Wednesday, October 9, 2024
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रिक्शा चलाकर 9 स्कूल खोलने वाले अहमद अली की कहानी, जिन्हें ‘मन की बात’ ने दी पहचान

“मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।” जब भी अहमद अली जैसे लोगों की कहानियों से रूबरू होता हूँ तो रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी द्वारा रचित ‘रश्मिरथी’ की ये पंक्तियाँ अनायास ही दिमाग में गूँज उठती हैं। भारत देश का एक सत्य यदि इसकी गरीबी, अशिक्षा और आज़ादी के वर्षों बाद भी अभाव में जीने वाली बड़ी जनसंख्या है, तो असम के रिक्शा चलाने वाले अहमद अली की कहानी भी इसका दूसरा सत्य है।

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि प्रेरणाहीन जीवन पशु के सामान होता है और हम सबके भीतर एक नायक हमेशा विद्यमान होता है, जरुरत बस उसे जगाने की होती है। सुबह उठकर रिक्शा चलाना और शाम को लकड़ियाँ काटना अहमद अली की दिनचर्या थी। लेकिन इस दिनचर्या के बीच ही अहमद अली को एक चिंता थी, जो उन्हें दिन-रात खटकती थी और वो थी बच्चों की पढ़ाई की।

बच्चों की शिक्षा निश्चित रूप से हर माँ-बाप की चिंता हो सकती है, लेकिन मेट्रो शहरों में- सुविधा के बीच बैठे व्यक्ति और असम के एक दूरस्थ इलाके में रहने वाले व्यक्ति की इस चिंता में पीढ़ियों, सदियों से चली आ रही सामजिक उपेक्षा और आर्थिक विपन्नता का फासला होता है। ज़ाहिर सी बात है कि जिस गाँव और कस्बे ने कभी स्कूल ही नहीं देखा और सुना हो, वहाँ का एक रिक्शा चलाने वाला अहमद अली यदि अपनी अगली पीढ़ी की शिक्षा और सम्मान को लेकर चिंतित है, तो वह अवश्य ही समाज के लिए एक बड़ी प्रेरणा का विषय बन जाता है।

अहमद अली के प्रयासों को देशभर में पहचान तब मिली, जब मार्च 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ रेडियो प्रसारण के 42वें संस्करण के माध्यम से शिक्षा के लिए किए गए उनके योगदान को जनता के सामने रखा। प्रधानमंत्री ने अपने कार्यक्रम में अहमद अली के निःस्वार्थ सेवा भाव को बड़ी ही उत्सुकता के साथ लोगों के सामने पेश किया था।

वर्ष 1970 की बात है, जब अहमद अली को पहली बार अपने बच्चों की शिक्षा और उनके जीवन स्तर को लेकर चिंता हुई। कारण था कि वो नहीं चाहते थे कि उनकी आने वाली पीढ़ी भी उसी तंगी, बदहाली और अशिक्षा के अन्धकार के बीच अपना जीवन गुजार दे। इसलिए उन्होंने अपने प्रयासों से, मेहनत मजदूरी के साथ एक ऐसे सपने की दिशा में अहर्निश प्रयास किए, जिसकी वजह से वो सारे देशवासियों के लिए मिसाल बन गए।  

असम के करीमगंज जिले के मधूरबंद गाँव के रहने वाले अहमद अली अपने रिक्शे में स्कूली बच्चों को लाने और ले जाने का काम करते थे। इसी बीच उनके मन में इस विचार ने जन्म लिया कि उनके बच्चे भी ऐसा जीवन जीने का अधिकार रखते हैं, जिसमें शिक्षा हो, शिष्टाचार हो और गरीबी ना हो।

अहमद अली का मानना है कि वो इस काम के लिए प्रधानमंत्री के शुक्रगुजार हैं कि उनके कार्य को आज देशभर में सराहना मिल रही है। पिछले 4 दशकों में अहमद अली ने अपनी कड़ी मेहनत से मधूरबंद और उसके आस-पास के इलाकों में 9 स्कूलों का निमार्ण कराया। जिसमें 3 प्राथमिक स्कूल, 5 माध्यमिक स्कूल और 1 हाई स्कूल शामिल है।

पहला स्कूल बनाने के लिए अहमद अली ने अपनी ही पुस्तैनी जमीन का एक टुकड़ा बेच दिया था और दूसरा हिस्सा स्कूल के लिए दान कर दिया था। स्कूल चलाने के लिए कुछ धन अहमद अली ने अपनी मेहनत, बचत और कुछ चंदे के रूप में जुटाया। अहमद का समर्पण भाव और उनकी लगन देखकर इस काम में बहुत से ऐसे स्थानीय लोग भी उनके साथ जुड़ गए थे, जिन्होंने उनके प्रयासों की सराहना की और जिस तरह से भी वो मदद कर सकते थे उन्होंने की।

ऐसे भी दिन थे जब स्कूल चलाने के लिए आर्थिक कमी के कारण अहमद अली ने दिन में रिक्शा चलाया और रात को लकड़ी बेचने का काम किया। उस पूरे इलाके में एक भी स्कूल नहीं था और जब अहमद अली को पहली संतान हुई तब उन्हें इस कार्य की प्रेरणा भी मिली। कुछ लड़के तो शिक्षा ग्रहण करने के लिए बाहर के नजदीकी शहर चले भी जाते थे, लेकिन लड़कियाँ फिर भी स्कूल जाने से वंचित रह जाती थीं।

अहमद अली ने दृढ़ संकल्प किया और एक शिक्षा अधिकारी की मदद से वर्ष 1978 में माध्यमिक स्कूल का निर्माण किया। ये वो शिक्षा अधिकारी थे जिन्हें अहमद अली अक्सर अपने रिक्शा में बिठाकर ले जाया करते थे।  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अहमद अली का ज़िक्र अपने ‘मन की बात’ रेडियो प्रसारण के माध्यम से किया, उसके बाद उन्हें समाज में अलग पहचान मिलनी शुरू हुई। नरेंद्र मोदी ने अपने प्रोग्राम में कहा था, “मुझे आपके पत्रों में पढ़ने को मिलता है कि कैसे असम के करीमगंज के एक रिक्शा-चालक अहमद अली ने अपनी इच्छाशक्ति के बल पर ग़रीब बच्चों के लिए 9 स्कूल बनवाए हैं, तब इस देश की अदम्य इच्छाशक्ति के दर्शन होते हैं।”

आज के समय में शिक्षा के लिए किए गए उनके प्रयास प्रेरणा बन चुके हैं। अहमद अली का मानना है कि यद्यपि वो स्वयं अशिक्षित हैं, लेकिन उन्होंने एक शिक्षित अशिक्षित व्यक्ति के बीच के फासले को महसूस किया है और इसी बात ने उन्हें दिशा देने का काम किया। वर्ष 1990 में यह एक हाईस्कूल में तब्दील हो चुका था, जिसमें प्रति वर्ष 100 से ज्यादा छात्र पढ़ रहे थे। लेकिन नई चुनौती अब हाईस्कूल के बाद बच्चों की  शिक्षा को जारी रखना है।

82 साल के अहमद अली आज गुवाहाटी से करीब 300 किलोमीटर दूर एक गाँव में रह रहे हैं। आँकड़े चाहे कुछ भी कहें, भारत देश का एक बड़ा वर्ग अभी भी ऐसा है, जो आज भी शिक्षा, गरीबी और सामाजिक पिछड़ेपन में जी रहा है। इसके लिए हम चाहें तो शासन-प्रशासन की इच्छाशक्ति को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। लेकिन भारत देश में अहमद अली जैसी प्रेरणाएँ हैं, जो इस बात का उदाहरण हैं कि इस देश का नागरिक चुनौतियों से लड़ने का हौसला रखता है।

इस रविवार (फरवरी 24, 2019) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात‘ प्रोग्राम का 53वाँ एपिसोड जारी किया। अपने इस कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने तमाम ऐसी पहल की हैं, जिनके माध्यम से देश के हर तबके को उनसे जुड़ने का मौका मिला। इस प्रोग्राम के माध्यम से जो सबसे बड़ा वर्ग सरकार में विश्वास करने लगा है, वह समाज का वो हिस्सा है, जो हमेशा उपेक्षित महसूस करता आया था।

विगत 5 वर्षों में हमने देखा कि मीडिया गिरोह ने अपनी भूमिका प्राइम टाइम से लेकर नई-पुरानी सड़कों तक, खूब सक्रियता से निभाई। मीडिया गिरोह ने सरकार की योजनाओं को गरीब और जरूरतमंदों तक पहुँचाने से बेहतर सरकार पर आए दिन मनगढंत आरोप लगाना समझा और इस कार्य में ही पूरा दम-खम लगा दिया। कभी असहिष्णुता के ‘हैशटैग’ चर्चा में उछाले गए तो कभी लोकतंत्र की हत्या को हवा देने का प्रयास किया गया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सफल कार्यकाल का शायद यही सबसे बड़ा कारण है कि वो अपने ध्येय से ध्यान न हटाकर सदैव लोककल्याण के लिए समर्पित रहे।

इस सरकार से पहले तक सत्तापरस्त लोग राजशाही में इतने व्यस्त हुआ करते थे कि उन्हें इस वर्ग पर ध्यान देने की कभी फुर्सत नहीं हो पाई थी। शायद यही कारण है कि जब भी प्रधानमंत्री शोषित और पिछड़े वर्ग को सम्मान और पहचान दिलाने का कार्य करते हैं तो यह मीडिया गिरोह अपने आकाओं के साथ नरेंद्र मोदी पर टूट पड़ता है। चाहे नरेंद्र मोदी को विपक्ष कितना भी घेरने का प्रयास करे लेकिन सच्चाई यह है कि वह आज एक ‘स्टेट्समैन’ और जनता के नेता हैं और भविष्य की सरकारों के लिए, चाहे वो किसी की भी हों, एक मील का पत्थर हैं।

जैश ने पाक आर्मी के साथ मिलकर पुलवामा हमले को अंजाम दिया, 8 साल पहले बॉर्डर पार से आई थी गाड़ी

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने दावा किया है कि उन्हें पुलवामा आत्मघाती हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने के पुख़्ता सबूत मिले हैं। NIA द्वारा जुटाए गए सबूत इस बात की पुष्टि करते हैं कि आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार और एक स्थानीय हैंडलर सहित चार से पाँच जैश-ए-मोहम्मद (JeM) आतंकवादी पुलवामा हमले की योजना बनाने से लेकर उसे अंजाम देने तक में शामिल थे।

इस हमले से जुड़ा एक और सच सामने आया है कि जिस लाल मारुति ईको का इस्तेमाल हमले के लिए किया गया था, वो पाकिस्तानी सेना की थी। इसी ईको में भारी मात्रा में RDX जैसा ख़तरनाक विस्फोटक था। जाँच अधिकारियों ने यह भी बताया कि यह मारुति ईको लगभग आठ साल पहले कश्मीर में पंजीकृत की गई थी, इसका मालिक अभी भी लापता है।

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी के एक अधिकारी ने OneIndia के साथ बातचीत में खुलासा किया कि हमले से पहले RDX को सीमा पार से कश्मीर में स्थानांतरित कर दिया गया था। RDX को जैश-ए-मोहम्मद के तस्करों द्वारा भारत में लाया गया था। इसके अलावा अधिकारी ने बताया कि चूंकि यह RDX भारी मात्रा में था, इसलिए इसे गुप्त रूप से स्थानांतरित किया गया था।

अधिकारी ने बताया कि पाकिस्तानी सेना द्वारा आतंकवादियों को RDX की आपूर्ति की गई थी, क्योंकि वे आतंकवादियों को ऐसे विस्फोटकों की आपूर्ति पहले से करते आए हैं।

NIA के जाँच अधिकारी ने कहा कि उनके पास हमले में इस्तेमाल किए गए वाहन की पूरी जानकारी है, जिसे कई स्तरों पर जाँचा गया है।

इस मामले की जाँच कर रहे अधिकारियों ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि ऐसी संभावना न के बराबर है कि उस कार में बम फट गया हो और विस्फोट के लिए दूर से ट्रिगर दबाया गया हो। इस हमले को अंजाम देने के लिए अहमद डार ने ही आत्मघाती हमलावर बनकर विस्फोटक को ट्रिगर किया था।

बता दें कि एक कार बम को वाहन-जनित तात्कालिक विस्फोटक उपकरण (VBIED) के रूप में भी जाना जाता है। तालिबानियों और फिलिस्तीनी आतंकवादी समूहों द्वारा इस तरह के कार बम का इस्तेमाल करना आम बात है। इस तरह के तरीके का इस्तेमाल, हमला करने के सबसे घातक तरीकों में से एक है, क्योंकि इससे बड़ी तबाही फैलाई जा सकती है।

पुलवामा हमले से पहले कश्मीर में अब तक कार बम का इस्तेमाल नहीं किया गया था। NIA की जाँच से यह पता चला है कि चूँकि मास्टरमाइंड, मोहम्मद उमैर को अफ़गानिस्तान में प्रशिक्षित किया गया था, उसने अपने प्रशिक्षण का लाभ उठाते हुए उसका प्रयोग पुलवामा हमले के रूप में किया।

इतने ख़ुलासे के बाद भी पाकिस्तान हमेशा से आतंकवादी गतिविधियों में ख़ुद के शामिल होने को नकारता रहा है, जबकि पुख़्ता तौर पर की गई जाँचों से यह स्पष्ट हो चुका है कि पुलवामा हमला पाकिस्तान के इशारे पर ही हुआ था।

कपिल सिब्बल के ‘Tiranga TV’ सहित 13 चैनलों को कारण बताओ नोटिस, मामला पाकिस्तान से जुड़ा

पुलवामा में 14 फ़रवरी 2019 को हुए आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके बाद भारत की कूटनीतिक सफलता से पाकिस्तान पर बढ़ते चौतरफा दबाव की वजह से वह अब युद्ध-उन्माद को बढ़ावा दे रहा है। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित पुलवामा आतंकवादी हमला सुरक्षा बलों पर सबसे वीभत्स हमलों में से एक है, जिसे यूँ ही भुलाया नहीं जा सकता। पुलवामा हमले के बाद, पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान की भूमिका से इनकार किया और उल्टा भारत पर मनगढंत आरोप लगाने का दोष मढ़ा। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस को 13 भारतीय टीवी चैनलों ने प्रसारित किया। उन सभी चैनलों को भारत सरकार द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

Opindia को विश्वसनीय स्रोतों से पता चला है कि जिन 13 चैनलों को कारण बताओ नोटिस प्राप्त हुए हैं, वे हैं:

1. ABP News
2. Surya Samachar
3. Tiranga TV
4. News Nation
5. Zee Hindustan
6. TOTAL TV
7. ABP Majha
8. News18 Lokmat
9. Jai Maharashtra
10. News 18 Gujarati
11. News24
12. Sandesh News
13. News18 India

जानकारी के अनुसार, पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता, मेजर जनरल आसिफ गफूर की मीडिया ब्रीफिंग के लिए EMMC ने इन टीवी चैनल्स की ट्रांसक्रिप्शन रिपोर्ट सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) को भेजी है।

कपिल सिब्बल के टेलीविजन चैनल, ‘तिरंगा टीवी’ (जो पहले HTN चैनल था, अभी भी यह नाम फाइनल नहीं है, क्योंकि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस नाम पर आपत्ति जताई है) को भेजे गए कारण बताओ नोटिस की छायाप्रति आप नीचे देख सकते हैं।

नोटिस में कहा गया है कि पुलवामा हमले के मद्देनजर, मंत्रालय ने 14 फरवरी 2019 को (आतंकी हमले के दिन) एक अधिसूचना जारी की थी कि ऐसी सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण के बारे में विशेष रूप से सावधान रहें:

1- हिंसा को प्रोत्साहित करने या उकसाने की संभावना हो
2- कानून और व्यवस्था के रख-रखाव के खिलाफ कुछ भी शामिल हो
3- राष्ट्र-विरोधी रवैये को बढ़ावा देता हो
4- ऐसा कुछ भी जो राष्ट्र की अखंडता को प्रभावित करता हो

नोटिस में कहा गया है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय को पता चला है कि तिरंगा टीवी ने 22 फ़रवरी 2019 को 15:41 से 16:02 के बीच पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता की प्रेस कॉन्फ्रेंस का प्रसारण किया था और यह नियमों और विनियमों का खुला उल्लंघन था।

कारण बताओ नोटिस में कहा गया है कि पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता की प्रेस कॉन्फ्रेंस के प्रसारण ने उपर्युक्त नियमों का उल्लंघन किया है।

कारण बताओ नोटिस में यह भी उल्लेख किया गया है कि जिस समय पाकिस्तान गलत बयानी कर रहा था, जब पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता गलत तथ्य पेश कर रहे थे, तब चैनलों ने उस स्थिति की सही तस्वीर पेश करने के लिए कोई हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं किया।

प्रसारण नियमों के उल्लंघन पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस में, चैनलों से 7 दिनों के अंदर जवाब माँगा गया है। और पूछा गया है कि क्यों सरकार को उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू नहीं करनी चाहिए।

ED की पूछताछ से भागने के लिए वाड्रा का नया हथकंडा, माँगे 26000 पन्नों के दस्तावेजों की हार्ड कॉपी

दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने ED को निर्देश दिए हैं कि वह पाँच दिन के भीतर वाड्रा को उनके मामले से जुड़े सभी दस्तावेज़ों की हार्ड कॉपी सौंप दे।

यह निर्देश कोर्ट ने रॉबर्ट की याचिका पर ईडी को दिया है जिसमें वाड्रा ने ईडी से अपने ऊपर हो रही पूछताछ से जुड़ी 26 हज़ार पेज के दस्तावेजों की हॉर्ड कॉपी माँगी थी। इसके अलावा रॉबर्ट ने कोर्ट में एक और भी याचिका लगाई है जिसमें कहा था कि बिना दस्तावेजों को मुहैया कराए ईडी उनसे पूछताछ न करे।

दरअसल, रॉबर्ट के वकील केटीएस तुलसी ने कोर्ट में कहा है कि दस्तावेजों को बिना पढ़े यह जानना बेहद मुश्किल हो रहा है कि ईडी ने वाड्रा पर किस तरह के आरोप लगाए है और साथ में ईडी के पास इस मामले से जुड़े कौन से सबूत मौजूद हैं।

वाड्रा के बचाव में तुलसी ने कहा कि बिना दस्तावेजों को मुहैया कराए ही ईडी वाड्रा से घंटों सवाल-जवाब कर रही है।

वाड्रा के वकील की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने ईडी से पूछा था कि क्या 2 दिन में कागजात की हार्ड कॉपी मुहैया कराई जा सकती है? इसके जवाब में एजेंसी ने कहा कि हमने सॉफ्ट कॉपी पहले ही दे दी है। लेकिन, इस पर वाड्रा के वकील ने कहा कि वह सॉफ्ट कॉपी नहीं खुल रही है। इसलिए जज ने ED को 5 दिन के भीतर वाड्रा को सभी दस्तावेजों की हार्ड कॉपी देने के निर्देश दिए।

तुलसी की बहस के बाद ईडी के वकील डीपी सिंह ने कहा कि यह सभी चीजें मामले को लटकाने के लिहाज से की जा रही है। उन्होंने कहा कि वाड्रा के वकील ख़राब से ख़राब लैपटॉप भी यदि उनके सामने लेकर आएँगे तब भी वे दस्तावेजों की कॉपी कोर्ट के सामने दिखा देंगे।

ईडी के वकील ने 26 हजार पन्नों की हार्डकॉपी देने वाली बात पर कहा कि सोचिए इस पर कितना कागज़ बर्बाद होगा और ईको सिस्टम के लिए इसे किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। बता दें कि लंदन से जुड़ी सम्पत्ति पर हो रही पूछताछ में रॉबर्ट की अंतरिम बेल की गुहार को 16 फरवरी से बढ़ाकर 2 मार्च तक के लिए कर दिया गया है।

25942 बलिदान अब कभी भुलाए नहीं जाएँगे, PM मोदी ने नेशनल वॉर मेमोरियल किया देश के नाम

कार्यक्रम की शुरुआत भारत की रक्षा मंत्री ने किया। दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने पूर्व सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा:

  • ‘जब आप घर जाएँ तो उन्हें हमारे बारे में बताएँ, बताएँ कि उनके कल के लिए हमने अपना आज सर्मपित कर दिया है।’ हमारे देश के बहादुर सैनिकों के अंतिम शब्द हमें हमेशा याद रहते हैं, यह स्मारक भी आज उनकी याद में देश को सर्मपित किया जा रहा है।
  • आज देश को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक समर्पित किया जाएगा, इस स्मारक का हमने काफी लंबे समय तक इंतजार किया है।
  • यह युद्ध स्मारक हमारे बहादुर सैनिकों के शौर्य और बलिदान का प्रतीक है, आज हम कह सकते हैं कि हमने देश के लिए एक और तीर्थ स्थल का निर्माण किया है और मैं उम्मीद करती हूँ कि देश का हर नागरिक यहाँ जरूर आएगा।
  • हमने हमारे पूर्व सैनिकों की कई माँगों और जरूरतों को पूरा किया है और आने वाले समय में और भी माँगों को पूरा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं।

इसके बाद रक्षा मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मंच पर आमंत्रित किया। पीएम मोदी के भाषण की प्रमुख बातें :

  • देश पर संकट चाहे दुश्मन के कारण आया हो या प्रकृति के कारण, हमारे सैनिकों ने सबसे पहले हर मुश्किल को अपने सीने पर लिया है।
  • हमारे देश की सेना दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं में से एक है।
  • आज मुझे बहुत संतोष है कि थोड़ी देर बाद आपका और देश का, दशकों लंबा इतंज़ार खत्म होने वाला है। आज़ादी के सात दशक बाद मां भारती के लिए बलिदान देने वालों की याद में निर्मित राष्ट्रीय समर स्मारक, उन्हें समर्पित किया जाने वाला है।
  • इस ऐतिहासिक स्थान पर मैं, पुलवामा में शहीद हुए वीर सपूतों, भारत की रक्षा में सर्वस्व न्योछावर करने वाले हर बलिदानी को नमन करता हूं। मैं राष्ट्र रक्षा के सभी मोर्चों पर, मुश्किल परिस्थितियों में डटे हर वीर-वीरांगना को भी नमन करता हूँ।
  • कई दशकों से निरंतर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की मांग हो रही थी, कुछ प्रयास हुए लेकिन कोई ठोस कार्य नहीं हुआ, आपके आर्शीवाद से हमने 2014 में इस स्मारक का कार्य शुरू किया और इस कार्य को तय समय पर पूरा किया।
  • वन रैंक वन पेंशन के लिए पिछली सरकारों में पूर्व सैनिकों को कितना संघर्ष करना पड़ा, आंदोलन करना पड़ा, इसका देश साक्षी रहा है।
  • हमारे प्रयासों में दुनिया के बड़े-बड़े देश हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते हैं। यही कारण है कि 2016 में हमारे International Fleet Review में 50 देशों की नौ-सेनाओं ने हिस्सा लिया था। यही कारण है कि एक के बाद एक देश हमारे साथ रक्षा सहयोग के समझौते करना चाहते हैं।
  • बहुत लंबे समय से आपकी माँग थी कि आपके लिए सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल बनाया जाए। आज इस ऐतिहासिक अवसर पर मुझे आपको ये बताने का सौभाग्य मिला है कि एक नहीं बल्कि हम ऐसे 3 सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल बनाने जा रहे हैं।
  • पहले वाली सरकार का रवैया सैनिकों को लेकर जो रहा वो मुझे ज्यादा बेहतर तरीके से आप जानते हैं। उन्होंने सैनिकों के जीवन और सुरक्षा को कभी गंभीरता से नहीं लिया।
  • PM मोदी ने पूर्व सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारी सरकार जवानों को बुलेट प्रूफ़ जैकेट देने का कार्य पूरा किया।
  • देश की सेना का मनोबल, देश की सुरक्षा तय करता है, इसलिए हमारे सभी प्रयासों में हमारी सोच और हमारे अप्रोच का केंद्रबिंदु हमारे सैनिक, हमारे फौजी भाई हैं।
रात के वक्त नेशनल वॉर मेमोरियल

प्रधानमंत्री मोदी ने नेशनल वॉर मेमोरियल पहुँच कर वीरगति को प्राप्त हुए 25942 रक्षाबलों को याद किया। एक-एक पुरोहित, मौलवी, सिख, पादरी और बौद्ध भिक्षु ने देश के लिए बलिदान हुए सभी जवानों के नाम पर श्रद्धांजलि दी।

प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक को देश के नाम किया। रिट्रिट बिगुल बजते ही यह कार्यक्रम समाप्त हुआ। इसके बाद मोदी ने वहाँ आए सभी गणमान्य लोगों का अभिवादन किया।

किसानों-कर्मचारियों को तोहफ़े: हरियाणा के ‘मनोहर’ बजट की मुख्य बातें

वित्त मंत्री कैप्टेन अभिमन्यु द्वारा आज सोमवार (फरवरी 25, 2019) को पेश किए गए हरियाणा बजट में किसानों एवं सरकारी कर्मचारियों सहित सभी वर्गों के लिए तोहफ़ों की भरमार है। यह मनोहर लाल खट्टर सरकार के कार्यकाल का आख़िरी बजट भी है। वित्त मंत्री अभिमन्यु ने बजट पेश करने के लिए विधानसभा प्रस्थान करने से पहले हवन किया। ₹1,32,000 करोड़ के इस बजट में किसानों पर विशेष ध्यान दिया गया है। केंद्र में पीएम किसान निधि की ही तर्ज पर राज्य में किसान पेंशन योजना का प्रस्ताव किया गया है, जिस पर सरकार को कुल ₹1500 करोड़ ख़र्च आएँगे।

कैप्टेन अभिमन्यु ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र से अपना बजट अभिभाषण शुरू किया। उन्होंने कौटिल्य के इस प्राचीन पुस्तक से उद्धरण लेते हुए कहा- ‘प्रजा सुखे सुखं राजः प्रजानां च हिते हितम्। नात्मप्रियं प्रियं राजः प्रजानां तु प्रियं प्रियम्। यानी कि प्रजा के सुख में सरकार का सुख है, प्रजा के हित में सरकार का हित है, प्रजा को जो प्रिय है, वही सरकार को प्रिय है।’ राज्य सरकार द्वारा अपने बजट में कृषि विभाग के लिए ₹3884.33 करोड़ का प्रस्ताव किया गया। इसमें कृषि, पशुपालन, मत्स्यपालन और बागवानी के लिए अलग-अलग फंड जारी किए गए।

₹750 करोड़ की कुल लागत से शाहबाद चीनी मिल में 60 केएलपीडी का एथनोल प्लांट लगाने का प्रावधान किया गया है। पीएम किसान की तर्ज पर शुरू किए गए किसान पेंशन योजना से ₹15,000 मासिक से कम आय वाले और पाँच एकड़ तक की भूमि के किसान परिवारों को लाभ होगा। इस बार का कृषि बजट 2018-19 के ₹3670.29 करोड़ बजट की तुलना में 4.5% ज्यादा है। 

इसके अलावा स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी ख़ास ध्यान दिया गया है। वित्त मंत्री ने कहा कि हरियाणा सरकार गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया करवाने के लिए प्रतिबद्ध है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण क्षेत्र के लिए वर्ष 2019-20 में ₹5,040.65 करोड़ आवंटित करने का प्रस्ताव किया गया है, जोकि वर्ष 2018-19 के ₹4,486.91 करोड़ के संशोधित अनुमान परिव्यय पर 12.3% की वृद्धि है।

उच्च शिक्षा के लिए 2019-20 के लिए ₹2,076.68 करोड़ के परिव्यय का प्रस्ताव किया गया। यह बजट अनुमान 2018-19 पर 17.1% की वृद्धि को दिखाता है। इसके अलावा बिजली सेक्टर का विशेष ध्यान रखा गया है। लंबित बिजली बकाया सम्बंधित समस्याओं के समाधान के लिए ‘बिजली निपटान योजना’ की शुरुआत की गई। इसके तहत कई घरेलू बिजली उपभोक्ताओं के बिल माफ़ कर दिए गए। सब्सिडी पर बिजली की दरें घटाकर आधी कर दी गई। वित्तमंत्री ने बजट अभिभाषण का समापन कौटिल्य की इन पंक्तियों के साथ किया:

“कर लेने वाले को करदाता से उसी कुशलता से कर लेना चाहिए जैसे एक मधुमक्खी फूल पर बैठकर उससे पराग लेती है और फूल का कुछ भी नहीं बिगड़ता।”

हरियाणा विधानसभा के बजट सत्र की कार्यवाही यहाँ देखें

इस बार के बजट में किसी प्रकार के नए कर का प्रावधान नहीं है। 2019-20 के लिए सैनिक एवं अर्ध-सैनिक विभाग कल्याण के लए ₹211.30 करोड़ का बजट प्रस्तावित है, जो बजट अनुमान 2018-19 के ₹128.81 करोड़ से 64% अधिक है। जबकि कर्मचारी राज्य बीमा स्वास्थ्य के लिए ₹172.49 करोड़ का बजट दिया गया।

ऊना उत्कर्ष योजना: हर नुक्कड़ पर खुली लड़कियों के नाम पर दुकान

हिमाचल प्रदेश के ऊना में सरकार द्वारा लागू की गई ‘ऊना उत्कर्ष योजना’ ने लड़कियों को मिलने वाली अहमियत की तस्वीर को बदलना शुरू कर दिया है। जहाँ कुछ समय पहले तक लोग दुकानों के नाम लड़को के नाम पर रखते थे, वहीं इस योजना के बाद से लड़कियों के नाम पर दुकानों के नाम रखे जा रहे हैं।

भले ही कुछ लोग इस पहल को आम बात कहकर नकार दें, लेकिन हकीकत तो यह है कि इस कदम से लड़कियों की एहमियत को बुलंद आवाज मिल रही है। इस योजना के बाद से बहुत सी ऐसी दुकानें ऊना गाँव में देखने को मिल जाएँगी, जो लड़कियों के नाम पर खुली हैंं।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार दौलतपुर चौक सहित कई अन्य गाँवों में ऐसे साइनबोर्ड लगे दिख जाएँगे जो लड़कियों के नाम पर हैं। महिला एवं बाल विकास के जिला प्रोग्रामिंग अफसर सतनाम सिंह ने इस योजना पर कहा कि उन्हें शुरूआत में काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। शुरू में लोग बेटियों के नाम पर दुकानों के नाम रखने के लिए सहमत नहीं हुए थे, लेकिन धीरे-धीरे मान गए और अब बदलाव दिखने लगा है।

इस योजना की दिखती सफलता पर अधिकारियों का कहना है कि प्रशासन द्वारा शुरू की गई कई पहल में से यह वह महत्वपूर्ण पहल है, जिससे बच्चियाँ यह महसूस कर रही हैं वह भी ख़ास हैं, इसे उनकी सशक्ति से भी जोड़ के देखा जा रहा है। इसके विस्तार के लिए पंचायतों में भी कहा गया है कि वह कम से कम तीन बच्चियों के नाम की सिफारिश करें, ताकि उनकी तस्वीर पोस्टर पर लग पाए। और, उन पोस्टर्स पर लिखा हो “हमारे गाँव की बेटी, हमारी शान”

इसी दिशा में अंबोआ गाँव में भी प्रीती शर्मा नाम की लड़की के पोस्टर लगाए गए हैं, प्रीती यहाँ की स्थानीय निवासी हैं। प्रीती एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं, और फ़िलहाल एमडी की तैयारी कर रही हैं।

इतना ही नहीं इस योजना के प्रभाव से अब लोग घर के बाहर लगे नेमप्लेट को बदलकर उन पर महिलाओं के नाम लिखवा रहे हैं। मावा खोलान की प्रधान संगीता देवी ने इस पर कहा कि लड़कियाँ आज बहुत अच्छा कर रही हैं, और लोग जानते हैं कि आने वाला समय उनका है।

कश्मीरी पत्रकार हुआ था रोड रेज का शिकार, अफवाह थी हेट-क्राइम वाली ख़बर! वापस लिया पुलिस केस

पुणे में कश्मीरी पत्रकार जिब्रान नज़ीर ने शिक़ायत दर्ज की थी कि उन पर स्थानीय युवाओं द्वारा कश्मीरी होने के कारण ‘हमला’ किया गया था। हालाँकि, पुलिस ने आरोपित दत्तराय लाहोटे और अज़हरुद्दीन शेख को गिरफ़्तार भी कर लिया था। लेकिन इस मामले में नया मोड़ ये आया है कि शिक़ायत दर्ज कराने वाले नज़ीर ने अपनी शिक़ायत वापस ले ली और दावा किया कि उन्हें पक्के तौर पर यह नहीं पता कि उन पर हुआ ‘हमला’ उन्हें टारगेट करके किया गया था।

रिपोर्ट की मानें तो नज़ीर पर हमले की शुरुआत रोड रेज जैसा है। जानकारी के अनुसार नज़ीर बाइक पर सवार था। जैसे ही वो रेड सिग्नल पर रुका तभी दो युवक लगातार हॉर्न बजा रहे थे। इसके बाद नज़ीर के साथ उन दो युवकों की बहस होने लगी। नज़ीर ने बताया कि दोनों ने कथित तौर पर उस पर चिल्लाना शुरू कर दिया क्योंकि उसकी बाइक में जो नंबरप्लेट थी वो हिमाचल प्रदेश से पंजीकृत थी। नज़ीर ग़ुस्से में चिल्लाया और कहा कि वो हिमाचल से नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर से है। तब दोनों युवकों ने कथित रूप से उसकी पिटाई कर दी और कहा कि वो उसे वापस कश्मीर भेज देंगे।

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, उन युवकों ने नज़ीर से न सिर्फ़ माफ़ी माँगी बल्कि उसके वाहन की मरम्मत कराने का वादा भी किया। इसके बाद नज़ीर ने अपनी शिक़ायत वापस ले ली।

वहीं Newslaundry की एक ख़बर के अनुसार, हमलावरों ने उसे आतंकवादी भी बताया था। नज़ीर को मारते हुए वे दोनों युवक बार-बार उसे कश्मीर वापस जाने के लिए कह रहे थे। लेकिन जब हमलावरों को यह पता चला कि वो एक पत्रकार है तो उनमें से एक ने नज़ीर का प्रेस कार्ड छीन लिया और उनसे कहा कि वह कश्मीर में अपने घर वापस चले जाएँ और वहाँ जाकर पत्रकारिता करें।

अब इन परिस्थितियों में कुछ सवाल एकाएक ही उठ खड़े होते हैं, जैसे कि आख़िर नज़ीर ने शिक़ायत वापस क्यों ले ली, जबकि उसके साथ मारपीट हुई थी? क्या नजीर द्वारा बताई गई घटना की जानकारी में कोई गड़बड़ थी, जिसे उसने ग़लत रूप देने की कोशिश की?

फ़िलहाल, पुणे पुलिस ने संज्ञान लेते हुए इस मामले को अपराध के रूप में दर्ज कर लिया है। बता दें कि अब दत्ताराय और अज़हरुद्दीन के ख़िलाफ़ धारा-279 (रैश ड्राइविंग), 337 (दूसरों की जान ख़तरे में डालने या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को नुक़सान पहुँचाना) और आईपीसी की धारा-323 (जान बूझकर चोट पहुँचाने के उद्देश्य से) के तहत दर्ज किया जाएगा।

गुजरात तट से गोरखपुर तक सबसे लंबी LPG पाइपलाइन: पूर्वांचल के विकास में मोदी ने जोड़ा नया अध्याय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जुलाई 2016 में फर्टिलाइजर के गोरखपुर के मैदान में एम्स और खाद कारखाने का शिलान्यास करने आए थे। तब उन्होंने कहा था कि एम्स और खाद कारखाने की ही नीव नहीं रख रहे हैं, बल्कि पूर्वांचल के विकास की भी नीव रख रहे हैं। करीब ढाई साल बाद रविवार (फ़रवरी 24, 2019) को फर्टिलाइजर के इसी मैदान से प्रधानमंत्री ने एम्स की ओपीडी का उद्घाटन, किसान सम्मान योजना की शुरुआत सहित ₹9,000 करोड़ से अधिक की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण कर उस नीव पर विकास की भव्य इमारत खड़ी होने का ऐलान किया।

एलपीजी गैस पाइप लाइन

गोरखपुर में आयोजित किसान मोर्चा के दो दिवसीय सम्मेलन में आखिरी दिन गोरखपुर पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘गोरखपुर-आजमगढ़ लिंक एक्सप्रेस-वे’ और ‘गोरखपुर-कांडला LPG गैस पाइप लाइन‘ जैसी कई परियोजनाओं की आधारशिला रखकर पूर्वांचल के विकास में नया अध्याय जोड़ दिया।

पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक, यह देश की एक चौथाई आबादी को रसोई गैस की आपूर्ति करेगा। सरकारी तेल कंपनी इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन (IOC) गुजरात तट से पूर्वी उत्तर प्रदेश के शहर गोरखपुर तक गैस पाइपलाइन बिछाएगी।

खाद कारखाना चलाने के लिए गुजरात के कांडला से गोरखपुर तक LPG गैस पाइप लाइन लगाए जाने की परियोजना का प्रधानमंत्री ने अपनी गोरखपुर रैली के दौरान शिलान्यास कर दिया है। इस योजना के तहत 2,757 किलोमीटर लंबी गैस पाइप लाइन लगाई जाएगी। गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों से होकर आने वाली इस पाइप लाइन से खाद कारखाने के अलावा 13 बाटलिंग प्लांटों को गैस आपूर्ति की जाएगी।

IOC गुजरात के कांडला में LPG आयात के बाद गैस को लंबी पाइपलाइन के जरिए अहमदाबाद (गुजरात), उज्जैन (भोपाल), कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और लखनऊ (उत्तर प्रदेश) होते हुए गोरखपुर तक पहुँचाएगी। यह संभवत: दुनिया में सबसे लंबी LPG पाइपलाइन होगी। पाइपलाइन से 3.75 मिलियन टन गैस हर साल गुजरेगी।

नेशनल वॉर मेमोरियल पर सिब्बल की घटिया राजनीति: भूल गए देश व कॉन्ग्रेस का इतिहास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज सोमवार (फरवरी 25, 2019) को नेशनल वॉर मेमोरियल का उद्घाटन करेंगे। 40 एकड़ के क्षेत्र में फैले इस वॉर मेमोरियल में हमारे 25,942 बलिदानी जवानों के नाम अंकित होंगे। यह पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है क्योंकि देश के लिए वीरगति को प्राप्त होने वाले जवानों को सम्मान मिलने जा रहा है। यह सर्वविदित है कि जो हमे छोड़ कर चले गए, हम उन्हें वापस नहीं ला सकते। लेकिन हाँ, हम उन्हें याद कर और उनका उचित सम्मान कर आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा ज़रूर दे सकते हैं। नेशनल वॉर मेमोरियल एक ऐसा ही प्रयास है। चक्रव्यूह की तर्ज पर बने इस मेमोरियल में चार वृत्ताकार परिसर होंगे। इसमें 21 परमवीर चक्र विजेताओं की मूर्तियाँ भी होंगी।

राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (NWM)

अब देश की सबसे पुरानी पार्टी ने इस वॉर मेमोरियल को लेकर राजनीति शुरू कर दी है। कपिल सिब्बल ने पूछा है कि क्या वॉर मेमोरियल से सैनिकों की ज़िंदगियाँ बच जाएँगी? साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर सवाल दागा कि उनकी सरकार ने पिछले 4 वर्षों में जवानों के लिए क्या किया है? कपिल सिब्बल शायद अपनी ही पार्टी का इतिहास भूल गए हैं क्योंकि वॉर मेमोरियल बनाने की माँग आज से नहीं बल्कि 60 वर्षों से चली आ रही है। उनकी सरकार ने इसे तभी से ठंडे बस्ते में डाल रखा था। कपिल सिब्बल के बेतुकी बातों का जवाब देने से पहले ज़रूरी है कि हम पहले वॉर मेमोरियल के इतिहास को देखें ताकि कॉन्ग्रेसीयों के दोहरे रवैये पर से पर्दा उठ सके।

नेशनल वॉर मेमोरियल और कॉन्ग्रेस: जवानों के साथ 6 दशक का अन्याय

सबसे पहले सशस्त्र बलों ने 1960 में नेशनल वॉर मेमोरियल बनाने की माँग की थी, जिसे तत्कालीन नेहरू सरकार ने तवज्जोह नहीं दिया। आख़िर क्या कारण है कि जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार ने वॉर मेमोरियल का निर्माण कराना उचित नहीं समझा? चाहे वह ‘वन रैंक वन पेंशन (OROP)’ हो या ‘नेशनल वॉर मेमोरियल (NWM)’, सशस्त्र बलों के जवानों की माँगों को नज़रअंदाज़ करना कॉन्ग्रेस की फ़ितरत रही है। अब जब 60 वर्षों बाद जवानों की इस माँग पर ध्यान देते हुए मेमोरियल का निर्माण कराया गया है, कॉन्ग्रेस पार्टी को खुजली हो रही है।

2009 में 49 वर्षों बाद कॉन्ग्रेस की तंद्रा टूटी और तत्कालीन यूपीए सरकार ने प्रणब मुखर्जी (उनके राष्ट्रपति बनने से पहले) की अध्यक्षता में एक मंत्रिमंडलीय समीति का गठन किया। इसके बाद इंडिया गेट के पास वॉर मेमोरियल बनाने की बात शुरू हुई और कॉन्ग्रेस सरकार के मंत्रालय आपस में ही लड़ बैठे। शहरी विकास मंत्रालय ने इंडिया गेट के पास वॉर मेमोरियल बनाने का विरोध किया। हेरिटेज कमेटी और केंद्रीय विस्टा कमेटी ने सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि विरासतों के साथ किसी भी प्रकार की छेड़-छाड़ नहीं होनी चाहिए।

यह सब इसीलिए हो रहा था क्योंकि सरकार के पास इच्छाशक्ति का अभाव था। अगर सरकार सच में गंभीर होती तो शायद 2010 तक यह मेमोरियल बन कर तैयार हो गया रहता। लेकिन विडम्बना देखिए कि 2012 राष्ट्र भारत-चीन युद्ध की 50वीं वर्षगाँठ मनाते हुए वीर सैनिकों के बलिदान को याद कर रहा था, तब तक सरकार के पास वॉर मेमोरियल के लिए कोई रूप-रेखा तय नहीं थी। अव्वल तो यह कि 2012 से पहले कभी भी भारत सरकार ने 1962 के बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने की ज़रूरत तक महसूस नहीं की। 2012 में जब पहली बार ऐसा हुआ, तब तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने इंडिया गेट के पास वॉर मेमोरियल बनाने का ऐलान किया।

आज कपिल सिब्बल जिस वॉर मेमोरियल को कोसने चले हैं, उसके निर्माण का ऐलान उनके ही मंत्रिमंडल साथी ने किया था। क्या कपिल सिब्बल एके एंटोनी से यह पूछने की ताक़त रखते हैं कि उन्होंने अक्टूबर 2012 में नेशनल वॉर मेमोरियल बनाने की बात क्यों कही थी? जिस सिब्बल की सरकार ने सुरक्षाबलों की 50 वर्ष से चली आ रही माँग के सामने अंततः झुकते हुए वॉर मेमोरियल का अनुमोदान किया था, आज वही पार्टी उसे कोस रही है। इसीलिए कपिल सिब्बल से बार-बार कहा जाता है- येक पे रहने का, या तो घोड़ा बोलो या चतुर।

कॉन्ग्रेस पार्टी में कपिल सिब्बल अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जिन्होंने वॉर मेमोरियल का विरोध किया हो। जब एके एंटोनी ने नेश्ननल वॉर मेमोरियल का ऐलान किया था, तब दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इसका विरोध किया था। तीन केंद्रीय मंत्रियों (कमलनाथ, शिंदे, एंटोनी) को अलग-अलग पत्र लिख कर उन्होंने इंडिया गेट के पास प्रस्तावित इस मेमोरियल का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि शहर के लोगों के लिए इंडिया गेट एकमात्र प्रसिद्ध ‘हैंगआउट प्लेस’ है और मेमोरियल के बनने से लोग यहाँ आना कम कर देंगे।

मोदी ने 2014 लोकसभा चुनाव से पहले ही कर दिया था ऐलान

जनवरी 2014 का समय था। अवसर था कालजयी गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ की स्वर्ण जयंती (50 वर्ष) का। मुंबई के रेसकोर्स में आयोजित इस समारोह में भारत रत्न लता मंगेशकर और तब भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार रहे मोदी के अलावा कई पूर्व सैनिक उपस्थित थे। इससे पहले लता मंगेशकर ने मोदी के प्रधानमंत्री बनने की कामना कर चुकीं थीं, जिसके बाद कुछ कॉन्ग्रेसी नेताओं ने उनका भारत रत्न वापस लेने की बात कह दी थी। लाखों लोगों की उपस्थिति के बीच उसी मंच से बोलते हुए मोदी ने कहा था:

“भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ अपने ‘जवानों के बलिदान’ के सम्मान में कोई युद्ध स्मारक नहीं बनाया गया। मुझे लगता है कि मेरे करने के लिए कुछ अच्छे काम छोड़ दिए गए हैं। भारत ने कई लड़ाइयाँ लड़ीं। इसमें हमारे हजारों जवान शहीद हुए, लेकिन उनकी शहादत को सम्मान देने के लिए कोई स्मारक नहीं है। क्या हमें युद्ध में शहीद हुए जवानों को याद नहीं करना चाहिए? क्या यहाँ एक युद्ध स्मारक नहीं होना चाहिए?”

इस से यह पता चलता है कि कॉन्ग्रेस भले ही जवानों की इस माँग को पूरा करने में विफल रही हो लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिमाग में यह चीज तब से थी, जब वो पीएम नहीं बने थे। इस मंच से उन्होंने किया था कि सत्ता में आते ही देश के सैनिकों की याद में युद्ध स्मारक का निर्माण कराया जाएगा। आज वह समय आ गया है जब देश को अपना युद्ध स्मारक मिलने जा रहा है। इसका राजनीतिकरण की कोशिश वही लोग कर रहे हैं, जो न तो इसका क्रेडिट लूटने लायक बचे हैं और न ही खुल कर इसकी आलोचना कर पा रहे हैं।

मोदी के सत्ता सँभालने के कुछ ही महीनों बाद 2015 में एक कैबिनेट बैठक में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के लिए बजट का प्रावधान किया गया। इसके लिए ₹176 करोड़ तत्काल जारी किए गए। अगस्त 2016 में भारत सरकार की वेबसाइट पर इसके निर्माण के लिए एक ‘ग्लोबल डिज़ाइन कम्पटीशन’ आयोजित किया गया। जनवरी 2019 को इसका निर्माण पूरा हुआ और आज प्रधानमंत्री स्वयं इसका उद्घाटन कर रहे हैं। यह सब समय-निष्ठा के साथ संभव हो पाया क्योंकि शासन के पास इच्छाशक्ति थी, जवानों के प्रति श्रद्धा है। कॉन्ग्रेस सरकार के पास शायद यह इच्छाशक्ति नहीं थी जिसके कारण यह प्रस्ताव घोषणाओं और वास्तविकता के बीच फँस कर 60 सालों तक लटका रहा।

युद्ध स्मारक प्राचीन भारत सहित अन्य महाशक्तियों की परम्परा रहे हैं

भारतीय संस्कृति, गर्व और इतिहास की पहचान रहा है युद्ध स्मारक। प्राचीन राजा-महाराजाओं ने जब भी कोई युद्ध जीता या आक्रांताओं पर विजय पाई, उन्होंने उसकी याद में एक युद्ध स्मारक बनवाया। वे युद्ध स्मारक सैनिकों के बलिदान का प्रतीक होने के साथ-साथ उनकी वीरता की गाथा कहते थे। कई चित्रकलाओं से उनकी बहादुरी को दर्शाया जाता था। क्या सिब्बल और कॉन्ग्रेस आज अपने ही इतिहास और संस्कृति को भूल कर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर सवाल खड़ी कर रही है?

युद्ध स्मारक हमारी परम्परा है, संस्कृति है (विजय स्तम्भ, चित्तौड़)

15वीं शताब्दी के मध्य में जब इस्लामी आक्रांताओं ने भारत पर क़हर बरपाना शुरू किया तब एक ऐसे योद्धा का उदय हुआ, जिसने सिर्फ़ राजस्थान ही नहीं बल्कि समस्त भारतवर्ष को राह दिखाने का कार्य किया। सुल्तान महमूद ख़िलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात में बैठे इस्लामी आक्रांताओं को धूल चटाने और सुल्तान को मांडू की तरफ भागने को मजबूर करने के बाद चित्तौड़ के राजा महाराणा कुम्भा ने विजय स्तम्भ (कीर्ति स्तम्भ) का निर्माण कराया। यह आज भी हमे अपने गौरवपूर्ण इतिहास की याद दिलाता है। मुस्लिम, जैन व हिन्दू प्रतीक चिह्नों से अंकित इस स्तम्भ पर इसे बनाने वाले कारीगरों तक के नाम जुड़े हुए हैं।

कौटिल्य ने कहा था कि राष्ट्र और उसके सैनिकों के बीच एक पवित्र अनुबंध होता है और राष्ट्र अगर सैनिकों के साथ उस अनुबंध का सम्मान करने में विफल होता है तो सरकार के पास ऐसे सैनिक रह जाएँगे जो राष्ट्र का सम्मान नहीं करेंगे। वर्षों से सुरक्षाबलों की माँगें न मान कर कॉन्ग्रेस चाणक्य के इस वचन के विपरीत कार्य कर रही थी जिसके परिणामस्वरूप हमारे जवानों को वो उचित सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वो हक़दार हैं।

विश्व के तमाम देशों में युद्ध स्मारक हैं जो बलिदानी सैनिकों की याद में बनाए गए हैं। इज़राइल और ब्रिटेन से लेकर हमारे बहुत बाद आज़ाद हुए बांग्लादेश तक- सभी ने अपने बलिदानी सैनिकों को उचित सम्मान देते हुए उनकी याद में स्मारक बनवाए। लेकिन, भारत में अब तक बलिदानियों को उसी इंडिया गेट पर श्रद्धांजलि दी जाती रही है, जिसे अँग्रेजों द्वारा विश्व युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए भारतीय सैनिकों की याद में बनवाया गया था। अर्थात यह, कि आज़ादी के बाद वीरगति को प्राप्त हुए भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए कोई अलग स्थल अब तक नहीं था।

सिब्बल की युद्ध स्मारक पर घटिया राजनीति

कपिल सिब्बल का राष्ट्रीय युद्ध स्मारक को लेकर जो बयान आया है, वह बेतुका है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि भारत का इतिहास रहा है कि जिन्होंने भी मातृभूमि के लिए त्याग किया है, उन्हें भुलाया नहीं जाता। क्या कपिल सिब्बल के घर में उनके स्वर्गीय पिता की तस्वीर नहीं है? क्या देश में हर दूसरे-तीसरे चौराहे पर नेहरू, इंदिरा की मूर्तियाँ नहीं हैं? क्या याद किए जाने का सर्टिफिकेट सिर्फ़ नेताओं के पास ही है, बलिदान देने वाले सैनिकों का कोई मोल नहीं? कॉन्ग्रेस को इस मानसिकता से बाहर निकलना पड़ेगा। स्मारक, प्रतिमाएँ और तस्वीरें सिर्फ़ नेताओं की नहीं बल्कि मातृभूमि को प्राण अर्पण करने वाले वीरों की भी बननी चाहिए।

नेशनल वॉर मेमोरियल की शानदार झलकियाँ (साभार: PIB)

कपिल सिब्बल को समझना चाहिए कि अगर कोई अपने किसी मृत रिश्तेदार की तस्वीर लगाता है तो ऐसा नहीं है कि उसके दूसरे रिश्तेदार अमर हो जाएँगे या फिर मृत लोग वापस आ जाएँगे। यह सम्मान का प्रतीक होता है उनका, वो हमारा साथ छोड़ गए। और, ये वीर जवानों ने तो हमारे लिए अपने प्राणों की बलि दी है, देश के लिए दी है। उनकी स्मृति तो सहेज कर रखी ही जानी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इनके त्याग का माहात्म्य समझें और इन्हे सम्मान देना सीखें। जिस दिन सिब्बल को इन जवानों के प्रति श्रद्धा हो जाएगी, उस दिन वह भी युद्ध समारक पर राजनीतिक कींचड़ उछालना बंद कर देंगे।