Wednesday, November 20, 2024
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पाकिस्तान में हिंसा के लिए मोदी जिम्मेदार: हिरोइन और कॉन्ग्रेसी नेता एंड्रिया डिसूजा

‘कामसूत्र 3डी’, ‘फॉर अडल्ट्स ओनली’ जैसी फिल्मों और पाकिस्तानी सीरियल ‘माती’ में काम कर चुकी ऑल इंडिया प्रोफेशनल्स कॉन्ग्रेस की सदस्य एंड्रिया डिसूजा ने इल्जाम लगाया है कि पाकिस्तान में हुई हिंसा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं।

दरअसल, ट्विटर पर रिया नाम से मौजूद एंड्रिया ने पाकिस्तानी पत्रकार नाएला इनायत के ट्वीट को आधार बनाकर यह लिखा है। दरअसल पाकिस्तान के फुलादियून इलाके में ईशनिंदा के आरोप में एक हिंदू डॉक्टर के हिरासत में लिए जाने से माहौल तनावपूर्ण हो गया है और एंड्रिया का ट्वीट इसी संबंध में है। डॉक्टर पर कुरान जलाने का आरोप है, जिसके कारण भीड़ हिंदू इलाकों में जाकर उनकी दुकानों में आग लगा रही है।

एंड्रिया का मानना है कि इस घटना के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं। अपने ट्विटर पर उन्होंने प्रधानमंत्री से जवाब माँगा कि क्या यही उनका ‘सबका साथ और सबका विकास है’, जिसका उन्होंने वादा किया था। अपने ट्वीट में एंड्रिया उर्फ़ रिया ने मोदी को देश का प्रधानमंत्री चुनने पर इंडिया को ‘गुड लक’ भी कहा है। लेकिन, यहाँ सोचने वाली बात यह है कि जिस घटना के लिए रिया अपने ट्विटर पर नरेंद्र मोदी के प्रति इतनी नाराज़गी दिखा रही हैं, वो वास्तविकता में भारत का मामला है ही नहीं।

अब इस कारण ट्विटर यूजर्स उनकी जमकर ख़िंचाईं कर रहे हैं। कोई उन्हें धन्यवाद कर रहा है कि वो कम से कम ये तो मान चुकी हैं कि पाकिस्तान भारत का हिस्सा है।

तो, कोई यह कह रहा है कि मोदी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं हैं लेकिन कुछ साल बाद ऐसा मुमकिन हो सकता है। कुछ लोग उन्हें दो अलग-अलग देशों में फर्क बताने की जद्दोजहद में हैं। जबकि कुछ उनके शब्दों का मजाक उड़ा रहे हैं।

वागले, फ़र्ज़ी ज्ञान और प्रपंच पर मिल रही गालियों का सम्मान कर और ट्विटर से भाग ले

निखिल वागले की ट्विटर आईडी पर उनकी न जाने कबकी (आत्म?)मुग्ध सी फोटो लगी है, जबकि उनकी आज की सच्चाई से वह कतई मेल नहीं खाती- और सच्चाई के धरातल से यही विसंगति उनके प्रोपोगेंडाकार के तौर पर व्यवहार और कथन में भी झलकती है। वह पत्रकारिता के समुदाय विशेष का हिस्सा हैं जिसने अंदर से तो दीवार पर लिखी इबारत पढ़ ली थी कि अब मोदी का समय आ गया है (और हिन्दुओं को बिलावजह गरियाने और हर कदम पर ‘गिल्टी’ महसूस कराने का समय जा चुका है) लेकिन गरिया इतना ज्यादा चुके थे कि अब सुर बदल लेना (जो बहुत सारों ने किया भी; कुछ ने 2013-14 में कर लिया, बरखा दत्त जैसे कुछ और अब कर रहे हैं) सम्भव नहीं। तो, उन्होंने अपने आपको मोदी को दूसरा कार्यकाल न मिलने के प्रबंध में झोंक दिया- और उनकी ट्विटर वॉल इस मेहनत की गवाह है।

लेकिन मेहनत रंग नहीं लाई और मोदी वापिस आ गया छाती पर मूँग दलने 5 और साल। तो अब उनकी मानसिक हालत भी उनकी ट्विटर प्रोफाइल पिक्चर जैसी ही है। दुश्चिंताओं (फर्जी लिबरलों के लिए) से भरे वर्तमान की बजाय शायद वह ‘सुनहरे’ भूतकाल में रहना पसंद कर रहे हैं- जहाँ वह भी लिबरलों के आदर्श नेता राजीव गाँधी जैसे ‘डैशिंग युवा’ थे, बागों में बहार थी, और यह लोग जो कुछ कह देते थे, जनता सर-आँखों पर बिना सोचे-समझे रख लेती थी। और उसी मानसिक हालत में यह ट्वीट आया है कि मोदी को ‘केवल’ 38% वोट मिला है, राजग को ‘केवल’ 45%- यानि 55% लोगों ने मोदी को नकार दिया है (और मोदी को चाहिए कि ‘जनादेश का सम्मान करते हुए’ प्रधानमंत्री की कुर्सी पर न बैठें!)

‘धंधेबाज’ पत्रकारिता के ‘गोल्डन डेज़’ में उनके इस आकलन का सच में बड़ा महत्व होता- और पढ़कर शायद एक आम आदमी सही में सोचने लगता कि नहीं भाई, प्रधानमंत्री बहुत गलत कर रहा है, जब देश के 55% लोग उसे नहीं चाहते तो वो क्यों जबरदस्ती लोगों के सर पर सवार हो रहा है। पर वागले जी के दुर्भाग्य से वह (अ)सत्ययुग बीत चुका है- आज का आम आदमी उनकी अगर एक सुनता है, तो दिमाग में उसकी चार काट सोचता है, और ऑटो में बैठकर मेट्रो स्टेशन से ऑफिस जाते-जाते उन्हें आठ सुना भी देता है, और बेचारे वागले जी दोबारा अपनी ट्विटर प्रोफाइल पिक्चर वाले दिनों में लौट जाते हैं।

ट्वीट और सच्चाई- कोसों दूर

निखिल वागले का ट्वीट सही तथ्य की फेक न्यूज़ वाली पत्रकारिता के समुदाय विशेष की प्रवृत्ति का एक और उदाहरण है। यह सच है कि मोदी को 38% (ज्यादा-से-ज्यादा एनडीए का 45%) मत प्रतिशत मिला है, लेकिन उतना ही सच यह भी है कि इससे उनके शासन के अधिकार को कानूनी तो दूर, नैतिक चुनौती भी नहीं मिल सकती। क्यों? क्योंकि अगर इसी तर्क की कसौटी पर राहुल गाँधी (विपक्ष के अन्य किसी भी नेता) को कैसा जाए तो वह न केवल खरा नहीं उतरेगा, बल्कि उस बेचारे की तो कमर ही ध्वस्त हो जाएगी। राहुल गाँधी को मिले हैं 19.5% वोट, औरों के और भी कम हैं- तो प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए, निखिल वागले के तर्क के अनुसार?

एक और बात, निखिल वागले यह भी नहीं बताते कि उनका तर्क निर्वाचन प्रक्रिया पर लागू ही नहीं होता। यह तर्क जनमत संग्रह के लिए होता है, जहाँ केवल दो विकल्प होते हैं- हाँ या न। जैसे ब्रिटेन में तीन साल पहले ‘ब्रेग्ज़िट’ जनमत संग्रह हुआ था- उसमें दो ही विकल्प थे, “हाँ” यानि ब्रिटेन को यूरोपियन संघ छोड़ देना चाहिए या फिर “ना” यानि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ में बने रहना चाहिए। इसके उलट हमारे देश की सामान्य लोकतान्त्रिक निर्वाचन प्रक्रिया में विकल्पों का अभाव नहीं होता- लोग जिसे मर्जी आए वोट दे देते हैं, और जिस पार्टी को लोकसभा क्षेत्रवार सर्वाधिक मतदान मिलता है, उसके प्रतिनिधि संसद पहुँचते हैं और अपने में से किसी एक को प्रधानमंत्री चुन लेते हैं। यहाँ सकारात्मक वोटिंग गिनी जाती है, नकारात्मक नहीं, और वह भी लोकसभा क्षेत्रवार तरीके से, देश का कुल जोड़ एक साथ लेकर नहीं।

अगर किसी नए ‘रंगरूट’ ने यही तर्क दिया होता तो एक बारगी यह सोचकर नज़रअंदाज़ किया जा सकता था कि वह नया है, जानकारी नहीं है। लेकिन इसी ‘धंधे’ में पक कर पक्के हुए निखिल वागले के द्वारा यह अनभिज्ञता नहीं, कुटिलता है, क्योंकि अगर इतने साल बाद भी वह ‘अनभिज्ञ’ हैं निर्वाचन और जनमत-संग्रह के अंतर से, तो वह इतने साल से कर क्या रहे थे?

सोशल मीडिया पर भी फजीहत

इस वाहियात किस्म के प्रपोगंडे को लेकर सोशल मीडिया पर भी निखिल वागले की खूब फजीहत हो रही है। थिंक टैंक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष अध्यक्ष समीर शरण और स्तंभकार प्रदीप सिंह ने उन्हें देश का राजनीतिक इतिहास और निर्वाचन प्रणाली सीखने की सलाह दी।

MyNation के स्तंभकार और बंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के प्राध्यापक अभिषेक बनर्जी ने उनके नवनिर्वाचित भाजपा सांसद से बात करते-करते आपा खो देने पर भी उन्हें आड़े हाथों लिया। इस बहस में जब उन्होंने भाजपाईयों को गुंडा और नफरत फ़ैलाने वाला बताने की कोशिश की थी तो भाजपा सांसद ने उन्हें आईना दिखाते हुए पहले अपना ज्ञान पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को देने की सलाह दी थी। साथ ही तेजस्वी सूर्या ने उन्हें यह भी याद दिलाया था कि ट्विटर पर कैसे निखिल वागले अक्सर भाजपाईयों के खिलाफ होने वाली हिंसा के पक्ष में बहाने बनाते दिख जाते हैं। इस पर भी निखिल वागले जवाब देने की जगह खुद से पलट कर सवाल पूछे जाने को लेकर ही किंकर्तव्यविमूढ़ दिखे।

प्रोपोगेंडा बंद कर ढंग की पत्रकारिता की दुकान खोलें वागले, मार्केट में बड़ा स्कोप है

वागले को अपने ही ट्वीट के नीचे आई प्रतिक्रिया का ‘सम्मान’ करते हुए ट्विटर से संन्यास ले लेना चाहिए क्योंकि वहाँ उनको इस ज्ञान के लिए गालियाँ ज़्यादा पड़ रही हैं। मेजोरिटी और संख्या से जब इतना प्रेम है तो अपने ही कुतर्कों के अनुसार उन्हें जल्द ही ट्विटर छोड़कर अपना प्रलाप करने के लिए नई जगह ढूँढनी चाहिए।

खुद से सोचने-समझने की क्षमता रखने वाली जनता को बरगलाया नहीं जा सकता, उसके साथ प्रपोगंडा नहीं चल सकता। वह वागले के दुराग्रहों को तथ्य मानकर आँख बंद कर नहीं स्वीकार लेगी। लेकिन इसी मार्केट में असल पत्रकारिता का बहुत ‘स्कोप’ है- लेकिन पुरानी प्रोफाइल पिक्चर वाले, पुरानी पत्रकारिता वाले ‘वो भी क्या दिन थे!’ से बाहर आना पड़ेगा। निखिल वागले एन्ड फ्रेंड्स ध्यान देंगे?

अल्पेश ठाकोर का दावा- 15 कॉन्ग्रेस विधायक छोड़ेंगे पार्टी, कॉन्ग्रेसी नेताओं के दिमाग में ‘कैमिकल लोचा’

लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के बाद देश के विपक्षी राजनीतिक दलों में अब उथल-पुथल का दौर चल पड़ा है। इस बीच, गुजरात में प्रमुख ओबीसी नेता के तौर पर उभरकर सामने आए अल्पेश ठाकोर ने 15 विधायकों द्वारा कॉन्ग्रेस को छोड़ने की बात कही है। उनका कहना है कि सभी विधायक पार्टी से तंग आ चुके हैं और पार्टी छोड़ रहे हैं।

ठाकोर ने कहा, “यह हमारा फैसला था और मेरी अंतरात्मा की आवाज थी कि हम यहाँ (कॉन्ग्रेस में) नहीं रहना चाहते। हम सरकार की मदद से अपने लोगों और गरीबों के लिए काम करना चाहते हैं। इंतजार कीजिए और देखिए, 15 से ज्यादा विधायक कॉन्ग्रेस छोड़ रहे हैं, सभी तंग आ चुके हैं। आधे से ज्यादा विधायक परेशान हैं।” उन्होंने आगे कहा, “मेरे लोग गरीब और पिछड़े हैं। उन्हें सरकार के समर्थन की जरूरत है। मैं परेशान था कि मैं अपने लोगों को वो नहीं दे सका, जिसका मैंने इरादा किया था। मेरे संगठन की राय है कि जहाँ हमारा सम्मान नहीं होता वहाँ हमें नहीं होना चाहिए।”

बता दें कि, अल्पेश ठाकुर ने गुजरात विधानसभा 2017 से पहले कॉन्ग्रेस पार्टी ज्वाइन किया था और पिछले महीने लोकसभा चुनाव से पहले ये कहते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया था कि पार्टी के अंदर उनके समुदाय को अपमान का सामना करना पड़ रहा है। कॉन्ग्रेस के पास लोग नहीं है, पार्टी चेला-चपाटा से भरी हुई है। ठाकोर ने मंगलवार (मई 28, 2019) को समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा कि जो कॉन्ग्रेस नेता बार-बार ये बोल रहे हैं कि स्कैम हुआ है, उनके दिमाग में ‘कैमिकल लोचा’ है। उन्होंने कहा, “कॉन्ग्रेस इस बात को समझने में विफल रही कि वास्तव में लोग क्या चाहते हैं। वह सिर्फ ये नारा लगाते रहे- ‘घोटाला हुआ, घोटाला हुआ’। कोई घोटाला नहीं था, उनके दिमाग में घोटाला था, उनके दिमाग में कैमिकल लोचा था।”

अल्पेश ठाकोर ने सोमवार (मई 27, 2019) को गुजरात के डिप्टी सीएम नितिन पटेल से मुलाकात की थी। उस मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि वो भाजपा में शामिल हो सकते हैं। मगर अल्पेश ने भाजपा में शामिल होने की खबरों को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि वो एक विधायक हैं और वो अपने क्षेत्र से जुड़े कामों को लेकर कई नितिन पटेल से मुलाकात की थी। उनका भाजपा में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है।

कॉन्ग्रेस समर्थक दे रहे रुबिका लियाकत को गैंगरेप की धमकियाँ, तस्वीरों पर भद्दी टिप्पणी की बौछार

सोशल मीडिया पर यदि कथित बुद्धिजीवियों के अनुसार कोई ना चले तो उसे किस प्रकार घृणा का सामना करना पड़ सकता है, इसका उदाहरण हम पिछले कुछ सालों में देखते आए हैं। इस घृणा का सबसे ताजा शिकार बनी हैं ABP न्यूज़ चैनल की जर्नलिस्ट रुबिका लियाकत।

ट्विटर पर कुछ लोगों द्वारा रुबिका को सिर्फ इस वजह से अश्लील और बेहद भद्दी गालियाँ दी जा रही हैं क्योंकि वो उनकी विचारधारा से सहमत नहीं नजर आती हैं। टीवी जर्नलिस्ट रुबिका की एक तस्वीर को उनके विरोधियों द्वारा शेयर किया जा रहा है, जिसमें वो ‘आज तक’ के एंकर निशांत चतुर्वेदी के साथ हैं। रुबिका को इस तस्वीर द्वारा ट्रोल और अपमानित करने का प्रयास कर रहे अज़ीज़ मेवाती का कहना है कि रुबिका को उन्हें इस्लाम सिखाने की जरूरत नहीं है।

इस तस्वीर को भद्दी गालियों के साथ शेयर होता देखकर रुबिका लियाकत ने कॉन्ग्रेस समर्थकों को जवाब देते हुए ट्वीट में लिखा है, “सही तो ये होगा कि तुम्हारी माँ-बहन के सामने आकर तुम्हें इस्लाम का सही अर्थ समझाऊँ। ये हिंदुस्तान है तालीबान नहीं मेवाती। नफ़रत में इतने अंधे हो गए हैं आपके समर्थक @INCIndia कि मेरे भाई के साथ मेरी तस्वीर बेहूदगी के साथ शेयर कर रहे हैं।”

इसके बाद निशांत चतुर्वेदी ने भी अपने ट्विटर हैंडल से यह तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि रुबिका उनकी बहन हैं और यह तस्वीर रक्षाबंधन के दिन ली गई थी।

रुबिका को इस्लाम की शिक्षा देने वालों से भी ऊपर कुछ ऐसे नाम हैं जिनके ट्विटर हैंडल से पता चलता है कि राहुल गाँधी उनके प्रधानमंत्री हैं। महिला सशक्तिकरण को एक जुमला बनाने वाली इस पार्टी के समर्थक रुबिका लियाकत को गैंगरेप की धमकी देते हुए देखे जा सकते हैं। अपने ट्वीट में निधि तलवार नाम की इस यूज़र ने लिखा है कि रुबिका लियाकत का गैंगरेप भी हो जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि उसने मोदी हित को तरजीह दी है। साथी ही यह भी लिखा है कि 23 मई के जश्न को उन्होंने अपने इन विचारों के साथ फीका कर दिया है।


निधि तलवार नाम की इस यूज़र ने कुछ अन्य ट्वीट में अपने विचार रखते हुए लिखा है कि भाजपा से हिन्दू वोट हथियाने का तरीका यही है कि अपर कास्ट और लोअर कास्ट के बीच दरार पैदा की जाए।

विरोध के बाद अजीज मेवाती और निधि ने यह ट्वीट डिलीट कर दिया, लेकिन बाकी कई लोग इस तस्वीर को शेयर कर रहे हैं।

नेहरू-राजीव की तरह करिश्माई नेता हैं PM मोदी, शपथग्रहण में जाऊँगा: रजनीकांत

तमिल सिनेमा के सुपरस्टार रजनीकांत ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है और वे कार्यक्रम में सम्मिलित भी होंगे। प्रधानमंत्री के शपथग्रहण समारोह का समय गुरुवार (मई 30, 2019) को शाम 7 बजे रखा गया है। रजनीकांत ने बड़ा बयान देते हुए नरेन्द्र मोदी को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गाँधी से उनकी तुलना की है। सुपरस्टार ने कहा कि पीएम मोदी भी नेहरू और राजीव की तरह की करिश्माई नेता हैं। रजनीकांत का यह बयान इसीलिए भी अहम है क्योंकि भाजपा अब बंगाल और ओडिशा के बाद दक्षिण भारतीय राज्यों में अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराना चाह रही है।

प्रधानमंत्री मोदी के शपथग्रहण समारोह के लिए तमिल सिनेमा के दोनों वरिष्ठ अभिनेताओं, रजनीकांत और कमल हासन को निमंत्रण भेजा गया है। कमल हासन ने अभी तक साफ़ नहीं किया है कि वे इसमें सम्मिलित होंगे या नहीं। हाल ही में गोडसे को हिन्दू आतंकवादी बता कर विवादों में फँसे कमल हासन पर इसके लिए केस भी दर्ज हुआ है। रजनीकांत ने कहा कि यह जीत मोदी की जीत है और वह एक करिश्माई नेता हैं। इस दौरान रजनीकांत ने कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी की भी बात की। कॉन्ग्रेस के ताज़ा नेतृत्व संकट पर उन्होंने कहा कि राहुल गाँधी को पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं देना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में विपक्ष भी मज़बूत होना चाहिए।

रजनीकांत भी राजनीति में आ गए हैं लेकिन उन्होंने या उनकी पार्टी ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है। 68 वर्षीय रजनीकांत ने अभी तक खुल कर अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन वो अक्सर मोदी की तारीफ़ करते हैं। भाजपा की जीत के बाद उन्होंने मोदी को बधाई दी थी, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने भी उन्हें धन्यवाद कहा था। चुनाव से पहले रजनीकांत ने कहा था कि मोदी उनके ख़िलाफ़ लड़ रहे लोगों पर भारी हैं। बता दें कि 2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने रजनीकांत के आवास पर जाकर उनसे मुलाक़ात की थी।

द न्यूज़ मिनट‘ ने डीएमके के सूत्रों के हवाले से ख़बर प्रकाशित की है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में स्टालिन को आमंत्रण नहीं भेजा गया है। वेबसाइट ने लिखा है कि रजनीकांत ने अटल बिहारी वाजपेयी की भी तारीफ की और कहा कि तमिलनाडु में भी कामराज, जयललिता, एमजीआर और करूणानिधि जैसे करिश्माई नेता हुए हैं।

अगर सिनेमा की बात करें तो पिछले वर्ष रजनीकांत की 2 फ़िल्मों ‘2.0’ और ‘काला’ ने मिलकर 1000 करोड़ रुपए से भी अधिक की कमाई की है। हालाँकि, इससे पहले उनकी कुछ फ़िल्में नहीं चली थी लेकिन उन्होंने शानदार वापसी करते हुए संकेत दिया कि तमिल सिनेमा में अब भी वो वही ताक़त रखते हैं। उनकी ताज़ा फ़िल्म ‘पेट्टा’ अजीत कुमार की बड़ी फ़िल्म ‘विश्वासम’ से टकराने के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर 200 करोड़ रुपए का आँकड़ा पार करने में कामयाब रही। चर्चा है कि अपनी अगली फ़िल्म ‘दरबार’ के बाद रजनी सिनेमा इंडस्ट्री में सक्रियता कम कर के पूर्ण रूप से राजनीति पर ध्यान दे सकते हैं।

बंगाल में खिलता कमल: 3 MLA और 50 पार्षद दिल्ली आकर भाजपा में हुए शामिल

17वीं लोकसभा के नतीजों के बाद भी भाजपा ने ममता बनर्जी को झटके देना बंद नहीं किया है। ताजा खबर के अनुसार तृणमूल कॉन्ग्रेस के दो विधायक और 50 स्थानीय पार्षद भाजपा में शामिल हो गए हैं। इसके अलावा माकपा के विधायक देबेन्द्रनाथ रॉय भी भाजपा में शामिल हुए हैं। इन सभी ने बंगाल भाजपा के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की उपस्थिति में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता दिल्ली के अशोक रोड स्थित पार्टी मुख्यालय में ग्रहण की।

और भी आएँगे: कैलाश विजयवर्गीय

कैलाश विजयवर्गीय ने पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि बंगाल के तीन विधायक और 50-60 पार्षद भाजपा का साथ आज थामेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि आगे और भी लोगों के भाजपा में शामिल होने की उम्मीद है। कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा, “जैसे सात चरणों में लोकसभा का निर्वाचन हुआ, वैसे ही (दूसरी पार्टियों के नेताओं का) भाजपा में शामिल होना भी सात चरणों में होगा। आज तो केवल पहला चरण था।”

आज ही कंचरापाड़ा से तृणमूल के 16 पार्षदों ने ऑल इंडिया तृणमूल कॉन्ग्रेस काउंसिलर पार्टी की सदस्यता छोड़ दी थी। तभी से कयासों में तेजी बढ़ गई थी। इसके अलावा लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक रैली के दौरान दिया गया बयान याद आ रहा था जिसमें उन्होंने दावा किया था कि 40 तृणमूल विधायक पार्टी छोड़ना चाहते हैं और उनके संपर्क में हैं। उसके बाद हालिया लोकसभा के निर्वाचन में भाजपा ने तृणमूल के गढ़ में सेंध लगाते हुए 18 सीटों पर जीत दर्ज की और 2014 में 39 में से 34 सीटें जीतने वाली ममता बनर्जी की पार्टी को मात्र 22 सीटों से संतोष करना पड़ा।

गर्लफ्रेंड के लिए MBA का पेपर लीक करवाने पर बसपा नेता फिरोज़ आलम गिरफ्तार

फिरोज़ आलम अलियास उर्फ़ राजा, जो कल तक अपनी एसयूवी की नेमप्लेट पर बसपा का नाम लिखकर आधा दर्जन लड़कों को लेकर घूमता था, उसे सोमवार (मई 27, 2019) को एमबीए का पेपर लीक करने के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया है।

अलियास ने माना है कि वो अपनी गर्लफ्रेंड की मदद करना चाहता था, जो कि एमबीए कर रही थी। इसके लिए उसने एएमयू के कर्मचारी इरशाद की सहायता ली। अलियास ने इरशाद से वादा किया कि वो उसकी विश्वविद्यालय में पक्की नौकरी लगवाएगा। राजा ने पुलिस को बताया है कि उसने अपनी गर्लफ्रेंड से वादा किया था कि वो उसके लिए परीक्षा पत्र जरूर लाकर देगा।

राजा ने बताया कि अपने दोस्त की नसीहत पर उसने अपनी गर्लफ्रेंड को पहले जाली उत्तर-पुस्तिका दे दी थी। जब लड़की को इसका एहसास हुआ, तो उसने अलियास से बात करना बंद कर दिया। इसके बाद नाराज़ गर्लफ्रेंड को मनाने के लिए अलियास और उसके दोस्त हैदर ने इरशाद को इस काम के लिए राजी किया। पूरे मामले का खुलासा होने के बाद हैदर और इरशाद, फिरोज के साथ जेल में हैं, जबकि लड़की अब भी फरार है।

इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक एसएसपी आकाश ने बताया है कि हैदर के फ्लैट को भी सील कर दिया गया है। क्योंकि इस फ्लैट को मीटिंग प्वॉइंट की तरह इस्तेमाल किया गया। ये फ्लैट हैदर के चाचा तहसीम सिद्दकी का है, जो समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबी कहे जाते हैं। ये आरोपित लीक हुए पेपर को ₹2,000 प्रति व्यक्ति बेचने की प्लानिंग कर रहे थे। इसके लिए इन सभी ने व्हाट्सअप ग्रुप भी बना लिया था।

देश के विकास के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून जरूरी, रामदेव को मिला गिरिराज सिंह का समर्थन

बीजेपी नेता और बिहार के बेगूसराय से सांसद गिरिराज सिंह ने जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर योग गुरु बाबा रामदेव का समर्थन किया है। गिरिराज सिंह ने जनसंख्या नियंत्रण पर सख्ती पर सहमति जताते हुए कहा कि बढ़ती जनसंख्या विकास में बाधक है। गिरिराज ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बाबा रामदेव के दिए बयान को हमें सकारात्मक तरीके से लेना होगा। उन्होंने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कानून जरूरी है, ताकि देश का विकास किया जा सके।

गौरतलब है कि बाबा रामदेव ने हरिद्वार में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि देश जनसंख्या विस्फोट की स्थिति से निपटने के लिए तैयार नहीं है और अब कानून के जरिए ही आबादी पर लगाम लगाई जा सकेगी। देश की आबादी को 150 करोड़ से अधिक नहीं होने दिया जाना चाहिए। रामदेव ने दो बच्चों की नीति का समर्थन करते हुए कहा था कि तीसरी संतान को वोट डालने समेत अन्य सरकारी अधिकार नहीं मिलने चाहिए। ऐसे बच्चे चाहे किसी भी जाति के हों, उनके चुनाव लड़ने और सरकारी नौकरियों के हक से भी वंचित किया जाना चाहिए। इसके अलावा दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले लोगों को सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में भी प्रवेश न दिया जाए। इससे देश में जनसंख्या वृद्धि अपने आप नियंत्रित हो जाएगी।

गौरतलब है कि इससे पहले रामदेव के इस बयान पर असदुद्दीन ओवैसी ने तंज कसते हुए कहा था, “लोगों को असंवैधानिक बातें कहने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है, लेकिन रामदेव की बातों पर बेकार में ध्यान क्यों दिया जाता है? वह अपने पेट के साथ कुछ कर सकते हैं या अपने पैरों को घुमा सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि नरेंद्र मोदी अपना वोट देने का अधिकार सिर्फ इसलिए खो दें, क्योंकि वह तीसरी संतान हैं।” ओवैसी के इस बयान पर गिरिराज ने कहा, “ओवैसी की राजनीति नफ़रत की है और वो केवल नफ़रत फैलाते हैं, जबकि हम विकास की बातें कर रहे हैं तो इसमें भी उन्हें नफरत ही दिखती है।”

‘बालाकोट एयर स्ट्राइक पर प्रोपेगेंडा करना होता तो और भी भारी-भरकम हथियार गिराते’

बालाकोट पर एयर स्ट्राइक के बाद बहुत लोगों ने सेना और सरकार पर सवाल उठाए थे। अब इन्हीं सवालों का जवाब देते हुए एयर चीफ़ मार्शल बीएस धनोआ ने बयान दिया है। दरअसल, इंडिया टुडे से हुई बातचीत में एयर चीफ़ मार्शल बीएस धनोआ ने स्पष्ट किया है कि बालाकोट एयरस्ट्राइक को प्रोपेगेंडा की तरह इस्तेमाल करने की कोई मंशा नहीं थी, यही कारण है कि बॉर्डर के पार हवाई रेड के दौरान ज्यादा प्रबल हथियारों का प्रयोग नहीं किया गया।

एयर चीफ़ मार्शल बीएस धनोआ कहते हैं कि अगर इस स्ट्राइक को उन्हें प्रोपेगेंडा की तरह इस्तेमाल करना होता तो वे अधिक क्षमता वाले हथियारों का प्रयोग करते ताकि ज्यादा बड़े भूभाग को नष्ट किया जा सके लेकिन वो अतिरिक्त क्षति नहीं पहुँचाना चाहते थे। और इसी को देखते हुए बालाकोट हमले के लिए विशेष हथियारों (प्रीसिजन बेस्ड) का चुनाव किया गया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कि उनका मकसद आतंकवादी कैंपों को निशाना बनाना था।

एयरचीफ ने 1999 के कारगिल युद्ध से सीखे सबक, बालाकोट के बाद का आकलन, विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान के वापसी के आसारों पर भी बात की। एयर चीफ मार्शल ने एयर मार्शल आर नांबियार, पश्चिमी वायु कमान के प्रमुख और लेफ्टिनेंट जनरल वाई के जोशी के साथ ‘Missing Man formation’ की उड़ान के बाद इस बातचीत में 20 साल पहले कारगिल युद्ध में मारे गए सैनिकों को भी याद किया। एयर चीफ धनोआ ने उन बाधाओं (limitations) के बारे में भी बात की, जिन पर कारगिल युद्ध के बाद काबू पाया गया।

उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान वो छोटे-छोटे लक्ष्य भी उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती होते थे, लेकिन ये सब अब बदल गया है। उन्होंने बताया कि उस समय मिराज (लड़ाकू विमान) को ही छोटे लक्ष्यों के लिए इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन अब सभी (वायु सेना के जेट) का प्रयोग किया जाता है।

बालाकोट स्ट्राइक पर एयरचीफ कहते हैं कि जब आप अपने देश की रक्षा करते हैं तो हताहतों की संख्या की कोई गारंटी नहीं होती है। अभिनंदन के आगे के भविष्य के बारे में धनोआ ने बताया कि निश्चित ही उन्हें विमान चलाने की अनुमति दी जाएगी लेकिन डाक्टरों की अनुमति के बाद ही ऐसा मुमकिन है।

गुरुग्राम: न मुस्लिम की टोपी उछली, न ‘जय श्री राम’, कुछ घटिया लोगों ने दिया मज़हबी रंग

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न सिर्फ़ एक कुशल प्रशासक बल्कि एक अनुभवी सफल और दक्ष राजनीतिज्ञ भी हैं। पीएम जब जनता के लिए बोल रहे होते हैं, चुनावी भाषण दे रहे होते हैं या किसी जनसभा अथवा रोड शो को संबोधित कर रहे होते हैं, तब उनका टोन अलग होता है। वहीं अगर वह रेडियो के माध्यम से मन की बात कर रहे होते हैं, टीवी के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित कर रहे होते हैं, तो उनका अंदाज़ अलग होता है। दूसरी तरफ़ भाजपा के वे सांसद हैं, जिन्होंने पीएम मोदी की ‘आदर्श ग्राम योजना’ का कचरा कर दिया। कई सांसदों ने इस ऐसी योजना को सड़क पर ला दिया, जिससे देश की सूरत बदल सकती थी। अव्वल तो यह कि वीआईपी कल्चर ख़त्म करने के लिए मोदी ने लाल बत्ती पर लगाम लगाई, जिसके बाद इसका प्रयोग बंद हुआ।

सांसदों को पीएम की महत्वपूर्ण सलाह

सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये सांसद पीएम का अनुकरण तो दूर, उनकी बातों तक पर ध्यान नहीं देते। आज के दौर में जब मीडिया के एक बड़े भाग का उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रोपगंडा फैलाना जानता है, विवादित बयान देने एवं ख़ासकर भाजपा नेताओं के सेलेक्टिव बयानों के सहारे भारत की एक ख़ास किस्म की छवि का निर्माण करना चाहता है, पीएम ने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने से पहले संसद में राजग के नव निर्वाचित सांसदों को संबोधित करते हुए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इसमें सबसे चर्चित उनका ‘छपास और दिखास’ वाला बयान रहा। हालाँकि, यह नया नहीं है।

जैसा कि ख़ुद नरेन्द्र मोदी ने कहा, ये चीजें भाजपा के अन्दर वाजपेयी काल से चली आ रही है। मोदी ने बताया कि जब वे लोग नए-नए आए थे, तब भाजपा के पितामह अटल बिहारी वाजपेयी ने उन सभी को एक महत्वपूर्ण सलाह दी थी। उस दौरान अटल-आडवाणी ने नेताओं को सलाह देते हुए कहा था कि वे ‘छपास और दिखास’ से बचें। इसका अर्थ हुआ कि अखबार में छपने और टीवी पर दिखने से बचें। मोदी ने अटल-आडवाणी की इसी सलाह को आगे बढ़ाया। 5 वर्षों में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस न कर के लुटियंस गैंग को परेशान करने वाले मोदी ने चुनाव परिणाम आने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस तो की लेकिन एक भी सवाल का जवाब न देकर ‘खान मार्किट’ के लोगों को उन्हीं के बीच आकर ट्रोल किया।

बिना लुटियंस के डिज़ाइनर पत्रकारों के बीच गए और बिना प्रेस कॉन्फ्रेंस किए मोदी ने जनता से सीधे जुड़े रहने के कई तरीके विकसित किए हैं और उनका उन्हें फायदा भी मिला। पीएम मोदी की सलाह की बात हम इसीलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके द्वारा उपर्युक्त सलाह दिए अभी एक सप्ताह भी नहीं हुए हैं, तब भी उसके भीतर भाजपा सांसद फँसने लगे हैं। इसकी शुरुआत क्रिकेट सेलेब्रिटी से नेता बने गौतम गंभीर ने की। गौतम गंभीर भारत के अव्वल सलामी बल्लेबाजों में से एक रहे हैं और हो सकता है कि सेलेब्रिटी होने के कारण ‘छपास और दिखास’ से उनका ख़ास लगाव हो। गंभीर के इस लगाव और नए विवाद की चर्चा करेंगे, लेकिन उससे पहले गुरुग्राम की उस घटना को समझते हैं, जिसके कारण यह सारा विवाद शुरू हुआ।

गुरुग्राम की घटना और ‘भेड़िया आया’ वाली कहानी

गुरुग्राम में एक युवक ने कुछ दावा किया। ध्यान दीजिए, दावा किया। वह युवक मुस्लिम है। उसका नाम है- बरकत अली। बरकत अली ने शिकायत दर्ज कराई कि उसे कुछ लोगों ने ‘जय श्री राम’ बोलने को मजबूर किया और ऐसा न करने पर उसके साथ मारपीट की गई। इतना ही नहीं, उनके द्वारा पहने गए इस्लामी स्कल कैप को हवा में उछल कर फेंक दिया गया। उसनें आरोप लगाया कि आरोपितों ने उसकी शर्ट भी फाड़ दी। पुलिस ने तत्काल एक्शन लिया और इस मामले में 15 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और 50 से भी अधिक सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए, इसके बाद जो सामने आया वह चौंकाने वाला था। इसमें क्या आया, उससे पहले जानिए कि इस बीच क्या सब हुआ?

आजकल के डिज़ाइनर पत्रकारों को ऐसी ख़बरों को सांप्रदायिक रंग देने में आता है, जो सामान्य आपराधिक घटनाएँ होती हैं। चोरी-चकारी, आपसी विवाद और लूट तक की घटनाओं को सांप्रदायिक रंग देने वाला मीडिया यह भूल रहा है कि इस चक्कर में ऐसी कई घटनाएँ मुख्यधारा का हिस्सा बन ही नहीं पातीं, जो असल में सांप्रदायिक होती है। जहाँ सम्प्रदाय, जाति और धर्म का कोई मामला ही नहीं हो वहाँ इसे जबरन जोड़ा जा रहा है, वहीं जहाँ सच में सांप्रदायिक वारदातें हो रही हैं, उसे छिपा दिया जा रहा है।

गौतम का बिना सोचे-समझे दिया गया गंभीर रिएक्शन

इस ट्रेंड की ख़ासियत यह है कि ध्रुव त्यागी की हत्या कर के मस्जिद भागने वाले आरोपित को लेकर तो कुछ नहीं कहा जाता लेकिन गुरुग्राम जैसी घटनाओं पर खुल कर बोला जाता है। गुरुग्राम की घटना में तमाम छानबीन का बाद पुलिस को जो पता चला, उसकी चर्चा करने से पहले जानते हैं कि इस बीच क्या सब हुआ? इस दौरान गौतम गंभीर ने 2 ट्वीट किए। इसमें उन्होंने भारत के सहिष्णु और धर्मनिरपेक्ष होने की दुहाई देते हुए ‘गुरुग्राम जैसी घटनाओं’ की निंदा करने की बात कही। गौतम को ये घटना अमेठी में भाजपा कार्यकर्ता की हत्या से भी ज्यादा गंभीर लगी। संसद में पीएम के ‘छपास और दिखास’ वाली सलाह को भूल चुके गंभीर ने अपने बयान को सही ठहराने के लिए मोदी के ही ‘सबका साथ-सबका विकास’ वाले मन्त्र की दुहाई भी दी।

गौतम की इस गंभीर ग़लती पर लोगों ने उन्हें घेरा। अभी-अभी ईस्ट दिल्ली सीट से कॉन्ग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली और आम आदमी पार्टी की आतिशी को हरा कर संसद पहुँचे गंभीर से लोगों ने पूछा कि क्या जिस मामले पर वह कमेन्ट कर रहे हैं, उसकी तह तक वो गए हैं? क्योंकि, आज की मीडिया जिस तरह से ऐसे मामलों को रिपोर्ट करती है, बिना उसकी तह तक गए या उसके बारे में अतिरिक्त जानकारियाँ जुटाए, उसपर कमेन्ट कर देना लापरवाही नहीं है? ये मामला तब और गंभीर हो जाता है जब इसमें गौतम जैसे बड़े सेलेब्स फँस जाते हैं। गंभीर मीडिया के उसी जंजाल में फँसे, जिसे लेकर उन्हें व अन्य सांसदों को प्रधानमंत्री मोदी ने आगाह किया था। वो ख़ूब छपे, ख़ूब दिखे और सोशल मीडिया पर भी ख़ूब ट्रेंड हुए।

गौतम गंभीर से लोगों का यह पूछना लाजिमी था क्योंकि हाल के कुछ सालों में जिस भी घटना को सांप्रदायिक बोल कर मीडिया ने हंगामा किया, पत्रकारों ने भारत के असहिष्णु होने की बात कही, लिबरलों ने देश में नेगेटिविटी होने की बात कही और कथित सेकुलरों ने मुस्लिमों व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की बात कही, वो घटनाएँ अंत में सांप्रदायिक नहीं निकलीं। ट्रेन में सीट को लेकर हुए विवाद में अगर किसी मुस्लिम की मौत हो गई, उसे भी सांप्रदायिक रंग दिया गया। एक लॉ छात्र ने मुस्लिम होने के कारण ख़ुद पर अन्य छात्रों द्वारा अत्याचार किए जाने की बात कही, बाद में यह भी झूठ निकली। 2016 में बरुन कश्यप नाम के निर्देशक ने आरोप लगाया कि उनके बैग को गाय की चमड़ी से बना समझ कर गौरक्षकों ने उन्हें धमकी दी। बाद में उन्होंने ख़ुद स्वीकार किया कि हिन्दुओं से घृणा के कारण उन्होंने ख़ुद से यह कहानी गढ़ी।

गुरुग्राम की घटना का पूरा सच अब आया सामने

गौतम गंभीर सेलेब्रिटी हैं। उन्हें इन सब से कुछ लेना-देना नहीं है। उन्हें तो ट्विटर पर कुछ फैंसी शब्दों का प्रयोग कर मीडिया में छपना है और दिखना है। इससे उनकी वाहवाही होगी, उनके बारे में लेख लिखे जाएँगे, उन्हें भाजपा के भातर रह कर भी सेक्युलर विचारधारा का वाहक बताया जाएगा इत्यादि-इत्यादि। गंभीर को भी इसी सेकुलर कीड़े ने काटा और कूल बनने के चक्कर में उनकी किरकिरी भी हुई। अब वापस गुरुग्राम की घटना पर आते हैं। पुलिस की छानबीन और प्रशासन की त्वरित कार्रवाई के बाद पता चला कि न तो उक्त मुस्लिम युवक बरकत अली की इस्लामी स्कल कैप उछली गई और न ही उसकी शर्ट फाड़ी गई।

पुलिस ने साफ़-साफ़ कहा है कि यह कोई सांप्रदायिक घटना नहीं है बल्कि इसे जबरन सांप्रदायिक रंग दिया गया। पुलिस ऐसा यूँ ही नहीं कह रही, 15 लोगों की गिरफ़्तारी और 50 से भी अधिक सीसीटीवी खंगालने के बाद पुलिस ने यह निष्कर्ष निकाला। 24 घंटे तक पुलिस और प्रशासन द्वारा लगातार जाँच करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया। विडियो फुटेज के अनुसार, यह एक सामान्य मारपीट की घटना थी, जिसे पास ही झाड़ू लगा रहे किसी व्यक्ति ने देखा और बीच-बचाव किया। यह घटना शराब के नशे में अंजाम दी गई, जिसमें मारपीट तो हुई लेकिन इसमें कुछ भी सांप्रदायिक नहीं निकला।

अगर गौतम गंभीर ने सूरत अग्निकांड ट्रेजेडी को लेकर गुजरात सरकार पर निशाना साधा होता तो समझ में आता। अगर उन्होंने अमेठी में सुरेन्द्र हत्याकांड की निंदा की होती तो भी चलता, लेकिन उन्होंने सत्यता से परे एक ऐसी घटना को लेकर व्याख्यान दिया, जिसके कारण वह ख़ुद फँस गए। उक्त मुस्लिम युवक की टोपी को किसी ने हाथ तक नहीं लगाया था, ऐसा सीसीटीवी फुटेज में दिखा है। मारपीट के दौरान उसकी टोपी गिर गई, जिसके बाद उसनें उसे ख़ुद उठा कर अपने जेब में डाल लिया। लेकिन, मारपीट की इस घटना में इस्लामी स्कल कैप और ‘जय श्री राम’ का छौंक लगाते ही यह सांप्रदायिक घटना हो गई, जिसके आधार पर गिरोह विशेष ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल से भी जोड़ा।