Tuesday, April 30, 2024
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अक्साई चीन पर जो थे नेहरू के विचार, कच्चातिवु पर दिग्गी राजा ने वही दोहराया: देश की अखंडता को ठेंगा दिखाती कॉन्ग्रेस, मछुआरों के मुद्दे इनके लिए ‘बेकार की बातें’

भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमाओं के विवाद के समाधान की आड़ में ये सब किया गया था। केंद्रीय विदेश मंत्री S जयशंकर भी बता चुके हैं कि कैसे पिछले 2 दशक में न सिर्फ 6184 भारतीय मछुआरों को हिरासत में लिया है, बल्कि 1175 नावों को भी जब्त किया है।

भारत-चीन के बीच युद्ध भले ही अक्टूबर 1962 में शुरू हुआ, लेकिन इसकी पटकथा काफी पहले से लिखी जानी शुरू हो गई थी। लद्दाख में 1959 में भी दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसा हुई थी। चीन ने प्रस्ताव रखा था कि मैकमोहन लाइन के दोनों तरफ 20 किलोमीटर तक दोनों देशों की सशस्त्र जवान पीछे जाएँ, जिसे भारत ने नकार दिया था। उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जो बयान दिया था, दिग्विजय सिंह ने अपने नए बयान से उसी विरासत को आगे बढ़ाया है।

दिग्विजय सिंह कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं, लगातार 10 साल मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। कुछ दिनों पहले कच्चातिवु द्वीप को लेकर विवाद सामने आया था। RTI से खुलासा हुआ था कि कैसे इंदिरा गाँधी के काल में कॉन्ग्रेस सरकार ने इस द्वीप को श्रीलंका को दे दिया था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को उठाया। दिग्विजय सिंह ने इस पर कहा है कि वहाँ कोई नहीं रहता है। ये कॉन्ग्रेस की उसी संवेदनहीनता का परिचायक है, जिसका पालन नेहरू से लेकर दिग्विजय तक उसके नेता करते रहे हैं।

इससे पता चलता है कि कॉन्ग्रेस पार्टी भारत की क्षेत्रीय अखंडता के प्रति जरा सी भी गंभीर नहीं है। मोदी सरकार में उत्तर-पूर्वी राज्यों में विकास से लेकर जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 को निरस्त कर लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने तक, या फिर पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे राज्यों में BSF को अधिक शक्ति देने तक, मोदी सरकार लगातार भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने में लगी हुई है। वहीं कॉन्ग्रेस के समय कभी पाकिस्तान, कभी चीन तो कभी श्रीलंका तक ने भारत की जमीनें हड़पीं।

तमिलनाडु में इस बार पूरा जोर लगा रही भाजपा

तमिलनाडु में इस बार भाजपा जोर-शोर से मेहनत कर रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सालेम में रैली की, जहाँ वो मुस्लिमों द्वारा घर में घुस कर 2013 में भाजपा नेता ऑडिटर रमेश की हत्या पर श्रद्धांजलि देते हुए भावुक हो गए, फिर उन्होंने राजधानी चेन्नई में भव्य रोडशो किया। रोडशो के अगले ही दिन वेल्लोर और मेट्टुपलायम में सभाएँ की। पीएम मोदी ने नई संसद में चोल राजवंश के राजदंड ‘सेंगोल’ को भी स्थापित कर के तमिलनाडु की संस्कृति को वैश्विक पहचान दी है।

इसमें बहुत कुछ नया नहीं है, क्योंकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अक्टूबर 2019 में भारत आए थे तो पीएम मोदी के साथ उन्होंने मल्ल्पुरम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था। उत्तर प्रदेश में काशी-तमिल संगमम और गुजरात में सौराष्ट्र-तमिल संगमम भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही दिमाग की उपज है जो तमिल संस्कृति को भारत के अलग-अलग हिस्सों से जोड़ता है। तमिलनाडु की 9 क्षेत्रीय (DMK/AIADMK नहीं) दलों से गठबंधन कर भाजपा ने इस बार पूरी ताकत झोंक दी है।

पार्टी वहाँ कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती, यही कारण है कि सेन्ट्रल चेन्नई से तमिलसाई सुन्दरराजन को राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर लड़ाया जा रहा है। और हाँ, इस बार राज्य में अन्नामलाई फैक्टर भी है। IPS अधिकारी रहे अन्नामलाई राज्य में भाजपा के लिए जम कर पसीना बहा रहे हैं और खुद कोयम्बटूर से चुनाव लड़ रहे हैं। दरअसल, उन्होंने ही एक RTI दायर की थी। उससे ही खुलासा हुआ कि कॉन्ग्रेस राज में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था।

कच्चातिवु द्वीप और भारतीय मछुआरों की समस्या

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को उठाते हुए बताया था कि कैसे भारतीय मछुआरे अब उस द्वीप के आसपास जाते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। 1974 में श्रीलंका और इंदिरा गाँधी सरकार के बीच हुए करार के तहत इस द्वीप को श्रीलंका को दे दिया गया था। भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमाओं के विवाद के समाधान की आड़ में ये सब किया गया था। केंद्रीय विदेश मंत्री S जयशंकर भी बता चुके हैं कि कैसे पिछले 2 दशक में न सिर्फ 6184 भारतीय मछुआरों को हिरासत में लिया है, बल्कि 1175 नावों को भी जब्त किया है।

भारत में मछली पकड़ने की तकनीक है, पानी में जाल डाला जाता है और फिर मछलियाँ उसमें आ जाती हैं और पानी छन जाता है। हालाँकि, 2017 में श्रीलंका ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। भारतीय मछुआरे समुद्री संसाधनों को खत्म कर रहे हैं, ये आरोप लगाया गया। कहा गया कि इससे समुद्री जीवन खत्म हो रहा है। श्रीलंका भी कच्चातिवु द्वीप का कुछ खास इस्तेमाल नहीं कर रहा है। श्रीलंका के थिंक-टैंक ‘PathFinder’ का मानना है कि भारत में चुनावी लाभ के लिए ये मुद्दा उठाया गया है।

हालाँकि, मछुआरों की गिरफ़्तारी के आँकड़े इसकी पुष्टि करते हैं कि ये द्वीप अगर भारत में रहता तो हमारे मछुआरों को फायदा होता। इंदिरा गाँधी ने दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्तों की दुहाई देते हुए कहा था कि इस आइलैंड का मुद्दा उठाना ठीक नहीं है। आपको पता है उनका क्या मानना था? इंदिरा गाँधी इस द्वीप को केवल एक पत्थर मानती थीं, जिसका कोई रणनीतिक महत्व नहीं है। हालाँकि, उस समय भारतीय मछुआरों की इसकी इजाजत दी गई थी कि वो इस द्वीप पर रुक कर अपने जाल को धूप में सूखा सकें, यहाँ आराम कर सकें।

लेकिन, 1976 में एक और करार हुआ और भारतीय मछुआरों का ये अधिकार भी जाता रहा। भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के तलाईमन्नार के बीच की दूरी मात्र 12 किलोमीटर है, ऐसे में मछुआरों के लिए नया संकट खड़ा हो गया। सदियों से उनका जीवन-यापन इसी पर निर्भर था। श्रीलंका में जब गृह युद्ध हुआ तब वहाँ की नौसेना ने नावों पर बिना किसी भेदभाव के वार किया, जिसका निशाना भारतीय मछुआरे भी बने। बीच में वहाँ के उग्रवादी संगठन LTTE और श्रीलंकाई मछुआरों ने भी भारतीय मछुआरों पर हमला किया।

दिग्विजय सिंह का बयान, नेहरू वाली विरासत को ही बढ़ा रहे आगे

दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के राजगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वो अपने क्षेत्र में ‘वादा निभाओ यात्रा’ निकाल रहे हैं। दिग्विजय सिंह 1984 और 1991 में इस सीट से जीत चुके हैं। इसी सीट के अंतर्गत आने वाले राघोगढ़ से 4 बार MLA रहे हैं। पिछले 3 बार से उनके बेटे जयवर्धन यहाँ से विधायक हैं। चौचौड़ा से भी वो एक बार विधायक रहे हैं। फ़िलहाल वो लगातार दूसरी बार राज्यसभा सांसद हैं। उनके भाई लक्ष्मण सिंह भी चाचौड़ा से MLA हैं, राघोगढ़ से 2 बार विधायक रहे हैं और इसी राजगढ़ सीट से लगातार 5 चुनाव जीत चुके हैं।

दिग्विजय सिंह गाँधी परिवार के करीबी सलाहकारों में से भी एक रहे हैं। कच्चातिवु वाले मुद्दे पर जब उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, “एक बात सुन लीजिए। उस द्वीप पर कोई रहता है क्या? मैं ये पूछना चाहता हूँ।” जब मछुआरों की समस्या के बारे में उनसे बात की गई तो वो कहने लगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेकार की बाते कर रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने इसे नेहरू वाली मानसिकता करार दिया, जब उन्होंने अक्साई चीन को लेकर कहा था कि यहाँ घास का एक तिनका भी नहीं उगता।

भाजपा ने आरोप लगाया है कि कॉन्ग्रेस नेता देश की बजाए एक परिवार को प्राथमिकता दे रहे हैं। शहजाद पूनावाला ने कहा कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं कि जम्मू कश्मीर की चर्चा राजस्थान में नहीं होनी चाहिए, राहुल गाँधी और A राजा कहते हैं कि भारत देश नहीं बल्कि अलग-अलग राज्यों का समूह है। भाजपा ने कॉन्ग्रेस के कृत्य में DMK द्वारा साथ देने का भी आरोप लगाया। 1974 में तमिलनाडु में करूणानिधि की ही सरकार थी।

जवाहरलाल नेहरू ने अक्साई चीन को लेकर दिखाई थी यही मानसिकता

जवाहरलाल नेहरू ने अक्साई चीन पर चीन के कब्जे को सही ठहराया था। नेहरू चीन को लेकर आकर्षित थे, उन्होंने वहाँ का दौरा कर के ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा भी दिया और UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) की सीट तक सौंप दी, लेकिन बदले में मिला तो युद्ध और अतिक्रमण। चीन ने बार-बार नेहरू का भी अपमान किया, उन्हें अंग्रेजों-अमेरिका का नौकर तक बता दिया। भूटान और तिब्बत को लेकर चीन लगातार भारत को धमकी देता रहा, कॉन्ग्रेस शासन नज़रअंदाज़ करता रहा सब कुछ।

8 दिसंबर, 1959 को जवाहरलाल नेहरू ने संसद में कहा था कि भारत की सीमाओं को लेकर खुद वो निश्चित नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि भारत की सेना हाथ पर हाथ धरे बैठी थी। 1957 की शुरुआत में कुमाऊँ रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल RS बसेरा और हवलदार दीवान सिंह ने याक चराने वालों के समूह में शामिल होकर पता लगाया कि चीन अक्साई चीन में सड़कें बनवा रहा है। इस गुप्त रिपोर्ट के टेबल पर आने के बावजूद जवाहरलाल नेहरू निश्चिंत बने रहे।

तिब्बत को लेकर भी भारत ने चीन को एकदम से आक्रामक रवैया अपनाने दिया। तिब्बत ने नेहरू को ‘चोग्याल’ (राजा) के रूप में देखा था और उसे लगता था कि वो उसकी समस्याएँ सुलझाएँगे। उस समय भारतीय वायुसेना को भी चीन की वायुसेना से मजबूत माना जाता था। नई सड़कें बना कर चीनी सेना भारतीय सीमा में तेज़ी से घुस सकती थी। इतिहास बताता है कि JL नेहरू से लेकर दिग्गी राजा तक, कॉन्ग्रेस देश की अखंडता के प्रति गंभीर नहीं रही है और उसने हमारी सीमाओं का नुकसान ही किया है।

मोदी सरकार में सुरक्षित हुईं सीमाएँ, उत्तर-पूर्व से लेकर कश्मीर तक काम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा से कहते रहे हैं कि भारत की सीमा पर स्थित गाँवों को ‘अंतिम गाँव’ कहने की बजाए उन्हें देश का ‘पहला गाँव’ कहा जाना चाहिए। अरुणाचल प्रदेश में भारत स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल कर धड़ाधड़ अत्याधुनिक सड़कें बना रहा है। LGG-डामटेंग-यांग्त्से मार्ग हो या फिर सेला टनल, निर्माण कार्य जारी है। भारत-तिब्बत-चीन-म्यांमार सीमा पर 1748 किलोमीटर के 2 लेन हाइवे बनाने के लिए 6000 करोड़ रुपए हाल ही में आवंटित किए गए हैं।

अगस्त 2023 में सामने आया था कि भारत ने अरुणाचल प्रदेश में 507 किलोमीटर, लद्दाख में 553 किलोमीटर और उत्तराखंड में 343 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया है। कई ऐसे टनल बनाए जा रहे हैं जो हर मौसम में आवागमन के लिए चालू रहें। जिन राज्यों की सीमाएँ दूसरे देशों से मिलती हैं, वहाँ BSF को गिरफ़्तारी, जब्ती और तालशी के अधिकार का दायरा बढ़ा कर 50 किलोमीटर कर दिया गया। कॉन्ग्रेस ने इसका भी विरोध किया था।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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