Monday, November 25, 2024
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BBC के लिए रॉबिनहुड, CNN को दिखा राजनेता, NYT को योगी के कपड़ों से दिक्कत: माफिया अतीक अहमद के महिमामंडन में विदेशी मीडिया दिखा रहा हिन्दू घृणा

अंत में, अगर 'इस्लामोफोबिया' वाला प्रोपेगंडा न चलाए तो भला बीबीसी काहे का? ब्रिटेन के सरकारी मीडिया संस्थान अपने लेख में अब एक अज्ञात मुस्लिम को लेकर आता है। साथ ही उसके हवाले से लिखता है कि अतीक अहमद को इसीलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वो मुस्लिम था।

जैसा कि अब तक सभी को पता चल चुका है, प्रयागराज के सबसे बड़े माफिया रहे अतीक अहमद और उसके भाई को शनिवार (15 अप्रैल, 2023) की रात 3 बदमाशों ने मिल कर हत्या कर दी। ये हत्याकांड लाइव टीवी पर रिकॉर्ड हुआ, क्योंकि हत्या के समय अतीक अहमद और उसका भाई मीडिया से ही बात कर रहे थे। हत्यारे भी मीडियाकर्मी का वेश बना कर ही आए थे। ताबड़तोड़ गोलियाँ चलते हुए पूरे देश ने लाइव टीवी पर देखा।

अतीक अहमद की मौत के बाद प्रयागराज के लोगों ने राहत की साँस ली। पूर्वांचल के लोग भी जानते हैं कि 44 वर्षों तक अतीक अहमद के खौफ का वहाँ क्या आलम था। 2005 में उसने विधायक राजू पाल को मरवा दिया था। 5 किलोमीटर तक खदेड़ कर राजू पाल पर गोलीबारी की गई थी। जब उनके समर्थन उन्हें लेकर अस्पताल गए, अतीक अहमद ने फिर से अपने गुर्गे भेजे और उनकी हत्या करवाई। तब उनकी शादी को मात्र 9 दिन ही हुए थे।

इसी तरह, उसने 1996 में अशोक साहू नामक कारोबारी को सिर्फ इसीलिए मरवा दिया था क्योंकि उन्होंने गलती से उसके भाई अशरफ की गाड़ी को ओवरटेक किया था। अशोक साहू ने बाद में अतीक अहमद के घर जाकर माफ़ी भी माँगी, उसने आश्वासन भी दिया लेकिन 2 दिनों बाद ही मरवा दिया। इसी तरह जयश्री कुशवाहा नामक महिला के पति को उसने गायब करवा दिया। उन पर कई बार हमले किए। जयश्री के बेटे पर गोलीबारी करवाई।

जयश्री 33 वर्षों से उससे लड़ रही थीं। 1989 से ही उन्हें नहीं पता है कि उनके पति आखिर गए कहाँ। उनकी 12 बीघा जमीन अतीक अहमद ने हड़प ली थी, सो अलग। राजू पाल हत्याकांड में गवाह थे उमेश पाल, उन्हें भी अतीक अहमद ने इस साल 24 फरवरी को मरवा दिया। उसका बेटा CCTV में गोलीबारी करते हुए कैद हुआ। उमेश पाल के साथ-साथ यूपी पुलिस के जवानों संदीप निषाद और राघवेंद्र सिंह को की भी उसके गुंडों ने हत्या कर दी।

ये तो अतीक अहमद की वो करतूतें हैं, जो चर्चा में रहे। भले ही वो इलाहाबाद पश्चिम से लगातार 5 बार विधायक और फूलपुर से सांसद रहा हो, लेकिन इस तरह के माफिया चुनाव जीतने के लिए किस तरह के हथकंडों का सहारा लेते है, ये किसी से छिपा नहीं है। सीवान में शहाबुद्दीन किस तरह की क्रूरता कर के सांसद बनता था, ये हर एक बिहारी को पता है। अतीक अहमद के खौफ का आलम इसी से समझ लीजिए कि उसकी सैकड़ों करोड़ रुपयों की अवैध संपत्ति ध्वस्त या जब्त की जा चुकी है।

ये संपत्ति उसने कैसे बनाई होगी, आप ही सोच लीजिए? जयश्री कुशवाहा जैसी कितनी पीड़िताएँ होंगी, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। मुलायम सिंह यादव की पार्टी सपा ने उत्तर प्रदेश में 2 दशकों में 12 वर्षों तक राज़ किया। जब सपा जाती थी तो बसपा को सत्ता मिलती थी। दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने गुंडे-बदमाश पाल रखे थे। अतीक अहमद पर मुलायम सिंह यादव की विशेष कृपा थी। अतीक के कुत्ते से मुलायम की हाथ मिलाती हुई तस्वीर आपने देखी ही होगी।

ऊपर से, उत्तर प्रदेश के पुलिस-प्रशासन में भी कई ऐसे अधिकारी थे जो अतीक अहमद की खुली मदद करते थे। जिस व्यक्ति को पुलिस-प्रशासन और सत्ता का सीधा संरक्षण हासिल हो, सोचिए उसका कोई कैसे कुछ बिगाड़ सकता है? उसके खिलाफ आवाज़ उठाने पर व्यक्ति के साथ क्या हो सकता था, कई उदाहरण हमने देख लिए। उसके खिलाफ चुनाव जीतने, गाड़ी ओवरटेक करने और अपनी जमीन देने की एक ही ‘सज़ा’ थी और वो थी मौत।

अब ज़रा अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या पर विदेशी मीडिया का प्रोपेगंडा देखिए। सबसे पहले बात करते हैं BBC की, जिसने ब्रिटेन के लेस्टर और बर्मिंघम में हिन्दुओं के खिलाफ हुई मुस्लिम भीड़ की हिंसा पर भी जम कर प्रोपेगंडा फैलाया था। बीबीसी ने पीड़ित हिन्दुओं को ही गुंडा दिखाने का ठेका उठा लिया था। उसने ताज़ा घटना पर शीर्षक लिखा, “भारतीय माफिया डॉन से राजनेता बने व्यक्ति की बेशर्मी से हत्या।” सोचिए, एक गुंडे से इतनी सहानुभूति।

सबसे बड़ी बात कि इस लेख को लिखने वाली गीता पांडेय एक भारतीय ही हैं। इसमें अतीक अहमद का महिमामंडन करते हुए हुए मानबूत कद-काठी का व्यक्ति बताया गया है। सबसे बड़ी विडम्बना ये देखिए कि इसमें कपिल सिब्बल के बयान को प्राथमिकता दी गई है, जो लम्बे समय तक कॉन्ग्रेस के नेता रहे हैं और अब उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के समर्थन से राज्यसभा सांसद हैं। BBC ने लिखा है कि अतीक अहमद का जन्म गरीब परिवार में हुआ था, लेकिन उसकी करतूतों के बारे में कुछ नहीं लिखा।

उत्तर प्रदेश के पूर्व DGP विक्रम सिंह के हवाले से उसे ‘रॉबिनहुड’ तक लिखा गया। कितने गरीबों को अतीक अहमद ने फायदा पहुँचाया? उसने तो खुद के लिए हजारों करोड़ रुपयों की संपत्ति बना ली। जिन्हें उसने प्रताड़ित किया, उनमें अधिकतर गरीब ही हैं। फिर वो ‘रॉबिनहुड’ कैसे? उसे प्रभावशाली लिखा गया है। लेकिन, BBC लिखता है – अतीक अहमद गरीबों की मदद करता था, ईद पर और शादी-ब्याह में पैसे देता था और गरीब महिलाओं को उनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए यूनिफॉर्म-किताबें खरीदने में मदद करता था।

ये वैसा ही है, जैसे दुनिया भर में हजारों की जान लेने वाले ओसामा बिन लादेन को ‘अच्छा अब्बा और अच्छा शौहर’ कह कर उसने गुनाहों को माफ़ करने की बात की जाए। भाजपा को हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी बताते हुए BBC ने लिखा है कि इसके सत्ता में आने के बाद से इसका प्रभाव घटने लगा। उमेश पाल की हत्या की सीसीटीवी फुटेज में अतीक अहमद का बेटा असद साफ़-साफ़ दिख रहा है, फिर भी BBC उन्हें हत्या का आरोपित ही लिखता है।

अंत में, अगर ‘इस्लामोफोबिया’ वाला प्रोपेगंडा न चलाए तो भला बीबीसी काहे का? ब्रिटेन के सरकारी मीडिया संस्थान अपने लेख में अब एक अज्ञात मुस्लिम को लेकर आता है। साथ ही उसके हवाले से लिखता है कि अतीक अहमद को इसीलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वो मुस्लिम था। साथ ही अपील करता है कि राजनेता सब कुछ हिन्दू-मुस्लिम के चश्मे से न देखें। अजीब है ना? यही लोग तो कहते हैं कि अपराधियों का कोई मजहब नहीं होता, तो अब क्या हुआ? हिन्दू-मुस्लिम तो यही कर रहे और दूसरों को सलाह दे रहे कि मत करो।

इसी तरह अब अमेरिका के एक प्रमुख मीडिया संस्थान CNN को ले लीजिए। उसने अतीक अहमद को ‘पूर्व राजनेता’ लिख कर संबोधित किया है। साथ ही उसने हत्यारों पर ‘धार्मिक हिन्दू नारे’ लगाने का आरोप लगाया। क्या दुनिया भर में ‘अल्ला-हू-अकबर’ चिल्ला कर गला रेते जाने की घटनाओं पर भी CNN इस बेबाकी से लिखता है? एक अनाम अधिकारी के हवाले से लिख दिया गया कि शांति के लिए विरोध प्रदर्शनों को रोक दिया गया है।

साथ ही उसने उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ एनकाउंटर में मारे गए 180 अपराधियों को ‘Suspected Criminals’ लिखा है, अर्थात जिन्हें अपराधी समझा जा रहा हो। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बयान को इस लेख में प्राथमिकता दी गई है। आप सोचिए, अगर अमेरिका में कोई आतंकी हमला हो और आतकियों का महिमामंडन बाहर की मीडिया करने लगे तो फिर इसे वहाँ की मीडिया गलत कहेगी या नहीं? दूसरे देशों के मामलों पर उनका ये दोहरा रवैया सामने आ जाता है।

इसी तरह, न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) की तो पूछिए ही मत। मीडिया संस्थान कई बार भारत विरोधी लेख खुले तौर पर लिख चुका है। इसने इस घटना को ‘असाधारण’ करार दिया। आजकल मोबाइल कैमरों का जमाना है, दुनिया भर में अधिकतर घटनाएँ कैमरे में कैद हो जाती हैं। NYT इसे ‘अवैधानिक हत्या’ लिखता है और उत्तर प्रदेश सरकार को ‘धार्मिक एजेंडे’ वाला लिखता है। अमेरिका में तो राष्ट्रपति ही बाइबिल पर हाथ रख कर शपथ लेते हैं, तो क्या वहाँ के प्रेजिडेंट को मजहबी नहीं कहा जा सकता?

NYT ने भारत और हिन्दुओं के खिलाफ प्रोपेगंडा के लिए तीन-तीन लेखकों से इस लेख को लिखवाया है। यूपी पुलिस के एनकाउंटर्स को ‘Extrajudicial’ हत्याएँ लिखा गया है। योगी सरकार को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ जोर देकर लिखा गया है। क्या हिन्दू होना गुनाह है या फिर राष्ट्रवादी? भारत को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण वाला समाज कहा गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा भगवा कपड़े पहने जाने पर भी सवाल उठाया गया है।

वो गोरखनाथ स्थित गोरक्षधाम के महंत हैं, पीठाधीश्वर हैं, ऐसे में क्या उन्हें मठ के नियमों के हिसाब से कपड़े पहनने के लिए अमेरिका की अनुमति लेनी होगी? ‘अशोका यूनिवर्सिटी’ के प्रोफेसर से बयान लिया गया है, जो भारत विरोधियों का अड्डा रहा है। NYT ने एक तरह से अपने पूरे लेख में बिना कोई सबूत के किसी भी ऐरे-गैर का बयान लेकर कुछ भी आरोप लगा दिए हैं। क्या NYT, BBC या CNN ने पिछले 44 वर्षों में अतीक अहमद के गुनाहों पर एक भी रिपोर्ट लिखी होगी?

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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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