मलाला युसुफ़ज़ई को जम्मू-कश्मीर की बड़ी चिंता है। सिंध में अल्पसंख्यक (हिन्दू, सिख एवं ईसाई) लड़कियों के धर्मान्तरण से उन्हें दिक्कत नहीं है, लेकिन जम्मू-कश्मीर की किसी लड़की ने उन्हें कथित तौर पर कह दिया कि वहाँ खिड़की के बाहर से सेना के पदचाप सुनाई देते हैं और उन्होंने एक के बाद एक सात ट्वीट्स लिख डाले। मलाला ने किस लड़की से बात की, वो लड़की जम्मू-कश्मीर के किस क्षेत्र में रहती है और उन्होंने कितनी लड़कियों से बात कर के अपनी राय बनाई, यह सब किसी को नहीं पता।
जम्मू-कश्मीर में सीमा पर पाकिस्तान की तरफ़ से लगातार गोलीबारी हो रही है। सन 2019 को बीतने में अभी 3 महीने से भी अधिक बचे हैं, लेकिन पाकिस्तान 2050 बार सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन कर चुका है। इससे किसे दिक्कत होती है? सीमा के आसपास कई गाँव हैं, उनमें रह रहे लोगों को। बूढ़ों-महिलाओं-बच्चों को। यहाँ तक कि सीमा के आसपास रह रहे जानवरों को भी नुकसान पहुँचता है और वे मारे जाते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया था कि सरकार 15,000 बंकर सिर्फ़ सीमा पर रह रहे लोगों व पशुधन की सुरक्षा के लिए बनवा रही है।
“I feel purposeless and depressed because I can’t go to school. I missed my exams on August 12 and I feel my future is insecure now. I want to be a writer and grow to be an independent, successful Kashmiri woman. But it seems to be getting more difficult as this continues.”
— Malala (@Malala) September 14, 2019
मलाल युसुफ़ज़ई ने किस आधार पर किसी काल्पनिक लड़की से संवाद कर उसके हवाले से कह दिया कि जम्मू-कश्मीर में सेना की पदचाप सुनाई देने से डर का माहौल है, यह चर्चा का विषय है। लेकिन, आँकड़े कहते हैं कि राज्य में भारतीय सेना के पदचाप से नहीं, बल्कि पाकिस्तानी फ़ौज की गोलीबारी से लोगों को दिक्कत है। लोग मारे जाते हैं। उनके जानवर मारे जाते हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। ऐसे समय में उनकी मदद के लिए कौन आता है? मलाला युसुफ़ज़ई नहीं आतीं। भारत की सेना आती है।
आपने भी वह वीडियो देखा होगा, जिसमें भारतीय सेना एक स्कूल में फँसे बच्चों को बचा कर निकाल रही है। बालाकोट सेक्टर स्थित मेंढर तहसील में एक स्कूल में बच्चे फँस गए, क्योंकि अचानक से पाकिस्तान ने फायरिंग शुरू कर दी। तब भारतीय सेना वहाँ पहुँची और बच्चों को बचाया। जब वे बच्चे पाकिस्तान की गोलीबारी के बीच डरे-सहमे रो रहे होंगे, तब भारतीय सेना की पदचाप से उन्हें राहत मिली होगी, एक आस जगी होगी, डर नहीं लगा होगा। एक-एक कर के तीन स्कूलों के बच्चों को सेना ने पाकिस्तानी फ़ौज की गोलीबारी के चंगुल से निकाला।
#WATCH Poonch: Indian Army rescues children from Government school in Sandote village at Balakote sector of Mendhar Tehsil as cross-border firing starts from Pakistan. Indian Army rescued children from 2 other schools in Balakote and Behrote village. #JammuAndKashmir pic.twitter.com/qnSRlqzEiI
— ANI (@ANI) September 14, 2019
मलाला युसुफ़ज़ई को इन बच्चों से बात करनी चाहिए। कश्मीर की किस लड़की से उन्होंने बात की, यह तो नहीं पता, लेकिन वीडियो में प्रत्यक्ष दिख रहे बच्चों से बात कर के उन्हें जानना चाहिए कि वे आतंकित किस से हैं और कौन उनके बचाव के लिए जान न्यौछावर कर रहा है? हरेक कुछ दिन पर मलाला का कथित कश्मीर प्रेम जगता है और वह सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी प्रोपगेंडा को हवा देने भर तक ही सीमित होता है, पीओके पर वह कुछ नहीं बोलतीं। पीओके पर उन्हें क्यों बोलना चाहिए, इस पर चर्चा करेंगे, लेकिन उससे पहले श्रीश्री रविशंकर का एक बयान याद करते हैं।
मई 2016 में ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर ने साफ़-साफ़ कहा था कि मलाला युसुफ़ज़ई नोबेल पुरस्कार के लायक नहीं थीं। हालाँकि, पाकिस्तान में मलाला के साथ जो भी हुआ वह दुःखद है और अपनी आवाज़ उठाने के लिए उनकी प्रशंसा होनी चाहिए। लेकिन, श्रीश्री का पूछना था कि नोबेल पुरस्कार पाने के लिए उन्हों क्या किया है? साथ ही श्रीश्री ने यह भी कहा था कि नोबेल पुरस्कार ने अब अपना महत्व खो दिया है। श्रीश्री के कई बयानों पर विवाद हो सकता है लेकिन उनके इस बयान का सार यह था कि एक 16 वर्षीय लड़की को नोबेल दे दिया गया, जिसने उस अवॉर्ड को पाने लायक कुछ नहीं किया।
#SriSriRaviShankar says @Malala didn’t deserve #NobelPrize – Sri Sri Claims He Rejected Nobel Peace Prize via News18 pic.twitter.com/1nsPYtUGrY
— Youth Voice (@ywfyouthvoice) May 4, 2016
अब आते हैं कर्नाटक के उडुपी-चिकमंगलूर से भाजपा सांसद शोभा करंदलाजे के बयान पर। उन्होंने मलाला पर पलटवार करते हुए उन्हें एक अच्छी सलाह दी है। कर्नाटक सरकार में मंत्री रह चुकीं शोभा ने नोबेल विजेता मलाला से कहा कि वे पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के साथ भी कुछ पल गुजारें। भाजपा सांसद ने याद दिलाया कि मलाला के अपने ही देश में अल्पसंख्यकों का जबरन धर्मान्तरण हो रहा है और उन पर अत्याचार किए जा रहे हैं। उन्होंने मलाला को इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की सलाह दी। साथ ही उन्होंने मलाला से कहा कि कश्मीर में कुछ ‘बुरा’ नहीं हुआ है, विकास की बयार अब वहाँ और अच्छे से पहुँचेगी।
Sincere request to the Nobel winner, to spend some time speaking with the minorities of Pakistan.
— Shobha Karandlaje (@ShobhaBJP) September 15, 2019
To speak against the forceful conversation & persecution taking place on the minority girls in her own country!
Developmental agendas got extended to Kashmir, nothing suppressed! https://t.co/Um3BmGuJwi
भाजपा सांसद का यह बयान हलके में लेने लायक नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान के ख़ुद के मानवाधिकार संगठन ने यह पाया है कि अकेले दक्षिण सिंध में सिर्फ़ 2018 में 1,000 से भी अधिक अल्पसंख्यकों को जबरन इस्लामिक मज़हब कबूलने को मजबूर किया गया। यह पूरे सिंध का भी आँकड़ा नहीं है, तो पाकिस्तान की बात ही छोड़ दीजिए। कहीं शिक्षक ने ही छात्र का जबरन धर्मान्तरण करा दिया तो कहीं लड़कियों का अपहरण कर उनसे शादी रचाई गई और इस्लाम कबूल करवाया गया। मलाला युसुफ़ज़ई के ख़ुद के देश में चल रहे इस ख़तरनाक खेल के ख़िलाफ़ उन्होंने कभी चूँ तक नहीं किया।
मलाला ने कहा है कि 4,000 लोगों को जेल में ठूँस दिया गया है, जिनमें कई बच्चे भी शामिल हैं। जबकि कहीं भी इस प्रकार का कोई रिपोर्ट नहीं है जहाँ बच्चों को जेल में डालने की बात सामने आई हो। इसके लिए मलाला ने किसी न्यूज़ पोर्टल की ख़बर का भी हवाला नहीं दिया। अर्थात, हवा में आरोप लगाए जा रहे हैं, क्योंकि नोबेल विजेता ने कह दिया तो सबूतों और गवाहों की कोई ज़रूरत नहीं होती। भारत जैसे विशाल देश के आंतरिक मुद्दे के बारे में बर्मिंघम में बैठ कर ट्वीट करना आसान है, ग्राउंड जीरो पर जाकर काम करना मुश्किल। लेकिन, ट्वीट करने से सुर्खियाँ मिलती हैं।
मलाला को पीओके पर क्यों बोलना चाहिए? वह जम्मू-कश्मीर का पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला हिस्सा तो है और साथ ही वहाँ की जनता को भी पाक फ़ौज द्वारा दबाया जाता है। असली अत्याचार वहाँ है। पाकिस्तान के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री फवाद चौधरी ने दावा किया था कि पाक अधिकृत कश्मीर में लोग बहुत ख़ुश हैं और कोई भी आकर इस चीज को देख सकता है। लेकिन, बलूच नेता मेहरान मारी ने उनकी पोल खोलते हुए उन्हें बेशर्म आदमी बताया। इसी तरह पीओके के सामाजिक कार्यकर्ता आरिफ आजाकिया ने पाकिस्तानी नेताओं को लताड़ते हुए कहा कि दुनिया मेट्रो पर घूम रही है, लेकिन पाकिस्तान अभी भी रिक्शे से बाहर नहीं निकल रहा।
मलाला का यह भी कहना है कि बच्चे कश्मीर में 40 दिन से स्कूल नहीं जा पाए हैं। 12 अगस्त को कुछ छात्रों की परीक्षाएँ छूट गईं। हालाँकि, लोगों ने उन्हें यह याद दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि अगस्त 12 , 2019 को बकरीद था और छुट्टियों के दिन वैसे भी स्कूल बंद ही रहते हैं। अब मलाला द्वारा कश्मीर की छात्राओं के हवाले से कई गई हर चीज काल्पनिक लगती है क्योंकि इसमें एक-एक बात झूठ पर आधारित प्रतीत होती है। मलाला शायद अपनी देशभक्ति निभा रही हैं। या फिर इमरान ख़ान के उस बयान को आधार बना कर कार्य कर रही हैं जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को पूरी दुनिया के इस्लामवादियों का रहनुमा बताया था।
मलाला अगर सच में जम्मू-कश्मीर के लिए चिंतित हैं तो उन्हें ज़मीन पर आकर स्थिति देखनी चाहिए। अगर वह बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंतित हैं तो पाकिस्तान को गोलीबारी रोकने को कहना चाहिए। अगर वह जम्मू-कश्मीर में ‘डर के माहौल’ को लेकर चिंतित हैं तो उन्हें जिहादी आतंकियों की निंदा करनी चाहिए। अगर वह मीडिया की आज़ादी और ‘आवाज़ उठाने की स्वतंत्रता’ को लेकर चिंतित हैं तो उन्हें पीओके और चीन के कब्जे वाले कश्मीर के सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज़ सुननी चाहिए। लेकिन अभी तक के उनके बयानों से तो ऐसा ही लग रहा कि वह एक पाकिस्तानी की नज़र से ही चीजों को देख रही हैं, जैसे वहाँ के सियासतदान देखते हैं।