Saturday, May 18, 2024
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‘अदालत के फैसले राजनीति से अलग नहीं’: रिटायर हो चुके जज मुरलीधर ने कहा, अर्बन नक्सल गौतम नवलखा के हाउस अरेस्ट को इन्होंने ही किया था रद्द

"इस तरह के केस में जज राजनीतिक विकल्प चुनते हैं। वे ये सोच सकते हैं कि वे तटस्थ हैं कि उनके पास कोई सीमा नहीं है। लेकिन चाहे आप किसी तर्क को स्वीकार कर रहे हों या अस्वीकार कर रहे हों, आप एक राजनीतिक विकल्प चुन रहे होते हैं।"

ओडिशा हाई कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने गुरुवार (14 सितंबर, 2023) को कहा कि न चाहते हुए भी जज राजनीतिक विकल्प चुनते हैं, जबकि उन्हें लगता है कि वे तटस्थ हैं। दरअसल, ये दिल्ली हाई कोर्ट के वही पूर्व जज हैं जिन पर भीमा कोरेगाँव केस के 2018 के फैसले पर उन पर पक्षपाती होने का आरोप लगा था।

तब इस फैसले में उन्होंने अर्बन नक्सल गौतम नवलखा की ट्रांजिट रिमांड और हाउस अरेस्ट को रद्द कर दिया था। आज वही जज परोक्ष तौर पर ये कह रहे हैं कि अदालत के फैसलों में राजनीतिक चयन रहता है। ये बात उन्होंने एडवोकेट गौतम भाटिया की पुस्तक “अनसील्ड कवर्स: ए डिकेड ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन, द कोर्ट्स एंड द स्टेट” के लॉन्च पर कही

राजनीति से अलग नहीं हैं जज

किताब की लॉन्च के बाद जस्टिस मुरलीधर, सीनियर वकील रेबेका जॉन, पत्रकार सीमा चिश्ती और एडवोकेट गौतम भाटिया के पैनल के बीच चर्चा भी हुई। इस दौरान रिटायर्ड जज एस मुरलीधर ने कहा कि जज कहाँ से आते हैं? गौतम का लेखन आपको ये बताता है कि जज नियत (Definitive Positions) पदों से आते हैं यानी सीमाओं में बँधकर आते हैं।

उन्होंने कहा, “इस तरह के केस में जज राजनीतिक विकल्प चुनते हैं। वे ये सोच सकते हैं कि वे तटस्थ हैं कि उनके पास कोई सीमा नहीं है। लेकिन चाहे आप किसी तर्क को स्वीकार कर रहे हों या अस्वीकार कर रहे हों, आप एक राजनीतिक विकल्प चुन रहे होते हैं।”

यह किताब वास्तव में आपको बताती है कि अदालत के सामने ऐसे कई मुद्दे आते हैं जहाँ एक राजनीतिक मुद्दे को कानूनी मुद्दे का रूप दे दिया जाता है। उन्होंने आगे कहा कि आज हमारे पास दो खबरें थी। इनमें से एक लक्षद्वीप के स्कूलों में भोजन की पसंद पर और दूसरा केरल के एक मंदिर में झंडा फहराने के बारे में थी।

रिटायर्ड जज मुरलीधर ने आगे कहा, “यह किताब बहुत साफ तौर बताती है कि राजनीति और न्यायिक कामकाज उतने अलग नहीं हैं जितना हम चाहते हैं। हम क्या पहनते हैं, क्या खाते हैं या क्या बोलते हैं जैसे सभी मुद्दे अदालत के सामने आने वाले संवैधानिक मुद्दे बनते जा रहे हैं। जजों को सार्वजनिक तौर पर फैसलों में चुनाव के लिए मजबूर किया जाता है।”

रिटायर्ड जज मुरलीधर के फैसलों पर लगे थे सवालिया निशान

साल 2022 में फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने भीमा कोरेगाँव मामले में तब दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस रहे एस मुरलीधर पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया था। उनका ये आरोप जस्टिस मुरलीधर के गौतम नवलखा की ट्रांजिट रिमांड और हाउस अरेस्ट को रद्द करने फैसले पर था।

हालाँकि, बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, 6 दिसंबर 2022 को विवेक अग्निहोत्री ने जस्टिस मुरलीधर के खिलाफ किए गए कॉमेंट्स पर बगैर शर्त दिल्ली हाईकोर्ट से माफी भी माँगी थी। इस आरोप पर दिल्ली हाईकोर्ट ने अग्निहोत्री और भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व निदेशक एस गुरुमूर्ति के खिलाफ 2018 में अवमानना का केस किया था।

गौरतलब है कि पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगाँव मामले में अगस्त 2018 में नवलखा को दिल्ली से हिरासत में लिया था और उन्हें घर में नजरबंद करने के लिए महाराष्ट्र ले जाने के लिए ट्रांजिट रिमांड ली थी। उस साल अक्टूबर में जस्टिस मुरलीधर ने इस ट्रांजिट रिमांड को रद्द करते हुए नवलखा को हाउस अरेस्ट से रिहा करने का आदेश दिया था। बता दें कि जस्टिस मुरलीधर साल 2021 में उड़ीसा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे और 7 अगस्त, 2023 को रिटायर हुए थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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