Saturday, April 27, 2024
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रामनवमी पर बंगाल में ‘मुस्लिम इलाकों’ की चिंता, शांति के लिए बिहार में सैकड़ों DJ जब्त: ताजिया जुलूस का स्वागत तो हिंदुओं से नफरत क्यों?

हैरानी की बात यह है कि प्रशासन ऐसी चेतावनियाँ तब नहीं देता है जब मुहर्रम के वक्त मुस्लिम समुदाय के लोग स्वयं ताजिया जुलूस निकालते हैं। उस दौरान वह लाठी- डंडों के साथ अपने जुलूस को कई कस्बों और विभिन्न मार्गों से होकर निकालते हैं। तब वहाँ ये सब नहीं देखा जाता कि इलाका मुस्लिम है या फिर हिन्दू।

आज पूरे देश में रामनवमी (Ramnavami) का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। सुबह से ही मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है। इस खास मौके पर कोलकाता में भी 43 जुलूस निकाले जाने हैं। इनमें काशीपुर रोड और वटगंज में दो बड़े रामनवमी जुलूस हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में रामनवमी पर राजनीति शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्ष को रामनवमी पर किसी भी तरह की अप्रिय घटना से बचने की चेतावनी दी है।

उन्होंने कहा, “रामनवमी मनाओ, लेकिन रमजान के महीने का पालन करते हुए। रमजान का महीना भी चल रहा है। अगर तुम किसी मुस्लिम इलाके में जाकर हमला करते हो तो याद रखना, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।”

इसी तरह रामनवमी से दो दिन पहले बिहार के बेगूसराय में डीजे पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया और फिर बिहार की बेगूसराय पुलिस 24 घंटे के दौरान 62 डीजे ज़ब्त कर थाने लेकर आ गई, ताकि रामनवमी के दिन डीजे न बज सके। इतना ही नहीं, बिहार में डीजे संचालकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई। एसपी ने इस कदम के पीछे बताया कि रामनवमी पर्व, चैती दुर्गा पूजा व चैती छट पर्व से लेकर रमजान पर्व को लेकर शांति व्यवस्था के लिए जिले की पुलिस अलर्ट मोड पर है। इसी क्रम में ऐसा किया गया है।

अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर ये मुस्लिम इलाका होता क्या है जिसका हवाला देकर हिंदुओं को चेतावनी दी जा रही है? अगर यह वास्तव में होता है, तो क्या इसी तर्ज पर हिन्दू इलाका नहीं होना चाहिए? और अगर नहीं होता, तो फिर कहाँ जाने से रामनवमी पर हिंदुओं को रोका जाता है?

ताजिया जुलूस से कोई दिक्कत क्यों नहीं

ध्यान दें कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम के 10वें दिन मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग सड़कों पर ताजिया जुलूस निकालते हैं। इस जुलूस में ये लोग शोक व्यक्त करते हैं और अपनी छाती पीटकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। इस दौरान जुलूस में शामिल मुस्लिम लाठी-डंडों से करतब भी दिखाते हैं। यह जुलूस कई कस्बों और विभिन्न मार्गों से होकर गुजरता है, जहाँ बड़ी संख्या में हिन्दू भी रहते हैं। इसके कारण सड़कों पर भीड़ इकट्ठा होने से कई बार माहौल खराब हो जाता है। जूलूस से ट्रैफिक भी प्रभावित होता है।

देश के कई राज्यों में, जहाँ बड़ी संख्या में हिन्दू रहते हैं, उन जगहों पर मस्जिद बनी हुई है। वहाँ मुस्लिम लाउडस्पीकर पर नमाज अदा करते हैं। हद तो तब हो गई, जब 2021 और दिसंबर 2022 में हरियाणा के गुरुग्राम में मुस्लिम सड़कों पर ही नमाज पढ़ने के लिए जुट गए। क्या इस दौरान नेता हिंदू इलाका और मुस्लिम इलाका का फर्क भूल जाते हैं।

हिंदुओं को अपने पर्व मनाने के लिए किस इलाके में जाना होगा? क्या उसे (हिंदुओं) हमेशा अपने त्योहारों को मनाने के लिए अपना मन मारना पड़ेगा? क्या आजाद भारत में उन्हें अब भी अपने त्योहार मनाने की आजादी नहीं मिल पाई है? यह सवाल उन राज्यों की सरकारों से है, जो सभी समुदाय को एक दृष्टि से देखने का दंभ भरती हैं। क्या उनके लिए हिंदू केवल एक वोट बैंक है, जो उन्हें चुनाव के समय ही याद आता है। क्या उनकी धार्मिक आस्था इन लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखती है?

हिंदुओं से इतनी घृणा का कारण क्या है?

बहरहाल, पश्चिम बंगाल हो या फिर बिहार केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाती रही है। कई बार देश की सबसे पुरानी पार्टी कॉन्ग्रेस के साथ मिलकर क्षेत्रीय दलों ने मोदी सरकार के खिलाफ अपने एजेंडे को भुनाने के भरसक प्रयास किए, लेकिन वे हमेशा अपने नापाक मंसूबे में विफल ही रहे। आखिर, हिंदुओं से इतनी घृणा का कारण क्या है? क्या हिंदुस्तान में केवल तथाकथिक अल्पसंख्यकों को ही खुश करने में लगी रहेंगी ये राजनीतिक पार्टियाँ?

खैर, ममता बनर्जी तो पहले ही इस बात को पुख्ता कर चुकी हैं कि वह हिंदुओं और उनके त्योहारों से कितनी घृणा करती हैं। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2021 के नतीजे घोषित होने के बाद से बड़े पैमाने पर राजनीतिक हिंसा हुई। इसमें जॉय प्रकाश यादव, कुश खेत्रपाल और अभिजीत सरकार के अलावा कई हिंदू मारे गए थे। सीबीआई की 34 एफआईआर में से कई में ‘TMC गुंडों’ के नाम सामने आए थे। उन पर आरोप लगाया गया था कि वे हिंदू धर्म खत्म कर देंगे और सबको मार देंगे

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