Saturday, October 5, 2024
Home Blog Page 5474

ग्राउंड रिपोर्ट #3: दिल्ली की बीमार यमुना कैसे और क्यों प्रयागराज में दिखने लगी साफ?

मैं अपनी यात्रा के तीसरे दिन बनारस से प्रयागराज जा रहा था। प्रयागराज जाने के समय मुझे क़मर जमील की वो पंक्ति याद आ गई, जिसमें उन्होंने कहा है, “या इलाहाबाद में रहिए जहाँ संगम भी हो, या बनारस में जहाँ हर घाट पर सैलाब है।” बनारस के घाटों पर सैलाब देखने के बाद अब मैं प्रयागराज को देखना चाह रहा था। क़मर जमील की शायरी में जिस इलाहाबाद की चर्चा है, उसी शहर का नाम अब प्रयागराज है।

पिछले कुछ सालों में सरकारी लूटपाट और भ्रष्टाचार की चपेट में फँसकर प्रयागराज शहर की ख़ूबसूरती धूमिल हो गई थी। कभी इसी प्रयागराज में संगम के किनारे बैठकर कोई नास्तिक हो या आस्तिक, हिंदू हो या मुस्लिम सभी तरह के लोग प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य में लीन हो जाते थे। जहाँ कुछ देर बैठने भर से लोगों को शांति और सुख की प्राप्ति होती थी।

पिछले कुछ सालों में उसी संगम में मिलने वाली दो प्रमुख नदियों गंगा और यमुना का पानी इतना गंदा हो गया था कि लोगों का संगम पर बैठना भी मुश्किल हो गया था। गंगा और यमुना दोनों ही नदियों में शहरों से निकलने वाले गटर और औद्योगिक कचरे को गिराया जाता रहा। सत्ता में बैठे लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए गंगा व यमुना जैसी नदियों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। ऐसे में जिस संगम में डुबकी लगाने के लिए देश-विदेश के करोड़ों लोग जमा हो रहे हैं, उस संगम को नज़दीक से देखना और महसूस करना बतौर रिपोर्टर मेरे लिए जरूरी था।

दो दिनों से लगातार गाड़ी की सवारी करके थक चुका था। ऐसे में वाराणसी से प्रयागराज जाने के दौरान रास्ते में भदोही नाम की जगह हमलोग चाय पीने के लिए रुके। हमारे साथ अलग-अलग संस्थानों के कुछ और भी पत्रकार थे, लेकिन यहाँ आपस में बात करने की बजाय मैंने समय का सदुपयोग करते हुए स्थानीय लोगों से बात करना उचित समझा।

चारों तरफ़ देखने पर ढाबे पर ही कुछ लोगों के साथ गहरे लाल रंग का लहँगा पहने एक लड़की पर मेरी नज़र गई। शायद वह लड़की भी यात्रा के दौरान चाय पीने के लिए ढाबे पर रुकी थी। पहली नज़र में देखने पर मुझे लगा कि लड़की किसी शादी समारोह से लौट रही है। मैं हर हाल में देश के वर्तमान हालात पर इस लड़की के विचार को जानना चाह रहा था। ऐसे में जैसे ही उस लड़की के करीब आकर मैंने हाइवे के बहाने बात छेड़ी, लड़की वहाँ से हट गई लेकिन उसके साथ खड़े गौरव श्रीवास्तव नाम के शख़्स ने बोलना शुरू कर दिया।

गौरव ने मुझे बताया, “भैया देखिए हाइवे कितना बेहतरीन बना है। अब दो से ढाई घंटे में वाराणसी से प्रयागराज आराम से जाया जा सकता है। रात में वाराणसी से शादी समारोह में हिस्सा लेकर इलाहाबाद लौट रहा हूँ, लेकिन रास्ते में जरा भी थकान महसूस नहीं हो रही है।”

इसके बाद गौरव से जब मोदी सरकार के कामकाज के बारे में हमने पूछा तो गौरव बताते हैं कि साहब सिर्फ़ शहर का नाम ही इलाहाबाद से प्रयागराज नहीं हुआ है, बल्कि नाम बदलने के साथ ही शहर में माफ़ियाओं के आतंक का भी अंत हो गया है। शहर की सड़कें चमचमाने लगी हैं। प्रयागराज की जो रौनक गुम हो गई थी, केंद्र व राज्य की भाजपा सरकार ने उसे वापस लाने का काम किया है। गौरव श्रीवास्तव ने बातचीत के दौरान ही बताया कि वो इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकील हैं।

इस तरह मैं भले ही उस लड़की की राय नहीं जान पाया, जिसका मुझे मलाल इसलिए है क्योंकि विकास के मुद्दों पर मेरे हिसाब से महिलाओं की राय पुरुषों से ज्यादा मायने रखती है। लेकिन उसके रिश्तेदार गौरव श्रीवास्तव से मुझे अपने रिपोर्ट का कच्चा माल मिल गया था। इसके बाद एक बार फिर हमारी गाड़ी हाइवे पर प्रयागराज की तरफ़ चल पड़ी।

प्रयागराज शहर में प्रवेश करने के बाद गाड़ी से उतरते ही मैंने एक बेहद ठंडी हवा के स्पर्श को महसूस किया। मैं इस समय गंगा पर बने उस ब्रिज पर खड़ा था, जहाँ से कई किलोमीटर दूर तक सिर्फ साधू-संतों की लंबी कतारें और उनके रहने के लिए लगाए गए तंबू व टेंट दिख रहा था। ब्रिज के नीचे से गंगा अपने रफ़्तार में बह रही थी, जबकि कुछ दूरी पर यमुना को गंगा में मिलते देखा जा सकता था।

मैं अपने साथियों के साथ संगम पर पहुँचा। ब्रिज से संगम की दूरी करीब 6-7 किलोमीटर है। मेरे साथ कई लोग थे और समय कम था इसलिए मुझे यह दूरी गाड़ी से ही तय करनी पड़ी। लेकिन मैंने महसूस किया कि कुंभ आने का असली मजा संगम पर बने इन अस्थाई तंबूओं के चारों ओर की गलियों में पैदल घूमने का ही है।

कुंभ में श्रद्धालुओं के लिए पूजा सामग्री बेचते स्थानीय लोग

इस बार का कुंभ कई मायने में अलग व अद्भुत है। उत्तर प्रदेश जल निगम के अधिकारी पीके अग्रवाल ने मुझे बताया कि वो बचपन से कई बार कुंभ आता रहे हैं, लेकिन इस बार कुंभ जितना अधिक साफ और पवित्र है, इतना पहले कभी नहीं था।

पीके अग्रवाल के बयान के बाद मैंने कुंभ को एक पत्रकार के नजरिए से देखना शुरू कर दिया। मैं देखना चाहता था कि क्या वाकई में कुंभ में पहुँचने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए अच्छी तैयारी की गई है या सबकुछ कागजी और हवा-हवाई है?

मैंने जैसे ही लघुशंका जाने की इच्छा ज़ाहिर की, पास खड़े एक सिपाही ने एक गलियारे की तरफ़ इशारा कर दिया। मैं जैसे ही उस गलियारे की तरफ़ बढ़ा तो देखा कि वहाँ सैकड़ों अस्थाई शौचालय बने हुए हैं। जब मैंने इसके बारे में पता किया तो पीके अग्रवाल ने मुझे बताया कि सरकार ने इस साल होने वाले कुंभ को हर हाल में स्वच्छ कुंभ बनाने का सोचा है।

यही वजह है कि कुंभ के दौरान 27,500 अस्थाई शौचालय बनाने के लिए सरकार ने 113 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यही नहीं, कुंभ में 6 मुख्य घाटों और 3 शवदाह गृहों के लिए भी सरकार ने 88.03 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इसके अलावा 21 अन्य घाटों के लिए भी सरकार ने 3.3 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।

कुंभ में 27,500 से अधिक अस्थाई शौचालय बनाए गए हैं

संगम में नहाने से पहले मेरे दिमाग में दिल्ली की यमुना की तस्वीर उभर आई। लेकिन जब घाट पर खड़े होकर हमने संगम की तरफ़ देखा तो दिल्ली में बीमार नज़र आने वाली यमुना प्रयागराज में बलखाती नजर आ रही थी। संगम पर खड़े होने के बाद शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो ख़ुद को संगम में डुबकी लगाने से रोक पाए।

मैंने भी कुछ पत्रकार साथी और नमामि गंगे के अधिकारी रजत गुप्ता के साथ संगम में डुबकी लगाई। इस दौरान जब मैंने रजत गुप्ता से पूछा कि तमाम बड़े शहरों की गंदगी को साथ लेकर प्रयाग आने वाली नदियों का पानी यहाँ साफ कैसे नजर आ रहा है, तो इसके जवाब में रजत गुप्ता ने बताया कि प्रयागराज शहर से निकलने वाले गंदे पानी को कुंभ के दौरान गंगा में मिलने से रोक दिया गया है। यही नहीं शहर के हर छोटे-बड़े नाले के पानी को गंगा में मिलने से पहले साफ किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि इन नदियों में खुद ही पानी साफ़ करने की क्षमता काफ़ी अधिक है, लेकिन संगम साफ रहे इसके लिए स्थानीय शहरों के गंदे पानी को रोकना जरूरी है।

प्रयागराज के नैनी STP में पानी को साफ किया जा रहा है

इसके लिए नमामि गंगे के तहत शहर में 10 नए प्रोजेक्ट को 2915.78 करोड़ रुपए की मदद से शुरू किया गया है। इसमें 6 प्रोजेक्ट कुंभ से पहले पूरा किया जा चुका है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान समय में प्रयागराज से लगभग 215 मिलियन लीटर गंदा पानी प्रति दिन गंगा में मिलता है। सरकारी अनुमान के मुताबिक 2035 तक 300 मिलियन लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गंगा में मिलने की संभावना है। यही वजह है कि सरकार ने अगले 15 से 16 वर्षों को ध्यान में रखकर गंगा को साफ करने का रोडमैप बनाया है।

शहर के गंदे पानी को गंगा व यमुना दोनों नदियों में मिलने से रोकने के लिए सरकार ने शहर को सात हिस्से में बाँट दिया है। हर हिस्से के पानी को साफ करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया गया है। यही नहीं, छोटे नालों के पानी को भी साफ करने के लिए सरकार ने बायोरेमिडेशन व जियो सिंथेटिक ट्यूब जैसी नई तकनीक का भी इस्तेमाल किया है। हम इन सारी तकनीकों पर विस्तृत चर्चा लेख की अगली कड़ी में करेंगे।

कुंभ में श्रद्धालुओं के लिए जगह-जगह पर मुफ़्त में स्वच्छ पानी के लिए स्टॉल लगाया गया है

यही वजह है कि संगम पर पानी पहले की तुलना में ज्यादा साफ नजर आता है। इसके अलावा कुंभ में जगह-जगह स्वच्छ पानी व एम्बुलेंस की भी चाकचौबंद व्यवस्था की गई है।

देश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी और प्रयागराज की पहचान मुख्य रूप से दो पवित्र नदियाँ गंगा व यमुना की वजह से ही है। हमारे सांस्कृतिक व समाजिक विकास में इन नदियों का बेहद अहम योगदान है। ऐसे में इन नदियों को जिंदा रखना अपनी पहचान को जिंदा रखने जितना जरूरी है।

इसी कड़ी का दूसरा लेख यहाँ पढ़ें: ग्राउंड रिपोर्ट #2: नमामि गंगे योजना से लौटी काशी की रौनक – सिर्फ अभी का नहीं, 2035 तक का है प्लान

इसी कड़ी का पहला लेख यहाँ पढ़ें:ग्राउंड रिपोर्ट #1: मोदी सरकार के काम-काज के बारे में क्या सोचते हैं बनारसी लोग?

कोलकता पुलिस कमिश्नर के सियासी पैंतरे पर गृह मंत्रालय ने दिए अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कोलकाता पुलिस कमिश्नर के ख़िलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का नोटिस जारी किया है। गृह मंत्रालय ने अपने नोटिस में राज्य के मुख्य सचिव को पुलिस कमिश्नर पर कार्रवाई करने के लिए कहा है। गृह मंत्रालय ने ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठने के आरोप में पुलिस अधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए यह नोटिस भेजा है।

ममता की किरकिरी, बच गया ‘लोकतंत्र’

आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार सीबीआई और केंद्र सरकार के खिलाफ पिछले तीन दिनों से धरने पर बैठी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से उनको झटका लगा है। हालाँकि यह झटका TMC के लिए तो प्रत्यक्ष तौर पर है, लेकिन परोक्ष तौर पर उन विपक्षी पार्टियों के लिए भी है, जो ममता के साथ धरना-पॉलिटिक्स को बढ़ावा दे रहे थे। यह झटका उनके लिए भी है जो, लोकतंत्र की ‘हत्या’ को लेकर ‘चिंतित’ थे।

CBI vs ममता: क्या-क्या हुआ ‘खेल’

कोलकाता में चल रही राजनीतिक खींचातानी के बीच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने 4 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में सीबीआई में कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से शारदा चिट फंड मामले में सहयोग करने का निर्देश देने की मांग की थी। सीबीआई ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि था कई बार तलब किए जाने के बावजूद, राजीव कुमार सहयोग करने में असफल रहे। साथ ही जाँच में बाधा भी पैदा की।

सीबीआई द्वारा सुनवाई के लिए याचिका को सूचीबद्ध करने के बावजूद, मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई ने मंगलवार (5 फरवरी, 2019) को सुनवाई की तारीख़ दी थी। हालाँकि मुख्य न्यायाधीश ने चेतावनी वाले अंदाज़ में यह ज़रूर कहा था कि अगर कोलकाता पुलिस कमिश्नर मामले से जुड़े सबूतों को नष्ट करने की भी सोचेगा, तो कोर्ट उस पर बहुत भारी पड़ेगा, उसे पछतावा होगा।

इससे पहले रविवार (फरवरी 3, 2019) को शारदा चिटफंड घोटाला मामले में CBI की टीम जब कोलकाता में पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के निवास स्थान पर पहुँची, तो CBI टीम को पुलिसकर्मियों ने अन्दर जाने ही नहीं दिया। इतना ही नहीं, उन सीबीआई ऑफिसरों को कोलकाता पुलिस ने गिरफ़्तार भी कर लिया। हालाँकि कुछ घंटों बाद उन्हें रिहा भी कर दिया गया।

ममता बनर्जी ने सीबीआई के इस एक्शन को केंद्र सरकार से प्रेरित बताया। इसमें राजनीति को घुसाते हुए वो राजीव कुमार के समर्थन में धरने पर बैठ गईं। एक मुख्यमंत्री का किसी व्यक्ति विशेष के लिए उठाया गया ये धरनारूपी क़दम भारतीय राजनीति के लिए अनोखा है। ख़ुद को ‘धरना क्वीन’ बनाने वाली ममता को CBI की कार्रवाई पर भला ऐसी भी क्या आपत्ति हो सकती है कि वो आधी रात को ही धरने पर बैठ गई।

ट्विटर इंडिया को संसदीय पैनल ने नोटिस भेजकर लोगों के अभिव्यक्ति की आजादी के हनन पर जवाब माँगा

ट्विटर इंडिया को पार्लियामेंट्री बोर्ड की तरफ़ से सोशल मीडिया पर लोगों के अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने के लिए नोटिस भेजा है। पार्लियामेंट द्वारा भेजे गए इस नोटिस में ट्विटर इंडिया को 11 फरवरी 2019 को दोपहर 3 बजे बोर्ड के सामने पेश होने के लिए कहा गया है। इंफार्मेशन व टेक्नॉलाजी मामले पर अनुराग ठाकुर के नेतृत्व में गठित पार्लियामेंट्री कमिटि ने ट्विटर इंडिया को यह नोटिस भेजा है।

ट्विटर इंडिया पर अक्सर दक्षिणपंथी लेखकों के विरुद्ध एक पक्षपातपूर्ण रवैया रखने के आरोप लगते रहे हैं। विगत दिनों ट्विटर ने कुछ हैंडल्स को सिर्फ इस कारण से प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि वो दक्षिणपंथी विचारधारा रखते हैं। इसके विरोध में कुछ लोगों ने ट्विटर इंडिया कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन भी किया था।

अक्सर ट्विटर ऐसे ट्विटर एकाउंट्स की या तो पोस्ट रीच को कम कर देता है या फिर उनके एकाउंट्स को सस्पेंड कर देता है, जो सरकार के समर्थन में लिखने के लिए जाने जाते हैं।

बिहार में 3 मार्च को मेट्रो की आधारशिला रख सकते हैं PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मार्च के महीने पटना मेट्रो रेल परियोजना की आधारशिला रख सकते हैं। इसके साथ ही बिहारवासियों के मेट्रो में सफर का सपना जल्द ही पूरा हो सकता है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, भाजपा नेता सुरेश शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 मार्च को NDA की रैली में शामिल होंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री द्वारा पटना मेट्रो रेल परियोजना की आधारशिला रखे जाने को लेकर सैद्धांतिक सहमति हो चुकी है, जिसके लिए ₹17,887.56 करोड़ की राशि मंजूर कर ली गई है।

सुरेश शर्मा ने कहा, “मेरे मन में यह विचार था, जो मैंने सोमवार को मुख्यमंत्री के साथ साझा किया, वह भी सहमत थे। मैंने विभागीय प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद से आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए कहा है, ताकि इस संबंध में एक प्रस्ताव को मंत्रिपरिषद मंजूरी दे सके।”

सुरेश शर्मा ने कहा, “हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री जब रैली को संबोधित करने के लिए अगले महीने यहाँ आएंगे, तब पटना मेट्रो रेल की आधारशिला रखेंगे।” पटना मेट्रो के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को राज्य मंत्रिपरिषद ने पिछले साल अक्टूबर के महीने मंजूरी दे दी थी।

बिहार में NDA के घटक दल जदयू, भाजपा और लोजपा की प्रदेश इकाई ने हाल ही में कहा था कि लोकसभा चुनाव की घोषणा के पूर्व आयोजित इस रैली में गठबंधन के शीर्ष नेता हिस्सा लेंगे।

पटना मेट्रो के अंतर्गत 2 कॉरिडोर बनाए जाएँगे, पहला कॉरिडोर दानापुर से मीठापुर 16.94 किलोमीटर का होगा। दूसरा कॉरिडोर पटना जंक्शन से लेकर न्यू आईएसबीटी तक 14.45 किलोमीटर का होगा। पटना जंक्शन एक इंटरचेंज स्टेशन होगा, जहाँ लोग एक कॉरिडोर से उतरकर दूसरे कॉरिडोर के लिए मेट्रो पकड़ सकेंगे। इस जंक्शन पर एक स्टेशन अंडरग्राउंड, जबकि दूसरा एलीवेटेड होगा।

पत्रकारिता के समुदाय विशेष के लोगो! मोदी के वीडियो से जलता है बदन क्या?

आज एक ख़बर, या एक तरह की ख़बर, पत्रकारिता के यूजुअल सस्पैक्ट्स यानी छाती पीटो पत्रकारिता गिरोह के सदस्यों ने एक सुर में चलाई कि डल झील की बोट राइड में प्रधानमंत्री मोदी जो हाथ हिलाकर अभिवादन करते दिख रहे हैं, वो काल्पनिक है। किसी ने लिखा पहाड़ों को हाथ दिखा रहे हैं, किसी ने लिखा काल्पनिक लोगों को दिखा रहे हैं, कोई खोजो तो जानें कर रहा है, किसी ने कहा कि झील को हाथ दिखा रहे हैं…

लल्लनटॉप, फर्स्टपोस्ट, NDTV, The Telegraph, The Quint, News 18 आदि तमाम वेबसाइटों पर ये ख़बर खूब चलाई गई। ये सब हमारे दौर के ठीक-ठाक पढ़े जाने वाले वेबसाइटों में आते हैं। लेकिन पत्रकारिता का यह सम्प्रदाय विशेष पत्रकारिता के नाम पर मोदी के चश्मे के फ़्रेम से लेकर सोनिया गाँधी से ‘इंदिरा घर में खाना बनाती थी कि नहीं’ पूछने तक रायता फैलाता रहा है। इसीलिए, आश्चर्य नहीं होगा कि कल को ये और भी विचित्र बातें लिखने लगें। 

पहली बात तो यह है कि अगर एक भी व्यक्ति वहाँ है, चाहे वह वही कैमरामैन ही क्यों न हो जो वीडियो बना रहा है, तो भी मोदी ने अभिवादन किया तो इसमें समस्या क्या है? यहीं अगर मोदी चुप-चाप खड़े रहते तो पत्रकारिता के मानक स्तम्भ यह लिखते नज़र आते कि कश्मीर को ‘सॉफ़्ट टच’ की ज़रूरत है न कि मोदी के भावहीन चेहरे की। 

क्या यही गिरोह भूल गया है कि वो जो लिखता है उसे कोई पढ़ता है, स्क्रीन पर, न कि वो अपने आर्टिकल तभी लिखता है जब उसे सामने बैठकर पढ़नेवाला मिले? आज के दौर में जब आधिकारिक मीडिया कवरेज होती है, लाइव विडियो शेयर होता है तो क्या किसी राष्ट्र के प्रधानमंत्री को हाथ हिलाकर अभिवादन करते दिखाने में इतनी जासूसी करनी ज़रूरी है?

अगर वहाँ एक भी व्यक्ति था, चाहे वो कश्मीर का हो, या कहीं बाहर का, उसे देखकर मोदी ने अभिवादन किया तो इन पत्रकारों की देह में आग क्यों लग रही है? क्या ये मीडियावाले वहाँ मौजूद थे, और क्या ये बताएँगे कि वहाँ मोदी के अलावा और कोई था ही नहीं? अगर नहीं था तो विडियो किसने बनाया? ख़ैर, ये अब कुतर्क की तरफ़ जा रहा है, तो ज़्यादा नहीं करूँगा। फ़ैक्ट चेक वाले कहाँ हैं वैसे? किसी को कश्मीर भेजकर पूछ लेते कि मोदी किसको देख कर हाथ हिला रहे थे।

दूसरी बात यह है कि पत्रकारिता के इस ‘स्वर्णिम दौर’ में जब तैमूर की नैपी तक कवर की जाती हे, तो क्या और कोई ख़बर नहीं मिली गिरोह के लोगों को? इस ख़बर से समाज का क्या लाभ हो रहा है? ख़बर चलाने का कोई तो उद्देश्य होगा? या बस मज़े लेने की प्रवृत्ति है, तो आर्टिकल लिख रहे हैं, और ट्वीट एम्बेड कर रहे हैं? 

जब हमारे पत्रकार इतने खाली थे, तो कुछ और कर लेते, मोदी का हाथ देखकर इतने विचलित क्यों हो रहे हैं? ये किसी को सूचित करने का काम नहीं है, इसके अंदर एक घृणा की भावना है। वो भावना ही इस तरह की घटिया पत्रकारिता करने पर मजबूर करती है जहाँ किसने कौन सी साड़ी पहनी है, किसकी शक्ल किससे मिलती है, भाषण में कौन सा शब्द कितनी बार बोला, सीबीआई का डायरेक्टर शुक्ला क्यों है, मुसहर क्यों नहीं आदि आदि।

काम कर लो यार कुछ ढंग का! अपने चक्कर में मुझसे भी इस बर्बाद टॉपिक पर लेख लिखवा लिया! 

CRPF ने फिर पेश की मिसाल, अपने ही खून के प्यासे नक्सली की रक्तदान से बचाई जान

नक्सली और सीआरपीएफ जवानों के बीच गोलीबारी की घटनाएँ आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं। जब कभी भी जंगलों में सुरक्षा बल के जवान और नक्सलियों के बीच गोलियाँ चलती है तो किसी न किसी का बेटा, पति या भाई ज़रूर मारा जाता है।

देश में हिंसा के सहारे परिवर्तन की चाह रखने वाले नक्सली आतंकी न सिर्फ देशद्रोही हैं बल्कि मानवीय मूल्यों के भी विरोधी हैं। 29 जनवरी 2019 को झारखंड के खूँटी जिले में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच झड़प की एक ख़बर आई थी।

अमर उजाला ने अपने रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि सीआरपीएफ की 209-कोबरा बटालियन और नक्सलियों के बीच जमकर फायरिंग हुई। दोनों ही तरफ़ से हुई गोलाबारी में पाँच नक्सली मारे गए जबकि दो घायल हो गए थे। दो में से एक घायल नक्सली का नाम सोमोपूर्ति है।

सोमोपूर्ति अपने साथी मृत नक्सली को उठाकर साथ ले जाना चाहता था, इसी दौरान उसे सीआरपीएफ की गोली लगी। सोमोपूर्ति को इलाज के लिए राँची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में भर्ती किया गया। अस्पताल में डॉक्टरों ने बताया कि इसे खून नहीं चढ़ाया गया तो इसकी मौत हो सकती है।

मौके पर नक्सली के जान पहचान का कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं था। इस समय बड़ा सवाल यह था कि खूंखार नक्सली की जान बचाने के लिए खून कौन देगा? ऐसे समय में सीआरपीएफ के कांस्टेबल राजकमल नक्सली की जान बचाने के लिए रक्तदान करने को तैयार हो गए।

जिन सीआरपीएफ के जवानों पर नक्सली सोमोपूर्ति ने कभी गोलियाँ चलाई होगी, उसी नक्सली की जान CRPF के राजकमल नाम के जवान ने अपना खून देकर बचा लिया।

इशरत मुनीर: कश्मीर के रखवाले मुस्लिमों की कहानी (भाग 1)

बीते कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर रोंगटे खड़े करने वाला एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें आतंकवादी फेरन पहने एक मासूम लड़की की हत्या कर रहे हैं। दस सेकंड के इस वीडियो में लड़की हाथ जोड़े घुटनों बल बैठी है, तभी अचानक आतंकी उसके सर में 2 गोलियाँ मारते हैं। इस्लामिक स्टेट के तरीके से की गई इस बर्बरतापूर्ण हत्या का सच जब सामने आया तो पता चला कि कश्मीर के शोपियाँ में जिस लड़की की हत्या की गई उसका नाम इशरत मुनीर है।

दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा की 25 वर्षीया इशरत मुनीर का केवल एक ही ख्वाब था कि उसका कश्मीर पाकिस्तान पोषित आतंकवाद से आज़ाद हो, वहाँ शांति और खुशहाली हो। इसके लिए उसने खुद आतंकवाद से लड़ने की ठानी और आतंक के सफाए में सुरक्षाबलों का साथ दिया। इस राह में पल-पल मौत का ख़तरा था लेकिन इशरत के इरादे बुलंद थे।

हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन के आतंकियों के हाथों मारे जाने से पहले इशरत 15 आतंकवादियों को ढेर करवाने में सफल रही थी जिनमें अल-बद्र चीफ और A++ ग्रेड का आतंकी ज़ीनत-उल-इस्लाम भी शामिल था। लेकिन आखिरकार आतंकियों को इशरत के इरादों का भनक लग गयी और उन्होंने उसे 31 जनवरी को पुलवामा से अगवा कर लिया। आतंकियों ने इशरत को शोपियाँ में ड्रगाड के जंगलों में ले जाकर इस्लामिक स्टेट स्टाइल में उसकी हत्या करने का वीडियो भी बनाया।

इशरत मुनीर आतंकी ज़ीनत-उल-इस्लाम की ममेरी बहन थी। लिहाज़ा आतंकियों तक उसकी पहुँच आसान थी। धीरे-धीरे विश्वास जीतने के बाद इशरत इन आतंकियो के लिए ओवर-द -ग्राउंड-वर्कर के तौर पर काम करते हुए ज़रूरी सामान सप्लाई करती थी। साथ ही आतंकियों का संदेश दूसरे ओवर-ग्राउंड-वर्कर तक पहुंचाने का काम भी करती थी। इसलिए आतंकियों की लोकेशन की खबर इशरत के पास होती थी।

अपने मिशन के तहत इशरत ने आतंकियों पर पहला वार 1 अप्रैल 2018 को किया। इशरत की सटीक खबर पर कार्यवाही करते हुए शोपियाँ के ड्रगाड इलाके में सुरक्षा बलों ने आतंकियों पर धावा बोला और हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन के एक साथ 8 आतंकियों को मार गिराया। सुरक्षाबलों के लिए यह एक बड़ी कामयाबी थी। मारे जाने वालों में हिज़्ब-उल कमांडर इश्फ़ाक़ अहमद ठोकर, रईस अहमद ठोकर और ज़ुबैर तुर्रे जैसे आतंकी शामिल थे।

3 मई 2018 को इशरत ने सुरक्षाबलों को ज़ीनत-उल-इस्लाम की खबर दी जो कई सालों से आतंकी घटनाओं को अंजाम दे रहा था। वह शोपियाँ के तुर्कावानगाम गाँव में अपने 4 साथियों के साथ छिपा था। ज़ीनत पर सुरक्षाबलों ने धावा बोला लेकिन स्थानीय लोगों ने भारी पत्थरबाज़ी करनी शुरू कर दी जिसका फायदा उठाकर पाँच आतंकी भागने में कामयाब हो गए।

तुर्कावानगाम एनकाउंटर फेल होने के बाद इशरत को जान का ख़तरा बढ़ गया था लेकिन वह अपने मिशन से नहीं हटी। 4 अगस्त 2018 को इशरत की सूचना के आधार पर शोपियाँ में हिज़्ब-उल और अल-बद्र के 5 आतंकियों को घेर लिया गया। 12 घंटे चले इस ऑपरेशन में पाँचों आतंकी ढेर कर दिए गए। इस एनकाउंटर में हिज़्ब-उल कमांडर उमर मलिक भी मारा गया जो कि पुलिसकर्मियों की हत्या करने और हथियार छीनने के मामले में वांछित था।

इशरत अब तक 13 आतंकियों को जहन्नुम का रास्ता दिखा चुकी थी, लेकिन उसका असली टारगेट 12 लाख का इनामी अल-बद्र चीफ ज़ीनत अभी ज़िंदा था। पिछले एनकाउंटर्स में वह बच निकलने में कामयाब हो गया था। लेकिन 13 जनवरी 2019 को कुलगाम ज़िले के कठपोरा इलाके में इशरत की सटीक सूचना के आधार पर सुरक्षाबलों ने ऐसा जाल बिछाया कि ज़ीनत-उल-इस्लाम भाग नहीं पाया।

ज़ीनत आईईडी एक्सपर्ट और आतंकियों के रिक्रूटमेंट का एक्सपर्ट था। ज़ीनत की मौत के साथ साउथ कश्मीर में आतंक का बहुत बड़ा किला ढहाने में कामयाबी मिली थी। लेकिन इसके बाद हिज़्ब-उल चीफ़ रियाज़ नाइकू को इशरत पर शक हो गया और उसने इस्लामिक कानून शरिया के तहत इशरत की हत्या कर दी।

अपनी मौत से पहले कश्मीर की बेटी इशरत मुनीर मिट्टी का क़र्ज़ अदा कर चुकी थी। कश्मीर को बचाने वालों में इशरत अकेली नहीं थी। सत्तर वर्षों से घाटी के राष्ट्रवादी मुस्लिमों ने कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंक को परास्त करने में भूमिका निभाई है। और जब भी आतंकियों को ऐसा लगा कि उनका प्रोपेगंडा फेल हो रहा है तब उन्होंने देशभक्त मुस्लिमों की सार्वजनिक हत्या कर ख़ौफ़ पैदा करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए।

मजे की बात यह कि कश्मीर के इन मुस्लिमों की बहादुरी और शहादत को या तो मेन स्ट्रीम मीडिया कवर नहीं करता या दुष्प्रचार के इरादे से गलत रिपोर्टिंग करता है।

कश्मीर के राष्ट्रवादी मुस्लिमों की आगे की कहानी अगले भाग में।

‘ऐसो लगतो है जईसे मास्टरस्ट्रोकन की झड़ी सी लग गई है’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इस कार्यकाल में यह साबित कर दिया है कि वो हर हाल में जनता के नेता हैं और जब बात राजनीति की आए तो वो मैदान पर 360 डिग्री बल्लेबाजी भी करना जानते हैं। ‘राजनीतिज्ञों’ की तमाम संभावनाओं को इस 5 साल के कार्यकाल में अपने ‘मास्टरस्ट्रोक्स’ से नकार देने वाले नरेंद्र मोदी अब राजनीति में विरोधियों से बहुत आगे निकल चुके हैं। 

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही देश की “सवा सौ करोड़” जनता, जिसमें समाज का हर तबका, यानी युवा, बुजुर्ग, गरीब, अमीर, अगड़ा, पिछड़ा, मध्यम वर्ग, किसान, कारोबारी, धर्म, मत, सम्प्रदाय आता है, के प्रति समर्पित होकर काम करने का वायदा किया था।

अपने काम करने के तरीकों से बहुमत की इस सरकार का पूरा फायदा उठाते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन 5 सालों में एक प्रबल राजनीतिक इच्छाशक्ति का उदाहरण पेश किया है। साथ ही यह भी याद रखा जाना चाहिए कि उन्होंने कहा था कि वो 4 साल काम और पाँचवें साल राजनीति करेंगे।  

विपक्ष उनके ‘राजनीति करने’ के अलग-अलग आशय निकाल रहा था और उम्मीद कर रहा था कि पाँचवें साल में नरेंद्र मोदी सिर्फ चुनाव प्रचार और रैलियाँ ही करेंगे। लेकिन जिस तरह की घोषणाएँ और उपलब्धियाँ पिछले कुछ दिनों में मोदी सरकार ने हासिल की हैं, वो हर किसी के लिए चौंका देने वाली थी।

सामान्य वर्ग के गरीबों को रोज़गार और शिक्षा में 10% आरक्षण

इसी तरह का चौंकाने वाला कदम था सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण के दायरे में ले आया। इस क़ानून के अंतर्गत सरकार को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% आरक्षण का अधिकार होगा। यह 10% आरक्षण, मौजूदा 50% की सीमा के अतिरिक्त होगा। इसे लोकसभा एवं राज्यसभा- दोनों सदनों में पारित किया जा चुका है। इसके दोनों सदनों में पारित होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक बिल और सामाजिक न्याय की जीत बताया था।

5 लाख तक के दायरे को टैक्स मुक्त

बजट के भाषण में शुरुआती चरणों में टैक्स की बात करने के समय पीयूष गोयल ने छूट की कोई बात नहीं की। ट्विटर पर तब तक बवाल हो गया की मोदी सरकार ने दोबारा टैक्सदाताओं की उपेक्षा की है। लेकिन, विपक्ष को लगभग ट्रोल करते हुए स्पीच के अंत में जब घोषणा की तो विपक्ष सन्न रह गया। टैक्स छूट की सीमा ₹2.5 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख की गई। यानी अब आयकर की सीमा ₹5 लाख कर दी गई। 3 करोड़ लोगों को इससे फायदा होगा। एनडीए सरकार ने अपने अंतरिम बजट में आम लोगों को टैक्स में बड़ी रियायत दे दी है। लोकसभा चुनाव से पहले ये आम आदमी को सरकार की तरफ से बड़ा तोहफा है। सरकार आयकर छूट की सीमा ढाई से लाख रुपए से बढ़ाकर सीधे ₹5 लाख कर दिया है।

भगोड़ों की घरवापसी

कई सालों से देश में चाँदी लूट रहे कारोबारी जब अचानक देश छोड़कर जाने लगे तो मोदी सरकार ने तत्परता से भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक पास किया।

सरकार में जनता के विश्वास को हौंसला तब मिला, जब कल यानी सोमवार (फरवरी 04, 2019) को ब्रिटेन के गृह सचिव द्वारा भगोड़े विजय माल्या के प्रत्यर्पण को मंजूरी देने की ख़बरें सामने आई। उम्मीदें हैं कि जल्द ही विजय माल्या और ₹14 हजार करोड़ का PNB घोटाला कर, विदेश भागे हीरा कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी भारत की जेल में गुड़ और चना खाते हुए दिखेंगे। विजय माल्या के साथ ही अब भारत सरकार मेहुल चौकसी के प्रत्यर्पण पर जोर दे रही है।

अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआइपी हेलीकॉप्टर घोटाले मामले में दुबई में रहने वाले दो आरोपित राजीव सक्‍सेना और दीपक तलवार के भारत लाए जाने के बाद भाजपा ने आजकल राजनीतिक बढ़त बनाई है। ₹3600 करोड़ के इस घोटोले में भारत सरकार अभी इसके बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल को भारत ला कर पूछताछ कर रही है।

सर्जिकल स्ट्राइक

पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक मोदी सरकार की ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जाएगी। विपक्ष और वामपंथी गिरोहों के लिए तो सर्जिकल स्ट्राइक 2 बार हुई, दूसरी बार तब जब, इसी घटना पर बनी फ़िल्म ‘उरी’ सुपरहिट साबित हुई।

सिंधु जल समझौता

उरी हमले के बाद सिंधु जल समझौते को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते हैं। पाकिस्तान में नई सरकार बनने के बाद भी भारत और पाकिस्तान के बीच पहली द्विपक्षीय वार्ता के रूप में सिंधु जल संधि को ही चुना गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे से जानते हैं कि भारत अगर इस समझौते को तोड़ देता है तो पाकिस्तान का हलक सूख जाएगा, इसलिए आतंकवाद के मुद्दे पर भारत सरकार के पास सिंधु जल समझौता पर आक्रामक रुख पाकिस्तान को सोचने पर मजबूर करता रहेगा।

सामरिक बढ़त

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े प्रतिद्वंदी बनकर उभर रहे चीन को मोदी सरकार लगातार कूटनीतिक मात देती आई है। इसका उदाहरण ओमान के दुकम और ईरान में चाबहार बंदरगाह पर चीन को पछाड़ते हुए भारत का अधिकार होना है।

प्रधानमंत्री नहीं, प्रधान सेवक

इनके अलावा भी ऐसे चौंका देने वाले निर्णय नरेंद्र मोदी ने लिए हैं, जो ये बताते उन्होंने जनता के मूड को अच्छे से ‘हैक’ कर लिया है। चाहे वो फैसला नोटबंदी का हो, चाहे पाकिस्तान के ख़िलाफ़ उनकी रणनीति हो या फिर हर नागरिक को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए उनका निजी बैंक खाते का विषय हो, इन सबसे नरेंद्र मोदी ने जो एक छवि बनाई है वो हर हाल में जनता के नेता की है।

ये छवि ऐसे नेता की है, जो तुष्टिकरण की राजनीति को दरकिनार कर कठोर निर्णय लेना जानता है। ये वो नेता है जो राजनीतिक फायदों को नकार कर दूरगामी फायदों के लिए वर्तमान में कष्ट उठा कर लोगों का दिल जीत सकता है। जनता जान चुकी है कि यह वास्तव में प्रधानमन्त्री नहीं बल्कि ‘प्रधान सेवक’ है।

लोकसभा में पेपर प्लेन, विधानसभा में पेपर बॉल: लेकिन लोकतंत्र की हत्या मोदी कर रहा है!

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने जब बजट सत्र की शुरूआत के लिए दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करने की कोशिश की तो विपक्ष के कुछ लोगों ने ‘राज्यपाल वापस जाओ’ के नारे लगाए और उनके ऊपर काग़ज़ की गेंद बनाकर उछाली। इससे पहले राफ़ेल पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने संसद में पेपर के हवाई जहाज उड़ाए थे। 

लोकतंत्र की हत्या चिल्लाने वाले महागठबंधन के एक-एक नेता और पार्टी आजकल हर दिन नीचे गिरने के नए कीर्तिमान गढ़ते जा रहे हैं। आज की ख़बर यह है कि शाहनवाज़ हुसैन, शिवराज चौहान और योगी आदित्यनाथ को बंगाल में रैलियाँ करने की इजाज़त नहीं दी गई है। यह जानना भी ज़रूरी है कि जिस उत्तर प्रदेश में ‘राज्यपाल वापस जाओ’ के नारे ‘साइमन गो बैक’ की लाइन पर लग रहे हैं वहाँ लोकसभा की लगभग नब्बे प्रतिशत और विधानसभा की लगभग तीन चौथाई सीटों पर भारी बहुमत से लोगों ने भाजपा को चुना है।

दोनों चुनावों के बीच समय का ठीक-ठाक अंतर भी था। ऐसे में, सपा के नेताओं का हुड़दंग
यह दिखाता है कि क्यों मीडिया वाले इनसे जुड़ी घटनाओं को कवर करते वक्त ‘कार्यकर्ता’ की जगह ‘सपा के गुंडे’ का प्रयोग करते हैं। ये लोग लोकतंत्र, फ़ेडरल स्ट्रक्चर, संविधान और तमाम तरह की बातें करते हैं लेकिन सत्ता से दूर होने पर इनकी बिलबिलाहट इनसे हर वो कार्य पब्लिक में करवा रही है, जो किसी भी जन प्रतिनिधि को प्राइवेट स्पेस में भी नहीं करना चाहिए।

इसलिए, आजकल जब भी हम ‘लोकतंत्र की हत्या’ जैसे जुमले सुनते हैं तो लग जाता है कि या तो केजरीवाल को सपना आया होगा, या सीबीआई ने रेड मारी होगी, या ममता की नींद टूटी होगी या राहुल को याद आया होगा कि घोटाला हुआ नहीं, तो कुछ बोल देना चाहिए। ऐसे गंभीर शब्द अगर हर दूसरे दिन, टुच्ची बातों पर बोले जाते रहें तो इनकी गंभीरता खत्म हो जाएगी। 

यही हाल ‘आपातकाल आ गया’ वाले ‘भेड़िया आया’ कांड में हुआ है। किसी नेता पर जाँच बिठाने का मतलब आपातकाल है, किसी के राज्य के पुलिस अधिकारी को सीबीआई द्वारा बुलाना सुपर-आपातकाल है! हर वो घटना आपातकाल हो गई है जो किसी भी नेता को निजी स्तर पर भी प्रभावित कर रही हो। ये लोग कैसे भूल गए कि आपातकाल क्या था! 

चाणक्य का एक कथन था कि जब चोरों में खलबली मच जाए, तो समझो राजा अपना काम ठीक तरीके से कर रहा है। यही बात अब दिख रही है। सारे चोर एक साथ होकर मंच पर आ गए हैं, और एक व्यक्ति के पीछे लगातार झूठ बोलकर एक नैरेटिव तैयार करना चाह रहे हैं ताकि जनता उनके झाँसे में आ जाए। 

ऐसा नहीं है कि हर सरकार की हर नीति सही ही हो। हर सरकार में ख़ामियाँ होती हैं, लेकिन सरकार की हर बात में नकारात्मकता ढूँढकर, घोटाले मैनुफ़ैक्चर करना, आपातकाल की दुहाई देना और संसद जैसी पवित्र संस्थाओं में बेहूदगी के निम्न स्तर तक गिर जाना बताता है कि अब ये लोग कुछ भी कर सकते हैं! 

आप सोचिए कि विधानसभा या लोकसभा में ये लोग पेपर प्लेन और काग़ज़ की गेंद फेंक रहे हैं! ये लोग देश चलाने की बात करते हैं? यही लोग कभी ‘मर्यादा’ और ‘गरिमा’ की भी बातें करते नज़र आते हैं जो कि हास्यास्पद है। 

एक समय में सुप्रीम कोर्ट के डिसीजन को यह कहकर सर-आँखों पर बिठाना की लोकतंत्र में एक संस्था तो काम कर रही है, और फिर सीबीआई जैसी केन्द्रीय संस्था को अपने राज्यों में घुसने की अनुमति न देना, बताता है कि इनके लिए संस्थाओं का महत्व तभी तक है जब तक वो इनके मतलब के फ़ैसले सुनाए। वरना, सीबीआई को जाँच के लिए आन्ध्र प्रदेश या पश्चिम बंगाल में प्रदेश की सरकारों द्वारा घुसने की अनुमति न देना और क्या है? 

लोकतंत्र और फ़ेडरल स्ट्रक्चर की बात करनेवाली ममता बनर्जी आखिर भाजपा की रैलियाँ क्यों रोक रही है बंगाल में? अगर उनकी दलील साम्प्रदायिक तनाव बढ़ने से संबंधित है तो क्या प्रदेश की पुलिस घास छीलने के लिए है? या प्रदेश की पुलिस का काम ममता बनर्जी के इशारों पर सीबीआई के ही अफ़सरों को, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए जाँच करने आए थे, गिरफ़्तार करना भर रह गया है?

यही वो ममता बनर्जी हैं जिन्होंने मुहर्रम और दुर्गा विसर्जन के एक ही दिन होने पर दुर्गा विसर्जन को रोकने का आदेश जारी किया था। तब, कोर्ट ने फटकार लगाई थी कि कानून व्यवस्था सरकार का ज़िम्मा है, और ममता लगातार एक सम्प्रदाय के तुष्टीकरण में लगी रहती हैं। इसी ममता ने ‘हथियारों’ के साथ होनेवाली धार्मिक यात्राओं (रामनवमी, दुर्गा विसर्जन आदि) पर यह कहा था कि उनके राज्य में ये नहीं होगा, जबकि वहीं सम्प्रदाय विशेष ऐसी यात्राएँ अपने त्योहारों पर खूब निकालता है। 

फिर जब ममता को लगने लगा कि प्रदेश के हिन्दू नाराज हो रहे हैं तो उन्होंने पिछले साल दुर्गा पूजा पंडालों को सरकारी सहयोग राशि देने की बात की। और, हो न हो, यही कारण है कि भाजपा की रैलियाँ रोकी जा रही हैं क्योंकि इनके यूनाइटेड अपोज़िशन रैली में तमाम दिग्गजों के होने के बावजूद भीड़ नहीं जुट पाई थी। 

कुमारस्वामी अपने क्लर्क होने की दुहाई देते हैं तो उनके पिता बेटे की इस हालत पर रोने लगते हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में किसानों की कर्ज़माफ़ी के नाम पर तेरह रुपए बाँटने की नौटंकी और जिन्होंने कर्ज़ लिया नहीं, उनके नाम पर पैसे जारी होना बताता है कि ये चाहे कितना भी जनेऊ पहन लें, इनकी नीयत चोरों वाली ही रहेगी। 

कॉन्ग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, और इसी कारण छोटे क्षेत्रीय पार्टियों को बिना माँगे समर्थन देने को हर जगह तैयार दिखती है। सपा-बसपा पुराने कांड भुलाकर एक हो रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू सीबीआई से डरे दिख रहे हैं जैसे कि सीबीआई सबूत पैदा कर लेगी और उसी सुप्रीम कोर्ट में उनको न्याय नहीं मिलेगा जहाँ कई बार ‘लोकतंत्र की जीत’ के नारे वो लगा चुके हैं। 

कुल मिलाकर, इस स्तर का छिछलापन महागठबंधन की सोच और सत्ता को पाने की लालसा में वर्तमान सरकारों के परेशान करने के अलावा और कुछ भी नहीं दिखता। सोशल मीडिया के कारण ऐसी ख़बरें जनता तक भी पहुँचती हैं, और अब वो भी समझते हैं कि कौन आदमी क्या चाहता है। 

जब केजरीवाल, फ़ारूक़पुत्र उमर अब्दुल्ला, लालूपुत्र तेजस्वी, मुलायमपुत्र अखिलेश, मायावती, ममता, नायडू, देवगौड़ानंदन कुमारस्वामी एक साथ किसी की भी निंदा करें तो सामान्य बुद्धि यही कहती है कि वो कार्य पूर्णतः सही हो रहा होगा। 

ये अवसरवादियों का गिरोह है, जो पूर्णतः अव्यवस्थित है। स्वार्थसिद्धी के अलावा इनका और कोई विजन नहीं दिखता। लोग लालू के साथ मिलकर बिहार की स्थिति सुधारने की बात करते हैं। लोग चार साल पहले ममता को चिटफ़ंड घोटाले में चार साल पहले घेर रहे थे, आज उसी की जाँच होने पर उसे फासीवाद और लोकतंत्र पर हमला बता रहे हैं। इंटरनेट के दौर में चीज़ों को अपने टाइमलाइन से तो डिलीट कर सकते हैं, लेकिन पब्लिक के स्क्रीनशॉट से नहीं। यहाँ अब हर सच घूमफिर कर वापस आ ही जाता है।

जब हर वार खाली जा रहा है, तो बेहूदगी का दाँव बचा दिखता है। इसलिए मर्यादा की बात करने वाले ‘चौकीदार चोर है’ से लेकर स्वयं राफ़ेल पर चर्चा बुलाकर, पेपर प्लेन उड़ाते दिखते हैं। इसीलिए, तीन चौथाई बहुमत वाली सरकार के राज्यपाल का स्वागत ‘वापस’ जाने के नारों से होता है। इसीलिए, लालू में मसीहाई की तासीर नज़र आती है। इसीलिए, मायावती बुआ हो जाती है। 

रैली हम रोकेंगे, चॉपर हम उतरने नहीं देंगे, सीबीआई को गिरफ़्तार हम करेंगे, संसद में प्लेन हम फेंकेंगे, विधानसभा में काग़ज़ की गेंद हम चलाएँगे, हिन्दुओं की यात्राएँ और विसर्जन हम रोकेंगे, लेकिन लोकतंत्र की हत्या तो मोदी कर रहा है! 

निर्मम, बर्बर, अलोकतांत्रिक, भ्रष्ट ममता बनर्जी से बंगाल को मुक्त कराने का समय आ गया है: योगी

पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रतिबन्ध, धरना-प्रदर्शन की सियासत के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम बंगाल में रैली पर रोक के बावजूद झारखण्ड के रास्ते बंगाल के पुरुलिया पहुँच गए।

इससे पहले पुरुलिया में ममता बनर्जी सरकार द्वारा हेलिकॉप्‍टर के लैंडिंग की अनुमति नहीं देने पर यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने ट्वीट कर ममता सरकार पर जमकर निशाना साधा था।

सीएम योगी ने कहा, “मुझे अत्यंत दुःख है कि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की कर्मभूमि, हमारा बंगाल, आज ममता बनर्जी और उनकी सरकार की अराजकता तथा गुंडागर्दी से पीड़ित है। अब समय है कि बंगाल को एक सशक्त लोकतांत्रिक आंदोलन के माध्यम से संविधान की रक्षा हेतु इस सरकार से मुक्त किया जाए। मैं आज पुरुलिया में आप सबके बीच इस आंदोलन की ध्वजा लेकर भ्रष्टाचारियों के गठबंधन के लिए चुनौती बनकर खड़ा होउँगा।”

पुरुलिया में जनसभा को संबोधित करते हुए योगी ने कहा कि वेस्ट बंगाल में अराजक, अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक टीएमसी की सरकार है।

पुरुलिया में जनसभा को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, “डेढ़ साल पहले इसी बंगाल में शारदीय नवरात्रि की दुर्गापूजा और मोहर्रम का कार्यक्रम एक साथ देश में पड़ा था। ममता सरकार ने मोहर्रम के कार्यक्रम को मंजूरी दी थी और दूर्गापूजा के कार्य में रोक लगाने का काम किया था।” मुख्यमंत्री योगी ने आगे कहा, “ममता ने कहा कि यूपी संभल नहीं रहा है। मैं कहना चाहता हूँ  कि यूपी बहुत अच्छे ढंग से संभल रहा है। जिस दिन बीजेपी की सरकार बंगाल में आएगी टीएमसी के गुंडे अपने गले में तख्ती लटकाकर वैसे ही घूमेंगे जैसे उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी के गुंडे अपने गले में तख्ती लटकाकर चलते हैं और कहते हैं कि हमें बख्श दो, हम किसी के साथ अन्याय नहीं करेंगे।”

सीएम योगी ने कहा, “जिस धरती ने विपरीत परिस्थितियों में देश को संबल दिया था। आप सब जानते हैं कि ये बंगाल की ही धरती है जिसमें रामकृष्ण परमहंस जी ने आध्यात्मिक साधना के दम पर लोगों को नया संबल दिया था। स्वामी विवेकानंदजी ने पूरी दुनिया के अंदर रहने वाले हिंदुओं को कहा था कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं। यह भाव पैदा करने वाली धरती है। स्वामी विवेकानंद जी ने दुनिया के अंदर रहनेवाले भारत वासियों से कहा था कि अपने धर्म और संस्कृति पर गौरव की अनुभूति करो। यह वही बंगाल की धरती है, जिसने इस देश को गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के द्वारा राष्ट्रगान दिया।”

योगी आदित्यनाथ ने बंगाल की जनता को सम्बोधित करते हुए आगे कहा, “मुझे आश्चर्य होता है कि बंगाल की धरती तो वास्तव में भारतीय जनता पार्टी की धरती होनी चाहिए क्योंकि बीजेपी पूर्ण जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसी बंगाल की धरती की देन थे। आपने बंगाल के अंदर एक निर्मम, एक बर्बर, एक अलोकतांत्रिक, एक भ्रष्ट ममता बनर्जी के नेतृत्ववाली टीएमसी सरकार के खिलाफ जो मोर्चा लिया, मैं इसके लिए आप सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूं।”

योगी ने कहा, “मोदी सरकार द्वारा दिया गया ग़रीबों के मकान का पैसा टीएमसी की सरकार और टीएमसी के गुंडे खा जाते हैं। यहाँ की सरकार भ्रष्ट है। आपने देखा होगा कि कैसे बंगाल के अंदर यहाँ की मुख्यमंत्री शारदा चिटफंड घोटाले के एक भ्रष्ट अधिकारी को बचाने का काम कर रही हैं। आज भी सुप्रीम कोर्ट में कहा गया है कि जिस भ्रष्ट अधिकारी को बचाने का काम ममता बनर्जी कर रही थीं, उन्हें सीबीआई के पास जाना चाहिए। यहाँ नहीं, शिलॉन्ग में जाकर हाजिरी लगाएँ और सीबीआई कोर्ट में राज को खोलें कि शारदा चिटफंड घोटाले में कौन-कौन लोग जिम्मेदार हैं। एक प्रदेश की मुख्यमंत्री धरना देने के लिए बैठ जाएँ  लोकतंत्र में इससे निंदनीय कार्य नहीं हो सकता है।”

पुरुलिया पहुँचने से पहले सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वेस्ट बंगाल सरकार अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक गतिविधियों में उलझी हुई है। उन्होंने कहा, “अपनी इन गतिविधियों को छिपाने के लिए वह बंगाल में मुझ जैसे ‘संन्यासी’ और ‘योगी’ को बंगाल में कदम नहीं रखने दे रही हैं।”

बता दें कि पुरुलिया के एसपी आकाश मघारिया ने कहा था कि जमीनी स्‍तर पर तथ्‍यों और आँकड़ों को देखते हुए योगी आदित्यनाथ को रैली की अनुमति नहीं दी गई थी। इससे पहले मध्‍य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी कहा था कि उन्‍हें बेहरामपुर में रैली की अनुमति नहीं दी जा रही है। इस बीच बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन को भी रैली से रोका गया था।