उत्तर प्रदेश सरकार ने हाथरस हिंसा की साजिश में गिरफ्तार सिद्दीकी कप्पन (Siddique Kappan Case) की जमानत याचिका का विरोध किया है। इस मामले के जाँच अधिकारी, डिप्टी एसपी, एसटीएफ यूनिट आगरा और यूपी सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल किया गया है। कप्पन एक स्वतंत्र पत्रकार होने का दावा करता है, जबकि हलफनामे में कहा गया है कि कप्पन के राष्ट्रविरोधी एजेंडा रखने वाले पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) जैसे चरमपंथी संगठन से गहरे संबंध रहे हैं।
वो दूसरे आरोपितों के साथ मिलकर देश में आंतक, धार्मिक कलह भड़काने की साजिश में शामिल था। हलफनामे में यूपी सरकार ने कहा है कि जाँच से पता चला है कि कप्पन के पीएफआई और सीएफआई के शीर्ष नेतृत्व, उनके छात्र संगठन से व्यक्तिगत संबंध हैं। वह तुर्की में IHH जैसे संगठनों के माध्यम से CFI और इस्लामिक आतंकवादी संगठन अलकायदा के बीच संपर्क स्थापित करता है।
हलफनामे में कहा गया है, “इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने पिछले महीने कप्पन की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।” हलफनामे में कप्पन की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा गया है कि आरोपित जानता था कि कानून की खामियों का फायदा कैसे उठाया जाता है और अगर उसे रिहा कर दिया गया, तो इस मामले से जुड़े गवाहों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। हलफनामे में, उत्तर प्रदेश सरकार ने उन मुद्दों को भी सूचीबद्ध किया है, जिनके बारे में सिद्दीकी कप्पन ने झूठ बोला था और जिन तथ्यों को उसने जमानत के लिए अदालत से छिपाया था।
1. सऊदी अरब में रोजगार
अपनी जमानत याचिका में सिद्दीकी कप्पन ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह 2002-2011 से सऊदी अरब में काम करता था। कप्पन ने आगे कहा कि 2011 में उसने सऊदी अरब में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और केरल में बस गया। उसका कहना है कि वह पत्रकारिता के प्रति बहुत जुनूनी और एक सामयिक लेखक था, इसलिए उसने कोझीकोड में ‘Thejas’ समाचार पत्र में बतौर उप-संपादक शामिल होने का विकल्प चुना।
लेकिन, इसमें उसने यह उल्लेख नहीं किया कि उसने सऊदी अरब में लगभग एक दशक तक किसके लिए और किस कंपनी के लिए काम किया। उत्तर प्रदेश सरकार की जाँच में पता चला है कि सिद्दीकी कप्पन करीब 2009 से जेद्दा में गल्फ तेजस डेली में एक रिपोर्टर के रूप में कार्यरत था। आगरा में उसके लैपटॉप के एफएसएल से पुलिस को “Sidhique Kappan Resume.docx” नाम से एक फाइल मिली, जिसमें उसकी नौकरी के बारे में लिखा हुआ है।
हलफनामे में कहा गया है, “Thejas चरमपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का मलयालम भाषा का मुखपत्र है, जिसके केरल में छह संस्करण हैं और सऊदी अरब, कतर और बहरीन में अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो है। न्यूज पेपर की कवरेज का उद्देश्य धार्मिक कलह पैदा करना था। 2018 में इसे भारत में बंद करने के लिए कहा गया था।”
यूपी सरकार के हलफनामे में आगे कहा गया है, मई 2011 में जब अमेरिका ने इस्लामिक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मारा था, उस वक्त जिस मैगजीन के लिए कप्पन ने काम किया था, उसके संस्करण को कुरान की आयतों और उस पर शहीद लिख कर कवर पेज पर ओसामा की तस्वीर के साथ प्रकाशित किया गया था।
कवर पेज पर कुरान की आयत का अनुवाद है, “यह मत सोचो कि वे मर चुके हैं, अल्लाह की राह में क़त्ल करने वाले लोग, वे अल्लाह के साथ हैं उन्हें वहाँ उपहार दिए जाते हैं।” हलफनामे में यह भी कहा गया है कि जब यह मैगजीन प्रकाशित हुई थी, तब सिद्दीकी कप्पन इसमें कार्यरत था और एक दशक से अधिक समय तक वह इस मैगजीन के साथ जुड़ा रहा, जो एक आतंकवादी विचारधारा का समर्थन करती है।
2. कप्पन का झूठ- मेरे पास Tejhas का ID कार्ड नहीं
अपनी जमानत याचिका में सिद्दीकी कप्पन ने दावा किया कि जब उसे हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था, तो उसके पास तेजस का आईडी कार्ड नहीं था, बल्कि उसके पास केवल प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का कार्ड था। हालाँकि, उत्तर प्रदेश के हलफनामे में कप्पन के इस झूठ को भी उजागर किया गया है। हलफनामे में बताया गया है कि जब कप्पन को 5 अक्टूबर, 2020 में हाथरस में सामूहिक बलात्कार पीड़िता की मौत के बाद वहाँ जाते वक्त रास्ते में गिरफ्तार कर लिया गया था, तब उसके पास से 4 पहचान पत्र बरामद किए गए थे।
इसमें से 2 Thejas Daily के थे, 1 दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स का था और 1 प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का कार्ड था।
3. सिद्दीकी कप्पन को पीएफआई/सीएफआई ने नहीं कहा था
कप्पन का कहना है कि हाथरस जाने के लिए उसे पीएफआई या सीएफआई ने नहीं बल्कि उनकी कंपनी के मालिक ने कहा था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन लोगों का विवरण दिया है जिनके साथ वह हाथरस जाने के दौरान था और वह कैसे पीएफआई और सीएफआई से जुड़ा था। सरकार ने कहा कि वह उन लोगों के साथ यात्रा कर रहा था जिन्हें पिछले दंगों में आरोपित बनाया गया था।
- अतीकुर्रहमान, सीएफआई का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, मुजफ्फरनगर दंगों का आरोपित (केस क्राइम नंबर 1161/2019, पीएस कोतवाली नगर, मुजफ्फरनगर)
2. सीएफआई के दिल्ली चैप्टर के पूर्व महासचिव मसूद अहमद पर बहराइच दंगों का आरोप लगाया गया था। (केस क्राइम नंबर 225/2020, पीएस जारवाल रोड, बहराइच)
3. कार में सवार तीसरा सह-आरोपित यानि ड्राइवर आलम, सह-आरोपित दानिश खान का साला था, जो दिल्ली दंगों के मामले में आरोपित है (केस क्राइम नम्बर 59/2020, पीएस क्राइम ब्रांच सेल, दिल्ली)।
सरकार का तर्क है कि अगर वह केवल अपनी पत्रकारिता कर रहा था, तो वह दंगा आरोपितों के साथ क्यों जा रहा था? कप्पन से यह सवाल किया गया था और वह इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया था। हलफनामे में आगे कहा गया है, जाँच में यह भी सामने आया है कि याचिकाकर्ता वास्तव में आतंक फैलाने के लिए पीएफआई/सीएफआई के सदस्यों का हिस्सा था। सह-आरोपित रऊफ शरीफ (राष्ट्रीय महासचिव, सीएफआई) के निर्देश पर उसे हाथरस भेजा गया था, यहाँ जाने के लिए उसे पैसे भी दिए गए थे।
इसके अलावा, रऊफ शरीफ ने 05/10/2020 को दोपहर 12:26 बजे कप्पन को एक व्हाट्सएप मैसेज भेजा था। हलफनामे में कहा गया है, “व्हाट्सएप मैसेज में विशेष रूप से पूछा गया है कि वहाँ की स्थिति क्या है, जिसका अर्थ यह है कि शरीफ याचिकाकर्ता की जगह से अच्छी तरह वाकिफ था। सह-आरोपित रऊफ शरीफ के बयानों से भी इसकी पुष्टि होती है।
ऐसे में स्पष्ट है कि कप्पन को पीएफआई/सीएफआई द्वारा नियुक्त किया गया था। क्योंकि अज़ीमुखुम के संपादक के बयान में भी कहीं नहीं कहा गया है कि उन्होंने हाथरस की घटना को कवर करने के लिए याचिकाकर्ता को नियुक्त किया था। याचिकाकर्ता ने 5.10.2022 को दोपहर 12.10 बजे ऑफिस को एक व्हाट्सएप मैसेज भेजा था कि वह हाथरस जा रहा है।
5. सिद्दीकी कप्पन को पैसे किसलिए मिले?
कप्पन ने अपनी जमानत याचिका में दावा किया है कि सितंबर में मिले 25,000 रुपए और अक्टूबर में मिले 20,000 रुपए सिक्रेट वर्कशॉप और हाथरस की यात्रा करने के लिए नहीं मिले थे। यूपी सरकार का कहना है कि कप्पन के दावे झूठे और उच्च न्यायालय में दिए गए उसके बयान के विरोधाभासी हैं।
सरकार के हलफनामे में कहा गया है, “वर्तमान याचिका में, याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि 15.09.2020 को 25,000 रुपए उसके द्वारा जमा कराए गए थे, जिसे उसने एक घर बनाने के लिए बचाया था। वहीं, 4.10.2020 के 20,000 रुपए उसने अपने दोस्तों से जो उधार लिया था उसे वापस कर दिया था। हालाँकि, हाई कोर्ट के सामने याचिकाकर्ता ने (364 पृष्ठ पर) कहा है कि उसे ये रुपए तेजस डेली में काम करने के लिए उसके वेतन के रूप में दिए गए हैं।” इस प्रकार, याचिकाकर्ता के बयानों में स्पष्ट विरोधाभास है।”
इसके अलावा, सरकार का कहना है कि कप्पन और पीएफआई के महासचिव कमल केपी के बीच बातचीत हुई है, जिससे पता चलता है कि सितंबर में कप्पन को एक सीक्रेट वर्कशॉप आयोजित करनी थी। कप्पन ने कमल केपी को अपने वॉयस नोट में यह भी कहा था, “वॉयस नोट सुनने के बाद उसे हटा दें।” इस वर्कशॉप के बाद कप्पन को दो बार 25,000 रुपए का भुगतान किया गया। हलफनामे में कहा गया है, “आगे सह-आरोपित रऊफ शरीफ ((Annexure R/7) के बयान में बताया गया है कि कमल केपी ने हाथरस यात्रा के लिए याचिकाकर्ता के खाते में पैसे जमा कराए थे। याचिकाकर्ता ने बाद में उच्च न्यायालय में दलील दी कि 09.01.2020 के वॉयस नोट में संदर्भित वर्कशॉप केवल एक विकिपीडिया वर्कशॉप थी।
6. सिद्दीकी कप्पन का दावा, पीएफआई/सीएफआई के साथ कोई संबंध नहीं
हलफनामे में कहा गया है, “जाँच में याचिकाकर्ता का चरमपंथी संगठन पीएफआई और सीएफआई के साथ गहरे संबंध का खुलासा किया गया है। पीएफआई/सीएफआई (मूल रूप से सिमी के पूर्व सदस्यों से बना है) के शीर्ष नेतृत्व के साथ उसके अच्छे संबंध है। यही नहीं उसके तुर्की में IHH जैसे अलकायदा से जुड़े संगठनों के साथ भी संबंध पाए गए हैं। याचिकाकर्ता और पीएफआई के शीर्ष नेतृत्व के बीच व्हाट्सएप चैट से इस बारे में पता चला है।”
वह केवल Thejas के साथ नहीं, इनके साथ भी जुड़ा हुआ था। सुप्रीम कोर्ट 9 सितंबर को कप्पन की जमानत याचिका पर सुनवाई करेगा। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। यूपी सरकार के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में अपनी जमानत याचिका में झूठ बोला है।
बता दें कि सिद्दीकी कप्पन को यूपी पुलिस ने 5 अक्टूबर को गिरफ्तार किया था, जब वह हाथरस मामले को कवर करने के लिए गया हुआ था। PFI के चार सदस्य सिद्दीक कप्पन, अतीकुर्रहमान, आलम और मसूद को गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ के बाद यह खुलासा हुआ था कि उनकी हाथरस में दंगा फैलाने की साजिश थी। साथ ही रऊफ शरीफ का नाम सामने आया था।