जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को इस्लामी आतंकवादियों ने खौफनाक हमला किया। उन्होंने हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाया, 26 लोगों की जान ली और कई को घायल कर दिया। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन द रेजिस्टेंट फ्रंट (TRF) ने ली। पाकिस्तान के समर्थन वाला यह हमला उसकी भारत के प्रति दुश्मनी को फिर से उजागर करता है। इसके बाद भारत सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं।
भारत ने सभी पाकिस्तानी नागरिकों को 27 अप्रैल तक देश छोड़ने का आदेश दिया है। हालाँकि, दीर्घकालिक वीजा (लॉन्ग टर्म वीजा-LTV) वाले पाकिस्तानी हिंदुओं को इससे छूट दी गई है। मेडिकल वीजा पर आए पाकिस्तानी नागरिकों को भी 29 अप्रैल तक वापस जाने को कहा गया है। भारत ने सालों तक पाकिस्तान जैसे दुश्मन देश के प्रति उदारता दिखाई, लेकिन अब साफ कर दिया है कि विश्वासघात का जवाब दया नहीं होगा।
भारत की निर्णायक प्रतिक्रिया- सामान समेटो और निकलो
पाकिस्तान बार-बार भारत की पीठ में छुरा घोंपता रहा है। अब भारत ने सहनशीलता छोड़ दी है। विदेश मंत्रालय ने मेडिकल वीजा धारकों को 29 अप्रैल तक वापस जाने का आदेश दिया है। किसी भी तरह के वीजा विस्तार की अनुमति नहीं होगी। मौजूदा वीजा भी रद्द किए जा रहे हैं। यह आदेश गंभीर बीमारियों का इलाज करा रहे मरीजों पर भी लागू है। यह दिखाता है कि पाकिस्तान ने अपने दोगलेपन से भारत के सब्र की कितनी परीक्षा ली।
ये निर्देश सख्ती से लागू किए गए हैं ताकि कोई शक न रहे। भारत ने साफ कर दिया है कि आतंक फैलाने वाले देश के नागरिकों का स्वागत नहीं किया जा सकता, भले ही वे इलाज के लिए आए हों।
पाकिस्तानियों के लिए खुला रहा भारत का दिल
दशकों से भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए अपने दरवाजे खुले रखे, खासकर उन लोगों के लिए जो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। जिनका इलाज रुकना नहीं चाहिए था, उनके लिए वीजा की प्रक्रिया को तेज किया गया। हार्ट सर्जरी, कैंसर का इलाज, अंग प्रत्यारोपण जैसे मामलों में हजारों पाकिस्तानियों को भारत में प्रवेश मिला।
भारत ने दोनों देशों के बीच तनाव के बावजूद वीजा नियमों में ढील दी। कई बार दस्तावेजों की दिक्कतों को नजरअंदाज किया, जो पाकिस्तानियों के लिए आम बात थी। भारत ने उनके शरीर को ठीक किया, कई बार मुफ्त इलाज दिया, लेकिन दूसरी तरफ पाकिस्तान अपनी आतंकी फैक्ट्रियों से भारत का खून बहाता रहा। भारत ने बार-बार करुणा दिखाई, लेकिन विश्वासघात की भी एक सीमा होती है।
अब नहीं सहेगा हिंदुस्तान
पहलगाम हमले से बहुत पहले भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों, खासकर मेडिकल वीजा के लिए साफ और व्यवस्थित नियम बनाए थे। मेडिकल वीजा के लिए आवेदन डिप्लोमेटिक चैनल से करना पड़ता था। इलाज के लिए आने वालों को सिर्फ तीन महीने का वीजा मिलता था। अगर राज्य सरकार या FRRO सिफारिश करता, तो चिकित्सा दस्तावेजों के आधार पर वीजा बढ़ाया जाता था। मरीज के साथ सिर्फ एक तीमारदार को अनुमति थी।
सुरक्षा मंजूरी लेना अनिवार्य था। फिर भी, भारत ने ज्यादातर मामलों में मानवीय आधार पर प्रक्रिया को तेज किया। आवेदकों को अपनी पूरी जानकारी, इलाज की जरूरत का सबूत और बैकग्राउंड जांच की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती थी। इसके बाद ही वीजा मिलता था।
केवल कुछ चुनिंदा मान्यता प्राप्त अस्पतालों को ही पाकिस्तानी मरीजों का इलाज करने की इजाजत थी। यह सुनिश्चित करता था कि इलाज सरकार की निगरानी में हो। तीमारदारों को भी अलग से सुरक्षा मंजूरी लेनी पड़ती थी।
इतने सख्त नियमों के बावजूद, भारत ने गंभीर मामलों में लचीलापन दिखाया। वीजा विस्तार, फॉलो-अप सर्जरी या अतिरिक्त परामर्श के लिए विशेष अनुमति दी जाती थी। मेडिकल वीजा धारकों को वापस भेजने का फैसला अचानक नहीं लिया गया। यह सावधानीपूर्वक बनाई गई नीति का हिस्सा है, जो पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों के समर्थन से कमजोर पड़ गई।
हजारों पाकिस्तानियों को भारत में जीवन रक्षक इलाज मिला। कुछ मामले खास तौर पर चर्चा में रहे।
पाकिस्तान किशोरी आयशा राशन का हृदय प्रत्यारोपण
अप्रैल 2024 में, पाकिस्तान की 19 वर्षीय आयशा राशन की चेन्नई के एमजीएम हेल्थ केयर अस्पताल में जीवन रक्षक हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी हुई। इस सर्जरी में 35 लाख रुपए तक का खर्च अनुमानित था, पर इसे निःशुल्क तौर पर किया गया। ऐश्वर्यम ट्रस्ट की ओर से आर्थिक सहायता दी गई।
पाकिस्तानी लड़की अफशीन गुल की रीढ़ की सर्जरी
2022 में पाकिस्तान के सिंध से आई 13 वर्षीय अफशीन गुल को करेक्टिव स्पाइन सर्जरी के लिए भारत के दिल्ली में अपोलो अस्पताल में भर्ती किया गया। बचपन में गिरने के कारण वह गर्दन में गंभीर विकृति से जूझ रही थी। डॉ राजगोपालन कृष्णन ने इस जटिल सर्जरी को निःशुल्क किया। सर्जरी के बाद अफशीन जीवन में पहली बार खुद चलने, बोलने और खाना खा सकने में सक्षम हुई।
पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मेडिकल वीजा के लिए हस्तक्षेप
2017 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तीन साल की पाकिस्तान बच्ची की ओपन हार्ट सर्जरी और एक पाकिस्तानी व्यक्ति के लिवर ट्रांसप्लांट के लिए सामने से तत्काल आधार पर वीजा की अनुमति दी थी।
पाकिस्तानी व्यक्ति जफर अहमद लाली के लिए जटिल हृदय सर्जरी
2015 में 57 वर्षीय जफर अहमद लाली को भारत में जटिल हृदय सर्जरी के लिए मुंबई के एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट में लाया गया था। एक खराब वाल्व और कई ब्लॉकेज होने की जटिलता के बावजूद डॉक्टरों ने भारत में यह सर्जरी सफलतापूर्वक पूरी की और अहमद को नई जिंदगी दी।
पाकिस्तानी बच्ची नूर फातिमा की हृदय सर्जरी
2003 में पाकिस्तानी बच्ची नूर फातिमा को भारत में निःशुल्क हृदय सर्जरी की गई और उसे नया जीवन दिया गया। इस तरह के इलाज भारत पाकिस्तान के रिश्तों में मजबूती लाने और सद्भावना के इरादे से किए गए थे।
पाकिस्तान की छुरा घोंपने की न बदलने वाली आदत
भारत ने कई बार पाकिस्तान के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया, लेकिन जवाब में सिर्फ विश्वासघात ही मिला। भले ही भारतीय अस्पतालों ने असंख्य पाकिस्तानियों की जान बचाई हो, पर पाक की सेना और आतंकी संगठनों ने सीमा पर मौत ही भेजी। लाहौर वार्ता के ठीक बाद कारगिल युद्ध से लेकर 26/11 के मुंबई हमले और अब पहलगाम आतंकी हमलों समेत तमाम आतंकी साजिशों के जरिए पाकिस्तानी आतंकियों ने शांति प्रयासों को भंग किया है।
पाकिस्तान की ओर से यह संदेश दशकों से ही बगैर बदले चल रहा है – यह दोस्ताना रिश्ते नहीं जंग चाहता है। कितनी भी सद्भावना, वीजा, जीवन रक्षक सर्जरी हो जाए लेकिन ये सभी दशकों से भरी नफरत को मिटा नहीं पाएंगे।
बस अब काफी हो गया
हर देश के लिए एक समय आता है जब उसे संवेदनशीलता छोड़कर आत्मसम्मान चुनना पड़ता है। पाकिस्तानी मेडिकल वीजा धारकों को वापस भेजने का फैसला क्रूर नहीं है। यह भारत के अस्तित्व की बात है। बार-बार दया का बदला निर्दोष लोगों की मौत से नहीं लिया जा सकता। भारत ने आखिरकार सख्ती दिखाने का फैसला किया है। अब राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं होगा।
पाकिस्तानी जनता को भी समझना चाहिए कि सहानुभूति की एक सीमा होती है। हिंसा को बढ़ावा देने वाले देश के साथ उदारता नहीं चल सकती।
भारत की सद्भावना को कभी अहमियत नहीं दी गई। आतंकी मुल्क को यह मुफ्त में दी गई। खासकर तब, जब उनके नेता जंग की हर कोशिश करते रहे। हमारा भरोसा टूट चुका है और इसके जुड़ने की उम्मीद हर पल कम हो रही है। पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने का आदेश सिर्फ प्रशासनिक कदम नहीं है। यह एक प्रतीक है, जो पाकिस्तान को बताता है कि भारत की उदारता को कमजोरी न समझा जाए। जब तक पाकिस्तान अपने आतंकी नेटवर्क को खत्म नहीं करता, उसे न मदद मिलेगी, न सहानुभूति, और न ही खुला दरवाजा।
मूल रूप से ये समाचार अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित की गई है। मूल रिपोर्ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।