Wednesday, October 2, 2024
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जेल में महारानी की ज़िंदगी जी रही थी शशिकला

अन्नाद्रमुक (AIADMK) से निष्कासित नेता शशिकला जेल में पूरी ठाठ-बाट की ज़िन्दगी जी रही थी। ख़बरों के अनुसार उन्हें जेल में स्पेशल ट्रीटमेंट दी जा रही थी। कभी तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता की क़रीबी रही शशिकला अभी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सज़ा काट रही है। RTI से इस बात का ख़ुलासा हुआ है कि शशिकला को जेल में वो सारी सुविधाएँ मिल रही थी जो उन्हें उनके निजी बंगले पर मिलती।

बेंगलुरु जेल में बंद शशिकला जेल का खाना तक नहीं खाती। ख़ुलासे के मुताबिक़ उनके लिए जेल में अलग से एक रसोइये की व्यवस्था की गई थी जो उनके खाने का सारा इंतज़ाम करता था। इतना ही नहीं, सज़ायाफ़्ता शशिकला की कई बड़े अधिकारियों से मिलीभगत है, जिस कारण प्रशासन के अंदर का कोई व्यक्ति इन गड़बड़ियों के ख़िलाफ़ बोलने का साहस नहीं जुटा पाता।

जुलाई 2017 में कर्नाटक की IPS अधिकारी डी रूपा ने तत्कालीन पुलिस महानिदेशक को एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमे शशिकला को जेल में ख़ास ट्रीटमेंट मिलने की बात बताई गई थी। इस रिपोर्ट से प्रशासनिक गलियारों में खलबली मच गई थी क्योंकि इसमें कहा गया था कि ख़ुद को मिलने वाली सुविधाओं के बदले शशिकला ने जेल अधिकारीयों को ₹2 करोड़ की रिश्वत खिलाई है। इसके बाद रूपा के आरोपों को सरकारी महक़मे ने ख़ारिज़ कर दिया था और उनका तबादला ट्रैफ़िक विभाग में कर दिया गया था।

सरकार ने रूपा के ख़ुलासों की जाँच का ज़िम्मा रिटायर्ड IAS अधिकारी विनय कुमार को सौंपी थी। पता चला है कि शशिकला के अलावे जेल में बंद उनके अन्य सहयोगियों को भी रहने के लिए अलग कमरे दिए गए थे। सीएनएन न्यूज़ 18 के पास मौज़ूद जाँच कॉपी में लिखा गया है:

“15 जुलाई 2017 को जब उस वक्त की डीआईजी जेल पहुँची तो उन्होंने देखा कि शशिकला और उसके साथी इलावरसी के लिए जेल के एक हिस्से को घेर दिया गया था। जेल की पाँच सेल पर इन दोनों का कब्ज़ा था और इनके सारे सामान चारों तरफ बिखरे पड़े थे।”

जेल में शशिकला के लिए अलग बर्तनों तक की भी व्यवस्था की गई थी। विनय कुमार की जाँच रिपोर्ट के अनुसार शशिकला से मिलने आने-जाने वाले लोगो के लिए कोई मनाही नहीं थी। नियमानुसार एक सज़ायाफ़्ता कैदी को महीने में दो बार ही किसी बाहरी व्यक्ति से मिलने की इजाज़त दी जा सकती है लेकिन शशिकला के मामले में इस नियम को ताक पर रख दिया गया। नियमतः मुलाक़ात की अवधि भी 45 मिनट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए लेकिन शशिकला ने लोगों से 4 घंटे तक मुलाक़ात की।

RTI कार्यकर्ता नरसिम्हा मूर्ति ने कहा कि वो चाहते हैं कि सरकार दोषियों के ख़िलाफ़ जल्द से जल्द कारवाई करे। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद IPS अधिकारी डी रूपा ने भी खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि अगर जेल में किसी को VIP ट्रीटमेंट मिलता है तो इस से अन्य कैदियों में गलत सन्देश जाता है। इस से उनके अंदर ये भावना आ जाती है है कि पैसे से सबकुछ ख़रीदा जा सकता है और सिस्टम को अपने हिसाब से नचाया जा सकता है।

बता दें कि शशिकला पिछले दो वर्षों से जेल में है। जयललिता की मृत्यु के बाद पार्टी पर उन्होंने पकड़ बनानी शुरु ही किया था तब तक उनके ख़िलाफ़ अदालत का फ़ैसला आ गया था। इसके बाद AIADMK में गुटबाज़ी का दौर शुरू हो गया था और तमिलनाडु की राजनीति उथलपुथल के दौर से गुज़र रही थी। शशिकला पर अदालत ने ₹10 करोड़ का जुर्माना भी लगाया था।

सबसे साफ़ और सबसे गंदे ट्रेनों की लिस्ट आ गई, रिजर्वेशन से पहले जान लें अपने ट्रेन की हालत

देश में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए किसी भी व्यक्ति के ज़ेहन में यातायात साधनों में सबसे पहले रेल का ही नाम आता है। नौकरी-पलायन-रोजगार या फिर सैर-सपाटा… आज रेल हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। आज के समय में लाखों लोग दिन-प्रतिदिन इसमें सफर करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि देश की स्वच्छता के साथ-साथ रेलवे की स्वच्छता पर भी बराबर ध्यान दिया जाए।

इसी कड़ी में साल 2018 के लिए ट्रेन क्लीनलीनेस सर्वे में 210 ट्रेनों की जाँच-पड़ताल की गई। इस सर्वे में बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सर्वेक्षण के मुताबिक एक तरफ जहाँ शताब्दी देश की सबसे साफ ट्रेन है, वहीं पर दुरंतो को सफाई के मामले में सबसे गंदी ट्रेन का दर्ज़ा मिला है।

रेलवे की सफाई का यह सर्वेक्षण दो मानदंडो पर किया गया- पहला शौचालय की सफाई के आधार पर और दूसरा कोच की पर्याप्त सफाई के आधार पर। इन मानदंडों पर खरी उतरती हुई पुणे-सिकंदराबाद तथा हावड़ा-राँची शताब्दी के साथ-साथ तीन अन्य शताब्दी ट्रेनें स्वच्छता के मामले में सबसे ऊपर रहीं।

राजधानी ट्रेनों का भी सर्वे किया गया। 23 राजधानी ट्रेनों में से एक तरफ जहाँ मुंबई-नई दिल्ली राजधानी सबसे स्वच्छ दिखी, वहीं दिल्ली-डिब्रूगढ़ राजधानी को सबसे ज्यादा गंदी राजधानी का ‘तमगा’ दिया गया।

इन 210 ट्रेनों के बीच किए गए सर्वेक्षण में ट्रेनों को दो सूची में विभाजित किया गया- एक प्रीमियम और दूसरी नॉन प्रीमियम। सर्वेक्षण में 15,000 यात्रियों ने रेटिंग दी। हालाँकि अभी इस सर्वेक्षण के नतीज़े पूर्ण रूप से सामने नहीं आए हैं। आपको बता दें कि स्वच्छता मानदंडो पर रेलवे स्टेशनों की रैंकिंग को भी सार्वजनिक किया जा चुका है।

सर्वेक्षण में यात्रियों ने शौचालय की सफाई, बेड रोल्स की सफाई, पेस्ट मैनेजमेंट की प्रभावशीलता, हाउसकीपिंग स्टाफ के काम और डस्टबिन की उपलब्धता के आधार पर ज़ीरो से पांच तक के अंक दिए।

ट्रेन में शौचायल की सफाई पर बात करते हुए रेलवे के एक अधिकारी ने इस बात को स्वीकारा कि रेलवे में शौचायल की स्वच्छता को बनाए रख पाना वाकई बहुत कठिन काम है। उनके अनुसार एक शौचालय दिनभर में लगभग 60 बार इस्तेमाल किया जाता है।

आपको बता दें कि रेलवे की एन्वायरन्मेंट एंड हाउसकीपिंग मैनेजमेंट शाखा द्वारा स्वच्छता की जाँच करने का यह पहला सर्वेक्षण है।

7000 km नई सड़कें, 120 km/h की रफ़्तार: जानें क्या है भारतमाला 2.0

हाईवे विकास की अगली योजनाओं का सारा का सारा फोकस अब एक्सप्रेसवेज बनाने में होने वाला है ताकि वाहन बिना किसी बाधा के फ़र्राटे भर सके। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार 2024 तक सरकार 3000 किलोमीटर नए एक्सप्रेसवे बना कर तैयार कर लेगी। इतना ही नहीं, देश के कुछ प्रमुख शहरों के बीच 4000 किलोमीटर नए ग्रीनफ़ील्ड हाईवे भी बनाए जाएँगे। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने इसके लिए तैयारियाँ शुरू कर दी हैं।

3000 किलोमीटर के नए एक्सप्रेसवे वाराणसी-राँची-कोलकाता, इंदौर-मुंबई, बेंगलुरु-पुणे और चेन्नई-त्रिची सहित कई शहरों को जोड़ने का काम करेगी। इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया:

“भारतमाला के पहले चरण के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने में हमें लगभग दो साल लग गए थे। इससे अगली बहुत सी परियोजनाओं के लिए डीपीआर तैयार करने से समय की बचत होगी और तेजी से निष्पादन के लिए उच्च गुणवत्ता वाली विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।”

बता दें कि डीपीआर में देरी के कारण सरकार को पहले भी कई बार परियोजनाओं में देरी का सामना करना पड़ा है। इसीलिए, इस बार सरकार इस मामले में सख्त है और अधिकारीगण इसे तय समय सीमा के भीतर पूरा करने में लगे हुए हैं। सरकार ने इस बार पहले से ही कंपनियों को डीपीआर बनाने के लिए आमंत्रित करना शुरू कर दिया है।

ग्रीनफ़ील्ड हाईवे के तहत पटना-राउरकेला, झांसी-रायपुर, सोलापुर-बेलगाम, गोरखपुर-बरेली और वाराणसी-गोरखपुर के बीच हाइवेज बनाए जाएँगे। अभी मौज़ूदा सड़क कॉरिडोर को बढ़ाने के बजाय सरकार ग्रीनफ़ील्ड हाइवेज पर इसीलिए ध्यान दे रही है ताकि जमीन अधिग्रहण में देरी न हो। इस में सरकार को लागत भी कम आएगी, क्योंकि जमीन ख़रीदने के लिए अधिक क़ीमत नहीं देनी पड़ेगी। साथ ही, अतिक्रमण से भी बचा जा सकेगा।

सरकारी सूत्रों के अनुसार इन सभी परियोजनाओं को 2024 तक पूरा कर लिया जाएगा। अभी हाल ही में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी को पत्र लिख कर सूचित किया था कि राजधानी की कुछ सड़कों को भी भारतमाला के तहत विकसित किया जाएगा। इस से दिल्ली में लगातार बढ़ रही ट्रैफ़िक समस्या से निज़ात मिलने की उम्मीद है। ये सड़कें 6 लेन की होंगी।

इसके अलावा सरकार ने इस बार इस बात का भी ध्यान रखा है कि नई सड़क परियोजनाएँ नेशनल पार्क, बर्ड-सैंक्चुरी इत्यादि के आसपास न हो ताकि वन विभाग, पर्यावरण विभाग इत्यादि से क्लीयरेंस लेने की नौबत ही न आए। अक्सर ऐसा देखा गया है कि इस प्रकार की क्लीयरेंस के चक्कर में फ़ाइलें इस विभाग से उस विभाग तक घूमती रहती हैं और परियोजनाओं में देरी का कारण बनती हैं।

तृणमूल ने लोकतंत्र को तबाह किया: CPI(M) का कोलकाता महारैली पर हमला

शनिवार को कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा आयोजित मेगा रैली में 20 से भी अधिक दलों के नेतागण पहुँचे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। विपक्षी एकता दिखाने के लिए आयोजित की गई इस रैली को तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) अध्यक्ष ममता बनर्जी ने शक्ति प्रदर्शन के तौर पर पेश किया। इस रैली में फारुक अब्दुल्लाह ने EVM को चोर मशीन बताया तो वहीं अखिलेश यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री जनता तय करेगी। रैली में भाग लेने आए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से जब विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर प्रश्न पूछा गया तो वो हड़बड़ा गए

वहीं पश्चिम बंगाल में विपक्षी पार्टी CPI(M) ने इस रैली को आड़े हाथों लेते हुए विपक्षी एकता की पोल खोल दी। इस रैली के लिए वामदलों के नेताओं को भी निमंत्रण भेजा गया था लेकिन उन्होंने इस आयोजन से किनारा कर लिया और रैली में भाग नहीं लिया। सीपीआई ने तृणमूल कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी ने राज्य में लोकतंत्र और संस्थाओं को तो तबाह कर दिया है लेकिन केंद्र में मोदी से लड़ने के बड़े-बड़े दावे कर रही है।

सीपीआई के राज्य महासचिव और पोलित ब्यूरो के सदस्य सूर्य कान्त मिश्रा ने कहा:

TMC और BJP एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और दोनों कई ‘अलोकतांत्रिक लक्षण’ साझा करते हैं। TMC को देश में लोकतंत्र पुनर्स्थापित करने की बातें करने का कोई हक़ नहीं है। उन्होंने 2011 में सत्ता सँभालने के साथ ही राज्य में लोकतंत्र को नष्ट कर दिया है और राज्य की संस्थाओं को विकृत कर दिया है। जिस तरह से उन्होंने पिछले पंचायत चुनाव का संचालन किया, वो लोकतंत्र पर एक धब्बा है।”

सीपीआई द्वारा तृणमूल और विपक्षी एकता का दावा करने वाली महारैली को निशाने पर लेना यह बताता है कि विपक्षी दल भले ही मंच से हाथ हिला-हिला कर कितनी भी एकता दिखा लें, रह-रह कर उनके मतभेद सामने आ ही जाते हैं। वामदलों का तृणमूल कॉन्ग्रेस द्वारा आयोजित रैली का बहिष्कार करना भी यही दिखाता है। वामदलों ने कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया था और ममता भी वहाँ पहुँची थी।

मिश्रा ने तृणमूल कॉन्ग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को एक ही पन्ने पर रखते हुए यह भी कहा कि जो राज्य में तृणमूल सरकार 2011 से कर रही है, वही केंद्र में राजग सरकार 2014 से कर रही है। उन्होंने कहा कि तृणमूल कॉन्ग्रेस एक राजनीतिक दल के रूप में न तो लोकतंत्र का सम्मान करती है और न ही संवैधानिक मानदंडों का। वामदलों द्वारा महारैली को आँखें दिखाने के बाद विपक्षी एकता के सूत्रधारों में बेचैनी बढ़नी तय है।

वेरी शौरी साहब! आपको दलदल से कोई और नहीं, सिर्फ ‘शौरी’ ही निकाल सकते हैं

आए दिन ऐसी ख़बरें आती रहती हैं जब हमें किसी नेता के दल बदलने की बात पता चलती है या फिर किसी राजनीतिक दल के इस गठबंधन से उस गठबंधन में जाने की बात पता चलती है। मतलब नेताओं के लिए पाला बदलना अब एक सामान्य ख़बर हो गई है। नेताओं की यह ‘बीमारी’ अब एक कदम आगे बढ़कर कुछ और लोगों को भी लग गई है। मसलन, आजकल के पत्रकार भी कई धुरों में बँटे हुए हैं, मीडिया हाउसेज का तो कहना ही क्या! ट्रेन की डिज़ाइन में खोट निकालना हो या ‘क्रान्तिकारी’ बयान को काट-छाँट कर पेश करना- आजकल के पत्रकार इन सबमें माहिर हो चुके हैं। अजेंडा विशेष पर काम करता आज का मीडिया और उसके एक वर्ग द्वारा झूठ फैलाना भी सामान्य हो गया है।

अब बात थोड़ी ऊपर लेवल की। आप एक ऐसे बुद्धिजीवी के बारे में क्या कहेंगे, जो राजनीति के दलदल में ऐसा उतर आया हो कि उसे ख़ुद की भी सुध नहीं रही? एक जमाने में पत्रकारिता के पुरोधा रहे उस व्यक्ति के बारे में क्या कहेंगे, जो आज उन्हीं की गोद में जाकर बैठ गया है जिनके ख़िलाफ़ लिख कर उसे प्रसिद्धि मिली? उस नेता के बारे में क्या कहेंगे, जो आज उसी पार्टी के विरोध में खड़ा है, जिसने उसे पहली बार संसद दिखाया, मंत्री बनाया, अपने हिसाब से कार्य करने की खुली छूट दी और सत्ता का स्वाद चखाया? उस बेस्टसेलर लेखक के बारे में क्या कहेंगे, जो आज अपनी ही किताबों में लिखी गई बातों को धता बता रहा है? उस अर्थशास्त्री के बारे में आपकी क्या राय होगी, जो आज अनर्थ पर तुल आया हो?

ये सब अलग-अलग लोग नहीं हैं बल्कि एक ही नाम है इनका- अरुण शौरी। नेताओं और आजकल के पत्रकारों के ‘गिरने’ की कई ख़बरें हम सुनते हैं और वो हमें चकित नहीं करतीं लेकिन 77 साल के एक बुज़ुर्ग का पाला बदल लेना, वो भी बिना किसी ठोस कारण के- हमें चकित करता है। हमें चकित करता है कि आख़िर क्यों कभी संघ की पैरवी करने वाला आज उन्हीं की गोद में जा बैठा है, जो संघ को गाली देते नहीं थकते। ऐसा नहीं है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एजेंडा बदल गया है, ऐसा भी नहीं है कि भाजपा ने अपनी नीतियाँ बदल दी हैं- दोनों की विचारधाराएँ वही हैं, लेकिन शौरी कहीं और भटक रहे हैं।

भाजपा और संघ के विरोध से हमें कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। अगर शौरी हमेशा से भाजपा और संघ के ख़िलाफ़ रहते तो शायद हम आज उन पर नहीं लिख रहे होते, लेकिन एक दलबदलू नेता को भी पीछे छोड़ते हुए जिस तरह उन्होंने सत्तालोलुपों के बीच अपनी जगह बनाई है- ये उन्हें अपनी प्रेरणा मानने वालों के लिए गहरा धक्का है। ये करारी चोट है पत्रकारिता में आए उन युवाओं पर, जो आपातकाल के दौरान शौरी की साहस भरी लेखनी से प्रभावित रहे हैं। वो कौन सी मज़बूरी है, जिसने ऐसे बुद्धिजीवी की सोच-शक्ति छीन कर उसे प्रशांत भूषण जैसों के साथ ला खड़ा किया!

आज हम में से कोई इतना बड़ा नहीं है जो शौरी की उपलब्धियों पर सवाल कर सके, उन्हें सिखा सके कि करना क्या है? लेकिन हाँ, अगर ख़ुद अरुण शौरी ही अरुण शौरी को बताएँ कि आप गलत हैं तो कैसा रहेगा? हमारी यही कोशिश है कि शौरी को शौरी ही आइना दिखा कर यह सूचित करें कि आप गलत जगह पर हैं, आप ऐसे लोगों के साथ हैं, जो आपकी क़द्र नहीं करते, आप ऐसे लोगों के साथ हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके मोदीविरोधी बयानों के कारण आपको तवज्ज़ो देते हैं, आप ऐसे लोगों के साथ हैं, जो सत्ता मिलने पर न आपकी मानेंगे न आपका कहा करेंगे।

आपके सेक्युलर एजेंडा का क्या हुआ शौरी साहब?

1997 में अरुण शौरी की एक क़िताब आई थी- ‘अ सेक्युलर एजेंडा‘। इस किताब को लिखने वाले अरुण शौरी मायावती की पार्टी के साथ मंच साझा करने वाले अरुण शौरी को ऐसा आइना दिखाने की ताकत रखते हैं, जो शायद कोई और चाह कर भी उन्हें न दिखा पाए। उस क़िताब में अरुण शौरी लिखते हैं कि हिन्दुओं की कड़ी प्रतिक्रिया सरकार के प्रो-माइनॉरिटी (Pro-Minority) रुख का एक स्वाभाविक परिणाम है। आज वाले अरुण शौरी यह नहीं मानते। वो नहीं मानते कि हिन्दुओं की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है, क्योंकि वो तो उनके साथ बैठते हैं जो हिन्दू आतंकवाद की बातें करते हैं। किताब वाले शौरी साहब ममता के अतिथि शौरी से पूछते हैं कि अगर हिन्दुओं की प्रतिक्रिया नेचुरल है, स्वाभाविक है- जैसा कि आपने अपने किताब में लिखा है, तो फिर आप उस स्वाभाविक प्रतिक्रिया को आतंकवाद कहने वालों के साथ मंच क्यों साझा कर रहे हैं?

अपनी इस पुस्तक में शौरी साहब यूनिफार्म सिविल कोड की वकालत करते हैं लेकिन आज उन्हीं मायावती की पार्टी के साथ मंच साझा करते हैं, जो शरीयत क़ानून में किसी भी तरह की सुधार की गुंजाइश को सिरे से नकारती है। इस पुस्तक में अरुण शौरी ने बताया था कि कैसे पत्रकारों का एक सूडो-सेक्युलर (Pseudo-Secular) गैंग समाचारों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है, बयानों को गलत तरीके से दिखाता है और बनावटी स्टोरीज से लोगों को दिग्भ्रमित करता है ताकि हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों को खराब कर सके। लेकिन आज शौरी साहब उसी भाषा में बात करते हैं, जिसमे सुडो-सेक्युलर गैंग बात करता है। क्यों?

सर्जिकल स्ट्राइक पर भी ख़ुद को आइना दिखा सकते हैं शौरी

अरुण शौरी ने 2008 मुंबई हमलों के बाद एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने सरकार को आतंकियों के प्रति किसी भी तरह की नरमी न बरतने की सलाह दी थी। लेकिन एक दशक बाद वाले अरुण शौरी उस लेख वाले अरुण शौरी से अलग हैं। लेख वाले शौरी आतंकियों के बारे में कहते हैं:

‘एक आँख के बदले एक आँख नहीं। एक आँख के बदले दोनों आँख लो। एक दाँत के बदले एक दाँत नहीं, एक दाँत के बदले पूरा का पूरा जबड़ा उखाड़ लो।’

सितम्बर 2016 में भारतीय सेना ने यही किया। लेकिन अब ये लेख वाले शौरी नहीं थे, अब जो शौरी थे, वो सर्जिकल स्ट्राइक के विरोधी थे। अब शौरी के अनुसार भारतीय सेना का पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को मारना फर्ज़ीकल स्ट्राइक था। दाँत के बदले जबड़ा लाने की बात करने वाले शौरी के लिए अब भारतीय सेना का साहस फ़र्जीकल स्ट्राइक है! वो लेख वाले शौरी साहब सांसद थे। ये वाले न जाने क्या हैं! लेकिन वो लेख वाले सांसद शौरी बहादुर थे, सरकार को एक आँख के बदले दोनों आँखे लाने की सलाह देते थे। अभी वाले सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत माँगने वाले केजरीवाल के सुर में सुर मिलते हैं।

तब मोदी की प्रशंसा, अब अंधविरोध

2014 में ET Now को दिए एक इंटरव्यू में अरुण शौरी ने नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा था कि मोदी को तानाशाह बता कर उनकी आलोचना की जाती है लेकिन ये देश के लिए बिलकुल सही है क्योंकि लोग चाहते हैं कि मोदी सत्ता में आएँ और कड़े निर्णय लें। इस इंटरव्यू में समाचार चैनल ने कहा था कि अरुण शौरी मोदी सरकार में वित्त मंत्री हो सकते हैं। क्या इंटरव्यू वाले शौरी अभी वाले शौरी से यह पूछ सकते हैं कि क्या उनको वित्त मंत्री नहीं बनाया जाना ही उनकी नाराज़गी की वज़ह है?

तो क्या यह मान लिया जाए कि यशवंत सिन्हा की तरह अरुण शौरी भी इसीलिए उल्टे-सीधे बयान दे रहे हैं क्योंकि उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई? कभी तानाशाही को सही ठहराने वाले शौरी अब मोदी सरकार की आलोचना के लिए विकेन्द्रिकित आपातकाल का बहाना बनाते हैं। लेकिन कभी तानाशाही के पैरोकार रहे शौरी साहब को विकेन्द्रीकृत शासन (बकौल शौरी अगर ऐसा है भी तो) से किस तरह की परेशानी है?

आपातकाल ने आपको अरुण शौरी बनाया, भूल गए?

इसमें कोई शक़ नहीं कि अरुण शौरी को पत्रकारिता के क्षेत्र में जितने भी अवॉर्ड मिले हैं, जितनी भी प्रसिद्धि मिली है- वो सब आपातकाल के दौरान उनकी सरकार विरोधी लेखनी की देन है। उपर्युक्त इंटरव्यू में शौरी कहते हैं कि आज की स्थिति आपातकाल से भी बदतर है। बकौल शौरी, इंदिरा गाँधी ने क़ानून के अनुसार काम किया था और 1,75,000 लोगों को जेल में डालने के बाद भी इंदिरा गाँधी को अपनी सीमा का भान था

दिमाग काम नहीं कर रहा मेरा! क़रीब दो लाख लोगों को गिरफ़्तार करना सीमा नहीं है, तो भगवान जाने शौरी की नज़र में सीमा क्या होती है! आज की स्थिति को आपातकाल से भी बदतर बताने वाले शौरी क्या यह बता सकते हैं कि अगर 2 लाख लोगों को जेल में ठूँस देना सीमा है तो फिर मोदी सरकार ने कितनों को जेल में भेजा है? पीएम मोदी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाले जिग्नेश, हार्दिक, अकबरुद्दीन, इरफ़ान अंसारी, मणिशंकर अय्यर तक को भाजपा सरकार जेल नहीं भेज पाई, आपातकाल ख़ाक लगाएगी!

अरुण शौरी जी, आपको 2014 से पहले वाले शौरी चीख-चीख कर कह रहे हैं कि चेत जाइए वरना जिन सत्तालोलुपों के साथ आप मंच साझा कर रहे हैं- उनका काम बन जाने पर एक दिन वही आपको दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेकेंगे। आप न जनाधार वाले नेता हैं न आपकी राजनीतिक दलों में पैठ है। आपके पास भले अर्थशास्त्र का ज्ञान होगा लेकिन उनका इन गिरगिटों की नज़र में न कोई मोल रहा है, और न कभी होगा। आप लाख कोशिशें कर लें, मायावती की कैबिनेट में वित्त मंत्री तो राहुल गाँधी ही बनेंगे

सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण लाभ मामले में हिमाचल बना चौथा राज्य

हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण बिल को राज्य में मंजू़री दे दी है। इससे पहले गुजरात, झारखंड और उत्तर प्रदेश में इस बिल को मँजू़री मिल चुकी है। गुजरात पहला ऐसा राज्य था, जहाँ इसे म़ँजूरी मिली थी। बिल लागू होने के बाद से अब सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।

बिल को मिल चुकी है राष्ट्रपति की मँजू़री

संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद संविधान संशोधन (124वां) विधेयक, 2019 को 12 जनवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मँजू़री दे दी थी। इस संशोधन में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षा क्षेत्र में 10% आरक्षण का प्रावधान है।

बिल के विरोध में खड़ी DMK पार्टी

सामान्य वर्ग के आरक्षण बिल को राष्ट्रपति से म़ँजूरी मिलने के बाद से डीएमके पार्टी इसका विरोध कर रही थी। डीएमके ने बिल पर विरोध जताते हुए इसके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। हाई कोर्ट में दायर याचिका में डीएमके ने कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढाँचे के ख़िलाफ़ है। पार्टी के अनुसार संविधान के हिसाब से आर्थिक रूप से कमजोर लोग आरक्षण के योग्य नहीं हैं।

21 बांग्लादेशी घुसपैठियों को भेजा गया उनके देश

असम में भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सुतारकांडी-करीमगंज में अवैध रूप से रह रहे 21 बांग्लादेशी नागरिकों को उनके देश वापस भेजा दिया गया। इसमें दो महिलाएँ भी शामिल थीं। दो साल बाद आव्रजन जाँच चौकी से इनको कानूनी तरीके से वापस भेजा गया। बता दें कि इन्हें बिना पासपोर्ट, वीज़ा के घुसने के जुर्म में असम की बॉर्डर पुलिस ने गिरफ़्तार किया था।

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय को सौंपे गए नागरिक

सभी 21 बांग्लादेशी नागरिकों को असम बॉर्डर पुलिस और बीएसएफ की अगुवाई में बांग्लादेश राइफल्स और बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को सौंप दिया गया। बता दें कि आए दिन बांग्लादेशी नागरिकों के चोरी-छिपे भारतीय सीमा में घुसने का मामला सामने आता रहता है। चूँकि बांग्लादेश के गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों के लिए भारत में आसानी से मज़दूरी करने और रोज़गार के मौके मिल जाते हैं, इसी आस में सीमा पार कर ये लोग अक्सर भारत में घुस आते हैं।

घुसपैठ के खिलाफ हो चुका है आंदोलन

बता दें कि बांग्लादेशी घुसपैठ से परेशान होकर 1979 से 1984 तक 6 साल ‘अखिल असम छात्र संघ’ ने इनके खिलाफ आंदोलन किया था। इसके बाद असम में 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ असम समझौता (असम एकॉर्ड) पर हस्ताक्षर हुआ था। इसमें असम की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा और उनके क्रियान्वन के लिए कई माँगों पर सहमति बनी थी।

भ्रष्टाचारियों का है महागठबंधन, हमारा गठबंधन सवा सौ करोड़ जनता से: PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को ध्यान में रखते हुए लगातार कार्यकर्ताओं से संपर्क बनाए हुए हैं। इसी कड़ी में उन्होंने ‘नमो ऐप’ के जरिए महाराष्ट्र और गोवा के कार्यकर्ताओं से बातचीत की। इस दौरान पीएम ने विपक्ष पर भी जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों के चलते राजनीतिक कार्यकर्ताओं को आमतौर पर दलाल समझा जाता है। हालाँकि हमारे कार्यकर्ताओं को माँ भारती के लाल के तौर पर समझा जाता है।

कोलकाता ब्रिग्रेड पर पीएम का हमला

प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को कोलकाता में हुई विपक्षी पार्टियों की रैली पर तंज कसते हुए कहा कि जिस मंच से ये लोग देश और लोकतंत्र बचाने की बात कह रहे थे, उसी मंच पर एक नेता ने बोफोर्स घोटाले की याद दिला दी।

आखिर सच्चाई कैसे छुप सकती है? पीएम ने ‘लोकताँत्रिक जनता दल’ के अध्यक्ष शरद यादव के कोलकाता के उस भाषण का कोट दिया, जिसमें शरद ने कहा कि बोफोर्स की लूट, फौज का हथियार और फौज का जहाज यहाँ लाने का काम हुआ। जवान सीमा पर शहादत दे रहे हैं और डकैती डालने का काम बोफोर्स में हुआ है।

‘हमारा गठबंधन सवा सौ देशवासियों से है’

पीएम मोदी इस दौरान महागठबंधन पर जमकर निशाना साधते हुए कहा, “ये महागठबंधन एक अनोखा बंधन है। ये बंधन नामदारों का बंधन है। ये बंधन भाई-भतीजावाद का बंधन है। ये बंधन भ्रष्टाचार और घोटालों का बंधन है। ये बंधन नकारत्मकता का बंधन है।”

पीएम मोदी ने आगे कहा, “ये बंधन अस्थिरता और असमानता का बंधन है। महागठबंधन वाले वही लोग हैं, जो बिना सोचे-समझे देश के हर संवैधानिक संस्था को बदनाम करते हैं। उन्होंने एक दूसरे के साथ गठबंधन किया है। हमने सवा सौ करोड़ देशवासियों के साथ गठबंधन किया है।”

10 फीसदी आरक्षण के चुनावी बताने वालों को पीएम ने जवाब देते हुए कहा कि बताइए देश में कब चुनाव नहीं होता है? अगर इससे पहले हम ये फैसला लेते तो लोग कहते कि चुनाव के दौरान फैसला लिया गया। हमारे इस फैसले से विपक्षी दलों की नींद हराम हो गई है। इसलिए वो तरह-तरह की अफवाहें फैला रहे हैं।

‘हमारे कार्यकर्ताओं से लोगों को जुड़ाव है

पीएम मोदी ने कार्यकर्ताओं की तारीफ करते हुए कहा कि बीजेपी कार्यकर्ता चाहे नया हो या पुराना, उसे लेकर लोगों में एक अच्छा प्रभाव है, एक जुड़ाव है। लोगों को भरोसा है कि यह सुख-दुःख में काम आने वाला व्यक्ति है। देश और समाज की चिंता करने वाला व्यक्ति है।

उन्होंने कहा, “कई स्थान ऐसे थे जहाँ हमारी पार्टी की उपस्थिति बहुत कम है। लेकिन आज कई ऐसे स्थान हैं जहाँ सांसद, विधायक, कॉरपोरेटर सभी बीजेपी के ही हैं। लेकिन सभी जगह जो बात सामान्य थी वो है बीजेपी कार्यकर्ताओं का जज़्बा, ईमानदारी, मेहनत और मज़बूती के साथ खड़े रहने की ताक़त।”

कर्नाटक में कॉन्ग्रेस के 2 MLA भिड़े, सिर पर मारी बोतल

कॉन्ग्रेस के अंदरुनी खेमें से खटपट की ख़बरें आए दिन उजागर होती रहती हैं। इससे पार्टी की बिगड़ती छवि तो दिखती ही है, साथ में पार्टी के अंदर फैला गहरा असंतोष भी जगज़ाहिर होता है। कर्नाटक में कॉन्ग्रेस के दो विधायक किसी बात को लेकर आपस में न सिर्फ़ भिड़ गए बल्कि बात हाथापाई की नौबत तक आ गई।

बेंगलुरू के जिस होटल में कॉन्ग्रेसी विधायक आनंद सिंह और जेएन गणेश ठहरे हुए थे, वहीं यह झड़प हुई। किसी बात को लेकर दोनों में आपसी विवाद इतना बढ़ गया कि जेएन गणेश ने आनंद सिंह के सिर पर बोतल से वार कर दिया। घायल स्थिति में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।

कर्नाटक के डिप्टी सीएम जी परमेश्वर ने कहा कि दोनों विधायकों के बीच हुई लड़ाई की जानकारी उन्हें मीडिया के ज़रिए मिली है। आपसी विवाद के बारे में उन्हें पार्टी से अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है। जैसे ही कोई जानकारी मिलेगी, वो साझा करेंगे।

बीजेपी ने इस हाथापाई पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस के भीतरी खेमे में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। इसके लिए किसी और प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। रिजॉर्ट में हुई आपसी भिड़ंत के चलते एक कॉन्ग्रेसी विधायक अस्पताल में भर्ती है। इसके अलावा बीजेपी ने घायल विधायक आनंद सिंह के जल्दी ठीक होने की कामना भी की।

बीजेपी ने कहा कि यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी (KPCC) के प्रमुख भी इस लड़ाई को रोकने में असमर्थ थे। दिनेश गुंडू राव (Dinesh Gundu Rao) अब बीजेपी पर दोष नहीं मढ़ सकते, क्योंकि रिजॉर्ट में जो हुआ वो किसी की नज़र से दूर नहीं है।

माखनलाल यूनिवर्सिटी की जाँच समिति के गठन पर ख़ुद घिरी कॉन्ग्रेस

मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस को सत्ता पर आसीन हुए अभी जुम्मा-जुम्मा कुछ ही दिन हुए हैं और पार्टी ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया है। अभी-अभी सत्ता पर विराजमान हुई कमलनाथ सरकार ने आईएएस अधिकारी पी नरहरी को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया।

कुलपति बनाए गए पी नरहरी कॉन्ग्रेस द्वारा संचालित राजीव गाँधी फाउंडेशन का प्रचार अपने सोशल मीडिया से कर चुके हैं। राजीव गाँधी फाउंडेशन जैसे गैर-सरकारी तंत्र का प्रचार करने वाले को एकाएक कुलपति नियुक्त करना किस हद तक न्यायोचित है? क्या उनकी सबसे बड़ी क़ाबिलियत फाउंडेशन का प्रचार करना है या फिर इसके पीछे कॉन्ग्रेस की राज्य सरकार की कुछ और ही मंशा छिपी हुई है?

अभी हाल ही में माखनलाल विश्वविद्यालय को लेकर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा एक जाँच समिति का गठन किया गया है। इसके अध्यक्ष के रूप में एक आईएएस अधिकारी एम गोपाल रेड्डी को नियुक्त किया गया है। एम गोपाल रेड्डी की छवि भी बेदाग नहीं है। यह वही रेड्डी हैं, जिनके ख़िलाफ़ सेवा के दौरान भ्रष्टाचार समेत तमाम आरोप लगे थे। इनके ख़िलाफ़ जालसाज़ी जैसे गंभीर मामले भी दर्ज़ हुए थे। भ्रष्टाचार मामलों में आरोपित रेड्डी को अध्यक्ष बनाना कितना न्यायसंगत है, इसे समझना किसी के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। साथ ही यह कॉन्ग्रेस की मंशा को भी स्पष्ट करता है।

आपको बता दें कि माखनलाल विश्वविद्यालय की स्थापना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पारित अधिनियम से हुई थी। भारत के उपराष्ट्रपति इसके विजिटर हैं। ऐसे में ताज्जुब की बात है कि इस जाँच समिति का गठन उपराष्ट्रपति को जानकारी दिए बिना ही हो गया। कॉन्ग्रेस का यह एक-तरफा निर्णय उसके तानाशाही स्वभाव को व्यक्त करता है।

इस पूरे मामले की तह तक जाने पर कॉन्ग्रेस की भ्रष्ट सोच सामने आती है। क्योंकि सवाल अब यह है कि कॉन्ग्रेस 2003 के बाद की ही नियुक्तियों की जाँच अपने दागी अधिकारियों से क्यों करवाने पर तुली है? क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक साज़िश या खेल है, जिसे कॉन्ग्रेस किसी प्रायोजित तरीक़े से अंजाम देने की कोशिश कर रही है? और यह मान भी लिया जाए कि कॉन्ग्रेस जाँच करा ही रही है, तो फिर उसके लिए साल 2003 ही क्यों निर्धारित किया गया?

विश्वविद्यालय की नींव 1991 में रखी गई थी। उसके बाद तो कॉन्ग्रेस ने ही वहाँ वर्षों तक एकछत्र राज किया था। तब क्या कॉन्ग्रेस गहरी नींद में सोई हुई थी या इतनी आश्वस्त थी कि उसके शासनकाल में कोई गड़बड़ी ही नहीं हुई! उस समय दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। सवाल यह है कि जाँच करने पर अमादा कॉन्ग्रेस, विश्वविद्यालय की स्थापना के समय से ही जाँच क्यों नहीं कर रही है। क्या कॉन्ग्रेस इस बात से डरी हुई है कि अगर जाँच शुरुआत से हुई तो कहीं उनके काले-चिट्ठे सामने ना आ जाएँ?

Subtitle – मध्य प्रदेश की सरकार 2003 के बाद की नियुक्तियों की जाँच अपने दागी अधिकारियों से क्यों करवाने पर तुली है? इसके पीछे कोई साज़िश या खेल है जिसे कॉन्ग्रेस प्रयोजित तरीक़े से अंजाम तक ले जाने की कोशिश में है
Excerpt – एक भगोड़े और मनी लॉन्ड्रिंग के दोषी ज़ाकिर नइक से कॉन्ग्रेस की इतनी गहरी दोस्ती की आख़िर क्या वजह हो सकती है