जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले के बाद सुरक्षा बलों ने घाटी में चौकसी और पैनी कर दी थी। आतंकवादियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन का तेज़ी के साथ विस्तार कर दिया था।
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इन माओवादियों का इरादा किसी बड़ी घटना को अंजाम देने का था। सुरक्षा इंतज़ाम को कड़ा करते हुए पूरे इलाक़े की घेराबंदी की गई है जिससे इन माओवादियों के भागने का मौक़ा न मिल सके।
कौन जानता है कि IMA जैसे संस्थानों पर भी ये शांतिदूत नजरें रखे हुए हों और आर्मी की गतिविधियों की सूचना कहीं भेजते हों? देहरादून में ही DRDO और आयुध निर्माण फ़ैक्ट्री भी हैं, जिन्हें बेहद संवेदनशील माना जाता है।
उम्मीद है कि 'राष्ट्रवाद से नफरत' की मानसिकता वालों के भी कभी अच्छे दिन जरूर आएँगे, जब ये यकीन करना शुरू कर देंगे कि जुरासिक पार्क की फिल्मों के लिए असली डायनासौर और सुपरमैन फिल्म बनाने के लिए असली सुपरमैन की सहायता नहीं ली गई थी।
यह दोनों आतंकी यूपी में उन लोगों की तलाश कर रहे थे जिनका ब्रेन वॉश करके जैश में शामिल कराया जा सके। इस सिलसिले में वो कई बार देवबंद और बाक़ी के ज़िलों में भी जा चुके हैं। इन आतंकियों के कब्जे से 32 बोर का पिस्टल और 30 कारतूस बरामद हुए हैं।
शकर उल्लाह नाम के क़ैदी की एक अन्य क़ैदी के साथ टीवी के वॉल्यूम को लेकर एक विवाद हो गया था। विवाद के बाद उसे मृत पाया गया। जयपुर जेल के आईजी रुपिंदर सिंह के अनुसार शकर उल्लाह को साल 2011 में बंद किया गया था।
कुछ गिने-चुने मुस्लिम ही ऐसे थे, जो सोशल मीडिया पर कुरीतियों और बुराइयों को स्वीकार कर उनका विरोध करते थे। लेकिन उनके एकाउंट को रिपोर्ट कर डिलीट करवा दिया गया। उनकी अभिव्यक्ति की आजादी ही छीन ली गई, क्योंकि वो सुधार की बात करते हैं।
मसूद अज़हर एक तक़रीर में खुलेआम पुलवामा का नाम ले रहा है। वह पाकिस्तानी सैनिकों को धन्यवाद दे रहा है। वह फिदाइनों की तारीफ़ कर अन्य को फिदाईन बनने के लिए उकसा रहा है। यह सब पाकिस्तान की सरजमीं पर वहाँ के आर्मी की सरपरस्ती में हो रहा है।
भैंस, गधे और कार बेचकर पैसे जुटाने वाले प्रधानमंत्री को यह सोचना चाहिए कि बंदूक़ों और आरडीएक्स के साथ-साथ आतंकियों को सैलरी पर रखना पाकिस्तानी हुकूमत की अजीबोग़रीब नीतियों की तरफ इशारा करता है।