Friday, October 4, 2024
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मुर्तजा अली: नेत्रहीन लेकिन सोच हम सबसे आगे की… पुलवामा के वीरों के नाम करेंगे ₹110 करोड़

पुलवामा हमले में बलिदान हुए सीआरपीएफ जवानों के लिए देश के कोने-कोने से लोग मदद भेजने में जुटे हुए हैं। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कोटा के निवासी मुर्तजा अली ने भी वीरगति को प्राप्त हुए सुरक्षाबलों के नाम ₹110 करोड़ देने की इच्छा जताई है।

एक तरफ जहाँ कुछ राजनेता अपनी राजनीति में डूबकर वायुसेना हमले का सबूत माँगने में व्यस्त हैं वहीं एक आम शख्स ने ऐसा कदम उठाकर पूरे देश का दिल जीत लिया। इस 110 करोड़ रुपए की राहत राशि को मुर्तजा ने प्रधानमंत्री राहत कोष में भेजने का फैसला किया है। अपनी जीवन भर की पूँजी को बलिदान हुए जवानों के परिवार वालों के नाम करने वाला यह मुर्तजा अली नामक दिलेर शख्स आखिर है कौन?

मुर्तजा अली मूलत: कोटा के निवासी हैं। लेकिन इस समय वह मुंबई में बतौर वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। बलिदान हुए जवानों के परिवार की मदद के लिए मुर्तजा ने पीएम कार्यलय में ईमेल करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय माँगा है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी उन्हें 2-3 दिन में पीएम के साथ मिलने का आश्वासन दिया है।

खबरों के अनुसार मुर्तजा पीएम मोदी से उनके कार्यालय में मिलकर उन्हें ₹110 करोड़ का चेक देंगे। इसके लिए उन्होंने पहले से हर कागजी कार्यवाई भी कर रखी है। आपको जानकार हैरानी होगी कि मुर्तजा जन्म से ही नेत्रहीन हैं। बावजूद इसके वो एक जाने-माने वैज्ञानिक हैं। कुछ समय पहले वह फ्यूल बर्न रेडिएशन तकनीक की मदद से जीपीएस, कैमरा या किसी भी अन्य उपकरण के बिना किसी वाहन को ट्रेस करने का आविष्कार कर चुके हैं।

मुर्तजा ने कोटा के कॉमर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। साथ ही उनका ऑटोमोबाइल का पुराना बिजनेस भी है। फिलहाल अपने इस कदम से लोगों के दिलों में घर कर जाने वाले यह वैज्ञानिक PMO के बुलावे का इंतजार कर रहे हैं ताकि बलिदान हुए जवानों के परिवारों तक मदद पहुँचाई जा सके।

UPA-2 ने क्रिश्चियन मिशेल के दबाव में टाला था राफेल डील: रिपोर्ट्स

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले मामले के आरोपित क्रिश्चियन मिशेल का नाम अब राफेल डील में भी सामने आ रहा है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को शक है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 के दौरान राफेल लड़ाकू विमान के सौदे में हुई देरी के लिए वैश्विक डिफेंस डील का चर्चित बिचौलिया क्रिस्चन मिशेल का हाथ हो सकता है। इस संबंध में ईडी अब जाँच कर सकती है। यह जाँच इसलिए भी की जाएगी क्योंकि अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर डील की कथित सफलता के बाद क्रिस्चन मिशेल की पहुँच काफी बढ़ गई थी।

प्रवर्तन निदेशालय के एक सूत्र (उच्च पदस्थ) ने बताया कि 2012 में राफेल डील को लेकर तब की केंद्र सरकार बहुत उत्‍सुक नहीं थी। और यह तब हुआ था जबकि दसॉ (राफेल बनाने वाली कंपनी) को सबसे कम बोली लगाने वाला (L1) घोषित किया जा चुका था। इस कारण से केंद्र सरकार की बातचीत कंपनी के साथ बहुत आगे बढ़ गई थी। लेकिन अचानक से कुछ मुद्दों पर मतभेद काफी बढ़ गया था। इसके बाद मनमोहन सरकार ने इस डील को ठंडे बस्‍ते में डाल दिया था। प्रवर्तन निदेशालय की नज़र राफेल डील में हुई देरी को लेकर क्रिस्चन मिशेल पर इसलिए भी टिक गई है क्योंकि उसने राफेल के प्रतिस्‍पर्द्धी यूरोफाइटर में अपनी दिलचस्‍पी बढ़ा ली थी।

‘मिशेल को डिफेंस पर कैबिनेट मीटिंग और गुप्त फ़ाइलों का पता’

10 जनवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “अगस्ता वेस्टलैंड के मामले में आरोपित बिचौलिया मिशेल को रक्षा मामले में कैबिनेट की मीटिंग और रक्षा से जुड़ी सरकार की गुप्त फ़ाइलों के बारे में कैसे पता चल जाता था?”

प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा था कि देश की जनता कॉन्ग्रेस से यह जानना चाहती है कि मिशेल ने देश की सुरक्षा से जुड़े इन मामलों में कैसे हस्तक्षेप किया। वैश्विक ताकतें अक्सर यह चाहती हैं कि अपने देश की सैन्य ताकत मजबूत नहीं हो। ऐसे में रक्षा सौदे में एक विदेशी बिचौलिए की भूमिका निश्चित रूप से देश के लिए खतरनाक है।

मिशेल की पहुँच CCS, PMO ही नहीं बल्कि जाँच एजेंसियों तक भी!

आपको बता दें कि यह आश्चर्यजनक रहस्योद्घाटन मिशेल के 2009 के डिस्पैच के आधार पर किया गया है, जिसे उसने अपने साथी बिचौलिए, गुइडो राल्फ हाश्के को लिखा था। 6 दिसंबर 2009 के इस डिस्पैच में, हाश्के को अगस्ता वेस्टलैंड चॉपर घोटाले के एक सह-अभियुक्त वकील गौतम खेतान से दूरी बनाने की बात लिखी गई है।

इसका कारण बताते हुए क्रिश्चियन मिशेल ने हाश्के को लिखा था कि खेतान ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के भीतर अपने ‘दोस्त’ के साथ मिलकर रियल एस्टेट फर्म एम्मार एमजीएफ़ के ख़िलाफ़ छापा मारने की कोशिश की थी। उस समय कंपनी अपना पहला इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) शुरू करने वाली थी। लेकिन एमजीएफ़ के लोगों को इसके बारे में पता चल गया था और उन्होंने हाश्के के लोगों को ‘गेट लॉस्ट’ कहा था।

त्रयम्बक, नटराज, आदियोगी… शिव के कई नाम, विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला जिन्हें करती है सलाम!

शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ऐसे शायद शिव आपको भी पहेली लगें इसलिए संसार ने अपनी सुविधा के लिए शिव को कई अलग नाम और गुणधर्म दिए। सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग व्याख्याएँ पर मूल रूप में सभी का मूल एक कल्याण। शिव अर्थात एक महायोगी, गृहस्थ, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और भी कई अन्य अलग-अलग नाम और रूप। क्या कभी आपने सोचा कि क्यों इतने सारे विविध रूप धारण किए थे भगवान शिव ने?

त्रयंबक

शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है क्योंकि उनकी एक तीसरी आँख है। तीसरी आँख का यह मतलब नहीं है कि माथे में कोई दरार है, जहाँ एक और आँख उग आई है। इसका मतलब बस यह है कि उनका बोध या अनुभव अपनी चरम संभावना पर पहुँच गया है। तीसरी आँख भौतिक नहीं अंतर्दृष्टि की आँख है।

त्रयम्बक शिव

दोनों भौतिक आँखे सिर्फ इन्द्रियाँ हैं। वे आपके मन को हर तरह की फालतू बातों से भरती हैं क्योंकि हम जो देखते हैं, वह सत्य नहीं है। सद्गुरु कहते हैं कि आप किसी इंसान को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। इसलिए एक और आँख को खोलना जरूरी है, जो और गहराई में देख सके।

आपने भी अनुभव किया होगा कि कितना भी सोचने से या दार्शनिक चिंतन से कभी आपके मन को स्पष्टता नहीं मिल पाती है। बहुत सोचकर, कुछ तथाकथित प्रमाण इकठ्ठा कर हम कुछ मान लेते हैं। जिसके बल पर जानने का दावा करते हैं पर सच्चाई यही है कि कोई भी आपकी तार्किक स्पष्टता को बिगाड़ सकता है, मुश्किल हालात आपकी सोच और हर मान्यता को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर सकते हैं। जब आपकी भीतरी दृष्टि खुल जाती है, जब आपके पास एक आंतरिक दृष्टि होती है, तभी आपको पूर्ण स्पष्टता मिलती है। जिसे हम शिव कहते हैं, वह और कुछ नहीं, बस चरम बोध का साकार रूप है।

भोलेनाथ, भोले भंडारी

वैसे तो शिव को हमेशा से एक बहुत शक्तिशाली प्राणी के रूप में देखा जाता रहा है। साथ ही, यह भी समझा जाता रहा कि वह सांसारिक रूप से बहुत चतुर नहीं हैं। इसलिए, शिव के एक रूप को भोलेनाथ, भोले भंडारी भी कहा जाता है, क्योंकि वह किसी बच्चे की तरह हैं। ‘भोलेनाथ’ का मतलब है, मासूम या अज्ञानी।

शिव भोले भंडारी

आपने आम जीवन में भी देखा होगा कि सबसे बुद्धिमान लोग बहुत आसानी से मूर्ख बन जाते हैं, क्योंकि वे छोटी-मोटी चीजों में अपनी बुद्धि नहीं लगा सकते। बहुत कम बुद्धिमत्ता वाले चालाक और धूर्त लोग दुनिया में आसानी से किसी बुद्धिमान व्यक्ति को पछाड़ सकते हैं। यह धन-दौलत के अर्थ में या सामाजिक तौर पर मायने रख सकता है, मगर जीवन के संबंध में इस तरह की जीत का कोई महत्व नहीं है।

ध्यान रहे, बुद्धिमान से हमारा मतलब यहाँ स्मार्ट होने से नहीं है। इसका मतलब उस आयाम को स्वीकार करने से है, जो जीवन को पूर्ण रूप से घटित होने देता है, विकसित होने देता है। शिव भी ऐसे ही हैं। ऐसा नहीं है कि वह मूर्ख हैं, मगर वह हर छोटी-मोटी चीज में बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करते। जो ऐसा करते हैं उनको आपने अपने आस-पास भी जीवन या आसान काम को भी जटिल बनाते देखा होगा।

नटराज

नटराज अर्थात नृत्य के देवता, शिव के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है। शिव का लयात्मक रूप, क्रुद्ध हुए तो रूद्र अर्थात महाविनाशक।

नाभिकीय प्रयोगशाला (CERN) स्थित नटराज की प्रतिमा

आपको स्विटजरलैंड में स्थित नाभिकीय प्रयोगशाला (CERN) याद होगा। यह धरती पर भौतिकी की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है, जहाँ अणुओं की सारी तोड़-फोड़ हो रही है। वहाँ के प्रवेशद्वार के सामने नटराज की एक मूर्ति है। क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि मानव संस्कृति में इसके सिवाए ऐसा कुछ नहीं है, जो उनके अभी के काम से मिलता-जुलता हो, उसके करीब हो। लय में हैं तो सृजन, क्रुद्ध हुए, लय बिगड़ा तो रूद्र अर्थात महा विनाशक। परमाणु और अणुओं से ही सृष्टि का कण-कण निर्मित है और वही परमाणु जब मुक्त हो जाता है तो महाविनाशक परमाणु बम।

खैर, नटराज रूप सृष्टि के उल्लास और नृत्य यानी कंपन को दर्शाता है, जिसने शाश्वत स्थिरता और नि:शब्दता से खुद को उत्पन्न किया है। चिदंबरम मंदिर में स्थापित नटराज की मूर्ति बहुत प्रतीकात्मक है। क्योंकि जिसे आप चिदंबरम कहते हैं, वह पूर्ण स्थिरता है। इस मंदिर के रूप में यही बात प्रतिष्ठित की गई है कि सारी गति पूर्ण स्थिरता से ही पैदा हुई है। शास्त्रीय कलाएँ इंसान के अंदर यही पूर्ण स्थिरता लाती हैं। स्थिरता के बिना सच्ची कला नहीं आ सकती। स्थिरता, लय और गति का सुन्दर तालमेल देखना हो तो महसूस करिए भारतीय संगीत परम्परा में छिपे जीवन के अनहदनाद को।

अर्धनारीश्वर

आम तौर पर, शिव को परम या पूर्ण पुरुष माना जाता है। मगर अर्धनारीश्वर रूप में, उनका आधा हिस्सा एक पूर्ण विकसित स्त्री का होता है। कहा जाता है कि अगर आपके अंदर की पौरुष यानी पुरुष-गुण और स्त्रैण यानी स्त्री-गुण मिल जाएँ, तो आप परमानंद की स्थायी अवस्था में रहते हैं। अगर आप बाहरी तौर पर इसे करने की कोशिश करते हैं, तो वह टिकाऊ नहीं होता और उसके साथ आने वाली मुसीबतें कभी खत्म नहीं होतीं। पौरुष और स्त्रैण का मतलब पुरुष और स्त्री नहीं है। ये खास गुण हैं।

अर्धनारीश्वर शिव

मुख्य रूप से यह दो लोगों के मिलन की चाह नहीं है, यह जीवन के दो पहलुओं के मिलन की चाह है, जो बाहरी और भीतरी तौर पर एक होना चाहते हैं। अगर आप भीतरी तौर पर इसे हासिल कर लें, तो बाहरी तौर पर यह सौ फीसदी अपने आप हो जाएगा। वरना, बाहरी तौर पर यह एक भयानक विवशता बन जाएगी।

यह रूप इस बात को दर्शाता है कि अगर आप चरम रूप में विकसित होते हैं, तो आप आधे पुरुष और आधी स्त्री होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि आप नपुंसक होंगे, बल्कि एक पूर्ण विकसित पुरुष और एक पूर्ण विकसित स्त्री होंगे। तभी आप एक पूर्ण विकसित इंसान बन पाते हैं।

कालभैरव, महाकाल

कालभैरव शिव का एक मारक या जानलेवा रूप है, जब उन्होंने समय के विनाश की मुद्रा अपना ली थी। सभी भौतिक हकीकतें समय के भीतर मौजूद होती हैं। अगर समय नष्ट हो जाए तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा।

महाकाल कालभैरव शिव

शिव भैरवी-यातना को पैदा करने के लिए उपयुक्त वस्त्र धारण करके कालभैरव बन गए। ‘यातना’ का मतलब है, घोर पीड़ा। कहा जाता है, जब मृत्यु का पल आता है, तो बहुत से जीवनकाल पूरी तीव्रता में सामने आ जाते हैं, आपके साथ जो भी पीड़ा और कष्ट होना है, वह एक माइक्रोसेकेंड में ‍घटित हो जाएगा। उसके बाद, अतीत का कुछ भी आपके अंदर नहीं रह जाएगा।

सद्गुरु कहते हैं कि अपने ‘सॉफ्टवेयर’ को नष्ट करना कष्टदायक है। मगर मृत्यु के समय ऐसा होता है, इसलिए आपके पास कोई चारा नहीं होता। लेकिन वह इसे जितना हो सके, छोटा बना देते हैं। कष्ट को जल्दी से खत्म करना चाहते हैं। ऐसा तभी होगा, जब हम इसे अत्यंत तीव्र बना देंगे। अगर वह हल्का होगा, तो हमेशा चलता ही रहेगा।

आदियोगी

योगिक परंपरा में शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं की जाती है। वह आदियोगी, यानि पहले योगी और आदिगुरु, यानि पहले गुरु हैं, जिनसे योगिक विज्ञान जन्मा। दक्षिणायन की पहली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा होती है, जब आदियोगी ने इस विज्ञान को अपने पहले सात शिष्यों, सप्तऋषियों को सौंपना शुरू किया।

शांत चित्त आदियोगी

सद्गुरु कहते हैं कि यह किसी भी धर्म से पहले की बात है। इंसान ने मानवता को तोड़ने-फोड़ने के विभाजनकारी तरीके ढूँढे, उससे पहले मानव चेतना को बढ़ाने के लिए जरूरी और सबसे शक्तिशाली साधनों को पहचाना और प्रचारित किया गया। उसकी गूढ़ता आश्चर्यजनक है। उस समय लोग इतने प्रबुद्ध थे या नहीं, इस सवाल का कोई मतलब नहीं है क्योंकि यह किसी खास सभ्यता या विचार प्रक्रिया से नहीं जन्मा था। यह एक आंतरिक ज्ञान से उपजा था। उन्होंने बस अपने आप को उड़ेल दिया। आप आज भी एक चीज तक नहीं बदल सकते क्योंकि जो कुछ भी कहा जा सकता है, उन्होंने वह सब बहुत ही सुंदर और समझदारी भरे रूपों में कहा। आप बस उसे समझने की कोशिश में अपना पूरा जीवन बिता सकते हैं।

आज महाशिवरात्रि के अवसर पर, शिव के कई नामों और उसके पीछे के रहस्यों से परिचय के साथ-साथ, शिव कृपा को साक्षात अनुभव करने के लिए, आज की रात आपके लिए सिर्फ घोर निद्रा की रात बनकर न रह जाए बल्कि इसे अपने लिए तीव्र जीवंतता और जागरूकता की रात बना दें। आज चाहें तो आप महाशिवरात्रि के इस अद्भुत उपहार का लाभ उठा सकते हैं, जो प्रकृति स्वयं इस दिन मानवता को प्रदान करती है।

शिव एक अघोरी हैं, भयंकरता से परे… सबसे सुंदर, सबसे भद्दे और गृहस्थ भी!

अध्यात्म और अनुभव की दुनिया में तर्क नहीं होते, अगर कोई भी सिर्फ़ तथ्य और तर्क के जाल में उलझा हुआ है, तो यह तर्क उसे जीवन का जादू नहीं देखने देगा। जीवन का जादू आख़िर है क्या? अगर आपने ध्यान दिया तो आपको हर जगह जादू दिखेगा; एक बीज का पौधा होना; एक फूल का फल हो जाना और दो कोशिकाओं के मिलने से नए जीवन की शुरुआत- यह सब अद्भुत जादू ही तो है।

भारत केवल भूगोल का हिस्सा ही नहीं, यह एक जीवंत स्पंदन है। यह उन लोगों की धरती है, जो तर्क के जटिलतम रूप को समझने और समझाने के बावजूद कभी उसमें उलझे नहीं। वे तर्क को उस बिंदु तक ले गए जो अस्तित्व के रहस्यवादी और जादुई आयामों तक जाने की राह बन गया।

आदियोगी शिव इन दो विपरीत दिखने वाले आयामों के उच्चतम प्रतिनिधि हैं। वे इन दोनों आयामों में बिना किसी परेशानी के रहते हैं। संकीर्ण तर्कों में बंधे लोग इसे नहीं जान पाते। बेशक, तर्क हमें खड़े होने का आधार देता है। यह हमारा चुनाव होगा कि तर्क को सराहें, उससे चकित हों या इसे अस्तित्व से परे जाने के लिए पंखों की तरह इस्तेमाल करें। हम सब तर्कों के पंखों पर उड़ सकते हैं पर यह याद रखिए कि हर किसी को वापस अग्नि के पास आना ही होता है। चाहे वह श्मशान की अग्नि हो या फिर जीती-जागती चेतना की अग्नि।

शिव अर्थात एक महायोगी, गृहस्थ, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और भी कई अन्य अलग-अलग नाम और रूप। क्या कभी आपने सोचा कि क्यों इतने सारे विविध रूप धारण किए थे भगवान शिव ने?

शिव पुराण में भयावह और सुंदर दोनों हैं शिव

आमतौर पर पूरी दुनिया में लोग जिसे भी दैवीय या दिव्य मानते हैं, उसका वर्णन हमेशा अच्छे रूप में ही करते हैं। लेकिन अगर आप शिव पुराण को पूरा पढ़ें तो आपको उसमें कहीं भी शिव का उल्लेख अच्छे या बुरे के तौर पर नहीं मिलेगा। उनका जिक्र सुंदरमूर्ति के तौर पर हुआ है, जिसका मतलब ‘सबसे सुंदर’ है। लेकिन इसी के साथ शिव से ज्यादा भयावह भी कोई और नहीं हो सकता।

जो सबसे ख़राब चित्रण संभव हो, वह भी उनके लिए मिलता है। शिव के बारे में यहाँ तक कहा जाता है कि वह अपने शरीर पर मानव मल मलकर घूमते हैं। उन्होंने किसी भी सीमा तक जाकर हर वो काम किया, जिसके बारे में कोई इंसान कभी सोच भी नहीं सकता था। अगर किसी एक व्यक्ति में इस सृष्टि की सारी विशेषताओं का जटिल मिश्रण मिलता है तो वह शिव हैं। अगर आपने शिव को स्वीकार कर लिया तो आप जीवन से परे जा सकते हैं।

इंसान के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष यह चुनने की कोशिश है कि क्या सुंदर है और क्या भद्दा, क्या अच्छा है और क्या बुरा? लेकिन अगर आप हर चीज के इस भयंकर संगम वाली शख्सियत को केवल स्वीकार कर लेते हैं तो फिर आपको कोई समस्या नहीं रहेगी।

योगी, नशेड़ी और अघोरी शिव

वह सबसे सुंदर हैं तो सबसे भद्दे और बदसूरत भी। अगर वो सबसे बड़े योगी व तपस्वी हैं तो सबसे बड़े गृहस्थ भी। वह सबसे अनुशासित भी हैं, सबसे बड़े पियक्कड़ और नशेड़ी भी। वे महान नर्तक हैं तो पूर्णत: स्थिर भी। इस दुनिया में देवता, दानव, राक्षस सहित हर तरह के प्राणी उनकी उपासना करते हैं। शिव के बारे में तमाम हजम न होने वाली कहानियों व तथ्यों को तथाकथित मानव सभ्यता ने अपनी सुविधा से हटा दिया, लेकिन इन्हीं में शिव का सार निहित है। उनके लिए कुछ भी घिनौना व अरुचिकर नहीं है। शिव ने मृत शरीर पर बैठ कर अघोरियों की तरह साधना की है। घोर का मतलब है भयंकर। अघोरी का मतलब है कि ‘जो भयंकरता से परे हो’। शिव एक अघोरी हैं, वह भयंकरता से परे हैं। भयंकरता उन्हें छू भी नहीं सकती।

शिव स्वयं जीवन हैं

कोई भी चीज उनमें घृणा नहीं पैदा कर सकती। शिव हर चीज को, सबको अपनाते हैं। ऐसा वह किसी सहानुभूति, करुणा या भावनाओं के कारण नहीं करते, जैसा कि आप सोचते होंगे। वे सहज रूप से ऐसा करते हैं, क्योंकि वो जीवन की तरह हैं। जीवन सहज ही हरेक को गले लगाता व अपनाता है।

वर्तमान में कैलाश स्वयं शिव है

समस्या सिर्फ आपके साथ है कि आप किसे अपनाएँ व किसे छोड़ें और यह समस्या मानसिक समस्या है, न कि जीवन से जुड़ी समस्या। यहाँ तक कि अगर आपका दुश्मन भी आपके बगल में बैठा है तो आपके भीतर मौजूद जीवन को उससे भी कोई दिक्कत नहीं होगी। आपका दुश्मन जो साँस छोड़ता है, उसे आप लेते हैं। आपके दोस्त द्वारा छोड़ी गई साँसे आपके दुश्मन द्वारा छोड़ी गई साँसों से बेहतर नहीं होती है। दिक्कत सिर्फ मानसिक या कहें मनोवैज्ञानिक स्तर पर है। अस्तित्व के स्तर पर देखा जाए तो कोई समस्या नहीं है।

प्रेम और करुणा से भी परे

सद्गुरु कहते हैं कि एक अघोरी कभी भी प्रेम की अवस्था में नहीं रहता है। दुनिया के इस हिस्से की आध्यात्मिक प्रक्रिया ने कभी भी आपको प्रेम करना, दयालु या करुणामय होना नहीं सिखाया। यहाँ इन भावों को आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक माना जाता है। दयालु होना और अपने आसपास के लोगों को देखकर मुस्कुराना, पारिवारिक व सामाजिक शिष्टाचार है। एक इंसान में इतनी समझ तो होनी ही चाहिए, इसलिए यहाँ किसी ने सोचा ही नहीं कि ये चीजें भी सिखानी जरूरी हैं।

एक अघोरी जब इस अस्तित्व को अपनाता है तो वह उससे प्रेम के चलते नहीं अपनाता, वह इतना सतही या कहें उथला नहीं है, बल्कि वह जीवन को अपनाता है। वह अपने भोजन और मल को एक ही तरह से देखता है। उसके लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं है। वह एक सजी-सँवरी देह और व्यक्ति को उसी भाव से देखता है, जैसे एक सड़े हुए शरीर को। इसकी सीधी सी वजह है कि वह पूरी तरह से जीवन बन जाना चाहता है। वह अपनी दिमागी या मानसिक सोचों के जाल में नहीं फँसना चाहता।

#महाशिवरात्रि का रहस्य: मंदिर या शिवाला में नहीं बल्कि यहाँ और ऐसे मिलेंगे भोलेनाथ

आध्यात्मिक रूप से ख़ुद को जागृत करने की रात, महाशिवरात्रि अर्थात शिव की विशेष कृपा की रात। इस वर्ष सोमवार 4 मार्च 2019 को है। वैसे तो हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का दिन शिवरात्रि होती है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो हर वर्ष फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतर ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर उठती है।

जब भी भारतीय सनातन संस्कृति की बात होगी तो वह बात उत्सवों के बिना अधूरी होगी। किसी समय, भारतीय संस्कृति में, एक वर्ष में 365 त्योहार हुआ करते थे। अर्थात वे साल के प्रति दिन, कोई न कोई उत्सव मनाने का बहाना खोजते थे। जीवन का पर्याय ही उत्सव था। हर कार्य के गीत हुआ करते थे। ये सभी उत्सव कर्म बोध से जुड़े थे, 365 त्योहार के पीछे कोई न कोई कारण जीवन के विविध उद्देश्यों से जुड़े ढूँढ लिए गए थे। इन्हें विविध ऐतिहासिक घटनाओं, विजय तथा जीवन की कुछ अवस्थाओं जैसे फसल की बुआई, रोपाई और कटाई आदि से जोड़ा गया था।

जीवन की हर अवस्था और हर परिस्थिति के लिए हमारे पास एक त्योहार था। कालांतर में नाहक व्यस्तता बढ़ती गई, या हमने खुद को इतना व्यस्त कर लिया कि ख़ुद से ही दूर होते गए और जीवन अपनी सहज-स्फूर्त गति खोकर, हमारे अपने ही जाल में घुटने लगी। अब हम इतने व्यस्त हैं कि अपने हर अनुभव के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। हम हर छोटी-बड़ी जानकारी कहीं और से हासिल करना चाहते हैं कि यह कैसा है?

महाशिवरात्रि आपको अपने बोध से परिचय कराने की रात्रि है। योग परम्परा के अनुसार बात की जाए तो ख़ुद को अस्तित्व से जोड़ लेने की रात। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है।

इस समय का उपयोग करने के लिए, सनातन परंपरा में, पहले पूरी रात उत्सव मनाते थे और आज भी यह परम्परा बरक़रार है। ख़ासतौर से दक्षिण भारत और काशी में, महाशिवरात्रि का उत्सव पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने और ऊपर उठने का पूरा अवसर मिले। आप अगर ध्यान और योग की परंपरा से नहीं भी जुड़े हैं तो भी बस अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए, पूरी रात का जागरण भी आपके अनुभव में अध्यात्म की अलख जगा सकती है।

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व तो रखती ही है। यह उनके लिए भी अति महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं।

परंतु, साधकों के लिए, महाशिवरात्रि वह दिन है, जिस दिन शिव कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यहाँ यह जानना ज़रूरी है, यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।

आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर पहुँच चुका है, जहाँ वैज्ञानिकों ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि हम जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे हम ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है।

कैलाश पर्वत
वर्तमान में कैलाश पर्वत को ही शिव का प्रतीक माना जाता है।

यौगिक विज्ञान में, सनातन परम्परा में, यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है। यहाँ ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब ‘योग’ की बात होती है तो इसका तात्पर्य कोई विशेष अभ्यास या तंत्र नहीं। ब्रह्माण्ड के इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवारात्रि की रात, इसी अनुभव को पाने का परम अवसर है।

शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण रात्रि होती है। प्रत्येक माह शिवरात्रि का उत्सव तथा महाशिवरात्रि का उत्सव मनाना ऐसा लगता है मानो हम अंधकार का उत्सव मना रहे हों। कोई तर्कशील मन अंधकार को नकारते हुए, प्रकाश को सहज भाव से चुनना चाहेगा।

परंतु शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आँखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे। अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है।

कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रहने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती। इस विस्तार, इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा जाता है। वर्तमान में, आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है।

इस ग्रह के प्रत्येक धर्म व संस्कृति में, सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। यदि हम इसे देखें, तो ऐसी एकमात्र चीज़ जो सही मायनों में सर्वव्यापी हो सकती है, ऐसी वस्तु जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है, वह केवल अंधकार, शून्यता या रिक्तता ही है। सामान्यतः, जब लोग अपना कल्याण चाहते हैं, तो हम उस दिव्य को प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। जब लोग अपने कल्याण से ऊपर उठ कर, अपने जीवन से परे जाने पर, विलीन होने पर ध्यान देते हैं और उनकी उपासना और साधना का उद्देश्य विलयन ही हो, तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं।

प्रकाश आपके मन की एक छोटी सी घटना है। प्रकाश शाश्वत नहीं है, यह सदा से एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घट कर समाप्त हो जाती है। हम जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्त्रोत है। यहाँ तक कि आप हाथ से इसके प्रकाश को रोक कर भी, अंधेरे की परछाईं बना सकते हैं। परंतु अंधकार सर्वव्यापी है, यह हर जगह उपस्थित है।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं कि संसार के अपरिपक्व मस्तिष्कों ने सदा अंधकार को एक शैतान के रूप में चित्रित किया है। पर जब आप दिव्य शक्ति को सर्वव्यापी कहते हैं, तो आप स्पष्ट रूप से इसे अंधकार कह रहे होते हैं, क्योंकि सिर्फ अंधकार सर्वव्यापी है। यह हर ओर है। इसे किसी के भी सहारे की आवश्यकता नहीं है। प्रकाश सदा किसी ऐसे स्त्रोत से आता है, जो स्वयं को जला रहा हो। इसका एक आरंभ व अंत होता है। यह सदा सीमित स्रोत से आता है।

अंधकार का कोई स्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्रोत है। यह सर्वत्र उपस्थित है। तो जब हम शिव कहते हैं, तब हमारा संकेत अस्तित्व की उस असीम रिक्तता की ओर होता है। इसी रिक्तता की गोद में सारा सृजन घटता है। रिक्तता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं। भारतीय संस्कृति में, सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ केवल आपको बचाने या आपकी बेहतरी के संदर्भ में नहीं थीं। सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ कहती हैं, “हे ईश्वर, मुझे नष्ट कर दो ताकि मैं आपके समान हो जाऊँ। तो जब हम शिवरात्रि कहते हैं जो कि माह का सबसे अंधकारपूर्ण रात है, तो यह एक ऐसा अवसर होता है कि व्यक्ति अपनी सीमितता को विसर्जित कर के, सृजन के उस असीम स्रोत का अनुभव करे, जो प्रत्येक मनुष्य में बीज रूप में उपिस्थत है।

महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को, हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं, जो कि सारे सृजन का स्रोत है। एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं और दूसरी ओर वे सबसे अधिक करुणामयी भी हैं। वे बहुत ही उदार दाता हैं। यौगिक गाथाओं में वे, अनेक स्थानों पर महाकरुणामयी के रूप में सामने आते हैं। उनकी करुणा के रूप विलक्षण और अद्भुत रहे हैं।

इस प्रकार महाशिवरात्रि-2019 कुछ ग्रहण करने के लिए भी एक विशेष रात्रि है। इस रात में कम से कम एक क्षण के लिए उस असीम विस्तार का अनुभव करें, जिसे हम शिव कहते हैं। यह केवल एक नींद से जागते रहने की रात भर न रह जाए, यह आपके लिए जागरण की रात्रि होनी चाहिए, चेतना व जागरूकता से भरी एक रात!

नफ़रतों के तीर खा कर, दोस्तों के शहर में, हमने आपातकाल पुकारा (भाग 1)

शायरी से शुरू करने पर लोगों को लगता है कि लेजिटिमेसी की पहली सीढ़ी चढ़ ली, और लोग सीरियसली लेंगे बातों को। उसके बाद एक घंटे चार मिनट तक आप लगातार ऐसी-ऐसी बातें कहते हैं, जो हर बार अपने आप को ही गलत साबित करने जैसा होता है। 

कुछ ऐसे ही शुरू हुआ प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ का एक इवेंट जिसमें पत्रकारिता की लाज बचाने में लगे रवीश कुमार के हाथ से लगातार साड़ी का कपड़ा निकलता जा रहा था। जो सभा में बैठे सुधिजन थे, वो ‘आह रवीश जी, वाह रवीश जी’ किए जा रहे थे। इस पूरे इवेंट में हुई चर्चा के दौरान रवीश जी ने कई बातों पर बात रखी, पर हमने कुल 38 बिंदु इकट्ठे किए जिसका विडियो यहाँ देखा जा सकता है।

शुरू हुई बात कि देश में ‘नफ़रतों का सैलाब’ आ गया है, और मीडिया इसमें लगातार अपना योगदान दे रही है। भाषा खराब हो चुकी है, और क्लास, कंटेंट का फ़र्क़ मिट गया है। ‘नफ़रत’, ‘डर का माहौल’, ‘भय’, ‘आपातकाल’ आदि वो जुमले हैं जिन्हें रवीश जी ने इतना बोला है, इतनी बार बोला है कि लोगों के लिए ये भारी-भरकम शब्द आम हो गए हैं। जबकि, ये शब्द आम नहीं होने चाहिए। क्योंकि जब ऐसे शब्द आम हो जाते हैं, तो फिर सही मौक़े पर इस्तेमाल करते हुए आप उस पूरी घटना को छोटा बना देते हैं, लोग गम्भीरता से नहीं लेते। 

जहाँ तक मीडिया में कंटेंट और क्लास के मिटने की बात है तो मेरे हिसाब से ये बेहतर ही हुआ है। एक समय तक अंग्रेज़ी मीडिया ने पोलिटिकल और सोशल चर्चा पर अपनी कैंसर जैसी पकड़ बना रखी थी। अंग्रेज़ी छोड़ भी दें, तो कुछ मठाधीश एक जगह से बोल या लिख देते थे, वही अविरल धारा बहती रहती थी। न कोई सवाल करने वाला, न जवाब देने की ज़रूरत। अब वो ‘क्लास’ खत्म हो चुका है, अब कोई भी सवाल पूछता है, फ़ीडबैक देता है, जो कई पत्रकारों को चुभने लगा है। 

रवीश जी आगे अर्णब का नाम लिए बग़ैर यह बताने लगे कि हिन्दी वालों को अंग्रेज़ी के मालिक चलाते हैं, और अंग्रेज़ी वालों को ‘सुप्रीम लीडर’ से आदेश आते हैं। आगे उन्होंने क्लियर किया कि उनका इशारा मोदी की ही तरफ था, और वो नाम लेने से नहीं चूके। पत्रकारिता में आप कुछ भी कहते हैं तो उसके प्रमाण आपके पास होने चाहिए, लेकिन आज के दौर में लोग लांछन लगाकर भागने में महारत हासिल कर चुके हैं। 

पहली बात, ‘सुप्रीम लीडर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल एक जन प्रतिनिधि के लिए करना, बताता है कि इनके दिमाग में अवसाद का स्तर कितना ऊपर पहुँच चुका है। इन दो शब्दों से रवीश कुमार ने देश के उन करोड़ों लोगों का अपमान किया है जिसने मोदी को प्रधानमंत्री चुना है। आपने दो शब्दों से उसे तानाशाह बना दिया! ये एक सामंतवादी सोच है कि आप जो कहें, वही सही। लेकिन रवीश कुमार को सर्टिफ़िकेट बाँटने का हक़ किसने दिया? उनकी इस सोच का आधार उनके विचार हैं, जो ड्राइंग रूम डिस्कशन तक तो ठीक हैं लेकिन पब्लिक स्पेस में इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हुए, रवीश ने अपनी ही बात को काटा है, जहाँ वो आगे ये कहते नज़र आए कि मीडिया में भाषा का स्तर गिर रहा है। 

रवीश जी, पॉलिश्ड शब्द बोलने से भाषा का स्तर नहीं उठता। आंचलिक शब्द या सड़क के शब्द भी संदर्भ में मर्यादित लगते हैं, और अंग्रेज़ी के विशेषण भी संदर्भ पाकर घटिया हो जाते हैं। एक पत्रकार ये बात जानता है, इसलिए वो आराम से अपने विचारों को उन पर थोप देता है जिन्हें इस बात की समझ नहीं है। 

आगे रवीश कुमार ने प्रोपेगेंडा पर बात की, जो कि हास्यास्पद है। जिन पोर्टलों और चैनलों के ये हिमायती हैं, वो सबसे ज़्यादा प्रोपेगेंडा फैलाने में व्यस्त रहता है। चुनावों के समय जस्टिस लोया पर तथाकथित खोजी पत्रकारिता हो जाती है, अमित शाह के बेटे पर स्टोरी की जाती है, अजित डोभाल के बेटों पर काले धन का मामला फेंका जाता है, लेकिन साबित कुछ नहीं हो पाता। कोर्ट में मानहानि का दावा आते ही ‘प्रेस फ़्रीडम’ की डुगडुगी बजने लगती है। 

प्रेस फ़्रीडम वन-वे स्ट्रीट नहीं है। फ़्रीडम के साथ ज़िम्मेदारी भी आती है कि आप जो बोल और लिख रहे हैं, उस पर बने रहिए। उसके लिए आपके पास तथ्य होने चाहिए, उसका फॉलोअप करते रहिए। लेकिन रवीश कुमार ने जिन-जिन संस्थानों का नाम लेकर ‘छोटी संस्थाओं ने ही बड़ी खबरें ब्रेक की हैं’ कहा, वो सारी खबरें झूठ साबित हुईं और इनके पत्रकार महज़ कहानी गढ़ने के, एक भी फॉलोअप नहीं कर सके। 

सरकार को घेर लेना कि ‘सरकार डरा रही है लिखने से’, बहुत आसान है अपने आप को विक्टिम की तरह पेश कर देना। हालाँकि, उससे साबित कुछ नहीं होता। पत्रकारिता निर्भीकतापूर्वक की जाती है, नहीं कर सकते तो सो जाइए। लेकिन हाँ, फर्जी के आरोप मत लगाइए कि सराकर डरा रही है। डरा रही है, तो आप मत डरिए, आप अपनी स्टोरी कीजिए और आगे बढ़िए। सबूत होंगे तो देश का सुप्रीम कोर्ट चार बजे सुबह में भी खुलता है, आतंकियों के लिए। आप तो फिर भी पत्रकार हैं! 

अपनी चर्चा के अगले हिस्से में रवीश जी ने पुरानी लाइन और लेंथ बरक़रार रखते हुए कहा कि ‘नागरिकता, धार्मिकता, लोकतांत्रिकता की बुनियाद पर हमले हो रहे हैं’। इसकी बात करते हुए कहा गया कि हिन्दू बनाम मुस्लिम किया जा रहा है, मुस्लिमों में भय है आदि। पुरानी बातें जिसका कोई भी आधार नहीं है। सामाजिक झड़पें और सीट की लड़ाई को इसी रवीश कुमार ने बीफ से जोड़ा था। जब जाँच रिपोर्ट सामने आ गई तो आज तक माफ़ी नहीं माँग पाए हैं। 

आरोप लगाने में माहिर, लेकिन एक भी सबूत न देने वाले रवीश जी ने बताया कि समुदाय विशेष को पब्लिक और पोलिटिकल स्पेस से बाहर ढकेल दिया गया है। ये आरोप भी निराधार ही है। इसे विडम्बना कहिए या कुछ और, लेकिन भाजपा सरकार ने समुदाय विशेष के लिए पोलिटिकली जितना किया है, उतना किसी और सरकार ने शायद ही किया हो। दशकों से मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक और निकाह हलाला जैसी घटिया, बेकार और अमानवीय प्रथाओं के चंगुल से बाहर निकालने की पहल इसी सरकार ने की। 

इसी सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर उसमें हर धर्म के वंचितों को जगह दिया। भले ही रवीश कुमार और उनका गिरोह ‘वो तो टोपी नहीं पहनता’ पर टिके रहें, लेकिन सत्य यही है कि मेट्रो ट्रेन पर मुस्लिम भी मोदी से मुस्कुराकर मिलता है, बातें करता जाता है। पब्लिक स्पेस से ढकेलने का काम तो मुस्लिमों के हिमायती पार्टियों ने किया है जिन्होंने इनके ‘एकमुश्त’ वोटों का प्रयोग तो खूब किया, लेकिन उनकी ज़िंदगी सुधारने के लिए एक भी क़दम नहीं उठाए जो योजना के नाम से बेहतर हो। 

इसी लेख की दूसरी कड़ी (भाग 2) में हम बात करेंगे कि कैसे ‘हम ही सही काम कर रहे हैं, बाकी पत्रकारिता के नाम पर कलंक हैं’ के मुग़ालते में रहने वाले रवीश जी को स्वनामधन्यता की ख़ुमारी से बाहर आना चाहिए और ये समझना चाहिए कि उनके यह कहने से कि ‘सवाल पूछने से रोका जा रहा है’, ‘आप तक सूचना पहुँचने ही नहीं दी जाती’, ‘दर्शकों को समर्थक बनाया जा रहा है’, ‘अब इन्फ़ॉर्मेशन की जगह परसेप्शन दिया जा रहा है’ आदि से ये बातें सही नहीं हो जातीं।

भाजपा की विजय संकल्प बाइक रैली को रोकने के लिए ममता की पुलिस ने किया लाठी चार्ज, कई घायल

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पुलिस ने रविवार को राज्य के मिदनापुर जिले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा शुरू की गई ‘विजय संकल्प बाइक रैली’ को रोकने के लिए लाठीचार्ज का सहारा लिया। बाइक रैली कैडर को सक्रिय करने और देश भर में हर संसदीय क्षेत्र में पार्टी की पहुँच को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भाजपा के चुनाव पूर्व अभियान का हिस्सा है।

खबरों के अनुसार, पश्चिम बंगाल पुलिस ने बोर्ड परीक्षा और ट्रैफिक के मुद्दों का हवाला देते हुए रैली करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, फिर भी राज्य के भाजपा नेता रैली निकाल रहे थे। हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी किसी बहाने की आड़ लेकर बीजेपी को बाइक रैली की अनुमति देने से इनकार किया हो, इसके पहले भी वह शीर्ष बीजेपी नेताओं को भी बंगाल में लैंड करने एवं रैली की अनुमति देने से इनकार कर चुकी हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रैली की अनुमति देने से इनकार किए जाने के बाद, जगह-जगह बैरिकेड्स लगाकर पुलिस ने रैली को रोकने की कोशिश की। जब भाजपा कार्यकर्ताओं ने मिदनापुर में रैली के दौरान बैरिकेड्स तोड़ आगे बढ़ने की कोशिश की तो ममता बनर्जी की पुलिस ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज कर दिया। इस लाठी चार्ज में कई बीजेपी कार्यकर्ता घायल बताए जा रहे हैं।

इससे पहले भी, ममता बनर्जी ने राज्य में कानून और व्यवस्था संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए भाजपा को 42 निर्वाचन क्षेत्रों में रैलियाँ करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है।

महाभारत में उत्तर-पूर्व भारत

अगर आप उत्तर-पूर्व भारत की महाभारत में चर्चा के बारे में जानना चाहते हैं तो इसके लिए आपको गर्दन को थोड़ी सी दाएंँ-बाएंँ भी घुमानी होगी। आम तौर पर इस चर्चा में कुछ नहीं कहा जाता है, क्योंकि चर्चा करने पर महाभारत को कहीं विदेश से आए आर्य हमलावरों का ग्रन्थ सिद्ध करने में दिक्कत होगी। ऐसी ही वजहों से तरह-तरह की अफवाहों के जरिए भारतीय लोगों को उनका अपना ही महाकाव्य पढ़ने से भी हतोत्साहित किया जाता है। जो इतना काफी नहीं था तो हा हुसैनी हिन्दुओं की बढ़ती आबादी तो कामचोरी के करेले को नीम पर चढ़ा ही देती है।

करीब दो सौ साल पहले अरुणाचल प्रदेश में आई ब्लाक नाम के खोजी को एक किले के खंडहर मिल गए थे। सन 1848 में मिले इन खंडहरों पर काफी बाद (1965-70) में खुदाई करके पुरातत्व विभाग ने निष्कर्ष निकाला था कि ये कम से कम दूसरी शताब्दी के काल के तो हैं ही। दो हजार साल से ज्यादा पुराने ये अवशेष जिस इलाके में हैं, उसे भीष्मकनगर कहा जाता है। राजा भीष्मक का नाम ऐसे याद आना थोड़ा मुश्किल होगा। इनके सुपुत्र उन दो महारथियों में से एक थे, जो महाभारत के युद्ध में नहीं लड़े थे।

राजा भीष्मक के पुत्र थे रुक्मी। श्री कृष्ण के सम्बन्धी होने के कारण दुर्योधन ने उन्हें अपने पक्ष में नहीं लिया था और रुक्मी पहले दुर्योधन के पक्ष में शामिल होने गए थे, तो श्री कृष्ण ने उन्हें पांडवों के पक्ष में भी लेने से मना कर दिया था। भारत के पश्चिमी सिरे पर कहीं माने जाने वाले द्वारका के द्वारकाधीश की पत्नी रुक्मणी आज के अरुणाचल माने जाने वाले पूर्वी कोने के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मणी और भीष्मक का जिक्र महाभारत के आदि पर्व में सड़सठवें अध्याय में मिल जाएगा। इसके पास के ही एक दूसरे राज्य मेघालय के लिए मान्यता थी कि उस पर पार्वती का शाप था। शाप के कारण यहाँ की युवतियों को विवाह के लिए पुरुष नहीं मिलते थे।

इस शाप का मोचन अर्जुन के इस क्षेत्र में आने पर होना था। महाभारत काल में चूँकि जमीन या सत्ता हथियाने की लड़ाई तो थी नहीं, इसलिए महाभारत के 18 दिन वाले धर्मयुद्ध में भी किसी हारे हुए राजा का राज्य नहीं हड़पा गया था। चक्रवर्ती के तौर पर युधिष्ठिर को स्थापित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ के दौरान जब अर्जुन मेघालय के क्षेत्र में पहुंचे तब इस शाप का विमोचन हुआ था। इसका जि़क्र महाभारत में प्रमिला के रूप में आता है और यहाँ की राजकुमारी प्रमिला का विवाह अर्जुन से हुआ था। राजकुमारी प्रमिला, चित्रांगदा या उलूपी की तरह अपने राज्य में ही नहीं रहती थीं, वो अर्जुन के पास हस्तिनापुर चली गई थीं।

ये कहानी जैमिनी महाभारत के अश्वमेध पर्व में मिलती है और दर्शन के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। देखने की तीन अवस्थाओं को उनमीलन, निमीलन, और प्रमिलन कहते हैं। जब आँखें बंद हों और केवल कल्पना से मस्तिष्क प्रारूप बना ले, वो पलक बंद की अवस्था उनमीलन, थोड़ी खुली पलकों से सिर्फ उतना ही देखना जितना आप चाहते हैं, या जो पसंद है उसे निमीलन कहते हैं और पूरी तरह खुली आँखों से देखने को प्रमिलन। श्री कृष्ण के साथ ना होने पर जैसे अर्जुन का बल और गाण्डीव की क्षमता क्षीण होने के लिए एक गोपियों का प्रसंग आता है। वैसे ही ये हिस्सा भी कभी-कभी सुनाया जाता है। श्रीकृष्ण के बिना उसकी क्षमता कुछ नहीं, ये समझने में “आँखें खुलना” यानि प्रमिला की कहानी। हाँ, हो सकता है कि प्रमिला आज के मेघालय की थी ये ना बताते हों।

असम को पहले प्रागज्योतिषपुर के नाम से जाना जाता था और यहाँ के कामाख्या मंदिर को जाने वाली अधूरी बनी सीढ़ियों की कहानी नरकासुर से जोड़ी जाती है। नरकासुर का बेटा उसके बाद यहाँ से शासन करता था। कलिकापुराण और विष्णुपुराण में यही जगह कामरूप नाम से जानी जाने लगती है। महाभारत में नरकासुर के बेटे का जि़क्र आता है, उसका नाम भगदत्त था और हाथियों की सेना के साथ वो कौरवों के पक्ष से लड़ा था। नरकासुर हमेशा से दुष्ट नहीं था, माना जाता है कि वो बाणासुर की संगत में बिगड़ गया था। बाणासुर की राजधानी गौहाटी से थोड़ी दूर तेजपुर के इलाके में है।

इस क्षेत्र को शोणितपुर कहा जाता था और बाणासुर यहीं से शासन करता था। उसकी पुत्री उषा को श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध से प्रेम था। मान्यताओं के हिसाब से जहाँ उषा-अनिरुद्ध मिला करते थे, वो जगह भी तेजपुर में ही है। बाणासुर शिव का बड़ा भक्त था और उषा से मिलने आए अनिरुद्ध को उसने पकड़ लिया था। जब उसे छुड़ाने श्रीकृष्ण आए तो बाणासुर को बचाने शिव आए। जिस प्रसिद्ध से हरी-हर संग्राम का कभी कभी जि़क्र सुना होगा, वो इसी वजह से हुआ था। श्री हरी विष्णु के पूर्णावतार श्री कृष्ण और हर अर्थात शिव के इस संग्राम को रोकने के लिए ब्रह्मा को बीच-बचाव करना पड़ा था।

श्री कृष्ण पांडवों और कौरवों से जुड़ी इतनी कहानियों में अभी हमने इरावन, बभ्रुवाहन, उलूपी और चित्रांगदा की कहानियाँ नहीं जोड़ी हैं। वो थोड़ी ज्यादा प्रसिद्ध हैं, इसलिए हम मान लेते हैं कि उन्हें ज्यादातर लोगों ने सुना होगा। भीम की पत्नी हिडिम्बा की कथाओं को भी इसी क्षेत्र से जोड़ा जाता है। महाभारत काल तक ये क्षेत्र किरात और नागों का क्षेत्र माना जाता था। परशुराम के इस क्षेत्र में जाने-रहने का जिक्र है। जैसे दक्षिण भारत के कलारिपयाट्टू का प्रवर्तक परशुराम को माना जाता है, वैसे ही इस क्षेत्र की शस्त्र-कलाओं से भी उनकी किंवदंतियां जुड़ी मिल सकती हैं।

आज जरूर हाथी दक्षिण भारत के मंदिरों से जुड़े महसूस होते हों लेकिन लम्बे समय तक हाथियों की पीठ पर से लड़ने के लिए पूर्वोत्तर का क्षेत्र ही जाना जाता रहा है। हाल के अमीश त्रिपाठी के मिथकीय उपन्यासों में भी ऐसा ही जि़क्र आता है। जीवों का अध्ययन करने वाले मानते हैं कि पहले भारत में सिर्फ शेर होते थे। बाद में पूर्वोत्तर की ओर से ही भारत में बाघ आए। इस सिलसिले में ये भी गौर करने लायक होगा कि महाभारत में दुर्योधन की उपमा के तौर पर नरव्याघ्र भी सुनाई देता है। दिनकर की रश्मिरथी में भी एक वाक्य है “क्षमा, दया, तप त्याग मनोबल सबका लिया सहारा, पर नरव्याघ्र सुयोधन तुमसे, कहो कहाँ कब हारा?”

महाभारत पढ़ते समय आप इस पर भी अचंभित हो सकते हैं कि जब लगातार विद्रोह होते रहे, लड़ाइयाँ लगातार चलती रहीं, तो भारतीय विदेशी हमलावरों के गुलाम कब और क्यों माने गए? आखिर पूरी तरह हम हारे कब थे? और हाँ, प्रतिरोध की सबसे लम्बी परम्परा होने, पूर्व की ओर बढ़ते रेगिस्तानी लुटेरों, उपनिवेशवादियों, मजहबों को राजनैतिक विचारधारा का नकाब पहनाए आक्रमणकारियों के खिलाफ सबसे लम्बी आजादी की लड़ाई जारी रखने वाली गौरवशाली सभ्यता होने पर गर्व करना तो बनता ही है!

मारा गया जैश-ए-मुहम्मद चीफ मसूद अजहर, #Balakot में मौजूद था वह जब IAF का गिरा था बम: रिपोर्ट्स

वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान की किरकिरी के बीच बड़ी खबर यह है कि आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद का सरगना मसूद अजहर की मौत हो गई है। मीडिया रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार उसकी 2 मार्च 2019 को ही मौत हो गई थी। अभी तक किसी भी मीडिया हाउस ने इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है। बताया यह भी जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना की अनुमति के बाद ही मसूद की मौत की आधिकारिक घोषणा की जाएगी।

हाल ही में CNN को दिए एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी ने कहा था,  “जितना मेरी जानकारी है वह काफी बीमार है। वह इतना बीमार है कि वह घर से बाहर नहीं जा सकता।”

ज्ञात हो कि भारतीय वायुसेना सेना ने 26 फरवरी को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी शिविरों और लॉन्च पैड्स को तबाह कर दिया था। इसके दो दिन बाद ही खूंखार आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर के गुर्दे खराब होने की खबरें लगातार सामने आ रही थीं। वहीं, कुछ मीडिया रिपोर्टस् में दावा किया गया है कि मसूद अजहर की मौत हो चुकी है। कहा जा रहा है कि सेना की एयर स्ट्राइक के दौरान मसूज अजहर आतंकी शिविर में ही मौजूद था।

यह भी कहा जा रहा है कि मसूद अजहर एयर स्ट्राइक के दौरान आतंकी शिविर में सो रहा था। मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, पाकिस्तान के रावलपिंडी के एक सैन्य अस्पताल में उसकी मौत हो गई है।

बता दें कि भारतीय सेना ने इस एयर स्ट्राइक में मिराज-2000 लड़ाकू विमान का प्रयोग किया था। एयर स्ट्राइक दौरान भारतीय वायुसेना ने PoK और बालाकोट में लगभग 1000 किलो बम की बरसात की थी। मीडिया रिपोर्ट में यह भी दावा किया जा रहा है कि मसूद के साथ ही आईएसआई का कर्नल सलीम भी मारा गया है।

जो भी हो जब तक आधिकारिक सच्चाई सामने नहीं आ जाती तब तक कुछ भी मान लेना जल्दबाजी होगी। विभिन्न मीडिया संस्थान पाकिस्तान की तरफ से इसकी आधिकारिक पुष्टि के लिए टकटकी लगाए हुए हैं।

पाक से गोलाबारी की काट: पुंछ व राजौरी में बनेंगे 400 अतिरिक्त बंकर, प्रशासन ने दी मंजूरी

भारतीय वायु सेना की तरफ से किए गए एयर स्ट्राइक से बौखलाया पाक लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है। जिसकी वजह से नियंत्रण रेखा पर हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। सीमा पर बढ़ते तनाव को देखते हुए जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने शनिवार को पुंछ और राजौरी जिलों के निवासियों के लिए 400 अतिरिक्त बंकर बनाने की अनुमति दे दी है।

प्रशासन ने अधिकारियों को इन बंकरों का तेजी से निर्माण करने का निर्देश दिया है। एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, एक महीने के अंदर दोनों जिलों में 200-200 बंकर बनेंगे। इन बंकरों के निर्माण के लिए धनराशि ग्रामीण विकास विभाग के जरिए संबंधित उपायुक्तों को उपलब्ध कराया जाएगा।

वहाँ के स्थानीय लोगों का कहना है कि पाकिस्तान द्वारा सीमा पार से की जाने वाली गोलीबारी के दौरान बंकर काफी प्रभावी होते हैं। ये बंकर गोलाबारी के दौरान सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले नागरिकों को सुरक्षित स्थान मुहैया करवाते हैं।