Monday, November 18, 2024
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‘राम के नाम पर बनी है सरकार, जल्द ही होगा भव्य राम मंदिर का निर्माण’

भाजपा की जीत के ठीक दस दिन बाद अयोध्या में संतों ने राम मंदिर निर्माण को लेकर सोमवार (जून 3, 2019) को मणिराम दास की छावनी में बैठक की। इस बैठक की अध्‍यक्षता रामजन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास द्वारा की गई। इस दौरान मंदिर बनाने के वैकल्पिक रास्तों पर चर्चा हुई। सभी संतों ने मंदिर के निर्माण में देरी न हो, इसे लेकर एकमत राय दी। बैठक में कहा गया कि ये समय इस विषय पर फैसला लेने का सही समय है, क्योंकि राम के नाम पर ही सरकार बनी है।

इस बैठक में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को 15 जून को होने वाले ‘संत सम्मेलन’ में उठाने का निर्णय लिया गया। साथ ही सलाह दी गई कि जरूरत पड़े तो संतों के प्रतिनिधिमंडल को प्रधानमंत्री से मिलकर इस मुद्दे पर बात करनी चाहिए। महांत नृत्य गोपाल दास के उत्तराधिकारी कमल नयन दास ने इंडियन एक्सप्रेस से हुई बातचीत में बताया है कि चुनाव खत्म हो चुके हैं। राम के नाम पर और राम का नाम लेने से सरकार का भी निर्माण हो चुका है। ऐसे में अब समय आ गया है कि राम के नाम पर काम भी किया जाए।

बैठक में शामिल हुए विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने संतों को आश्वस्त किया कि अब सब कुछ ठीक चल रहा है। उन्होंने ये भी कहा कि मंदिर निर्माण के लिए बहुत ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। जल्द ही भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा।

न्यास के वरिष्ठ सदस्य रामविलास वेदांती ने इस दौरान कहा कि राम मंदिर को लेकर इस वर्ष यह संतों की पहली बैठक है। उनका कहना है कि भगवान राम के आशीर्वाद से ही भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला है। उनके मुताबिक सरकार पहले चरण में कश्मीर की धारा 370 और 35 ए को खत्म करेगी, इसके बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू करेगी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाएगा क्योंकि खसरा और खतौनी दोनों ही राम के नाम पर है।

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक मणिराम छावनी के महंत कमल नारायण ने इस बैठक के बारे में कहा कि बैठक हालाँकि महंत नृत्य गोपाल दास के जन्मदिवस समारोह के लिए आयोजित हुई थी, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब संत आपस में मिलते हैं तो राम मंदिर का मुद्दा उठता है।

बहन पर तेजाब डालने वाले इरफ़ान, रिज़वान और इमरान गिरफ्तार, गैर-मुस्लिम संग प्रेम का मामला

दादरी पुलिस ने रविवार (जून 3, 2019) की रात उन तीनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया है, जिन्होंने कुछ दिन पहले अपनी छोटी बहन पर तेजाब डालकर उसे मारने की कोशिश की थी। अभियुक्तों का नाम इरफान, रिजवान और इमरान है। तीनों बुलंदशहर के रहने वाले हैं। ये आरोपित अलग-अलग फैक्टरियों और कंस्ट्रक्शन स्थल पर बतौर मजदूर काम कर रहे थे।

पुलिस अधिकारी नीरज मलिक के मुताबिक 5 मई को इन तीनों भाइयों ने अपनी बहन को मारने के लिए प्लान बनाया। खबरों के अनुसार पहले गुलावठी की रामनगर निवासी सलमा को उसके भाई इरफ़ान और रिज़वान नोएडा घुमाने के बहाने लाए। इसके बाद कोट नहर के सामने भाइयों ने सलमा का गला दबाया, उसके मुँह पर तेजाब डाला और फिर उसे मृत समझकर चले गए।

दादरी कोतवाली क्षेत्र के  कोट नहर के पास सलमा को झुलसी हालत में देख उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उसकी हालत गंभीर थी। सलमा के चेहरे और गले पर ज्यादा घाव बताए गए। अस्पताल पहुँचने के बाद सलमा का बयान लिया गया। दादरी पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और फरार आरोपितों पर 25,000 के इनाम की घोषणा की। रविवार रात पुलिस को इन तीनों भाइयों को दादरी रेलवे क्रॉसिंग के पास देखे जाने की खबर मिली। पुलिस ने वहाँ छापेमारी की और इन तीनों को गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस अधिकारी नीरज मलिक ने बताया कि पूछताछ के दौरान तीनों ने अपने गुनाह को मान लिया है। आरोपितों ने बताया है कि उनकी बहन एक शादीशुदा व्यक्ति के साथ संबंध में थी। परिवार इस रिश्ते के ख़िलाफ़ था। सलमा को कई बार उस आदमी से दूर रहने के लिए कहा गया लेकिन वह नहीं मानी। 5 मई को जब वह लोग अलीगढ़ से किसी रिश्तेदार के घर से लौट रहे तो इरफान, रिजवान ने सलमा को स्कूटर से घर छोड़ने की बात कही। लेकिन घर ले जाने के रास्ते में ही दोनों ने उसका गला दबाया और उस पर तेजाब से हमला किया। इसके बाद उन्होंने उसे लुहारली ब्रिज से नीचे फेंक दिया, ये सोचकर कि वो मर गई है।

पुलिस का कहना है कि इरफान और रिजवान को अपराध करने के लिए गिरफ्तार किया गया है जबकि इमरान पर साजिश रचने का मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने आरोपितों के ख़िलाफ़ धारा 307 (हत्या की कोशिश), 326(A) (तेजाब फेंकने के लिए दंड), और 120 B (साजिश रचना) के तहत मामला दर्ज किया है। तीनों को पहले कोर्ट में पेश किया गया और फिर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

पीड़िता अब भी अस्पताल में भर्ती है। 22 वर्षीय सलमा का चेहरा इस घटना के बाद बुरी तरह झुलस गया था और उसकी आँखें तेज़ाब की वजह से जल गई थी। अभी उसके कंधे और गले पर जलने के काफ़ी घाव हैं। पुलिस ने बताया है कि सलमा को एक महीने अभी अस्पताल में और रखा जाएगा। उसके घरवालों ने उसके साथ रहने से मना कर दिया है। इसलिए लड़की की सुरक्षा में एक महिला कॉन्स्टेबल को उसकी देख-रेख के लिए तैनात किया गया है।

Fact Check: विदेशी पत्रकार ने फैलाया महाझूठ, साजिद के पिटने की वजह उसका मुस्लिम होना नहीं

दिल्ली के जैतपुर की एक सामान्य आपराधिक घटना को ‘मुस्लिमों के ख़िलाफ़ मोदी समर्थकों द्वारा किए जा रहे अत्याचार’ के रूप में पेश किया जा रहा है। अब इसमें अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी कूद गई है। ‘मिडिल ईस्ट आई’ के पत्रकार सीजे वेर्लेमन ने एक सनसनीखेज दावा करते हुए ट्विटर पर लिखा, “28 मई को इस मुस्लिम युवक पर मोदी समर्थकों और हिन्दू कट्टरवादियों द्वारा हमला किया गया। इसे स्टील के रॉड से पीटा गया, सूअर का मांस खाने को मजबूर किया गया और उसके शरीर पर पेशाब करने की धमकी दी गई। मोदी के दोबारा जीतने के बाद इस तरह के हमले रोज़ हो रहे हैं।

‘चैनल द रेज’ नामक पॉडकास्ट को एंकर करने वाले पत्रकार वेर्लेमन ने इस ट्वीट के साथ एक विडियो भी पोस्ट किया, जिसमें साजिद नाम का मुस्लिम युवक इस घटना को लेकर आपबीती सुना रहा है। इसमें वो साफ़-साफ़ कह रहा है कि उसे जेबकतरों ने रोका और उससे उसका मोबाइल माँगा, लेकिन फिर भी इस विडियो को ‘हिन्दुओं द्वारा मुस्लिमों पर हमले’ या यूँ कहें कि ‘हेट क्राइम’ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। हमने जब इस घटना को खंगाला तो हमें दिल्ली साउथ ईस्ट के डिप्टी कमिश्नर चिन्मय विश्वास का बयान मिला, जिसमें उन्होंने इस घटना के ‘हेट क्राइम’ होने से साफ़-साफ़ इनकार कर दिया है।

जैतपुर पुलिस स्टेशन में जो मामला दर्ज किया गया है, उसमें भी कहीं ‘सांप्रदायिक हिंसा’ या ऐसी किसी चीज का जिक्र नहीं है। बंधक बनाने और दुर्व्यवहार करने सम्बन्धी मामले दर्ज किए गए हैं, जो कहीं से भी यह साबित नहीं करते कि यह घटना साजिद के मुस्लिम होने के कारण हुई। पुलिस ने इसे ‘Mistaken Identity’ का मामला बताया है, जहाँ आरोपितों ने उक्त युवक को कोई और समझ लिया और उसे पीटा। आरोपितों ने यह समझा कि वो लोग जिसे खोज रहे हैं, वो साजिद ही है। सोशल मीडिया पर वेर्लेमन ने एक अज्ञात न्यूज़ चैनल का विडियो भी शेयर किया, जिसमें एंकर द्वारा बताया जा रहा है कि साजिद को मुस्लिम होने की वजह से पीटा गया।

हालाँकि, पुलिस द्वारा नकारने और ख़ुद साजिद द्वारा इस विडियो में आरोपितों को जेबकतरा बताने के बाद भी पत्रकारों व मीडिया संस्थानों द्वारा ज़हर फैलाने का काम किया जा रहा है। ऐसे कई मामले आए हैं, जहाँ पीड़ित के मुस्लिम होने पर अन्य आपराधिक घटनाओं को भी सांप्रदायिक हिंसा और मुस्लिमों पर कथित अत्याचार के रूप में पेश किया गया। इस मामले में भी यही हुआ है। सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें साजिद आरोपितों को कहता पाया जा रहा है कि वह वो व्यक्ति नहीं है, जिसे वे ढूँढ रहे हैं। जब यह किसी की पहचान ग़लत समझने का मामला है, तो इसमें ‘नरेन्द्र मोदी’, ‘कट्टरवादी हिन्दू’ और ‘मोदी समर्थक’ कहाँ से आ गए? ये नाम आ नहीं गए बल्कि जबरन लाए गए, ठूँसे गए क्योंकि इन लोगों को अपना हित साधना है, प्रोपेगेंडा सेट करना है।

सोशल मीडिया के माध्यम से बिना घटना को जाने-समझे उसे ‘एक निर्दोष मुस्लिम पर हिन्दुओं द्वारा हमला’ के रूप में प्रचारित किया गया। अभी हाल ही में गुरुग्राम में भी एक घटना हुई थी, जब एक मुस्लिम युवक के दावे झूठे पाए गए। उसने कहा था कि मुस्लिम होने की वजह से उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया। सच्चाई समाने आने से पहले ही बयान देकर गौतम गंभीर जैसे नेताओं ने सुर्खियाँ भी बटोरीं।

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप केस: कौन है ‘तोंद वाला नेता और मूँछ वाला अंकल’, CBI पर भी लगे आरोप

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप केस में एक अज्ञात “तोंद वाले अंकल नेताजी” और एक “मूछ वाले अंकल जी” की भूमिका सामने आई है। पीड़ित बच्चियों ने इन दोनों ही अज्ञात ‘अंकलों’ पर उनका यौन शोषण करने का आरोप लगाया है। बता दें कि मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में बच्चियों के साथ रेप और कईयों की हत्या के खुलासे का एक वर्ष पूरा हो गया है लेकिन अभी तक सीबीआई की जाँच किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँची है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से दिल्ली के साकेत स्थित पॉस्को कोर्ट में इस मामले को ट्रान्सफर किया जा चुका है और वहीं सुनवाई भी चल रही है। नियमित सुनवाई में बच्चियों की गवाही ली जा रही है।

सीबीआई ने जाँच की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 6 महीने का समय माँगा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जाँच एजेंसी को 3 महीने का अल्टीमेटम दिया है। एक और बड़ा और चौंकाने वाला खुलासा करते हुए सीबीआई ने अदालत को बताया है कि जाँच के दौरान 11 पीड़ित बच्चियों की हत्या किए जाने की बात सामने आई है। एक आरोपित से इस सम्बन्ध में पूछताछ भी की गई थी, जिसकी निशानदेही पर एक श्मशान घाट से खुदाई के बाद कुछ हड्डियों की टुकड़ियाँ बरामद की गई। इस मामले में ब्रजेश ठाकुर सहित कई आरोपित हैं। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह आरोप लगाया गया है कि वह सबूत होने के बावजूद जाँच में ढिलाई बरत रही है।

अब तक इस मामले में 20 आरोपितों को विभिन्न जगहों से पकड़ा जा चुका है। बच्चियों ने अपने बयान में कहा है कि उनका यौन शोषण किया जाता था और विरोध करने पर हत्या कर दी जाती थी। एडिशनल सोलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने अदालत को बताया कि 2 बच्चियों के कंकाल बरामद किए गए हैं और फोरेंसिक जाँच के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। दीवान ने सीबीआई द्वारा प्रभावशाली लोगों को बचाने वाले आरोपों को नकारते हुए कहा कि आरोपितों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी धाराएँ दर्ज की जा रही हैं।

निवेदिता झा द्वारा याचिका में कहा गया है कि बच्चियों को होटल भी ले जाया जाता था, जहाँ ‘बाहरी लोग’ आकर उनका रेप करते थे। ये सभी ब्रजेश ठाकुर के मित्र थे। झा का आरोप है कि सीबीआई इन लोगों को धर दबोचने मे नाकाम साबित हुई है। वकील अपर्णा भट ने अदालत से जल्द से जल्द जाँच निपटाने का आदेश देने की गुहार लगाई। उन्होंने कहा कि अगर जाँच लम्बी चलती है तो इससे पीड़ित बच्चियों को बार-बार वो भयावह घटनाएँ याद करनी पड़ेंगी, जो उनकी मानसिक स्थिति के लिए सही नहीं है। भट ने कहा कि उन बच्चियों के ख़िलाफ़ अप्राकृतिक सेक्स करने और इस कुकर्म का विडियो रिकॉर्ड करने के लिए आरोपितों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

मुजफ्फरपुर शेल्टर होम रेप व हत्या केस में बिहार सरकार के मंत्रियों से लेकर कई प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम सामने आए हैं। सीबीआई के ख़िलाफ़ याचिका में कहा गया है, “यह साफ़-साफ़ प्रतीत होता है कि ब्रजेश ठाकुर द्वारा एक बड़ा और व्यापक वेश्यावृत्ति रैकेट चलाया जा रहा था। सीबीआई ने तमाम लीड मिलने के बावजूद वास्तविक दोषियों को बचाने का काम किया है।

बेटे की हार पर रार: पायलट लें मेरे बेटे की हार की ज़िम्मेदारी, CM गहलोत और डेप्युटी CM आमने-सामने

राजस्थान में कॉन्ग्रेस पार्टी की कलह अब शीर्ष नेताओं के बीच पहुँच गई है। राज्य में पार्टी के दो शीर्ष नेताओं के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को आड़े हाथों लिया है। गहलोत ने कहा कि पायलट को भी उनके बेटे वैभव गहलोत की हार की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। बता दें कि जोधपुर क्षेत्र से 5 बार सांसद व इसी क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्र से 5 बार विधायक बनने वाले सीएम गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को ही यहाँ से जीत नहीं दिला पाए। उनके ख़ुद के ही विधानसभा क्षेत्र में उनके बेटे लीड नहीं ले सके।

सरदारपुरा में वैभव गहलोत लगभग 18,000 मतों से पीछे छूट गए। मुख्यमंत्री के एक ही क्षेत्र में सीमित रह जाने का खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा और पूरे राजस्थान में कॉन्ग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया। वहीँ राजस्थान प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने वरिष्ठ नेता गहलोत के इस बयान पर आश्चर्य जताया है। एबीपी न्यूज़ से इंटरव्यू के दौरान गहलोत ने कहा:

“पायलट साहब ने यह भी कहा था कि वैभव बड़े अंतर से जीतेगा, क्योंकि उस क्षेत्र में हमारे 6 विधायक हैं, और हमारा चुनाव अभियान भी बढ़िया था। मुझे लगता है कि उन्हें वैभव की हार की जिम्मेदारी तो लेनी चाहिए। जोधपुर में पार्टी की हार का पूरा पोस्टमॉर्टम होगा कि हम वह सीट क्यों नहीं जीत सके।”

अशोक गहलोत ने आगे कहा कि यदि जीतने पर श्रेय लेने के लिए सभी लोग आगे आ जाते हैं तो हारने पर भी ज़िम्मेदारी सामूहिक होनी चाहिए। पायलट समर्थक लगातार कहते रहे हैं कि राज्य में सीएम के काम करने का तरीका कॉन्ग्रेस की हार का कारण बना है। गहलोत ने कहा कि ये चुनाव किसी एक व्यक्ति नहीं, बल्कि सामूहिक नेतृत्व में संपन्न हुआ है। उधर राजस्थान में मंत्रियों के बीच से भी विरोध के स्वर उठे हैं। राजस्थान के कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने इस्तीफा दे दिया था। राज्य के दो अन्य कैबिनेट मंत्रियों, सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना व खाद्य मंत्री रमेश मीणा ने कॉन्ग्रेस की हार की समीक्षा करने की सलाह दी है।

इससे पहले कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी अशोक गहलोत समेत अन्य नेताओं द्वारा अपने बेटों को पार्टी से ऊपर तरजीह देने को हार का कारण बताया था। कई दिनों तक दिल्ली कैम्प करने के बाद भी राहुल गहलोत से मुलाक़ात करने से साफ़ इनकार करते रहे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान गहलोत ने प्रदेश में कुल 130 रैलियाँ की, जिनमें से 93 रैलियाँ उन्होंने अकेले अपने बेटे वैभव के लिए कीं।

जोधपुर में भाजपा उम्मीदवार गजेन्द्र सिंह शेखावत को 788888 मत मिले, वहीं वैभव गहलोत 514448 मत पाकर क़रीब पौने 3 लाख मतों से पीछे छूट गए। शेखावत को 58.6% मत मिले जबकि वैभव को कुल मतों का 38.21% हिस्सा ही मिल पाया। राजस्थान सरकार में मंत्री मंत्री उदय लाल ने कहा था कि उन्होंने पहले ही सीएम गहलोत को अपने बेटे को जोधपुर से न लड़ाने की सलाह दी थी। उदय लाल ने कहा था कि अगर वैभव जोधपुर की जगह जालौर से लड़ते तो स्थिति अलग हो सकती थी।


हिन्दुओं पर Scroll एक कदम आगे, 3 कदम पीछे: आक्रांताओं को इस्लामी माना, लेकिन हिन्दुओं का दानवीकरण जारी

मोदी की जीत के बाद लिबरलों का ‘उबरना’ अभी जारी है- ‘योया’ जी मोदी-विरोधियों को गिरेबान में झाँकने की सलाह दे रहे हैं, शेखर गुप्ता मान रहे हैं कि उनके पत्रकारिता के समुदाय विशेष ने मोदी की उपलब्धियों को नज़रअन्दाज़ किया, और अब स्क्रॉल अपने प्लेटफॉर्म पर यह स्वीकार करता लेख (तकनीकी रूप से एक किताब का अंश) छाप रही है कि हाँ, हिन्दुओं पर इस्लामी आक्रांताओं के क्रूर अत्याचारों को रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों ने निष्ठुरता से झुठला दिया, ताकि आधुनिक हिन्दुओं को अपने पूर्वजों के साथ हुए अत्याचारों की याद से दूर रख उन्हें 1947 के बँटवारे के बाद, उस दौरान हुए हत्याकांडों के भी बाद हिन्दुओं को हिन्दू राष्ट्र की (न्यायोचित, प्राकृतिक) माँग करने से रोका जा सके

यह बात और है कि इसे खिसिया कर स्वीकारने के बाद भी स्क्रॉल का हिन्दूफ़ोबिया एक पैसा कम नहीं हुआ है- अभी भी यह खिसिया कर, भरे मन से अपने सेक्युलर गिरोह की गलती स्वीकारने के बाद भी हिन्दुओं के दानवीकरण से बाज नहीं आ रहा है। लेख की (और यदि जिस किताब से अंश लिया है, उससे छेड़छाड़ नहीं हुई है तो किताब की भी) भाषा हिन्दू राष्ट्रवाद को अभी भी अवैध मानने की ही है, और सेक्युलर इतिहासकारों को केवल इसका दोषी माना गया है कि उनकी वजह से इन (दुष्ट, कमीने) हिन्दू राष्ट्रवादियों को बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया (जोकि गलत हुआ, नहीं होना चाहिए था)।

हाँ, इस्लामी आक्रांताओं ने हत्या, बलात्कार, मंदिर ध्वंस किए

लेख का नाम है “Did the secular sanitisation of pre-colonial Indian history allow Hindu nationalism to weaponise it?” (क्या साम्राज्यवाद से पहले के भारतीय इतिहास की सेक्युलर ‘साफ-सफाई’ से हिन्दू राष्ट्रवादियों को उसे हथियार बनाने का मौका मिल गया?) जिस किताब से लेख है, वह है कपिल कोमिरेड्डी की “Malevolent Republic: A Short History of the New India” (‘दुष्ट’ गणतंत्र: नए भारत का संक्षिप्त इतिहास)

लेख (किताब का अंश) अपने शब्दों से ज्यादा अपने टोन से बोलता है, और टोन हिन्दुओं को, उनकी अभिव्यक्ति को दानवीकृत करने का ही है। आड़, उदाहरण के तौर पर शुरू में, भले बाबरी-ध्वंस जैसे कानूनी रूप से आपराधिक कृत्य की है लेकिन निंदा के निशाने पर, ‘हिंसक’ के ठप्पे की शिकार हिन्दुओं की धार्मिक अभिव्यक्ति की, एक हिन्दू ‘स्पेस’ की पूरी आकांक्षा है। कवित्व की भाषा में यह अंगांगिवाचन (synecdoche) नामक अलंकार है- बात एक की हो रही है, लेकिन असल में सौ की हो रही है।

पर खैर, चाहे जिस बहाने, कम-से-कम जो झूठ अपनी जमात का इन्होंने माना, पहले बात उसकी। लेख में यह माना गया है कि एक ‘सेक्युलर’ राष्ट्र के निर्माण के लिए ‘सेक्युलर बुद्धिजीवियों’ ने अपनी ‘सहृदयता’ में पाकिस्तान बनने के बाद हिंदुस्तान को हिन्दू राष्ट्र की जोर पकड़ती माँग को कमजोर करने के लिए इस्लामिक हिंसा और खूँरेजी के इतिहास को दफना दिया। और यह देश के दीर्घकालिक हितों के खिलाफ गया (हालाँकि मैं उनके ‘दीर्घकालिक अहित’ के निष्कर्ष से सहमत हूँ, पर मेरे कारण उनके कारणों के ठीक उलटे हैं। वह हिन्दू राष्ट्रवाद को अहित के रूप में देख रहे हैं, और मैं इतने साल तक हिंदू राष्ट्र की माँग उठाने वालों को ‘लिबरलों’ के हाथों मिलने वाली, झूठ पर आधारित ज़िल्लत को)

लेख में यह भी बताया गया है कि कैसे इतिहास की स्कूली किताबों (जिसमें मोदी के बहाने हिन्दू राष्ट्र की आकाँक्षाओं को हाल ही में ‘sophisticated’ गालियाँ बकने वाली, झूठा साबित करने वाली रोमिला थापर की लिखी किताब शामिल है) ने या तो भरसक प्रयास किया कि इस्लामी शासकों के राज को साम्प्रदायिक सौहार्द के यूटोपिया के रूप में दिखाया जाए, और नहीं तो जब ऐसा कर पाना सम्भव न हो तो उनके अंदर ‘मानवीय गुण’ झूठे तौर पर भरे जाएँ, ताकि हिन्दुओं को लगे कि उनका उत्पीड़न, उनके साथ हुए हत्याएँ और बलात्कार तो ‘आकस्मिक’ था- यह इंसान तो वैसे बड़ा ही सभ्य और भलामानुष था।

उदाहरण के तौर पर, 17 बार हिंदुस्तान पर हमला कर हिन्दुओं के खून से इस धरती को सान देने वाले महमूद गजनी के द्वारा भारत में की गई नृशंसता के लिए रोमिला थापर ने महज एक वाक्यांश “भारत के लिए हानिकारक” का इस्तेमाल किया, लेकिन उसके तुरंत बाद बता दिया कि उसने अपने देश में एक बड़ी मस्जिद और सार्वजनिक पुस्तकालय बनवाया। इन दोनों बातों को, इस विशेष तरीके से एक साथ लिखा जाना जानबूझकर किया गया प्रपंच था- ऐसा इसलिए किया गया ताकि एक तो गज़नवी नृशंसता को न पढ़ने से हिन्दुओं का खून नहीं खौलेगा, और दूसरे ‘लेकिन उसने अपने देश में एक बड़ी मस्जिद और सार्वजनिक पुस्तकालय बनवाया’ वाली छवि मन में घर कर जाने के बाद हिन्दू अगर कहीं से उसकी असली जहालत पढ़ भी लेगा, तो उसे ‘मस्जिद और सार्वजनिक पुस्तकालय बनवाने वाले’ के बारे में लिखी गई नकारात्मक बातों पर शक भी होगा, और ऐसे ‘महान आदमी’ के बारे में ‘ऐसी बातें’ पढ़ने के लिए खुद पर भी ग्लानि होगी। यह लेख साफ़ दिखाता है कि हिंदुस्तान के विकृत सेक्युलरिज़्म का बोझ हिन्दुओं के कंधों पर ही नहीं, अपने धर्म की जरा भी परवाह करने वाले हिन्दुओं के अन्यायपूर्ण मानसिक और भावनात्मक शोषण की आधारशिला पर टिका है।

किताब का लेखक दूध का धुला नहीं, करता है हिन्दूफ़ोबिक इतिहासकारों के प्रपंच का बचाव

जिस किताब में इतिहास के नाम पर केवल झूठ परोसने वालों के झूठ पर से पर्दा हटाया गया हो, नंगे राजा को नंगा बोला गया हो उसके लेखक से भी सहानुभूति ठगी के शिकार हिन्दुओं के लिए रखना बेमानी साबित होता है। यह दिखाने के बाद भी कि रोमिला थापर (और मैं यहाँ नेहरू-चाटुकार रामचंद्र गुहा को भी इसी जमात में रखूँगा) जैसे कॉन्ग्रेस के ठेके पर आए इतिहासकार सेक्युलर भारत बनाने के नाम पर हिंदुस्तान के हिन्दुओं की ग्लानि-ग्रंथि का अनुचित दोहन कर रहे थे, किताब के लेखक कपिल कोमिरेड्डी उन्हीं के साथ खड़े हो जाते हैं। बताते हैं कि उन्होंने जो किया वह भी गलत केवल इसलिए है कि आज उनके कुकृत्य को नंगा कर उसका इस्तेमाल हिन्दू राष्ट्रवादी कर रहे हैं (वरना अगर यह न होता तो हिन्दुओं से अपने पूर्वजों की हत्या का सच छिपाए जाने में बुराई नहीं थी), और उनका इरादा तो पक्का नेक ही था।

कपिल कोमिरेड्डी खुद भी जिहादी हमलावरों को उनके मज़हब के या समुदाय के नाम से बुलाने से बचते हैं। उनके लिए वह “एशियन” इस्तेमाल करते हैं, जिसमें समुदाय विशेष के अलावा श्री लंकाई, तिब्बती, चीनी, जापानी आदि भी आ जाते हैं। वह इन प्रपंची इतिहासकारों को ‘शान्तिप्रियों’ की नहीं, ‘एशियनों की’ हिंसा और हत्या पर पर्दा डालने का दोष रखते हैं। यह भी सरासर झूठ है- मुझे नहीं लगता आज तक एक भी बौद्ध, डाओ (चीन का सबसे प्रचलित धर्म), या शिंटो (जापानी मूल धर्म) के एक भी राजा ने एक भी हिन्दू को हिंदुत्व (हिन्दू धर्म) का पालन करने के लिए मारा होगा।

यह मज़हब-आधारित हत्याकांड केवल मुस्लिमों ने किया, और जिनके साथ किया, उनके वंशज के तौर पर मैं अपने पूर्वजों के हत्यारों के पाप का बोझ बेगुनाह बौद्धों, डाओ और शिंटो लोगों समेत एशिया के गैर-मुस्लिम समुदाय के मत्थे बाँटे जाने का विरोध करता हूँ।

हिन्दू राष्ट्रवाद की पाकिस्तान की अवधारणा से तुलना खोखली

पूरे लेख में हिन्दू राष्ट्रवादियों के बारे में एक भी नकारात्मक शब्द लिखे बिना भी हिन्दू राष्ट्रवादियों को सबसे दुष्ट, जाहिल धरती पर बोझ दिखाया जाना इस लेख में और इसके लेखक कपिल कोमिरेड्डी बदस्तूर जारी रखते हैं। और विडंबना यह है कि कपिल यह नीच कर्म तब भी करते हैं जब वह खुद हिन्दू राष्ट्रवादियों द्वारा इस्लामी इतिहास के बारे में किए जा रहे, 70 साल से किए जा रहे दावों को सही साबित करते हैं।

वह रोमिला थापर और उनके गिरोह की जालसाजी और फ्रॉड को खुद में नैतिक तौर पर गलत नहीं मानते (जबकि किसी भी पीड़ित, चाहे वह मृत भी हो, के अपने प्रति हुई हिंसा के अनुभव को झुठलाना ‘गैसलाइटिंग’ नामक सामाजिक अपराध और मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार होता है), बल्कि “अच्छे इरादे” का मुलम्मा पहना कर बचाव ही करते हैं, बल्कि केवल इसलिए गलत मानते हैं कि अगर रोमिला थापर जैसों ने यह सब गंदगी न की होती, तो हिन्दू राष्ट्रवादियों को एक ‘हथियार’ न मिलता।

हिन्दू राष्ट्रवाद की एक अनकही तुलना पाकिस्तान की अवधारणा से भी की गई है, जो कि फिर से गलत है। मुख्यधारा के हिन्दू राष्ट्रवादी कभी भी पाकिस्तान जैसा राष्ट्र बनाने की बात नहीं करते हैं। उनकी माँग गैर-हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना देने, उनसे नागरिकता या व्यक्तिगत अधिकार छीन लेने, या उन्हें देश से निकाल देने वाला राष्ट्र बनाने की नहीं होती। उनकी माँग उसी हिन्दू धर्म को हिंदुस्तान की पहचान में वही न्यायोचित दर्जा दिलाने की होती है जिसका वह हकदार है- खासकर कि तब, जब हर सेक्युलरवादी हिंदुस्तान के सेक्युलर चरित्र को हिन्दू धर्म के ही मूल्यों में निहित बताता है। ऐसे में, अगर उनकी यह बात मान ली जाए कि हिंदुस्तान हिन्दू मूल्यों की वजह से ही सेक्युलर है, तो ऐसे सेक्युलर राष्ट्र की पहचान उसके सेक्युलरिज़्म के उद्गम हिंदुत्व से जोड़ने में क्या परेशानी हो सकती है? बशर्ते आपको हिन्दूफ़ोबिया के चलते ‘हिन्दू’ ठप्पे से ही घृणा न हो…

ख़ुर्शीद ने कहा राहुल जी सदृश दूसरा मूर्ख मिलना मुश्किल, उनकी जगह कोई ले ही नहीं सकता

अगर आप पूरी शिद्दत से किसी चीज़ को चाहो, तो सारी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है। ये बहुत ही प्रचलित वाक्य जिस तरह से कॉन्ग्रेस ने अंगीकृत किया है, शायद ही कोई दूसरा राजनीतिक दल इस पर इतनी गंभीरता से काम कर पाया हो। कॉन्ग्रेस की लुटिया डुबोने के बाद राहुल गाँधी मौनव्रत अवस्था में चले गए और कॉन्ग्रेस के तमाम बड़े-छोटे नेता उन्हें चुस्की-गोला ले जाकर मनाने उनसे मिलने गए। ये सब इसलिए किया गया क्योंकि कॉन्ग्रेस अपनी प्राथमिक आइडियोलॉजी “हुआ तो हुआ” की नीति का गंभीरता से अनुसरण करती है।

कॉन्ग्रेस के अलावा पूरे देश के लिए यह हमेशा से ही एक तलिस्मान रहा है कि गाँधी-नेहरू परिवार में आखिर ऐसा क्या है कि इस दल के कोई भी बड़े-छोटे नेता खुद ही इस परिवार के बाहर किसी को नेतृत्व करते नहीं देख पाते हैं। सारा देश इस पहेली को समझना चाहता है। इस बार के लोकसभा चुनाव में जनता द्वारा कॉन्ग्रेस के सम्पूर्ण अपमान के लक्ष्य को निभाने के बाद लोगों में उम्मीद जागी थी कि अब शायद कॉन्ग्रेस में आखिरकार किसी वरिष्ठ नेता का जमीर जागेगा और वो कह पड़ेगा कि बहुत हो गया अब नेतृत्व पर विचार करने का समय आ गया है।

बजाय इसके, लोगों के सामने नई किस्म की नौटंकी पेश की गई। कॉन्ग्रेस के युवराज को नाराज बच्चे की भूमिका में उतारा गया और उसे इस्तीफ़ा देने की लुका-छिपी खिलाई गई। इसके समानांतर कॉन्ग्रेस के छोटे-बड़े गुर्गे EVM से लेकर जनता को मूर्ख साबित करने का अपना काम निभाते गए और अपने नंबर बढ़ाते गए।

लेकिन भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं। इस बार पार्टी के एक वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद की अंतरात्मा का स्वर फूटा और वो आज कह पड़े कि राहुल गाँधी का विकल्प आज भी कॉन्ग्रेस में मौजूद नहीं है। गोदी मीडिया सलमान खुर्शीद के कथन को आपके सामने नहीं लाएगी लेकिन ऑपइंडिया तीखीमिर्ची सेल के विश्वसनीय सूत्रों ने यह स्पष्ट करते हुए बताया है कि सलमान खुर्शीद के कहने का असल मतलब यह था कि कॉन्ग्रेस में रहते हुए कॉन्ग्रेस का बंटाधार करने लायक मूर्ख आज भी राहुल गाँधी के समान कोई नहीं है। यानी, विकल्प तलाशने का तो प्रश्न ही नहीं उठता है।

कॉन्ग्रेस की हर शाख पर राहुल गाँधी बैठा है

शौक़ बहराइची का एक लोकप्रिय शेर है – “बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था, हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा।” चुनाव आएँगे-जाएँगे, लेकिन कॉन्ग्रेस ने इस शेर को हमेशा ही प्रासंगिक बनाए रखा है।

एक ओर जहाँ कॉन्ग्रेस के नेता कह रहे थे कि राहुल गाँधी को इस्तीफ़ा नहीं देना चाहिए, वहीं अक्ल के बजाए अपने सफ़ेद बालों से वरिष्ठ नजर आने वाले सलमान खुर्शीद ने अपने बयान के साथ इस विवाद को अब समाप्त कर दिया है। हालाँकि, कॉन्ग्रेस में छुपे हुए हमारे गुप्त सूत्रों का कहना है कि सलमान खुर्शीद के राहुल गाँधी को पार्टी का सबसे बड़ा मूर्ख घोषित करने के प्रस्ताव को ध्वनि मत से पारित कर के पार्टी में अभी भी बची हुई एकता का परिचय दिया है। जाहिर सी बात है; कॉन्ग्रेस की हर शाख पर उल्लू बैठा है।

सलमान खुर्शीद ने आज खुलकर अपने मन की बात करते हुए कह दिया कि राहुल गाँधी जितने ‘मूर्ख’ नेतृत्व का विकल्प ढूँढ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। देश के इस राजपरिवार के पास आज चाहे लोकतंत्र और बहुमत नहीं है लेकिन, उनके पास अपना एक व्यक्तिगत जनादेश जरूर है जो पिछले कुछ दिनों से अपनी स्वामी भक्ति साबित करने राहुल गाँधी को मनाते हुए नजर आ रहा है। भारत को स्वतंत्र हुए बहुत साल हो चुके हैं, लेकिन एक बड़ी जमात अभी भी ऐसी है, जिनका स्वतंत्र होना अभी भी बाकी है।

कॉन्ग्रेस चाहे तो अपनी इस बची हुई टुकड़ी को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर सकती है। यही एक विकल्प अब बाकी है, जिससे कॉन्ग्रेस की शाख पर बैठे उल्लू का राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बने देखने का सपना पूरा हो पाएगा। वरना योग्यता तो राहुल गाँधी की इतनी भी नहीं है कि वो किसी गाँव में प्रधानी का चुनाव लड़ें और उसमें पीछे से प्रथम आने पर एकमत में वार्ड मेंबर घोषित कर लिए जाएँ। खैर, राहुल गाँधी का कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में बने रहना देशहित में है ये बात सारा देश और भाजपा कार्यालय जानता है। नाम न बता पाने की शर्त पर कुछ गुप्त सूत्रों का तो यहाँ तक कहना है कि राहुल गाँधी से इस्तीफ़ा वापस लेने का विरोध करने पहुँची भीड़ में 99 प्रतिशत लोग भाजपा के कार्यकर्ता निकले।

UP: अराजक तत्वों ने प्रियंका वाड्रा की दादी की मूर्ति को पहनाया बुर्का, कॉन्ग्रेसियों का फूटा गुस्सा

उत्तर प्रदेश से एक बेहद निंदनीय घटना सामने आई है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खिरी में कुछ लोगों ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की मूर्ति को बुर्का पहना दिया। यह घटना सोमवार (मई 03, 2019) सुबह की है। मामले की जानकारी जैसे की कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ताओं को मिली, उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया, जिसके बाद जिला प्रशासन और पुलिस के लोगों ने किसी तरह कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं को समझाया।

दरअसल, गोला इलाके में  कुछ अराजक तत्व मूर्ति को बुर्का पहनाकर वहाँ से चले गए। जब सोमवार सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकले लोगों ने इंदिरा पार्क में पूर्व पीएम की मूर्ति पर बुर्का चढ़ा हुआ देखा तो वह दंग रह गए। यह खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई।

इसके बाद मूर्ति के पास एकत्रित होकर नाराज कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने अराजक तत्वों को न रोके जाने पर पुलिस और स्थानीय प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। मौके पर पहुँची पुलिस ने हालात पर काबू पाने के लिए लोगों को कार्रवाई का आश्वासन दिया। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “इस घटना से साफ है कि कुछ शरारती तत्व माहौल खराब करना चाहते थे, लेकिन हम उनकी पहचान कर उन पर निश्चित तौर पर कानूनी कार्रवाई करेंगे।”

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मामले पर यूपीसीसी की प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने कहा, “हमारे देश की पूर्व प्रधानमंत्री, जिन्होंने देश के लिए इतना कुछ किया यहाँ तक कि अपनी जान भी गवाँ दी, जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दुर्गा का अवतार कहा था, अब उन्हें गुंडों द्वारा टारगेट किया जा रहा है। यह वास्तव में दुखद है कि चुनावों में जीत के बावजूद भाजपा के लोग हमारे महान नेताओं को बदनाम करने के लिए सस्ते हथकंडे अपना रहे हैं। हम घटना के पीछे जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की माँग करते हैं।”

2 दिन में धराशाई हुआ NDTV का प्रोपेगेंडा, PM मोदी और डोवाल को लेकर बेच रहा था झूठ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा निर्वाचन 2019 जीतने के बाद 30 मई को शपथ ली। उनके साथ 24 कैबिनेट रैंक के मंत्रियों ने शपथ ली। लेकिन शपथ ग्रहण से पहले और उसके तुरंत बाद भी भारत के बुद्धिजीवी वर्ग ने जनता को भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कौन मंत्री बनेगा, नहीं बनेगा से लेकर इस पर भी अटकलों का बाज़ार गर्म किया गया कि किसको कैबिनेट रैंक मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी।

भारत के बुद्धिजीवी वर्ग के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये एसी कमरे में बैठकर आराम फरमाते हुए, अपनी अकादमिक डिग्रियों को सुबह शाम सहलाते हुए संविधान और संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देते रहते हैं लेकिन जब ये किसी विषय पर विश्लेषण लिखते हैं तो संविधान की पुस्तक को बंद कर उसके ऊपर भारी भरकम कॉफी का मग रख देते हैं।

एक उदाहरण देखिए। स्वनामधन्य न्यूज़ चैनल एनडीटीवी की वेबसाइट पर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के एक दिन बाद ही बिजली की तेज़ी से यह विश्लेषण प्रकाशित किया गया कि मोदी ने अजित डोभाल के ‘पर क़तर दिए।’ डोभाल साहब के पर कतरने का क्या अर्थ है ये हमसे न पूछिए क्योंकि एनडीटीवी ने जब वह लेख प्रकाशित किया तब प्रधानमंत्री की नई कैबिनेट आकार ले ही रही थी, पोर्टफोलियो निर्धारित हो ही रहे थे।

यह ऐसा ही था जैसे स्पार्टा में किसी शिशु ने जन्म लिया हो और किसी ने उसे स्पर्श मात्र कर यह जान लिया कि उस नवजात में स्पार्टा के सैनिकों वाले गुण नहीं हैं। हे बुद्धि बेचकर जीविका कमाने वाले बुद्धिजीवियों! भारत के प्रधानमंत्री की कैबिनेट का निर्धारण स्पार्टा के सैनिकों जैसी प्रक्रिया से नहीं होता। जिस संविधान पर तुमने कॉफी का महंगा मग रखा है उसे खोलकर पढ़ लेते तो पता चल जाता कि अनुच्छेद 75 में यह लिखा है कि राष्ट्रपति उन्हीं को मंत्री बना सकते हैं जिनके नाम का सुझाव प्रधानमंत्री देते हैं।

अर्थात मंत्री बनाने की कोई ‘प्रक्रिया’ नहीं होती जिस पर प्रश्न खड़े किए जाएँ या चर्चा का विषय बनाया जाए। यह पूर्ण रूप से प्रधानमंत्री का अधिकार है कि वे किसको किस रैंक का मंत्री बनाते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि केंद्र सरकार में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं- कैबिनेट, राज्यमंत्री और राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)। इनमें कैबिनेट रैंक के मंत्री शक्तिशाली माने जाते हैं क्योंकि वे कैबिनेट समितियों की बैठकों में भाग ले सकते हैं।

जहाँ तक अजित डोभाल का प्रश्न है वे प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। इससे पहले वे इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ रह चुके हैं और चाहे पाकिस्तान समर्थित जिहादी आतंकवाद हो या उत्तर पूर्वी भारत का उग्रवाद, डोभाल साहब को देश की रणनीतिक सुरक्षा से जुड़े कठिनतम वातावरण में काम करने का अनुभव है। उन्होंने पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद भी देखा है और प्लेन हाईजैक की समस्या से भी दो चार हुए हैं।

वे नरेंद्र मोदी के विश्वस्त सहयोगी हैं। जिस व्यक्ति का पूरा जीवन इंटेलिजेंस जुटाने और संकट से जूझने में गुजरा हो और जिसे कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया हो उसकी योग्यता पर तो प्रश्न चिन्ह लग नहीं सकता। प्रधानमंत्री उन्हें कैबिनेट रैंक का दर्जा दें या न दें यह भी प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है। इस पर भी कोई प्रश्न खड़े नहीं कर सकता। इसलिए बुद्धिजीवी महोदय को ‘त्वरित’ विश्लेषण करने से पहले थोड़ा सोच लेना चाहिए था।

बहरहाल आजकल थिंक टैंकों में लिखने पढ़ने वाले बुद्धिजीवियों की छपास यानी ‘छपने की प्यास’ इतनी तीव्र है कि वे अपनी कलम रोक नहीं पाते। अब ताजा समाचार के अनुसार जब डोभाल साहब को अगले पाँच साल के लिए प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर विस्तार मिल गया है और यही नहीं उन्हें कैबिनेट रैंक का दर्जा भी मिल गया है तब ‘पर कतरने’ वाला विश्लेषण इंटरनेट के किसी कूड़ेदान में जाएगा या पाठक की गालियों में सुशोभित होगा इस पर सम्मानित बुद्धिजीवी जी को विचार करना चाहिए।

दूसरी बात यह है कि किसी व्यक्ति को पद मिलना या न मिलना उतना महत्वपूर्ण नहीं। संस्थान सदैव व्यक्ति से ऊँचा होता है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री रहते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की कार्यप्रणाली में जो परिवर्तन किए उसका विश्लेषण, प्रशंसा, आलोचना और विमर्श किया जाना चाहिए क्योंकि पद कोई भी ग्रहण करे, संस्थान की कार्यक्षमता अधिक महत्वपूर्ण है। अजित डोभाल को कैबिनेट रैंक मिलने से अब वे सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक में भी भाग ले सकेंगे। इससे क्या प्रभाव पड़ना चाहिए विमर्श का मुद्दा यह होना चाहिए, किंतु भारत के बुद्धिजीवी विरले प्राणी हैं जो ग्रहों की चाल का अध्ययन कर यही समझ पाते हैं कि कहीं वे आकाश में टकरा गए तो क्या होगा।

कॉन्ग्रेस ने की एपी अब्दुल्लाकुट्टी से ‘कट्टी’, PM मोदी की तारीफ़ करने के लिए पार्टी से किया बाहर

केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी द्वारा पूर्व सांसद एपी अब्दुलाकुट्टी को एक फेसबुक पोस्ट में गाँधीवादी मूल्यों का पालन करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने पर निष्कासित कर दिया गया।

कन्नूर के पूर्व सांसद ने फेसबुक पोस्ट में लोकसभा चुनाव 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी की भाजपा नीत NDA को मिली भारी जीत की प्रशंसा की थी। ‘नरेंद्र मोदी की शानदार जीत’ शीर्षक से किए गए पोस्ट में, अब्दुल्लाकुट्टी ने कहा कि भाजपा की जीत के लिए मोदी के विकास के एजेंडे की स्वीकृति दी थी।

उन्होंने कहा कि पीएम की सफलता का राज यह था कि उन्होंने गाँधीवादी मूल्यों को अपनाया था। उन्होंने केंद्र के स्वच्छ भारत अभियान का भी स्वागत किया, इसमें भारत के शहरों, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों की सफ़ाई, घरेलू स्वामित्व वाले और सामुदायिक स्वामित्व वाले शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच को ख़त्म करने की परिकल्पना की गई।

कॉन्ग्रेस पार्टी ने पीएम मोदी पर उनकी टिप्पणी के लिए स्पष्टीकरण माँगा था और कहा था कि उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। केपीसीसी अध्यक्ष के मुताबिक़ अब्दुलहकुट्टी का स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं था। इसके बाद भी उन्होंने (अब्दुलहकुट्टी) कॉन्ग्रेस के कुछ नेताओं पर आरोप लगाना जारी रखा।

निष्कासन के जवाब में, एपी अब्दुल्लाकुट्टी ने कहा कि यह दुखद समाचार था और उन्हें केपीसीसी अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन से यही उम्मीद थी। उन्होंने यह भी कहा कि वो अवसरवादी नहीं थे, उन्होंने केवल विकास के मुद्दों पर अपनी बात रखी।


ख़बर के अनुसार, इससे पहले भी अब्दुल्लाकुट्टी को पीएम मोदी की प्रशंसा के लिए एक राजनीतिक पार्टी से निष्कासित किया जा चुका है। इससे पहले वो सीपीआईएम में थे और 2009 में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा के लिए उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था। इसके बाद वो कॉन्ग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे।

कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद के भाजपा में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि कासरगोड ज़िले के मंजेस्वरम निर्वाचन क्षेत्र से आगामी उपचुनाव लड़ने के लिए पार्टी उन्हें टिकट दे सकती है।