Wednesday, October 9, 2024
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बड़ी कूटनीतिक जीत: पायलट शुक्रवार को भारत के हवाले, इमरान खान ने Pak संसद में कहा

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारतीय पायलट को लौटाने की घोषणा की है। इमरान खान ने यह बात पाकिस्तानी संसद में कही और कहा कि ये उनकी तरफ से शांति के लिए एक पहल की तरह देखा जाए। मीडिया की ख़बरों के अनुसार भारतीय पायलट को शुक्रवार को भारत को सुपुर्द किया जाएगा। ज्ञात हो कि बुधवार को पाकिस्तानी फ़ाइटर का पीछा करते हुए भारतीय मिग ने उसे गिरा दिया था, लेकिन पाकिस्तानी सीमा में पहुँचने के कारण उनके विमान को भी क्षति पहुँची और उन्हें पाकिस्तान ने पकड़ लिया।  

इससे पहले भारतीय रक्षा मंत्रालय ने यह साफ़ कर दिया था कि पाकिस्तान के मिलिट्री ठिकानों पर घुसपैठ के बदले उसने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। भारतीय पायलट से बुरे व्यवहार को लेकर मंत्रालय ने पाकिस्तान पर जेनेवा कन्वेंशन के उल्लंघन का भी आरोप लगाया। इन सबसे पाकिस्तान बैकफुट पर नज़र आ रहा है क्योंकि भारतीय पायलट की रिहाई को लेकर मोलभाव के उसके दिवास्वप्न को तगड़ा झटका लगा है। भारत ने साफ़ कर दिया था कि वह अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार तत्काल प्रभाव से अपने पायलट की रिहाई चाहता है और वह भी बिना किसी शर्त के।

मोदी सरकार के कूटनीतिक दबाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चौतरफा घिरे पाकिस्तान के लिए और कोई चारा बचा भी नहीं था। जेनेवा कंवेंशन के उल्लंघन का मतलब था पाकिस्तान का अलग-थलग पड़ जाना। अपनी आर्थिक स्थिति को देखते हुए पाकिस्तान इतना बड़ा खतरा मोल लेने को शायद ही कभी तैयार था। इन सब के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में US, UK और फ्रांस के द्वारा जैश-ए-मुहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को ब्लैक-लिस्ट करने का प्रस्ताव भी पाकिस्तान के लिए एक कड़ा संकेत था।

आपको बता दें कि 14 फरवरी को पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तान को चौतरफा घेरा था। क्योंकि इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मुहम्मद ने ली थी। और जैश के आतंक का पूरा केंद्र ही पाकिस्तान स्थित है।

इन सब के बीच भारतीय खुफिया एजेंसियों को जैश के द्वारा भारत पर एक और हमले की पुख्ता जानकारी मिली थी। इसी जानकारी के आधार पर भारतीय वायु सेना ने 26 फरवरी की रात को पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट स्थित जैश के प्रमुख अड्डे को निशाना बनाया और करीब 300 आतंकियों का खात्मा किया था। इसके विपरीत 27 फरवरी को पाकिस्तानी एयर फोर्स ने भारतीय सीमा में घुसपैठ कर सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। भारतीय एयर फोर्स ने जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान का एक F-16 विमान मार गिराया। इस लड़ाई में IAF का भी एक मिग-21 दुश्मन का निशाना बना और उसके पायलट पाकिस्तान के कब्जे में हैं, जिन्हें छोड़ने की बात इमरान खान ने पाकिस्तानी संसद में की।

पायलट को लेकर ब्लैकमेल नहीं होगा भारत, पाक से इस पर कोई मोल-भाव नहीं

पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा किए गए ‘एयर स्ट्राइक’ के बाद पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की, जिसमे उसके एक लड़ाकू विमान एफ-16 को मार गिराया गया। इस प्रक्रिया में एक भारतीय पायलट पाकिस्तान के कब्ज़े में आ गया। पाकिस्तान ने हिरासत में लिए गए पायलट का वीडियो सोशल एमडीए पर वायरल कर दिया, जिसके बाद लोगों ने उसे जेनेवा कॉन्वेंशन का पालन करने की हिदायत दी। इसके अनुसार, युद्धबंदियों (POW) के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। साथ ही सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होती है।

सबसे पहली बात तो यह कि भारतीय पायलट को पाकिस्तानी सेना दुबारा हिरासत में लिए जाने वाला वीडियो वायरल कर पाकिस्तान ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। पाकिस्तानी अधिकारी पहले भी दावा कर चुके हैं कि हिरासत में लिए गए पायलट के साथ इज्ज़त वाला व्यवहार किया जाएगा। बाद में वायरल हुए एक वीडियो में यह दिखाने की कोशिश भी की गई की पायलट सकुशल हैं और चाय पी रहे हैं। असल में, इस मामले में पाकिस्तान के हाथ बँध चुके हैं। लेकिन फिर भी पाकिस्तान ने एक अंतिम प्रयास करते हुए हिरासत में लिए गए पायलट को भारत के साथ मोलभाव करने के लिए इस्तेमाल करना चाहा।

भारतीय रक्षा मंत्रालय ने यह साफ़ कर दिया है कि पाकिस्तान के मिलिट्री ठिकानों पर घुसपैठ के बदले उसने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। भारतीय पायलट से बुरे व्यवहार को लेकर मंत्रालय ने पाकिस्तान पर जेनेवा कन्वेंशन के उल्लंघन का भी आरोप लगाया। इन सबसे पाकिस्तान बैकफुट पर नज़र आ रहा है क्योंकि भारतीय पायलट की रिहाई को लेकर मोलभाव के उसके दिवास्वप्न को तगड़ा झटका लगा है। भारत ने साफ़ कर दिया है कि वह अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार तत्काल प्रभाव से अपने पायलट की रिहाई चाहता है और वह भी बिना किसी शर्त के।

इस से दो चीजें जो निकल कर सामने आती है, वो भारत के रुख को काफ़ी स्पष्ट कर देती हैं। सबसे पहली बात तो यह कि भारत ने कंधार प्लेन हाईजैक से सीख ली है और किसी भी तरह के दबाव के सामने झुकने से साफ़ इनकार कर दिया है। कंधार आतंकियों और भारतीय गणराज्य के बीच का मसला था और पाकिस्तान इसमें एक किरदार होने के बावजूद बच कर निकल सकता था। लेकिन, भारतीय पोलोट वाला मसला सीधे दो देशों के बीच का है। अतः भारत आश्वस्त है कि अंतरराष्ट्रीय सस्तर पर पहले से ही अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान के पास इसे लेकर दम दिखाने की ताक़त नहीं बची है। तभी भारत ने ‘बिना किसी शर्त तत्काल रिहाई’ की माँग की है।

दूसरी बात यह कि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने फिलहाल काउंसलर एक्सेस लेने से भी इनकार कर दिया है। यह कुलभूषण जाधव वाले मामले से अलग है जहाँ भारत ने काउंसलर एक्सेस के लिए काफ़ी मशक्कत की थी। कुलभूषण जाधव बस एक भारतीय नागरिक हैं जिनपर पाकिस्तान ने जासूसी का आरोप लगाया और उन्हें सजा सुना दी गई। इस मामले में ऐसा नहीं है। भारत ने अपने पायलट को वापस लाने के लिए कूटनीतिक पहल शुरू कर दी है लेकिन पाकिस्तान के सामने झुकने या इसे लेकर किसी भी प्रकार के मोलभाव से साफ़ इंकार कर दिया है।

तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आतंकवाद पर भारत का रुख नहीं बदलेगा- ऐसा स्पष्ट सन्देश दे दिया गया है। भारतीय पायलट को ‘Bargaining Chip’ की तरह प्रयोग कर के तनाव कम करने का सपना देख रहे पाकिस्तान को यह साफ़ कर दिया गया है कि दोनों देशों के बीच प्रमुख मसला आतंकवाद है और पाकिस्तान स्थित आतंकियों पर कार्रवाई (बातचीत के लिए जो शर्त तय की गई है) के बिना कोई बातचीत नहीं होगी। मुद्दा अभी भी पुलवामा है। मुद्दा अभी भी पुलवामा हमले को लेकर पाकिस्तान द्वारा आतंकी संगठन जैश व उसके सरगना मसूद अज़हर पर कार्रवाई का है।

कुल मिलाकर देखें तो भारत कोई ‘डील’ नहीं करेगा। अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन नहीं करने पर पाकिस्तान को सबक सिखाने की भी पूरी तैयारी है। जिस तरह से अपने एयरस्पेस पर निगरानी रखते हुए पाकिस्तान ने कमर्सियल फ्लाइट्स को बंद कर रखा है, उसे पता है कि अगर जेनेवा कन्वेंशन के आधार पर काम नहीं होता है तो भारत के पास कड़ी सैन्य कार्रवाई करने का एक बड़ा मौक़ा मिल जाएगा- जो पाकिस्तान ‘afford’ नहीं कर सकता। गेंद पाकिस्तान के पाले में ही है लेकिन उसके पास फुल टॉस फेंकने के अलावा कोई चारा नहीं है।

प्रिय इमरान, अगर सीरियस हो तो कुछ ढंग की बात तो करो

भारत और पाकिस्तान के बीच अभी जो माहौल है, उस पर शायद हर भारतीय और पाकिस्तानी नागरिक के पास ठीक-ठाक सूचना है। पुलवामा में आतंकी हमला हुआ, जैश ने ज़िम्मेदारी ली, भारत ने पाकिस्तान स्थित जैश के ठिकाने को एयर स्ट्राइक से तबाह कर 300-350 आतंकी मार गिराए, पाकिस्तान ने भारतीय आकाश में घुसने की कोशिश करते हुए सैन्य ठिकानों का निशाना बनाया, भारतीय लड़ाकू विमान ने उनका पीछा किया और एक F16 जेट को मार गिराया, इसमें भारतीय मिग भी क्षतिग्रस्त हुआ और हमारे एक पायलट को इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी। वो पायलट अभी पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है, जैसा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमारती खान ने बताया। 

परसों इमरान खान जिस लाल गमछे के साथ मीटिंग में दिखे और कुछ बोला नहीं, उससे लग रहा था कि उनकी नींद गलत समय पर टूट गई। लेकिन ख़ुमारी से बाहर आने तक कल का वाक़या हो चुका था, जिसमें एक-एक विमान गँवाने के बाद, भारत का एक पायलट लापता बताया गया, जो कि पाकिस्तान द्वारा जारी संदेश में उनके क़ब्ज़े में कहा गया। 

ज़ाहिर है कि इमरान के लिए ये मौका एक बेहतर स्थिति में होने जैसे था, अब इमरान बारगेनिंग पोजिशन में थे। साथ ही, जैसा कि पाकिस्तान की पुरानी आदत रही है, जब उसे डर सताता है, तब वो शांति की बात करने लगता है, तो इमरान ने अपने तालिबानी चेहरे पर बहुत ही शांत और सभ्य मेकअप पोता, और शांति की बात करने लगे। अचानक से एक आतंकी देश का कप्तान दार्शनिक हो गया जो युद्ध की विभीषिका पर ज्ञान देने लगा। 

नई खबरें आईं कि अमेरिका के साथ, ब्रिटेन और फ़्रान्स ने पाकिस्तान से आतंक फैलाकर अशांति और हिंसा उत्पन्न करनेवाले जैश के आतंकी सरगना मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ब्लैकलिस्ट कराने की बात की है। भारत ने कई बार इस संदर्भ में बात की है, लेकिन हर बार चीन ने उस पर असहमति जताते हुए, उसे रोक दिया है। 

मेरी इमरान खान से यही अपील है कि अगर आप इस मुद्दे को लेकर, इस युद्ध के बाद की विभीषिका के दर्शन शास्त्र को लेकर गम्भीर हैं, तो फिर आप इस पर कुछ ऐसा कीजिए जिससे लगे कि आप पुरानी सरकारों की तरह अपनी आर्मी के इशारे पर नाच नहीं रहे। आप कुछ तो ऐसा कीजिए कि लगे पाकिस्तान सही में नया पाकिस्तान बनना चाहता है। अगर आपसे नहीं हो रहा, तो कम से कम सच तो बोलिए कि आपको डर लग रहा है कि अगर भारत ने अपने यहाँ के हजार-दो हजार लोगों की मौत की परवाह न करते हुए, आपको घेरकर मारना शुरू किया तो आप 1947 में पहुँच जाएँगे। 

राजनीति के भी हिसाब से देखा जाए तो जिस आतंकी का आपने, आपके देश ने इतने समय तक लाभ उठाया, उसके कारण अगर आपके देश के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लग रहा है तो उसे टिशू पेपर की तरह इस्तेमाल करके फेंकने में क्या बुराई है? अगर आप जंग नहीं चाहते, अगर आपको लगता है कि युद्ध में कोई नहीं जीतता, तो फिर या तो मसूद अज़हर की लोकेशन हमें दे दीजिए कि भारतीय वायु सेना रात में आए और उठाकर ले जाए, या आप ही बॉर्डर के पास उसे लेकर आइए, और भारतीय सेना के सुपुर्द कर दीजिए। 

लोकेशन बताकर भारतीय वायुसेना से उठवाने में आपकी असेम्बली में थोड़ी फ़ज़ीहत ज़रूर होगी जैसे कि ओसामा के समय हुई थी, लेकिन पाकिस्तान को तो इसकी आदत है, तो बर्दाश्त कर लीजिए क्योंकि आपको शांति चाहिए। हमें भी शांति चाहिए। या फिर, उसे बॉर्डर के आस-पास छोड़ दीजिए कि किसी को पता न चले कि कहाँ से पकड़ा गया। 

हो सकता है कि मेरी ये अपील मूर्खतापूर्ण लगे, लेकिन ऐसे आतंकी को भारत को सौंप देने में दोनों देशों की भलाई है। मसूद अज़हर कोई लंगर तो चलाता नहीं पाकिस्तान में, और पाकिस्तान स्वयं कहता है कि उसे सौ बिलियन डॉलर और 70,000 पाकिस्तानियों का नुकसान झेलना पड़ा है आतंक के कारण। फिर जैश जैसा संगठन वहाँ है ही क्यों? 

क्या इमरान नहीं जानते कि जैश-ए-मोहम्मद के बाक़ायदा बोर्ड लगे हुए हैं पाकिस्तान में? फिर ये दोगलों जैसी बातें क्यों करता है इमरान? स्वीकार लो कि तुम एक नकारा प्रधानमंत्री हो, जिसके हाथ में न तो सत्ता है, न आर्मी है और न ही वो तमाम आतंकी जो तुम्हारी बात सुनते हों।

अगर, सीरियस हो, तो गम्भीरता से सोचो। अगर पाकिस्तान का भला चाहते हो, क्योंकि युद्ध हुआ तो भारत तो खड़ा हो जाएगा, पाकिस्तान जो पहले से ही गिरा हुआ है, भीख से चल रहा है, वो भीख माँगने लायक भी नहीं रहेगा, तो ऐसे डिस्पोजेबल आतंकियों को बाहर का रास्ता दिखाओ। 

कूटनीति यही कहती है कि अगर छोटे से नुकसान झेलने से बहुत बड़ा ख़तरा टल जाए, तो वो नुकसान सहर्ष झेलना चाहिए। पाकिस्तानियों में ‘अल्लाह रहम करे’, ‘अल्लाह ख़ैर करे’ जैसी बातें आम हो गई हैं क्योंकि भारत की तरफ से रूटीन एक्सरसाइज़ भी होती है तो कराची, रावलपिंडी, स्यालकोट, लाहौर में हाय अलर्ट घोषित हो जाता है।

कल रात ट्विटर पर जिस तरह से पाकिस्तानियों के ‘रहम करे’ वाले ट्वीट बरस रहे थे, उससे यही ज़ाहिर होता है कि आम पाकिस्तानी को भी पता है कि भारत इस बार रुकने वाला नहीं। चाहे अपनी किताबों में जितनी बार तुम ये पढ़ा दो कि तुमने भारत से चार लड़ाइयाँ जीती हैं, सत्य आज भी यही है कि तुम्हारे सबसे बड़े और तथाकथित मॉडर्न शहरों में चौबीस घंटे बिजली नहीं होती और वहाँ के लोग पानी की कमी से जूझते हैं। वहीं भारत, अपने गाँवों में भी चौबीस घंटे बिजली लाने की तरफ अग्रसर है।

ये कोई भावनात्मक पोस्ट नहीं है कि मैं भारतीय हूँ तो पाकिस्तानियों को नीचा दिखाना चाहता हूँ। पाकिस्तानी की आर्थिक स्थिति क्या है इसकी जानकारी सबको है, और वहाँ के प्रधानमंत्री को ऑस्टेरिटी के लिए अपनी कारों के क़ाफ़िले से लेकर भैंस और गधे तक बेचने पड़ रहे हैं। अगर स्थिति अच्छी होती तो चीन का युआन पाकिस्तान में करेंसी के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता। 

सत्य यही है कि पाकिस्तान यह भलीभाँति जानता है कि यह युद्ध अगर हुआ तो निर्णायक होगा। यह युद्ध अगर हुआ तो वो पाकिस्तान के अंत पर ही जाकर रुकेगा। क्योंकि भारत के पास अब आर्थिक क्षमता भी है, और वैश्विक सहमति भी कि ऐसे मौक़ों पर हमें अपने धरती पर हुए हमलों का बदला लेने की आज़ादी है। 

इसलिए, इमरान खान के लिए सबसे अच्छा रास्ता यही है कि पहले तो भारतीय पायलट को जेनेवा संधि के मुताबिक़ भारत को लौटाया जाए, उसे किसी ‘डील’ के चक्कर में न रोके। और दूसरा काम यह हो कि संयुक्त राष्ट्र संघ में जब मसूद अज़हर को ब्लैकलिस्ट करने की बात हो, तो उस पर चीन को आपत्ति जताने से रोकने के बाद, उसे भारत के पास किसी भी तरीके से भेज दिया जाए। 

अगर ऐसा नहीं होता है, तो ये तनाव युद्ध में बदलेगा। जब युद्ध होगा तो भले ही भारत को कुछ क्षति पहुँचे, लेकिन पाकिस्तान को अपनी अभी की ही लड़खड़ाती स्थिति में भी आने के लिए शायद दशकों लग जाएँगे। 

पुलवामा आतंकी का शव कहाँ है? मोदी ने पुलवामा हमला कराया: कॉन्ग्रेस नेता

पुलवामा में हुए आत्मघाती आतंकी हमले को लेकर चल रही राजनीति थमने का नाम नहीं ले रही है। अंध-विरोध पर आधारित बयानबाज़ी के चक्कर में ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर भी कुछ नेता बेतुके बयान दे रहे हैं। इस सूची में नया नाम गोवा कॉन्ग्रेस के नेता चेलाकुमार का है। उन्होंने न सिर्फ पुलवामा हमले को लेकर मोदी पर निशाना साधा बल्कि कहा कि जैसे मोदी ने गोधरा की प्लानिंग की थी, उसी तरह पुलवामा को भी अंजाम दिया गया। भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने उनके इस बयान को लेकर राहुल गाँधी को आड़े हाथों लिया। चेलाकुमार ने पुलवामा पर विवादित बयान देते हुए कहा:

लोग अब मूर्ख नहीं हैं। यह आदमी किसी भी हद तक जाएगा, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह एक साथ है… यहाँ तक कि हाल ही में वीडियो क्लिपिंग भी सामने आई हैभाजपा द्वारा गोधरा की घटना की भी योजना बनाई गई थी, इसी तरह की अन्य घटनाओं की भी। ऐसा ख़ुद उन्हीं के आदमी ने कहा है। किसी कॉन्ग्रेसी नेता ने ऐसा नहीं कहा है, लेकिन बीजेपी सर्कल के किसी व्यक्ति ने दावा किया है कि यह विस्फोट भाजपा ने कराया था। मैं उनका नाम नहीं लूंगा। अगर ऐसा है तो पुलवामा की यह घटना भाजपा ने ही कराई होगी? उन्होंने सभी जवानों के शरीर की पहचान कर ली है। आतंकवादी का शव कहाँ है?”

पुलवामा हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद नामक पाकिस्तानी आतंकी संगठन ने ली थी। मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा ब्लैकलिस्ट कराने के लिए भारत लगातार प्रयास कर रहा है। ऐसे में, इस तरह के असंवेदनशील बयान का आना और ऐसे नेताओं पर पार्टियों द्वारा कार्रवाई न करना शर्म का विषय है। उधर पाकिस्तान रेडियो ने भी अपना पक्ष सही साबित करने के लिए राहुल गाँधी व अन्य विपक्षी नेताओं के संयुक्त बयानों का सहारा लिया।

इसी तरह हाल ही में केरल के एक वामपंथी नेता ने भी पुलवामा हमले को लेकर बेहूदा सवाल खड़े किए थे। बालाकृष्णन ने कहा था कि आगामी आम चुनाव की प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए ‘एयर स्ट्राइक’ की गई। उन्होंने इसे भाजपा और संघ की चाल बताया था। उन्होंने कहा था कि ये दोनों मिलकर युद्ध भड़काने के लिए ऐसी हरकतें कर रहे हैं। उन्होंने मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर सवाल उठाते हुए कहा था कि मुद्दे को सुलझाने की बजाय कश्मीरियों को दुश्मन बनाया जा रहा है।

‘खेलो इंडिया ऐप’ लॉन्च पर बरखा की बेकार आलोचना पर सायना नेहवाल का करारा जवाब

प्रधाममंत्री मोदी द्वारा बुधवार (फरवरी, 27 2019) को नेशनल यूथ पार्लियामेंट फेस्टीवल के मौके पर नई दिल्ली में ‘खेलो इंडिया ऐप’ को लॉन्च किया गया था। इस एप्लीकेशन का उद्देश्य देश के लोगों के भीतर खेल और फिटनेस को लेकर जागरूकता फैलाने से संबंधित है। लेकिन, इस ऐप के लॉन्च से कुछ विशेष समुदाय के लोग बहुत आहत हुए और उन्होंने ट्वीट के ज़रिए पीएम को बताया कि उन्हें कुछ समय तक के लिए इसे टाल देना चाहिए था।

इस प्रकार की सलाह देने वालों में एक नाम बरखा दत्त का भी है। जिन्होंने ट्वीट किया है कि उन्हें लगता है कि पीएम मोदी को इस ऐप को लॉन्च करने का कार्यक्रम कुछ समय के लिए टाल देना चाहिए था क्योंकि इस समय हमारा एक युवा पायलट पाकिस्तान के पास है।

बरखा के इस ट्वीट के जवाब में भारत की बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल ने लिखा कि खेलो इंडिया ऐप की लॉन्चिंग यूथ पार्लियमेंट फेस्टीवल का हिस्सा थी। इसकी लॉन्चिंग का मकसद युवाओं को सांस्कृतिक, भौगोलिक और आर्थिक रूप से जोड़ना था। सायना ने लिखा कि सभी को एक जुट करने के लिए इससे अच्छा समय और क्या हो सकता है। सायना ने बरखा की इस आलोचना को पूर्ण रूप से अनावश्यक बताया।

इस ऐप की लॉन्चिंग पर खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ का कहना है कि भारत ने खेलों की दिशा में आज लंबी छलांग लगाई है। साथ ही उन्होंने इस ऐप को देश में फिटनेस और खेल के पहलू के लिहाज़ से ज़रूरी बताया। उनका मानना है कि इससे छोटी उम्र में प्रतिभा की पहचान करने और उसे निखारने में मदद मिलेगी।

बरखा के इस ट्वीट पर न केवल सायना ने बल्कि बहुत से लोगों ने खेलो इंडिया ऐप के लॉन्च का समर्थन किया और उनके ट्वीट को अनावश्यक बताया। दरअसल, जिस समय प्रधानमंत्री को विंग कमांडर के पाकिस्तान में होने की सूचना दी गई, उस समय वह ऐप लॉन्च हो चुकी थी और प्रधानमंत्री जनता को संबोधित कर रहे थे। लेकिन, जैसे ही उन्हें यह ख़बर मिली उन्होंने जल्द से जल्द कार्यक्रम खत्म किया और विज्ञान भवन पहुँचे।

लेकिन, बरखा दत्त और पत्रकारिता के गिरोह से जुड़े कुछ ख़ास लोग इसकी आलोचना करने से बाज नहीं आ रहे हैं। शाह फैसल ने अपने बौद्धिक स्तर पर इस ऐप के उपयोग सिर्फ़ PubG खेलने तक के लिए ही सोच पाए।


#SayNoToWar का रोना रोने वालो, कभी #SayNoToTerrorism भी कह लिया होता

आज देश आतंकवाद को लेकर एक निर्णायक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है। 14 फरवरी के दिन पुलवामा में हुए आतंकी हमले में हमारे 40 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए। जब मीडिया का एक वर्ग बलिदानी जवानों की जाति खोज रहा था, तब हमारे नीति नियंता और सेना इस योजना पर कार्य कर रही थी कि इस आतंकी हमले का जवाब कैसे देना है? हमारे जवान वापस नहीं आ सकते लेकिन दोषियों को सज़ा देना सरकार का कार्य है, जनता की माँग है। सरकार ने डॉक्टर मनमोहन सिंह वाला रुख न अपना कर आतंकियों को सबक सिखाने की ठानी और मंगलवार (फरवरी 26, 2019) को पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक के जरिए कड़ी कार्रवाई की।

पल-पल बदलता घटनाक्रम

भारत ने पिछले पाँच दशक में पहली बार पाकिस्तानी सीमा पार कर सैंकड़ों आतंकियों को जहन्नुम पहुँचा दिया। पल पल बदल रहे घटनाक्रम के बीच बौखलाए पाकिस्तान ने भारत स्थित सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया, जिसके जवाब में भारतीय वायु सेना ने एक पाकिस्तानी लड़ाकू विमान को मार गिराया। इतना कुछ होने के बाद इमरान ख़ान भी निकले और उन्होंने पुलवामा हमले की जाँच की बात कह शांति एवं बातचीत का रास्ता अपनाने की अपील की। विडंबना यह कि सुबह में पाकिस्तानी सेना भारतीय सैन्य ठिकानों पर हमला करती है और शाम को उस देश का मुखिया शांति की अपील करता है।

इस घटनाक्रम के बीच भारतीय लिबरल गैंग के एक समूह विशेष को ख़ास तवज्जोह नहीं मिल पा रही थी। पुलवामा हमले के बाद उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए जवानों की जान न बचा पाने का दोष मढ़ा था। सरकार की सक्रियता, प्रधानमंत्री की निर्णायक क्षमता और सेना के शौर्य का मिला जुला उदाहरण हमें ‘सर्जिकल स्ट्राइक 2’ के रूप में देखने को मिला। लिबरल गैंग ने इसके बाद वायुसेना की प्रशंसा करनी शुरू कर दी (जो होनी भी चाहिए)। लेकिन, हमने याद दिलाया कि कैसे डॉक्टर मनमोहन सिंह के समय भी यही वायुसेना थी, हमारे जवान तब भी साहसी, तैयार और शौर्यवान थे, यही मिराज 2000 था- लेकिन मुंबई हमलों में मारे गए पौने दो सौ लोगों के हत्यारों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

हमने बताया कि कैसे डॉक्टर सिंह ने तत्कालीन वायुसेना प्रमुख को एयर स्ट्राइक करने से मना कर दिया था और युद्ध के भय से सीमा पार खुले साँढ़ की तरह विचर रहे आतंकियों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने की कोई ज़रूरत नहीं समझी गई। जबकि इस सरकार ने कड़ा निर्णय लिया। पाकिस्तानी जवाबी कार्रवाई के बाद लिबरल गैंग सक्रिय हो उठा और उसने #SayNoToWar ट्रेंड कराना शुरू कर दिया। युद्ध के ख़िलाफ़ दलीलें दी जाने लगीं और युद्ध से बर्बाद हुए शहरों की तस्वीरों के जरिए जनता की भावनाओं को अपने पक्ष में करने की कोशिशें की जाने लगी। जनता को डराया जाने लगा कि युद्ध हुआ तो उनका और उनके इलाक़े का बुरा हाल होगा।

लिबरल गैंग की टाइमिंग और उनका कुटिल अभियान

सबसे बड़ी विडंबना तो यह कि युद्ध के ख़िलाफ़ रोना रोने वालों में वह भी शामिल हैं जो बन्दूक की नोक पर लाल सलाम बोल कर आज़ादी लेने की बात करते हैं। ये वो गैंग है, जो यूँ तो कभी शांति की बातें नहीं करेगा लेकिन ऐसे निर्णायक मौक़ों पर भारतीय हितों की परवाह किए बिना अपना घटिया एजेंडा चलाएगा। ऐसे समय पर जब हमारे देश की सेना पैंतरेबाज़ पाकिस्तान के किसी भी हमले का कड़ा प्रत्युत्तर देने के लिए तैयार बैठी है, युद्ध को लेकर हौवा फैलाने वालों को क्या सबसे पहले यह नहीं सोचना चाहिए कि यह सब शुरू कहाँ से हुआ? क्या आतंकियों पर कार्रवाई युद्ध को बढ़ावा देना है?

पाकिस्तानी चैनलों पर बरखा दत्त की दलीलें चलाई जा रही हैं। पाकिस्तानी पत्रकार भारतीय चैनलों पर आकर राजदीप सरदेसाई के विचारों का हवाला देते हैं। जो अपने देश, सरकार और सेना के साथ ही नहीं खड़ा है, उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? सवाल पूछे जाने चाहिए, चर्चाएँ होनी चाहिए लेकिन देशहित की क़ीमत पर नहीं। लिबरल गैंग से हमारा पहला सवाल- क्या पाकिस्तानी आतंकी दशकों से भारत में जो कर रहे हैं, वो युद्ध नहीं है क्या? अगर वो युद्ध नहीं है तो आपको युद्ध की परिभाषा समझने की ज़रूरत है। इसके लिए हम अपना समय व्यर्थ नहीं करेंगे बल्कि वो आपको ख़ुद डिक्शनरी में जाकर देखना पड़ेगा।

युद्ध तो कब से चल रहा है…

आँकड़े बोलते हैं और कभी-कभी तमाचों का काम करते हैं। हालाँकि, यहाँ जिन आँकड़ों का जिक्र हम करने जा रहे हैं, वे हरेक भारतीय के लिए दुःखदाई है लेकिन हालात को पूरी तरह समझे बिना टिप्पणी नहीं की जा सकती। पिछले 27 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में 41,000 जानें गई हैं। सरकारी डेटा के अनुसार, कश्मीर में प्रत्येक वर्ष औसत 1500 से भी अधिक जानें जाती हैं, यानी 1 दिन में क़रीब 4 लोग काल के गाल में समा जाते हैं। हमारे 14,000 नागरिक मारे गए और 5000 से भी अधिक जवान वीरगति को प्राप्त हुए- क्या यह युद्ध नहीं है क्या? जवाबी कार्रवाइयों में 22,000 आतंकियों को मौत के घात उतारा गया।

आत्मघाती हमले, बम विस्फोट, हिंदुत्व के ख़िलाफ़ जिहाद का प्रशिक्षण, पाकिस्तान में भारत विरोधी भाषणों का खुलेआम प्रचार-प्रसार, भारत के सार्वजनिक स्थलों पर हमले, घुसपैठ, सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन, भारतीय मुस्लिम युवकों को बहकना, अलगाववाद की बात, कश्मीर की कथित आज़ादी के लिए ख़ूनी अभियान, भारतीय जवानों के ऊपर हमले पर हमले- यह सब क्या है? कौन कर रहा है? इसके मास्टरमाइंड कहाँ बैठे हैं? ये बातें लगभग सभी को पता है लेकिन युद्ध तो भारत भड़का रहा है न! बिना युद्ध के हमारे 5000 से भी अधिक जवान वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं तो ठीक लेकिन 350 आतंकियों को मौत के घाट क्या उतारा गया, लिबरल गैंग की तो नींद ही उड़ गई।

1993 में मुंबई में बम ब्लास्ट, 1998 कोयम्बटूर बॉम्बिंग्स, 2001 में भारत की संसद पर हमला, 2002 में अक्षरधाम जैसे पवित्र स्थल को निशाना बनाया गया, 2003 और 2006 में मुंबई में ब्लास्ट्स, 2005 में दिल्ली में, 2006 में बनारस में, 2007 में समझौता एक्सप्रेस में धमाके, हैदराबाद में आतंकी कार्रवाई, 2008 में दिल दहला देने वाला 26/11, 2016 में उरी और पठानकोट- यह सब क्या था? क्या यह सब भारत के ख़िलाफ़ युद्ध नहीं था? लगातार एक पर एक हमले और बम ब्लास्ट कर भारतीय नागरिकों और जवानों को नुक़सान पहुँचाने के साथ-साथ भारत के बड़े सार्वजनिक स्थलों को बर्बाद करने की कोशिशें- इस से बढ़ कर युद्ध क्या होता है? उन्हें शांति का पाठ पढ़ाया आपने?

यह एक एकतरफा युद्ध है। आतंकियों और उनके पोषकों द्वारा भारत के ख़िलाफ़ चलाया जा रहा एकतरफा युद्ध। भारत तो बस आतंकियों पर कार्रवाई करता है, जो लिबरल गैंग की नज़र में युद्ध है। भारत की भूमि पर हुए हर एक आतंकी हमले के बाद अगर यहाँ के लिबरल्स ने ‘से नो टू वॉर’ ट्रेंड कराया होता तो शायद भारतीयों का मनोबल बढ़ता और आतंकियों के हौंसले पस्त होते। लेकिन, ऐसा न हो सका। उन्हें युद्ध के ख़िलाफ़ दलीलें तभी याद आई जब सरकार आतंकियों पर कड़े प्रहार करने का निश्चय कर चुकी है, कर रही है और आगे भी आतंकियों के प्रति कोई नरमी नहीं बरतने की बात हो रही है।

क्या आतंकियों के हाथों हमारी क्षति तुम्हें सुकून देती है?

लिबरल गैंग से हमारा दूसरा सवाल- क्या आतंकियों को खुली छूट दे दी जाए कि वे जब चाहे आएँ और हम में से किसी की भी हत्या कर चलते बनें? हमारे ख़ुफ़िया तंत्र को सटीक जानकारी है कि वे आतंकी कहाँ छिपे हैं (एयर स्ट्राइक के दौरान बनाए गए सटीक निशानों को ही ले लीजिए), और यह सब जान कर भी सरकार अपने लोगों और जवानों को मरने के लिए छोड़ देती है तो फिर सरकार का औचित्य ही क्या? यह सही है कि युद्ध समस्या का हल नहीं है लेकिन आतंकियों का सफाया करना सरकार का दायित्व है, यह युद्ध नहीं है। युद्ध वो है जिसे आतंकियों द्वारा छेड़ा गया है, भारत के ख़िलाफ़। युद्ध वो है जो पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को संरक्षण और समर्थन देकर शुरू किया गया है।

बन्दूक की नाली पर सत्ता लेने की बात करने वाले जब #SayNoToWar का रोना रोने लगे, तो समझ जाइए कि दाल में कुछ काला है। इन्हें हमारे जवानों की चिंता तब नहीं सताती जब दंतेवाड़ा में नक्सलियों द्वारा धोखे से हमारे 76 सीआरपीएफ जवानों को मार दिया जाता है। इन्हें तब हमारे जवानों की चिंता नहीं सताती जब पुलवामा में एक साथ 40 जवानों को बम से उड़ा दिया जाता है। तब ऐसे अभियान नहीं चलाए जाते। तब युद्ध के ख़िलाफ़ दलीलें नहीं दी जाती। लेकिन, जैसे ही आतंकियों पर कार्रवाई का समय आता है, ये अपने बिल से निकल आते हैं और युद्ध बनाम शांति की बहस क्रिएट कर उसमें कूद पड़ते हैं।

अभी समय है देशवासियों का मनोबल ऊँचा रखने का। अभी समय है ऐसा कोई भी पब्लिक परसेप्शन नहीं तैयार करने का, जिस से सरकार की सोच और निर्णयों पर गलत असर पड़े। अभी समय है जनता को समझाने-बुझाने का, युद्ध का हौवा दिखा कर डराने का नहीं। अभी समय है देश की सुरक्षा को सर्वोपरि रख कर आतंकियों की निंदा करने का। अगर लिबरल गैंग में हिम्मत है तो आतंकियों द्वारा शुरू किए गए इस युद्ध की जड़ तक पहुँचें और जनता को बताएँ कि युद्ध में कौन है और कौन नहीं। अगर सरकार, सेना और देश पर भरोसा नहीं रख सकते हैं तो देश को अपना कहना छोड़ दीजिए।

और #SayNoToWar वाले गीत उन आतंकियों को सुनाए जाने चाहिए जिन्होंने भारत के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ रखा है। ये रोना उनके सामने रोना चाहिए जिन्होंने बिना युद्ध के ही हमारे 5000 से भी अधिक जवानों की जान ले ली। ये सीख उन्हें सिखाई जानी चाहिए जिन्होंने हमारे सैन्य ठिकानों पर हमले किए। भारत सरकार ने आतंकियों पर कार्रवाई की, यह शांति की दिशा में किया गया प्रयास है- युद्ध नहीं है। गलत समय पर गलत ट्रेंड चला कर जनता को बरगलाने के प्रयासों का पर्दाफाश किया जाना चाहिए।

#बालाकोट: हूरों के चक्कर में मारे गए थे 300 जेहादी… वो भी 188 साल पहले

भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर किए गए हमलों के बाद बालाकोट के नाम से हर व्यक्ति परिचित हो गया है। इस घटना से पहले शायद ही किसी आम व्यक्ति ने बालाकोट के बारे में जानने में दिलचस्पी जताई होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पहली बार नहीं है जब बालाकोट पर आतंकियो को मारने के लिए इस प्रकार का हमला किया गया। लगभग 188 साल पहले भी महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने बालाकोट की जमीन से 300 मुजाहिदीनों का सफाया किया था।

बालाकोट आज से नहीं बल्कि क़रीब 200 सालों से आतंकवाद का केंद्र रहा है। यहीं से जिहादियों की शुरूआत हुई थी जिसकी नींव सैयद अहमद शाह बरेलवी द्वारा रखी गई थी। स्वयं को इमाम घोषित कर बरेलवी ने जिहादियों की ऐसी फौज़ तैयार की थी, जो भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी हुकूमत कायम करना चाहते थे।

पाकिस्तानी लेखिका आयशा जलाल ने सैयद का जिक्र अपनी किताब पार्टिशंस ऑफ अल्लाह में भी किया है। सैयद बरेलवी का लक्ष्य भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी हुकूमत को स्थापित करना था। इसलिए उसने महाराजा रणजीत सिंह की सेना के ख़िलाफ़ जिहादियों को बड़ी तादाद में एकत्रित किया। बरेलवी ने अपनी जिहादी नीतियों से महाराजा को तंग कर रखा था जिसके कारण ही महाराजा रणजीत सिंह ने अपने पुत्र के नेतृत्व में पेशावर पर कब्जा करके उसे अपने राज्य से जोड़ा था।

पाकिस्तानी लेखक अजीज अहमद के अनुसार वर्तमान रायबरेली (यूपी) के रहने वाले सैयद अहमद शाह (1786-1831) ने ही बालाकोट को जिहाद का जन्मस्थली बनाया। जिहाद की शुरूआत के लिए बालाकोट का चुनाव बरेलवी द्वारा इसलिए भी किया गया था क्योंकि उसका मानना था कि यह जगह पहाड़ों से घिरी हुई है और दूसरा इसके एक ओर नदी है जिसके कारण किसी को भी यहाँ पर पहुँचना बेहद मुश्किल होगा।

सैयद बरेलवी जानता था कि देश में अग्रेज़ों की हुकूमत से लड़ पाना उसके लिए तत्कालीन परिस्थितियों में मुश्किल था, इसलिए उसने उनके ख़िलाफ़ किसी प्रकार के जिहाद की घोषणा नहीं की। साथ ही अंग्रेज भी सैयद की इन खतरनाक गतिविधियों को जानने के बाद चुप थे क्योंकि उनका मानना था कि सैयद और उसके द्वारा तैयार किए जा रहे जिहादी लड़ाके सिख राज्य को कमजोर कर देंगे, जिससे की अंग्रेज़ों को ही फायदा पहुँचेगा। नतीजतन 1824 से 1831 तक जिहादी बालाकोट में सक्रिय रहे।

दरअसल, सैयद अहमद शाह ने राजा रणजीत सिंह द्वारा अज़ान और गौतस्करी पर प्रतिबंध लगाने की बात सुनकर जिहाद की घोषणा कर दी थी। जिस समय पर बरेलवी बालाकोट पहुँचा उस समय उसके साथ 600 जिहादी थे और पेशावर के हज़ारों पठानों द्वारा भी उसे समर्थन दिया जा रहा था।

स्वभाव से कट्टर विचारधारा वाले सैयद के बारे में एलेक्सेंडर गार्डनर ने बताया था कि उसने मात्र 30-40 रुपए के लिए अपने साथी को मौत के घाट उतार दिया था ।

सैयद से तंग आकर महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने बालाकोट की एक पहाड़ी के पास डेरा डाल लिया। जिसके बाद सैयद ने वहाँ धान के खेतों में पानी अधिक मात्रा में डलवा दिया ताकि जब वह हमला करने आएँ तो उनकी गति धीमी पड़ जाए।

दोनों पक्ष एक दूसरे पर हमला करने के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करते रहे और एक दिन एक अज़ीबो गरीब घटना हुई जिसने सिख सेना को मुजाहिदीनों को मार गिराने का मौक़ा दे दिया। दरअसल, 6 मई 1831 के दिन एक जिहादी अपना दिमागी संतुलन खो बैठा और उसे अपने सामने हूरें दिखाई देने लगीं। वो एकदम से चिल्लाते हुए भागा कि उसे हूर बुला रही है और जाकर उन्हीं धान के खेतों में फँस गया जिसे सिख सेना के लिए जाल की तरह बिछाया गया था। मौक़े को परखते हुए सिखों की सेना ने उसे अपनी बंदूक का निशाना बनाकर मार गिराया। उन मुजाहिदीनों में हूरों के पास पहुँचने वाला चिराग अली पहला नाम था।

इसके बाद सिख सेना ने सभी मुजाहिदीनों को ढेर करना शुरू कर दिया। उस दौरान भी इस युद्ध में क़रीब 300 से ज्यादा जिहादियों को सिखों की सेना ने हूरों के क़रीब पहुँचाया था जिनकी कब्रें आज भी वहां पर मौजूद हैं। आज 188 साल बाद उसी जगह भारतीय वायुसेना ने वही घटना दोहराई है। बस सैयद के जिहादियों की जगह पर जैश ए मुहम्मद के 300 आतंकियों का एक साथ सफाया हुआ है और सिख सेना की जगह IAF ने विजय की पताका हवा में फहराई है।

जरा सोचिए! जिहाद की शुरूआत करने वाले सैयद को भले ही महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने मार गिराया हो। लेकिन आज के समय में आतंकवाद का लगातार बढ़ना कहीं न कहीं उसके द्वारा तैयार किए जिहादियों के प्रचार-प्रसार का ही नतीजा है। आए दिन न जाने कितने आतंकियों को मार गिराए जाने की खबरें हमें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं लेकिन बावजूद इसके आतंक खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।

बालाकोट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए ही शायद आतंकी संगठन जैश ने अपने आतंकियों के लिए यहाँ पर प्रशिक्षण केंद्र खोला था। ये केंद्र आम जनता की पहुंच से दूर पहाड़ों पर था। जिसे 26 फरवरी को वायु सेना के जवानों द्वारा तहस-नहस किया गया।

राहुल गाँधी और विपक्षी नेताओं को पाकिस्तान ने कहा ‘थैंक यू’… मीडिया ने किया इस्तेमाल

रेडियो पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने के लिए राहुल गाँधी का सहारा लिया है। रेडियो पाकिस्तान ने एक ट्वीट कर भारतीय विपक्षी पार्टियों द्वारा जारी किए गए जॉइंट मेमोरेंडम का जिक्र करते हुए कहा कि 21 विपक्षी पार्टियों ने पीएम मोदी पर ताज़ा सुरक्षा हालात के राजनीतिकरण का आरोप मढ़ा।

रेडियो पाकिस्तान ने राहुल गाँधी, ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू, शरद पवार इत्यादि सहित अन्य विपक्षी नेताओं के फोटो का प्रयोग कर एक आर्टिकल प्रकाशित किया, जिसमे ये बातें कही गई हैं। रेडियो पाकिस्तान ने कहा:

“भारतीय विपक्षी पार्टियों ने इस बात पर खेद जताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने से पहले सर्वदलीय बैठक नहीं बुलाई।

भारत के विपक्षी दलों ने आसान किया पकिस्तान का काम

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बैठक में विपक्षी पार्टियों के नेता इस बात पर सहमत हुए कि नरेंद्र मोदी पर स्थिति को और गंभीर न करने के लिए दबाव बनाया जाना चाहिए। वैसे यह पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तानी मीडिया या सरकार ने अपने हितों के लिए ऐसा किया हो। कुलभूषण जाधव मामले में भी क्विंट, कारन थापर इत्यादि द्वारा प्रकाशित किए गए रिपोर्ट्स को पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में अपने पक्ष में पेश किया था।

कॉन्ग्रेस को बड़ा झटका: खाली करना होगा हेराल्ड हाउस, जुड़ा है राहुल-सोनिया का भी नाम

कॉन्ग्रेस के लिए यह ख़बर अच्छी नहीं है। दिल्ली हाई कोर्ट ने नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को ITO स्थित हेराल्ड हाउस खाली करने के अपने पुराने आदेश को बरकरार रखा है। कॉन्ग्रेस के लिए राहत सिर्फ इतनी है कि कोर्ट ने इसके लिए अभी कोई तय समय सीमा नहीं जारी की है।

18 फरवरी 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की पीठ ने केंद्र सरकार और AJL की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए यह बड़ा झटका है। बड़ा झटका इसलिए क्योंकि हेराल्ड हाउस मामले में प्रत्यक्ष रूप से कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और उनकी माँ सोनिया गाँधी जुड़ी हुई हैं।

इस मामले पर हाई कोर्ट में बहस के दौरान केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जिस तरह से शेयरों का हस्तांतरण हुआ, उससे हेराल्ड हाउस के स्वामित्व का मामला जुड़ा हुआ है और इसको देखा जाना चाहिए। गौर करने लायक बात यह है कि तुषार मेहता ने किसी का नाम अपनी दलील के दौरान नहीं लिया। लेकिन AJL की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी दलील देते हुए खुद ही फंस गए जब उन्होंने कहा था कि कंपनी के शेयर यंग इंडिया को हस्तांतरित (ज्यादातर शेयर) होने से राहुल गाँधी और उनकी माँ सोनिया गाँधी हेराल्ड हाउस के मालिक नहीं बन जाएँगे।

आपको बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट में असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) द्वारा एक जज के फैसले को चुनौती दी गई थी। उस फैसले AJL को हेराल्ड हाउस खाली करने का निर्देश दिया गया था। साथ ही यह भी कहा गया था कि यदि परिसर को खाली नहीं किया गया तो बेदखली की कार्यवाही शुरू कर दी जाएगी।

US, UK और फ्रांस भारत के साथ: आतंकी मसूद अज़हर को ब्लैक-लिस्ट करने का प्रस्ताव UNSC में पेश

पुलवामा हमले का मास्टरमाइंड मसूद अज़हर को सुरक्षा परिषद द्वारा ब्लैक-लिस्ट कराने की भारत की कोशिशों को कूटनीतिक स्तर पर बड़ी सफलता मिलती दिख रही है। फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के संस्थापक मसूद को ब्लैक-लिस्ट करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए 13 मार्च तक की समयसीमा तय की गई है। बुधवार (फरवरी 27, 2019) को पेश किए गए इस प्रस्ताव में अज़हर की अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर प्रतिबंध लगाने और उसकी संपत्तियों को जब्त करने की माँग की गई है।

ज्ञात हो कि इससे पहले 2009 और 2016 में मसूद अज़हर पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाया जा चुका है। 2016 में पठानकोट हमले के बाद लाए गए इस प्रस्ताव पर फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत का साथ दिया था। 2017 में अमेरिका ने ब्रिटेन और फ्रांस के समर्थन से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रेज़ोलुशन 1267 पारित किया था, जिसमें पाकिस्तानी आतंकी मसूद अज़हर पर प्रतिबंध की माँग की गई थी। आपको बता दें कि चीन हमेशा से इस प्रस्ताव के पास होने में अड़ंगा लगाता रहा है।

ताजा प्रस्ताव में ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने कहा:

“पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद का मुखिया मसूद अजहर ने ही भारत के जम्मू-कश्मीर में 14 फरवरी को किए आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है। इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे।”

फ्रांस इस मोर्चे पर पूरी तरह भारत के साथ खड़ा नज़र आ रहा है। 1 मार्च से फ्रांस औपचारिक तौर पर सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालेगा। बता दें कि 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता हर माह एक देश से दूसरे देश के पास चली जाती है। फ्रांस द्वारा इसकी अध्यक्षता ग्रहण करने के साथ ही मसूद अज़हर के ख़िलाफ़ कुछ कड़े क़दम उठाए जाने की उम्मीद है। चीन द्वारा इस प्रस्ताव का फिर से विरोध किए जाने की संभावना है।

पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद फ्रांस ने कड़ी निंदा करते हुए कहा था कि वह जिम्मेदार आतंकवादियों पर प्रतिबंध लगाने और उनके वित्तीय नेटवर्क पर रोक लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को लामबंद करने में पूरी तरह लगा हुआ है।