कॉन्ग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष ने एक बार फिर देश के लोकतंत्र को लेकर प्रोपेगेंडा फैलाया है। उन्होंने एक लेख लिख कर चुनावों में गड़बड़ी के वह दावे दोहराए हैं, जिनका दर्जनों बार जवाब दिया जा चुका है। इसमें उन्होंने कई तथ्यों के साथ छेड़छाड़ भी की है।
राहुल गाँधी ने यह लेख अंग्रेजी समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस में 7 जून 2025 को लिखा है। इसमें उन्होंने 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को ‘बड़े पैमाने पर धांधली’ का परिणाम बताने की कोशिश की है।

इस लेख का शीर्षक ‘मैच फिक्सिंग महाराष्ट्र’ रखा गया है। राहुल गाँधी ने लेख की शुरुआत में ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे को हताश करने वाला और गैर-आधिकारिक स्रोत पर आधारित बताया। उन्होंने अपने इस लेख में जिन-जिन बिंदुओं को आधार बनाया है वास्तव में तथ्यहीन और मनगढ़ंत हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस ने राहुल गाँधी के इस अनर्गल प्रलाप को 5 चरणों में विस्तार से प्रकाशित किया है।
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर फैलाया भ्रम
लेख के पहले चरण में राहुल ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘खेल के शीर्ष प्रतियोगियों ने ही अपना अंपायर चुन लिया।’ उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को नियुक्ति पैनल से हटाने को लेकर भी सवाल खड़े किए।
राहुल गाँधी यह भूल गए कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति हमेशा केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती रही है और सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इस मामले में सरकार को कानून बनाने का आदेश दिया था।
सरकार ने इसके लिए 2023 में ‘चुनाव आयुक्त नियुक्ति अधिनियम’ बनाया था। इसके लागू होने के बाद 2:1 के पैनल में विपक्ष के प्रतिनिधि को भी शामिल किया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार में विपक्ष की अपेक्षा का भाव नहीं है। इसके बावजूद भी राहुल गाँधी द्वारा सवाल उठाया जाना लज्जाजनक है।
जहाँ पहले चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में विपक्ष का 1% भी रोल नहीं था, वहीं अब उनका प्रतिनिधि इस पूरी प्रक्रिया का हिस्सा है। सरकार द्वारा चुनाव आयोग की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश को हटाने का फैसला अनावश्यक न्यायिक बाधाओं को दूर करने और चुनाव प्रक्रिया को गति प्रदान करने के लिए लिया गया है।
मतदाताओं की संख्या पर भी बोला झूठ
राहुल गाँधी ने एक्सप्रेस को दिए अपने लेख में यह बताया कि महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 8.98 करोड़ थी जो 5 साल बाद 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बढ़कर 9.29 करोड़ हो गई। उन्होंने प्रश्न उठाए कि 41 लाख की छलाँग 5 महीने में कैसे संभव है।
इन प्रश्नों का जवाब दर्जनों बार चुनाव आयोग दे चुका है लेकिन फिर भी अगर हम पिछले पाँच लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच मतदाताओं की संख्या के आँकड़ों पर नजर डालें तो इससे यह स्पष्ट होता है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच मतदाताओं की संख्या में 4% की बढ़ोतरी कई बार देखी गई है।

वर्ष 2024 में 4.26%, 2019 में 1.31%, 2014 में 3.48%, 2009 में 4.13 और 2004 में 4.69% (2024 की वृद्धि से भी अधिक) मतदाताओं का अंतर लोकसभा और विधानसभा चुनावों में देखा गया था।इन आँकड़ों से यह स्पष्ट है कि राहुल गाँधी अपनी पार्टी के घटते आधार से खिन्न होकर कुछ भी दावे कर रहे हैं।
मतदान प्रतिशत पर भी रिपीट किया झूठ
राहुल गाँधी ने दावा किया कि शाम 5 बजे मतदान प्रतिशत 58.22% था जो मतदान बंद होने के बाद भी लगातार बढ़ता गया। उन्होंने 76 लाख मतदाताओं के प्रतिशत वृद्धि का भी हवाला दिया। इस मामले में राहुल गाँधी चतुराई से एक बात छुपा ले गए।
सच्चाई है कि 5 बजे मतदाताओं की नई लाइन लगना बंद होती हैं, लेकिन जितने लोग लाइन में लग चुके होते हैं, उन्हें वोट डालने दिए जाते हैं। कई मामलों में चुनाव आयोग ने वोटिंग का समय भी बढ़ाया है। ऐसे में अंतिम आँकड़े 5 बजे के आँकड़ों से हमेशा ही अलग होंगे।
इस मामले पर महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एस. चोकलिंगम ने जवाब देते हुए कहा था कि ‘तय समय के बाद भी मतदान में वृद्धि होना कोई असामान्य बात नहीं है। बल्कि यह प्रक्रियाओं पर आधारित है। महाराष्ट्र के कई शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोग बड़ी संख्या में शाम को मतदान देने आते हैं इसलिए यह कोई असामान्य बात नहीं है।
हद तो तब हो गई जब राहुल गाँधी ने अपने लेख में यह लिख दिया कि किसी भी मतदान केंद्र पर असामान्य रूप से कोई भी लंबी लाइन, कतार या भीड़भाड़ की रिपोर्ट नहीं मिली है। इसका मतलब राहुल गाँधी को यह बात रास नहीं आ रही कि लोग सहजता से आकर मतदान करके जा रहे हैं।
चुनाव आयोग की प्रशंसा करने के बजाय राहुल गाँधी इस पर भी घिनौनी राजनीति चमका रहे हैं।
लोकसभा-विधानसभा को एक ही तराजू से तौला
लेख के चौथे चरण में राहुल ने आरोप लगाते हुए यह कहा कि भाजपा 2024 के विधानसभा चुनाव में 149 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसने 132 पर उसे जीत मिली थी। उन्होंने बताया कि पार्टी का स्ट्राइक रेट 89% रहा जबकि लोकसभा चुनाव में भाजपा का स्ट्राइक रेट केवल 32% ही था।
राहुल गाँधी का यह दावा काफी हास्यास्पद है क्योंकि कुछ समय के अंतर पर छोड़ दीजिए, बल्कि एक ही समय पर राज्य-केंद्र के लिए वोट करने वाला मतदाता अलग-अलग पार्टी को को वोट कर सकता है। इसका सबसे बड़ा उदहारण 2019 के ओडिशा और लोकसभा चुनाव हैं।
अगर 2019 में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी को ओडिशा के लोकसभा चुनाव में 38% सीट (21 में 8) मिली थीं जबकि विधानसभा चुनाव में केवल 15.6% सीट(147 में से 23) मिली थी। राहुल ने बूथ की चुनिंदा सूची बनाने का भी आरोप लगाया।
इस पर चुनाव आयोग उन्हें पहले ही कह चुका है कि वोटर लिस्ट की कॉपी हर चुनाव से पहले अपडेट करके कॉन्ग्रेस समेत सभी पार्टी कार्यालयों में भेजी जाती है। ऐसे में सवाल है कि राहुल ने वोटर लिस्ट की कॉपी पर चुनाव से पूर्व ही हंगामा क्यों नहीं किया?
EVM पर संदेह जताने की पुरानी आदत से मजबूर राहुल
राहुल गाँधी ने अपने लेख के अंतिम चरण में मतदाता सूची, वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज को साझा करने की बात कही। जबकि भारतीय निर्वाचन आयोग के आधिकारिक पेज पर मतदाताओं की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक रूप से पहले ही उपलब्ध है।
राहुल ने चुनाव में धांधली का खेल चलने की आशंका भी व्यक्त की और चुनाव आयोग का भाजपा के साथ मिलीभगत बताया। राहुल गाँधी अपने ही देश की एक स्वतंत्र निकाय के ऊपर लगातार उठा रहे अपमानजनक प्रश्नों से बाज नहीं आ रहे।
यह पहली बार नहीं है जब राहुल गाँधी ने इस तरह की तथ्यहीन और अपमानजनक बात की है। राहुल इससे पहले भी कई बार चुनाव आयोग और अन्य सरकारी एजेंसियों पर सवाल उठा चुके हैं। समझने वाली बात यह है कि राहुल का यह सवाल कान्ग्रेस पार्टी के जीतने पर नहीं उठता।
जब लोकसभा चुनाव में भाजपा को 240 सीटें मिली जो पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले कम थी तब राहुल ने इसे अपनी जीत और भाजपा की हार बताया था। झारखंड के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन में लड़ी कॉन्ग्रेस ने जीत के बाद चुनाव आयोग पर कोई सवाल नहीं उठाया।
दुर्भाग्य की बात है कि कांग्रेस चुनाव आयोग के दिए निर्णय पर सवाल उठने से पहले यह भूल जाती है कि ऐसा करके वह न केवल भाजपा बल्कि खुद अपनी पार्टी के हजारों नियुक्त प्रतिनिधियों को भी कटघरे में खड़ा कर रही है।