Saturday, May 4, 2024
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भारत का वो वीर योद्धा, जिसके लिए 43 लाख लोगों ने लिखा पत्र: बन गया दुनिया का सबसे बड़ा रिकॉर्ड

गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार, असम के अहोम योद्धा लाचित बरपुखान पर कुल 42,94,350 हस्तलिखित निबंध पेश किए गए। यह किसी भी अवसर पर पेश किए गए सबसे अधिक हस्तलिखित निबंध हैं।

‘पूर्वोत्तर का शिवाजी’ कहे जाने वाले लाचित बरपुखान/लाचित बोड़फुकन (Lachit Borphukan) पर लिखे करीब 43 लाख निबंधों के साथ असम ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अधिकारियों ने गुरुवार (9 मार्च 2023) को गुवाहाटी में आयोजित एक समारोह में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को असम और दुनिया भर में लिखे गए लाचित बरपुखान पर लगभग 43 लाख हस्तलिखित निबंधों के लिए प्रमाण पत्र सौंपा।

गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के अनुसार, असम के अहोम योद्धा लाचित बरपुखान पर कुल 42,94,350 हस्तलिखित निबंध पेश किए गए। यह किसी भी अवसर पर पेश किए गए सबसे अधिक हस्तलिखित निबंध हैं।

वीरयोद्धा लाचित बरपुखान ने मुगल आक्रांताओं से उत्तर-पूर्व भारत की पवित्र भूमि की रक्षा की। उनका जीवन और व्यक्तित्व शौर्य, साहस, स्वाभिमान, समर्पण और राष्ट्रभक्ति का पर्याय है। प्रसिद्ध इतिहासकार सूर्यकुमार भूयान ने उनकी मौलिक रणनीति और वीरता के कारण उन्हें उत्तर-पूर्व भारत का ‘शिवाजी’ माना है। जिस प्रकार पश्चिम भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज ने, पंजाब में गुरू गोविंद सिंह ने और राजपूताना में महाराणा प्रताप ने मुगल आक्रांताओं के विरुद्ध स्वतंत्रता की ज्वाला जलाई थी। उसी तरह लाचित बरपुखान ने भी उत्तर-पूर्व भारत में स्वतंत्रता की ज्वाला जलाई और मुगलों के नापाक मंसूबों को दफन कर दिया। उनसे टकराने के बाद मुगलों ने कभी भी पूर्वोत्तर पर काबिज होने का सपना नहीं देखा।

‘बरपुखान’ नाम नहीं, पदवी थी

लाचित बरपुखान का जन्म 24 नवंबर 1622 को अहोम साम्राज्य के एक अधिकारी सेंग कालुक-मो-साई के घर में चराइदेऊ नामक स्थान पर हुआ था। उनकी माता कुंदी मराम थीं। उन्होंने सैन्य कौशल के साथ-साथ मानविकी तथा शास्त्र का भी अध्ययन किया था। बचपन से ही बहुत बहादुर और समझदार लाचित जल्द ही अहोम साम्राज्य के सेनापति बन गए। एक और खास बात ‘बरपुखान’ लाचित का नाम नहीं, बल्कि उनकी पदवी थी।

बीमार होते हुए भी भीषण युद्ध किया

लाचित ने बीमार होते हुए भी भीषण युद्ध किया और अपनी असाधारण नेतृत्व क्षमता और अदम्य साहस से सराईघाट की प्रसिद्ध लड़ाई में लगभग 4000 मुगल सैनिकों को मार गिराया। 1671 ई में सराईघाट, ब्रह्मपुत्र नदी में अहोम सेना और मुगलों के बीच ऐतिहासिक लड़ाई हुई, जिसमें लाचित ने पानी में लड़ाई (नौसैनिक युद्ध) की सर्वथा नई तकनीक आजमाते हुए मुगलों को पराजित कर दिया था। उन्होंने अपने भौगोलिक-मानविकी ज्ञान और गुरिल्ला युद्ध की बारीक रणनीतियों का प्रयोग करते हुए सर्वप्रथम मुगल फौज की ताकत का सटीक आकलन किया और फिर ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर भीषण नौसैनिक युद्ध में उन्हें हरा दिया।

मुगल फौजियों को बंदी बनाया

17वीं सदी के अहोम योद्धा लाचित बरपुखान के नेतृत्व में ही अहोम ने पूर्वी क्षेत्र में मुगलों के विस्तारवादी अभियान को थामा था। अगस्त 1667 में उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे मुगलों की सैनिक चौकी पर जोरदार हमला किया। लाचित गुवाहाटी तक बढ़े और उन्होंने मुगल कमांडर सैयद फिरोज खान सहित कई मुगल फौजियों को बंदी बनाया। मुगल भी शांत नहीं बैठे। अपमानित महसूस कर रहे मुगलों ने बड़ी तादाद में फौज अहोम के साथ युद्ध के लिए भेजी। सैकड़ों नौकाओं में मुगल सैनिकों ने नदी पार किया और अहोम के साथ एक बड़े संघर्ष की ओर बढ़े। मुगलों ने इस बार काफ़ी मजबूत सेना भेजी थी। लाचित के नेतृत्व में अहोम सैनिक सिर्फ 7 नौकाओं में आए। इसके बावजूद उन्होंने मुगलों की बड़ी फौज और कई नावों पर ऐसा आक्रमण किया कि वो तितर-बितर हो गए। मुगलों की बड़ी हार हुई। इस हार के बाद मुगलों ने पूर्वोतर की तरफ देखना ही छोड़ दिया।

1228 से 1826 के बीच लगभग 600 वर्षों तक अहोम ने असम के प्रमुख हिस्सों पर शासन किया था। इस साम्राज्य पर तुर्क, अफगान और मुगलों ने कई बार हमला किया। मुगलों का पहला हमला लाचित के जन्म से सात साल पहले 1615 में हुआ था।

मुगलों का पहला हमला 1615 में हुआ था

बता दें कि असम सरकार ने 2000 में लाचित बरपुखान अवॉर्ड की शुरुआत की थी। वहीं, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित बरपुखान के नाम पर स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है। आज भी उनकी प्रतिमाएँ असम में लगी हुई हैं। मराठाओं और राजपूतों जैसे कई भारतीय समूहों की तरह उन्होंने मुगलों से संघर्ष किया। इसलिए हमें उन अहोम योद्धाओं को हमेशा याद करना चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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