Wednesday, October 2, 2024
Home Blog Page 5306

$33100 करोड़ पहुँचा निर्यात, 2018-19 में 9% की वृद्धि, टूटा पिछले 5 वर्षों का रिकॉर्ड

भारत ने निर्यात में अच्छी-ख़ासी बढ़ोतरी दर्ज की है। सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 के विदेशी व्यापार का आँकड़ा जारी कर दिया है। आँकड़ों के अनुसार, निर्यात में 9 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है। निर्यात अब 331 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। पिछले वर्ष यह 303 बिलियन डॉलर था। इसके साथ ही 2013-14 का वो रिकॉर्ड भी धराशयी हो गया, जब निर्यात 314.4 अरब डॉलर दर्ज किया गया था।

भारत सरकार द्वारा जारी किए गए भारतीय विदेश व्यापार के आँकड़े

मार्च महीने में निर्यात में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह अक्टूबर 2018 के बाद से अब तक की सबसे बड़ी मासिक वृद्धि है। उस समय निर्यात में 17.86 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। फार्मा, इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल्स, ड्रग्स और पेट्रोलियम जैसे क्षेत्रों में ऊँची वृद्धि के कारण निर्यात में भारत ने छलांग लगाई है। नीचे दी गई ग्राफ़िक्स में आप इसे बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।

निर्यात: किस क्षेत्र में कितनी वृद्धि

भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “वैश्विक मंदी के रूप में आई बड़ी गिरावट के बावजूद व्यापारिक निर्यात 2018-19 में 331 अरब डॉलर दर्ज किया गया जो कि अब तक का उच्चतम स्तर है। यह 2013-14 के 314.4 अरब डॉलर के स्तर से आगे बढ़ गया है। यह उपलब्धि चुनौतिपूर्ण वैश्विक माहौल में हासिल की गई है।” बता दें कि व्यापार घाटे में भी कमी दर्ज की गई है। मार्च 2018 में व्यापार घाटा 13.51 अरब डॉलर था जो अब घटकर 10.89 अरब डॉलर हो गया है। सोने के आयत में वृद्धि दर्ज की गई है। यह 31.22 प्रतिशत बढ़कर 3.27 अरब डॉलर पर पहुँच गया है।

बीते वित्त वर्ष कच्चे तेल का आयात 5.55 प्रतिशत की छलांग के साथ 11.75 अरब डॉलर रहा। अगर पूरे वित्त वर्ष 2018-19 में आयात की बात करें तो यह 8.99 प्रतिशत बढ़कर 507.44 अरब डॉलर पर आ गया। वाणिज्य मंत्रालय ने बताया कि 2016-17 से कुल निर्यात (वस्तुओं और सेवाओं का मिलाकर) लगातार बढ़ रहा है। 2018-19 में यह पहली बार 500 अरब डॉलर के आँकड़े को पार कर गया है।

किसी के बुरा लगने पर आस्था नहीं छोड़ सकता: CM योगी का EC को जवाब, चली हनुमान चालीसा की ‘चाल’

आचार संहिता उल्लंघन के आरोप में हाल ही में चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मायावती को नोटिस भेजकर स्पष्टीकरण माँगा था, जिसके जवाब में योगी आदित्यनाथ ने अपनी सफाई भेज दी है।

आयोग को दिए इस जवाब में योगी ने कहा है कि बजरंगबली में उनकी अटूट आस्था है। ऐसा में किसी को बुरा लगे या कोई अज्ञानतावश असुरक्षित महसूस करे, तो इस डर से वो अपनी आस्था को नहीं छोड़ सकते हैं। योगी ने अपने जवाब में स्पष्ट किया है कि उन्होंने अपने भाषण (जिसके कारण उन पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगा) में केवल छद्म धर्मनिरपेक्षता को उजागर किया था, धर्म के नाम पर वोट नहीं माँगा था। अपने जवाब में उन्होंने यह भी लिखा कि हर नागरिक को अपने धर्म व आस्था की स्वतंत्रता है।

योगी आदित्यनाथ का कहना है कि उन्होंने किसी जाति या धर्म के नाम पर वोट नहीं माँगा था। उनकी मानें तो धर्म और जाति के आधार पर अगर कोई वोट माँग रहा है तो वह विपक्ष के नेता हैं। योगी ने मायावती की राजनीति पर प्रश्न किया कि वह (मायावती) खुद को धर्मनिरपेक्ष बताती हैं। लेकिन क्या मजहब को आधार बनाकर समुदाय विशेष से वोट माँगना धर्म निरपेक्षता की श्रेणी में आएगा?

योगी आदित्यनाथ की मानें तो देश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उनका फर्ज बनता है कि वो छद्म धर्मनिरपेक्षता का लोगों के समक्ष पर्दाफाश करें। इसके साथ ही अपने जवाब में उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने ‘हरे वायरस’ उपनाम का उपयोग संकीर्ण राजनीति के मद्देनजर किया था।

बता दें कि चुनाव आयोग द्वारा योगी आदित्यनाथ के चुनाव प्रचार पर 72 घंटे का प्रतिबंध लगने के बाद वे आज (अप्रैल 16, 2019) सुबह हनुमान मंदिर पहुँचे। यहाँ वह 10-15 मिनट के लिए रुके। उन्होंने वहाँ सिर्फ हनुमान चालीसा का पाठ किया। इस बीच उन्होंने किसी से भी बात नहीं की। मीडिया की खबरों के मुताबिक योगी आदित्यनाथ ने खुद पर लगे प्रतिबंध के बाद चुनाव प्रचार का यही नया तरीका निकाला है।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने योगी के भाषण देने पर प्रतिबंध लगाया है। लेकिन इसमें मंदिर जाना शामिल नहीं है। खबरों के मुताबिक इस मंदिर में पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह आने वाले थे, लेकिन वे यहाँ नहीं आ पाए।
ऐसे में भले ही योगी आदित्यनाथ नामांकन के दौरान राजनाथ के साथ न हों, लेकिन दोनों राजनेता हनुमान सेतु मंदिर में एक साथ होंगे। माना जा रहा है कि यहीं से आज एक तरीके से चुनाव प्रचार की शुरुआत होगी।

Jesus School में नाबालिग आदिवासी छात्राओं से रेप, ORS में मिला कर दिए जाते थे ड्रग्स

महाराष्ट्र स्थित चंद्रपुर से एक जघन्य अपराध का मामला सामने आया है। यहाँ पुलिस ने एक हॉस्टल सुपरिटेंडेंट और डिप्टी हॉस्टल सुपरिटेंडेंट को गिरफ़्तार किया है। ये दोनों ही इन्फेंट जीसस इंग्लिश स्कूल के हॉस्टल में कार्यरत थे। राजुरा पुलिस ने उस मेडिकल टेस्ट के बाद यह कार्रवाई की, जिसमें इस बात की पुष्टि हुई कि 9 व 11 वर्ष की दो आदिवासी नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया है। इन दोनों बच्चियों को 6 अप्रैल को चंद्रपुर स्थित जीएमसीएच अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इन दोनों को सेडेटिव ड्रग्स का ओवरडोज दिया गया था।

दोनों ही हॉस्टल सुपरिटेंडेंट पर बच्चियों से बलात्कार और उनका यौन शोषण करने का आरोप है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने सूत्रों के हवाले से लिखा कि हॉस्टल सुपरिटेंडेंट चबन पचारे (Chaban Pachare) के दफ़्तर से पुलिस ने भारी मात्रा में वियाग्रा और कंडोम्स ज़ब्त किए हैं। उसे शनिवार (अप्रैल 13, 2019) को गिरफ़्तार किया गया। बता दें कि यौन क्षमता बढ़ाने के लिए पुरुषों द्वारा वियाग्रा का इस्तेमाल किया जाता रहा है। डिप्टी हॉस्टल सुपरिटेंडेंट नरेंद्र विरुत्कर को रविवार (अप्रैल 14, 2019) को गिरफ़्तार किया गया।

स्थानीय पुलिस-प्रशासन और जनजातीय विभाग तब पूरी तरह से सक्रिय हो उठा जब राज्य के वित्त मंत्री और चंद्रपुर के प्रभारी मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने मामले का संज्ञान लेते हुए विस्तृत जाँच के आदेश दिए। पुलिस ने बताया कि हॉस्टल सुपरिटेंडेंट को गिरफ़्तार कर लिया गया है और उसके दफ़्तर से आपत्तिजनक वस्तुएँ ज़ब्त की गई हैं। एसपी महेश्वर रेड्डी ने बताया कि एक अन्य लड़की को भी ड्रग्स देने का मामला सामने आया है। बेहोशी की शिकायत करने के बाद उसे अस्पताल में इलाज के लिए दाखिल कराया गया है। वहाँ उसका मेडिकल परीक्षण भी होगा।

सामाजिक कार्यकर्ता और मनसे नेता राजू कुकुड़े ने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ एसपी से मिलने के बाद बताया कि 6 अप्रैल को हॉस्टल की 13 लड़कियाँ बेहोशी की हालत में थीं। राजुरा के एक लोकल अस्पताल में उनका इलाज कराया गया था। उनमें से दो को चंद्रपुर जीएमसीएच में भर्ती कराया गया क्योंकि उनकी हालत गंभीर थी। डॉक्टर्स ने शुरुआती इलाज के दौरान कुछ गड़बड़ियाँ देखी और उन्हें रेप का शक हुआ। डॉक्टर्स ने ये बात मर्दानी महिला मंच को बताई, जिसने मामले को पुलिस तक पहुँचाया।

दोनों लड़कियाँ एक सप्ताह तक मेडिकल परीक्षण कराने से इनकार करती रहीं लेकिन उनके अभिभावकों की सहमति से उनका मेडिकल परीक्षण किया गया, जिसमें रेप की पुष्टि हुई। मामले में पोस्को एक्ट और एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। जिन अन्य लड़कियों के बेहोश होने की सूचना मिली है, उनके घर भी पुलिस भेजकर बयान रिकॉर्ड किए जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और वकील पारोमिता गोस्वामी ने हॉस्टल की अन्य लड़कियों का भी यौन उत्पीड़न किए जाने का अंदेशा जताया है।

घटना की निंदा करते हुए गोस्वामी ने हॉस्टल की पीड़ित लड़कियों से बातचीत करने के बाद कहा कि उन्हें ओआरएस के घोल में सेडेटिव ड्रग्स मिला कर दिए जाते थे। हॉस्टल प्रशासन ने गिरफ़्तार सुपरिटेंडेंट को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। राजुरा विधायक संजय धोते ने मामले को मुख्यमंत्री फडणवीस तक ले जाने की बात कही है। उन्होंने उस जनजातीय हॉस्टल का रजिस्ट्रेशन रद्द करने के साथ ही बच्चियों को दूसरे हॉस्टल शिफ्ट करने की माँग की।

टीओआई के सूत्रों के अनुसार, उस हॉस्टल में 300 छात्र-छात्राएँ हैं, जिसमें से 130 कक्षा पहली से दसवीं तक की लड़कियाँ हैं। इस मामले में शिवसेना ने आज मंगलवार को विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है। 18 अप्रैल को एक दर्जन से भी अधिक जनजातीय समूहों व संगठनों द्वारा जान आक्रोश मोर्चा बनाकर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।

‘सुन लो नचनिया राज बब्बर के कुत्तो, तुम्हें और तुम्हारे नेता को दौड़ा-दौड़ा कर जूता से मारूँगा’

आम चुनाव का मौसम है और नेताओं की बदजुबानी नित नए सिरे से नैतिकता के सारे स्तर लाँघ रही है। अब इस कड़ी में नया नाम जुड़ा है बहुजन समाज पार्टी के नेता गुड्डू पंडित का। फतेहपुर सिकरी से सपा-बसपा महागठबंधन उम्मीदवार गुड्डू पंडित उर्फ़ श्रीभगवान शर्मा का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमे वो कॉन्ग्रेस पार्टी व उसके नेताओं के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हुए धमकियाँ देते हुए नज़र आ रहे हैं। इस वीडियो में उन्होंने उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज बब्बर को सीधा निशाना बनाया है। इसमें न सिर्फ़ उन्होंने राज बब्बर को नचनिया कहा है बल्कि उन्हें व उनके समर्थकों को दौड़ा-दौड़ा कर जूते से मारने की धमकी भी दी है।

इस वायरल हुए वीडियो में अपने समर्थकों से घिरे गुड्डू पंडित ने कहा:

“सुन लो राज बब्बर के कुत्तो तुमको और तुम्हारे नेता नचनिया को दौड़ा-दौड़ाकर जूतों से मारूँगा। जो झूठ फैलाया समाज में। जहाँ मिलेगा गंगा माँ की सौगंध तुझे जूतों से मारूँगा, तुझे और तेरे दलालों को।”

अगर गुड्डू पंडित की बात करें तो वो दसवीं तक पढ़े हैं। यूपी के देबाई से 2 बार विधायक रहे गुड्डू पार्टी लाइन से अलग जाकर भाजपा विधान परिषद उम्मीदवार को वोट करने के कारण सपा से निष्कासित होकर बसपा में आए हैं। उससे पहले भी वो बसपा में ही थे। इससे पहले वो चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी व सीएम योगी के लिए भी अपशब्दों का प्रयोग कर चुके हैं। उन पर पूर्व में दो समुदायों के बीच शांति भंग करने का मामला दर्ज किया जा चुका है। उन्होंने भाजपा नेता व पूर्व विधायक अरिदमन सिंह के लिए भी अपशब्दों का प्रयोग किया था। ये इस चुनाव के दौरान पाँचवा मौक़ा है, जब उन्होंने ऐसी हरकत की है। उनके ऊपर रंगदारी सही सात आपराधिक मामले दर्ज हैं।

उनकी इस धमकी पर अभी तक राज बब्बर की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। बता दें कि सोमवार को फतेहपुर सिकरी में कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की रैली हुई। इस रैली में प्रियंका ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर आप राष्ट्रवादी हैं तो सभी का सम्मान करना सीखिए, विपक्षी दल के नेता के पिता का भी। उनका इशारा राजीव गाँधी की ओर था। उन्होंने भाजपा को चुनाव के वक़्त पाकिस्तान की बात न करके युवा, किसानों व ग़रीबों की बात करने की हिदायत दी। राहुल गाँधी ने भी नोटबंदी व कृषि के मुद्दे को लेकर पीएम मोदी को घेरा।

ज्ञात हो कि फतेहपुर सिकरी से कॉन्ग्रेस ने राज बब्बर को ही उम्मीदवार बनाया है। 3 बार लोकसभा सांसद और 1 बार राज्य सभा सांसद रह चुके राज बब्बर ने 2009 में फ़िरोज़ाबाद से डिंपल यादव को हरा कर सनसनी मचा दी थी। 2014 में हुए पिछले आम चुनाव में उन्हें ग़ाज़ियाबाद में जनरल वीके सिंह ने बुरी तरह हरा दिया था। साढ़े पाँच लाख से भी अधिक मतों से उनकी हार हुई थी। पिछले आम चुनाव में वीके सिंह ही सबसे अधिक मतों से जीते थे। समाजवादी पार्टी से बग़ावत कर कॉन्ग्रेस में आए राज बब्बर को जुलाई 2016 में उत्तर प्रदेश में पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था।

हिन्दू त्योहारों पर आम होती इस्लामी पत्थरबाज़ी: ये भी मोदी के मत्थे मढ़ दूँ?

रामनवमी हुई। हर साल हुआ करती थी। पिछले साल रामनवमी खबरों में आई। कारण राम नहीं, मजहबी लोग थे। बिहार और बंगाल में पिछले साल रामनवमी में लोगों ने दंगे किए। पाँच लोग बंगाल में मरे। उसी समय बिहार में भी छिटपुट झड़पें हुईं जिसमें मारपीट की वारदातें हुईं (कोई मरा नहीं)। महान पत्रकार, और हिन्दी पत्रकारिता के स्वघोषित स्तम्भ श्री रवीश कुमार जी ने प्राइम टाइम और लेखों की झड़ी लगाकर बिहारियों को चिट्ठी लिख दी थी। जबकि पाँच लोगों की मौत वालें दंगे पर एक शब्द नहीं निकला।

बंगाल में उसी समय के आस पास बर्धमान, धूलागढ़ में दंगे और बाकी जगहों पर चुनावी हिंसा चरम पर थी। रवीश की क़लम में उबाल आया, और उन्होंने बिहारियों से प्रार्थना करते हुए बंगाल पर भी लिखा, लेकिन जैसी तीक्ष्णता बिहार के हुक्मरान को गरियाने में दिखी, बंगाल में इन्हें पता ही नहीं चला कि किस पार्टी का शासन है, किसकी पार्टी के लोग किसको मार और काट रहे हैं चुनावों में। रवीश तक सूचना ही नहीं पहुँची।

इस साल भी रामनवमी आई। इस साल फिर से रामनवमी चर्चा में रही। इस साल फिर चर्चा का कारण समुदाय विशेष वाले ही थे। कट्टरपंथी पत्थरबाज़, जिन्हें क्यूट लोग ‘रेडिकल्स’ कहा करते हैं। कट्टरपंथी पत्थरबाज़ों ने रामगढ़ में रामनवमी में पत्थरबाज़ी की। कसमारा में मस्जिद के सामने से जुलूस निकलाने पर आपत्ति दर्ज की जैसे कि हुकूमत ख़लीफ़ा की चल रही हो, उस भारत सरकार की नहीं जिसने जुलूस निकालने की इजाज़त दी थी। सूरसागर में जुलूस पर पत्थरबाज़ी हुई और गाड़ियों में आग लगा दिया गया।

किसी अच्छे कट्टरपंथी ने निंदा नहीं की। वो तो आतंकी हमलों की भी निंदा नहीं कर पाते। वो बस बताते हैं कि कौन अच्छा कट्टरपंथी है, और जिसने कुछ भी ग़ैरक़ानूनी या आतंकी किया, उसे ये ‘मजहबी’ मानने से इनकार कर देते हैं। हाँ, सैफ्रन टेरर होता है, हिन्दू इन्हें हर जगह लिंच कर देते हैं, मोदी राज में ये बहुत डर से जी रहे हैं।

सितम्बर 2017 के रामगंज, जयपुर के दंगे भी याद आते हैं जब पूरी रात इन्होंने पुलिस थाने को ही बंधक बना लिया था और आगजनी, दंगे और हिंसा के बाद इनके दबाव के कारण प्रशासन को केस वापस लेने पड़े, और दंगाइयों को छोड़ना पड़ा। पत्थरबाज़ी और आगजनी से इन्होंने पंद्रह मिनट में पूरी भीड़ जुटा ली, इलाके में बवाल काटा, और फिर प्रशासन मूक बना रहा।

मैं क्यों गिना रहा हूँ ये दंगे और मज़हब? वो इसलिए कि असहिष्णुता का ठप्पा उस पर पड़ा है जिसने इन अल्पसंख्यकों के हर आतंक को चुपचाप सहा है, और पोलिटिकली करेक्ट होने के चक्कर में ये कहते-कहते पीढ़ियाँ निकाल दीं कि आतंक का कोई मज़हब नहीं होता। हर आतंकी और उसका संगठन एक ही नारा लेकर निकलता है, काले झंडे पर सफ़ेद रंग से लिखा वाक्य क्या है, सबको पता है। बोल नहीं सकते, वरना ‘बिगट’ और ‘कम्यूनल’ होने का ठप्पा तुरंत लग जाएगा।

छिट-पुट सामाजिक हिंसा को धार्मिक रंग देकर त्रिशूल पर कंडोम टाँगा गया, अख़लाक़ की भीड़हत्या पर पूरा हिन्दू समाज ज़िम्मेदार हुआ, उना के दलित की पिटाई का ज़िम्मा भी सारे हिन्दू समाज पर, सीट की लड़ाई में मरे जुनैद का ज़िम्मा भी हिन्दुओं के सर… लेकिन प्रशांत पुजारी, डॉक्टर नारंग, अंकित सक्सेना, और दर्जन भर से ज़्यादा हिन्दुओं की भीड़हत्या का ज़िम्मा इस्लाम पर कभी नहीं पड़ा क्योंकि हमें पोलिटिकली करेक्ट होने का रोग है।

अख़लाक़ के बाद भी साम्प्रदायिक घटनाएँ हुईं। कहीं दंगे हुए, कहीं एक हिन्दू लड़की को चौदह समुदाय विशेष वाले लड़कों ने ये पूछकर सरेराह छेड़ा, हाथ लगाया, दुपट्टा खींचा कि उसका बुर्क़ा कहाँ है। कहीं प्रशांत पुजारी को काट दिया गया क्योंकि वो आरएसएस का था। डॉक्टर नारंग को घर से खींचकर इस्लामी भीड़ ने मार दिया। जीटीबी नगर मेट्रो स्टेशन के पास एक हिन्दू ई-रिक्शाचालक के कुछ मजहबी युवकों ने इतना मारा कि वो मर गया। कासगंज में चंदन को ‘शंतिप्रियों’ ने मार दिया। अंकित को उसकी गर्लफ़्रेंड के समुदाय विशेष के परिवार वालों ने बीच सड़क पर गला रेत कर, चाकुओं से गोदकर मार दिया।

इन पर्वों में अब पत्थरबाज़ी आम क्यों हो गई है? क्योंकि ‘शांतिप्रिय’ डरा हुआ है? ‘शंतिप्रियों’ में मोदी सरकार में इस तरह का भय है कि वो दुर्गा विसर्जन से लेकर सरस्वती पूजा, होली, दिवाली और रामनवमी का इंतज़ार करते हैं और पत्थरबाज़ी करते हैं। ये अपने आप में अलग स्तर का भय है। ये भय इस स्तर का है कि ये भयाक्रांत लोग हिन्दुओं को हर पर्व पर पत्थरबाज़ी और दंगे भड़का कर अपने डर का इज़हार कर देते हैं।

ये नैरेटिव नहीं बन पाता क्योंकि कट्टरपंथियों का इस देश के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के समुदाय विशेष में दूध-भात है। अल्पसंख्यक के नाम पर जो मार-काट और हिंसा इन्होंने हर पर्व पर फैलाई है, वो महज़ घटनाएँ नहीं हैं, ये सिग्नेचर है, ये स्टेटमेंट हैं, शक्तिप्रदर्शन है कि देखो हम क्या कर सकते हैं, और तुम क्या कर लोगे।

इसका कारण भी बहुत अजीब है कि इन्हें ये कॉन्फ़िडेंस मिलता कहाँ से है। ये कॉन्फ़िडेंस इन्हें रामचंद्र गुहा टाइप के लुच्चे कहानीकार देते हैं, ये कॉन्फिडेंन्स इन्हें राजदीप, बरखा, रवीश सरीखे लोग और फेसबुक पर टहलते वैसे युवा देते हैं जिन्हें एक ही तरह की खबरें सुनाने और पढ़ने का शौक है। पूरा माहौल बनाया जाता है कि मोदी के आने के बाद ही सब कुछ हो रहा है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है।

चूँकि आप अभी ही किशोरावस्था से जवानी में पहुँचे हैं, तो दुनिया अभी ही शुरु नहीं हुई है। चूँकि आपने अभी ही खबरें पढ़नी शुरु की हैं, तो ज़रूरी नहीं कि वारदातों का होना भी आज ही शुरु हुआ है। चूँकि आपने रवीश का प्राइम टाइम ही देखा है, तो उसका मतलब यह नहीं बाकी कोई और पत्रकारिता कर ही नहीं रहा। चूँकि, कोई कह दे रहा है कि भले ही घटनाएँ कॉन्ग्रेस-सपा-तृणमूल के कार्यकाल में हुई, लेकिन माहौल तो मोदी के कारण बना है, तो वो सच नहीं हो जाता।

पहलू खान को मारने की हिम्मत अगर मोदी देता है भीड़ को, तो फिर फ़ैयाज़ और क़ुरैशी नामक गौतस्करों द्वारा यवतमाल से नागपुर दाने के रास्ते में कॉन्स्टेबल प्रकाश मेशराम पर ट्रक चढ़ा कर मार देते हैं तो उसको हिम्मत कौन देता है? और ऐसी एक घटना नहीं है, कि गौतस्करों ने गाड़ी पुलिस पर चढ़ा कर भागने की कोशिश की। गूगल पर सर्च कर लीजिए।

चूँकि एक जगह ‘शांतिप्रिय’ मार दिया गया, तो क्या उसकी बराबरी तभी होगी जब एक हिन्दू को मार दिया जाए! या फिर, भारत के हर हिस्से में मजहबी नारा चिल्लाकर बम से दसियों को उड़ा देने वाली घटनाओं को भी इसी आलोक में देखा जाएगा? क्या आपको वो दौर याद नहीं है, पाँच-सात साल पहले का ही था कि हर पर्व में बड़े धमाके सुनाई दे जाते थे? कौन करवाता था, किस मज़हब के लोगों को डर का माहौल उन्हें ऐसा करने पर मजबूर करता था?

कितने नाम गिनाऊँ, कितनी घटनाएँ याद दिलाऊँ? छिटपुट घटनाओं को जेनरलाइज़ करने और लगातार होने वाली आतंकी घटनाओं को भटके हुए नौजवान और ‘रेडिकल्स’ के नाम कर देने से कुछ नहीं बदलता। नैरेटिव में कुछ होने भर से वही सत्य नहीं हो जाता। नैरेटिव के उस पार देखने की कोशिश करने पर दूसरे पक्ष की सच्चाई भी दिखती है। आप गौरी लंकेश, दभोलकर, पनसरे याद रखते हैं, किसके राज में हुआ, कब हुआ, उससे आपको मतलब नहीं।

तर्क यह आता है कि अब रामनवमी पर जुलूस क्यों निकाला जाता है, पहले तो नहीं होता था। ये कितनी वाहियात बात है! जुलूस निकालने में क्या समस्या है? निकालेंगे तो कट्टरपंथी पत्थर बरसाएगा? संविधान में ऐसा लिखा है कि आसमानी किताब में? तुम्हारे तमाम जुलूस सही, हिन्दू निकाल रहे हैं तो पूछा जाता है कि ज़रूरत क्या है? पहले भी निकाले जाते थे, जिसे सरकारों ने बंद कराया।

जुलूस ही निकाल रहे हैं, दंगे नहीं कर रहे। किसी का जुलूस निकालना अगर दंगे करने, पत्थरबाज़ी का लाइसेंस होता तो याद करो कितने मुहर्रम बीते, कितने जुलूस निकले, और कितनी बार अप्रिय घचनाएँ हुईं। फिर कोई क्यों न कहे कि इनकी सामूहिक सोच में ही समस्या है कुछ। ये इतनी जल्दी डरने का नाटक कर के दूसरों के साथ आगजनी, दंगे और हिंसा पर कैसे उतर आते हैं?

जो भी संवैधानिक है, इजाज़त के दायरे में है, वो करने पर किसी दूसरे मज़हब के लोगों को समस्या क्या है? क्या उन्होंने मस्जिद में रामनवमी का झंडा गाड़ दिया या फिर उनके घरों में घुस कर पताका लहरा आए? फिर दंगा करने की बात कहाँ से आई? किसी का इलाक़ा किसी के बाप का नहीं है, वो भारत सरकार का है, और वहाँ की सड़कों पर चलने का सबको हक़ है।

समुदाय विशेष की आबादी कोई यूएन सर्टफाइड ख़िलाफ़त की ज़मीन नहीं है जो दूतावासों की तरह जेनेवा कन्वेन्शन द्वारा देश के कानून से परे है। लेकिन कुछ लोगों को ऐसा ही लगता है कि वो ‘शांतिप्रिय’ हैं, उन्हें मत छेड़ो। कौन छेड़ रहा है? सड़क से जाना छेड़ना कब से हो गया? हम ‘जय श्री राम’ का नारा लगाएँ तो उससे तुम्हें दिक्कत और तुम दिन में पाँच बार लाउडस्पीकर से अजान दो तो वो सही?

हम अजान को सुनते हैं क्योंकि हम स्वीकारते हैं कि तुम्हारी मजहबी ज़रूरत है, तुम करते हो, इसमें समस्या नहीं। इसे पीसफुल कोएग्जिस्टेंस कहते हैं, जो शायद बहुतों को रास नहीं आता। दूसरी तरफ से यमुना की तहज़ीब बहती नहीं दिखती, गंगा वाले अकेले ढो रहे हैं। हमारे नारे से क्या दिक्कत है किसी को? क्या किसी को गाली दी जा रही है? किसी पर हमला किया जा रहा है? जैसे तुम्हारी अजान बर्दाश्त करते हैं, दिन में पाँच बार, वैसे ही साल में कुछ दिन हमारी जय-जय कार भी सुन लो। क्या समस्या है? पीसफुल कोएग्जिस्टेंस की पालकी को थोड़ी देर तुम भी कंधा दे दो, क्योंकि साल भर तो हम देते ही हैं।

लेकिन नहीं, ये भी मंज़ूर नहीं। पत्थरबाज़ी होती रहेगी, और उसका दोष भी हिन्दुओं पर ही मढ़ा जाएगा कि तुमने त्योहार ही क्यों मनाया। क्या करें सरकार, इस्लाम के नाम पर हो रहे दंगे, आतंकी वारदातों पर हर बार इनकी मुहर, और इनके भटके हुए नौजवानों के कारनामे हमें कन्विन्स नहीं कर पाते कि ये शांति का मज़हब है। होगा, कहीं किसी और दुनिया में। हमारी दुनिया में तो नहीं है।

आतंकियों और दंगाइयों को यह कह कर नकार देना कि ये लोग समुदाय विशेष से हो ही नहीं सकते, क्योंकि इस्लाम यह नहीं सिखाता, और इस समस्या पर बैठकर विचार करना तो दूर, इसकी निंदा करने में आनाकानी, यह बताता है कि आप इसको लेकर सीरियस नहीं हैं, फिर हम कैसे मान लें कि रामनवमी के जुलूस पर पत्थर फेंकने वाले लोगों का मज़हब शांति का संदेश देता है?

मिल गया प्रमोशन, तो पति हो गया टेंशन?

जागरण ग्रुप के समाचार पोर्टल नई दुनिया ने एक विचित्र, और शायद दुखद, खबर प्रकाशित की है। खबर के मुताबिक भोपाल के जिला कुटुम्ब न्यायालय में कई ऐसे तलाक/सम्बन्ध-विच्छेद के मामले लंबित हैं जिनमें पत्नी ने तलाक का मुकदमा नौकरी में पदोन्नति मिलने या नई नौकरी लगने के बाद ही दायर किया है और साफ़-साफ़ कहा है कि पति के साथ अब जीवन में उन्नति कर लेने के पश्चात नहीं रहना।

पति की पंडिताई से की पढ़ाई, नौकरी मिलते ही ठेंगा

भोपाल जिले की बैरसिया नगरपालिका निवासी एक पंडित ने पंडिताई से इकट्ठा पैसों से पत्नी की पढ़ाई कराई, उसके एसआई (सब-इन्स्पेक्टर) बनने में सहयोग किया। तीन-चार साल तक अपने पैरों पर खड़े-होने लायक शिक्षा दिलाई। पर नौकरी मिलते ही इंदौर में तैनात पत्नी ने तलाक की अर्जी लगा दी।

काउंसलिंग के दौरान भी सब-इन्स्पेक्टर पत्नी ने साफ-साफ कहा कि अब उसके पति की इतनी हैसियत नहीं है कि पति उसे ‘रख’ सके।

पीओ पत्नी नहीं सुनेगी सुपर मार्केट संचालक पति के ताने

एक दूसरा मामला जिला सेवा विधिक प्राधिकरण के समक्ष ईदगाह हिल्स में रह रहे युगल का आया है। इनकी 7 साल की शादी में 5 साल का बेटा भी है। पर हाल ही में बैंक में पीओ का पद प्राप्त करने वाली पत्नी ने साफ कर दिया है कि वह पति के साथ और नहीं रह सकती। कारण यह बताया है कि जब वह कार्यरत नहीं थी तो पति हर समय काम न करने का ताना उसे मारता रहता था। अतः अब उसे ऐसे पति के साथ और नहीं रहना।

सब-इन्स्पेक्टर पत्नी कथित रूप से करती थी हवालदार पति की पब्लिक में पिटाई

एक अन्य मामले में सब-इन्स्पेक्टर पत्नी ने कहा कि वो अपने से नीचे, हवलदार के पद की नौकरी कर रहे पति के साथ अब और नहीं रह सकती। तीन साल पहले हुई शादी के शुरुआती समय के बाद पत्नी-पति में ओहदे का अहम टकराने लगा। तथाकथित रूप से पत्नी ने कई बार पति की लोगों के बीच खुलेआम पिटाई भी कर दी।

तलाक के केस में काउंसलिंग के दौरान पत्नी ने कहा कि वह अपने पति से अधिक कमाती है, और अपने से कम ओहदे वाले इन्सान के साथ नहीं रह सकती।

पुरुष अधिकार कार्यकर्ता की राय

सामाजिक कार्यकर्ता दीपिका भारद्वाज ने इस मामले पर ट्वीट करते हुए कहा:

काउंसलर कहते हैं कि अक्सर जब महिलाएँ नौकरी में बड़ी सफलता पा लेतीं हैं तो वे पति के साथ नहीं रहना चाहतीं- भले ही उन्हें वह सफलता दिलाने में पति द्वारा दिलाई गई शिक्षा और किया गया संघर्ष हो। उदाहरण उन महिलाओं का है जिन्होंने अपने पति के ‘निचले स्टेटस’ के चलते तलाक की अर्जी दी है।

दीपिका भारद्वाज समाज और क़ानून में व्याप्त पुरुष-विरोधी लिंगभेद (Misandry) व पुरुषों पर महिलाओं के द्वारा होने वाले अत्याचारों के खिलाफ और उनके हक़ की लड़ाई लड़तीं हैं।

रॉलो तोमासी:

मशहूर ब्लॉगर और ‘The Rational Male’ किताब के लेखक रॉलो तोमासी अपने ब्लॉग पर इस मुद्दे पर कई विस्तृत लेख लिख चुके हैं। वह इस बारे में अक्सर ट्विटर पर भी लिखते रहते हैं। उनके अनुसार महिलाओं में यह Hypergamy नामक प्रवृत्ति अनुवांशिक विकास (genetic evolution) से आई हुई है। वह कहते हैं कि महिलाएँ अपना यौन और सामाजिक जोड़ीदार हमेशा अपने से ‘ऊँचे’ दर्जे का ही चाहतीं हैं- यह उनकी genetic प्रवृत्ति है, कोई चैतन्य निर्णय (conscious decision) नहीं, और यह अनुवांशिक विकास से विकसित हुई विशेषता है। ज़रूरी नहीं कि ऊंचे-नीचे का अंतर आर्थिक ही हो, पर यह महिलाओं के पार्टनर के चुनाव में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक पहलू होता ज़रूर है।

VIDEO: ‘तुम्हारे बाप की मौत में आया था’ आज़म ख़ान ने अब पत्रकारों से की बदसलूकी

आज़म ख़ान ने इस बार विवादित बयान देने और बदसलूकी करने का नया रिकॉर्ड बनाने की ठान ली है। अब उन्होंने पत्रकारों से भी दुर्व्यवहार किया है। अभिनेत्री जयाप्रदा को लेकर ‘खाकी अंडरवियर’ वाला महिलाविरोधी बयान देने के बाद आज़म ने डीएम से मायावती की जूती साफ़ करवाने की बात कही। इसके बाद अब उन्होंने एक पत्रकार से बदसलूकी करते हुए कहा, “आपके वालिद की मौत में आया था, आपके वालिद मर गए हैं उसमें आया था।” आज़म ख़ान ने उक्त विवादित बयान विदिशा में दिया। मध्य प्रदेश के विदिशा में दिवंगत सांसद मुनव्वर सलीम के अंतिम क्रिया-कर्म से लौटते वक़्त आज़म ने ऐसा कहा। जयाप्रदा के बारे में सवाल पूछने पर आज़म ख़ान भड़क गए।

बता दें कि विदिशा निवासी मुनव्वर सलीम समाजवादी पार्टी के राज्य सभा सांसद थे। उन्हें उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के लिए चुना गया था। चौधरी मुनव्वर सलीम को 2012 में राज्य सभा भेजकर तत्कालीन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने मध्य प्रदेश में मुस्लिम मतों को साधने की कोशिश की थी। 2009 आम चुनाव में विदिशा में सुषमा स्वराज से 3.89 लाख से भी अधिक वोटों से चुनाव हार चुके सलीम मध्य प्रदेश में सपा के लिए मुस्लिमों का चेहरा बनकर उभरे थे। उन्होंने विदिशा से ही 2004 में शिवराज सिंह चौहान के ख़िलाफ़ भी चुनाव लड़ा थे लेकिन वो तीसरे नंबर पर रहे थे। 66 वर्षीय सलीम का रविवार (अप्रैल 13, 2019) को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। 8 भाई-बहनों में सबसे बड़े सलीम आज़म ख़ान के क़रीबी थे।

आज़म ख़ान ने सलीम के अंतिम संस्कार से लौटते समय पत्रकारों का अपमान किया। उन्होंने पत्रकारों के सवालों का जवाब देने से भी साफ़ इनकार कर दिया और फिर वहाँ से चल निकले। बता दें कि उनके विवादित बयान के लिए आज़म ख़ान के ख़िलाफ़ FIR भी दर्ज कर ली गई है। महिला आयोग ने भी उन्हें नोटिस भेजा है। उनके इस बयान को घिनौना बताते हुए महिला आयोग की अध्यक्षा रेखा शर्मा ने कहा था कि वो निर्वाचन आयोग से अनुरोध करेंगी कि उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाए। सपा नेता अपर्णा यादव, कॉन्ग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उनके बयानों की निंदा की है। हैरत यह कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज़म ख़ान का बचाव किया है।

आज़म ख़ान पर पलटवार करते हुए जयाप्रदा ने कहा:

“मेरे लिए ये कोई नई बात नहीं है। मैं साल 2009 में उन्हीं की पार्टी से प्रत्याशी थी। उस समय भी ऐसी टिप्पणी की गई थी। आज़म खान को आदत है। अगर ऐसी टिप्पणी नहीं करते हैं तो नई बात होगी। हम लोग इसे रिपीट नहीं कर सकते है। वो मेरे लिए भाई नहीं हैं। पता नहीं मैंने क्या बोल दिया कि वो ऐसी टिप्पणी कर रहे। मैं चाहती हूँ कि आज़म ख़ान का चुनाव रद्द होना चाहिए। क्योंकि अगर ये चुनाव जीत गए तो फिर लोकतंत्र का क्‍या होगा। क्या मैं मर जाऊँ? अगर आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं रामपुर से चली जाऊँगी तो मैं कहना चाहती हूँ कि मैं नहीं जाऊँगी और डटकर चुनाव लड़ूँगी।”

वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज़म ख़ान द्वारा जयाप्रदा पर आपत्तिजनक टिप्पणी की निंदा करते हुए कहा कि उन्होंने आज़म ख़ान जैसे लोगों के लिए ही सरकार बनने के बाद एंटी-रोमियो स्क्वाड गठित की थी। उन्होंने इस बयान पर अखिलेश यादव और मायावती की चुप्पी को शर्मनाक बताया। बता दें कि अखिलेश यादव आज़म ख़ान के बयान का बचाव करते हुए कह चुके हैं कि उन्होंने किसी और के लिए ये चीजें कही थीं।अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, “एक महिला पर अपमानजनक टिप्पणी की गई और सपा नेताओं ने इस पर चुप्पी साध ली, वो चुप बैठे रहे। मैं सपा नेताओं से कहना चाहती हूँ कि राजनीति अपनी जगह है लेकिन महिलाओं के सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए।

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कहा कि जिस देश में माँ-बेटियों का सम्मान होता है, उस देश में इस तरह की भाषा के लिए जनता उन्हें माफ़ नहीं करेगी।

7 दिन, 6 हमले, 5 हत्याएँ: संघी ही ‘फासिस्ट’, और संघी ही असुरक्षित

सोशल मीडिया में चर्चित स्तंभकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक अभिनव प्रकाश ने आज सुबह ही लिखा:

Real Fascism in the last 7 days –

1.RSS leader murdered by Islamists in Kashmir

2. BJP MLA murdered by leftists in CG.

3. 75 yr old Modi supporter lynched by Cong-DMK supporter in TN.

4. BJP Mandal President shot dead in Odisha.

Media & activists in seminars: BJP is fascist.’

उन्हें शायद खुद यह अंदेशा नहीं होगा कि उनकी पोस्ट पुरानी पड़ते-पड़ते दो और मामले प्रकाश में आ जाएंगे- तमिलनाडु में भाजपा सदस्य की लाश पानी में तैरती मिली, और महाराष्ट्र में भाजपा के महज समर्थन के लिए एक आदमी की न केवल पिटाई हुई, बल्कि एनडीटीवी पत्रकार ने उसे हल्का करने की भी कोशिश की

और विडंबना यह है कि इतने के बावजूद कि ‘अपने राज’ में ही संघी-भाजपाई मारे जा रहे हैं, मीडिया और समाज का एक वर्ग उन्हीं पर देश को असुरक्षित करने का आरोप लगा रहा है। ‘फासिस्ट’ से लेकर ‘आतंकवादी’ और ‘चड्ढी गैंग’ तक शायद ही ऐसी कोई राजनीतिक गाली है, जो संघ परिवार ने नहीं खाई है।

कश्मीर में संघ पदाधिकारी की दिनदहाड़े हत्या

संघ के पदाधिकारी चंद्रकांत शर्मा की न केवल अपने सुरक्षाकर्मी सहित हत्या होती है, बल्कि हत्या भी कश्मीर में होती है। एक अस्पताल के भीतर होती है– एक ओर ‘पुलिस स्टेट’ यानी अत्यधिक पुलिसिंग वाले राज्य के रूप में कश्मीर बदनाम है, और आरोप भाजपा पर ही है। वहीं दूसरी ओर लोकसभा चुनाव जैसे सुरक्षा के लिहाज से वैसे भी संवेदनशील समय में, पुलिस स्टेट के नाम से बदनाम राज्य में, भाजपा अपने ही लोगों को सुरक्षित नहीं रख पा रही है।

माओवादियों ने भाजपा विधायक को गोलियों से भूना

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में भाजपा विधायक भीमा मंडावी को 4 सुरक्षा कर्मियों समेत घेर कर मार डाला गया। माओवादियों ने उनकी गाड़ी के मार्ग में विस्फोटक लगा दिए और धमाके में उनके और गाड़ी में मौजूद लोगों के चीथड़े उड़ा दिए। माओवादी आतंकियों को भीमा मंडावी के जाने का मार्ग इतने सटीक तरीके से कैसे मालूम था, यह भी अभी साफ नहीं है।

मोदी का समर्थन करने के लिए वृद्ध की हत्या   

तमिलनाडु में एक 75 साल के कृशकाय वृद्ध व्यक्ति की केवल इसलिए हत्या कर दी गई कि उसने मोदी का ‘फैन’ होने की हिमाकत की थी। गोविंदराजन केवल मोदी ही नहीं, जयललिता और एमजी रामचंद्रन के भी फैन थे। पर अफ़सोस की बात यह हुई कि उन्हें पीटने वाला गोपीनाथ कॉन्ग्रेस-द्रमुक गठबंधन का फैन था, अतः उसके लिए तीनों ही नाम असह्य थे।

ओडिशा में भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष को गोली मारी

ओडिशा में भाजपा के क्षेत्रीय (ज़ोनल) अध्यक्ष मंगुली जेना की ओडिशा के खुर्दा में ‘अज्ञात हमलावर’ ने गोली मारकर हत्या कर दी।  रविवार (14 अप्रैल) रात को दिन भर की दोहरी राजनीतिक गहमागहमी (ओडिशा में लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं) के बाद जेना अपने घर के लिए ही निकल रहे थे। इस हमले में उनके बगल में खड़े खुर्दा विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार कालू खंडयात्रेय बाल-बाल बचे।

भाजपा समर्थक की पिटाई, पत्रकारिता के समुदाय विशेष की चीयरलीडिंग   

महाराष्ट्र में किसी मोदी समर्थक ने मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे की आलोचना कर दी। मनसे वालों को इतना बुरा लगा कि उसके घर में घुसकर, उसे उसके घर वालों के सामने पीटा। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो एनडीटीवी के पत्रकार ने मामले की सीधी भर्त्सना करने की बजाय घुमा-फिर कर यह जताने की कोशिश की पीड़ित यदि खुद ‘गुंडा’ (यानी भाजपा समर्थक) न होता तो उसके साथ यह न होता।

तालाब में मिली भाजपाई की लाश

तमिलनाडु अब केरल-बंगाल के बाद भाजपाइयों-संघियों के तीसरे कब्रगाह में तब्दील हो रहा है। पहले भाजपा का फैन भर होने की कीमत एक बूढ़े व्यक्ति को जान देकर चुकानी पड़ी, और अब भाजपा के सदस्य की लाश एक तालाब में तैरती मिली है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आना जरूर बाकी है पर सोशल मीडिया में हंसिया से कत्ल किए जाने की खबर तैर रही है।

मीडिया में हमेशा की तरह सन्नाटा

मुख्यधारा की मीडिया ने हमेशा की तरह मौन व्रत ले रखा है। किसी-किसी मामले में बोलना पड़ भी रहा है तो एक-एक शब्द इतनी कंजूसी से निकल रहा है कि मानों शोक जताने पर भी आचार संहिता लगी हुई है। न अब कहीं असहिष्णुता फ़ैल रही है न ही ‘emerging pattern of violence in the society’ पर प्राइम-टाइम डिबेट चल रहा है।

फिर भी, असहिष्णु भी संघ है, हत्यारा भी संघ है, सब मीडिया पर कब्ज़ा भी संघियों का हो गया है…

राहुल ने केजरी को कहा ‘U-Turn’ तो केजरी ने उन्हें बताया ‘दिखावटी’, Twitter पर रगड़े-झगड़े

दिल्ली में गठबंधन का रार थमता नज़र नहीं आ रहा है। कभी ख़बर आती है कि डील फाइनल हो चुकी है तो कभी समाचार मिलता है कि बातचीत बंद हो गई है। कभी ख़बर आती है कि बंद दरवाजों में बातचीत शुरू हो गई है तो कभी सूचना मिलती है कि बात नहीं बन सकी। कभी अरविन्द केजरीवाल ट्वीट कर राहुल गाँधी को नसीहत देते हैं तो कभी शीला दीक्षित मीडिया में आकर केजरीवाल की बढ़ी हुई माँगों के कारण उन्हें घेरती हैं। अब गठबंधन का ये रार पूरी तरह ट्विटर पर उतर आया है। दोनों पार्टी के बीच ट्विटर पर ही तू-तू, मैं-मैं शुरू हो चुका है। इसमें कुछ पत्रकार और अन्य नेतागण भी मज़े ले रहे हैं। इन दोनों के रगड़े में यूजर्स के तो मज़े ही मज़े हैं।

राहुल गाँधी ने ट्वीट कर कहा कि अरविन्द केजरीवाल ने फिर से यू-टर्न लिया है। उन्होंने लिखा कि दिल्ली में आप-कॉन्ग्रेस गठबंधन का सीधा परिणाम यह होगा कि भाजपा की कड़ी हार हो जाएगी। उन्होंने अपनी पार्टी के ‘त्याग’ का जिक्र करते हुए लिखा कि कॉन्ग्रेस आप को 4 सीटें देने को राजी है लेकिन आप नहीं मान रही। केजरीवाल के यू-टर्न का जिक्र करते हुए राहुल ने कहा कि गठबंधन के लिए उनके दरवाजे खुले हैं लेकिन समय तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।

राहुल गाँधी के इस बयान पर मोदी-शाह नामक ‘ख़तरे’ का जिक्र करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा कि राहुल गाँधी दिखावा और बयानबाज़ी कर रहे हैं। उन्होंने राहुल गाँधी पर यूपी सहित अन्य राज्यों में भी मोदी विरोधी वोट बाँटने का आरोप लगाया। इसके बाद आम आदमी पार्टी छोड़ चुके आशुतोष का भी दर्द छलक आया और उन्होंने मोदी-शाह को हराने के लिए दिल्ली पर बातचीत करने और हरियाणा तथा चडीगढ़ को बिना लिंक किए बातचीत करने की सलाह दी।

ट्विटर यूजर्स ने इस बीच जम कर मज़े लिए। एक यूजर ने लिखा कि अगर कॉन्ग्रेस ज्यादा दिमाग चला लेती तो ये लोग साढ़े-साढ़े तीन सीटों पर भी समझौता कर सकते थे।

एक अन्य यूजर ने आशुतोष की रोती हुई फोटो शेयर कर के उनके हवाले से लिखा कि गठबंधन कर लो वरना मोदीजी जीत जाएँगे। बाद में किसी ने उस पर रिप्लाई किया कि आशुतोष तो न अब पत्रकार रहे और न नेता।

फिलहाल आप-कॉन्ग्रेस गठबंधन पर राजनीतिक पंडित तरह-तरह के आकलन लगा रहे हैं लेकिन अभी तक बात बनती दिख नहीं रही। हाल ही में अरविन्द केजरीवाल ने कहा था कि वो इस गठबंधन के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।

बिहार में कॉन्ग्रेस को बड़ा झटका, बग़ावती शकील अहमद मधुबनी से निर्दलीय लड़ेंगे चुनाव

बिहार महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कॉन्ग्रेस को बिहार में तगड़ा झटका लगा है। पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री शकील अहमद ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर पार्टी को सांसत में डाल दिया है। मधुबनी से 2 बार सांसद रहे शकील के बग़ावती तेवर से कॉन्ग्रेस को क्षेत्र में अच्छा-ख़ासा घाटा होने की उम्मीद है। शकील अहमद ने एक ट्वीट कर ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता पद से इस्तीफा देने की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वे अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी को भेजने जा रहे हैं। शकील अहमद कल मंगलवार (अप्रैल 16, 2019) को मधुबनी से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा दाखिल करेंगे।

शकील अहमद पार्टी से इसीलिए नाराज़ चल रहे थे क्योंकि मधुबनी सीट बिहार महागठबंधन के समझौतों के बाद मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी को दे दी गई। इससे पहले अहमद ने पत्रकारों से कहा था कि उन्होंने अपनी पार्टी से समर्थन माँगा है और समर्थन न मिलने की स्थिति में उनका निर्दलीय लड़ना तय है। शकील अहमद ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे सुपौल में कॉन्ग्रेस उम्मीदवार रंजीत रंजन के विरुद्ध राजद समर्थक उम्मीदवार मैदान में है, ठीक उसी तरह मधुबनी में भी उन्हें कॉन्ग्रेस का समर्थन मिलना चाहिए। उन्होंने पूछा कि अगर सुपौल में ऐसा हो सकता है तो मधुबनी में क्यों नहीं?

शकील अहमद ने कहा कि महागठबंधन प्रत्याशी मधुबनी में भाजपा के ख़िलाफ़ जीतने की ताक़त नहीं रखता है। बता दें कि मधुबनी से मौजूदा भाजपा सांसद हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक यादव मैदान में हैं। सांसद के तौर पर अपनी उपलब्धियों के लिए पुरस्कृत हो चुके हुकुमदेव पद्म भूषण भी प्राप्त कर चुके हैं। पाँच बार सांसद रह चुके यादव 2 बार शकील अहमद से हार भी चुके हैं। 1999 आम चुनाव में उन्होंने शकील अहमद को हराया भी था। इलाक़े में दोनों के बीच हमेशा काँटे की टक्कर रहती है। वहीं अशोक यादव भी विधायक रह चुके हैं। शकील द्वारा नामांकन भरने से यहाँ मुक़ाबला त्रिकोणीय हो जाएगा। हुकुमदेव ने सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी है।

शकील अहमद यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान संचार, आईटी और गृह सहित कई अहम मंत्रालयों में केन्द्रीय राज्यमंत्री रह चुके हैं। शकील अहमद बिहार की राबड़ी देवी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। पार्टी संगठन में सक्रिय शकील को 2011 में पश्चिम बंगाल में कॉन्ग्रेस का प्रभारी नियुक्त किया गया था। शकील अहमद ने दावा किया है कि कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता और स्थानीय नेता उनके साथ हैं, जिससे उन्हें मधुबनी में भाजपा को हराने में मदद मिलेगी। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में भी पार्टी के प्रभारी रह चुके शकील कॉन्ग्रेस के महासचिव के तौर पर भी काम कर चुके हैं।

मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी ने मधुबनी से पूर्व राजद नेता बद्रीनाथ पूर्वे को टिकट दिया है। बिहार महागठबंधन ख़ासकर राजद के नेता तेज प्रताप यादव के बग़ावत के कारण पहले ही परेशान हैं। अब शकील अहमद की नाराज़गी भी खुल कर बाहर आ गई है। मधुबनी मिथिलांचल की प्रमुख सीटों में से एक है जहाँ शकील अहमद के मैदान में उतरने के बाद मुक़ाबला दिलचस्प हो जाएगा।