Saturday, November 23, 2024
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JNU बहुत कुछ है… देश का सबसे बेहतर शोध संस्थान जो रैंकिंग में फिसड्डी और राजनीति का अड्डा है

नि:संदेह कुछ अच्छे छात्र भी आए JNU से। किन्तु JNU इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि इसके लिए लोग आपस में लड़ने लगें। JNU पर हल्ला करने से अन्य स्थानों पर शिक्षा-व्यवस्था सुधर जाएगी, सस्ती हो जाएगी ऐसा भी नहीं है। सरकार की सब्सिडी से JNU लगभग मुफ्त भले है लेकिन हम अभी इतने विकसित और सशक्त अर्थव्यवस्था नहीं हुए है कि देश भर में पढ़ाई का स्तर JNU सरीखा और मुफ्त कर सकें।

मुझे लगता है कि आम जनता को, जो इस मुआमले से सीधे-सीधे जुड़े नहीं हैं, JNU के बारे में बहस नहीं करनी चाहिए। हमें न तो दक्षिणपंथी लोगों द्वारा फैलाई जा रही बातों में आना चाहिए, और न ही यहाँ के कुछ कुत्सित मानसिकता वाले छात्रों की बातों में आना चाहिए। हालाँकि, JNU के वर्तमान छात्रों से अधिक वो लोग वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं जो या तो यहाँ से अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके हैं, या फिर कहीं और सेटल होकर फ्री टाइम में फेसबुक पर ज्ञान दिए जा रहे हैं। ये लोग बस सहानुभूति, कचोट और पुरानी खुजली को फिर से खुजाने के सुखद अहसास भर के लिए प्रेमिका की शादी में पत्तल लगाने वालों की तरह हैं, जो न तो लड़की का कोई फायदा करवा पाते हैं और न ही नए लड़के का।

खैर, अब बात यह है कि हमें करना क्या चाहिए। यदि हमारे अंदर देश की शिक्षा-व्यवस्था को लेकर इतनी ही अधिक चिंता है तो हमें सोचना चाहिए कि आखिर इस शिक्षा संस्थान में ऐसा क्या है कि ये अब हमेशा विवादों मे ही रहता है। हमें सोचना चाहिए कि जहाँ हम बच्चों को ज्ञान अर्जन के लिए भेजते हैं, शोध के लिए भेजते हैं, वहॉं वो ‘ले के रहेंगे’, ‘SAVE KASHMIR’, वामपंथ, दक्षिणपंथ, ‘GO BACK BHAGWA’, ‘मोदी हाय-हाय’ करना क्यों सीखने लगते हैं? जहाँ हमें गरीबी के नाते जल्द से जल्द डिग्री लेकर कुछ करना चाहिए, वहॉं क्यों बच्चे एक के बाद दूसरी, और दूसरी के बाद तीसरी डिग्री करना चाहते हैं? जिस बच्चे को सूतापट्टी या मोतीझील से ख़रीदे कपड़े का शर्ट-पेंट सिलवा वहॉं भेजा जाता है वो आखिर कैसे वहॉं जींस और फैब इंडिया का कुरता पहनना सीख जाता है?

जिस बच्चे को अपने घर में सुपारी का एक टुकड़ा खाने पर लम्बा भाषण सुनना पड़ता था वो कैसे वहॉं व्हिस्की, जिन, रम, स्कॉच, कसौल आदि का फर्क समझने लगता है? जिस बच्चे को सुबह सूर्योदय से पहले “कराग्रे वास्ते लक्ष्मी” से उठने की बात सिखाई जाती थी, वो कैसे 10 बजे उठकर निम्बू पानी निचोड़ने लग जाता है? और हाँ, ऐसा क्या हो जाता है छात्र के साथ की वो अपने कमरे में देसी स्वामी विवेकानंद के कोट वाली पोस्टर हटाकर विदेशी मार्क्स और लेनिन को अपना लेता है?

JNU देश का सर्वश्रेष्ठ शोध संस्थान है, इसमें कोई दो राय नहीं। थोड़ा नजर उठाकर देखेंगे तो पाएँगे कि भले ही अपने देश में शोध का बहुत महत्व न हो, दुनिया भर में शोध के नाम पर मिलने वाली नौकरियों में सबसे अधिक पैसा है। ऐसे में JNU के अधिकतर छात्र शोध के बाद विदेश चले जाते हैं… ध्यान देंगे तो पाएँगे कि वाकई यहाँ रहने वाले खालिद और कन्हैया ही हैं अधिकतर।

हमें यह भी सोचना चाहिए की देश की बहुत छोटी आबादी ही JNU पहुँच पाती है। देश में इंजीनियर बन रहे हैं, डॉक्टर बन रहे हैं, CA बन रहे… ये सब JNU से नहीं आते, देश फिर भी चल रहा है।

ऐसे में सामान्य जन को JNU के नाम पर न तो समर्थन, और न ही विरोध में हाइप क्रिएट करना चाहिए। वजह कई सारे हैं। JNU अब वो नहीं रहा जिसके लिए उसे 1969 में बनाया गया था। न तो जगदीश चंद्र बोस यहाँ से पढ़े थे, न रामानुजन, न विक्रम साराभाई, न होमी जहाँगीर भाभा, न रामन और न ही अबुल कलाम। कुछ इकोनॉमिस्ट हुए जो JNU से निकले और विदेश में बड़ा नाम किया। उनकी शोध पर उन्हें नामचीन पुरस्कार भी मिला, किन्तु उनके इस शोध का मानव जीवन पर कोई सकारात्मक असर पड़ा हो, बताइए। वर्ल्ड बैंक, यूनिसेफ या संयुक्त राष्ट्र संघ की फाइलों में पड़ी इनकी शोध धूल खा रही है… न तो दुनिया से भुखमरी समाप्त हो रही है और न ही जलवायु संतुलन के ठोस काम आया है ये शोध।

ऐसा नहीं है कि सारी बुराई ही है इधर, नि:संदेह कुछ अच्छे छात्र भी आए JNU से, किन्तु JNU इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि इसके लिए लोग आपस में लड़ने लगें और फिर JNU पर हल्ला करने से अन्य स्थानों पर शिक्षा-व्यवस्था सुधर जाएगी, सस्ती हो जाएगी… क्योंकि सरकार की सब्सिडी से JNU लगभग मुफ्त है और बाकी संस्थानों को अपना वित्त खुद देखना पड़ता है। हम अभी इतने विकसित और सशक्त अर्थव्यवस्था हो गए हैं कि देश भर में पढ़ाई का स्तर JNU सरीखा और मुफ्त कर सकें।

ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जो बड़े शोधपरक सर्वेक्षणों के लिए जाना जाता है। यहाँ की एक संस्था है कैलिपर जो विश्व की तीन बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी में प्रवेश के लिए टेस्ट पेपर बनाती है। बजाय पास-फेल के, यह नियुक्ति के पद के हिसाब से आदमी को सही या गलत बताती है और फिर आपका सलेक्शन यहाँ होता है।

सिडनी, ऑस्ट्रेलिया की ही एक संस्था है युनीरैंक। युनीरैंक विश्व भर में रैंकिंग सिस्टम के लिए प्रसिद्ध है। यह विश्वभर की 13,600 विश्वविद्यालयों से जुड़ी है और वहॉं के पिछले 4 साल के रिकॉर्ड के हिसाब से वृहत स्तर पर रैंकिंग तय करती है। इस संस्था के 2019 की रैंकिंग में पहले 200 विश्वविद्यालयों में भारत का कोई भी विश्वविद्यालय नहीं है।

मुझे पता है आप तर्क देंगे की भारत विकसित नहीं है तो यह संभव नहीं, कोई बड़ी बात नहीं। इस लिस्ट के प्रथम 20 स्थानों में सिर्फ अमेरिका और चीन है और उसके बाद इनके अलावा ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश। एशिया की रैंकिंग में प्रथम 50 की रैंकिंग में दिल्ली यूनिवर्सिटी 7वें और IIT, मद्रास 50वें स्थान पर है। 200 तक की रैंकिंग पढ़ डाली मैंने, अफ़सोस JNU का नाम नहीं दिखा मुझे।

इस संस्था ने देश के स्तर पर भी रैंकिंग दी है। मैं संस्था द्वारा 2019 के प्रथम 5 भारतीय विश्वविद्यालयों का नाम बताता हूॅं आपको:
रैंक 1 – दिल्ली यूनिवर्सिटी
रैंक 2 – आईआई टी, मद्रास
रैंक 3 – आईआईटी, मुंबई
रैंक 4 – आईआईटी, कानपुर
रैंक 5 – आईआईटी, खड़गपुर

आपको JNU नहीं दिखा होगा। सो बता दूँ कि JNU इस रैंकिंग के दसवें स्थान तक भी कहीं नहीं है, बल्कि इसकी रैंकिंग 12वीं है हिंदुस्तान में। फिर से दुहराऊँगा कि JNU भारत में उपलब्ध सबसे बेहतर शोध संस्थान है… किन्तु ऐसा बिलकुल नहीं कि आप JNU के नाम पर लड़ मरें। वो महारथी तो बिलकुल ही चुप रहें जो कहते हैं कि प्रवेश परीक्षा पास करके दिखाओ, उनसे कहूॅंगा कि जाओ आप शोध के लिए फ़िनलैंड जहाँ अब तेज हिंदुस्तानी छात्र जा रहे… जहाँ केवल फ़ीस ही नहीं लगती बल्कि अच्छे-खासे पैसे भी दिए जाते हैं शोध करने के लिए।

सो मित्रो, बिना किसी लाग-लपेट और द्वेष-ईर्ष्या के कहूॅंगा- JNU बहुत अच्छा है, किन्तु यह राजनीति का अड्डा भी है। इससे खुद को दूर रखें, अपने आसपास की बेहतरी को देखें, तो हमारे आपके अलावा हमारे देश के लिए भी बेहतर होगा।

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Praveen Kumar
Praveen Kumarhttps://praveenjhaacharya.blogspot.com
बेलौन का मैथिल

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