Tuesday, October 1, 2024
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मनोहर पर्रिकर के इस बड़े फैसले ने देशवासियों के बचाए ₹49,300 करोड़

लंबे समय से कैंसर की बीमारी से जूझ रहे गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का रविवार को निधन हो गया। जीवन और राजनीति में फाइटर रहे पर्रिकर अंतिम समय में भी एक फाइटर की तरह लड़े। उनकी सादगी और कर्मठता की हर कोई सराहना कर रहा है।

मनोहर पर्रिकर नवंबर 2014 से मार्च 2017 तक देश के रक्षा मंत्री रहे। 2017 में रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देकर वो गोवा के सीएम बने। बतौर रक्षा मंत्री, पर्रिकर ने देश के हित में कई ऐसे अहम फैसले लिए हैं, जिसकी मिसाल दी जाती है। साल 2016 में जब भारतीय जवानों ने PoK में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया था, उस समय देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ही थे और इनकी अगुवाई में ही इतने बड़े पैमाने पर सर्जिकल स्ट्राइक की योजना को अंजाम दिया गया था। और इससे पहले भी जब साल 2015 में भारतीय फौज ने म्यांमार में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया था, तब भी देश के रक्षा मंत्री पर्रिकर ही थे।

इतना ही नहीं पर्रिकर ने रक्षा मंत्री रहते हुए कई ऐसे भी फैसले लिए हैं, जिसका फायदा देश को 2027 तक होता रहेगा। इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान देश के एयर डिफेंस प्लांस में बदलाव किए, जिसकी वजह से अब अगले दशक तक एयर डिफेंस सिस्टम्स की खरीद पर देश के टैक्स देने वाले नागरिकों के ₹49,300 करोड़ बचने की संभावना हैं।

आपको बता दें कि मनोहर पर्रिकर ने रूस के एस-400 लॉन्ग रेंज मिसाइल शील्ड की ऊँची कीमत को देखते हुए 2027 तक नए एयर डिफेंस सिस्टम्स की खरीद के लिए 15 वर्ष के टर्म प्लान की समीक्षा का आदेश दिया। इस समीक्षा प्रक्रिया में कम दूरी के एयर डिफेंस सिस्टम्स की खरीद घटाने पर सर्वसहमति बनी। एस-400 एक ऐसी मिसाइल है, जो चोरी- छुपे हमला करने आ रहे विमानों और मिसाइलों को 380 किमी की दूरी से ही मार गिराने में सक्षम  है।

हालाँकि, एयर डिफेंस स्ट्रैटजी तीन स्तरों की होती है- 25 किमी तक की दूरी से अति गंभीर उपकरणों की सुरक्षा के लिए कम दूरी वाले सिस्टम, 40 किमी तक की मध्यम दूरी वाले सिस्टम और इससे ज्यादा दूरी के खतरों से रक्षा के लिए लंबी दूरी के सिस्टम। मगर मनोहर पर्रिकर ने वायु सेना को इस बात के लिए सहमत किया कि उनकी त्रिस्तरीय सुरक्षा योजना के मुताबिक लंबी दूरी के सिस्टम (एस-400) से मध्यम एवं कम दूरी के एसएएम की कोई जरूरत नहीं रहेगी और ये बेकार हो जाएँगे। जिसके बाद वायु सेना भी इसके लिए सहमत हो गए और ये डील भारत का अब तक का सबसे सस्ता डील बताया जा रहा है।

प्रियंका चली राहुल की ‘चाल’: प्रयाग से काशी तक बोट यात्रा, हनुमान मंदिर में पूजा

कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने आधिकारिक रूप से उत्तर प्रदेश के चुनावी महासमर में पार्टी के चुनाव प्रचार की शुरुआत कर दी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनावी जिम्मेदारी संभाल रही प्रियंका गाँधी ने हिन्दुओं को लुभाने और भाजपा के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए पूजा-पाठ से अपने चुनावी प्रचार अभियान की शुरुआत की। उन्होंने प्रयागराज से वाराणसी तक गंगा में बोट यात्रा भी शुरू कर दी है। रविवार (मार्च 17, 2019) रात को ही प्रयागराज पहुँची प्रियंका ने अपनी दादी के घर स्वराज भवन में रात गुजारी। गंगा यात्रा के लिए सुबह में निकली प्रियंका ने सबसे पहले संगम क्षेत्र स्थित बड़े हनुमान जी मंदिर में पूजा-अर्चना की। उन्होंने वहाँ आरती में भी हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने किला स्थित अक्षयवट और सरस्वती कूप का भी दर्शन किया।

स्वराज भवन को पूर्व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू ने बनवाया था। बाद में उन्होंने इसे कॉन्ग्रेस कमेटी को। संगम पहुँच कर प्रियंका गाँधी ने गंगा आरती में हिस्सा लिया। इसके बाद वह नाव पर सवार होकर अरैल गईं। अरैल में कार से वह करछना के मनैया घाट पहुंची। वहाँ से वह मोटरबोट में सवार होकर उन्होंने गंगा यात्रा रैली शुरू कर दी। प्रदेश कॉन्ग्रेस प्रवक्ता किशोर ने उनके कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा:

“प्रियंका गाँधी स्टीमर से दुमदुमा, सिरसा, लाक्षागृह, महेवा, कौंधियारा में स्थानीय लोगों से मिलेंगी। दौरे के पहले दिन प्रियंका पुलवामा के शहीद महेश यादव के परिजनों से मिलने मेजा स्थित बदल का पुरवा गाँव जाएँगी। प्रियंका सीतामढ़ी में रात्रि विश्राम करेंगी।”

इस यात्रा को सफल बनाने के लिए सोनिया गाँधी के लिए सोनिया गाँधी के सचिव द्वय केएल शर्मा और ज़ुबैर ख़ान लगे हुए हैं। प्रियंका की इस रैली को सफल बनाने के लिए कॉन्ग्रेस ने जी-जान झोंक दी है। प्रियंका द्वारा गंगा में बोत यात्रा निकाले जाने को नरेंद्र मोदी के ‘मुझे माँ गंगा ने बुलाया है’ वाले अभियान की काट के रूप में देखा जा रहा है। बता दें कि 2014 के चुनाव में मोदी ने वाराणसी में माँ गंगा का ज़िक्र किया था। उसके बाद वे समय-समय पर निर्मल गंगा की बात करते रहे हैं। प्रियंका द्वारा हनुमान मंदिर में पूजा करना भी कॉन्ग्रेस के सॉफ्ट-हिंदुत्व की तरह देखा जा रहा है।

प्रियंका गाँधी की इस रैली में उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर भी शामिल होंगे। क़रीब 150 किलोमीटर की इस यात्रा को पूरी करने के बाद प्रियंका वाराणसी में पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात करेंगी। इससे पहले प्रियंका लखनऊ में रोड शो कर चुकी हैं। उनकी यह यात्रा 38 गाँवों से होकर निकलेगी। ताज़ा रैली के दौरान वह विंध्यवासिनी व विश्वनाथ मंदिर में दर्शन भी करेंगी। इस दौरान प्रियंका गाँधी निम्नलिखित चीजों को कवर करेंगी:

  • मंदिर: बड़े हनुमान मंदिर, विंध्यवासिनी मंदिर, बाबा विश्वनाथ मंदिर
  • संसदीय क्षेत्र: इलाहाबाद, फूलपुर, भदोही, मीरजापुर, चंदौली और वाराणसी
  • रैली का स्टॉपेज: मनैया, दुमदुमा, सिरसा, लाक्षागृह व मांडा

लोकसभा चुनाव 2019: कॉन्ग्रेस को नहीं मिल रहा कोई साथी, ‘बुरे दिनों’ की शुरुआत

लोकसभा चुनाव के महासंग्राम में जोड़-तोड़ का का समीकरण हर ओर छाया है। आपसी गठबंधन पर बनते-बिगड़ते समीकरणों का ताना-बाना में लगभग हर पार्टी बुनने में व्यस्त है। ऐसे में कॉन्ग्रेस अपने बुरे दौर में साथियों की तलाश में है जिसके सहारे वो चुनावी मैदान में खुद को उतार सके। उत्तर प्रदेश में तो सपा-बसपा गठबंधन ने कॉन्ग्रेस को कोई तरजीह नहीं दी और शुरुआत से ही कॉन्ग्रेस को गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाया। वो बात अलग है कि कॉन्ग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा बनने को पूरी तरह से लालायित थी।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने एक ट्वीट से यह स्पष्ट किया कि कॉन्ग्रेस पार्टी से उसका कोई तालमेल या गठबंधन नहीं है और लिखा कि लोग कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा फैलाए जा रहे तरह-तरह के भ्रमों में न आयें। मायावती के इस ट्वीट से कॉन्ग्रेस की स्थिति साफ हो जाती है कि यूपी में उसके साथ कोई नहीं है।

अपने एक अन्य ट्वीट में मायावती ने कॉन्ग्रेस को लगभग लताड़ लगाते हुए लिखा कि वो यूपी में पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, चाहें तो सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दे लेकिन ज़बरदस्ती ये भ्रांति न फैलाए कि उसने यूपी में गठबंधन के लिए 7 सीटें छोड़ दी हैं।

ऐसा ही कुछ हुआ पश्चिम बंगाल में, जहाँ बीते रविवार को पश्चिम बंगाल कॉन्ग्रेस ने वाम मोर्चे के साथ गठबंधन की अपनी सभी संभावनाओं को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बता दें कि पश्चिम बंगाल कॉन्ग्रेस की यह घोषणा तब की गई जब वाम मोर्चे ने 42 संसदीय सीटों में से 25 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा दो दिन पहले ही कर दी थी।

पश्चिम बंगाल के कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोमेन नाथ मित्रा ने कहा, “वाम मोर्चे ने 15 मार्च को पश्चिम बंगाल में 25 लोकसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट की घोषणा की, जिसमें पश्चिम बंगाल की कॉन्ग्रेस के साथ कोई चर्चा नहीं की गई। वाम मोर्चे में CPI (M) और उसके सहयोगी दलों के एकजुट होने की वजह से, हम राज्य में प्रस्तावित सीट बँटवारे संबंधी संभावनाओं पर विराम लगा रहे हैं और बंगाल में स्वयं के बल पर बीजेपी और तृणमूल कॉन्गेस से लड़ने का फैसला किया है।”

यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह से कॉन्ग्रेस पार्टी का दामन कोई थामने को तैयार नहीं है उससे उसके बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है। अब देखना होगा कि चुनावी दौर में कॉन्ग्रेस को अभी और कितने झटके लगने बाकी हैं।

सपा प्रत्याशी ‘मुन्नी’ के खिलाफ मुकदमा दर्ज, आचार संहिता उल्लंघन का आरोप

चुनाव की तारीख़ों की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है। साथ ही इसके उल्लंघन की खबरें भी आनी शुरू हो गईं। आपको बता दें कि आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में गाजियाबाद के साहिबाबाद व इंदिरापुरम में पुलिस ने 24 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है। जिसमें सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी सुरेंद्र कुमार उर्फ मुन्नी भी शामिल हैं। इनके ऊपर आरोप है कि ये वसुंधरा सेक्टर-11 में होली मिलन समारोह में चुनावी भाषण दे रहे थे।

इंदिरापुरम थाना प्रभारी निरीक्षक संदीप कुमार सिंह ने बताया कि वसुंधरा सेक्टर-11 में बिना अनुमति होली
मिलन समारोह मनाया जा रहा था। इसमें सुरेंद्र कुमार को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था। इस दौरान उन्होंने चुनावी भाषण तो दिए ही, साथ ही वोट भी माँग लिए। यह सीधे तौर पर आचार संहिता का उल्लंघन बताया जा रहा है। फ्लाइंग स्क्वायड की तहरीर पर पुलिस ने दोनों मामलों में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में रिपोर्ट दर्ज की है। फ्लाइंग स्क्वॉड ने सुरेंद्र कुमार सहित जयचंद शर्मा, जे पी शर्मा, सी पी शर्मा और विजय भारद्वाज के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है। मामले की जाँच की जा रही है। आरोप सिद्ध होने पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

खबरों की मानें तो इससे जुड़ा एक विडियो भी सामने आया है। इस वीडियो में सुरेंद्र कुमार उर्फ मुन्नी सार्वजनिक होली मिलन कार्यक्रम में वोट माँगते दिख रहे हैं। इस मामले पर सुरेंद्र कुमार का कहना है कि होली समारोह में जाना कोई गुनाह नहीं है और अगर उनके खिलाफ केस हुआ है तो इसका जवाब कानूनी प्रक्रिया के तहत देंगे। इसके साथ ही उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि ये सब भाजपा की साजिश है। बीजेपी के नेता तमाम जगह भाषण दे रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

पैदा हुई जुड़वाँ बेटियाँ, माँ-बाप ने निकाली बारात: AC बग्घी, ढोल-नगाड़ों पर कर डाला 15 लाख रुपए खर्च

आज के बदलते दौर में कई बार ऐसे मौक़े आते हैं जब समाज में बेटी-बेटे के फ़र्क को मिटाने का भरपूर प्रयास किया जाता है। ऐसा करने के पीछे दुनिया को एक संदेश देना भी होता है कि बेटियाँ किसी भी मायने में बेटों से कम नहीं होतीं। अपनी इन्हीं कोशिशों को प्रेरणा का रूप देते हुए गुजरात के एक परिवार ने मिसाल क़ायम करने का अनूठा काम किया।

दरअसल, गुजरात के सूरत में रविवार को (मार्च 17, 2019) एक ऐसी बारात बड़ी धूमधाम से निकाली गई, जिसे देखकर लोगों को यही लगा कि कहीं किसी शादी का अवसर है और ये बारात वहीं जा रही है। बैंड-बाजे के साथ सजी बग्घी के आसपास लोग नाचते-गाते बड़ी खुशी के साथ एक घर पहुँचे। जहाँ इस बात का ख़ुलासा हुआ कि यह कोई शादी का समारोह नहीं था बल्कि दो बेटियों (जुड़वाँ) के जन्म पर उन्हें उनके ननिहाल से अपने घर लाया जा रहा था।

जुड़वाँ बेटियों को ननिहाल से घर तक लाने के लिए AC बग्घी का इस्तेमाल किया गया

ख़बर के अनुसार, आशीष जैन की पत्नी प्रतिमा ने जुड़वाँ बेटियों को जन्म दिया, जिसके बाद वो अस्पताल से अपने मायके गईं थीं। लेकिन बात जब बेटियों को घर लाने की हुई तो अपनी ख़ुशी को ज़ाहिर करने के लिए उनके पिता आशीष जैन ने कुछ ऐसे अनोखे अंदाज़ में स्वागत किया कि वो समाज में एक अमिट छाप छोड़ने के साथ-साथ पिता के भावुकता वाले पहलू को भी दर्शाता है। आशीष का कहना है कि बेटियों का इस तरह स्वागत करने का मक़सद यह था कि वो समाज को यह बता सकें कि बेटी और बेटे में कोई अंतर नहीं होता।

बता दें कि इस बारात पर बेटियों के पिता ने ₹15 लाख खर्च किए। घर को दुल्हन की तरह सजाया गया और एयर कंडीशन बग्घी का इस्तेमाल किया गया, जिससे बच्चियों को किसी तरह की असुविधा न हो। इसके अलावा नाते-रिश्तेदारों को आमंत्रित किया गया, जिन्होंने इस विशेष मौक़े पर जमकर नाच-गाना भी किया।

सच पूछें तो बेटियों को लेकर इस तरह की सोच और भव्य स्वागत तालियों की हक़दार है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है। यदि आज इस तरह की सकारात्मक सोच हर किसी की हो जाए तो दुनिया के किसी कोने में कन्या-भ्रूण हत्या जैसी तमाम समस्याएँ खत्म हो जाएँगी।

26 साल बाद होगी OBC ‘क्रीमी लेयर’ के नियमों पर समीक्षा, समिति का हुआ गठन

सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा 8 मार्च को एक समिति का गठन किया गया है। जिसका कार्य 26 साल पहले ओबीसी ‘क्रीमी लेयर’ के लिए बने नियमों की समीक्षा करना है। समिति को 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है।

1993 में ओबीसी ‘क्रीमी लेयर’ के लिए कुछ नियम तय किए गए थे, जिनकी समीक्षा अब तक नहीं हुई थी। 2019 में 26 साल बाद सरकार ने इन नियमों की समीक्षा के लिए कुछ विशेषज्ञों की समिति का गठन किया है। जिसका नेतृत्व भारत सरकार के पूर्व सचिव बीपी शर्मा द्वारा किया जाएगा।

इस समिति का कार्य 1993 में प्रसाद समिति द्वारा तय नियमों की समीक्षा करना है, ताकि क्रीमी लेयर की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने, सरल बनाने और सुधार करने के लिए सुझाव दिए जा सकें। यह समिति इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई व्यव्स्थाओं को ध्यान में रखते हुए नियमों की समीक्षा करेगी।

दरअसल, 26 साल बाद इन नियमों में समीक्षा करने की जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग पीएसयू में कार्यरत लोगों को ‘क्रीमी लेयर’ वर्ग का तय करने के लिए पारिवारिक आय के अलग-अलग पैमानों को आधार बनाता है। जिसके कारण विवाद पैदा होता है। इस मुसीबत का असली कारण यह है कि पीएसयू में पदों को ग्रुप ए, बी, सी और डी में बाँटा नहीं गया है जबकि सरकारी नौकरियों में अलग-अलग ग्रुपों का प्रावधान है। इससे कारण बहुत कंफ्यूजन होता है।

बता दें कि यहाँ ‘क्रीमी लेयर’ का प्रयोग ओबीसी वर्ग में आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। इन लोगों को मंडल आयोग में किए गए आरक्षणों के प्रावधान का पात्र नहीं माना जाता है। इसलिए इन्हें आरक्षण के लाभ से बाहर रखने के लिए प्रसाद कमिटी की रिपोर्ट पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के 1993 के मेमोरंडम द्वारा नियम तय किए गए थे।

हालाँकि, नियमों पर समीक्षा के लिए समिति के गठन से ‘पिछड़ा वर्ग अधिकार’ के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता नाराज़ हैं और इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा सदस्यों पर आधारित एनसीबीसी (राष्ट्रीय पिछड़ आयोग) के पास ओबीसी से जुड़े प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सुझाव देने की शक्ति है, इसलिए ऐसे में एक अलग समिति की कोई जरूरत नहीं है।

सस्ता सामान, आश्वासन टिकाऊ: चीन की दोमुँही विदेश नीति

चीन अपने सस्ते सामान के ज़रिए विश्वभर में अपनी एक अलग पैठ बना चुका है। चीन का सामान और उसकी क़ीमत आए दिन चर्चा का विषय बने होते हैं। वो बात अलग है कि क़ीमत के साथ-साथ उसके टिकाऊपन पर भी चर्चा होती है, जो अक्सर एक मज़ाक का भी रूप ले लेती है। सस्ता चाइनीज़ माल वैसे तो एक औसत आय के व्यक्ति की पॉकेट के लिए सुविधाजनक हो जाता है लेकिन उसका टिकाऊपन मन में कहीं घर कर ही जाता है।

यह तो रही बात चीन के व्यापार की। अब बात करते हैं भारत के संदर्भ में उसकी विदेश नीति की, जो खोखली होने के साथ-साथ दोमुँही भी है। खोखली इसलिए क्योंकि वो कहता कुछ है और करता कुछ है। दोमुँही इसलिए क्योंकि वो आश्वासन देने में कभी पीछे नहीं रहा, इसमें वो हमेशा अपना टिकाऊपन दिखाता है। इसमें वो ऊपरी तौर पर हमेशा कहता आया है कि हम भारत के साथ हैं और भारत के हितों की हमें परवाह है। लेकिन ये तमाम दावे फ़र्ज़ी ही होते हैं, जिनकी सीमा केवल ज़ुबान से कह देने भर की होती है, करने की कुछ नहीं।

पाकिस्तान, भारत को अब तक जिन आतंकी हमलों से लहू-लुहान करता आया है, उससे दुनिया परिचित है। पुलवामा आत्मघाती हमला भारत के सीने पर धोखे किया वो वार है, जिसकी विश्वभर में घोर निंदा हुई। इस हमले पर जहाँ सभी देश भारत के साथ खड़े थे वहीं चीन अपनी दोहरी चाल के साथ पाकिस्तान के साथ दोस्ती निभा रहा है। दोहरी चाल इसलिए क्योंकि जब-जब भारत ने उससे न्यायपूर्ण व्यवहार की अपेक्षा की, तब-तब चीन ने अपना असली रंग दिखाया।

अभी के परिदृश्य में देखा जाए तो चीन ने पाकिस्तान से अपना याराना निभाते हुए प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने पर चौथी बार अड़ंगा लगाया। पिछले 10 सालों से वो अपनी इसी विदेश नाीति का अनुसरण कर रहा है जबकि मसूद को वैश्विक आतंकी की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने पेश किया था। फिर भी अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर चीन ने पाकिस्तान के साथ अपने गहरे रिश्ते होने का प्रमाण दे ही दिया। हालाँकि भारत को झूठा दिलासा देने से भी नहीं चूकता चीन। समय-समय पर वो ऐसे समीकरण भी बुनता है, जिससे वो दुनिया को दिखा सके कि उसे भी भारत की चिंताओं का ज्ञान है।

चीनी राजदूत लुओ जाओहुई ने ऐसा ही कुछ कहा, जिसे ज़ुबानी खेल के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। उन्होंने दिल्ली में चीनी दूतावास में होली समारोह के दौरान कहा कि मसूद अज़हर के बारे में हम सब समझते हैं और हम इस मामले पर पूरी तरह से विश्वास करते हैं। हम भारत की चिंताओं को समझते हैं और आशावादी हैं कि इस मामले को सुलझा लिया जाएगा।

चीन का यह दोहरा रवैया इसलिए भी है क्योंकि पाकिस्तान के साथ उसका रिश्ता उतना ही पुराना है जितना कि पाकिस्तान का इतिहास। इसलिए एक तरफ तो वो भारत पर हुए हमले की निंदा करता है और दूसरी तरफ पाकिस्तान को हमेशा अपनी छत्रछाया में सुरक्षित भी रखता है।

दरअसल, चीन की यह दोहरी नीति ही है, जिससे वो पाकिस्तान पर अपनी दयादृष्टि बनाए रखते हुए भारत पर अपना दबाव बनाए रखने का प्रयास करता है। साथ में भारत को पाकिस्तान से उलझाए रखने की अपनी चाल भी चलता है। ऐसा करने के पीछे चीन की मंशा भारत को विकसित होने से रोकना है और ख़ुद एक राष्ट्र के रूप में गतिमान बने रहना चाहता है। इसके अलावा वो नहीं चाहता कि एशियाई देशों में भारत का दबदबा क़ायम हो सके।

दूसरा कारण यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन अपने अधिकार और वैधता के वर्चस्व को बनाए रखना चाहता है, जिससे वो यह दिखा सके कि उसकी मर्ज़ी के बिना दक्षिण एशिया कुछ नहीं कर सकता। पाकिस्तान के प्रति चीन की वफ़ादारी का एक कारण यह भी है कि चाइना पाकिस्तान इकोनॉमी कॉरिडोर (CPEC) के बुनियादी ढांचे पर चीन ने बहुत बड़ा निवेश किया है। इस निवेश की आड़ में चीन, पाकिस्तानी ख़ुफिया एजेंसी (ISI) और जैश को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करता है। इसके बदले में उसे अपने प्रोजेक्ट में किसी भी तरह के आतंकवादी हमला न होने की गारंटी मिलती है।

पाकिस्तान में किए गए निवेश के ज़रिए चीन दुनिया भर के बाज़ारों में अपना दबदबा बनाना चाहता है। इसलिए वो हमेशा पाकिस्तान के साथ उसकी मदद के लिए हाथ बाँधे खड़ा रहता है। चीन का सपना हमेशा से ही भारत को घेरने का रहा है – फिर चाहे वो डोकलाम के माध्यम से हो, अफगानिस्तान को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘वन बेल्ट वन रोड’ में शामिल करने के माध्यम से हो, श्रीलंका में अपने प्रोजेक्ट ‘हम्बनटोटा’ समुद्री परियोजना हो, म्यांमार में बंदरगाह बनाने की आड़ में भारत को घेरने की मंशा हो, या फिर नेपाल के साथ अपनी बढ़ती नज़दीकियों के माध्यम से हो। भारत को हर तरफ से घेरने की फ़िराक में रहने वाला चीन कभी भारत का हित नहीं सोचता। हाँ, यह सच है कि को ऊपरी तौर पर वो ख़ुद को भारत का हितैषी घोषित करने में तुला रहता है, लेकिन सिर्फ ऊपरी तौर पर।

आतंकवादी मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के मामले में जो रुख़ चीन ने अब अपनाया है, वही रुख़ उसने तब भी अख़्तियार किया था, जब भारत में मुंबई हमले के मास्टरमाइंड और लश्कर-ए-तैयब्बा के कमांडर जकीउर रहमान लखवी की रिहाई पर भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग की थी। उस समय प्रतिबंधों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की समिति ने भारत के आग्रह पर बैठक की थी। उस बैठक में मुंबई हमले के मामले में लखवी की रिहाई को लेकर पाकिस्तान से स्पष्टीकरण माँगा जाना था, लेकिन चीन के प्रतिनिधियों ने इस आधार पर इस क़दम को रोक दिया था कि भारत के पास इस संदर्भ में पर्याप्त सूचना नहीं है। जबकि पाकिस्तानी अदालत द्वारा लखवी की रिहाई 1267 संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव का उल्लंघन था। उस समय भी चीन को छोड़कर अमेरिका, रूस, फ्रांस और जर्मनी ने लखवी की रिहाई पर गहरी चिंता व्यक्त की थी और उसकी गिरफ़्तारी की माँग की गई थी।

चीन का पाकिस्तान के साथ इतना गहरा रिश्ता यह स्पष्ट करता है जैसे उसने पाकिस्तान को गोद ले रखा हो और उसके हर बुरे कामों को अपनी आड़ में छिपाना उसका परम कर्तव्य है। चीन अपनी कुटिल चालों से भारत को सिर्फ़ भरमाने का काम करता है। ताकि भारत-पाकिस्तान हमेशा उलझे रहें और वो दूसरे तरीकों से अपना उल्लू सीधा करता रहे।

राष्ट्रवादी से लेकर पेरियारवादी तक हैं नर्तकी नटराज की कला के प्रेरणा स्रोत: वो ‘इंसान’ जिसने इतिहास रचा

“मेरा मानना है कि नृत्य हमारे शरीरों ही नहीं, आत्माओं तक को जोड़ देने के सबसे अद्भुत मार्गों में से एक है।” यह शब्द हैं पद्मश्री से विभूषित होने वाली प्रथम किन्नर (ट्रांसजेंडर) नर्तकी नटराज के।

1989 में खोला अपना पहला नृत्य विद्यालय

1964 में मदुरै में जन्मीं नर्तकी नटराज ने अपना प्रथम नर्तकी नृत्य कलायालय मदुरै में प्रारंभ किया और तमिलनाडु की राजधानी चेन्नै में 2001-02 में दूसरा कलायालय खोला।

बचपन में उन्हें नृत्य की ओर प्रथम आकर्षण पद्मिनी और वैजयंतीमाला जैसी अभिनेत्रियों की फिल्मों के नृत्य को देखकर हुआ। धीरे-धीरे उन्होंने आसपास के स्थानीय नृत्य-नाटक समूहों को भी देखना शुरू कर दिया।

सामाजिक प्रताड़ना का होना पड़ा शिकार

जिस भारत में किन्नर एक समय देवताओं की एक जाति थी और जो अपने महानतम देवताओं शिव और कृष्ण के ‘अर्धनारीश्वर’ और ‘मोहिनी’ रूप के गुण गाता हो, उसके लिए यह ग्लानि का विषय है कि वह अबोध बच्चों को उनकी किन्नर के रूप में लैंगिक पहचान के कारण प्रताड़ित करे।

नर्तकी बतातीं हैं कि एक बच्चे के रूप में वह अपनी लैंगिक पहचान को लेकर समझ नहीं पातीं थीं कि वे औरों से अलग कैसे हैं। पर नृत्य को लेकर उनके मन में कोई दुविधा नहीं थी- उन्हें पता था कि शरीर से वे चाहे जो हों, उनकी आत्मा एक नृत्य-साधक है। उन्होंने नृत्य का दामन पकड़ लिया और “एकै साधै सब सधै…” की तर्ज पर उनके नृत्य ने उन्हें अपनी लैंगिक पहचान पाने और गढ़ने में भी सहायता की।

नृत्य के प्रति उनके मादक अनुराग की उनके पुरुष शरीर में नारी के तौर पर पहचान को ढूँढ़ने में और अभिव्यक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। नर्तकी नटराज यह भी मानतीं हैं कि उन्होंने नृत्य का नहीं, नृत्य ने उनका चयन किया है।

“नृत्य ने मेरा चयन किया और मेरे अव्यक्त नारीत्व को अभिव्यक्ति दी। नृत्य ने उसे वास्तविकता के धरातल पर उतारा और उसकी सूक्ष्मताओं का बयान किया।”

“हमने (नर्तकी और उनकी मित्र व नृत्य में साझीदार शक्ति भास्कर) भय भी झेला है, शर्म भी, प्रतिबन्ध भी। लोग हमें वेश्यावृत्ति में धकेलना चाहते थे, पर हमने कला को चुना; शर्म और नकारे जाने को अपनी आत्मा को नहीं तोड़ने दिया।” नर्तकी कहतीं हैं, “सम्मानित कलाकार के नाम पर नाम कमाने का जूनून हमें यहाँ तक ले आया है।”

परंपरा की हैं मुरीद

नर्तकी नटराज की विशेषज्ञता तन्जवुर (तंजौर) नायकी भाव परंपरा  में है। उनके अनुसार यह पारंपरिक तन्जवुर शैली है, जो 20वीं सदी में कलाक्षेत्र की नर्तकी रुक्मिणी देवी द्वारा भरतनाट्यम के पुनर्निमाण से पहले की है। इस शैली में ऐतिहासिक विरासत को शुद्धतम रूप में प्रस्तुत करने पर खासा जोर दिया जाता है।

नर्तकी नटराज अपने गुरू, विख्यात डॉ. केपी किट्टप्पा पिल्लई, द्वारा निर्देशित नृत्यों को हूबहू मन्च पर उकेरतीं हैं, और अपने नृत्य को “मधुर भक्ति” कहतीं हैं, जिसमें भावनाओं की कोमलता और आवेश दोनों का सुन्दर समागम होता है।

गुरू और मित्र शक्ति, की जीवन में है महत्वपूर्ण भूमिका

2011 का संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से प्राप्त कर चुकीं नर्तकी के जीवन में उनके गुरू किट्टप्पा पिल्लई और मित्र शक्ति भास्कर ने बड़ी भूमिकाएँ निभाईं हैं।

मित्र शक्ति, जो उन्हीं की तरह किन्नर हैं, ने अपने परिवार के टेक्सटाइल के धंधे में काम कर के नर्तकी की नृत्य की फ़ीस का बंदोबस्त किया। पहले नृत्य गुरू जयरमन (वह भी जाने-माने नृत्य-शिक्षक थे) से चोरी-छिपे नृत्य सीखने नर्तकी घर से 90 मिनट पैदल चल कर मदुरै की एक ‘चाल’ में जातीं थीं, जो किसी जानने वाले ने दया कर उन्हें अभ्यास के लिए दे दी थी। 1982 में ₹80 जयरमन की फीस थी और ₹20 उस ‘चाल’ तक रोज़ आने-जाने का उन्हें लगाना पड़ता था। (वह कुछ समय पहले ही लम्बी बीमारी से उबरे थे)

नर्तकी का बहाना शक्ति के साथ मंदिर जाने का होता था, इसलिए पूरे दिन काम करने के बाद शक्ति को भी उनके साथ वहाँ तक जाना पड़ता था।

1983 में एक साल की कठोर साधना के पश्चात् जब नर्तकी के अरंगेत्रम (पदार्पण) का मौका आया तो नर्तकी ने खुद जा कर मदुरै के तत्कालीन मेयर को आमंत्रित किया- और वह आए भी। नर्तकी के खुद के परिवार को इस पर विश्वास नहीं हुआ कि मेयर उनकी ‘बेटी’ के आमंत्रण पर उसका नृत्य देखने आए हैं। झमाझम बारिश को ईश्वर का आशीर्वाद मानते हुए नर्तकी ने उस दिन वह नृत्य किया कि वे एक शाम में पूरे मदुरै में जाने जानीं लगीं।

गुरू किट्टप्पा की व्यस्तता के चलते नर्तकी को उनसे शिष्यत्व पाने के लिए लगभग एक साल तक उनकी मनुहार करनी पड़ी। पर जब किट्टप्पा ने उन्हें पकड़ा तो महान नर्तकी बना कर ही छोड़ा। उन्हें उनका नाम ‘नर्तकी नटराज’ भी गुरू किट्टप्पा ने ही दिया। वह नर्तकी को नृत्य के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते और कठिन-से-कठिन नृत्य सिखाते गए। इसके अलावा नर्तकी की लैंगिक पहचान और समस्याओं के विषय में भी गुरू किट्टप्पा ने हमेशा उनका साथ दिया।

उन्होंने नर्तकी को नायकी भावं नृत्य पर एक शोधपत्र लिखने का भी परामर्श दिया और पूरी-पूरी सहायता भी की।

राष्ट्रवाद से पेरियारवाद तक हर जगह से लेतीं हैं प्रेरणा

श्री कृष्ण गान सभा द्वारा नृत्य चूड़ामणि सम्मान से सुशोभित (2009) व तमिलनाडु सरकार का उच्चतम सम्मान कलाईमामणि से सम्मानित नटराज राष्ट्रवादी कवी सुब्रमण्य भारती से लेकर पेरियार से प्रभावित कवि भारतीडासन तक तमिल साहित्य की कई विभूतियों के कार्यों को अपनी प्रेरणा बना नृत्य निर्देशित करतीं हैं। पर शैली विशुद्ध भारतीय पारंपरिक ही रखतीं हैं।

अपने शिष्यों को भी वे उच्च कोटि के गुप्त नृत्य रूप इसी शर्त पर सिखातीं हैं कि वे न खुद उनसे छेड़-छाड़ करेंगे, न ही ऐसे किसी शिष्य को आगे सिखाएँगे जो यह प्रण न ले।

तमिलनाडु की 11वीं की तमिल किताबों में नर्तकी नटराज का जीवन चरित्र अंकित है (पूरे भारत में भी होना चाहिए और 7वीं-8वीं तक आ जाना चाहिए, ताकि उनकी तरह लैंगिक पहचान से जूझ रहे बच्चे उनसे प्रेरणा ले सकें)। उन्होंने शक्ति भास्कर के साथ मदुरै के मीनाक्षी मंदिर में 16 जनवरी 2002 को प्रस्तुति दी थी, जो प्राचीन भारत के इस कला केंद्र में 20 वर्ष के अंतराल पर पहली थी।

कड़वाहट नहीं, स्वाभिमान है दिल में

इतने कठिन दिन देखने और निरपराध होकर भी अपमान सहने के बावजूद नर्तकी कभी ‘विक्टिम-कार्ड’ खेल कर सहानुभूति नहीं बटोरना चाहतीं। वह नहीं चाहतीं कि उनके किन्नर होने के कारण उन्हें कोई विशेष सुविधा दी जाए, या उनकी कला को सहानुभूति के आधार पर सराहा जाए।

“मैं आभारी हूँ कि मेरे गुण उन बाकी सभी चीज़ों के मुकाबले उभर कर निकल पाए, जिन्हें लोग गुणों के स्थान पर तलाश रहे थे।”

परमहंस योगानंद का निम्नलिखित कथन उनकी वेबसाइट के मुख्य पेज पर साभार है:

“अटलता निर्णयों की निश्चितता को आश्वासित करती है।”

(“Persistence guarantees that results are inevitable.”)

मनोहर पर्रिकर के निधन पर ‘हँसने’ वाले इस्लामोफोबिया को बढ़ाते हैं

एक प्रयोग कर लीजिए अभी आप लोग। जिस किसी भी न्यूज़ चैनल/साइट/पोर्टल को आप फॉलो करते हैं उनके पेज पर जाइए और मनोहर पर्रिकर की मृत्यु की खबर पर ‘रिएक्शन्स’ पर क्लिक करके ‘हा-हा’ के नीचे के नाम पढ़ लीजिए। इस बार मैं स्क्रीनशॉट्स नहीं लगा रहा, क्योंकि आपकी जब इच्छा हो खुद जाकर देख सकते हैं। इसके साथ ही, यह कहना भी ज़रूरी है कि एक ख़ास तरह के नामों के अलावा इस तरह की संवेदनहीनता दिखाने में कई और लोग भी थे, जो दूसरी विचारधारा के थे। फिर भी, ऐसे हर मौके पर एक ही तरह के नाम का आना उन लोगों को प्रभावित करता है जिन्हें यह समझ में नहीं आता कि किसी की मौत पर कोई खुश कैसे हो सकता है।

कुछ लोग कहेंगे क्या साबित होता है इससे। ये लोग वो लोग हैं जो दिन भर ‘गरिमा’, ‘नैतिकता’, ‘लोक व्यवहार’ आदि के नाम पर फेसबुक पेज से लेकर नेता, व्यक्ति या संस्थानों को गरियाते दिखते हैं। 

इससे साबित इतना ही होता है कि समाज में एक सम्प्रदाय के कुछ लोगों की सामूहिक संवेदनहीनता हर ऐसे मौके पर दिख जाती है। इस्लामोफोबिया का भाव आकाश से नहीं टपकता। यही वो मौके हैं जब वैसे लोग सोचने लगते हैं कि ये किस तरह के लोग हैं?

कुछ लोगों के संवेदनहीनता के आधार पर सबको जज करना गैरज़रूरी है, लेकिन वास्तविकता यही है कि ऐसे लोग ही इस्लामोफोबिया के बड़े कारण हैं। इस्लामी आतंकवाद तो एक कारण है ही, लेकिन पुलवामा हमले के बाद सैनिकों के बलिदान होने की खबर पर ‘हा-हा’ करने वालों का भी रिलिजन था, पर्रिकर की मृत्यु की खबर पर हँसने वालों का भी और पुलवामा में आत्मघाती हमला करने वालों का भी।

किसी भी समाज या सम्प्रदाय से सामूहिक रूप से घृणा करना सही नहीं, लेकिन उसकी वजहें होती हैं। हो सकता है कि आप उन लोगों के ऐसे कार्यों से सीधे तौर पर प्रभावित न हो रहे हों, आपको पूरे जीवन उनसे कोई काम न पड़े, लेकिन मानवीय संवेदनाएँ निजी तौर पर ही हमें प्रभावित नहीं करती। अगर कोई चालीस जवानों के बलिदान पर ‘हँस’ रहा है, तो ज़ाहिर है कि उसकी संवेदना जवानों के साथ, उनके परिवारों के साथ तो नहीं ही है। 

ऐसे लोगों की संवेदना पर चर्चा करना भी अजीब ही है क्योंकि ऐसे लोग हर ऐसी घटना पर सामने आ जाते हैं। मनोहर पर्रिकर की मृत्यु पर ‘हा-हा’ करता हुआ मजहबी नाम वाला व्यक्ति इस ख़बर से किस स्तर पर प्रभावित हो रहा है, ये हम या आप नहीं समझ सकते। उसे बस एक विरोधी (शायद) विचारधारा या पार्टी के नेता की मृत्यु की खुशी है। उसे उस सरकार के कार्यकाल में वीरगति को प्राप्त हुए भारतीय सैनिकों की मृत्यु की खुशी है। खुशी का कारण यह भी हो सकता है कि जिसने आत्मघाती हमला किया वो भी उसी धर्म का हो।

यहाँ घृणा एक स्तर पर ही नहीं है। यहाँ घृणा, एक समूह के द्वारा, जिनकी पहचान उनके नामों से खुलकर सामने आती है, और वो ऐसा करने से छुपते नहीं, कहीं नाम छुपाकर ऐसी बातें नहीं करते, जो हर ऐसे मौक़े पर सरकार या दूसरे धर्म से संबंधित लोगों की मृत्यु पर हँसते हैं। ये एक बुनियादी मानवीय गुण है कि किसी की मृत्यु पर अगर अच्छी बातें नहीं बोल सकते, तो चुप रहना पसंद कर सकते हैं। 

लेकिन कुछ लोगों की घृणा का स्तर इतना ज़्यादा होता है कि वो अपनी भावनाओं को छुपा नहीं पाते। यही कारण है कि ऐसे कुछ लोगों की बेहूदगी के कारण इस्लामोफोबिया, या इस्लाम मज़हब से नफ़रत, को हवा मिलती है। ये कट्टरपंथी वैसे कट्टरपंथी हैं जो चाहते हैं कि लोग उनसे घृणा करें। वरना आज के समाज में, जहाँ करुणा और दया की बात करते हुए दीवाली पर पटाखों के शोर से परेशान होने वाले जानवरों की हालत पर चर्चाएँ होती हैं, वहाँ ऐसे लोग इस तरह के काम भला क्यों करते हैं! 

मेरी अपील है इस मज़हब के बेहतर लोगों से कि वो सामने आएँ और ऐसे लोगों को धिक्कारें। वो अगर पचास हैं, तो आप में से सौ को आगे आकर इस पर लिखना और बोलना चाहिए कि ये गलत है। आप यह कहकर बच नहीं सकते कि ये लोग ‘अच्छे मजहबी’ नहीं हैं। फिर तो, बाकी दुनिया भी किसी दाढ़ी वाले व्यक्ति को किसी अमेरिकी महिला द्वारा ट्रेन की ट्रैक पर ढकेल देने पर यही कहेगी कि वो ‘अच्छी ईसाई’ नहीं थी

ये ‘अच्छा मजहबी’ और ‘हमारा मज़हब यह नहीं सिखाता’ की नकारी सोच से ऊपर उठकर, एक बेहतर समाज के लिए अपने भीतर से ही सफ़ाई जरूरी है। अगर पूरा समुदाय ऐसे समय पर भर्त्सना नहीं करता, जैसा कि कई लोगों ने न्यूज़ीलैंड हमले के बाद ‘खुश होने वाले’ लोगों के साथ किया था, तब तक कट्टरपंथियों से घृणा की हवा और तेज ही बहेगी। और यही नफ़रत किसी युवक को मस्जिदों में पंद्रह मिनट तक गोली चलाने तक पहुँचा देती है। 

इस नफ़रत को फेसबुक जैसी जगहों से ही रोकना ज़रूरी है क्योंकि अगर वहाँ आप उस पर कड़ा रुख़ नहीं रख पा रहे, तो वहाँ उन नामों को भी वह रास्ता चुनने में सहजता होगी जो अभी तक इस तरह की घृणा पान की दुकान पर, सड़क के किनारे या चाय पीते हुए चार लोगों के बीच फैलाते थे।

सर्जिकल स्ट्राइक्स से लेकर OROP तक: रक्षा मंत्री के रूप में मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल का विस्तृत विवरण

मनोहर पर्रिकर- एक ऐसा नाम, जिस से गोवा का बच्चा-बच्चा परिचित था। चूँकि राष्ट्रीय पटल पर वह उतने सक्रिय नहीं रहे थे, देश के दूसरे हिस्से के लोगों ने बस उनकी किवदंतियाँ सुन रखी थी। चार बार गोवा फतह कर चुके पर्रिकर का सीएम रहते स्कूटर से सड़कों पर निकल जाना सोशल मीडिया पर ट्रेंड किया करता था। लोगों के लिए यह काफ़ी आश्चर्य वाली बात थी कि आज के दौर में ऐसे नेता भी हैं जो शिखर पर पहुँच कर भी इस प्रकार सादगी भरा जीवन जीते हैं।

देश का सौभाग्य था कि राजग सरकार में पर्रिकर को गोवा से दिल्ली बुला कर एक ऐसे मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई, जो पहले अपनी कछुआ चाल के कारण जाना जाता था। रक्षा मंत्रालय- यह एक ऐसा विभाग था जहाँ फाइलें वर्षों धूल फाँकती रहती थीं। अफसरों को भी इस धीमी गति की आदत पड़ गई थी और देश का रक्षा तंत्र ध्वस्त हो चला था। स्वयं पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने कहा था कि राफेल ख़रीदने के लिए सरकार के पास बजट नहीं है। जब आठ साल तक रक्षा मंत्री रहा व्यक्ति इस विभाग को ठीक नहीं कर सका, पर्रिकर जैसे कुशल प्रशासक ने यह कार्य सिर्फ़ 2 सालों में कर दिखाया।

गोवा का सर्वमान्य नेता

पर्रिकर ने रक्षा मंत्री का दायित्व सँभालते ही पूर्व में हुए अगस्ता-वेस्टलैंड जैसे घोटालों की जाँच बैठा कर भ्रष्टाचारियों में हड़कंप मचा दिया। कहते हैं, अगर भविष्य अच्छा करना हो तो अतीत में हुई गलतियों को सुधारना पड़ता है। पर्रिकर ने इसी को ध्येय बनाया। जनवरी 2016 में जब फ्रांस के राष्ट्रपति हॉलैंड भारत दौरे पर आए तब 36 राफेल एयरक्राफ्ट्स की ख़रीद के लिए MoU पर हस्ताक्षर किया गया। उस दौरान पर्रिकर ही देश के रक्षा मंत्री थे। भविष्य में जब राफेल भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल होगा, देश को कहीं न कहीं पर्रिकर की याद आएगी ही। राफेल सौदे को लेकर उनपर कींचड़ उछलने की भरपूर कोशिश की गई, उनका नाम लेकर पीएम मोदी पर निशाना साधा गया, झूठ बोला गया। विपक्षियों ने बीमारी के दौरान भी पर्रिकर पर सवाल खड़े किए, जिसके कारण उन्हें पत्र लिख कर इन बातों का तथ्यों के साथ जवाब देना पड़ा।

इतनी गंभीर बीमारी के दौरान भी पर्रिकर जैसे नेता पर छींटाकशी करने वाले राहुल गाँधी आज ज़रूर शर्मिंदा होंगे। आपको याद होगा जब मनोहर पर्रिकर ‘वन रैंक, वन पेंशन (OROP)’ की घोषणा करने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए थे। सौम्य व्यक्तित्व और सरल भाषा में चीजों को रखने वाले पर्रिकर ने जवानों की दशकों से चली आ रही माँग पर ध्यान दिया और इसे पूरा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट का हिस्सा बन कर एक तरह से पर्रिकर ने पूरे देश का दिल जीत लिया। लोग अब उन्हें गोवा से बाहर भी जान रहे थे, उनके कायल होने लगे थे। सेना के रिटायर्ड जवानों ने उन्हें धन्यवाद किया और एक योग्य शासक बनाया। नीचे आप वीडियो को देख कर वो याद फिर से ताज़ा कर सकते हैं। 45 वर्षों से चली आ रही इस माँग को पूरा करने वाला कोई साधारण नेता तो हो नहीं सकता।

OROP: चार दशक से चली आ रही माँग की पूरी

पर्रिकर ने इस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि कैसे उनके पूर्ववर्तियों ने OROP को लेकर जवानों की माँगों को नज़रअंदाज़ किया। पर्रिकर ने बताया था कि यूपीए सरकार ने इसे लेकर समय की घोषणा तो कर दी थी लेकिन इसका स्वरूप क्या होगा, इसे कैसे लागू किया जाएगा, इस बारे में उन लोगों को कुछ पता ही नहीं था। सितम्बर 2015 में हुए इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को याद करते हुए इसके ठीक एक साल बाद अक्टूबर 2016 में पर्रिकर था कि केवल मोदी सरकार ही OROP लागू कर सकती थी। उनकी ये बात बिलकुल सही थी क्योंकि नेताओं के लचर रवैये के कारण कालचक्र के अगनित लूप में फँसी इस योजना पर कार्य करने के लिए एक योग्य, कुशल और जनता से जुड़े नेता की ज़रूरत थी, जो पर्रिकर के रूप में देश को मिला। इस योजना से तीस लाख रिटायर्ड जवानों व दिवंगत जवानों के परिवारों को लाभ मिला।

सर्जिकल स्ट्राइक: अहम था पर्रिकर का योगदान

उरी हमले के बाद पूरा देश आक्रोश में थे, तब भारत ने पकसिएटन स्थित आतंकी कैम्पों पर सर्जिकल स्ट्राइक किया। यह बहुत बड़ी बात थी क्योंकि उस समय तक भारतीय सेना धैर्य का परिचय देती रही थी और राजनीतिक इच्छाशक्ति उतनी मज़बूत नहीं थी कि सीमा पार आतंकी कैम्पों को ध्वस्त करने के लिए कोई निर्णय लिया जा सके। बाद में पर्रिकर ने सेना को इस ऑपरेशन का क्रेडिट देते हुए यह भी जोड़ा था कि बिना योग्य राजनीतिक नेतृत्व के यह स्ट्राइक संभव नहीं था। उन्होंने कहा था कि उनके हर निर्णय में प्रधानमंत्री का समर्थन था, जो एक बहुत बड़ी बात थी। पर्रिकर के अनुसार, सर्जिकल स्ट्राइक की योजना तैयार करने में 15 महीने लगे थे। यह अचानक नहीं हुआ था।

सेना के आधुनिकीकरण में नहीं छोड़ी कोई कसर

सबसे बड़ी बात थी सेना के आधुनिकीकरण की। सेना का आधुनिकीकरण (Modernization) एक ऐसा मुद्दा रहा है, जो दशकों से प्रासंगिक रहा है। नेहरू से जब अधिकारियों ने इस सम्बन्ध में बात की, तो उन्होंने इसे मज़ाक में उड़ाते हुए अधिकारियों को ही झिड़क दिया था। पर्रिकर दूरदर्शी नेता थे। उन्हें पता था कि उन्हें विरासत में जो विभाग मिला है, उसका अतीत क्या रहा है और उसे कैसे सुधारना है? उनके कार्यकाल में निम्नलिखित बड़े और महत्वपूर्ण रक्षा सौदे हुए:

  • फ्रांस से राफेल एयरक्राफ्ट्स की ख़रीद हुई और करार फाइनल किया गया।
  • बोईंग AH64 अपाचे लॉन्गबो अटैक हैलीकॉप्टर ख़रीदने का करार फाइनल हुआ। इस से ज़मीन पर मौजूद ख़तरों से निपटने में आसानी होगी। सेना को आधुनिक साजोसामान मुहैया कराने की दिशा में एक एक अहम क़दम था।
  • 15 चिनूक हैवी लिफ्ट हैलीकॉप्टर ख़रीदने की डील पर हस्ताक्षर किए गए। अपाचे और चिनूक को भारत के लिए गेम-चेंजर बताया जा रहा है।
  • अमेरिका से अल्ट्रा लाइट होविट्जर (M777) की ख़रीद पर हस्ताक्षर किए गए। तुरंत तैनाती में सक्षम ये होविट्जर भारतीय सेना के लिए वरदान साबित हो रहे हैं।

आपको यह भी जानना चाहिए कि पर्रिकर द्वारा फाइनल की गई इन चीजों में से कई भारतीय सेना को मिल चुके हैं। इनमे से धीरे-धीरे कर कुछ खेप पहुँचने शुरू हो गए हैं और जब भी ऐसे साजोसामान सेना को मिलते हैं, उनमे जश्न का माहौल होता है। देश की रक्षा और आपदा प्रबंधन में आगे इनका योगदान अतुलनीय होने वाला है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि पर्रिकर जैसे लोग निधन के बाद भी अपने कार्यों के जरिए जनता का भला करते रहते हैं, किसी न किसी रूप में हमारे बीच मौजूद रह कर हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। शायद आपको नहीं पता हो लेकिन उनके कार्यकाल में न सिर्फपाकिस्तान बल्कि म्यांमार में भी एक बृहद सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया था।

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा व प्रधानमंत्री मोदी के साथ पर्रिकर

इसके अलावा रक्षा मंत्रालय ने उनके कार्यकाल में 16,000 करोड़ से भी अधिक में 420 एयर डिफेंस गन की ख़रीद को मंज़ूरी दी। 15,000 करोड़ से भी अधिक के मूल्य वाले 814 अर्टिलरी गन की ख़रीद को हरी झंडी दिखाई गई। जुलाई 2018 में पर्रिकर ने बताया था कि भारत 155/25 सेल्फ-प्रोपेल्ड गन्स की ख़रीद के मामले में अंतिम चरण में है और इसे कभी भी फाइनल किया जा सकता है। वाइब्रेंट गुजरात से के दौरान उन्होंने यह जानकारी दी थी। इसके अलावा 118 अर्जुन MK-ii टैंक्स को भी मंज़ूरी दी गई। हालाँकि, इनमे अड़चनें हमेशा से थी और आती रही हैं लेकिन पर्रिकर ने फाइलों को निबटाने में जो सक्रियता दिखाई, वो शायद ही किसी अन्य रक्षा मंत्री ने दिखाई हो।

LEMOA: भारत-अमेरिका के सैन्य रिश्ते हुए प्रगाढ़

विश्व महाशक्ति अमेरिका के साथ सैन्य समझौते को और प्रगाढ़ करने का कार्य पर्रिकर के कार्यकाल में ही हुआ। उनके कार्यकाल में अमेरिका के साथ logistics exchange memorandum of agreement पर हस्ताक्षर किया गया। इस समझौते के तहत अमेरिका और भारत की सेना एक दूसरे के साजोसामान और फैसिलिटीज को रिपेयर, मेंटेनेंस, सप्लाई और ट्रेनिंग के लिए प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए दिशानिर्देश भी तैयार किए गए हैं। इस से अमेरिका और भारत के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास और आसान हो गया। इसे एक दशक पूर्व ही अमेरिका द्वारा प्रस्तावित किया गया था लेकिन पर्रिकर के कार्यकाल में ही इसे मूर्त रूप लिया।

देश के पूर्व रक्षा मंत्री और चार बार गोवा के मुख्यमंत्री रहे सौम्य, सरल व्यक्तित्व के धनी मनोहर पर्रिकर को श्रद्धांजलि देते हुए हम उनकी आत्मा की शांति की कामना करते हैं। भारत के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की गूँज सुनाई देती रहेगी, दशकों तक। इतिहास में उन्हें कम समय में बहुत कुछ करने के लिए याद रखा जाएगा। 63 वर्ष की उम्र में उनका निधन दुःखद है।