Sunday, September 15, 2024
Homeविचारसामाजिक मुद्देकालीन के अंदर कब तक छिपाते रहेंगे मुहम्मदवाद के खतरे... आज एक वसीम रिजवी...

कालीन के अंदर कब तक छिपाते रहेंगे मुहम्मदवाद के खतरे… आज एक वसीम रिजवी है, एक यति नरसिंहानंद हैं; कल लाखों होंगे

समय के साथ बाकी बिबलियोलेटरस (किताब पर आधारित) मजहबों ने भी खुद को बदला है। चाहे ईसाइयत हो या कुछ और, फिर मुहम्मदवाद जब दूसरों को तकलीफ दे रहा है, तो उस पर चर्चा तक से तकलीफ?

बीते तीन दिनों में कई घटनाएँ हुईं, जिन पर सभ्य समाज को तत्काल संज्ञान लेकर कठोर निंदा करनी चाहिए थी। लेकिन भारतवर्ष की महान सेकुलर-परंपरा के तहत उस पर एक साजिशी चुप्पी और मानीखेज अनदेखी तारी है।

बिहार के किशनगंज से बाइक चोरी हुई और उसी सिलसिले में छापेमारी पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के पंजीपाड़ा थाने में करने वहाँ के थाना प्रभारी अश्विनी कुमार गए। वहाँ की मस्जिद से बाकायदा ऐलान कर भीड़ इकट्ठा की गई और उनकी भीड़ हत्या हुई। पूरे देश में फासीवाद का विधवा विलाप कर, लिंचिंग का रोना रोनेवाले तमाम सेकुलर गायब हैं। कुमार का जब शव घर पहुँचा तो उनकी माता भी सदमे से चल बसीं। एक साथ दो चिताएँ जलीं।

उधर, कानपुर में यति नरसिंहानंद और वसीम रिजवी के ‘सर तन से जुदा’ करने वाले पोस्टर सरेआम लगे। यति नरसिंहानंद की फोटो को सड़क पर तो खैर कई जगहों पर चिपकाया गया- मुस्लिम बहुल इलाकों में, जहाँ के बाशिंदे उनके फोटो पर पैर रखकर चल सकें। दिल्ली के एक चुने हुए विधायक ने नरसिंहानंद के सिर और जुबान काटने की बात कही। ये वही विधायक है जिसने पिछले साल दिल्ली के हिंदू-विरोधी दंगों में मुस्लिम भीड़ को उकसाया था, दिल्ली में अवैध तरीके से रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया था और जब-तब संविधान विरोधी बयानबाजी करता रहता है।

और, सुप्रीम कोर्ट ने वसीम रिजवी की उस याचिका को ‘फ्रिवलस’ (बेतुका, बचकाना, वाहियात) बताते हुए खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने ‘आसमानी किताब’ की 26 हिदायतों को बदलने की बात कही थी। न केवल ख़ारिज किया, बल्कि 50 हजार रुपए का जुर्माना भी ठोक दिया। ये 26 आयतें कथित तौर पर वैसी थीं, जिनमें दूसरे मजहबी लोगों (यानी काफिरों, गैर-मुस्लिमों, मुशरिकों) के कत्लोगारत की बात है, या हिंसा को उकसाया गया है।

आप अगर देखें, तो ये तीन घटनाएँ भले ही अलग-अलग दिखें, लेकिन ये मूलतः हैं एक ही। मुस्लिमों का ‘डर’ हमारे सेकुलर समाजतंत्र पर हावी है और उससे कोई भी नहीं बच सकता है। यही वजह है कि वे (यानी मुसलमान) अगर अंग्रेजी में कहें तो ‘टेस्टिंग द वाटर्स’ कर रहे हैं। पहले वे बयानबाजी करते हैं, फिर करामात करते हैं। जिन लोगों ने 1947 में बँटवारा या 1990 का कश्मीर देखा है, हाल-फिलहाल के कैराना और दरभंगा-मधुबनी देखे हैं, उनको बहुत अच्छे से यह पता होगा। जामा मस्जिद का इमाम बुखारी हो या हैदराबाद का वकील और उसका भाई ओवैसी, ये सभी समय-समय पर हिंदू विरोधी बयान देकर तापमान की जाँच करते हैं, देखते हैं कि प्रतिक्रिया क्या हो रही है?

बिहार का लगभग आधा हिस्सा यानी पूरा सीमांचल भयंकर डेमोग्राफिक चेंज का शिकार है। बंगाल के बारे में क्या ही कहा जाए, जो भी है वह सबकी आँखों के सामने है। ये हिंसा के उन्मादी, जेहादी क्या रुकने वाले हैं? मुझे तो नहीं लगता, जब तक इनको ‘आयरन फिस्ट’ से न रोका जाए, एक कठोर शासन, कठोर कानून संहिता लागू न हो। हालाँकि, हमारे देश में ठीक उलटा है। इनके लिए शरिया है, सेकुलर तहजीब के नाम पर इनको कत्ल तक की छूट है, लेकिन हिंदुओं के लिए कहीं कोई न्याय नहीं है।

वसीम रिजवी क्या हैं, मैं नहीं जानता, लेकिन एक पत्रकार होने के नाते मैं सबसे पहले उन पर ही शक करता हूँ, क्योंकि हमारा पहला काम होता है- हरेक पर शक करो। वे सुर्खियों में आना चाहते थे या क्या करना चाहते थे, वे जानें लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दूरगामी साबित होगा, जैसे शाहबानो का फैसला हुआ था, जैसे तीन तलाक का हुआ और यह भविष्य के लिए एक मिसाल बनेगा।

रिजवी शिया हैं। मुसलमानों के दर्जनों फिरके और जात हैं, जिनमें रिजवी शिया हैं और शायद कथित तौर पर ऊँची जात के भी। यह बड़ी हिम्मत की बात थी कि खुद एक मुस्लिम होते हुए उन्होंने ‘आसमानी किताब’ पर बात करने की कोशिश की, जिसका रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर दिया। यह तो सोचने की बात है कि 1400 वर्षों से पूरी दुनिया को अशांत करनेवाला एक ‘विचार’ जब तक ‘विचार योग्य’ न माना जाएगा, दुनिया तबाह तो होती ही रहेगी। यह विचार भी खुद उसी कौम के भीतर से आना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्यों काबिलेगौर है, यह आप नरसिंहानंद के सिर काटने के सरेआम पोस्टर लगाने से लेकर दिल्ली के एक विधायक की जहरीली जुबान तक देख सकते हैं। ‘सर जुदा, तन जुदा’ के नारे लगाती भीड़ या मानसिकता पहले भी कमलेश तिवारी की गर्दन काट चुकी है, शार्ली हेब्दो के कार्टूनिस्ट को हलाक कर चुकी है, यह हम सबने देखा है।

मुहम्मद या मुहम्मद की बातों पर चर्चा क्यों नहीं होगी? 2021 में भी समाज को 600 ईस्वी की रिवायतों से चलाने की क्या जिद है, धरती को चपटा मानने की और बुराक घोड़े को जस का तस स्वीकारने की क्या जिद है। समय के साथ बाकी बिबलियोलेटरस (किताब पर आधारित) मजहबों ने भी खुद को बदला है। चाहे ईसाइयत हो या कुछ और, फिर मुहम्मदवाद जब दूसरों को तकलीफ दे रहा है, तो उस पर चर्चा तक से तकलीफ?

अमेरिका से लेकर यूरोप तक में, भारत में भी, ईरान में, अरब में पूर्व-मुस्लिमों की संख्या बढ़ी है, जिन्होंने मुहम्मवादी की कट्टरता से आजिज आकर उसका दामन छोड़ दिया है।

इंसान को आखिरकार अपनी आजादी चाहिए। कालीन के अंदर आप मुहम्मदवाद के ख़तरे भले छिपाते रहें, लेकिन आखिरकार उसके अंदर के लोग ही उस पर खुली बातचीत करने जमा होंगे। आज एक वसीम रिजवी है, कल लाखों होंगे…

(डिस्क्लेमर: यह पोस्ट माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के ऊपर टिप्पणी नहीं है)

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

Vyalok
Vyalokhttps://www.vitastaventure.com/
स्वतंत्र पत्रकार || दरभंगा, बिहार

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘कॉन्ग्रेस अर्बन नक्सल का नया रूप, तुष्टिकरण उसका लक्ष्य’: PM मोदी ने कुरूक्षेत्र में भरी हुँकार, कहा- नेहरू आरक्षण के खिलाफ थे, इंदिरा ने...

हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने कुरुक्षेत्र में कॉन्ग्रेस और गाँधी परिवार पर जमकर हमला बोला।

‘हिमाचल प्रदेश में हथियार लेकर मुस्लिमों के नरसंहार को निकले हिन्दू’: जानिए उस वीडियो का सच जिसके जरिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन को बताया जा रहा...

गुलाम अब्दुल कादिर इलाहाबादी ने लिखा, "हिमाचल प्रदेश में शिमला में मस्जिद शहीद करने के लिए हथियार लेकर निकलना एक गंभीर और खतरनाक कदम है।"

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -