Friday, October 4, 2024
Home Blog Page 5407

झारखंड: दुमका में नक्सली ठिकानों से पुलिस ने जब्त किए 60 क्रूड बम और 12 kg विस्फोटक

दुमका जिले के नक्सल प्रभावित काठीकुंड प्रखंड के लकड़ापहाड़ी गाँव से मंगलवार (मार्च 05, 2019) को पुलिस ने 60 क्रूड बम (देशी ग्रेनेड) समेत तकरीबन 12 किलो विस्फोटक बरामद करने में सफलता हासिल की है। यह 10 दिनों के अंदर तीसरा मौका है जब पुलिस को नक्सल प्रभावित क्षेत्र में इतनी बड़ी सफलता हाथ लगी है।

दुमका के पुलिस अधीक्षक वाईएस रमेश ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि नक्सलियों के खिलाफ चल रहे जोरदार अभियान के दौरान काठीकुंड में पुलिस को यह सफलता हाथ लगी है। उन्होंने बताया कि सभी बरामद बमों को बम निरोधक दस्ते ने निष्क्रिय कर दिया है।

पुलिस ने मीडिया को बताया कि 12 किलो विस्फोटक में 10 किलो टीईटीएन और 2 किलो लाल रंग का विस्फोटक बरामद किया गया है। एसपी ने कहा कि क्रूड बम के इस्तेमाल से जानमाल को भारी क्षति हो सकती थी। बता दें कि बीते 27 फरवरी को पुलिस काठीकुंड के जोड़ाआम से भी बड़ी मात्रा में विस्फोटक जब्त करने में सफलता हासिल की थी। आशंका जताई जा रही है कि नक्सली संगठन ने लोक सभा चुनाव में हिंसा फैलाने की तैयारी कर रखी थी।

रहीसु के ‘अवैध निर्माण’ को अधिकारियों ने गिराया, 100 से ज़्यादा झुग्गियाँ के साथ धार्मिक स्थल को लगा दी आग

उत्तर प्रदेश के मेरठ के सदर थाना क्षेत्र की भूसा मंडी में अवैध निर्माण तोड़ने पर बवाल और आगजनी की घटना सामने आई है। भूसा मंडी में अतिक्रमण हटाने के लिए गई कैंटोमेंट बोर्ड और पुलिस की टीम से स्थानीय लोगों ने बदतमीजी करते हुए हाथापाई शुरू कर दी। यहाँ तक कि पुलिसकर्मियों का वायरलेस भी छीन लिया।

इतना ही नहीं, इसके बाद वहाँ उपद्रवियों ने करीब 100 से ज्यादा झुग्गी झोपड़ी में आग लगा दी। बताया जा रहा है कि एक धार्मिक स्थल भी आग की चपेट में आ गया है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मकानों में बड़ी संख्या में रखे सिलेंडर विस्फोट में विस्फोट से आग और भी ज़्यादा आक्रामक हो गई। यहाँ तक कि उपद्रवियों ने कई दुकानों में लूटपाट भी शुरू कर दी। जिससे अफरा-तफरी मच गई और पूरे शहर में दंगे की अफवाह फैल गई। कई बसों और वाहनो में तोड़फोड़ करने के साथ उन्हें आग के हवाले कर दिया गया।

मीडिया के अनुसार पूरा मामला कुछ यूँ है कि, भूसा मंडी में बड़ी संख्या में झुग्गी-झोंपडी सहित पक्के मकान बने हुए हैं। बताया जा रहा है कि रहीसु नाम का व्यक्ति अपने मकान का निर्माण कर रहा था। बुधवार (मार्च 6,2019) दोपहर कैंटोमेंट बोर्ड के सीईई और सदर थाने की पुलिस ने निर्माण को अवैध बताकर ध्वस्त कर दिया। इसे लेकर वहाँ रहने वाले लोगों और टीम के अधिकारियों में झड़प शुरू हो गई।

बताया जा रहा है कि गुस्साई भीड़ ने कैंट बोर्ड के एक कर्मचारी को पीट दिया। बवाल बढ़ने की सूचना मिलने पर पहुँची सदर थाने की पुलिस से भी हाथापाई हुई। इसके बाद बवाल बढ़ता ही चला गया। आग से घरों में बड़ी संख्या में बकरियों और अन्य पशु जो बँधे रह गए आग में जलकर मर गए।

बताया जा रहा है कि डीएम-एसएसपी सहित पूरे जिले का पुलिस-प्रशासनिक अमले ने मौके पर पहुँचकर भीड़ को शांत कराया। अभी तक कि सूचना के आधार पर फिलहाल आग लगी हुई है और उसे बुझाने के प्रयास जारी हैं।

आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का वजूद ही नहीं है: पाकिस्तानी सेना

IAF द्वारा पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी संगठनों को ख़त्म करने की घटना के बाद से पाकिस्तान अपने को ‘जोकर’ साबित करने के पूरे सबूत दे चुका है। इसी श्रृंखला में पाकिस्तान की सेना ने आज बयान दिया है कि उनके मुल्क में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का वजूद ही नहीं है। यह चौंकाने वाला दावा पाक सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने किया है। उन्होंने कहा कि इस संगठन को उनके मुल्क और संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित किया है।

पाक सेना के प्रवक्ता गफूर का ये बयान उस वक्त आया है, जब पाक विदेश मंत्री महमूद शाह कुरैशी ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि वह जैश के सरगना मसूद अजहर के संपर्क में हैं। इस बीच, बुधवार (मार्च 06, 2019) को ही पाक के वित्त सचिव ने कहा कि वित्तीय प्रतिबंधों से बचने के लिए प्रतिबंधित संगठनों के खिलाफ सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए। इसके अलावा एक साक्षात्कार में पाक विदेश मंत्री कुरैशी ने कहा था कि मसूद अजहर बहुत बीमार है और हम उसके संपर्क में हैं, साथ ही यह भी कहा था कि जैश लीडरशिप से हुई बातचीत में उन्होंने पुलवामा हमले को अंजाम देने से इनकार किया है।

पाकिस्तान की सरकार और सेना के बयानों में विरोधाभास दिख रहा है। पाकिस्तान ने मंगलवार को जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के भाई और बेटे समेत 44 आतंकियों को हिरासत में लेने की बात की थी। पाक विदेश राज्य मंत्री शहरयार अफरीदी ने कहा था कि यह कार्रवाई किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं, बल्कि देश हित में की गई है।

‘मेरा बूट सबसे मजबूत’ : भाजपा सांसद और विधायक में बहस के बाद हुई जमकर कुटाई

भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध के बादल छँट चुके हैं लेकिन भाजपा के भीतर आज एक अलग किस्म की जंग देखने को मिली है। ख़बरों में आज उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले से एक बेहद ही चौंकाने वाला वीडियो देखने को मिला है। वीडियों में संत कबीर नगर के विधायक और सांसद आपस में ही भिड़ गए। बातों की गरमा-गर्मी हाथापाई और एक दूसरे पर जूता-चप्पल चलाने पर भी आ गई। मामला इतना बढ़ गया कि बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी ने विधायक राकेश सिंह पर जूता फेंक दिया।

मामला एक प्रोजेक्ट के शिलापट्ट पर नाम लिखवाने को लेकर था। फाउंडेशन स्टोन पर किस का नाम होगा, इसी बात को लेकर विवाद हो गया और दोनों लोग आपस में भिड़ पड़े। वीडियो में साफ तौर पर दिख रहा है कि बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी इंजिनियर से कुछ सवाल पूछ रहे हैं, इसी बीच विधायक राकेश सिंह उन सवालों के बीच में कूद पड़ते हैं। 

इस निंदनीय घटना पर उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा, “हमने इस निंदनीय घटना का संज्ञान लिया है और दोनों को लखनऊ तलब किया गया है। सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।”

पुलवामा अटैक पर फेक ऑडियो वायरल करने वाला Avi Dandiya गिरफ्तार: रिपोर्ट्स

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने पुलवामा आतंकी हमले से संबंधित फेक ऑडियो क्लिप वायरल करने वाले आरोपित अवि डांडिया को गिरफ्तार कर लिया है।

बता दें कि एक मार्च को अवि डांडिया ने अपने फेसबुक पेज पर लाइव के दौरान एक ऑडियो क्लिप पोस्ट किया था। इसमें अवि ने कैप्शन लिखा था, “क्या सच है सुनिए, अगर विश्वास न हो और देश की आवाम में दम हो तो पूछे उनसे, जिनकी आवाज है, जो सेना के नहीं, वे आवाम के क्या होंगे?”

दरअसल अवि के फेक ऑडियो क्लिप के मुताबिक, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह एक महिला से बात कर रहे हैं। इस क्लिप को सुनकर ऐसा लग रहा है कि पुलवामा हमले की साजिश भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने रची है। बता दें कि अवि द्वारा पोस्ट की ऑडियो क्लिप की पड़ताल में सामने आया का यह फेक है। इस क्लिप को नेताओं के पुराने बयानों को जोड़-तोड़कर बनाया गया था।

पड़ताल में सामने आया कि अलग अलग चैनलों या अलग-अलग वक्त पर दिए गए बयानों में से शॉट्स लेकर ऑडियो क्लिप बनाई गई है। इस ऑडियो क्लिप में एक महिला के सवालों पर राजनाथ और अमित शाह के बयानों को ऐसे तोड़-मरोड़कर पेश किया गया था कि जैसे पुलवामा आतंकी हमले की साजिश रची जा रही हो। जिसका पाकिस्तान ने भी भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा चलाने के लिए इस्तेमाल किया था।

जिसमें दावा किया जा रहा था कि 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने ही कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला कराया था।

इससे पहले भी अवि ने कई फेक वीडिओ जारी किया था। लम्बे समय तक डांडिया प्रो आप कैम्पेन चलाता रहा। डांडिया पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थन करता हुआ भी नज़र आया था।

200 साल बाद पहला कुम्भ मेला, जिसमें नहीं हुई भगदड़ से एक भी मौत

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मकर संक्रांति के पर्व पर 15 जनवरी से शुरू हुए दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक और आध्यात्मिक कुम्भ मेले का 4 मार्च को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ समापन हो चुका है। 49 दिनों तक चले इस भव्य मेले में देश-विदेश के करीब 23 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, 4 मार्च को हुए महाशिवरात्रि के आखिरी स्नान पर करीब 1.10 करोड़ लोगों ने संगम में डुबकी लगाई। 15 जनवरी से 4 मार्च तक चलने वाले भव्य कुम्भ मेले ने कई वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़े और कई नए कीर्तिमान बनाए हैं।

कुम्भ मेला नाम सुनते ही हिंदी फिल्मों में दिखाया गया वो सीन याद आ जाता है, जब भीड़ और भगदड़ के बीच 2 भाई कुम्भ में बिछड़ जाते हैं। लेकिन कुम्भ मेले की भगदड़ का ये सीन केवल बिछड़ने तक ही नहीं बल्कि अनेक लोगों की मौत तक का कारण भी हुआ करता था। हालात ये हैं कि अभी भी लोग कुम्भ की भीड़ और किसी अनहोनी की आशंका से डरते हैं और यदि देखा जाए तो उनका डर गलत भी नहीं है क्योंकि भारत में ब्रिटिश सत्ता के समय से ही हिन्दू संस्कृति, त्यौहारों, मेलों की पूरी अनदेखी की गई और व्यवस्था, सुरक्षा, एवं सुविधा को हल्के में लिया गया।

वर्तमान केंद्र सरकार और योगी आदित्यनाथ के संयुक्त प्रयासों ने प्रयागराज कुम्भ के आयोजन में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। इस सरकार ने हर मायने में यह साबित किया है कि हिन्दू आस्थाओं के प्रति संवेदनशीलता और तत्परता दिखाई जाए तो उन्हें दुर्घटनाओं से बचाया जा सकता है।

1820 का हरिद्वार कुम्भ मेला इतिहास में दर्ज वह कुम्भ है, जिसमें ज्ञात स्रोतों के मुताबिक भगदड़ से 450 से भी ज्यादा तीर्थयात्रियों की मौत हुई और 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए। इसके बाद 1840 के प्रयाग कुम्भ मेले में 50 से अधिक मौतें हुईं। तत्कालीन सरकारी तंत्र में लगातार मची उथल-पुथल और व्यवस्था के मामूली इंतजामों के कारण इसके बाद के प्रत्येक कुम्भ में भी भगदड़ से तीर्थयात्री मरते रहे, जिनका आधिकारिक ब्यौरा तक उपलब्ध नहीं है। यदि 20वीं शताब्दी की बात करें तो 1906 के प्रयाग कुम्भ मेले में भगदड़ से 50 से अधिक मौतें हुईं और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

प्रधानमंत्री नेहरु के संसदीय क्षेत्र प्रयाग में आजादी के बाद आयोजित प्रथम कुम्भ की दर्दनाक भगदड़

जब भी कुम्भ मेले की भगदड़ों का नाम आता है तो वर्ष 1954 के प्रयाग कुम्भ का रक्तरंजित इतिहास आँखों के सामने आ जाता है। ‘द गार्जियन’ के अनुसार 3 फरवरी, 1954 को मौनी अमावस्या के दिन शाही स्नान में 800 से अधिक श्रद्धालुओं की भयानक भगदड़ में मौत हुई। ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के अनुसार यह आँकड़ा हजार मौतों से ज्यादा का है। तत्कालीन प्रधानमंत्री और इलाहबाद से सांसद जवाहरलाल नेहरू उस दिन कुम्भ मेला क्षेत्र में ही उपस्थित थे। सरकार द्वारा केवल कुछ भिखारियों के मरने का दावा किया गया था। लेकिन तत्कालीन नेहरू सरकार का ‘सरकारी झूठ’ तब सामने आया जब एक पत्रकार ने गहनों से लदी महिलाओं की लाशों की तस्वीर अख़बार में छाप दी थी।

प्रयागराज (इलाहबाद) की इस भयावह घटना के गवाह कुछ लोग बताते हैं कि मृतक संख्या कम दिखाने के लिए शासन द्वारा दर्जनों शव पेट्रोल डाल कर जला दिए गए थे। हालाँकि, यह सब आधिकारिक रिकॉर्ड्स में कब दर्ज होता है? लाशों के कई ढेर पुलिस की घेराबंदी करके जलाए गए लेकिन कुछ पत्रकार फिर भी तस्वीरें खींच लाए। हादसे की तस्वीरें खींचने वाले अकेले फोटो पत्रकार एनएन मुखर्जी ने संस्मरण में बताया था कि दुर्घटना के अगले दिन अख़बारों में शवों की तस्वीरें देखकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंदबल्लभ पंत ने दाँत पीसते हुआ कहा था, “कौन है ये हरामज़ादा फ़ोटोग्राफ़र?”

कुम्भ मेले में भगदड़ से मौतों का सिलसिला यहीं नहीं थमा। ‘द गार्जियन’ के अनुसार, मार्च
1986 के हरिद्वार कुम्भ मेले में हुई 3 भगदड़ों 600 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई। इसी
साल 1986 में ही जनवरी में हुए प्रयाग कुम्भ मेले में भगदड़ में 50 से अधिक लोगों की मौत
हुई थी।

21वीं सदी में भी नहीं थमीं कुम्भ में अव्यवस्था से जन्मी भगदड़ से मौतें

कुम्भ मेले में भगदड़ का सिलसिला वर्ष 2000 के बाद भी नहीं बदला और लगातार प्रत्येक कुम्भ में शासन-प्रशासन के गैर जिम्मेदाराना रवैये के कारण तीर्थयात्रियों की मृत्यु का सिलसिला जारी रहा। ‘द ट्रिब्यून’, और ‘द गार्जियन’ के अनुसार, 27 अगस्त 2003 को नासिक कुम्भ में मची भगदड़ में 39 श्रद्धालुओं की मौत हुई और 150 से 200 लोग घायल हुए। इसके बाद वर्ष 2010 के हरिद्वार कुम्भ मेले में भगदड़ में 7 लोगों की मौत हुई और 2 लोगों की डूबकर मौत हुई। वर्ष 2013 के प्रयागराज कुम्भ मेले में 10 फरवरी को मची भगदड़ में 36 श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई। 5 मई 2016 को उज्जैन के सिंहस्थ कुम्भ मेले में मची भगदड़ में 10 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा श्रद्धालु घायल हुए।

इसके अलावा पिछले 200 सालों में जो भी कुम्भ हुए, उनमें भगदड़ से मौतें होती रहीं, संभवतया कई आंकड़े बदनामी के डर से दस्तावेजों में शामिल नहीं हो पाए। इसके साथ ही सांप्रदायिक हिंसा और आग लगने से भी कुम्भ मेलों में कई मौतें हुईं। हरिद्वार के कुम्भ मेलों में
हैजा बीमारी के संक्रमण से हजारों लोगों की मृत्यु का इतिहास रहा है।

2019 प्रयागराज कुंभ में किसी भी प्रकार की कोई अशुभ घटना नहीं घटी

इस वर्ष प्रयागराज में आयोजित अर्द्धकुंभ, जिसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भरपूर प्रयासों ने महाकुम्भ बना दिया है, में श्रद्धालुओं की सुविधा, सुरक्षा और स्वच्छता का बहुत अधिक ध्यान रखा गया है। भीड़ प्रबंधन के इतने व्यापक इंतजामों के कारण मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी के तीनों सबसे बड़े शाही स्नानों के संपन्न हो जाने पर भी करोड़ों श्रद्धालुओं में से एक भी हताहत नहीं हुआ। मौनी अमावस्या पर आंकड़ों के अनुसार, 5 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम पर डुबकी लगाई परन्तु भगदड़ या धक्कामुक्की और किसी जान-माल की हानि का एक भी मामला सामने नहीं आया जो कि हर लिहाज से चौंकाने वाला आँकड़ा है।

कुम्भ मेले में शाही स्नान के दौरान सभी पुलों पर लोगों को नदी में गिरने से बचाने के लिए रेलिंग के आलावा अतिरिक्त सुरक्षा के लिए CRPF द्वारा मानवनिर्मित चेन बनाई गई, जिसके बीच से ही श्रद्धालु पुल पार कर सकते हैं। इसके साथ ही 2019 का यह प्रयाग कुम्भ मेला 32 हजार हेक्टेयर भूमि में फैला हुआ है। जबकि 2013 का मेला क्षेत्र केवल 1900 हेक्टेयर भूमि पर ही था, जो 2019 कुम्भ मेले के मुकाबले लगभग 17 गुना कम था। इतने अधिक फैलाव के कारण भीड़ बहुत व्यापक क्षेत्र में विभाजित हो गई है, जिससे भगदड़ जैसी किसी भी अनहोनी की आशंका शून्य रही।

प्रयागराज मेले के आधिकारिक कार्यालय के अनुसार मेले में उप्र. पुलिस के 30,000 से भी ज्यादा पुलिसबल (जो 2013 के मुकाबले लगभग 2.5 गुना हैं), पी.ए.सी. की 20 कंपनियाँ,
NDRF की 10 कंपनियाँ, CAPF की 54 कंपनियाँ, और SDRF की 1 कंपनी, NSG की एक स्पेशल टीम, 6,000 होमगार्ड, डॉग स्क्वाड की 15 टीम और कम से कम 20 कंपनियाँ संयुक्त रूप से मेले की सुरक्षा व्यवस्था में तैनात की गई थीं। मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए घुड़सवार पुलिस भी लगाई गई। मेला क्षेत्र में 1,135 CCTV कैमरे लगाए गए, जो चप्पे चप्पे पर नजर बनाए रखने में सहायक हुए। इसके साथ ही सरकार द्वारा एम्बुलेंस, इमरजेंसी, यातायात, साइन बोर्ड की व्यापक व्यवस्था की गई थी। (स्रोत- फर्स्टपोस्ट)

कुम्भ अपर मेला अधिकारी दिलीप कुमार त्रिगुणायत के अनुसार, “प्रयाग कुम्भ में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उच्चस्तरीय चक्रव्यूह रचना की गई, जिसके अंतर्गत मैदान में बल्लियों से ज़िग-ज़ैग रास्ता बनाया गया ताकि भीड़ को एक बार चक्रव्यूह में घुसने के बाद, वापस निकलने
में कम से कम एक से डेढ़ घंटे का समय लगे, और इतना समय भीड़ नियन्त्रण के लिए पर्याप्त
होगा। इस चक्रव्यूह का मकसद संगम तट पर ज्यादा भीड़ आने पर पीछे की भीड़ को रोकना है ताकि अव्यवस्था के कारण भगदड़ की स्थिति न पनपने पाए।” हालाँकि, उन्होंने बताया कि तीनों शाही स्नान पर्व बिना इस चक्रव्यूह का उपयोग किए ही सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गए क्योंकि अन्य सुरक्षा व्यवस्था ही इतनी अच्छी रही कि उच्चस्तरीय चक्रव्यूह व्यवस्था का उपयोग ही नहीं करना पड़ा।

इस तरह 200 सालों के ज्ञात इतिहास में प्रयागराज का यह अर्द्धकुंभ, जिसे योगी सरकार ने
महाकुंभ
बना दिया, वह बिना किसी जानमाल की हानि, भगदड़ या श्रद्दालुओं के डूबने जैसी अनहोनी के सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ है। सभी श्रद्धालु प्रयागराज कुम्भ की विश्वस्तरीय व्यवस्था के लिए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ की दिल खोलकर तारीफ़ कर रहे हैं। कुम्भ अब आधिकारिक रूप से संपन्न हो चुका है। सबसे बड़े शाही स्नान संपन्न हो चुके हैं, मेलाक्षेत्र से भीड़ अब कम होने लगी है, वसंत पंचमी के बाद वैष्णव साधु जाने लगे थे। शिवरात्रि तक प्रमुखतया सिर्फ शैव संन्यासी ही प्रयाग में मौजूद थे।

यह 2019 का कुम्भ हर हाल में राज्य और केंद्र सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा सकता है। इतने विशाल जनसैलाब का सफलतापूर्वक प्रबंधन करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती मानी जाती थी। लेकिन मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने यह साबित कर दिखाया कि हिन्दुओं की आस्था को यदि प्राथमिकता और समय दिया जाए तो उन्हें आसानी से ही किसी आपदा में बदलने से रोका जा सकता है।

बाबर जो कर गया, उसे बदल नहीं सकते: सुप्रीम कोर्ट

अयोध्या मामले में मध्यस्थता के मसले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के पास कई तरह की दलीलें आईं। जहाँ मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार दिखा, वहीं हिन्दुओं की तरफ के वकीलों ने इस पर उत्साह नहीं दिखाया। हिन्दू महासभा और रामलला विराजमान की तरफ से मध्यस्थता को लेकर प्रतिक्रियाएँ आईं कि हाई कोर्ट ने भी ऐसी कोशिश की थी लेकिन उसका परिणाम सकारात्मक नहीं रहा।

इस जिरह के दौरान कई सवाल उठाए गए जिनमें मध्यस्थता कैसे हो, क्या उसके परिणाम को दोनों समाज के लोग मानेंगे, करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़े विषय पर कोर्ट के फैसले की जगह मध्यस्थता कितनी सही है, आदि शामिल थे।

सुनवाई की शुरुआत में ही हिन्दू महासभा ने कहा कि जनता इस बात को स्वीकार नहीं करेगी कि इस मुद्दे पर बातचीत द्वारा मसला सुलझाया जा सके। इस पर जस्टिस बोबड़े ने हिंदू महासभा से पूछा, “आप कैसे कह रहे हैं की समझौता असफल रहेगा?”

बातचीत और समझौते की राह पर जाने की बात कहते हुए कोर्ट ने कहा कि ये विषय सिर्फ ज़मीन का नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है, इस पर मिल बैठकर बात करने से अगर रास्ता निकल आए तो वही बेहतर होगा।

मुस्लिम पक्षकार की ओर ओर से राजीव धवन ने पक्ष रखते हुए कहा कि यह कोर्ट के ऊपर है कि मध्यस्थ कौन हो? लेकिन मध्यस्थता गोपनीय तरीके से हो। इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि यह गोपनीय ही होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि पक्षकारों द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन नहीं भी होना चाहिए। मीडिया में इस पर टिप्पणियाँ नहीं होनी चाहिए। और न ही प्रक्रिया की रिपोर्टिंग हो। अगर इसकी रिपोर्टिंग हो तो इसे कोर्ट की अवमानना घोषित किया जाए।

हिन्दू पक्ष ने कहा कि मान लीजिये की सभी पक्षों में समझौता हो गया तो भी समाज इसे कैसे स्वीकार करेगा? इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अगर समझौता कोर्ट को दिया जाता है और कोर्ट उस पर सहमति देता है और आदेश पास करता है। तब वो सभी को मानना ही होगा।

BJP नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुनवाई के दौरान कहा कि मध्यस्थता की कुछ सीमाएँ होती हैं और उससे आगे नहीं जाया जा सकता है।

क्या अब कोर्ट तय करेगी सरकार कब युद्ध की घोषणा करे, कब शांति की : अटॉर्नी जनरल

अटॉर्नी जनरल ने सर्वोच्च न्यायालय में बताया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अदालत में पेश राफेल दस्तावेजों को रक्षा मंत्रालय से चुराया गया था। राफेल सौदे पर समीक्षा याचिकाओं पर सुनवाई आज (मार्च 6, 2019) दोपहर के भोजन के बाद फिर से शुरू हुई।

शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने संजय सिंह द्वारा सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ दिए गए कुछ बयानों पर आपत्ति जताई और उन्हें सुनने से इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि पीठ इसे बहुत गंभीरता से ले रही है और उनके खिलाफ गंभीर कार्रवाई करेगी। अदालत ने अधिवक्ता संजय हेगड़े से कहा कि वह अपने मुवक्किल संजय सिंह को सूचित करें। AAP नेता उन व्यक्तियों में से एक है जिन्होंने राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर की है।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अदालत को यह बताते हुए कि समाचार पत्रों द्वारा प्रकाशित और याचिकाकर्ताओं द्वारा उपयोग किए गए राफेल दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चुराए गए थे और सरकार उसी के लिए कार्रवाई कर रही है। याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को धमकाने और कोर्ट में सच्चाई लाने से उन्हें रोकने का प्रयास है। उन्होंने यह भी कहा कि यह अदालत की अवमानना ​​है।

अटार्नी जनरल ने आरटीआई अधिनियम के तहत बताया कि रक्षा दस्तावेजों को इस अधिनियम के तहत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है। उन्होंने उल्लेख किया कि हिंदू द्वारा प्रकाशित दस्तावेज “सीक्रेट” के रूप में चिह्नित हैं। उन्हें इस तरह सार्वजनिक डोमेन में पेश नहीं किया जा सकता। केके वेणुगोपाल ने कहा कि रक्षा दस्तावेज प्रकाशित होने के बाद भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को भारी नुकसान हुआ है।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने यह भी कहा, “क्या सुप्रीम कोर्ट युद्ध में जाने या शांति के लिए बातचीत करने के निर्देश देगा। कुछ मुद्दे न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हैं। क्या हमें युद्ध की घोषणा करते समय या जब हम शांति की घोषणा करते हैं, क्या हमें हर बार अदालत की अनुमति लेनी होगी? क्या इसके लिए अदालत में आना होगा?”

उन्होंने तब देश के लिए राफेल जेट की आवश्यकता का उल्लेख किया, लेकिन पीठ ने उन्हें समीक्षा याचिका पर टिकने के लिए कहा।

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने एजी से असहमति जताते हुए कहा कि चोरी के सबूतों को भी अदालत द्वारा साक्ष्य अधिनियम के अनुसार देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर कुछ भ्रष्टाचार हुआ है, तो सरकार आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत आश्रय नहीं ले सकती है। लेकिन अटॉर्नी जनरल ने असहमति जताई और कहा कि दस्तावेजों का स्रोत महत्वपूर्ण है। उन्होंने पूछा कि आख़िर याचिकाकर्ताओं को रक्षा मंत्रालय के क्लासिफाइड दस्तावेज कैसे मिले।

CJI रंजन गोगोई ने एजी से पूछा, अगर किसी आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने में कठिनाई हो रही है, एक दस्तावेज चुरा रहा है और अदालत में पेश किया गया है जो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वह निर्दोष है, तो न्यायाधीश को दस्तावेज को केवल इसलिए अनदेखा करना चाहिए क्योंकि यह चोरी का है। इसके लिए, वेणुगोपाल को दस्तावेज़ के स्रोत का खुलासा करना होगा।

CJI रंजन गोगोई ने एजी से कहा कि वे इस पर तथ्य प्रस्तुत करें कि सबूत का स्रोत महत्वपूर्ण है। इस पर, एजी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2004 के एक निर्णय का साक्ष्य प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया था कि अवैध रूप से प्राप्त सबूतों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति कौल ने यह कहते हुए भी एजी से असहमति जताई कि चूँकि दस्तावेज अदालत में आए हैं, इसलिए वह यह नहीं कह सकते कि अदालत को उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि भले ही एजी सही है, कुछ मुद्दों को सुनने के लायक है यदि वे अदालत को कन्विंस कर पाते हैं तो।

अटॉर्नी जनरल ने दोहराया कि राफेल जेट की खरीद राष्ट्र के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे का एक राजनीतिक कोण भी है, और सीएजी ने संसद में इस सौदे पर अपनी रिपोर्ट पहले ही सौंप दी है, और संसद इस मुद्दे पर गौर करेगी। एजी ने अदालत से यह भी अनुरोध किया कि वे सीमित दायरे में रक्षा मामलों का उपयोग करें, क्योंकि अदालत द्वारा कहा गया कुछ भी विपक्ष द्वारा सरकार को लक्षित करने के लिए उपयोग किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष इस मामले का उपयोग करके सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है।

प्रशांत भूषण ने एजी के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि 2जी और कोलगेट मामलों में भी अदालत ने ऐसे दस्तावेजों पर भरोसा किया था। उन्होंने कहा कि उन मामलों के दौरान भी सरकार ने इसी तरह की दलीलें दी थीं, लेकिन जिन्हें अदालत ने खारिज कर दिया था।

प्रशांत भूषण ने यह भी कहा कि दस्तावेजों को द हिंदू और कारवाँ पत्रिका द्वारा प्रकाशित किया गया है, इसलिए यह कहना गलत है कि उन्होंने अपने दस्तावेजों के स्रोत का खुलासा नहीं किया है।

CJI रंजन गोगोई ने कहा कि अगर कोर्ट एजी के तर्क को स्वीकार करता है, तो वह खारिज कर देगा, अन्यथा वह आगे बढ़ जाएगा। इस बारे में प्रशांत भूषण ने कहा कि भले ही दस्तावेजों को स्वीकार नहीं किया जाता है, लेकिन इससे मामले में कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए अधिकांश दस्तावेजों में सूत्रों का उल्लेख किया गया है।

बता दें कि बीते साल 13 दिसंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने राफेल विमान सौदे में फैसला सुनाया था और कहा था कि इस सौदे में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं है। हालाँकि, तब कुछ लोगों ने सवाल उठाया था कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने सही कागजात पेश नहीं किए इसलिए फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।

फैसला आने के फौरन बाद केंद्र सरकार ने संशोधन याचिका दाखिल की थी।  इसके बाद प्रशांत भूषण ने याचिका दाखिल कर माँग की कि सरकार के दिए नोट में अदालत को गुमराह करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि राफेल मामले को लेकर दिए अपने फैसले पर खुली अदालत में फिर से विचार होगा।

आपको बता दें कि वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, बीजेपी के बागी नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और वकील एम एल शर्मा ने पुनर्विचार याचिका में अदालत से राफेल आदेश की समीक्षा करने के लिए अपील की है।

अपील में कहा गया कि सरकार ने राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए निर्णय लेने की सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। मोदी सरकार ने 3 P यानी Price, Procedure, Partner के चुनाव में गफलत बनाए रखी और अनुचित लाभ लिया है।

वहीं, केंद्र सरकार की अपील में कहा गया है कि कोर्ट अपने फैसले में उस टिप्पणी में सुधार करे जिसमें CAG रिपोर्ट संसद के सामने रखने का ज़िक्र है। केंद्र का कहना है कि कोर्ट ने सरकारी नोट की गलत व्याख्या की है।

फ़िलहाल, मामले की सुनवाई 14 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी गई है।

R-73 मिसाइल पाकिस्तानी F-16 पर लॉक्ड है: विंग कमांडर अभिनंदन का आख़िरी रेडियो मैसेज

भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश कर रहे पाकिस्तान के F-16 प्लेन गिराने से पहले विंग कमांडर अभिनन्दन के आखिरी रेडियो मैसेज के आधार पर IAF ने आखिरकार घोषणा कर दी है कि पाकिस्तान के F-16 विमान को अभिनन्दन ने मार गिराया था। मिग-21 में बैठे अभिनन्दन का आखिरी सन्देश था, “R-73 locked।”

IAF ने अब आधिकारिक रूप से पाक F-16 को ध्वस्त करने का श्रेय विंग कमांडर अभिनन्दन के नाम कर दिया है। डॉग फाइट के दौरान 8 लड़ाकू विमानों के समूह द्वारा दागे R-73 मिसाइल एकमात्र हथियार थे जो इनबाउंड पाक वायु सेना के जेट F-16 के ऊपर फायर किए गए थे। अभिनंदन ने अपने अंतिम ने रेडियो सन्देश में कहा ‘R-73 लॉक्ड’, इसके बाद उनसे संपर्क टूट गया था।

पाकिस्तान कुछ भी कहे लेकिन भारतीय सेना ने सबूत जारी कर बताया है कि IAF की गई एयर स्ट्राइक में आतंकवादियों के ठिकानों को सफलतापूर्वक तबाह कर दिया गया था। साथ ही, भारत ने F-16 को नष्ट करने के बाद भी सबूत दिए थे।

बता दें कि IAF विंग कमांडर अभिनन्दन को पाकिस्तान द्वारा पकड़ लिया गया था, लेकिन पाकिस्तान पर बढ़ते राजनयिक दबाव के कारण केवल तीन दिनों में ही रिहा करना पड़ा था।

शाह का चक्रव्यूह: ‘एयर स्ट्राइक’ का सबूत माँग-माँग कर BJP के पिच पर खेल रहा विपक्ष

भारत का समूचा विपक्ष वैसी ही वही बात कर रहा है, जैसा भाजपा चाहती है। फेक नैरेटिव बना-बना कर भाजपा और मोदी को घेरने वाले विपक्ष के पास मुद्दों के ऐसा अभाव हो गया है, जिस से उन्हें वही सूझता है जो भाजपा उन्हें दिखाती है। कुल मिला कर यह कि भारतीय जनता पार्टी मुद्दे सेट कर रही है कि किस बात पर उसे विरोध झेलना है। आज तक कुछ यूँ होता आ रहा था कि विपक्षी पार्टियाँ मुद्दे सेट करती थी और भाजपा उनका बचाव करते-करते परेशान रहती थी। लेकिन अमित शाह ने विपक्षी खेल को ताड़ कर उसे एक ऐसा मोड़ दिया है कि विपक्षी नेता उस जाल में उलझते जा रहे हैं। कुल मिला कर कह सकते हैं कि शाह ने एक ऐसा चक्रव्यूह रच दिया है, जिसके हर द्वार पर एक से बढ़ कर एक जाल हैं।

‘एयर स्ट्राइक’ के सबूत

पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान को उचित जवाब देकर राजग सरकार ने यह बता दिया कि भारत अब बदल चुका है और वह आतंकवाद पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई कर सकता है। ‘एयर स्ट्राइक’ तो हो गया लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हुई राजनीति से सतर्क भाजपा ने इस बार विपक्षियों की कुटिल चाल को पहले ही ताड़ लिया। अमित शाह को पता था कि भारत में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों का भी वोट बटोरने के लिए राजनीतिक इस्तेमाल करें। उन्हें यह भी अच्छी तरह पता है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर बढ़-चढ़ कर बोलने वाले नेताओं में से 90% को इसकी समझ ही नहीं होती। उदाहरण के लिए मायावती के ताज़ा बयान को ले लीजिए जिसमे उन्होंने पूछा था कि साढ़े चार वर्षों में एक भी राफेल विमान क्यों नहीं आया?

शाह जानते हैं कि जनता अब जागरूक हो चुकी है और सोशल मीडिया के युग में ऐसे बेहूदा बयान देने वाले नेताओं का ख़ुद इलाज हो जाता है। हुआ भी ऐसा ही। लोगों ने बहन जी को अच्छी तरह समझा दिया कि राफेल कोई हाथी की मूर्ति नहीं है जो एक ही दिन में बन कर तैयार हो जाए। भाजपा को अब ऐसे नेताओं का जवाब देने की ज़रूरत नहीं पड़ती। भाजपा को परेशानी तभी होती है जब ऐसे नेताओं के बयानों के साथ मीडिया का एक गिरोह विशेष खड़ा हो जाता है। इसी तरह अखिलेश यादव, फ़ारुख़ अब्दुल्ला सहित कई नेताओं ने एयर स्ट्राइक के सबूत माँगे। जैसे-जैसे उनके बयान आते गए, जनता की नज़र में वे उतने ही गिरते चले गए।

दरअसल, सबूत माँग-माँग कर इन नेताओं का लोकल मुद्दों से ध्यान ही भटक गया है। अखिलेश अब उत्तर प्रदेश के गाँव-कस्बों की बातें नहीं करते, वे अब एयर स्ट्राइक से लेकर राफेल तक की बात करते हैं। ममता बनर्जी बंगाल के बिना रह नहीं सकती, इसीलिए उन्होंने बंगाल को ही अखाड़ा बना डाला और वहाँ अपनी प्रधानमंत्री की मज़बूत दावेदारी पेश कर रैलियाँ कर रही हैं। अरविन्द केजरीवाल ने तो खैर कभी दिल्ली की बात की ही नहीं। तेजस्वी यादव अब सामान्य वर्ग के ग़रीबों को मिले आरक्षण के ख़िलाफ़ बोल कर अपना किला मज़बूत करना चाहते हैं। देवेगौड़ा को भी अब सीमा पर तनाव की चिंता सताती है। नायडू को मोदी के पिच पर खेलने दिल्ली आना पड़ता है।

लोकल मुद्दों से दूर होते विपक्षी नेता

इन सबसे क्या पता चलता है? अगर राजनीतिक विश्लेषक इन सभी घटनाओं और विपक्षी नेताओं के बयानों और प्रदर्शनों पर ध्यान दें तो वे पाएँगे कि अब सभी के सभी भाजपा के पिच पर खेल रहे हैं। इस से भाजपा को पहले तैयारी करने का मौक़ा मिल जाता है कि उसके नेताओं व प्रवक्ताओं को किस मुद्दा विशेष के लिए तैयार रहना है। किसानों के नाम पर राजनीति कर आगे बढ़ने वाला नेता पाकिस्तान की बात करे और दक्षिण भारत का कोई नेता यूपी में हुई घटना के लिए मोदी को घेरे तो पता चल जाता है कि भाजपा ने उन्हें उनके लोकल मुद्दों से काफ़ी दूर कर दिया है।

भाजपा को पता है कि मोदी की आज जो इमेज है, सबकुछ उसी पर टिका हुआ है। मोदी पर चौतरफा हमला कर के आज तक नेताओं को निराशा ही हाथ लगी है। सोनिया गाँधी के एक आपत्तिजनक टिप्पणी को मोदी ने गुजराती अस्मिता से जोड़ कर वहाँ का चुनाव जीत लिया था। विपक्षी नेताओं द्वारा मोदी को चौतरफा आक्रमण का केंद्र बना दिया गया है। भाजपा के लिए यह स्थिति पहले मुश्किल थी लेकिन अब यह ठीक प्रतीत हो रहा है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि भाजपा को पता चल गया है कि ऐसे बेहूदा बयानों से मोदी का कद बढ़ता है और उनका बाल भी बाँका नहीं होता। इसके उलट भाजपा के ज़मीनी व लोकल नेतृत्व को बिना कोई आक्रमण झेले ग्राउंड जीरो पर काम करने का मौक़ा मिल रहा है।

ग्राउंड जीरो पर कार्य कर रही भाजपा

भाजपा ने बिना हो-हल्ला के पीयूष गोयल को तमिलनाडु का प्रभारी बनाया और वे अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन फाइनल कर के आ गए। इसके उलट कॉन्ग्रेस को यूपी के महागठबंधन में साइड कर दिया गया और कॉन्ग्रेस ने दिल्ली में केजरीवाल को तन्हा कर दिया। चुनाव पूर्व गठबंधन बदलने-बिगड़ने के इस दौर में भाजपा ने बड़ी चालाकी से विपक्षी नेताओं को राष्ट्रीय मुद्दे पर बयान दिलवा दिलवा कर उन्हें जनता के आक्रोश के आवेश में फेंक दिया। जिस भी नेता का बेहूदा और बेतुका बयान आता है, सोशल मीडिया उसे लताड़ने में देर नहीं करता। वहीं अमित शाह राज्यों में घूम-घूम कर भाजपा का संगठन मज़बूत कर रहे हैं। पीएम मोदी रैलियाँ व बूथ कार्यक्रम कर जनता से सीधे जुड़ रहे हैं।

समय के साथ भाजपा की इस बदली रणनीति में विपक्षी नेता इतने मशगूल हो चुके हैं कि सबमे पीएम बनने की कहत दौड़ गई है। अपने-आप को सुपीरियर मान कर सभी अप्रत्यक्ष रूप से पीएम पद पर दावा ठोक रहे हैं। ये विपक्षी नेतागण जितना किसान,माध्यम वर्ग और ग़रीबों से जुड़े मुद्दों से दूर होकर राफेल, पाकिस्तान और 56 इंच की बातें करेंगे- भाजपा को उतना ही फ़ायदा मिलेगा। शाह का चक्रव्यूह अभी भी रचना के क्रम में है और फाइनल रणनीति तो चुनाव नज़दीक आने तक पता चल ही जाएगी।

नेता सबूत माँगते रहेंगे, भाजपा ज़मीन पर पैठ बनाती रहेगी। मोदी-शाह की जोड़ी ने सरकार और पार्टी को अलग-अलग फ्रंट पर खिला कर विपक्षियों को सम्मोहन के उस जाल में जकड़ लिया है, जहाँ उनकी कुटिलता का जनता यूँ हिसाब कर देती है। अभी देखते जाइए, कल फिर कोई नेता सबूत माँगेगा और उसके 2-3 दिन बाद उसीके इलाक़े में मोदी की रैली होगी। यानी भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू।