले संभावित बदलाव पर एक ड्राफ्ट रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। यह रिपोर्ट केंद्र सरकार के गजट में छपता है। साथ ही यह राज्य सरकार के आधिकारिक गजट और स्थानीय अखबारों में छपता है ताकि संभावित बदलावों को लेकर राज्य के नागरिक अपना मंतव्य दे सकें।

नागरिकों से मिले मंतव्य की विवेचना के साथ यह कमीशन के अधिकार क्षेत्र में है कि आवश्यकता पड़ने पर वह अंतरिम रिपोर्ट में बदलाव करने का फैसला कर सकता है। बदलाव के बाद अंतरिम रिपोर्ट को अंतिम रूप देकर उसे भारत गणराज्य के आधिकारिक गजट में प्रकाशित किया जाता है और भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि से परिसीमन को लागू माना जाता है।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का संभावित असर

वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले जम्मू-कश्मीर में परिसीमन जम्मू -कश्मीर के संविधान के तहत बने कानून के अनुसार होता था। यह अलग बात है कि परिसीमन की प्रक्रिया वही थी जो केंद्र सरकार द्वारा गठित परिसीमन कमीशन के तहत होती थी। अनुच्छेद 370 हटाए जाने और राज्य के पुनर्गठन के पश्चात जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का काम अब केंद्र द्वारा गठित परिसीमन कमीशन के अधीन आ गया है। इसी को लेकर मार्च 2020 में केंद्र ने परिसीमन कमीशन का गठन किया जो इस समय जम्मू-कश्मीर में अलग-अलग राजनीतिक दलों से चर्चा कर रहा है।

जम्मू-कश्मीर में हुए अभी तक के सारे परिसीमन को लेकर जम्मू के लोगों की यह शिकायत रही है कि पहले गठित हर परिसीमन कमीशन ने सीटों की संख्या के मामले में कश्मीर घाटी को एक तरह का अनुचित लाभ दिया था। जम्मू के लोगों की यह शिकायत पुरानी है। यह अलग बात है कि घाटी से चलने वाली राज्य सरकारें इन शिकायतों को नजरअंदाज करती आई थी। इस बार जम्मू के लोगों में एक आशा जगी है कि उनकी शिकायतों को अनदेखा नहीं किया जाएगा। वर्तमान परिसीमन कमीशन पहली बार जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट निकालेगी।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का आधार क्या हो, इसे लेकर राजनीतिक दलों मतभेद है। जहाँ सीपीआई (एम) का मानना है कि वर्ष 2011 की जनगणना को आधार बनाया जाए, वहीं अन्य दलों के अनुसार परिसीमन की प्रक्रिया और नए सीटों को निकालने के लिए जनसंख्या को आधार बनाया जाना चाहिए। लद्दाख के अलग से केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 87 से 83 हो गई है। कमीशन जम्मू-कश्मीर में सीटों की संख्या 90 करने वाला है। कमीशन के अनुसार उसके सदस्य राज्य में सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से मिल रहे हैं। कमीशन ने यह विश्वास दिलाया है कि अगले चुनाव के पहले वह परिसीमन संबंधित प्रक्रिया पूरी कर लेगा।

जम्मू-कश्मीर में होने जा रहे इस परिसीमन का राजनीतिक महत्व इसलिए भी है, क्योंकि कयास लगाए जा रहे हैं कि इससे जम्मू के लोगों की वर्षों पुरानी शिकायत को दूर करने की दिशा में कोई कदम उठाया जा सकता है। यह बात शायद घाटी के राजनीतिक दलों के लिए सुखद न हो। 

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