Wednesday, October 2, 2024
Home Blog Page 5513

अब तक 8,50,000 लाभान्वित ग़रीबों के साथ आयुष्मान भारत योजना नए कीर्तिमान की ओर

आयुष्मान भारत योजना की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल 2018 के बजट में भाषण में की थी। और इस योजना को आरएसएस विचारक दीन दयाल उपाध्याय की जयंती (25 सितंबर) पर झारखंड के रांची से लॉन्च किया गया था। इसके तहत ग़रीब परिवारों को सालाना 5 लाख रुपए के मुफ़्त इलाज की व्यवस्था की है। इस योजना को ‘सर्वश्रेष्ठ सरकारी हेल्थकेयर योजना’ के रूप में पेश किया गया था और आज ये योजना अपनी उम्मीदों पर खरा साबित हुआ है।

इस योजना के दायरे में, 10 करोड़ से अधिक BPL (ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले नागरिक) परिवारों, अर्थात 50 करोड़ बीपीएल लोगों को 5 लाख रूपए का स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करने की सम्भावना व्यक्त की गई थी। इस योजना के तहत, सभी योग्य लाभार्थियों को पैनल में शामिल किसी भी सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में मुफ़्त इलाज की सुविधा का प्रावधान है।

लगभग 4 महीने के अंदर ही इस योजना के परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं। प्रमाण स्वरुप दुनिया की दिग्गज टेक्नॉलजी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक और गेट्स फाउंडेशन के को-चेयरमैन बिल गेट्स ने केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी ‘आयुष्मान भारत योजना’ की तारीफ़ की है। बिल गेट्स ने इस योजना की लॉन्चिंग के 100 दिनों में 6 लाख से ज़्यादा मरीजों द्वारा लाभ उठाए जाने पर सुखद आश्चर्य प्रकट किया। उन्होंने सोशल मीडिया साइट ट्विटर पर लिखा, “आयुष्मान भारत के पहले 100 दिन के मौके पर भारत सरकार को बधाई। यह देखकर अच्छा लग रहा है कि कितनी बड़ी तादाद में लोग इस योजना का फ़ायदा उठा चुके हैं।”  

पिछले दिनों, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने 2 जनवरी को ट्वीट कर देशवासियों को बताया था कि 100 दिनों के अंदर ही 6 लाख 85 हजार लाभार्थियों ने आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ्त उपचार लाभ लिया। उन्होंने कहा था कि लाभार्थियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। बिल गेट्स ने स्वास्थ्य मंत्री के इसी ट्वीट को रीट्वीट करते हुए भारत सरकार को बधाई दी।

इससे पहले भी नड्डा ने एक ट्वीट कर सूचना दी थी कि ‘आयुष्मान भारत योजना’ एक नया कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है।

ग़ौरतलब है कि मीडिया संस्थानों ने इसे ‘मोदीकेयर’ का नाम भी दिया है। आयुष्मान भारत के सीईओ डॉ. इंदु भूषण ने बताया कि बुधवार (जनवरी 16, 2019) तक तक़रीबन 8.50 लाख लोग आयुष्मान भारत योजना के तहत लाभान्वित हुए।

बता दें, इस योजना को सफ़ल बनाने के लिए, केंद्र सरकार ने पीएम जन आरोग्य योजना टोल-फ़्री नंबर भी जारी किया है- 14555 । आप इस नंबर पर कॉल कर सकते हैं और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ऑनलाइन पंजीकरण के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आप इस टोल-फ़्री नंबर पर कॉल करके प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना लाभार्थियों की सूची में अपना नाम भी देख सकते हैं।

यदि आपका नाम लाभार्थियों की सूची में मौजूद नहीं है, तो आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आप अपने निकटतम आरोग्य मित्र/आयुष मित्र के पास जाकर पीएम जन आरोग्य योजना के लाभार्थियों की सूची में अपना नाम जोड़ सकते हैं। आयुष  मित्र आपको प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में शामिल सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में मिलेंगे। वे सूची में नाम शामिल करने में आपकी सहायता करेंगे। सूची तैयार होने के बाद तब इस योजना का लाभ लेने के लिए किसी भी पहचान पत्र की जरूरत नहीं होगी।

पंजीकरण

आपको इस योजना के लिए कोई आवेदन पत्र और पंजीकरण भरने की आवश्यकता नहीं है। जिन लोगों का नाम सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना सूची 2011 (एसईसीसी 2011) में पंजीकृत है। वे इस योजना के लाभार्थी होंगे और इस स्वास्थ्य बीमा योजना के लाभों का लाभ उठा सकते हैं। सरकार इसके बारे में सभी लाभार्थियों को एक आयुष्मान भारत योजना पत्र भेजकर सूचित करेगी।

अगर आप जानना चाहते हैं कि आपका रजिस्ट्रेशन हो गया? या नहीं। योजना में आपका नाम है या नहीं यह आप https://mera.pmjay.gov.in/search/login पर चेक कर सकते हैं। सबसे पहले आप इस वेबसाइट पर जाएँ। यहाँ होम पेज पर एक बॉक्स मिलेगा। इसमें मोबाइल नंबर डाले। उस पर ओटीपी आएगा। इसे डालते ही पता चल जाएगा कि आपका नाम इसमें जुड़ा है या नहीं।

अस्पताल में कैसे मिलेगा लाभ?

आयुष्मान भारत योजना के लिए आधार कार्ड की आवश्यकता नहीं है। अस्पताल में भर्ती होने के बाद आपको अपने बीमा दस्तावेज़ देने होंगे। इसके आधार पर अस्पताल इलाज के ख़र्च के बारे में बीमा कंपनी को सूचित कर देगा। इस योजना के तहत बीमित व्यक्ति सिर्फ सरकारी ही नहीं बल्कि इस योजना से जुड़े निजी अस्पतालों में भी अपना इलाज करवा सकेगा।

कौन-सी बीमारी है इस योजना के दायरे में

इस योजना के अन्तर्गत मैटरनल हेल्थ और डिलीवरी की सुविधा, नवजात और बच्चों के स्वास्थ्य, किशोर स्वास्थ्य सुविधा, कॉन्ट्रासेप्टिव सुविधा, संक्रामक, ग़ैर-संक्रामक रोगों के प्रबंधन की सुविधा, आँख, नाक, कान और गले से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए अलग से यूनिट होगी। बुजुर्गों का इलाज भी करवाया जा सकेगा।

किन-किन राज्यों में है सेंटर

इसके दो कंपोनेंट हैं- पहला, 10.74 लाख परिवारों को मुफ़्त 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा; दूसरा, हेल्थ वेलनेस सेंटर। इसमें देशभर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अपडेट होंगे। इन सेंटर्स पर इलाज के साथ मुफ़्त दवाएँ भी मिलेंगी: छत्तीसगढ़ में 1000, गुजरात में 1185, राजस्थान में 505, झारखंड में 646, मध्यप्रदेश में 700, महाराष्ट्र में 1450, पंजाब में 800, बिहार में 643, हरियाणा में 255।

दिल्ली, केरल, ओडिशा, पंजाब और तेलंगाना राज्य सरकारों ने इस योजना को लागू करने से इनकार कर दिया था।

कुछ सूचनाएँ आयुष्मान भारत के आधिकारिक वेबसाइट pmjay.gov.in से ली गई हैं

लेखानुदान (Vote on Account) से बड़ा होगा अंतरिम बजट का दायरा: वित्त मंत्री अरुण जेटली

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बात के संकेत दिए हैं कि चुनावी साल में अंतरिम बजट लेखानुदान (Vote on Account) से बढ़कर होगा। इंडिया बिज़नेस लीडर अवार्ड्स समारोह में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में वित्त मंत्री ने कहा कि सामान्यतः चुनावी साल में प्रस्तुत किया जाने वाला बजट लेखानुदान ही होता है परंतु अंतरिम बजट में परंपरा से हटकर जो कुछ भी घोषणा की जाएगी वह भारतीय अर्थव्यवस्था के हित में ही होगा।

राष्ट्रहित और परंपरा की दुहाई देते हुए जेटली ने कहा कि अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। उन्होंने कहा: “परंपरा यही रही है कि चुनावी साल का बजट अंतरिम बजट होता है। देश के लिए क्या ज़रूरी है इससे तय होता है कि अंतरिम बजट में क्या होगा।”

हालाँकि अरुण जेटली ने यह बताने से मना कर दिया कि अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र विशेष में कौन सी घोषणाएँ हो सकती हैं लेकिन उन्होंने साफ़ संकेत दिया कि अंतरिम बजट मामूली वोट ऑन अकॉउंट नहीं होगा।

वित्त मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियों से निपटने के लिए चुनावी साल की परंपरा से अलग हटकर कुछ कर सकती है। वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि एक क्षेत्र हो सकता है जिसपर अंतरिम बजट में परंपरा से हटकर कुछ प्रावधान किए जा सकते हैं।

जेटली मेडिकल चेक-अप के लिए फिलहाल न्यूयॉर्क में हैं। चर्चा के दौरान उन्होंने अंतरिम बजट प्रस्तुत करने में अक्षम होने की आशंकाओं को खारिज कर दिया। वित्त मंत्री ने टैक्स स्लैब में बदलाव के सवाल पर कुछ नहीं कहा।

मुग़लसराय स्टेशन के बाद अब तहसील भी दीन दयाल उपाध्याय के नाम

उत्तर प्रदेश सरकार ने मुग़लसराय रेलवे स्टेशन के बाद अब तहसील का भी नाम बदल दिया गया है। राज्य सरकार के कैबिनेट मीटिंग में मुग़लसराय तहसील को पंडित दीन दयाल उपाध्याय तहसील का नाम दिया गया। मुग़लसराय तहसील उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के अंतर्गत आता है।

1968 में मुग़लसराय तहसील कार्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित रेलवे स्टेशन पर संघ विचारक दीन दयाल उपाध्याय मृत अवस्था में पाए गए थे। इसी वजह से स्थानीय लोग इस क्षेत्र के नाम को बदलकर दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर रखने की माँग कर रहे थे।

इससे पहले रेलवे स्टेशन का भी नाम बदला जा चुका है

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद मुग़लसराय रेलवे स्टेशन के नाम को बदलने के लिए केंद्र सरकार को एक सुझाव भेजा गया। केंद्र सरकार को भेजे अपने सुझाव में उत्तर प्रदेश सरकार ने मुग़लसराय का नाम बदलकर दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन रखने की बात कही थी।

केंद्र सरकार ने राज्य की इस माँग को जून 2018 में स्वीकार कर लिया। इसके बाद मुग़लसराय रेलवे स्टेशन का नाम पंडित दीन दयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन हो गया। रेलवे स्टेशन के नाम को बदले जाने के करीब छ: महीने बाद अब उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने मुग़लसराय तहसील का भी नाम बदलकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय तहसील करने का फ़ैसला किया है।

दीन दयाल उपध्याय नाम पर कई योजनाएँ भी चला रही है

पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर देश में कई सारी बड़ी सरकारी योजनाएँ चल रही हैं। इन योजनाओं में मुख्य रूप से दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना और दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना है।

यही नहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के सरकारी कर्मचारियों व पेंशनर्स तथा उनके परिवार के सदस्यों के लिए पंडित दीन दयाल उपाध्याय राज्यकर्मी कैशलेस चिकित्सा योजना भी शुरू की है, जिसमें उन्हें किसी भी बड़े रोग के इलाज की कैशलेस सुविधा दी जाएगी। इस तरह भाजपा सरकार ने संघ विचारक व एकात्म मानवतावाद का सिद्धांत देने वाले दीन दयाल उपाध्याय जी को सालों बाद सही मायने में वह सम्मान दिया है, जिस सम्मान के वो सच्चे हक़दार थे।   

कैबिनेट की मुहरः सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने वाला तीसरा राज्य बना यूपी

गुजरात और झारखण्ड के बाद, अब यूपी में योगी कैबिनेट ने सामान्य वर्ग के ग़रीब लोगों को आरक्षण देने वाले प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है। योगी कैबिनेट की मुहर के बाद सामान्य वर्ग वंचितों को शिक्षा व नौकरियों में 10 फ़ीसदी आरक्षण दिया जाएगा।

कैबिनेट में इसके अलावा डॉ. राम मनोहर लोहिया नलकूप योजना के अंतर्गत प्रदेश के विभिन्न जनपदों में 1.00 क्यूसेक क्षमता के 2000 नवीन नलकूपों के निर्माण संबंधी प्रस्ताव को भी पास किया गया।

सामान्य वर्ग के किन लोगों को मिलेगा आरक्षण का लाभ?

हालाँकि, इस बिल को ‘सवर्ण आरक्षण विधेयक’ कहकर दुष्प्रचारित किया गया लेकिन सत्य यह है कि यह धर्म और जाति से परे, सामान्य वर्ग के ग़रीब नागरिकों को लाभान्वित करने की योजना है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई मुस्लिम सामान्य वर्ग में आता है, और आर्थिक रूप से कमज़ोर है तो उसे 10 फ़ीसदी आरक्षण का फायदा मिलेगा। इसके अलावा बिल को स्वीकृति मिलने से पटेल-जाट-मराठाओं को भी इसका लाभ मिलेगा, क्योंकि ये सभी जातियाँ ‘सवर्ण’ के अंतर्गत ही आती हैं।

गुजरात, झारखंड में लागू हो चुका है आरक्षण

सामान्य वर्ग (आर्थिक रूप से कमजोर) आरक्षण बिल के तहत शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में मिलने वाले आरक्षण को गुजरात सरकार पहले ही लागू कर चुकी है। गुजरात पहला ऐसा राज्य बना था जहाँ आरक्षण लागू किया गया हो। वहीं, गुजरात के बाद झारखंड ने समान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के लिए आरक्षण लागू करने का प्रावधान किया था।

#5YearChallenge के ज़रिए ट्विटर पर दिखा 5 सालों में कैसे बदला भारत

ट्विटर और फ़ेसबुक अक्सर अपने ‘क्रिएटिव’ हैशटैग्स के माध्यम से लोगों में चर्चा का विषय बन जाते हैं, जिस कारण लोग इसमें बहुत सक्रियता दिखाते हैं और कुछ लोग इसे हँसी-मजाक का ही एक और बहाना मानकर जमकर ‘फ़न’ भी लेते हैं।

आजकल सोशल मीडिया में #10YearsChallenge नाम से एक नया ‘हैशटैग’ शुरू किया गया, जिसमें ट्वीटर यूज़र्स ने अपने पिछले 10 साल के बदलाव पर तरह-तरह से फ़ोटो और ‘कोलाज़’ बनाकर शेयर किए। इसी बहाने एक और हैशटैग ने भी ज़ोर पकड़ा और 5 साल चैलेंज (#5YearsChallenge) के रूप में ट्रेंड करने लगा।

10 साल की चुनौती के ‘वायरल’ होने के बाद भाजपा इस ट्रेंड को भुनाने लगी और पार्टी की ओर से पिछले 5 साल के दौरान हुए कार्यों के लिए #5YearChallenge कैंपेन शुरू किया गया। ट्विटर पर पार्टी की ओर से 5 साल में मोदी सरकार के दौरान देश में हुए बदलावों पर तथ्यों को साझा किया गया है। इनमें बताया जा रहा है कि UPA सरकार के दौरान यानि, 5 साल पहले क्या हालात थे और अब क्या हैं। इस हैशटैग के माध्यम से मोदी सरकार की साल 2014 से साल 2019 के बीच की उपलब्धियों को सोशल मीडिया पर लोगों के बीच रखा जा रहा है।

एक नज़र #5YearChallenge पर:

कुम्भ मेला: बीजेपी ने प्रयागराज में चल रहे अर्ध कुंभ को साल 2013 और साल 2019 में आवंटित बजट से शुरुआत की। जिसमें बताया गया है कि साल 2013 में कुम्भ के लिए ₹1,300 करोड़ आवंटित किए गए थे और साल 2019 में ₹4,200 करोड़ आवंटित किए गए हैं।

बोगीबील पुल: इसके बाद भाजपा ने ज़िक्र किया गत वर्ष असम स्थित बोगीबील पुल उद्घाटन का, जिसमें लिखा गया है, “दशकों से लटका हुआ बोगीबील पुल मोदी सरकार के दौरान बन कर तैयार हुआ।”

खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि

कोल्लम बाईपास: भाजपा ने ट्वीट कर कहा कि 13 किलोमीटर लम्बे कोल्लम बाईपास, जिसकी ख़बर 43 वर्षों तक नहीं ली गई थी, उस प्रोजेक्ट को मोदी सरकार ने 2015 में अपने हाथ में लिया और महज़ 5 वर्षों में पूरा कर दिया।

रबी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि

कॉमन सर्विस सेंटर: भाजपा ने इस चैलेंज़ में ट्वीट किया कि 2014 तक देश में 84 हजार कॉमन सर्विस सेंटर थे जो 2018 में बढ़कर 3 लाख से ज्यादा हुए।
‘कॉमन सर्विस सेंटर’ यानि, साधारण जन सुविधा केंद्र मोदी सरकार की राष्ट्रीय ई-शासन योजना/National e-Governance Plan का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है इस योजना के तहत सार्वजनिक-निजी भागीदारी/Public-Private Partnership(PPP) से 100000+ से ज्यादा केंद्रों (Common Service Center) की स्थापना करना है, जिससे आम लोगों को सारी सुविधाएँ एक जगह मिल सकें और यह स्वरोजगार का केंद्र बन सके।

सबका अपना बैंक खाता: भाजपा ने ट्वीट किया कि वर्ष 2014 तक भारत के सिर्फ 50% घरों के पास बैंक खाता था जबकि मोदी सरकार के अंतर्गत वर्ष 2018 तक लगभग हर घर को बैंक से जोड़ दिया गया है।

ग्रामीण स्वच्छता कवरेज़: 2014 तक भारत में केवल 38% लोगों तक शौचालयों की पहुंच थी, जो 2018 में 95% तक पहुँची।

घरेलू गैस वितरण: 2018 में गैस कनेक्शन कवरेज़ बढ़कर 90% हो गया, जो 2014 तक मात्र 55% था।

ग्रामीण घरों में बिजली कवरेज: 2014 तक ग्रामीण घरों में बिजली कवरेज 70% थी, जो 2018 में 95% तक पहुँची है।

वैश्विक ‘Ease of Doing Business’ रैंकिंग: वर्ष 2018 में यह रैंकिंग बढ़कर 77 पर आ चुकी है, 2014 में यह रैंकिंग 142 थी।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):

ग्रामीण सड़क संपर्क: वर्ष 2014 में ग्रामीण सड़क संपर्क 55% था, जो 2018 में बढ़कर 91% हो गया है।

कृषि-खाद्य स्टार्टअप में बढ़त:

ग्रामीण विद्युतीकरण: वर्ष 2013 में 18,452 गाँव विद्युत से वंचित थे, 2019 में विद्युतीकरण का लक्ष्य पूरा कर लिया गया है।

सेना का सुदृढ़ीकरण:

आयुष्मान भारत:

घरेलू गैस वितरण:

घोटाले बनाम विकास:

प्रधानमंत्री आवास योजना

स्वच्छ भारत के अंतर्गत महिलाओं को खुले में शौच से मुक्ति मिली

वाराणसी में घाटों का सौन्दर्यीकरण

गंगा को सबसे बड़े नाले की गंदगी से मुक्ति

भागवत ने सैनिकों की शहादत पर, तो भैय्या जी जोशी ने राम मंदिर पर सरकार को घेरा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत वर्तमान सरकार से कुछ ख़फ़ा नज़र आ रहे हैं। इस नाराज़गी का कारण सीमा पर शहीद हो रहे वो जवान हैं जो बिना युद्ध के अपनी जान गँवा रहे हैं। मोहन भागवत का कहना है कि फ़िलहाल देश में कोई युद्ध नहीं हो रहा है तो फिर सरहद पर सैनिकों का शहीद होना देश के लिए हानिकारक है। इसका सीधा मतलब है कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है।

उन्होंने कहा कि सैनिकों का शहीद होना तब जायज़ था जब देश आज़ाद नहीं हुआ था। अब भारत देश एक आज़ाद देश है जिसका अपना एक वजूद है। भारत का शौर्य अपनी अनेकों गाथाएँ लिख चुका है। इन सकारात्मक परिस्थितियों में किसी युद्ध की कोई भनक नहीं है फिर सरहद पर शहीद हो रहे जवान किसकी भेंट चढ़ रहे हैं।

इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आज़ादी के बाद यदि देश में युद्ध जैसी संभावना उत्पन्न होती तो सैनिकों का शहीद होना समझ में आता है, लेकिन ऐसा न होने पर सैनिकों का बेवजह शहीद होना गंभीर विषय है।

अगर देश को प्रगति की राह पर ले जाना है तो हर देशवासी को अपनी सोच को विस्तार रूप देना और देश के लिए जीना सीखना होगा। सैनिकों के बलिदान पर अपना भाव व्यक्त करते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि वे (सैनिक) देश को सुरक्षित रखने के लिए युद्ध में दुश्मन देश से कड़ा लोहा लेते हैं और अपनी जान गँवाने से जुड़ा हर ख़तरा मोल लेते हैं। भारतीय सेना किसी भी हालात में कभी पीछे नहीं हटती।

सैनिकों के अमूल्य बलिदान को व्यर्थ न जाने दें बल्कि कोशिश करें कि उस परिवार के सदस्यों की मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाएँ। समाज को इसी दिशा में आगे बढ़ना चाहिए कि वो देश में अच्छे व्यवहार का परिचय दे सके। इसके अलावा उन्होंने देश में बेरोज़गारी और महँगाई जैसे मुद्दे पर भी सरकार को घेरा।

वहीं बीजेपी को घेरने में सरकार्यवाहक भैय्या जी जोशी भी पीछे नहीं रहे। कुंभ मेले में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाया और कहा कि अब राम मंदिर 2025 में बनेगा। हालाँकि बाद में उन्होंने अपने तंज भरे शब्दों का सुर बदलते हुए कहा कि हम चाहते हैं कि 2025 तक राम मंदिर बन जाए।

JNU ‘टुकड़े-टुकड़े’ कार्यक्रम पहले से था तय, नारा लगाने वाले कश्मीरी उमर के दोस्त

पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने जेएनयू देशद्रोह मामले की चार्जशीट पटियाला हाउस कोर्ट में दाख़िल कर दी है। दिल्ली पुलिस ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आतंकी अफ़जल गुरू के बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में देशद्रोह के नारा लगाए जाने की पुष्टि अपने चार्जशीट में की है। यही नहीं आरोपितों के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत होने का भी दावा किया है।

9 फ़रवरी 2016 को जेएनयू कैंपस में 7 कश्मीरी छात्रों पर देश विरोधी नारा लगाने का आरोप है। इन सभी कश्मीरी छात्रों ने अपने बयान में कहा था कि वो कन्हैया कुमार,उमर ख़ालिद और अनिर्बन भट्टाचार्य में किसी को भी नहीं जानते हैं। सोमवार को दिल्ली पुलिस द्वारा दाख़िल किए गए चार्जशीट में यह बात लिखी हुई है। लेकिन अंग्रेज़ी की वेबसाइट डीएनए के रिपोर्ट में इस बात की चर्चा की गई है कि पुलिस जाँच में यह पाया गया कि वो सभी लोग आपस में एक दूसरे को जानते हैं। यही नहीं 9 फ़रवरी को जेएनयू में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम की तैयारी कश्मीरी छात्रों ने उमर ख़ालिद के साथ मिलकर की थी।

पुलिस द्वारा दाख़िल इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मुनीद व मुज़ीब नाम के दो आरोपित न सिर्फ़ पहले से एक दूसरे को जानते हैं बल्कि रिश्ते में भी भाई हैं। जबकि कुछ आरोपितों ने माना है कि उन्हें सोशल मीडिया के ज़रिए कार्यक्रम की जानकारी मिली थी।

अक़ीब नाम के एक आरोपित ने पुलिस को बताया कि इस कार्यक्रम के लिए उन्हें किसी ने भी आमंत्रित नहीं किया था और न ही वो कार्यक्रम के किसी भी आयोजक को पहले से जानते हैं।

अक़ीब ने पुलिस को यह भी बताया कि उसने चेहरा ठंड से बचने के लिए ढक रखा था। जबकि पुलिस ने जब अक़ीब के कॉल डीटेल्स को खँगाला तो पता चला कि कार्यक्रम के कुछ दिनों पहले ही अक़ीब और उमर के बीच फोन पर बात हुई थी।

अक़ीब के मोबाईल लोकेशन के मुताबिक वह 9 फ़रवरी की सुबह से ही जेएनयू में मौजूद था। पुलिस ने अपने जाँच में यह भी पाया कि अक़ीब कार्यक्रम के दौरान ‘आज़ादी’ लिखा हुआ एक तख़्ता लिए उमर, अनिर्बन, उमैर व बशरत नाम के छात्र के बगल में खड़ा था।

इसी तरह दूसरे आरोपित मुज़ीब ने पुलिस को बताया कि उसे किसी ने कार्यक्रम में आने के लिए आमंत्रित नहीं किया था। जबकि पुलिस ने जब मुज़ीब के कॉल डीटेल्स को खँगाला तो पाया कि कार्यक्रम से महज महीने भर पहले 28 दिसंबर 2015 को दोनों के बीच बात हुई थी।

पुलिस चार्जशीट के मुताबिक कार्यक्रम के दौरान मुज़ीब ने पत्थरबाज़ों के समर्थन में भी नारा लगाया था। इसी तरह पुलिस को अपने बयान में तीसरे आरोपित उमर गुल ने कहा था कि फेसबुक के ज़रिए उसे इस कार्यक्रम की जानकारी मिली थी। लेकिन अक़ीब व मुज़ीब की तरह ही उमर गुल भी पहले से ही लगातार फ़ोन पर संपर्क में थे।

यही नहीं उमर और मुज़ीब के बीच जेएनयू कार्यक्रम से दो दिन पहले भी फोन पर बात हुई थी। पुलिस जाँच में यह भी पाया गया कि उमर ख़ालिद ने ही अवस्थी व अनिर्बन के परमिशन लेटर पर अपना साइन किया था।

डीएनए के आलावा इंडिया टुडे ने अपने रिपोर्ट में भी लिखा है कि दिल्ली पुलिस के पास उमर व अनिर्बन के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत मिला है। यही नहीं इस कार्यक्रम के आयोजक की भूमिका भी यही दोनों निभा रहे थे। पुलिस ने उमर ख़ालिद व अनिर्बन के ईमेल से कुछ ऐसे मेल को भी रिकवर किया था जिसमें आज़ादी व कश्मीर जैसे शब्दों की चर्चा थी।

पिछले दिनों कई सारे सबूतों के आधार पर दिल्ली पुलिस ने कन्हैया व दूसरे आरोपितों के ख़िलाफ़ पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दाख़िल की। कन्हैया व उमर के अलावा पुलिस ने शेहला राशीद व सीपीआई नेता डी राजा की बेटी के ख़िलाफ़ भी चार्जशीट दाख़िल की है। इस चार्जशीट में यह दावा किया गया है कि जेएनयू में होने वाला यह कार्यक्रम पहले से सुनियोजित था।                 

धर्म और आस्था की आड़ में गुरमीत का फलता-फूलता साम्राज्य आख़िर किसकी देन है ?

डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को एक विशेष सीबीआई की अदालत द्वारा गुरुवार (17 जनवरी 2019) को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई। आजीवन कारावास की यह सज़ा इस बात का प्रमाण है कि धर्म और आस्था के नाम पर गुरमीत ने न सिर्फ़ भोले-भाले लोगों को बेवकूफ़ बनाया बल्कि उनकी श्रद्धा से खिलवाड़ भी किया। जबकि असलियत तो यह है कि ऐसे पाखंडी और धूर्त बाबा का धर्म, आस्था और श्रद्धा से कोई सरोकार ही नहीं होता।

सवाल यह है कि आख़िर ऐसी क्या वजह है जो एक बलात्कारी व्यक्ति की पूजा में तल्लीन लोग कैसे उनके पाखंड को समझ नहीं पाते? लोगों के पाँव में वो कौन-सी बेड़ियाँ पड़ जाती हैं जो गुरमीत जैसे शैतान का नाम, ‘राम और रहीम’ से जोड़ देते हैं। जबकि भक्ति के मायनों से गुरमीत जैसे लोग कोसों दूर रहते हैं।

अपने प्रिय बाबा के आगे नतमस्तक होने वाले लोग यह मान ही नहीं पाते कि उनके बाबा से भी कोई ग़लती, अपराध या गुनाह हो सकता है। यहाँ तक कि ऐसे ढोंगी बाबाओं के कुकर्मों से पर्दाफ़ाश होने के बावजूद भी उनके समर्थक न सिर्फ़ इस बात पर डटे रहते हैं कि उनका गुरू निर्दोष है बल्कि अपने प्रिय बाबा को दोषमुक्त करने के लिए उसके महिमामंडन से भी परहेज़ नहीं करते।

दरअसल, होता यह है कि जब लोग अपने जीवन में आए दु:खों और परेशानियों का भार उठाने में अक्षम हो जाते हैं तो वे अपनी समस्याओं के निदान के लिए इधर-उधर के उपाय आजमाने लग जाते हैं। ऐसे में लोगों को गुरमीत जैसे पाखंडी और भ्रमित करने वाले बाबा ही नज़र आते हैं जिसके बाद वो उनकी शरण में पहुँच जाते हैं। अपने बाबा से ऐसे लोगों को यह उम्मीद होती है कि वो कोई जादू की छड़ी घुमााएगा और झट से उनकी सभी समस्याओं को हल कर देगा। जबकि उनकी इस उम्मीद का कोई आदि-अंत नहीं होता।

यह सच है कि पवित्र और निश्छल मन भक्ति का आधार होता है, जिसके बलबूते असंभव भी संभव हो जाता है। बजाय अपनी इस अंदरुनी ताक़त को समझने के, अपनी समस्याओं से घिरे लोग गुरमीत का दामन थामते चलते हैं और स्वयं को बाबा के चरणों में समर्पित कर देते हैं, जिसका अंजाम यह होता है कि वे आँख मूँदकर उसी मार्ग पर चल पड़ते हैं जो उनका प्रिय बाबा उन्हें बताता है।

यही मार्ग ऐसे धूर्त बाबाओं की नींव रखता है। यह हमारी अंधभक्ति की देन ही है जिसके बलबूते ऐसे बाबाओं का विशाल साम्राज्य बन जाता है।

सच तो यह है कि इस धूर्त बाबा की शरण में अक्सर वो लोग जाते हैं जिनकी अपनी आस्था मज़बूत नहीं होती क्योंकि उन्हें लगता है कि भक्ति के इस मार्ग पर कोई उनकी मदद करे। मदद से मतलब है कि उन्हें वो मार्ग दिखाए जिसपर चलकर मनोकामना जल्दी पूरी होती हो। वैसे भी आज के दौर में लोग धैर्यवान होने की बजाय अधीर हो गए हैं जिन्हें अपने दु:ख का निदान तुरत-फुरत में चाहिए।

आस्था और मनगढ़ंत प्रपंच के बीच के फ़ासले को समझना आज के समय में बहुत ज़रुरी हो गया है, नहीं तो आने वाले समय में इसके परिणाम और भी भयंकर हो सकते हैं। अपने-अपने प्रिय बाबाओं के स्वागत-सत्कार में जुटा भीड़तंत्र यह समझने में लगभग असमर्थ है कि उनके यही प्रिय बाबा उनके सोचने-समझने की क्षमता को तो दिन-प्रतिदिन क्षीण करते ही जा रहे हैं, और साथ ही साथ उनकी बुद्धि व विवेक को भी हरते जा रहे हैं।

साल 2002 में गुरमीत पर आरोप लगाने वाली महिलाओं (साध्वियों) की एक चिट्ठी याद है जिसमें तत्कानीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से न्याय की याचनाभरी माँग की गई थी। उस चिट्ठी पर यदि ग़ौर फ़रमाएँ तो उसमें दोनों पीड़िताओं ने गुरमीत के ख़िलाफ़ शिक़ायत तो की ही थी साथ में यह भी लिखा था कि उनके माता-पिता उनकी नहीं सुनेंगे क्योंकि उन पर गुरमीत का बहुत अधिक प्रभाव है।

इसका सीधा मतलब है कि कहीं न कहीं पीड़िताओं को यह अंदेशा था कि यदि उन्होंने अपने ख़िलाफ़ हो रहे शोषण के बारे में अपने माता-पिता को बताया तो शायद वो उन पर यक़ीन ही नहीं करेंगे। यह डर जो दोनों महिलाओं में व्याप्त था उसका सीधा संबंध गुरमीत की बढ़ती लोकप्रियता, उसके बढ़ते साम्राज्य और उसके ख़ौफ़ से था।

आख़िर माता-पिता की आँखों पर वो कौन-सा पर्दा पड़ जाता है जो उन्हें अपनी ही संतानों को हाशिए पर ले जाता है? समर्थक रूपी उन माता-पिता को अपनी ही संतानों की वो चीत्कार क्यों नहीं सुनाई देती जो चीख़-चीख़ कर अपना हाल बताने को आतुर रहती है?

ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी हो जाता है कि ऐसे दुराचारी बाबा का क़द जो लगातार बढ़ता है, उसमें वो माता-पिता भी शामिल हैं जो अपनी अंधभक्ति के चलते समाज को ग़लत राह की दिशा में बढ़ाने का काम करते हैं। कल की तारीख़ में जिसे कोर्ट में दोषी करार दिया गया वो गुरमीत क्या कभी अकेला इतना सक्षम हो पाता कि वो इतने बड़े अपराधों को अंजाम तक पहुँचा देता। उसके इस अदम्य साहस के पीछे समाज का वो तबका भी दोषी है जो इन बाबाओं को इतना फलने-फूलने का अवसर दे देते हैं।

पिछले साल घटित उस दौर को याद कीजिए जब गुरमीत पर दोष सिद्ध हो गया था और उसके समर्थकों ने जो हंगामा किया था जिसमें कई शहरों और क़स्बों में तांडव मचाया गया था, वाहनों को फूँका गया था, तोड़फोड़ समेत सुरक्षाबलों से कई हिंसक झड़पें भी हुई थी और दर्जनों लोग हिंसा की भेंट भी चढ़ गए थे। क्या वो विध्वंसकारी घटना भूलाई जा सकती है, उसका ज़िम्मेदार क्या अकेला गुरमीत ही है?

बाबा के समर्थकों द्वारा इस भारी विरोध की बुनियाद आख़िर इतनी मज़बूत कब और कैसे होती चली गई, यह एक बड़ा प्रश्न है। यह वास्तव में गहन चिंता का विषय भी है। इस तरह का प्रदर्शन करना क्या उन लोगों पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता जो ऐसे आडंबरी बाबा का बचाव करते नहीं थकते। घोर निंदा के पात्र को बड़ी शान से सिर पर बिठाना क्या वास्तव में न्यायसंगत है ?

गुरमीत के समर्थन में उमड़ा यह जनसैलाब एक दिन में नहीं बनता बल्कि इसकी प्रक्रिया बहुत ही धीमे होती है जो बेहद ख़तरनाक होती है। यह कारवाँ यूँ ही नहीं बनता चला जाता बल्कि इसके पीछे एक सोची-समझी रणनीति काम कर रही होती है, जिसके जाल में वो लोग फँसते हैं जो आस्था, प्रेम, विश्वास और श्रद्धा-भाव के असली मायनों को समझने से कोसों दूरी पर होते हैं।

गुरमीत के नाम को राम और रहीम से जोड़ने पर ऐसे लोगों को कोई परहेज़ नहीं होता क्योंकि उनके लिए इनके बीच के अंतर को समझना बेहद जटिल काम होता है। इसके लिए शुद्ध और शांत मन की ज़रुरत होती है न कि एक झटके में सब कुछ पा लेने की असीम चाहत।

फ़िलहाल, आज के दौर में अपने मन को टटोल कर यह देखने का प्रयास करने की ज़रुरत है कि बाबाओं द्वारा रचे गए इस आडंबरी खेल का मक़सद केवल और केवल उन मासूमों की आस्था पर कब्जा करना होता है जिन्हें वो आसानी से भ्रमित कर सकें।

गुरमीत के भक्तों की संख्या लाखों में है, जिनमें से ज़्यादातर लोग ग़रीब और पिछड़ी जातियों से संबंध रखते हैं, जो सही सूचना के अभाव में सही और ग़लत के भेद को समझने में कुछ स्तर पर असमर्थ होते हैं। ये समर्थक या भक्त अपने गुरू के भड़कीले वस्त्र पहनने और भड़कीले अभिनेता के कुरूप को भी सहजता से स्वीकार कर लेते हैं। यहाँ तक कि अपने प्रिय बाबा को ‘चमकीला बाबा’ कहने से भी ग़ुरेज नहीं करते और उसकी रॉकस्टार और फ़िल्मस्टार की छवि भी लोगों को ख़ूब भाती है।

अपने प्रिय बाबा की इसी दोहरी छवि की दुहाई देते नहीं थकते उनके समर्थक, जोकि असल में अनेकों विकृतियों से परिपूर्ण चेहरा है। हमें इस दिशा में आज एक ऐसे ठोस क़दम उठाने की आवश्यकता है जिसमें गुरमीत के इस बहरुपिए वाले स्वरूप को एक सिरे से नकारा जाए और उसके इस बनावटी अस्तित्व का पुरज़ोर विरोध किया जाए। विश्वास-अंधविश्वास के बीच अंतर को समझा जाए, जिससे आस्था और प्रेम के नाम पर होने वाली ठगी से ग़रीब जनता को बचाया जा सके।

केजरीवाल समेत दिल्ली विधायकों को सम्पत्ति का ब्योरा न देने पर लोकायुक्त का नोटिस

दिल्ली लोकायुक्त ने संपत्ति की डिटेल नहीं देने पर सीएम केजरीवाल समेत दिल्ली के सभी विधायकों को नोटिस भेजा है। दरअसल आरटीआई कार्यकर्ता और एडवोकेट विवेक गर्ग की ओर से एक याचिका दायर करते हुए ये शिकायत की गई थी कि दिल्ली के विधायकों ने वित्तीय वर्ष 2015-2016, 2016-2017 और 2017-1018 के लिए अपनी सम्पत्ति का ब्योरा नहीं दिया है। विधायकों को दिए नोटिस में कहा गया है कि अगर किसी विधायक ने अपनी संपत्ति का कंपीटेंट अथॉरिटी के पास रिटर्न फाइल किया है, तो उसकी कॉपी जवाब के साथ दें।

आरटीआई के जरिए हुआ मामले का खुलासा

दरअसल विवेक गर्ग ने संपत्ति से जुड़े इस मुद्दे को लेकर एक आरटीआई दायर करके सूचना माँगी थी, जिसमें मामले का खुलासा हुआ। जिसके बाद उन्होंने इसकी शिकायत लोकायुक्त के यहाँ दर्ज़ कराई। अब लोकायुक्त ने विधायकों को 28 जनवरी से पहले जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने कहा कि सोमवार को वह लोकायुक्त को पत्र लिखकर पूछेंगे कि उन्होंने किस कानून के अनुसार विधायकों से संपत्ति की जानकारी माँगी है।

हालाँकि, कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसमें संपत्ति का विवरण दाख़िल करना अनिवार्य हो। बता दें कि केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार लोकसभा सांसदों को लोकसभा स्पीकर ऑफ़िस और राज्यसभा सांसदों को राज्यसभा सचिवालय में रिटर्न फ़ाइल करनी होती है। दिल्ली के विधायकों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है।

‘पारदर्शिता के लिए दर्ज़ हो सम्पत्ति का विवरण’

बीजेपी विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने मामले पर कहा,  “विधायकों को पारदर्शिता के हित में संपत्ति और देनदारियों का विवरण दर्ज़ करना चाहिए, मैंने अपना विवरण दाख़िल करने के बारे में कुछ महीने पहले विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा था।”  

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार प्रत्येक लोक सेवक को अपने और अपने परिवार के सदस्यों की संपत्ति और देनदारियों की जानकारी दर्ज़ करनी चाहिए। एटवोकेट गर्ग ने इसी बात का तर्क देत हुए कहा, “विधायक भी लोक सेवक हैं और उन्हें संपत्ति और देनदारियों का विवरण दाखिल करना चाहिए।”

सीमा पर निगरानी रखने के लिए इसरो छोड़ेगा विशेष सैटेलाइट

गृह मंत्रालय ने सीमा पर निगरानी रखने के लिए इसरो के साथ काम करने का निर्णय लिया है। गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने सीमा प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर गठित किए गए कार्यबल (टास्क फ़ोर्स) की रिपोर्ट को स्वीकृति प्रदान की है। गृहमंत्रालय ने कार्यबल का गठन इसलिए किया था ताकि सीमा प्रबंधन में सुधार के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सके।

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है –

  1. द्वीप विकास
  2. सीमा सुरक्षा
  3. संचार और नौवहन
  4. जीआईएस और संचालन आयोजना प्रणाली
  5. सीमा संरचना विकास

इस विशेष कार्यबल का नेतृत्व संयुक्त सचिव (सीमा प्रबंधन) ने किया और उसके सदस्यों में सीमा प्रहरी बलों, अंतरिक्ष विभाग तथा सीमा प्रबंधन प्रभाग के प्रतिनिधि सम्मिलित थे। गृह मंत्रालय ने सीमा सुरक्षा बल, इसरो, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय और रक्षा मंत्रालय समेत सभी विभागों से परामर्श करने के बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया।

इस परियोजना को पाँच वर्ष की अवधि में तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। इसमें लघु, मध्यम और दीर्घकालीन योजना का प्रस्ताव किया गया है। इसके लिए इसरो रक्षा मंत्रालय के साथ करीबी सहयोग करेगा। सीमा प्रहरी बलों की क्षमता बढ़ाने के लिए रिपोर्ट में कई सुझाव दिए गए हैं।

तात्कालिक आवश्यकताओं को देखते हुए सीमा प्रहरी बलों के लिए हाई रिजॉल्यूशन इमेजरी और संचार के लिए बैंडविथ का प्रबंध किया जाएगा। मध्यम अवधि की आवश्यकता के मद्देनजर इसरो एक विशेष उपग्रह लॉन्च कर रहा है जिसका प्रयोग केवल गृह मंत्रालय करेगा।

दीर्घकालीन अवधि के अंतर्गत गृह मंत्रालय नेटवर्क संरचना विकसित करेगा ताकि अन्य एजेंसियाँ उपग्रह के संसाधनों को आपस में साझा कर सकें। दूरदराज के इलाकों में तैनात केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को भी उपग्रह संचार की सुविधा दी जाएगी।

सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों को सीमाओं पर संवेदनशील क्षेत्रों की निगरानी करने के कार्य में भारतीय नेविगेशन उपग्रह (IRNSS) द्वारा विकसित NAVIC प्रणाली का सहयोग मिलेगा। ग्राउंड सेगेमेंट पर सभी कार्यों के लिए सीमा सुरक्षा बल को लीड एजेंसी बनाया गया है। उपग्रह से प्राप्त सभी सूचनाओं के संग्रह के लिए एक आर्काइवल फैसिलिटी भी बनाई जाएगी।

अंतरिक्ष विभाग गृह मंत्रालय के साथ मिलकर कार्य करेगा जिससे पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ लगने वाली भारत की ज़मीनी और तटीय सीमाओं की सटीकता से निगरानी की जा सकेगी।