उत्तरप्रदेश में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त निर्देश देते हुए मोहर्रम पर ताजिया का जुलूस निकालने की अनुमति देने से साफतौर पर इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने ताजिया दफन करने की अनुमति माँगने वाली दायर की गईं सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने #मुहर्रम में ताजियों की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।कहा,”भारी मन के साथ कहना पड़ रहा रहा है कि इन कठिन समयों में, मोहर्रम के 10 वें दिन से जुड़े शोक अनुष्ठानों / परंपराओं को विनियमित करने के लिए कोई दिशानिर्देश प्रदान कर पाना और निषेध उठाना संभव नहीं है।” pic.twitter.com/1R6Nkjzt8M
— UttarPradesh.ORG News (@WeUttarPradesh) August 29, 2020
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सभी देशवासियों को कड़ाई से कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करना चाहिए। जगन्नाथ रथ यात्रा में परिस्थितियाँ अलग थीं, वहाँ सिर्फ एक जगह का ही मामला था। ताजिया दफन करने की इजाज़त माँगने के लिए जगन्नाथ रथ यात्रा को आधार नहीं बनाया जा सकता है।
हाईकोर्ट की तरफ से कहा गया कि सरकार ने अगस्त माह में भी सभी धार्मिक समारोहों पर रोक लगाई। जन्माष्टमी पर झाँकी और गणेश चतुर्थी पर पंडाल पर भी रोक लगाई गई। इसमें किसी भी समुदाय के साथ भेदभाव नहीं किया गया है। कोरोना के प्रकोप को देखते हुए सभी से घरों में रहकर ही धार्मिक कार्यक्रम करने का अनुरोध किया गया है।
कोर्ट ने कहा है कि महामारी का प्रसार को देखते हुए सड़कों पर किसी भी प्रकार से भीड़ इकट्ठा करने की परमिशन नहीं दी जा सकती है। कोर्ट के लिए सभी समुदाय बराबर है। किसी भी पक्ष को निशाना नहीं बनाया जा रहा है। इसीलिए बिना किसी आधार के आरोप लगाना गलत है। कोरोना महामारी को रोकने के लिए सरकार हर मुमकिन प्रयास कर रही है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वीएम जैदी, एसएफए नकवी, केके राय ने दलील दी थी कि जगन्नाथ रथ यात्रा और मुंबई के जैन मंदिर में पर्यूषण प्रार्थना की अनुमति सुप्रीम कोर्ट ने दी। कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि हम समुद्र के किनारे खड़े हैं, कब कोरोना की लहर हमें गहराई में बहा ले जाएगी, हम अंदाजा नहीं लगा सकते। हमें कोरोना के साथ जीवन जीने की कला सीखनी होगी। कोर्ट ने कहा कि भारी मन से हम ताजिया निकालने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। हमें विश्वास है कि भविष्य में ईश्वर हमें अपनी धार्मिक परंपराओं के साथ धार्मिक समारोहों के आयोजन का अवसर देंगे।
जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस शमीम अहमद की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाया। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में ताजिया दफनाने की परमीशन दिए जाने की माँग को लेकर चार अर्जियाँ दाखिल की गईं थीं। अर्जियों में कहा गया था कि सरकार ने ताजिया बनाने और घर में रखने की इजाज़त दी है तो दफनाने की भी अनुमति मिलनी चाहिए। गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान यूपी सरकार ने अर्जियों को खारिज करने की सिफारिश की थी।