Tuesday, October 1, 2024
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4 करोड़ की पहुँच वाले दक्षिणपंथी का अकाउंट अकारण सस्पेंड, ताली पीट रहे आपिए

लोकसभा चुनावों के बीच दक्षिणपंथी और गैर-वामपंथी सोशल मीडिया यूजर्स की आवाज़ सोशल मीडिया कम्पनियों द्वारा दबाया जाना बदस्तूर जारी है। अंशुल सक्सेना को फेसबुक ने सस्पेंड किया, समाचार पोर्टल mynation का फेसबुक पेज डिलीट कर दिया गया और अब ट्विटर ने ऋषि बागड़ी (@rishibagree) का ट्विटर अकाउंट बिना कोई कारण बताए सस्पेंड कर दिया है।

फेसबुक पर दी जानकारी

भाजपा समर्थक और दक्षिणपंथी ऋषि ने यह जानकारी अपने फेसबुक पेज से दी। उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट की पहुँच का विश्लेषण भी साझा किया, जिससे पता चलता है कि उनकी पहुँच लगभग 4 करोड़ ट्विटर यूजर्स तक थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि कॉन्ग्रेस और अन्य विपक्षी दल उनकी पहुँच और लोकप्रियता को लेकर चिंतित थे।

तीन हफ्ते में तीसरी घटना

तीन हफ्ते के अन्दर यह भारतीय राजनीतिक आवाजों को विदेशी सोशल मीडिया कम्पनियों द्वारा दबाए जाने की तीसरी घटना है। इससे पहले दक्षिणपंथी अंशुल सक्सेना का फेसबुक पेज भी ‘नग्नता फैलाने’ के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया था, जबकि वे दरअसल नग्न पेंटिंगों की एक प्रदर्शनी का विरोध कर रहे थे। उन्होंने जब अपना विरोध जताया तो फेसबुक ने माफ़ी माँगते हुए उनका अकाउंट वापिस करने की बात कही। लेकिन उन्हें एक सप्ताह लटकाने के बाद ही उनका पेज चालू हुआ, जबकि ट्रोल ध्रुव राठी का पेज महज घंटों में चालू कर दिया गया

इसके बाद फेसबुक ने भारतीय राजनीति में सीधा हस्तक्षेप करते हुए सैकड़ों कॉन्ग्रेस समर्थक और कुछेक भाजपा समर्थक पेजों और समाचार पोर्टल mynation के पेज को डिलीट कर दिया। उस समय फेक न्यूज़ फ़ैलाने का आरोप लगाया गया, लेकिन ऑपइंडिया ने जब फेसबुक द्वारा दिए गए ‘सबूतों’ की पड़ताल की तो पाया कि न ही भाजपा और न ही कॉन्ग्रेस के उक्त पेज किसी भी प्रकार की फेक न्यूज़ फैला रहे थे।

और अब यह तीसरी घटना है जब प्रभावशाली राजनीतिक पेज/अकाउंट अकारण या गलत कारण देकर बंद किए जा रहे हैं। यह भारत की संप्रभुता के साथ हस्तक्षेप नहीं तो क्या है?

सोशल मीडिया पर ताली पीट रहे आपिए

हमने अभी आपको ऊपर बताया कि कॉन्ग्रेस की नीतियों के विरोध में रहते हुए भी ऑपइंडिया ने कॉन्ग्रेस के पेज हटाए जाने का विरोध किया था, क्योंकि यह विदेशी ताकतों द्वारा किया गया था, और गलत आधार पर था। पर ऋषि बागड़ी का भी मामला बिलकुल ऐसा ही होने के बावजूद आम आदमी पार्टी की सोशल मीडिया टीम के सदस्य कपिल इस कदम के समर्थन में ‘थम्सअप’ दे रहे हैं।

इस बीच पत्रकार शेफाली वैद्य और mynation के संपादक अभिजित मजुमदेर ने इसका विरोध करते हुए ट्वीट किया।

चारा घोटाला कमज़ोर कर दो, नितिश सरकार गिरा दूँगा, यह था लालू का भाजपा को ऑफर

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने चारा घोटाले में दोषी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव पर गंभीर आरोप लगाया है। प्रेस को संबोधित करते हुए उन्होंने दावा किया कि लालू ने भाजपा को यह ‘ऑफर’ दिया था कि यदि चारा घोटाले में उनके खिलाफ मामला कमजोर कर दिया जाए तो वह नीतीश कुमार की तत्कालीन बिहार सरकार को बदले में गिराने के लिए तैयार हैं। जिस समय का यह दावा है, उस समय नीतीश-लालू महागठबंधन की बिहार सरकार के साझेदार थे और भाजपा विपक्ष में बैठी थी।

तीन-चार बार भेजा ‘दूत’, फिर खुद पहुँचे जेटली के द्वार

सुशील मोदी के दावा के मुताबिक लालू यादव ने पहले तो तीन-चार बार केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास ‘दूत’ के रूप में प्रेमचंद गुप्ता को भेजा। प्रेमचंद गुप्ता राजद के राज्यसभा सदस्य हैं। बकौल सुशील मोदी, यह वाकया तब का है जब झारखण्ड उच्च न्यायलय ने सीबीआई की चारा घोटाले के 6 मामलों में लालू पर बाकी आरोपियों से अलग मामला चलाने की अर्जी ठुकरा दी थी। अलग से मामला चलने का मतलब था कि लालू की मुसीबतें और बढ़ना।

सुशील मोदी की मानें तो गुप्ता ने जेटली से कहा कि लालू यादव बिहार की नीतीश कुमार सरकार को गिराने के लिए तैयार हैं, पर वह यह चाहते हैं कि या तो सीबीआई उच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील न करे, और अगर करे तो जाँच एजेंसी का वकील मामले में कमजोर बहस करे ताकि उच्च न्यायालय का फ़ैसला पलटा न जाए और लालू अलग मुकदमे का सामना करने से बच जाएँ।

पर जब जेटली ने यह पेशकश हर बार ठुकरा दी तो, सुशील मोदी के मुताबिक, लालू अंत में खुद चल कर जेटली से मिलने पहुँचे।

जेटली फिर भी न पिघले, पर नीतीश को हो गया था शक  

सुशील मोदी ने यह भी दावा किया कि इतने के बावजूद अरुण जेटली ने लालू को कोई भी राहत देने से साफ़ मना कर दिया। उन्होंने साफ कर दिया कि सीबीआई स्वायत्त, स्वतंत्र संस्था है, और उनकी सरकार उसके कार्य में कोई दखल नहीं देती।

सुशील मोदी ने यह भी जोड़ा कि उन्हें लगता है नीतीश कुमार को लालू के इरादों और प्रयासों की भनक जरूर पड़ गई होगी, और यह दोनों दलों के रिश्तों के अंत में एक कारण रहा होगा। इसके अलावा 2015 का चुनाव जीतने के बाद भी लालू ने नीतीश को यह जताना कभी बंद नहीं किया कि नीतीश उन्हीं की ‘दया’ से मुख्यमंत्री हैं।

गौरतलब है कि 2015 का चुनाव राजद के साथ जीतने के बाद भी नीतीश ने 2017 में उनसे सम्बन्ध तोड़ कर तत्कालीन सरकार को भी भंग कर दिया, और भाजपा-नीत राजग में शामिल हो उसके समर्थन से दोबारा मुख्यमंत्री बने।

सजायाफ्ता हैं लालू   

फ़िलहाल लालू यादव सजायाफ्ता चल रहे हैं। तीन मामलों में उन्हें कुल 13.5 साल की सजा का ऐलान किया जा चुका है, और दो मामलों में फैसला आना बाकी है। इसके अलावा उन पर रेलवे टेंडर घोटाले के मामले में भी पटियाला कोर्ट में केस चल रहा है। हाल ही में उनकी जमानत याचिका भी ख़ारिज की जा चुकी है

तेजस्वी की प्रतिक्रिया

राजद नेता और लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने इस आरोप पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। बिहार विधानसभा के नेता विपक्ष और नीतीश-राजद सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद पाने वाले तेजस्वी ने ट्विटर पर दावा किया कि देश के लोग सुशील मोदी का खुलासा सुनकर हँस रहे हैं, और यह प्रेसवार्ता लोकसभा चुनावों में भाजपा के हार के डर को उजागर कर रही है। उन्होंने सुशील मोदी को मानसिक रूप से दीवालिया भी कहा।

क्या सच में मोदी ने संस्थाओं को कमज़ोर किया? आंकड़े और तथ्य तो कुछ और ही कहते हैं

यदि हम ध्यान से देखें, तो पिछले 5 वर्षों में विपक्षी दलों, विशेषकर कॉन्ग्रेस, के द्वारा लगातार एक साजि़श की गई है। जैसे ही कॉन्ग्रेस ने देखा कि मोदी सरकार अनेक योजनाओं के माध्यम से अच्छे परिणाम दे रही है, उन्होंने योजनाओं, लोगों, प्रणालियों, संस्थानों, सुधारों को ही बदनाम करना शुरू कर दिया और इनका गलत प्रचार किया।

अपने किए गए पहले के गलत कार्यों की जवाबदेही से खुद को बचाने की कोशिश के अलावा, इनका उद्देश्य मोदी सरकार को मिलने वाले राजनीतिक लाभ को भी कम करना है। फिर चाहे इससे संस्थाओं की अवमानना या देशहित को नुकसान ही क्यों न हो। और तो और, अपनी गलत मंशा को छुपाने के लिए, इन्होंने मोदी सरकार पर ही संस्थाओं की अवमानना और संविधान की अवहेलना का आरोप लगाना शुरू कर दिया। विपक्ष के गलत प्रचार एवं मीडिया के एक वर्ग के विपरीत, यह लेख, तर्क व तथ्यों के आधार पर मोदी सरकार के द्वारा संस्थानों की सुदृढ़ता के लिए किए गए अथक प्रयासों पर प्रकाश डालता है।

जरा सोचिए, कॉन्ग्रेस व अन्य विपक्षी दल अगर विपक्ष में रहकर देशहित का इतना नुकसान कर सकते है, तो सत्ता में रहकर कितना विनाश किया होगा।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी पर अपने गलत बयान को माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला बताकर पेश करना ये दिखाता है कि अब कॉन्ग्रेस जिस अवस्था में है, वो सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

इस लेख के माध्यम से विभिन्न स्थितियों में महत्वपूर्ण संस्थानों के प्रति मोदी सरकार व विपक्षी दृष्टिकोण को आँकने का प्रयास किया गया है। इस लेख को 7 भागों में विभाजित किया गया है एवं संस्थागत सम्मान व अवमानना किसके द्वारा की गई, यह अंको से दर्शाया गया है।

भाग 1 – न्यायालय व जाँच संस्थाएँ

सत्ता में रहते हुए कॉन्ग्रेस द्वारा जाँच संस्थाओं का उपयोग स्वयं के हित के लिए करना कोई नई बात नहीं है। एक उदाहरण- UPA के कार्यकाल के अंतर्गत 2G मामले की जाँच (जिसके सबूतों की जाँच UPA के कार्यकाल मे ही पूरी हुई), जिसमें अपराधियों को रिहा कर दिया गया। यह बताना आवश्यक है कि माननीय कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा (नोट कीजिए कि ये हिस्सा इंग्लिश से हिंदी ट्रांसलेट किया हुवा है, कोशिश की गई है कि अर्थ वही हो)- “यह एक अच्छी तरह से कोरियोग्राफ की गई चार्जशीट थी, जिसमें गलत तथ्य थे और वे स्वतंत्र होने के हकदार बन गए”।

“मैं यह भी कह सकता हूँ कि पिछले लगभग 7 वर्षों से, मैं रोज़ सुबह 10 से शाम 5 बजे तक कोर्ट में बैठे रहता था, इस इंतज़ार में कि किसी के पास ऐसा सबूत हो जिसे कानून स्वीकार करे ,लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला।”

मोदी सरकार को 2G घोटाले के मामले को फिर से खोलने की अपील करनी पड़ी। बल्कि, पहले दिन से ही मोदी सरकार की भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई, सभी के लिए स्पष्ट थी।

कॉन्ग्रेस को यह शुरुआत में ही समझ आ गया था कि उनके द्वारा किए गए गलत कार्यों (भ्रष्ट सौदे, फ़ोन बैंकिंग द्वारा दिए हुए बैंक ऋण, NPA आदि) का खुलासा होने वाला है तथा कई बड़े नेताओं के जेल जाने की संभावना भी है, और जिसका पूरा राजनीतिक श्रेय भी NDA को मिलेगा। इससे बचने के लिए, कॉन्ग्रेस ने पिछले 5 वर्षों में BJP नेताओं के तथाकथित भ्रष्टाचार की झूठी कहानियों का प्रचार किया।

बल्कि, ठीक इसके विपरीत, मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार व आर्थिक अपराधों से निपटने के लिए कई कदम उठाए व संस्थाओं को सशक्त बनाया।

1. IBC के रूप में कानून पारित करके NCLT (एक महत्वपूर्ण संस्था) को सशक्त बनाया और कई NPA खातों का समाधान किया। NPA से निपटने का यह तरीका, कॉन्ग्रेस की अस्पष्ट नीतियों और तरीकों से पूर्णतया विपरीत है।

2. भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए संस्थाओं को सशक्त बनाया गया। जिससे कि, नीरव मोदी, चौकसी, माल्या आदि भगोड़ों की संपत्ति (विदेशी संपत्ति सहित) को जब्त किया। मोदी सरकार ने भगोड़ों के प्रत्यर्पण के लिए लगातार प्रयास किया एवं सफलता प्राप्त की या सार्थक प्रगति की।

मोदी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई देखकर कॉन्ग्रेस ने अधिकारियों को यह धमकी दी (संस्थागत अवमानना का एक रूप) कि उन्हें यह याद रखना चाहिए, कॉन्ग्रेस कुछ समय में सत्ता में आ जाएगी और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।

(स्कोर- मोदी +1, विपक्ष -1)

मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं भ्रष्टाचार व अपराधियों पर सही कार्रवाई के लिए संस्थाओं को दी गई छूट अच्छे परिणाम दिखा रही है, जो इस प्रकार है-

1. इतिहास में पहली बार, पिछले 5 वर्षों में 18 भगोड़ों को भारत वापस लाया गया। यह एक तरह से संस्थागत स्वतंत्रता का ही परिणाम है।

2. गाँधी, वाड्रा, यादव, चिदंबरम आदि के खिलाफ भ्रष्टाचार मामलों की जाँच जारी है

3. लालू यादव को कई घोटालों के लिए जेल भेजा गया

4. माननीय दिल्ली HC ने अपने फैसले में यह निष्कर्ष निकाला कि सोनिया और राहुल गाँधी ने नेशनल हेराल्ड मामले में देश को धोखा दिया। एक अन्य मामले में दोनों ज़मानत पर बाहर हैं। इसके अलावा, बड़ी मात्रा में करों का भुगतान नहीं करने के कारण, अब अदालतों द्वारा कर जमा करने के निर्देश दिए गए है।

5. रोबर्ट वाड्रा से संबंधित कुछ हरियाणा भूमि सौदे रद्द कर दिए गए हैं। वाड्रा के मामलों में ED की कठोर पूछताछ चल रही है।

कई बड़े दिग्गजों की ईमानदारी से जाँच की जा रही है जिससे कानूनी संस्थाएँ मज़बूत व सशक्त बनेंगी एवं भविष्य में भ्रष्टाचार करने से पहले कोई भी दस बार सोचेगा।

(स्कोर- मोदी +2, विपक्ष -1)

जाँच अधिकारियों को धमकाने में मिली असफलता के पश्चात कॉन्ग्रेस ने संस्थानों में आंतरिक झगड़ों का सहारा लिया। CBI/ SC के आंतरिक लड़ाई के माध्यम से, संस्थानों को सार्वजनिक रूप से खुले तौर पर बदनाम करने व मोदी सरकार पर दोषारोपण करने का प्रयास किया गया। इसके अलावा ED, CAG, CVC को बदनाम करने की कोशिश की गई और दोष मोदी सरकार पर डाला गया। ऐसा इन संस्थानों की विश्वसनीयता को कानूनी तौर पर/ राजनैतिक रूप से नष्ट करने के लक्ष्य से किया गया ताकि किसी भी प्रतिकूल खुलासे (ED द्वारा), आदेश (अदालतों द्वारा) या रिपोर्ट (CAG द्वारा Rafale पर, CVC द्वारा CBI पर) से स्वयं को बचाया जा सके।

(स्कोर- मोदी +2, विपक्ष -6)

मोदी सरकार ने विभिन्न समस्याओं एवं विपरीत परिस्थितियों को बहुत अच्छे से नियंत्रित किया, जिसकी कल्पना कॉन्ग्रेस ने नहीं की थी। SC के 4 जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के मामले में, मोदी सरकार ने न्यायिक संस्थागत स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए, समस्या को आंतरिक रूप से हल करने पर जोर दिया। लेकिन जब हस्तक्षेप की ज़रूरत पड़ी, जैसे CBI के मामले, तो मोदी सरकार पीछे नहीं हटी, क्योंकि वह जानती है कि आखिर में लोकतंत्र में जबाबदेही सरकार की है, किसी और की नहीं। और अंत में मोदी सरकार सही सिद्ध हुई जब SC द्वारा आलोक वर्मा को हटाने की मंज़ूरी मिल गई। CBI निर्देशकों पर भ्रष्टाचार का आरोप व आंतरिक झगड़े के कारण विश्वसनीयता में कमी आने के बावजूद मोदी सरकार ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि संस्थागत अवमानना एवं किसी भी स्तर पर गलतियाँ स्वीकार्य नहीं होंगी। इसके फलस्वरूप, संस्थानों को मज़बूत बनाकर, भविष्य के लिए सही पथ निर्धारित हुआ है।

वाड्रा व चिदंबरम से पूछताछ और कोलकाता पुलिस कमिश्नर प्रकरण के बाद, विपक्ष और मीडिया में एक वर्ग यह प्रचारित कर रहा है कि CBI व ED, मोदी सरकार के आदेशानुसार काम कर रही है। लेकिन वे यह भूल रहे है कि यदि यह सच होता तो मोदी सरकार इतनी आसानी से CBI निर्देशक को निकाल नहीं पाती।

(स्कोर- मोदी +4, विपक्ष -6)

अब जब और कुछ काम नही किया तो कॉन्ग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से न्यायालयों को अपने पक्ष में निर्णय देने के लिए इस प्रकार धमकी दी-

1. विपक्ष की पसंद के न्यायधीषों को जज लोया मामले को सौंपने के लिए अदालतों पर दबाव डाला

2. महाभियोग प्रस्ताव

3. अदालतों में विशेष प्रस्तावों की अस्वीकृति पर, कॉन्ग्रेस के वकीलों ने बहिष्कार की धमकी दी।

2017 में राम मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान, माननीय CJI व SC ने कॉन्ग्रेस व उनके समर्थित वकीलों (सिब्बल, दवे, धवन) को फटकार लगाते हुए कहा कि “जब वकील संवैधानिक भाषा के अनुरूप वाद नहीं करते, तो हम इसे कब तक सहन करेंगे? यदि स्वयं नियमित नहीं करते, तो मजबूरन हमें इसे नियंत्रित करना होगा”।

इसी प्रकार, जज लोया मामले में, माननीय SC की वकील दुष्यंत दवे पर टिप्पणी- “याचिकाकर्ताओं का प्रयास पक्षपात पैदा करना और न्यायाधीशों की गरिमा को खराब करना है”।

कॉन्ग्रेस द्वारा उपरोक्त रणनीति के बावजूद, सरकार ने कोई जल्दबाजी में कार्रवाई नहीं की। विपक्ष के गलत कार्यों एवं NDA के खिलाफ झूठे मामलों को देखते हुए, अदालतों के निर्णय विपक्ष के पक्ष में नहीं थे ( जैसे राफ़ेल, जज लोया, CBI, साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानंद आदि) और सुनवाई के लिए राम मंदिर मामले को सूचीबद्ध किया गया।

2017 में ज़मानत के बाद, साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि UPA के दौरान उनकी गिरफ्तारी के बाद- “मुझे हिरासत में 24 दिनों के लिए दिन-रात पुरुष अधिकारियों द्वारा एक मज़बूत बेल्ट से बेरहमी से पीटा गया। मेरे हाथ-पैर सूज गए थे, जिन्हें नमक वाले गरम पानी में डालने के पश्चात, मारपीट फिर से शुरू की जाती। हिरासत में अधिकारियों ने मुझे गंदी गालियांँ दी एवं आपत्तिजनक CD देखने के लिए मजबूर किया। वे RSS के वरिष्ट नेताओं को फँसाने के लिए मुझसे जबरन दोष स्वीकृत करवाना चाहते थे”।

(स्कोर- मोदी +4, विपक्ष -7)

कॉन्ग्रेस ने राम मंदिर मामले में विलंब करने की पूरी कोशिश की, इस उम्मीद से कि मोदी सरकार SC में सुनवाई के दौरान, कुछ कानूनी रूप से चुनौतिपूर्ण कदम उठाए। जिससे वे यह झूठी मंशा बनाना चाहते थे कि मोदी सरकार संविधान और न्यायपालिका का सम्मान नहीं करती। साथ ही मोदी सरकार के पिछले 4.5 वर्षों के राष्ट्र-शांति के रिकॉर्ड में बाधा डालने का भी इनका लक्ष्य था।

हालाँकि, कॉन्ग्रेस राम मंदिर मामले में देरी करने में सफल रही है, लेकिन मोदी सरकार ने संविधान और न्यायपालिका के प्रति अत्यंत संयम व सम्मान दर्शाया जिसके फलस्वरूप कॉन्ग्रेस की मोदी सरकार को बदनाम करने व देश में अशाँति की चाह पूरी नहीं हुई।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -7)

फिर, कॉन्ग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से राम मंदिर निर्माण आरंभ तिथि की घोषणा करके, प्रेरित समूहों को उत्तेजित करने का प्रयास किया। लक्ष्य फिर से देश की शांति को भंग करके, दोष मोदी सरकार पर डालने का था। यह पूर्ण रूप से संविधान के खिलाफ था। मोदी व योगी सरकार ने इस समस्या को भी बहुत अच्छी तरह से संभाला।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी पर अपने गलत बयान को माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला बताकर पेश करना यह दिखाता है कि अब कॉन्ग्रेस जिस अवस्था में है, वो सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -8)

भाग 2- चुनाव आयोग*

2014 के बाद , BJP को एक के बाद एक, चुनावों में जीत मिलती रही, जिसे देखकर विपक्ष को अपने राजनैतिक अस्तित्व पर संदेह होने लगा। उन्होंने चुनाव आयोग एवं EVM को बदनाम करना शुरू कर दिया ताकि मतदान प्रक्रिया के बारे में लोगों के मन में संदेह पैदा हो जाए। लेकिन इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला, एवं यदि थोड़ा भी संदेह था, वह राजस्थान, MP, CG चुनाव में कॉन्ग्रेस की जीत के बाद खत्म हो गया। फिर भी विपक्ष ने, माननीय कोर्ट्स के द्वारा अपने अनेक याचिकाओं को खारिज करने के बावजूद, EVMs के खिलाफ गलत प्रचार जारी रखा है।

कुछ दिन पहले के गुजरात HC निर्णय के कुछ अंश-

“हमें EVMs की विश्वसनीयता और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों पर पूर्ण विश्वास है”।

(स्कोर- मोदी +5, विपक्ष -9)

भाग- 3 संसद

PM मोदी ने अपनी लोकसभा यात्रा की शुरुआत संसद में शीश झुकाकर की एवं सख्ती से सांसदों व अधिकारियों को अधिक से अधिक उत्पादकता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का आदेश दिया। इससे जनता व संसद के प्रति सम्मान स्पष्ट दिखाई दिया। संसद की कार्यवाही में बाधा डालने का हर प्रयास विपक्ष द्वारा किया गया। इसके बावजूद, 16वीं लोकसभा सबसे सफल रही।

(स्कोर- मोदी +6, विपक्ष -10)

भाग 4- सैन्यबल

मोदी सरकार ने सशस्त्र बलों की संस्था को कई माध्यमों से मज़बूत करने के प्रयास किए हैं

1. सैन्यबलों को कार्यवाही करने की खुली छूट

2. राफ़ेल, S400, एवं अन्य आवश्यकताओं (बुलेट प्रूफ जैकेट आदि) की प्राप्ति

3. वन रैंक वन पेंशन

4. PM ने सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए हर दिवाली सेना के साथ मनाई

कॉन्ग्रेस ने सेना के मनोबल को कम करने व मोदी सरकार को सेना के प्रति लापरवाह दर्शाने का पूरा प्रयास किया-

1. जब JNU में टुकड़े गैंग ने भारत व सेना के खिलाफ नारे लगाए, तब राहुल गाँधी एवं अधिकांश विपक्षी दलों ने उनका समर्थन किया

2. सेना प्रमुख को “सड़क का गुंडा” कहा

3. सर्जिकल व एयर स्ट्राइक के लिए प्रमाण माँगा

4. शत्रु देश व उसके PM की प्रशंसा

5. कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन से प्रेरित रिपोर्ट को बढ़ावा

6. भारत के रक्षा खर्च को कम दिखाने के लिए गलत प्रचार का समर्थन

7. राफ़ेल सौदे को रद्द करने के लिए हर संभव कोशिश करना

8. मोदी सरकार पर राजनीतिक लाभ के लिए सुरक्षा बलों के उपयोग का आरोप लगाना

लेकिन, दी गई स्वतंत्रता एवं ऊँचे मनोबल के फलस्वरूप, सेना ने पिछले 5 वर्ष में प्रतिकूल परिस्थितियों में अभूतपूर्व परिणाम दिए हैं।

1. पहली बार दुश्मन के इलाके में घुसकर सर्जिकल एवं एयर स्ट्राइक का संचालन करना

2. हमारी सीमाओं (कश्मीर, नक्सलियों व अन्य राज्यों में आतंकवादियों) के भीतर आतंकवादियों को खत्म करना

मोदी सरकार के तहत खुफिया एजेंसियों को भी मज़बूत किया गया है, जिससे देश भर में आतंक के कई प्रयासों को रोका गया। परिणाम स्वरूप, कश्मीर के अलावा, भारत ने पिछले 5 वर्षों में कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं देखा।

जैसा कि सब जानते है कि पहले रक्षा खर्च का प्रमुख हिस्सा बिचौलियों, राजनेताओं आदि के पास जाता था। लेकिन अब, बिचौलियों को हटाने के बाद, बहुत सारा पैसा बचाया जा रहा है। विरोधी भी इस बात से सहमत हैं कि PM मोदी धन के अभाव में राष्ट्रीय सुरक्षा पर समझौता नहीं करेंगे।

PM मोदी ने ISRO और DRDO को भी मज़बूत बनाया। इसका नतीजा भी हमने हाल ही में देखा जब स्पेस स्ट्राइक (मिशन शक्ति) की गई और भारत, स्पेस वारफेयर क्षमता में, वर्ल्ड के टॉप 4 देशो में शामिल हो गया। उससे पहले स्पेस में एक साथ 104 सैटेलाइट लॉन्च करके भारत ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।

(स्कोर- मोदी +10, विपक्ष -12)

भाग 5- राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन

मोदी सरकार का शुरू से ही लक्ष्य बडे़ पैमाने पर ऐसी योजनाओं को प्रारंभ करने का रहा है जिनके माध्यम से जनता एकजुट होकर प्रेरित हो (जैसे स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ बेटी पढा़ओ, आदि)। यह भारत जैसे विशाल व विविध आबादी वाले देश में कम समय में कुछ बड़ा करने का नया, सटीक एवं सही प्रयास साबित हुआ। PM मोदी की सोच व क्षमता ने इन प्रयासों को सफल बनाया।

मोदी सरकार के पिछले सरकारों के मुकाबले में नए दृष्टिकोण के तहत मिलने वाली सफलता को आँकने में कॉन्ग्रेस को काफी समय लगा। इसीलिए, शुरुआत में विपक्ष ने सरकार की योजनाओं का मजा़क उड़ाया। लेकिन जब उन्हें इन  की सफलता का एहसास हुआ तब उन्होंने इन योजनाओं की निंदा करना और गलत भ्रांति फैलाना प्रारंभ कर दिया, यह कहकर कि सब सिर्फ दिखावा है, असल में कुछ नहीं हो रहा है।

लेकिन सामने आए अधिकतर आँकड़ो ने मोदी सरकार के अर्थव्यसवस्था के विकास, नौकरियों का सृजन, बिजली, स्वच्छता, LPG कवरेज और बडे़ पैमाने पर कई अन्य उपलब्धियों के दावों का समर्थन किया। इसे देखकर, विपक्ष ने नेशनल स्टैटिस्टिकल कमिशन (NSC) को बदनाम करना शुरू कर दिया एवं भारत के आँकड़े मोदी सरकार के तहत विश्वसनीय नहीं है, ऐसा गलत प्रचार किया।

लेकिन विश्व स्तर पर प्रसिद्ध संगठनों ने विभिन्न मापदंडों पर भारत का उन्नयन किया- क्रेडिट रेटिंग, व्यवसाय करने में आसानी, बिजली पहुँच, गरीबी मिटाने आदि और भी काफी सारे पैमानों पर भारत आगे बढ़ता नज़र आया। पिछले 5 वर्षों में रिकॉर्ड मात्रा में FDI व FII ने मोदी सरकार की विश्वसनीयता का अप्रत्यक्ष रूप से प्रमाण दिया। ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध है जहाँ मोदी सरकार के तहत भारत के विकास को पहचाना और सराहा गया है।

लेकिन यहाँ भी, भारत की प्रशंसा करने पर वैश्विक संस्थानों की निंदा करके, विपक्ष ने स्वयं अपने गलत प्रचार का पर्दाफाश किया।

(स्कोर- मोदी +10,  विपक्ष -13)

भाग 6- अन्य कार्य में असफल, लेकिन ‘विपक्ष’ को बदनाम करने में सफल

संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश में विपक्ष ने अपनी ही विश्वसनीयता एवं सम्मान को खो दिया है। अब, असहाय होने के कारण, विपक्ष अब मोदी पर बार बार वही झूठे आरोप (संस्थाओं को नष्ट करना, संविधान खतरे में, EVM में गड़बड़ी, राफ़ेल आदि) रिपीट कर रहा है  इस आशा में कहीं शायद कभी कोई तुक्का लग जाए।

PM मोदी की विश्वसनीयता तो पहले से बढ़ ही रही है, लेकिन विपक्ष खुद खुले आम जहाँ-जहाँ उसकी सरकार है, वहाँ संस्थाओं को नष्ट करने एवं संविधान की अवलेहना करने के कई काम कर रहा है उसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं—-

1. ममता बनर्जी पुलिस कमिश्नर के साथ धरने पर बेठी, जो साफ दर्शाता है कि पुलिस TMC के लिए काम करती है, राज्य के लिए नहीं।

2. ममता बनर्जी ने राज्य में विपक्षी नेताओं को चुनाव प्रचार की अनुमति न देकर, संविधान की अवलेहना की

3. अखिलेश यादव ने अप्रत्यक्ष रूप से पत्रकारों को अपने बारे में सब अच्छा लिखने को कहा, जिसका भुगतान वे सरकार बनने के बाद करेंगे

4. कर्नाटक पुलिस ने ‘मोदी’ का नाम बार बार लेने के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया

5. कई विपक्षी राज्यों ने CBI जाँच पर प्रतिबंध लगाया (बंगाल, आंध्र, छत्तीसगढ़)

6. कई विपक्षी नेताओं ने सरकारी मकानों पर, बिना किसी हक़ व अदालत के निर्देशों के बावजूद, कब्जा बनाए रखा है

7. कॉन्ग्रेस खुलेआम टुकड़े गैंग का समर्थन कर रही है, जो भारत को तोड़ने का आह्वान कर रहे हैं। अफज़ल गुरू को न्यायिक शोषण का शिकार बताकर, आतंकवादियों का भी समर्थन कर रही है।

8. राहुल गाँधी ने HAL को सरकार के खिलाफ करने का प्रयास किया

9. नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान गए और बिना किसी अधिकार के संवेदनशील मुद्दों पर बातचीत की

10. पिछले 5 वर्षों में कई बार विपक्ष के द्वारा देश में हलचल मचाने के लक्ष्य PSU बैंको व ATMs में पैसे नहीं होने का गलत प्रचार किया गया

(स्कोर- मोदी +10,  विपक्ष -25)

भाग 7- क्या मोदी सरकार द्वारा संस्थाओं की अवलेहना का कोई विशेष उदाहरण है?

मैंने खोजने का बहुत प्रयास किया, लेकिन PM मोदी द्वारा कोई भी ऐसा बयान या कार्य नहीं मिला जो संविधान और संस्थाओं की अवलेहना करता हो।

कुछ लोग कह रहे हैं कि जो अमित शाह ने केरल में सबरीमला पर कहा, वो माननीय SC की अवलेहना है। असल में, उन्होंने जो कहा, वह भविष्य में किसी के भी द्वारा अवलेहना से बचाने के लिए कहा। कठोर सत्य यह है कि SC के कई आदेश पिछले कई वर्षों से लागू नहीं किए गए हैं। ऐसे मामलों में SC की विश्वसनीयता कम हो जाती है और भविष्य में आदेशों का पालन नहीं करना आसान हो जाता है।

साथ ही मोदी सरकार पर राजनीतिक लाभ के लिए सेना का उपयोग करने के आरोप के विषय में हमें सिर्फ एक प्रश्न पूछना चाहिए कि क्या सेना ने जो किया, वो नहीं किया जाना चाहिए था? सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, देश में रहे आतंकवादियों को मारना, आतंकी हमलों को रोकना?

यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि सशस्त्र बलों ने ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया, जो गलत हो या नहीं करना था। ऐसे में सेना का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए कैसे किया जा सकता है? वे तो सिर्फ देश की रक्षा के लिए, जो उपयुक्त है, वही कर रहे है। और यदि कोई सोचे कि मोदी सरकार को इन कार्यों से राजनीतिक लाभ मिल रहा है, तो यह उनकी मूर्खता है।

जाहिर है कि यदि कोई सरकार सख्त निर्णय लेगी तो उसे सराहा जाएगा, ठीक इसी प्रकार यदि कुछ गलत हो जाता तो सरकार को ही दोषी माना जाता। इसलिए, यदि समझदारी से विचार किया जाए तो मोदी सरकार द्वारा किया गया कोई भी ऐसा कार्य, जो संविधान के विरुद्ध हो, मिल पाना मुश्किल है।

अब यदि विपक्ष के द्वारा संवैधानिक अवहेलना एवं संस्थागत अवमानना पर विचार किया जाए, तो कई सारे उदाहरण और मिल जाएँगे। और यदि उनके इतिहास के बारे में सोचा जाए, तो ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं होगी।

अंतिम स्कोर- मोदी +10, विपक्ष -25 (गिनती जारी है)

एक भारतीय के रूप में हमें इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान व संस्थाएँ, दोनो ही मोदी सरकार मैं पूर्ण रूप से संरक्षित हैं।

कॉन्ग्रेस प्रत्याशी का नया नारा ‘महिला को शिक्षित करना व्यर्थ है’

एक ओर जहाँ कॉन्ग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी और महासचिव प्रियंका गाँधी चुनाव प्रचार के दौरान महिला सशक्तिकरण के मुद्दे को आधार बनाकर पूरे देश से वोट माँग रहे हैं। वहीं दूसरी ओर केरल में यूडीएफ (कॉन्ग्रेस+अन्य) के प्रत्याशी के. सुधाकरण ने चुनाव प्रचार के मद्देनज़र एक प्रमोशनल वीडियो जारी किया। जिससे लोगों के बीच यह संदेश भेजने का प्रयास किया गया है कि महिलाओं को शिक्षित करना व्यर्थ है।

सुधाकरण द्वारा चुनाव प्रचार के लिए ऐसी वीडियो के इस्तेमाल ने उनकी नियत और महिलाओं को लेकर सोच पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए हैं। आज जहाँ महिलाएँ पुरूषों के साथ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, ऐसे समय में कॉन्ग्रेस नेता का यह वीडियो पार्टी की विचारधारा का शर्मनाक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहा है।

इस वीडियो में लड़की की असमर्थता को दिखाते हुए दर्शाया गया है कि यदि कोई लड़का किसी कार्य को करना शुरू करता है तो उसमें कामयाबी हासिल करने के बाद ही वापस आता है। इस वीडियो में लड़की का पिता इस बात को कहते दिख रहा है कि लड़की को पढ़ाना भी बेकार हो गया, और उसे टीचर बनाना भी। इस वीडियो को के सुधाकरण ने अपने पक्ष में इस्तेमाल करने के साथ कुन्नुर(kunnur) की सांसद और लेफ्ट की प्रत्याशी पीके श्रीमथी पर व्यंग्य कसने के लिहाज़ से इस्तेमाल किया, जो कि एक टीचर भी हैं।

हालाँकि, उनका ये उद्देश्य कामयाब नहीं हो पाया और वह आलोचनाओं से घिर गए। जगह-जगह उनके इस ऐड कैम्पेन पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ये पहली बार नहीं है कि के सुधाकरण की महिला विरोधी सोच का प्रमाण मिला हो। इससे पहले भी सुधाकरण केरल के मुख्यमंत्री के बारे में टिप्पणी करते हुए कह चुके हैं कि “वह महिला से भी बुरे हैं है”। बता दें कि सुधाकरण द्वारा पोस्ट यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। लोग सुधाकरण को बढ़ चढ़कर महिला विरोधी करार देने में जुटे हुए हैं। महिला आयोग ने भी मामले का संज्ञान लेते हुए सुधाकरण द्वारा इस्तेमाल की गई वीडियो पर मुकदमा दायर किया है।

प्रतिबंध किस पर है? कम्युनिस्टों के खिलाफ बोलने पर या देश के वीरों की गाथाएँ सुनाने पर

निर्वाचन आयोग इन दिनों ‘प्रतिबंध आयोग’ की भूमिका निभा रहा है। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व जिस संस्थान के ऊपर है वह कभी सिनेमा पर प्रतिबंध लगा रहा है तो कभी भाषण देने पर। इसी क्रम में आयोग ने दो पुस्तकों के लोकार्पण पर प्रतिबंध लगा दिया। इनमें से एक है मानोशी सिन्हा रावल की ‘Saffron Swords’ और दूसरी आभास मालदाहियार की ‘#Modi Again’ नामक पुस्तक।

जिन रिटर्निंग ऑफिसर महोदया ने जेएनयू में होने वाले इन दोनों पुस्तकों के लॉन्च पर नोटिस जारी किया उनका कहना है कि भले ही यह पुस्तकें पहले से वितरण में हों, पर इस कार्यक्रम को देखकर इसके राजनीतिक होने का आभास होता है; ऐसा लगता है कि एक नेता विशेष का प्रचार हो रहा है इसलिए यह नोटिस जारी किया गया। आयोग की ओर से नियुक्त अधिकारी महोदया का यह कथन अपने आप में ही बड़ा विचित्र है।

पहली बात तो यह कि इन दोनों पुस्तकों के पिछले कई महीनों से बाज़ार में उपलब्ध होने का अर्थ यह है कि इनके पाठकों की संख्या उनसे कई गुना अधिक है जो निमंत्रण पाकर या गाहे बगाहे बुक लॉन्च में पहुँचते। आज के समय में बुक लॉन्च जैसे आयोजन लेखकों को अपनी वह बात कहने का मंच देते हैं जो वे पुस्तक में नहीं लिख पाते। पुस्तक की अपनी एक सीमा होती है। कथेतर (non-fiction) विधा के नए नवेले लेखक अपनी बात कहने के लिए पुस्तक की विषयवस्तु को ज्यादा से ज्यादा 200 पेज में ही समेटना चाहते हैं क्योंकि इससे पुस्तक की मार्केटिंग में सहायता मिलती है।

कोई भी पाठक किसी नए लेखक की भारी भरकम पुस्तक तब तक नहीं पढ़ना चाहता जब तक वह लेखक कोई विशेषज्ञ या प्रसिद्ध व्यक्ति न हो। बुक लॉन्च किसी भी लेखक के लिए पाठकों से संवाद करने का अवसर प्रदान करने वाला आयोजन होता है। मानोशी रावल और आभास मालदाहियार ने यही सोचकर जेएनयू जैसे संस्थान में अपना बुक लॉन्च रखा होगा कि उन्हें विद्यार्थियों से संवाद करने का अवसर मिलेगा। इस देश में लाखों पुस्तकें प्रतिदिन प्रकाशित होती हैं जिनमें से आधे से अधिक बाज़ार का मुँह तक नहीं देख पातीं। न जाने कितनी पुस्तकें गोदामों में रखी सड़ जाती हैं।

इस देश में छः दशकों तक सत्ता संस्थानों में एक पार्टी विशेष का सीधा दखल रहा है जिसके कारण प्रचार तंत्र पर उस पार्टी के पाले हुए बुद्धिजीवियों का कब्जा रहा है। वामपंथी विचारधारा से ग्रसित प्रकाशक, लेखक और कथित विद्वानों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अपनी रखैल बनाकर रखा। आज देश उस मानसिकता से उबरने का प्रयास कर रहा है। इसीलिए गरुड़ जैसे प्रकाशक उभर रहे हैं जो लेखन के स्थापित मानदंडों को तोड़ कर भारत केंद्रित विचारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। यह प्रोपगैंडा आधारित लेखन के अंकुशों से बाहर निकलने की जिजीविषा है।

इसी जिजीविषा को उद्घाटित करने वाली पुस्तक है #Modi Again जिसे आभास मालदाहियार ने लिखा है। आभास ने किसी पार्टी या संगठन विशेष के एजेंडे को प्रसारित करने वाली पुस्तक नहीं लिखी है। उन्होंने अपनी पुस्तक में यह लिखा है कि नरेंद्र मोदी के बारे में उनकी विचारधारा में कैसे परिवर्तन आया। पुस्तक के आरंभ में ही वे लिखते हैं कि बचपन में वे लाल झंडे और केसरिया झंडे दोनों को सलाम करते थे। यह ऐसे व्यक्ति के लिए संभव है जो दोनों ही विचारों के सिद्धांतों से अनभिज्ञ हो लेकिन उसके आसपास दोनों ही विचारधाराओं के प्रतीक दिखाई पड़ते हों।

आभास अपनी विचारधारा में परिवर्तन की कहानी केजरीवाल के एंटी करप्शन आंदोलन से प्रारंभ करते हैं और आर्यन इन्वेज़न थ्योरी, अंबेदकर, अयोध्या जैसे मुद्दों पर अपने अनुभव लिखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों और विकास योजनाओं तक पहुँचते हैं। यह लेखक की स्वतंत्रता है कि उसका राजनैतिक झुकाव किस तरफ है। यदि आभास की विचारधारा में आए परिवर्तन का झुकाव नरेंद्र मोदी की तरफ है तो इसमें कोई बुराई नहीं। शशि थरूर ने भी संयुक्त राष्ट्र के वेतनभोगी अधिकारी रहते हुए भारत के नेहरू पर रिसर्च किया था और पुस्तकें लिखी थीं।

उन पर कभी किसी ने सवाल नहीं उठाए और न ही कभी उनकी पुस्तकों को प्रतिबंधित किया गया। राजनीति में आने के बाद शशि थरूर ने 2018 में विधानसभा चुनावों से ठीक एक महीना पहले The Paradoxical Prime Minister नामक पुस्तक लिखी थी। यदि किसी पार्टी के नेता की तारीफ करना आचार संहिता का उल्लंघन है तो निर्वाचन आयोग को इसपर भी सोचना चाहिए कि किसी नेता के विरोध में पुस्तक लिखना भी आचार संहिता का उल्लंघन माना जाना चाहिए क्योंकि इससे विरोधी पार्टियों को बल मिलता है।

जहाँ तक मानोशी रावल की पुस्तक Saffron Swords की बात है, वह तो किसी भी दृष्टिकोण से राजनैतिक विचारधारा पर आधारित नहीं है। बल्कि यह पुस्तक तो भारत के उन 50 से अधिक ऐतिहासिक शूरवीरों की कहानी है जिनके बारे में शायद बहुत से सैन्य इतिहासकारों को भी नहीं पता होगा। उदाहरण के लिए राणा सांगा, प्रताप, लक्ष्मीबाई और सियाचिन पर परमवीर चक्र पाने वाले बाना सिंह का नाम तो सबने सुना है लेकिन 300 सैनिकों के साथ आदिलशाह की 12000 की फ़ौज से टकराने वाले बाजीप्रभु देशपांडे का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा। असम के सेनापति तोनखाम बोरपात्र गोहेन के बारे में कम लोग जानते होंगे जिसने अफ़ग़ान तुरबक खान को 1533 में पराजित किया था।

मानोशी की पुस्तक में ऐसी ही दुर्लभ कहानियों का संग्रह है। इस पर निर्वाचन आयोग को क्या आपत्ति हो सकती थी यह समझ से बाहर है। एक तो वैसे ही देश में इतिहास लेखन हद दर्ज़े तक एकपक्षीय और तुष्टिकरण वाला रहा है। उस पर यदि कोई शोध करके कुछ नया लिख रहा है तो यूनिवर्सिटी में चार विद्यार्थियों के सामने उसका बुक लॉन्च आचार संहिता का उल्लंघन मान लिया जाता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि चुनावों का मौसम शुरू होने से ऐन पहले ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने भी एक पुस्तक लिखी है जिसमें वो सोशल मीडिया पर कथित तौर पर फैलाए जाने वाली फेक न्यूज़ का भंडाफोड़ करने की बात कहते हैं जबकि अधिकतर फेक न्यूज़ उनके द्वारा ही जनित होती है। क्या सिन्हा के विश्लेषण में राजनैतिक दुर्भावना का अंश होना पूरी तरह नकारा जा सकता है जबकि आज सोशल मीडिया को पार्टियों द्वारा फैलाए जा रहे दुष्प्रचार का एक हथकंडा बना दिया गया है। क्या निर्वाचन आयोग को इसका संज्ञान नहीं लेना चाहिए? क्या निष्पक्ष दिखने वाले वास्तव में निष्पक्ष हैं, यह भी चर्चा का विषय होना चाहिए।

बहरहाल, जेएनयू में भले ही दोनों पुस्तकों के लॉन्च पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो लेकिन निर्वाचन आयोग के इस निर्णय से इन पुस्तकों की बिक्री अवश्य बढ़ गई है। मानोशी की पुस्तक अमेज़न पर नंबर 9 पर पहुँच गई है और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने आभास की पुस्तक पर अकादमिक विमर्श के लिए सहमति दी है।


ध्रुव ट्रोल राठी! ब्रो, मीम बनाने पर फोकस करो, कहाँ नागरिक शास्त्र पर ज्ञान दे रहे हो!

आप-समर्थक और मोदी-विरोधी इंटरनेट ट्रोल ध्रुव राठी ने एक बार फिर आधे सच, पूरे झूठ, और भ्रामक विश्लेषण से लोगों को भरमाने की कोशिश की है। उन्होंने दो ट्वीट किए जिनका लब्बोलुआब था कि सीबीएसई ने राजनीति शास्त्र से जुड़े तीन अध्याय ‘लोकतंत्र और विभिन्नता’, ‘चर्चित संघर्ष और आन्दोलन’ व ‘लोकतंत्र के लिए चुनौतियाँ’ को इम्तिहान में शामिल न कर बड़ा भारी अपराध कर दिया है। अब तो फ़ासीवाद बस फैलने ही जा रहा है; लोकतंत्र खतरे में है!

यह फर्जी चिंता और पीत-पत्रकारिता (येलो जर्नलिज्म) किस-किस स्तर पर, कितना-कितना और कैसे-कैसे गलत है, इसकी पूरी मीमांसा में तो शायद 2022 के योगी वाले चुनाव में ही आ जाए, पर अगर केवल मुख्य-मुख्य मुद्दों को भी पकडूँ तो भी यह साफ़ पता चलता है कि ध्रुव राठी को या तो खुद नहीं पता कि शिक्षा व्यवस्था कैसे चलती है, किताबों की बातें किस प्रकार जीवन में आत्मसात होतीं हैं, या फिर अगर पता है तो वह हमें-आपको बरगलाने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।

सतत है पाठ्यक्रम बदलाव प्रक्रिया

सबसे पहले तो पाठ्यक्रम में बदलाव कोई नींद से उठकर नहीं किया जा रहा, यह सतत प्रक्रिया है जो कॉन्ग्रेस के समय से चली आ रही है। लम्बे समय से स्कूलों के पाठ्यक्रम के विषयवस्तु में बदलाव की माँग उठ रही है, परीक्षा का बोझ कम करने की माँग उठ रही है। यह कोई भाजपा-संघ की देन नहीं है, कपिल सिब्बल के शिक्षा मंत्री रहते इसकी शुरुआत हुई थी।

तोता-रटंत से बेहतर होता है व्यवहारिक-प्रायोगिक उपयोग

ध्रुव राठी यह तो बताते हैं कि इन चीज़ों को बोर्ड परीक्षा के पाठ्यक्रम से बाहर किया जा रहा है पर यह नहीं बताते कि इन पर आंतरिक परीक्षाओं और सतत मूल्यांकन के ज़रिए साल-भर जोर रहेगा। इससे पहले जब यह केवल इम्तिहान का हिस्सा थीं तो छात्र परीक्षा से तीन दिन पहले घोंट कर पी जाते थे और उत्तर-पुस्तिका में उलट आते थे। परीक्षा-केंद्र तो दूर की बात, कक्ष से निकलते ही सब डब्बा गोल हो जाता था।

और इन विषयों पर कुल जमा अधिक जोर दी जाने की बात उस रिपोर्ट में भी लिखी गई है, जिसे राठी अपने ट्वीट का आधार बनाते हैं- वह भी CBSE की नगर संयोजिका और डीपीएस जैसे प्रतिष्ठित विद्यालय की प्रिंसिपल के हवाले से। पर उसकी साँस-डकार तक लेना राठी आवश्यक नहीं समझते! वैसे भी ऐसे ट्रोल से इस तरह की उम्मीद करना बेकार ही है।

राजनीति व्यवहार की चीज़ है, पोथी बाँचने की नहीं  

अगर विषय को अपने आप में पकड़ें तो तीनों अध्याय राजनीति के हैं- और राजनीति व्यवहार में होने वाली चीज़ है, कोई वैचारिक प्रयोग नहीं। राजनीति के विषय जितना प्रैक्टिकल से सीखे जा सकते हैं उतना थ्योरी में नहीं।

भारत के इतिहास में पोलिटिकल थ्योरिस्ट शायद डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर से बड़ा कोई नहीं हुआ। संविधान सभा के अध्यक्ष थे, भारत के सबसे बड़े राजनीतिक विद्वानों में उनके सबसे कट्टर विरोधी भी गिनते हैं। पर चुनावों में दो-दो बार हारे। जमानत भी जब्त हो गई। राजनीति में व्यवहारिक ज्ञान का कोई थ्योरी पूरक नहीं बन सकती।

इसी सिविक्स/नागरिक शास्त्र में बचपन से पढ़ते हैं कि देश को साफ़ रखना और सड़क पर संभल कर चलना हर नागरिक का कर्त्तव्य है। पर होता यह है कि प्रधानमंत्री झाड़ू मारने लगे तो भी भारत स्वच्छ नहीं होता। रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों के मताधिकार छिनने की चिंता में दुबले हो रहे देश में अगर 67% लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर लें तो चुनाव सफल माने जाते हैं, और अनिवार्य मतदान अधिकारों में कटौती बन जाता है। यह अत्यधिक किताबी ज्ञान और व्यवहारिकता के अभाव में ही होता है।

इसलिए बेहतर होगा, राठी जी, कि आप या तो पहले खुद का फंडा साफ कर लें, और जनता को मूर्ख न बनाएँ!

जिस साध्वी को ‘हिन्दू आतंकी’ कह कर टॉर्चर किया, वही बनीं कॉन्ग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर आज बुधवार (अप्रैल 17, 2019) को भाजपा के भोपाल दफ़्तर में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हो गईं। उनका भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। भोपाल में उनका मुक़ाबला दिग्विजय सिंह से होगा। मध्य प्रदेश की राजधानी इसके साथ ही भारत का एक ऐसा क्षेत्र बन जाएगा, जिसके चुनावी समीकरण पर पूरे देश की नज़र रहेगी। मध्य प्रदेश के राजघराने से आने वाले दिग्विजय 10 वर्षों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भी कॉन्ग्रेस के लिए सक्रिय रह चुके हैं। पार्टी का पहले से ही मानना था कि उन्हें मध्य प्रदेश की सबसे कठिन सीट से चुनाव लड़ना चाहिए और अंत में भगवा गढ़ भोपाल पर सहमति बनी। भोपाल इसीलिए क्योंकि यहाँ 1989 से अब तक भाजपा का ही कब्ज़ा रहा है।

साध्वी प्रज्ञा का नाम सामने आते ही, कॉन्ग्रेस द्वारा जबरदस्ती इस्तेमाल किया गया टर्म ‘भगवा आतंकवाद’ याद आता है। ये एक ऐसा शब्द था, जिसे सिर्फ़ और सिर्फ़ कश्मीर में चल रहे इस्लामिक आतंकवाद और देश के कई हिस्सों में फ़ैल रहे माओवादी आतंकवाद को न्यूट्रलाइज करने के लिए गढ़ा गया था। भगवा आतंकवाद का बहाना बनाकर उन लोगों को फँसाने की कोशिश की गई, जो राष्ट्रवाद की बात करते थे। कुछ ऐसे चेहरे चुने गए, जो हिन्दू संगठनों का प्रतिनिधित्व करते थे या हिंदूवादी रुख के लिए जाने जाते थे। इसमें स्वामी असीमानंद, कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा जैसे नाम शामिल थे। इन पर आतंकवाद का चार्ज लगाया गया।

साध्वी प्रज्ञा को दी गई प्रताड़ना की दास्तान

महाराष्ट्र के मालेगाँव ब्लास्ट केस में साध्वी प्रज्ञा को अदालत से क्लीनचिट भी मिल चुका है। 9 वर्षों तक जेल के सलाखों के पीछे रह चुकीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ने जब अपनी आपबीती सुनाई तो अच्छे-अच्छों के रोंगटे खड़े हो गए। जब उन्होंने मीडिया के सामने आकर बताया कि उन्हें अपना ‘अपराध’ मानने के लिए किस तरह से टॉर्चर किया गया, तो सुननेवाले भी काँप उठे। तत्कालीन गृहमंत्री के कुटिल प्रयासों का शिकार बनी प्रज्ञा ने बताया कि महाराष्ट्र एटीएस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। उनके साथ हुई क्रूरता की एक बानगी देखिए:

  • उन्हें चमड़े के बेल्ट से पीटा गया।
  • उन्हें 24 दिनों तक भूखा रखा गया, कुछ भी खाने को नहीं दिया गया।
  • उन्हें इलेक्ट्रिक शॉक्स दिए गए।
  • उनके साथ रोज़ गाली-गलौज किया गया।
  • उन्हें पुरुष क़ैदियों के साथ रखकर आपत्तिजनक पॉर्न वीडियो देखने को मज़बूर किया गया।
  • काला चौकी पुलिस थाने में जब एक क़ैदी ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई तो उसे क्रूरतापूर्वक मारा-पीटा गया।
  • उन्हें पीटने के लिए 5-6 पुलिसकर्मी लगातार लगाए गए थे जो उन्हें सोने नहीं देते थे। जब वो थक जाते थे तो उनके बदले नए पुलिसकर्मी आ जाते।
  • उनका उनके गुरु के साथ संबंधों को अश्लील नज़र से देखते हुए ‘Prostitute’ कहा गया।
  • जब उन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया जाता, तब डॉक्टरों को जबरदस्ती अच्छी रिपोर्ट देने को मज़बूर किया जाता।

और आपको बता दें कि ये सबकुछ 6 वर्षों तक लगातार चलता रहा। क्या साध्वी प्रज्ञा पर कोई आरोप साबित हुआ है? क्या वो कोई अपराध करते हुए रंगे हाथों पकड़ी गई थी? क्या उनके ख़िलाफ़ किसी गवाह के बयान की अदालत में पुष्टि हुई है? क्या उनके घर से बम बरामद हुआ? नहीं। असल में चिदंबरम के अलावा हिन्दू आतंकवाद वाले पाप में दिग्विजय सिंह भी बराबर के भागीदार हैं। दिग्विजय सिंह न तो उस समय केंद्रीय मंत्री थे और न ही सरकार में थे, तब भी उनके द्वारा समय-समय पर जाँच प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की बातें सामने आती रही हैं।

इससे पहले हमने एक संपादकीय लेख में बताया था कि कैसे कर्नल पुरोहित और असीमानंद जैसों को फँसाना, उसे चर्चा का विषय बनाकर, भगवा आतंक, हिन्दू टेरर जैसे शब्दों को बोलचाल में लाना, सिर्फ एकेडमिक एक्सरसाइज़ नहीं था। इस पूरे प्रक्रिया में सेना की छवि ख़राब हुई कि एक अफ़सर ही देश में आतंकवादी गतिविधि कर रहा है। इस पूरे प्रक्रिया में पूरे धर्म को, जिसका इतिहास और वर्तमान सहिष्णुता का पैमाना रहा है, आतंकवादी बताने की कोशिश की। जबकि सबको पता है कि आतंक का ठप्पा कहाँ लगा है, और क्यों।

जिस साध्वी प्रज्ञा को प्रताड़ित करने के लिए क्रूरता की हदें पार की गई, आज वही कॉन्ग्रेस की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनकर खड़ी है। दिग्विजय सिंह से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने मौन धारण कर लिया। दिग्विजय की बोलती बंद होने का कारण सीधा और सपाट है, उन्हें डर है कि जिस सत्ता का दुरूपयोग कर उनके साथियों ने पाप का ये घृणित खेल खेला है, अब उसकी सज़ा तय होने का समय आ गया है। उन्हें पता है कि कथित हिन्दू आतंकवाद वाला जुमला फेल हो चुका है और अब वो अपने बनाए चक्रव्यूह में ख़ुद ही फँस गए हैं। साध्वी प्रज्ञा आज दुनिया की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी की उम्मीदवार हैं।

‘EVM पर कॉन्ग्रेस के अलावा दूसरा बटन दबाया तो करंट लगेगा, हमने पहला बटन फिक्स कर दिया है’

छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार के दौरान राज्य सरकार के आबकारी, वाणिज्य और उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने कॉन्ग्रेस उम्मीदवार के लिए वोट की माँग करते हुए जनता को अजीबोगरीब धमकी दी।

चुनाव सभा में मतदाताओं से कवासी ने कहा कि यदि कॉन्ग्रेस को छोड़कर उन्होंने दूसरा या फिर तीसरा बटन दबाया तो उन्हें बिजली का झटका लगेगा।

कवासी के इस बयान के बाद चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस जारी कर दिया है। गौरतलब है कि लखमा बुधवार (अप्रैल 17, 2019) को प्रदेश के कांकेर जिले में एक रैली को संबोधित कर रहे थे, जब उन्होंने जनता से कहा, “आपको बीरेश ठाकुर को वोट देना है। दूसरा बटन दबाने पर आपको करंट लगेगा, तीसरा बटन दबाने पर भी यही होगा, लेकिन हमने पहला बटन फिक्स कर दिया है।”

इसके बाद उन्होंने बिजली का झटका लगने वाली चेतावनी को दोहराया। जिससे भीड़ के कुछ लोग कवासी की इस बात पर हँसने लगे।

बीजेपी के प्रदेश ईकाई के एक पदाधिकारी की शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने इस मामले पर एक्शन लिया। मीडिया खबरों के मुताबिक लखमा से तीन दिन के भीतर इस पर स्पष्टीकरण माँगा गया है।

बताते चलें कि कांकेर में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में गुरुवार को मतदान होगा। इसके अलावा राज्य में तीसरे और अंतिन चरण का चुनाव के लिए मतदान 23 अप्रैल को होगा।

न्यूज़ चैनल के संपादक ने प्राइवेट कम्पनी के घाटे के लिए मोदी को ठहराया जिम्मेदार, लताड़े गए

पत्रकार विनोद कापड़ी ने एक प्राइवेट कम्पनी की कंगाली के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हाथ ढूँढ लिया है। बता दें कि जेट एयरवेज घाटे में चल रही है और कम्पनी के पास फंड नहीं है। रुपयों की कमी से जूझती जेट एयरवेज को अब क़र्ज़दाताओं का इंतज़ार है कि वो इमरजेंसी फंड्स देकर इसे किसी तरह चालू रखें। इसी ख़बर पर TV9 भारतवर्ष के सम्पादक विनोद कापड़ी ने चुटकी लेते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा। कापड़ी को लताड़ते हुए अशोक पंडित ने उन्हें थोड़ी पढ़ाई-लिखाई करने की नसीहत दी और पूछा कि एक प्राइवेट एयरलाइन्स की समस्या में मोदी और विकास कहाँ से आ गया?

इसके बाद ट्विटर यूजर्स ने उन्हें अपनी प्रतिक्रियाओं में प्राइवेट और सरकारी कम्पनी का अंतर समझाया। एक यूजर ने कापड़ी और उनकी जमात के बारे में कहा कि ये ऐसे लोग हैं जो अपने बाथरूम में पानी न आने पर भी मोदी को ही कोसते हैं। उसने आगे कहा कि ऐसे लोगों को पेन गिफ्ट किया जाए तो ये इस बात के लिए नाराज़ हो जाएँगे कि रिफिल ख़त्म होने के बाद बदलनी पड़ेगी।

अगर सरकारी रुपयों से किसी प्राइवेट कम्पनी को बचाया जाए तो यही पत्रकार कहेंगे कि जनता के रुपयों का ग़लत इस्तेमाल हो रहा है। कई लोगों ने पूछा कि क्या विजय माल्या की किंगफ़िशर एयरलाइन्स की कंगाली के लिए पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ज़िम्मेदार थे क्या? एक यूजर ने कापड़ी से पूछा कि अगर वो जेट एयरवेज की विफलता के लिए मोदी की ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं तो क्या TCS और HDFC की सफलता का श्रेय वो देंगे?

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कापड़ी के टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि उन्होंने अपने संस्थान में केवल ऐसे लोग भर रखे हैं, जिनके ख़ून में ही मोदी के प्रति घृणा है। अमित शाह ने भी विनोद कापड़ी के एक सवाल पर उन्हें डाँटा था। दरअसल, कापड़ी ने अमित शाह से झूठा सवाल पूछा था कि उन्होंने चुनाव से पहले वाड्रा को जेल भेजने की बात कही थी।

‘महिलाओं को घर के अंदर ही नमाज पढ़नी चाहिए’: सुन्नी मौलाना

मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश को लेकर अभी कोर्ट में याचिका दर्ज हुए कुछ समय ही हुआ है कि मज़हब के ठेकेदारों ने इस पर आपत्ति जतानी भी शुरू कर दी है। केरल के सुन्नी मौलानाओं और इस्लामिक विद्वानों के संगठन समस्त केरला जमीयतुल उलेमा ने महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश पर अपनी कट्टर प्रतिक्रिया को दोहराया है।

संगठन की मानें तो मुस्लिम महिलाओं को अपने घर के अंदर ही नमाज़ पढ़नी चाहिए। उनका कहना है कि वह मज़हब से जुड़े मामलों में कोर्ट का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकते हैं।

संगठन के महासचिव अलीक्कूटी मुसलियर ने इस मामले पर कहा, “हम धार्मिक मामलों में कोर्ट के हस्‍तक्षेप को स्‍वीकार नहीं कर सकते हैं। हमें अपने धार्मिक नेताओं के निर्देशों को मानना चाहिए।”

यहाँ मुसलियर ने सबरीमला मामले का हवाला देते हुए कहा कि उनके संघठन ने उस समय भी महिलाओं के प्रवेश पर इसी तरह का रुख अपनाया था। मुसलियर का कहना है कि मस्जिद में केवल पुरूषों को ही नमाज़ पढ़नी चाहिए। मस्जिद में महिला प्रवेश पर दायर याचिका पर मुसलियर ने कहा है कि यह नियम नया नहीं हैं, पिछले से 1400 साल से यह अस्तित्व में है।

याद दिला दें कि 28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया था। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर निष्पक्षता के साथ क्या फैसला सुनाती हैं।

सबरीमला विवाद के बाद धर्म की आड़ में महिलाओं के मौलिक अधिकारों पर उठा, यह दूसरा मामला है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि पाक कुरान में भी मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश का कभी विरोध नहीं किया गया है। साथ ही बताया गया है कि इस्लाम के सबसे पाक स्थल मक्का समेत कई देशों में महिलाओं को मस्जिद में जाने की इजाजत है।

बता दें कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश की गई दलीलों पर उच्चतम न्यायालय वकील के जवाबों से असंतुष्ट दिखाई दिया और स्पष्ट स्वीकारा कि इस मामले को सुनने का एकमात्र कारण, केरल के सबरीमला मंदिर पर उनका फैसला है।