Wednesday, October 2, 2024
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DRDO ने तैयार की खास दवा और पट्टियाँ, अब नहीं बहेगा युद्धक्षेत्र में जवानों का खून

पुलवामा जैसे हमलों में बुरी तरह से घायल हुए जवानों के लिए DRDO के वैज्ञानिकों द्वारा ‘कॉम्बैट कैजुअलटी ड्रग’ नाम की दवा तैयार की गई है। इस दवाई की खासियत यह है कि गंभीर रूप से घायल जवान को भी इसकी मदद से अस्पताल ले जाने तक बचाकर रखा जा सकेगा।

जाहिर है कि यह कोशिश एक बेहद सराहनीय कदम है। इस खास ड्रग के अलावा डीआरडीओ की प्रयोगशाला में सैनिकों के खून को रोकने वाली दवाएँ, ड्रेसिंग और ग्लिसरेटेड सैलाइन भी तैयार की गई हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो यह खास तरह के प्रयोग और दवाइयाँ जंगल, अत्यधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में युद्ध और आतंकवादी हमलों में जीवन की स्थिति को बचाने के काम आएँगे।

14 फरवरी को पुलवामा हमले का जिक्र करते हुए DRDO के वैज्ञानिकों के अनुसार अगर जवानों को सही समय पर उचित फर्स्ट ऐड दिया जाए तो उनकी जिंदगी बचने की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों ने कहा कि इन दवाओं की मदद से मृतकों की संख्या में कमी लाई जा सकती है।

DRDO में लाइफ साइंसेस के महानिदेशक एके सिंह का कहना है कि संगठन द्वारा तैयार की गई स्वदेशी दवाइयाँ अर्द्धसैनिक बलों और रक्षाकर्मियों के लिए युद्ध के समय में वरदान हैं। चूँकि, विशेषज्ञों की मानें तो उनके पास चुनौतियाँ बहुत हैं, अधिकतम मामलों में युद्ध के दौरान सैनिकों की देखभाल के लिए सीमित उपकरणों के साथ केवल एक ही चिकित्सककर्मी होते हैं। जिसके कारण मौक़े पर घायल जवानों को उचित उपचार नहीं मिल पाता है। इन दवाइयों की मदद से घायल जवान को युद्धक्षेत्र से स्वास्थ्य देखभाल के लिए अस्पताल तक (बिना अधिक खून बहे) पहुँचाया जा सकेगा।

डिफेंस दलालों के साथ राहुल गाँधी के रिश्तों का खुलासा: वाड्रा, जमीन से लेकर राफेल-यूरोफाइटर तक का है घालमेल

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी पिछले काफी समय से राफेल सौदे पर सवाल पूछ रहे हैं। वह पूछ रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने अनिल अंबानी को टोकरी भरकर पैसा क्यों दिया? ये आँकड़ा राहुल गाँधी के मूड के हिसाब से ₹1,30,000 करोड़ रूपए से लेकर ₹1,00,000 करोड़ और ₹30,000 करोड़ तक बदलते रहते हैं। ये आँकड़े स्पष्ट रूप से गलत हैं, क्योंकि राफेल सौदे में ऑफसेट कारोबार में रिलायंस की हिस्सेदारी केवल 800 करोड़ रुपए के आसपास है। वह बार-बार पूछते हैं कि विमानन क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं रखने वाले रिलायंस को राफेल सौदा क्यों मिला है? राहुल का यह दावा भी गलत है क्योंकि रिलायंस, जेट या उसके किसी भी हिस्से को नहीं बना रहा है। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सरकार से जितने भी सवाल पूछ रहे हैं, वे सभी पूरी तरह से उनकी कल्पना पर आधारित है, जिसमें सच्चाई बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन अब समय आ गया है कि टेबल को उलट दिया जाए, और राहुल गाँधी के कुछ सवालों के जवाब खुद दिए जाएँ।

हालाँकि अरूण जेटली ने संसद में इस बात का संकेत दिया था कि कॉन्ग्रेस शासन के दौरान जब MMRCA के लिए नीलामी प्रक्रिया चल रही थी, उसी समय समानांतर बैकरूम में यूरोफाइटर के लिए रिश्वत को लेकर सौदे की बात भी चल रही थी। राफेल और यूरोफाइटर टाइफून ने शुरुआती 6 दावेदारों में से, नीलामी प्रक्रिया के अंतिम दौर में प्रवेश किया था, जिसमें से आखिरकार, राफेल को 2012 में तकनीकी मानकों पर चुना गया था।

राहुल गाँधी को लेकर न केवल अफवाहें सामने आई थी कि वो जर्मनी में यूरोफाइटर अधिकारियों से मिले थे, बल्कि एक बार संजय भंडारी के साथ उनका लिंक सामने आने के बाद तो अनुत्तरित प्रश्न और भी बड़े स्तर पर पहुँच गए। बता दें कि संजय भंडारी, रॉबर्ट वाड्रा के करीबी दोस्त और हथियारों के सौदागर हैं। वर्ष 2012 से 2015 तक संजय भंडारी राफेल सौदे में ऑफ़सेट पार्टनर बनने की पैरवी कर रहे थे और दसौं (Dassault) ने उन्हें शामिल करने से मना कर दिया था। वास्तव में, 126 राफेल जेट की खरीद से संबंधित एक फाइल रक्षा मंत्रालय से गायब हो गई थी और यह बाद में सड़क पर पाई गई थी। संजय भंडारी पर ये आरोप है कि फाइल उन्होंने ही चुराई थी और वो इस फाइलों की फोटोकॉपी करवाकर रक्षा ठेकेदारों को देते थे।

अब तक तो केवल लिंक केवल रॉबर्ट वाड्रा और संजय भंडारी के बीच जोड़ा गया था। मगर अब, ‘ऑपइंडिया’ ने कुछ संदिग्ध भूमि सौदों के माध्यम से राहुल गाँधी को संजय भंडारी से जोड़ने वाली जानकारी तक पहुँच बनाई है, जिससे सवालों के बादल और भी घने हो गए हैं।

बता दें कि ये कागजात 3 मई 2017 और 4 मई 2017 को एक एच एल पाहवा पर किए गए ईडी की खोज से संबंधित हैं। ये भूमि सौदे राहुल गाँधी और एच एल पाहवा के बीच हैं, जिन्हें एक सी सी थम्पी द्वारा वित्त पोषित किया गया था, जिनके संजय भंडारी के करीबी वित्तीय संबंध हैं।

एचएल पाहवा के साथ राहुल गाँधी की लैंड डील

प्रवर्तन निदेशालय द्वारा एचएल पाहवा से जब्त की गई फाइल्स से पता चला है कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने हसनपुर, पलवल में 6.5 एकड़ ज़मीन ख़रीद रखी है। इस ख़रीद का विवरण इस प्रकार है- रजिस्ट्रेशन डीड 4780, तारीख़- 3 मार्च, 2008, मूल्य- मात्र ₹26,47,000।इस ज़मीन को ₹ 24 लाख के चेक पेमेंट द्वारा ख़रीदा गया था। इस चेक पर 12 जनवरी 2008 की तारीख़ अंकित है। इसके अलावा ₹2,47,000 के एक अन्य चेक से भुगतान किया गया था। इस पर 17 मार्च 2008 की तारीख़ अंकित है।

सेल डीड का पेज-1
राहुल गाँधी और एचएल पाहवा के हस्ताक्षर सहित सेल डीड

लेकिन, जब्त की गई ईडी फाइलों के सी पेज 57 से पता चलता है कि इस लेन देन पर स्टांप शुल्क नकद में भुगतान किया गया था और पाहवा द्वारा इसे वापस नहीं लिया गया था। इससे ये बात साफ हो जाती है कि वो खरीदार कोई और नहीं, बल्कि खुद राहुल गाँधी थे। जिन्होंने स्टांप शुल्क का भुगतान किया था।

इन फ़ाइलों में एक और एक और खुलासा (फ़ाइल सी का पृष्ठ 60) यह हुआ है कि पाहवा यह जमीन ₹33,22,003 में बेचना चाहते थे, लेकिन वो इसे ₹26,47,000 में बेचने के लिए राजी हो गए।

एचएल पाहवा के साथ अन्य संदिग्ध लेन-देन

साल 2009 के हरियाणा चुनाव में कॉन्ग्रेस ने फरीबाद के नव-निर्मित निर्वाचन क्षेत्र, तिगाँव से पहली बार रियाल्टर ललित नागर को खड़ा किया। इसके बाद 2012 में टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में खबर आई, “ललित नागर के भाई महेश नागर ने रॉबर्ट वाड्रा की ओर से न केवल हरियाणा में बल्कि राजस्थान में भी जगह खरीदी है।”

3 मार्च 2008 की यह डीड दर्शाती है कि हरियाणा के पलवल जिले के हसनपुर गाँव में 9 एकड़ ज़मीन को गुड़गांव निवासी एच एल पाहवा द्वारा रॉबर्ट वाड्रा को ₹36.9 लाख में बेचा गया था। इस डीड में, पाहवा के हस्ताक्षर भी है, लेकिन खरीददार में रॉबर्ट की जगह महेश के हस्ताक्षर हैं। यहाँ खरीददार के नाम में ‘Robert Vadra through Mahesh Nagar’ लिखा हुआ है, जो बताता है कि वाड्रा ने अपनी पॉवर ऑफ ऑटरनी महेश नागर में निहित की हुई थी।

रॉबर्ट वाड्रा के सेल डीड का पेज-1
रॉबर्ट वाड्रा का सेल डीड

इसी तरह, राजस्थान के बीकानेर जिले की एक डीड इस बात को बताती है, कि बस्ती गाँव की गंगानगर तहसील में 4.63 एकड़ की जमीन को अप्रैल 2009 में 42 साल की सरिता देवी बोथारा द्वारा रियल अर्थ एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड को बेचा गया था। खास यह है कि इस कंपनी के डायरेक्टर रॉबर्ट वाड्रा थे और इस जमीन की खरीदादरी को भी वाड्रा की ओर से महेश नागर ने ही किया था।

इसके अलावा प्रियंका गाँधी भी एचएल पाहवा से कुछ समय पहले जमीन की खरीदारी कर चुकी हैं। जिसके बारे में हम पहले बता चुके हैं कि किस तरह 28 अप्रैल 2006 को, प्रियंका गाँधी वाड्रा ने एचएल पाहवा से 2 चेक में ₹15,00,000 देकर जमीन खरीदी थी। और फिर 17 फरवरी 2010 को, इसे वापस एचएल पाहवा को कई चेक के माध्यम से ₹84,15,006 में बेच दिया। एच एल पाहवा ने प्रियंका गाँधी को 22 मई 2009 से 11 सितंबर 2009 के बीच में 5 किश्तों में पैसे दिए। इसके पीछे का कारण पैसों की कमी को बताया गया।

हैरान करने वाली बात यह है कि एक व्यक्ति जो आए दिन जमीनों की खरीद-बिक्री करता है और अपनी ही जमीन को बेचकर दोबारा उसे 5 गुना अधिक दामों पर खरीदता है, उसके पास देने के लिए पैसे नहीं होंगे क्या?

प्रियंका गाँधी वाड्रा की सेल डीड

यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि एचएल पाहवा ने अक्सर जमीनों को नकद में खरीदा था और ऐसे मामले भी देखे गए हैं जहाँ उसने नेगेटिव कैश बैलेंस होने के बावजूद भी जमीन की खरीददारी की। अब आश्चर्य होगा कि पाहवा ने जमीन की खरीददारी कैसे की जब उसपर नेगेटिव कैश बैलेंस था? तो बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय की फाइलों ने बताया है कि पाहवा को सीसी थम्पी द्वारा ₹54 करोड़ दिए गए थे।

कौन है सीसी थम्पी?

हाल ही में रॉबर्ट वाड्रा से सीसी थम्पी के साथ उनके संबंधों को लेकर पूछताछ की गई थी। प्रवर्तन निदेशालय को शक है कि 2009 में हुए एक पेट्रोलियम करार के लिए एक शारजाह स्थित कम्पनी के माध्यम से डील फाइनल किया गया था। इस कम्पनी के संयुक्त अरब अमीरात स्थित एनआरआई व्यवसायी सीसी थम्पी द्वारा नियंत्रित होने की बात सामने आई थी। वाड्रा से सीसी थम्पी और संजय भंडारी के साथ लंदन में बेनामी संपत्ति रखने के बारे में भी पूछताछ भी की गई थी। संयुक्त अरब अमीरात में थम्पी की स्काईलाइट्स नाम की कम्पनी है और भारत में स्काईलाइट्स प्राइवेट लिमिटेड के वाड्रा के साथ सम्बन्ध की बात सामने आई है। राजस्थान के बीकानेर में एक अवैध ज़मीन सौदे को लेकर भी ये कम्पनी प्रवर्तन निदेशालय के रडार पर है। इसकी जाँच चल रही है।

सीसी थम्पी पर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के उल्लंघन का मामला चल रहा है। यह मामला सैंकड़ों करोड़ रुपयों की हेराफेरी से जुड़ा है। ईडी ने पिछले साल 288 करोड़ रुपये से अधिक के सौदों में दिल्ली-एनसीआर और उसके आसपास कृषि और अन्य भूमि के अवैधअधिग्रहण के लिए उसे कारण बताओ नोटिस दिया था। सीसी थम्पी, रॉबर्ट वाड्रा और संजय भंडारी ‘क़रीबी दोस्त’ हैं।

सीसी थम्पी और संजय भंडारी के बीच के सम्बन्ध

  1. कम्पनी सिन्टैक, जिसमें संजय भंडारी की अच्छी-ख़ासी हिस्सेदारी है- एक पेट्रोलियम करार और एक रक्षा सौदे को लेकर जाँच के दायरे में है। रक्षा सौदा यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान 2005 में फाइनल किया गया था जबकि पेट्रोलियम करार 2009 में यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान मंज़ूर हुआ था।
  2. ऐसी 4 अन्य सम्पत्तियाँ भी हैं जो जाँच के दायरे में हैं। इन सम्पत्तियों को दो करारों के दौरान यूके की एक कम्पनी से मिले अवैध रुपयों से ख़रीदा गया था। करार फाइनल कराने के लिए मिली घूस की इस राशि को ‘किकबैक’ कहा जाता है।
  3. ‘किकबैक’ की राशि $49,99,969 है। GBP 19,22,262.44 की राशि 10 दिसंबर 2009 को यूके स्थित
    सिन्टैक के बैंक खाते में हस्तांतरित कर दी गई थी। पेट्रोलियम करार ठीक होने के तुरंत बाद ऐसा किया गया था। यह वह धन था जिसका उपयोग लंदन में वर्टेक्स के शेयरों के माध्यम से घर ख़रीदने के लिए किया गया था।
  4. वास्तव में, जाँच एजेंसियों ने पाया है कि घर खरीदने के तुरंत बाद वाड्रा ने भंडारी के एक रिश्तेदार के साथ मकान का नवीनीकरण कराने की शुरुआत की और भंडारी ने उस कार्य के लिए धन उपलब्ध कराया। इस कार्य के लिए GBP 60,000 की राशि उपलब्ध कराइ गई थी।
  5. मकान के जीर्णोद्धार के बाद वाड्रा ने उस संपत्ति को बेचा जो उनके पास वर्टेक्स और सीसी थम्पी के मालिकाना हक़ वाली स्काईलाइट्स एफजेडई के माध्यम से आई थी। वर्टेक्स द्वारा प्राप्त किए गए ‘sale Consideration’ को 30 जून 2010 को वापस साइन्टैक को हस्तांतरित कर दिया गया था। इस राशि को फिर फ्यूचर की ट्रेडिंग कम्पनी, चॉइस पॉइंट ट्रेडिंग और जैन ट्रेडिंग को भुगतान किया गया था।
  6. स्काइलाइट्स इंवेस्टमेंट्स की कोई व्यावसायिक गतिविधि अब तक सामने नहीं आई है और इसका बैंक खाता 31 सितंबर 2009 को खोला गया था। हालाँकि, कंपनी ने दिसंबर 2010 में अपने निवेश के रूप में विला ई-74 और फ्लैट 12 एलर्टन हाउस, लंदन का खुलासा किया था।
  7. भले ही स्काईलाइट इन्वेस्टमेंट की कोई व्यावसायिक गतिविधि नहीं थी, लेकिन दुबई में विला ई-74 और एलर्टन हाउस, लंदन की ख़रीद से पहले उसके खाते में एक बड़ी राशि जमा की गई थी।

ये रहा निष्कर्ष

जो तथ्य सामने आए, वे हैं:

  1. राहुल गाँधी ने कथित रूप से कम कीमत पर एचएल पाहवा से जमीन खरीदी।
  2. रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा भी एचएल पाहवा से जमीन खरीदी गई थी। कई मामलों में, एचएल पाहवा द्वारा इन्हीं ज़मीनों को बढ़े हुए मूल्य पर वापस खरीदा गया था। वो भी तब जबकि पाहवा का कैश बैलेंस निगेटिव में था।
  3. इस खरीद पर साफ-सुथरा दिखाने के लिए, एचएल पाहवा ने सीसी थम्पी से पैसे लिए थे।
  4. सीसी थम्पी और संजय भंडारी करीबी दोस्त हैं। उनके बीच कई वित्तीय लेनदेन भी हुए थे।
  5. संजय भंडारी एक हथियार डीलर है और रॉबर्ट वाड्रा का करीबी दोस्त भी। उसे रक्षा सौदे और पेट्रोलियम सौदे में कमिशन (किकबैक) भी मिला था।
  6. कमिशन (किकबैक) की इसी राशि से संजय भंडारी ने रॉबर्ट वाड्रा से बेनामी संपत्ति खरीदी थी, यहाँ तक ​​कि उसने इन संपत्तियों के नवीनीकरण (रेनोवेशन) के लिए भी भुगतान किया था।
  7. इस संपत्ति को फिर सीसी थम्पी को बेचा गया था।
  8. फिलहाल ईडी थम्पी के साथ रॉबर्ट वाड्रा की निकटता की जाँच कर रहा है।
  9. ये सभी सौदे कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान हुए थे।
  10. संजय भंडारी एक हथियार डीलर है। 2012 से 2015 के बीच राफेल सौदे में ऑफ़सेट पार्टनर बनने की पैरवी संजय भंडारी कर रहा था लेकिन राफेल बनाने वाली कंपनी दसौं ने उसे अपने साथ करने से मना कर दिया था।
  11. 126 राफेल जेट की खरीद से संबंधित फाइल रक्षा मंत्रालय से गायब हो गई थी और बाद में इसे सड़क पर पाया गया था। आरोप है कि भंडारी ने फाइल चुराई थी। आरोप यह भी है कि भंडारी महत्वपूर्ण फाइलों की फोटोकॉपी करता था और जिन डिफेंस कॉन्ट्रैक्टरों के साथ उसके संबंध अच्छे थे, उन्हें वो कॉपी उपलब्ध करवाता था।
  12. अरुण जेटली ने आरोप लगाया था कि जब कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान राफेल को अंतिम रूप दिया जा रहा था, तो यूरोफाइटर के बारे में बैकरूम बातें हुआ करती थीं।
  13. ऐसी अफवाहें भी हैं कि राहुल गाँधी जर्मनी में यूरोफाइटर के प्रतिनिधियों से मिले थे।
राहुल गाँधी और हथियार डीलर संजय भंडारी के बीच लिंक का कच्चा-चिट्ठा

ऊपर की हर कड़ी को जोड़ कर देखें तो यह निष्कर्ष निकालना आसान है कि रॉबर्ट वाड्रा की तरह राहुल गाँधी भी हथियार डीलर संजय भंडारी से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। संजय भंडारी जो न केवल गाँधी परिवार का करीबी है, बल्कि राफेल सौदे में जिसे दसौं ने फटकार भी लगाई थी। कॉन्ग्रेस के शासनकाल में संजय भंडारी को कथित तौर पर रक्षा और पेट्रोलियम सौदों में कमिशन (किकबैक) भी मिला था।

आरोप है कि राहुल गाँधी फिलहाल राफेल सौदे पर इसलिए हमलावर हुए जा रहे हैं, क्योंकि हथियारों के डीलर संजय भंडारी और राहुल गाँधी के सीधे संपर्क के कारण यूरोफाइटर के साथ बैकरूम चर्चा UPA सरकार के दौरान और भी अधिक तेज हो गई थी। हाल ही में, यह भी पता चला है कि क्रिश्चियन मिशेल, जो कि अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाले में एक बिचौलिया था, वो भी यूरोफाइटर की पैरवी कर रहा था और राफेल डील के खिलाफ था। डिफेंस डील में परत-दर-परत खुलते राज और फिलहाल राहुल गाँधी द्वारा राफेल सौदे पर जोर-शोर से हमला करना, कॉन्ग्रेस को उस ओर ले जा रहा है जहाँ वो खुद राहुल गाँधी के हथियार डीलर संजय भंडारी संग रिश्ते की बात और सच्चाई पर खुलासा करने को मजबूर करेगी।

20 लोग, 45 दिन: बच्चों की पढ़ाई के लिए काट डाला पहाड़, बनाया 3Km लंबा रास्ता

कहते हैं कि हौसला मजबूत और इरादे नेक हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं। इसी बात को सार्थक कर दिखाया है मध्यप्रदेश के भंडारपानी गाँव के लोगों ने। बता दें कि 500 आबादी वाले इस गाँव के 20 लोगों ने अपने बच्चों के भविष्य को सँवारने के लिए पहाड़ काटकर 3 किमी की कच्ची सड़क बना दी।

इस घटना से माउंटेन मैन दशरथ मांझी की याद आ जाती है, जिन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट कर एक सड़क बना डाली थी। उन पर बनी फिल्म में इसी हौसले पर एक डायलॉग भी था, “भगवान के भरोसे मत बैठिए, क्या पता भगवान हमरे भरोसे बैठा हो।”

1800 फीट ऊँचे पहाड़ी पर बसे भंडारपानी गाँव के लोगों ने भी कुछ ऐसा ही सोचा और ऊँचे पहाड़ को तोड़कर सड़क बना डाली। गाँव में बच्चे पहाड़ी पर बने मिट्टी की छबाई और घास की झोपड़ी में बने स्कूल में 5वीं तक ही पढ़ाई कर पाते थे। इससे आगे की पढ़ाई के लिए गाँव में मिडिल या हाई स्कूल नहीं होने से उन्हें दिक्कत होती थी। पहाड़ी पर से उतर कर और दूसरे गाँव के स्कूल जाने में यहाँ के बच्चों को तकरीबन 3 घंटे का समय लग जाता था।

मगर अब इस रास्ता के बन जाने से ये बच्चे किसी भी मौसम में अन्य गाँव के मिडिल या हाई स्कूल तक नियमित रूप से पढ़ने जा सकेंगे। बच्चे अब 3 घंटे की जगह महज़ 30 मिनट में ये सफर तय कर लेंगे। बच्चों को पढ़ाई के लिए आने-जाने में होने वाली परेशानी को दूर करने के लिए गाँव के 20 लोगों ने अपना श्रमदान दिया और 45 दिन में तीन किलोमीटर का रास्ता बना दिया।

पहाड़ी पर बसे होने की वजह से इस गाँव में मूलभूत सुविधाओं की भी कमी है, मगर अब इस रास्ते के बन जाने से ग्रामीणों तक सरकार की बुनियादी सुविधाएँ भी पहुँच सकेंगी। घोड़ाडोंगरी इलाके के तहसीलदार सत्यनारायण सोनी बताते हैं कि यहाँ पर रहने वाले सभी परिवार आदिवासी हैं और अगर ये लोग आबादी वाले क्षेत्र में बसना चाहें, तो इन्हें बसाने का प्रयास किया जाएगा।

1993 मुंबई ब्लास्ट: ‘सिर्फ हिंदू नहीं मुस्लिम एरिया मस्जिद बंदर में भी फटा बम’ – CM शरद पवार ने TV पर झूठ बोल समुदाय विशेष को ऐसे दिखाया पीड़ित

भारत के वरिष्ठतम नेताओं में से एक शरद पवार ने 1993 मुंबई बम ब्लास्ट के दौरान कुछ ऐसा किया था, जो आप सोच भी नहीं सकते। उस दौरान उन्होंने झूठ बोला था, वो भी सिर्फ़ कथित तौर पर सांप्रदायिक सौहार्द्र को बरकरार रखने के लिए। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे पवार ने मुस्लिमों को भी पीड़ित दिखाने के लिए बम ब्लास्ट्स की संख्या बढ़ा दी थी। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने एक अतिरिक्त बम ब्लास्ट की ‘खोज’ कर ली थी, जो असल में हुआ ही नहीं था। भले ही आपको यह अविश्वसनीय लगे लेकिन यही सच है। 12 मार्च 1993 को मुंबई को दहलाने वाले 12 सीरियल बम धमाके हुए, जिसके बाद महानगर में अराजकता फ़ैल गई और लोगों में भारी खलबली मच गई।

ये ऐसा पहला आतंकी हमला था, जब भारत में आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया हो। 26/11 की तरह ये हमले भी पूर्व नियोजित थे और इन्हें काफी प्लानिंग के बाद अंजाम दिया गया था। उन ब्लास्ट्स में 300 के क़रीब लोग काल के गाल में समा गए थे, वहीं 1400 के क़रीब लोग घायल हुए थे। यह भारत की ज़मीन पर आतंकी हमलों में हुई अब तक की सबसे बड़ी क्षति है। इस घातक आतंकी हमले में शिवसेना दफ़्तर को भी निशाना बनाया गया था।

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने हमलों के तुरंत बाद दूरदर्शन स्टूडियो में जाकर बोला था और घोषणा की थी कि कुल 13 धमाके हुए हैं। उन्होंने न जाने कहाँ से एक अतिरिक्त विस्फोट की ‘खोज’ कर ली थी। पवार ने कहा था कि मस्जिद बंदर इलाके में 13वाँ विस्फोट हुआ था। चूँकि इस हमले में हिन्दू बहुल क्षेत्रों को निशाना बनाया गया था, ऐसे में पवार ने मस्जिद बंदर इलाके में विस्फोट की कहानी गढ़ी… ताकि मुस्लिम बहुल आबादी वाले इस इलाके को भी पीड़ित की तरह पेश किया जा सके। वास्तव में, सभी 12 धमाके हिन्दू बहुल इलाक़े में किए गए थे।

शरद पवार ने दावा किया था कि उनके इस झूठ के लिए उनकी प्रशंसा की गई थी। एनसीपी सुप्रीमो ने इस हमले में मुस्लिमों को बराबर पीड़ित दिखाने व सच्चाई को दबाने के लिए झूठ का सहारा लिया था। ऐसा स्वयं पवार ने स्वीकार किया था। उन्होंने इसे ‘संतुलन’ के लिए किया गया प्रयास बताया था। हमले के 22 वर्षों बाद पवार ने पुणे में आयजित 89वीं मराठी साहित्यिक बैठक को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया था कि उन्होंने जानबूझ कर एक अतिरिक्त बम ब्लास्ट की कहानी गढ़ी ताकि मुस्लिमों को पीड़ित दिखा कर सांप्रदायिक तनाव से बचा जाए क्योंकि ‘पाकिस्तान ऐसा ही चाहता था’। उन्होंने कहा कि उन्हें भी यह पता था कि ये सभी धमाके हिन्दू बहुल क्षेत्रों में हुए थे।

शरद पवार ने कहा कि उन्होंने दूरदर्शन स्टूडियो जाकर ऐसा कहा क्योंकि यह सांप्रदायिक तनाव की स्थिति को बचाने के लिए सही था। वे लोगों को इस बात का एहसास दिलाना चाहते थे कि मजहब विशेष के लोग भी इस विस्फोट के शिकार हुए हैं। उन्होंने दावा किया कि न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण आयोग द्वारा उनके इस क़दम की सराहना की गई थी। यहाँ तक की पवार ने उस हमले का दोष लिट्टे पर भी मढ़ा था। उन्होंने सांप्रदायिक दंगे रोकने के लिए ऐसा करने का दावा किया। 78 वर्षीय पवार भारत सरकार में केंद्रीय रक्षा व कृषि मंत्री रह चुके हैं। अभी हाल ही में उन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है।

12 मार्च 1993 में इन स्थानों पर धमाके हुए थे- मुंबई स्टॉक एक्सचेंज, नरसी नाथ स्ट्रीट, शिव सेना भवन, एयर इंडिया बिल्डिंग, सेंचुरी बाज़ार, माहिम, झावेरी बाज़ार, सी रॉक होटल, प्लाजा सिनेमा, जुहू सेंटॉर होटल, सहार हवाई अड्डा और एयरपोर्ट सेंटॉर होटल। इस धमाके का साज़िशकर्ता दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन था। इसकी पूरी साज़िश पाकिस्तान में रची गई थी। उस दिन को आज भी ब्लैक फ्राइडे के नाम से जाना जाता है।

LoC पार से बड़ी खबर: PoK के नेताओं ने पाक के विरुद्ध खोला मोर्चा, UN में आत्मघाती हमलों का किया खुलासा

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से बड़ी ख़बर आई है, जो पाकिस्तान की पोल खोलती नज़र आ रही है। वैसे तो पाकिस्तान, आईएसआई और पाकिस्तानी सेना द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देना किसी से छिपा नहीं है लेकिन अब पाक अधिकृत कश्मीर के नेताओं ने भी इसे लेकर आवाज़ उठाई है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 40वें सेशन के दौरान चल रहे कार्यक्रम में कहा कि पाकिस्तानी सेना भारत के ख़िलाफ़ एक प्रॉक्सी वॉर चला रही है। यूनाइटेड कश्मीर पीपल्स नेशनल पार्टी (UKPNP) के अध्यक्ष सरदार शौकत अली कश्मीरी ने इस्लामाबाद को पाकिस्तानी आतंकियों व आतंकी कैम्पों पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा। कट्टरवाद और आतंकवाद से जुड़े ख़तरों की चर्चा करते हुए कश्मीरी ने कहा कि न सिर्फ़ कश्मीर बल्कि पूरा विश्व इस संकट को झेल रहा है।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना कश्मीरियों को इस बात के लिए उकसा रही है कि अब वे हलके-फुल्के हथियारों का प्रयोग न कर के भारत के ख़िलाफ़ आत्मघाती हमलों को अंजाम दें। ऐसा पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड जनरलों द्वारा खुलेआम प्रचारित किया जा रहा है। कश्मीरियों को आतंकी बनने के लिए उकसाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये काफ़ी भयानक स्थिति है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में विभिन धर्मों, सामाजिक संरचनाओं व संस्कृतियों का समावेश है और यहाँ की जनता इन सबके साथ शांतिपूर्वक ढंग से रहना चाहती है। अगर पाकिस्तान ने यूँ ही आतंकवाद और कट्टरवाद को बढ़ावा देना जारी रखा तो राज्य को धर्म के आधार पर हज़ार हिस्सों में टूटने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि कश्मीर में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध- सभी हैं।

पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए मज़हब का सहारा लेने की बात करते हुए शौकत ने कहा:

“अतिवाद से किसी भी व्यक्ति का भला नहीं हुआ है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तान अपनी बुद्धि खो कर आतंकवाद को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। वे मज़हब का इस्तेमाल कर रहे हैं, आतंकवाद का इस्तेमाल कर रहे हैं और यही कारण है कि आज पूरा पाकिस्तान इस से पीड़ित है। पाकिस्तान के नागरिकों व समाज की आवाज़ मुल्लाओं एवं आतंकवादियों द्वारा दबा दी जाती है। क्यों? अगर कोई भी संस्था मानवाधिकार उल्लंघन और आतंकवाद के ख़िलाफ़ शांतिपूर्वक प्रदर्शन करता है तो ये मुल्ले प्रदर्शनकारियों पर हमले करते हैं। हम बहुत गंभीर स्थिति में हैं। इसीलिए, हम संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और विश्व समुदाय से हस्तक्षेप करने की माँग करते हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में एक फैक्ट-चेकिंग मिशन भेजा जाए तो वहाँ फल-फूल रहे आतंकी कैम्पों पर कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान को विवश करे।”

पाक अधिकृत कश्मीर के एक अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ता मिस्फर हसन ने कहा कि पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर- जहाँ भी आतंकी कैम्प फल-फूल रहे हैं, उन्हें तबाह कर दिया जाना चाहिए। पाकिस्तान सरकार को जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए इन ‘नॉन-स्टेट एक्टर्स’ पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि वे न सिर्फ़ क्षेत्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय शांति को भी ख़त्म कर रहे हैं।

IAF के हमले से आहत आजम खान ने कहा- ‘खून का सौदा हो गया है’

बालाकोट में वायु सेना के हमले के बाद सरकार के पक्ष में बुलंद होती आवाजों से घबराकर कई विपक्षी नेताओं ने बयानबाजी करके सरकार पर सवाल उठाने का प्रयास किया है। ममता बनर्जी, दिग्विजय सिंह और सिद्धू के बाद अब इस सूची में आजम खान ने भी अपना नाम दर्ज करा लिया है।

आखिर हमेशा से विवादित बयानों के लिए पहचाने जाने वाले आजम खान इतने बड़े मुद्दे पर चुप्पी कैसे साध सकते थे। चुनावों को मद्देनजर रखते हुए आजम खान ने बयान दिया है कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि देश में सेना के जवानों की जिंदगी से वोट हासिल करने की कोशिश की जा रही हो।

एएनआई द्वारा किए गए ट्वीट में आजम खान का बयान आया है कि पहली बार ऐसा हुआ है कि सर्जिकल स्ट्राइक के नाम पर वोट माँगे जा रहे हैं। उनका कहना है कि फौजियों की जिंदगी पर वोट गिने जा रहे हैं, सरहदों का भी सौदा हो गया है, खून का सौदा हो गया है, वर्दियों का सौदा हो गया है, सरों का सौदा हो गया है।

बता दें कि सेना के प्रति इस बार इतनी सहानुभूति दिखाने वाले आजम खान इससे पहले भारतीय सेना पर एक महिला के बलात्कार का आरोप लगा चुके हैं। जिसमें बाद में सफाई देते हुए उन्होंने कहा था कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है।

इसके अलावा ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि आजम खान अपनी विवादित टिप्पणी के कारण घेरे गए हों। भारतीय सेना के अलावा वह बाबा साहब की मूर्ति पर भी आपत्तिजनक बयान दे चुके हैं। इसमें उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश में सैकड़ों जगह पर एक साहब की प्रतिमा लगी है, उनमें उनकी उंगली कुछ खास इशारा करती नजर आ रही है। आजम ने बताया कि बाबा साहब की प्रतिमा कह रही है कि उनकी ऊँगली जिस ओर इशारा कर रही है, वह जमीन उनकी है।

बाबा साहब पर इस बयान के बाद उनकी खुद की पार्टी में ही उनके विरोध में आवाज उठने लगी थी। साथ ही उन पर एफआईआर भी दर्ज हुई थी। बाकि सेना के नाम पर राजनीति का पाठ पढ़ाने वाले आजम इससे पहले बलात्कार आरोपित एक मौलाना के पक्ष में भी बयान दे चुके हैं। जिसके कारण भी उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी।

साथ ही पिछले महीने जया प्रदा ने इन्हीं आजम खान पर आरोप लगाया था कि इन्होंने (आजम) उनके(जया) के ऊपर एक बार चुनावों के चलते तेजाब फेंककर हमला करने का भी प्रयास किया था।

सोशल मीडिया पर चुनाव आयोग सख़्त, नेताओं के अकाउंट्स पर रहेगी नज़र – दिशा-निर्देश जारी

चुनाव आयोग ने आगामी लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया के प्रयोग को लेकर भी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस दौरान चुनाव आयोग फेसबुक, ट्विटर सहित तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पैनी नज़र रखेगा। राजनीतिक पार्टियों व उम्मीदवारों द्वारा सोशल मीडिया पर किए जा रहे विज्ञापन भी अब उनके चुनावी ख़र्च में शामिल होंगे। नेता व राजनीतिक दलों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर विज्ञापन जारी करने से पहले चुनाव आयोग से उसका सत्यापन कराना होगा। अर्थात, अब सोशल मीडिया पर असत्यापित विज्ञापन पोस्ट करने पर आयोग कार्रवाई करेगा। इसके अलावा चुनाव प्रचार के लिए सेना के जवानों के फोटोज भी इस्तेमाल नहीं किए जा सकेंगे। इतना ही नहीं, फेक न्यूज़ पर भी चुनाव आयोग की कड़ी नज़र रहेगी।

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने इस बाबत अधिक जानकारी देते हुए कहा:

“ज़िला और राज्य स्तर पर MCMC (मीडिया सर्टिफिकेशन एंड मॉनिटरिंग कमिटी) सक्रिय हैं। प्रत्येक स्तर पर एक सोशल मीडिया एक्सपर्ट भी इस कमिटी का हिस्सा होगा। राजनीतिक विज्ञापनों को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने से पहले MCMC से प्रमाणित करवाना होगा।”

नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, नामांकन के वक़्त ही उम्मीदवारों को अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स का पूरा विवरण पेश करना पड़ेगा। चुनाव आयोग उम्मीदवारों व राजनीतिक पार्टियों के फेसबुक, ट्विटर, गूगल व व्हाट्सऐप एकाउंट्स पर निगरानी रखेगा। आदर्श आचार संहिता के प्रावधान अब सोशल मीडिया पर भी लागू होंगे। राजनीतिक दलों व नेताओं को सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करते समय आचार संहिता के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखना पड़ेगा। चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त एक्सपर्ट्स फेक न्यूज़ की पहचान करेंगे, जिसके बाद चुनाव आयोग उचित निर्णय लेगा। इसके अलावा राजनीतिक दल व नेतागण अपने सोशल मीडिया अकाउंट से ऐसे पोस्ट नहीं डाल सकेंगे, जिससे चुनावी प्रक्रिया में बाधा पहुँचे।

वे ऐसा कोई पोस्ट नहीं डाल सकते, जिस से सामाजिक या धार्मिक सद्भावना बिगड़ने की नौबत आए या सार्वजनिक व्यवस्था पर कोई बुरा असर पड़े। बता दें कि रानजीतिक दलों व उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के समक्ष प्रचार-प्रसार के दौरान हुए व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत करना होता है। अब सोशल मीडिया पर किया गया प्रचार-प्रसार और विज्ञापन का ख़र्च भी इसी विवरण में शामिल होगा। इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर को दिए गए रुपए से लेकर वेबसाइट्स पर दिए गए विज्ञापन तक के ख़र्च इसमें शामिल होंगे। इसके अलावा पार्टी के लिए विज्ञापन कंटेंट बनाने वाली टीम की सैलरी भी इसी ख़र्च में जुड़ेगी।

केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी से इस सम्बन्ध में बात करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर ‘पॉलिटिकल एडवर्टाइजमेंट’ को रेगुलेट करने के लिए चुनाव आयोग ने जो दिशा-निर्देश और आचार संहिता लागू की है, उसको हम भी मानेंगे और सभी को मानना चाहिए। लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया का एंटी-सोशल इस्तेमाल न हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। कॉन्ग्रेस ने कहा कि आयोग को ये दिशा-निर्देश बहुत पहले ही जारी करने चाहिए थे। उम्मीदवारों के अलावा ऐसे अन्य लोगों को पर भी कार्रवाई की जाएगी, जो गलत तरीके से फोटोज से साथ छेड़छाड़ करते हैं या फिर आपत्तिजनक पोस्ट्स पर कमेंट करते हैं। देश में आम चुनाव 11 अप्रैल से शुरू होंगे। यूपी, बिहार व बंगाल में सभी 7 चरणों में चुनाव होंगे।

पाकिस्तान को तगड़ा झटका, ICC ने कहा ‘हमने दी थी भारतीय टीम को आर्मी कैप पहनने की अनुमति’

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रहे सीरीज के दौरान राँची वनडे मैच में भारतीय क्रिकेट टीम ने भारतीय जवानों के सम्मान में आर्मी कैप पहन कर मैच में हिस्सा लिया। कप्तान विराट कोहली और पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी सहित सभी भारतीय क्रिकेटरों ने आर्मी कैप पहन रखा था। शुक्रवार (मार्च 8, 2019) को खेले गए इस मैच में पुलवामा आतंकी हमले के विरोधस्वरूप टीम इंडिया ने ऐसा किया। खिलाड़ियों ने वीरगति को प्राप्त जवानों को आर्थिक मदद देने का भी सन्देश दिया। भारतीय टीम का यह सराहनीय पहल पाकिस्तान को काफ़ी नागवार गुजरा। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने विश्व में क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी (International Cricket Council) को इस सम्बन्ध में कार्रवाई करने का अनुरोध किया था। तिलमिलाए पाकिस्तान ने कहा था कि वह इसका बदला लेगा।

राँची में आर्मी कैप पहने भारतीय क्रिकेटर्स

वहीं अब आईसीसी ने पाकिस्तान के जले पर नमक छिड़कते हुए कहा है कि भारतीय टीम को ऐसा करने की अनुमति उसने ही दी थी। पाकिस्तान ने कोहली ब्रिगेड पर खेल का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया था, जिसे आईसीसी ने नकार दिया। बहरहाल, बीसीसीआई ने योजना बनाई है कि भारत हर साल एक बार अपने सैनिकों के सम्मान में आर्मी कैप पहनकर मुक़ाबला खेलेगा। पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी तो इतने ख़फ़ा हो गए कि उन्होंने यह ऐलान कर दिया कि अगर भारतीय टीम पर कार्रवाई नहीं की गई तो पाकिस्तानी टीम भी विश्व कप में काली पट्टी बाँध कर खेलेगी।

ऑस्ट्रेलिया के ‘पिंक टेस्ट’ और दक्षिण अफ्रीका के ‘पिंक वनडे’ की तर्ज पर अब भारत भी साल में एक मैच सेना को डेडिकेट करेगा। शुक्रवार को ये टोपियाँ स्वयं पूर्व कप्तान धोनी ने खिलाड़ियों को सौंपी थी। कप्तान विराट कोहली ने बताया था कि टीम इस मैच की फीस नैशनल डिफेंस फंड में जमा करेगी जिससे शहीदों के परिवार की मदद की जा सके। उन्होंने लोगों से भी शहीदों के परिवार की मदद करने की अपील की। धोनी और कोहली स्वयं ब्रांड नाइकी के साथ मिलकर इस पर पिछले 6 महीने से काम कर रहे थे।

आईसीसी के महाप्रबंधक (रणनीतिक संचार) क्लेरी फुर्लोग ने पाकिस्तान की शिकायत को दरकिनार करते हुए बयान में कहा:

“बीसीसीआई ने धन जुटाने और वीरगति को प्राप्त सैनिकों की याद में टोपी पहनने की अनुमति माँगी थी और उसे इसकी अनुमति दे दी गई थी। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने आईसीसी को इस संबंध में कड़ा पत्र भेजा था और इस तरह की टोपी पहनने के लिये भारत के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी।”

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के प्रमुख एहसान मानी ने कहा कि भारतीय टीम ने किसी और उद्देश्य से ऐसा करने की अनुमति ली थी लेकिन इसका गलत इस्तेमाल किया गया। अब आईसीसी से झटका खाने के बाद पाकिस्तानी टीम इस बारे में कुछ नहीं कर सकती। बीसीसीआई ने पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों के वीरगति को प्राप्त होने के बाद आईसीसी से उन देशों के साथ संबंध तोड़ने के लिए कहा था जो आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं।

जब कंधार-कंधार रटने वालों ने 25 खूंखार आतंकियों को रिहा कर दिया था.. जानिए क्या हुए उसके दुष्परिणाम

कॉन्ग्रेस पार्टी विरोधाभासों का प्रतीक है, विडंबनाओं की प्रतिमूर्ति है और धीरे-धीरे झूठ की भी अचल प्रतिमा बनती जा रही है। पार्टी के अध्यक्ष का तो कहना ही क्या। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों से उन्होंने ऐसा खेल खेला है कि मीडिया से लेकर राजनीतिक दल, सब अपनी गोटियाँ वहीं फिट कर रहे हैं। अब राहुल गाँधी एक फोटो को लेकर भाजपा पर हमला बोल रहे हैं। इस फोटो में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कंधार विमान हाईजैक के दौरान तीन आतंकियों को छोड़ने जा रहे हैं, जिसमें मसूद अज़हर भी शामिल है। वही मसूद अज़हर, जिसने भारत में पठानकोट और पुलवामा सहित कई आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर हमारे जवानों का रक्त बहाया। उस समय क्या परिस्थितियाँ थीं और किन कारणों से ऐसा करना पड़ा उसकी हम संक्षेप में चर्चा करेंगे लेकिन, यहाँ हम आपको एक ऐसी बात बताएँगे, जिसे जानकार आप चौंक जाएँगे।

दरअसल, जो कॉन्ग्रेस आज भाजपा पर आतंकियों को रिहा करने का आरोप मढ़ रही है, उसी पार्टी की सरकार ने 2010 में एक, दो, तीन नहीं बल्कि 25 पाकिस्तानी आतंकियों को जेल से रिहा कर दिया था। उन्होंने इसे ‘Goodwill Gesture’ नाम दिया था। 24 दिसंबर 1999 को काठमांडू और नयी दिल्ली को जोड़ने वाले इंडियन एयरलाइन्स के विमान IC814 को हाईजैक कर लिया गया था। इस प्लेन को अफ़ग़ानिस्तान ले जाया गया, जहाँ उस समय तालिबान का राज था। आईएसआई और हरकत-उल-मुजाहिद्दीन के इस संयुक्त आतंकी अभियान के बारे में अजीत डोभाल ने कहा था कि अगर उस समय आतंकियों को आईएसआई का समर्थन नहीं रहता तो परिस्थितियाँ कुछ अलग हो सकती थीं। डोभाल उस टीम का हिस्सा थे जो आतंकियों के साथ नेगोशिएशन कर रही थी।

कॉन्ग्रेस का ये कृत्य अख़बारों की सुर्खियाँ बना था

इस घटना के एक दशक पहले कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारुक़ अब्दुल्ला की बेटी रुबैया सईद का आतंकियों ने अपहरण कर लिया था, जिसे छुड़ाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने पाँच आतंकियों को रिहा किया था। लोगों के मन में वो यादें ताज़ा थी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर देश भर में दबाव था और चर्चा चल रही थी कि अगर एक बड़े नेता की बेटी को छुड़ाने के लिए आतंकियों को रिहा किया जा सकता है तो 150 के क़रीब आम लोगों को छुड़ाने के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? सर्वदलीय बैठक में सभी पार्टियों की सहमति से निर्णय लिया गया कि तीनों आतंकियों को छोड़ा जाएगा। उस बैठक में सोनिया गाँधी ने भी हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं, डॉक्टर मनमोहन सिंह भी उस बैठक में शामिल थे।

आज कंधार-कंधार की रट लगाने वालों को अपनी पार्टी के दोनों सुप्रीम नेताओं- सोनिया गाँधी और डॉक्टर मनमोहन सिंह से पूछना चाहिए कि क्या उस बैठक में उन्होंने आतंकियों को रिहा करने और फँसे नागरिकों को छुड़ाने का विरोध किया था? अगर नहीं, तो राहुल गाँधी सहित आज के नेताओं को अपने सीनियर्स से कोचिंग लेकर उस समय की परिस्थितियों से अवगत होना चाहिए। रुबैया के अपहरण के बाद 5 आतंकी छोड़े गए थे। इसके एक दशक बाद 150 के लगभग यात्रियों की सकुशल वापसी के लिए 3 आतंकी छोड़े गए। अब एक दशक और आगे बढ़ते हैं। 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने 25 आतंकियों को यूँ ही रिहा कर दिया। ये उनके लिए ‘सद्भावना का संकेत’ था। आतंकियों से सद्भावना जताने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी क्या आज उन 25 आतंकियों को रिहा करने के बाद हुए दुष्परिणामों को लेकर कुछ कहेगी?

जिस आतंकी को रिहा किया, उसने पठानकोट में ख़ून बहाया

जिन 25 आतंकियों को डॉक्टर सिंह (अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया गाँधी) के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने रिहा किया था, उसमे एक नाम शाहिद लतीफ़ का भी था। लतीफ़ पठानकोट हमले को अंजाम देने वाले फिदायीन गुट का प्रमुख हैंडलर था। पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने के लिए जिसे यूपीए सरकार ने रिहा किया, उसने एक झटके में हमारे सुरक्षा बल के 7 जवान और 1 नागरिक को मौत के घात उतार दिया था। 28 मई 2010 को पाकिस्तान को ख़ुश करने के लिए लतीफ़ सहित 25 आतंकियों को सीमा से वापस भेज दिया गया। न कोई मज़बूरी थी और न कोई दबाव। मुंबई हमले को अभी डेढ़ वर्ष ही हुए थे और 150 से भी अधिक लोगों के ख़ून को भारत सरकार इतनी जल्दी भूल गई। जब आतंकियों का सफाया होना चाहिए था, तब उन्हें छोड़ दिया गया। इसी लतीफ़ को कंधार काण्ड के दौरान वाजपेयी सरकार ने रिहा करने से मना कर दिया था। इतना ही नहीं, अटल सरकार ने लतीफ़ सहित 31 आतंकियों को रिहा करने से साफ़ इनकार कर दिया था।

आपको यह जान कर हैरानी होगी कि लतीफ़ को रिहा करने की माँग वही आतंकी कर रहे थे, जिन्होंने 1999 में भारतीय विमान को हाईजैक किया था। इतने खूंखार आतंकी को यूं छोड़ दिया गया जैसे कि वह कोई चोरी-चकारी का मुजरिम हो। कंधार काण्ड के बाद तो राजग सरकार और सतर्क हो गई थी। उसने लतीफ़ को कश्मीर से निकाल कर वाराणसी के जेल में स्थानांतरित कर दिया ताकि उसे छुड़ाने के लिए आतंकी फिर से कोई ऐसी-वैसी हरकत न करें। अव्वल तो यह कि बदले में पाकिस्तान ने किसी एक भी भारतीय क़ैदी को रिहा नहीं किया। यह कैसा सद्भावना सन्देश या Goodwill Gesture था जहाँ भारत ने उन्हीं आतंकियों को रिहा किया जिन्होंने बदले में हमारे जवानों व नागरिकों को मारा। पाकिस्तान ने भारत की बेइज्जती करते हुए इस सद्भावना का कोई पॉजिटिव प्रत्युत्तर नहीं दिया।

डोवाल के इसी चित्र को आधार बना कर राहुल गाँधी भाजपा पर हमले कर रहे हैं

ऐसा नहीं था कि कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के इस कथित सद्भावना वाले कार्य के बाद आतंकी हमले होने बंद हो गए। इसके बाद मुंबई, बनारस, पुणे, दिल्ली, पटना, गया, बंगलुरु और हैदराबाद सहित तमाम धमाके हुए और केंद्र सरकार हाथ मलती रही। बता दें कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश के प्रमुख शहरों में इस तरह के आतंकी धमाके नहीं हुए। कंधार-कंधार का रट लगाने वाली कॉन्ग्रेस को याद करना चाहिए की वो आतंकी तो देश से बाहर अपने सुरक्षित ठिकाने पर जा चुके थे लेकिन मुंबई हमलों के दौरान तो आपकी आर्थिक राजधानी में घुसकर 10 आतंकियों ने 3 दिन तक पूरे देश को एक तरह से बंधक बनाए रखा। अगर ख़ून का हिसाब होगा, तो कॉन्ग्रेस के दाग इतने गहरे हैं कि सर्फ एक्सेल भी न छुड़ा पाए।

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते देश की संपत्ति पर पहला हक़ समुदाय विशेष का बताया था। शायद यही कारण था कि उन्होंने उन 25 आतंकियों को रिहा किया जिनमें सभी पाकिस्तानी थे। क्या उनमें से कोई सुधरा? क्या पाकिस्तान सुधरा? इसका हिसाब दीजिए, तब कंधार का नाम भी लीजिए।

AAP की ‘नौटंकी’ चालू: कल तक जिस कॉन्ग्रेस का माँगते थे साथ, अब उसके ख़िलाफ़ कर रहे हैं विरोध प्रदर्शन

लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा होने के एक दिन बाद ही आम आदमी पार्टी ने सोमवार (मार्च, 11 2019) को दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य की माँग को केंद्र में रखते हुए कॉन्ग्रेस मुख्यालय पर जमकर विरोध किया है।

‘आप’ का आरोप है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए कॉन्ग्रेस उसका साथ नहीं दे रही है। अपनी इसी शिकायत को लेकर आम आदमी पार्टी इससे पहले बीजेपी मुख्यालय को भी घेर चुकी है।

पार्टी ने अपने ट्वीट में लिखा है कि अब याचना नहीं, रण होगा। जिस पार्टी से कुछ दिन पहले तक केजरीवाल गठबंधन करने के लिए बेताब हुए जा रहे थे, उसी कॉन्ग्रेस को लेकर आप ने कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के मामले में कॉन्ग्रेस ने दिल्ली वासियों की पीठ पर छूरा घोंपा है।

इस विरोध प्रदर्शन में ‘आप’ के कार्यकर्ताओं ने जमकर नारेबाजी की। साथ ही आरोप लगाया कि दिल्ली के संयोजक गोपाल रॉय ने दिल्ली भाजपा और दिल्ली कॉन्ग्रेस के अध्यक्षों को पूर्ण राज्य मामले पर पत्र लिखकर पक्ष रखने की अपील की थी, लेकिन दोनों ही पार्टियों ने कोई जवाब नहीं दिया।

‘आप’ का दावा है कि यदि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाता है तो दिल्ली के विकास कार्यों में तेजी आएगी। साथ ही केजरीवाल ने हाल ही में यह भी कहा था कि यदि दिल्ली पूर्ण राज्य बनेगा तो 10 साल के अंदर दिल्ली के हर एक परिवार को मकान बनाकर देंगे।

यहाँ बता दें कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए केजरीवाल ने 1 मार्च से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने का फैसला किया था, लेकिन भारत-पाक के बीच बढ़ते तनावों का हवाला देते हुए, उन्होंने इसे टालने का निर्णय ले लिया था। हालाँकि जिसके बाद भूख हड़ताल कब होगी इसकी कोई खबर नहीं है लेकिन सीट के बंटवारे से गुस्साए ‘आप’ के कार्यकर्ताओं के विरोध की खबरें जरूर हैं।