Wednesday, November 6, 2024
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दुनिया की पहली पीड़िता, जिसे अपने साथ हुए छेड़छाड़ और व्यभिचार का खुद ही पता नहीं

तीन बड़े राज्यों के चुनाव के बाद ईवीएम नीरो वंशी बजाते हुए सो रही थी कि अचानक से किसी ने उसे बीच नींद से उठाया और कहा कि देख तेरे नाम की प्रेस कॉन्फ्रेंस हो रही है। ईवीएम ने उस शख्स जो चुप कराते हुए कहा कि अरे! इसमें कौन सी नई बात है, जैसे सूरज का पूर्व से उगना प्रकृति का नियम है और रवीश कुमार का हरेक मुद्दे पर प्रतिसंघी होना शाश्वत सत्य है, वैसे ही मेरे खिलाफ़ ज़हर उगलना भी मतिछिन्नो का प्रिय शग़ल है।

इस बार ईवीएम एकदम भावुक हो गईं थी। उसने आगे लंबा एकालाप लेते हुए कहा कि मैं दुनिया की पहली पीड़िता हूँ, जिसे अपने साथ हुए छेड़छाड़ और व्यभिचार का खुद ही पता नहीं है। मुझे तो डर लगता है कि कहीं किसी दिन कोई मेरा हितैषी आईपीसी की धारा 354 के तहत कोर्ट में मुकदमा न दर्ज करवा दें। आए दिन के इन विपक्षी प्रपंचों से मेरा बाहर निकलना मुहाल हो गया है। बाहर निकलते ही सब ये पूछने लगते है कि तू ठीक तो है न, कहीं लगी तो नहीं! मेरा वश चले तो इज्ज़त के इन ठेकेदारों को तिहाड़ भेज दूँ।

हल्की सी सांस लेते हुए ईवीएम ने आगे भी बोलना जारी रखा। सैय्यद शुजा नाम का मुआ न जाने किस दाढ़ीजार की दाढ़ी से फुदकते हुए बाहर निकल आया और आते ही बोला कि 2014 में मुझसे बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई थी। अरे! इतनी छेड़छाड़ के बाद भी मैं अभी तक जिंदा हूँ और तबसे मैंने बीस से अधिक राज्यों में लोकतंत्र को पल्लवित किया है। मन तो करता है कि इस सैय्यद शुजा के शूजा घोंपा दूँ मग़र अपनी मर्यादा के हाथों बंधी हूँ।

तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी विपक्षी कॉन्ग्रेस ने हमें नैतिकता-शुचिता का प्रमाणपत्र न दिया। अरे! माँ सीता ने भी एक ही बार अग्निपरीक्षा दी थी, हमने तो पंजाब से लेकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चार-चार जगहों पर अग्निपरीक्षा दी है। सिब्बल जी को चाँदनी चौक ने धोबी पछाड़ दे दिया तो वो अब चार साल बाद हमको दोषी ठहरा रहे हैं। जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस से विदेशी पत्रकारों के समूह ने स्वयं को अलग कर दिया, उस सभा के सैय्यद साथी बनकर वकील बाबू आपने देश की लोकतांत्रिक प्रणाली और चुनाव व्यवस्था का सरेआम मज़ाक बनाया है। फिलहाल सुनिए लोपक और रौनक का इस विषय पर क्या कहना है!

कहने को तो बहुत कुछ था ईवीएम के पास मग़र अब वो मारे भावुकता के बोलने में सक्षम न थी और फ़िर अभी तो उन्हें आगे भी पराजितों के समूह द्वारा स्वयं से छेड़छाड़ किए जाने का दंश झेलना है। सो उसने फिलहाल के लिए आराम करना ही उचित समझा।

यह व्यंग्य लोपक पर ‘देख तमाशा ईवीएम का!‘ नामक शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। सहमति के साथ यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि ऑपइंडिया के पाठक भी हँसते रहें, मज़े लेते रहें 🙂

प्यारे बुद्धिजीवियो! नितिन गडकरी उड़ता तीर है, इसे लेकर बुरे फँसोगे

राजनीति में और खासकर विपक्ष में इन दिनों एक हल्ला उठा हुआ है और वो है भाजपा के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को लेकर। महागठबंधन से विभीषण की तरह लतियाए जाने के बाद अपने प्रधानमंत्री पद के चेहरे लिए तरसती और जूझती हुई ये पार्टी, इस मामले में ज्यादा मशगूल है कि सत्ताधारी पार्टी में क्या चल रहा है और क्या नहीं?

पहला सवाल तो यह है कि क्या भारत में आज विपक्ष की मात्र यह भूमिका रह गई है कि वो अपने घर में फैले रायतों को समेटने के बजाए, पड़ोस में चल रहे हो-हल्ला पर कान रखता है? इस तरह से इसे विपक्ष कम और मोहल्ले की उस मौसी का नाम देना ज्यादा बेहतर होगा, जिसे मोहल्ले भर के एक-एक घर की कानाफूसी से जुटाई हुई तमाम जानकारियों में रूचि रहा करती है।

कॉन्ग्रेस शासनकाल में वित्त मंत्री रह चुके पी चिदमबरम का मानना है कि नितिन गडकरी नरेंद्र मोदी को चुनावों के बाद चुनौती देने वाले हैं। यानी, आगामी आम चुनाव में भाजपा बहुमत जुटाने में विफल रहती है तो प्रधानमंत्री पद के लिए नितिन गडकरी अपनी दावेदारी ठोकेंगे।

दिवास्वप्न देखना और कॉन्सपिरेसी थ्योरी में यकीन करना कॉन्ग्रेस पार्टी का एक पार्ट टाइम पेशा बनता जा रहा है, और शायद इस तरह की संभावनाओं पर भविष्यवाणियाँ कर के कॉन्ग्रेस के नेता अपने लिए 2019 के आम चुनावों के बाद रोज़गार तलाश रहे हैं।

पार्टी अध्यक्ष मुँगेरीलाल ही जब सोते-जागते स्वप्न देखने में मशगूल हैं तो फिर सिपहसालारों से तो यह उम्मीद की ही जानी चाहिए। उनके सपनों के किस्से और कहानियाँ मैं पहले भी बता चुका हूँ।

क्या नरेंद्र मोदी को सिर्फ इसलिए नकार दिया जाना चाहिए, क्योंकि वो जनता के मर्म को जानते और समझते हैं?

तीन दशक तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री रहे और सिंगापुर के संस्थापक माने जाने वाले ली कुआन यू ने नोटबंदी के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था को जिस प्रधानमंत्री की जरुरत थी, वो उसे मिल चुका है। उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी देश की जनता की नब्ज़ को समझते हैं और उस अनुसार काम भी करते हैं। साथ ही यह भी कहा था की भारत के नागरिकों की विशेषता है कि पहले तो ये लोग किसी काम के लिए हामी नहीं भरते, लेकिन जब एक बार रास्ते पर चल पड़ते हैं तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते।

पिछले 4 सालों में जो एक बात सबसे ज्यादा गौर करने लायक रही है वो ये कि विपक्ष लगातार भाजपा की बिछाई पिच पर ही क्रिकेट खेलने उतरा है और नरेंद्र मोदी ऐन समय पर गुगली फेंक देते हैं जिससे विपक्ष की तमाम रणनीति तितर-बितर हो जाती है और वो पगबाधा होकर पवेलियन लौट जाता है।

वंशवाद और चमचागीरी में लिप्त कॉन्ग्रेस सरकार अपने वैचारिक और बुद्दिजीवी ब्रिगेड को मोर्चे पर लाने के बजाए निरंतर एक ऐसे प्यादे पर दाँव लगाने की फ़िराक में लगी रहती है, जिसे कुछ दिन पहले ही वो प्रियंका गाँधी को राजनीति में लाकर ‘जोकर’ साबित कर चुकी है। इसके लिए भी अगर वो किसी दिन नरेंद्र मोदी को ही जिम्मेदार ठहरा दें, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। साथ ही, इतिहास गवाह है कि इस वंशवाद, शासन करने और सत्ता अपने हाथों में रखने की शौक़ीन यह पार्टी, अपने बुद्दिजीवी वर्ग को कभी घोटालों में बलि का बकरा बनाती आई है या फिर उन्हें किसी ना किसी तरह से पार्टी की मुख्यधारा से दूर कर के उनके पँख कुरेदते आई है।

राहुल गाँधी और उनकी गोदी मीडिया ये सत्य बखूबी जानती है कि वर्तमान सरकार की सबसे बड़ी जीत उनके कार्यकाल में एक भी घोटाले का न होना है। यही वजह है कि मुद्दों की कमी के चलते यह गिरोह प्रधानमंत्री को कभी तानाशाह तो कभी फासीवादी कहता नज़र आता है।

नितिन गडकरी को लेकर खेले जा रहे इस दाँव के लिए मुद्दों के लिए भटकती हुई विपक्ष की आत्मा ही जिम्मेदार है। लेकिन मेरा मानना है कि नितिन गडकरी के बयानों को मुद्दा बनाना उस संस्था के लिए स्वाभाविक है, जो खुद एक परिवार की दकियानूसी और चापलूसी में संलग्न रहने का आदी है।

कॉन्ग्रेस को स्वतंत्र विचार रखने वाले लोग सिर्फ और सिर्फ बगावती नज़र आते हैं क्योंकि उनके साथ यही होता आया है। नितिन गडकरी जैसा व्यक्तित्व हर हाल में भाजपा की धरोहर है और ये पार्टी में मौजूद लोकतंत्र को दर्शाता है, ना कि बगावत को। लेकिन अगर कॉन्ग्रेस यही बात समझ जाती तो आज देश की इतनी पुरानी पार्टी की कहानी कुछ और होती।

ये भाजपा ही है, जिसके नेता को एक ऐसे व्यक्तित्व के ख़िलाफ़ बोलने की आज़ादी है जिसके समर्थन में लोकतंत्र का एक बड़ा वर्ग मौज़ूद है, जबकि कॉन्ग्रेस पार्टी के हालात ये हैं कि जिसने भी शीर्ष नेतृत्व के विरुध्द आवाज़ उठाई उसे ही ‘उठा’ लिया गया। नीतिन गडकरी इस बात का उदाहरण हैं कि BJP में कम से कम कोई तो है भी जो मोदी को कह सके कि ‘हटो’, वरना कॉन्ग्रेस में तो जिस-जिस ने ‘हटो’ कहा, उसे ही ‘हटा’ देने की प्रथा रही है।

कॉन्ग्रेस का असल दर्द:

क्योंकि मोदी सरकार के दौरान कॉन्ग्रेस को आए दिन घोटाले, जनता पर आँसू गैस छोड़ने, रबड़ की गोलियाँ जैसे काण्ड देखने को नहीं मिल रहे हैं, इसलिए अब लीडरशिप में फूट डालने के लिए नई नौटंकी रच रही है। इसके लिए वो यदा-कदा उस गोदी मीडिया का भी सहारा लेते दिख जाता है, जो अब धीरे-धीरे उभरता हुआ कहानीकार बन चुका है। ‘व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी’ के ‘जातिवाचक कुलपति’ तो इनके पास हैं ही।

नितिन गडकरी वही काम कर रहे हैं, जो एक मंत्रिमंडल से उम्मीद की जा सकती है। वो अगर सत्ता में रहते हुए शासन-प्रशासन की कमियों के बारे में बात करते हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए एक बेहतरीन सबक है और हर राजनीतिक दल को इससे सीख लेनी चाहिए। यह हर मायने में प्रशंसा का विषय है, ना की मौकापरस्त होकर नरेंद्र मोदी सरकार को कोसने का।

प्यारे कट्टर विपक्षी साथियों, नींद से जाग जाइए और इस हक़ीक़त को समझकर स्वीकार करिए कि इस देश के नागरिक का असल रोना लोकतंत्र, पितृसत्ता या अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे प्रोपैगैंडा नहीं, बल्कि एक मजबूत विपक्ष की माँग है। बेहतर होगा कि आप ‘सरला मौसी’ होने के बजाए ,एक बेहतर राजनीति के विकल्प बनने पर ध्यान दें।

300 रथ, 7700 मतपेटी, 10 करोड़ लोगों की राय: लोकसभा 2019 के लिए BJP का मेगा-प्लान

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली से लोकसभा चुनाव 2019 के लिए प्रचार की औपचारिक शुरुआत कर दी है। अब बीजेपी ‘भारत के मन की बात, मोदी के साथ’ कैंपेन से लोगों के मन की बात जानेगी। बीजेपी इस बार के ‘संकल्प पत्र’ के लिए ‘डोर टू डोर’ अभियान से 10 करोड़ लोगों की राय लेगी। बता दें कि, इसके लिए बीजेपी के कार्यकर्ता अगले एक महीने में लोगों के घर जाकर लोगों से उनकी राय जानेंगे।

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि 2014 के पहले देश के अंदर लोकतंत्र के बहुत बड़े हिस्से की आस्था डिगने वाली थी और इसकी वजह 30 साल तक गठबंधन सरकार का दौर रहा था। उन्होंने कहा कि देश के बहुत बड़े तबके को संदेह होने लगा था कि हमारी संसदीय प्रणाली काम कर पाएगी या नहीं। शाह ने कहा, ”देश तेज़ी से आम चुनाव की ओर बढ़ रहा है। ये फै़सला देश की जनता करने जा रही है कि किस व्यक्ति और पार्टी के हाथ मे देश की धुरी रहेगी।”

सुझावों के आधार पर पहली बार संकल्प पत्र

‘भारत के मन की बात, मोदी के साथ’ के बारे में बताते हुए शाह ने कहा, ”संकल्प पत्र में लोकतांत्रिकरण का अनूठा प्रयोग कर रहे हैं। अलग-अलग तरीके से हम लोगों से संपर्क करने वाले हैं। 10 करोड़ लोगों से हमारे कार्यकर्ता संपर्क करने वाले हैं। उनसे मिले सुझावों के आधार पर बीजेपी अपना संकल्प पत्र तैयार करेगी।” शाह ने कहा कि ये कार्यक्रम देश को सुरक्षित करने, ग़रीब का जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए है। ये कार्यक्रम नया भारत बनाने के लिए है।

उन्होंने बताया कि ”300 रथ, 7700 मतपेटी देश की जनता के पास जाएगी। हर राज्य में 20 लोगों की टीम तैनात की जाएगी। आने वालों सवालों और सुझाव 12 विभागों के बीच बाँटे जाएँगे। इसके आधार पर संकल्प पत्र तैयार होगा।

कार्यक्रम में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जनभागीदारी से लोकतंत्र को मज़बूती मिलती है। देश में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब कोई राजनीतिक दल अपना संकल्प पत्र बनाने के लिए इतने बड़े स्तर पर जनसंपर्क करने जा रहा है।

MP में कर्ज़माफ़ी का फ़र्जीवाड़ा: किसानों ने दी सामूहिक आत्महत्या की धमकी

कॉन्ग्रेस के कर्ज़माफ़ी को लेकर मध्य प्रदेश के किसानों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। एक के बाद एक हो रहे फर्ज़ीवाड़े को लेकर किसानों ने अब इसका विरोध प्रदर्शन करना भी शुरू कर दिया है। हिलगन गाँव के किसानों ने राज्य सरकार के कर्ज़माफी की सूची में बिना कर्ज़ लिए माफ़ी पर सामूहिक आत्महत्या करने की धमकी दी है। किसानों का कहना है कि उनपर कोई बकाया नहीं था। कई अन्य किसानों का कहना है कि उन्होंने कर्ज़ कम लिया था और लिस्ट में कर्ज़ की राशि को बढ़ाकर दिखाया गया।

लिस्ट को लेकर नाराज़ किसानों ने पंचायत ऑफ़िस में इकट्ठा होकर लिस्ट के खिलाफ़ अपना विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन कर रहे किसान रामकुमार सिंह ने कहा, ”अगर इस मुद्दे को जल्दी सुलझाया नहीं गया तो हम सामूहिक आत्महत्या कर लेंगे।” बता दें कि उनके नाम पर कर्ज़ की बड़ी राशि लिखी गई और उनके पिता का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है, जिनकी कुछ साल पहले मृत्यु हो चुकी है।

मृतक के नाम पर कर्ज़माफ़ी

बता दें कि जय किसान ऋण माफी योजना के तहत लिस्ट में रामकुमार सिंह के पिता के नाम पर ₹9,547 का कर्ज़ जबकि उनके नाम पर ₹70,481 का कर्ज़ लिख दिया गया। उन्होंने कहा कि चने की फसल के लिए उन्होंने केवल ₹17,000 का कर्ज़ लिया था, जबकि उनके पिता ने कोई कर्ज़ नहीं लिया था।

इस मामले पर राज्य के सहकारिता मंत्री गोविंद सिंह ने कहा कि हमने पहले ही जाँच शुरू कर दी है और यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन किसानों ने कर्ज़ नहीं लिया है, उन्हें परेशान न किया जाए।

शारदा चिटफंड: कोलकाता पुलिस कमिश्नर की तलाश में CBI, ममता के हैं करीबी

शारदा चिटफंड और रोज़ वैली घोटाले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार की CBI तलाश कर रही है। CBI राजीव कुमार से आवश्यक दस्तावेज़ों और फ़ाइलों के ग़ायब होने से संबंधित पूछताछ करना चाहती है। इस मामले में CBI राजीव कुमार को गिरफ़्तार भी कर सकती है। राजीव कुमार CBI द्वारा जारी किए गए नोटिस का जवाब नहीं दे रहे हैं। बता दें कि राजीव ने चिटफंड घोटालों की जाँच करने वाली पश्चिम बंगाल पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का नेतृत्व किया था।

राजीव कुमार पश्चिम बंगाल काडर के 1989 बैच के IPS ऑफिसर हैं। उन्हें 2016 में कोलकाता का पुलिस कमिश्नर नियुक्त किया गया था। चुनाव की तैयारियों के अवलोकन करने के लिए चुनाव आयोग की एक टीम जब उनसे मिलने कोलकाता पहुँची तो वो उनसे मिलने की बजाए अपने ऑफ़िस चले गए।

इसके बाद उनके कार्यालय में फ़ोन के ज़रिए उनसे संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनके ऑफ़िस के कर्मचारी ने बताया कि राजीव कुमार अब शायद ही आफ़िस में मिल पाएँ, इसलिए उनसे बात करने के लिए उनके घर या व्यक्तिगत नंबर पर कॉल करें। इसके लिए उक्त कर्मचारी ने राजीव के घर का नंबर भी बताया, जिस पर उस समय संपर्क नहीं हो पाया। इसके अलावा राजीव कुमार से उनके मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास भी किया गया, जो विफल रहा।

अधिकारियों के मुताबिक़ बंगाली फिल्म निर्माता श्रीकांत मोहिता को गिरफ़्तार किए जाने के बाद से ही राजीव को भी गिरफ़्तारी का डर सता रहा है। इसलिए वो किसी भी तरह की पूछताछ से बचते नज़र आ रहे हैं।

बता दें कि रोज़ वैली घोटाला ₹15,000 करोड़ से अधिक का है और शारदा चिटफंड घोटाला क़रीब ₹2500 करोड़ का है। अधिकारियों के मुताबिक, दोनों ही मामलों में सभी आरोपित कथित तौर पर सत्ताधारी टीएमसी से जुड़े पाए गए। इन दोनों ही चिटफंड घोटालों की जाँच CBI कर रही है।

आपको बता दें कि CBI को इस जाँच में पहले भी ममता सरकार द्वारा दिक़्कतों का सामना करना पड़ा है। CBI ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार के ‘शत्रुतापूर्ण’ व्यवहार के चलते अंतिम आरोप पत्र दाखिल करने में देरी हो रही है। इसके अलावा एक आरटीआई के माध्यम से भी यह ख़ुलासा हुआ था कि पश्चिम बंगाल सरकार भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) को योजनाओं और ई-ख़रीद से संबंधित विवरण साझा करने से मना कर रही थी।

इतनी नेगेटिविटी कहाँ से ले आते हैं रवीश कुमार?

ईसा के 500 वर्ष पूर्व बुद्ध एक दिन अचानक प्रोपेगंडा नगरी NDTV पहुंच गए। कमरों, गलियारों और कूचों से निकलते हुए वो रवीश जी के ऑफिस में पहुंचे और उनसे पूछा, “मैं तो ठहर गया, तुम कब ठहरोगे?” ऐसी ही एक घटना 1930 में भी हुई थी। दस दिन तक कड़ी धूप में 240 मील चलने के बाद गांधी ने दांडी में दो मुट्ठी नमक उठा कर रवीश कुमार की तरफ देखकर पूछा, “बस कर पगले रूलाएगा क्या?”

ये दोनों घटनाएं उतनी ही काल्पनिक और थिएट्रिक हैं, जितनी आज कल रवीश कुमार की पत्रकारिता हो गयी है।

2019 का बजट आया। लोग चाहते थे कि किसानों पर बात हो, किसानों पर बात हुई। लोग चाहते थे कि मिडिल क्लास पर बात हो, मिडिल क्लास पर बात हुई। लेकिन रवीश जी को इस बार किसान या मिडिल क्लास याद नहीं आया, उन्हें गंगा मैया याद आ गयी।

ये इत्तेफाक़ हो सकता है कि मीडिया में रहने के बाद भी रवीश जी को गंगा सफाई पर चल रहे कार्यक्रमों के बारे में मालूम नहीं, ये भी इत्तेफाक़ हो सकता है कि इस बार रवीश जी को याद नहीं आया कि मिडिल क्लास जैसा भी कुछ होता है, और ये भी इत्तेफाक़ हो सकता है कि रवीश जी सिनेमा में जाना चाहते थे पर उन्हें मीडिया में काम करना पड़ गया।

रवीश कुमार ने बजट पर जो ब्लॉग लिखा है, उसका एक और हिस्सा देखते हैं।

इन टिप्पणियों में जान बुझ कर की गईं दो मौलिक त्रुटियाँ मुझे बहुत परेशान कर रही हैं।

1. क्या रवीश कुमार ये चाहते हैं कि किसान और उसका परिवार सरकार के दया पर जीवित रहे? क्या रवीश कुमार ये चाहते हैं कि किसान के लिए यही पांच सौ सब कुछ हो? ये राशि किसानों के लिए सहायता (जिसे अंग्रेजी में सपोर्ट बोलते हैं) का साधन है, जिसका उपयोग वो बुरे दिनों में कर सकते हैं। ये जानते हुए भी रवीश कुमार इतिहास और भूगोल पर तंज कस रहे हैं।

2. बजट आने के पहले रवीश कुमार जैसे सोशलिस्ट ये बोल रहे थे कि अमीरों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए और गरीबों को कम। बजट आने के बाद वो ये पूछ रहे हैं कि पाँच लाख से ज्यादा कमाने वालों का टैक्स कम क्यों नहीं हुआ। मिडिल क्लास वाले 3 करोड़ लोग, जो कुछ अधिक पैसा बचा पाएँगे, उन्हें रवीश जी छुट्टी मनाने और होली खेलने की नसीहत भी दे रहे हैं। अरे भाई, इसमें इतना जलने वाली क्या बात हो गयी?

कभी कभी रवीश कुमार को देखकर लगता है कि मीठी-मीठी बातें करने वाला आदमी इतनी ज्यादा नेगेटिविटी कैसे ले आता है।

रवीश कुमार हिंदी के दिग्गज पत्रकार हैं। हिंदी लिखने और पढ़ने वाले कई दर्शक उनके प्रशंसक हैं। इनमें वो लोग भी आते हैं, जिन्हे हिंदी में बजट सुनने में परेशानी है। रवीश कुमार चाहते तो किसानों को ये बता सकते थे कि नया बजट उनके लिए कैसे सहायक हो सकता है, लेकिन उन्होंने इसकी जगह उन्हें बेबस और लाचार बताना उचित समझा। पांच सौ रुपए बहुत तो नहीं होते, लेकिन जो किसान दस-दस रुपए के लिए परेशान होता था वो उसकी महत्ता NDTV के AC ऑफिस में बैठे रवीश कुमार से ज्यादा समझ सकता है।

रवीश जी से आग्रह है कि गंगा सफाई पर चल रहे कार्यक्रमों पर थोड़ी जाँच पड़ताल कर लें ताकि होली के दिन उन्हें दिवाली के बारे में बात करने की जरूरत ना पड़े| एक महान अर्थशास्त्री ने कहा था, “पैसे पेड़ पर नहीं उगते।” रवीश जी से ये भी आग्रह है कि मुफ्त में पैसे बाँटने वाली राजनीति से बाहर निकलें।

लेह-लद्दाख-कारगिल भारत का मस्तक, वीरों की धरती: PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में लेह एयरपोर्ट सहित कई विकास परियोजनाओं का शिलान्यास किया। प्रधानमंत्री ने इस दौरान लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि शिलान्यास के बाद इन परियोजनाओं का लोकार्पण करने भी वही आएँगे। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार के काम करने का तरीका तेज़ी से काम करना है। लटकाने और भटकाने की संस्कृति देश पीछे छोड़ चुका है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जिन परियोजनाओं का लोकार्पण, उद्घाटन और शिलान्यास किया गया है, उनसे बिजली के साथ-साथ लेह-लद्दाख की देश और दुनिया के दूसरे शहरों से कनेक्टिविटी सुधरेगी, पर्यटन बढ़ेगा, रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और यहाँ के युवाओं को पढ़ाई के लिए अच्छी सुविधाएँ भी मिलेंगी। उन्होंने कहा कि यह धरती वीरों की है और यहाँ की जनता से मुझे प्रेम मिलता रहा है। लेह-लद्दाख-कारगिल भारत का शीर्ष है, हमारा मस्तक है। माँ भारती का ये ताज हमारा गौरव है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि लेह, लद्दाख का इलाक़ा अध्यात्म, कला-संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए दुनिया का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ टूरिज्म के विकास के लिए एक और क़दम सरकार ने उठाया है। इसके अलावा यहाँ 5 नए ट्रैकिंग रूट को खोलने का फै़सला भी लिया गया है।

बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू के विजयपुर भवनों और पुलवामा के अवंतीपोरा में नए एम्स की आधारशिला रखी और साथ ही किश्तवाड़ में 624 मेगावाट क्षमता वाली जल विद्युत परियोजना का शिलान्यास भी किया।

कुम्भ पर डाक टिकट जारी: आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार हुआ ऐसा

केंद्रीय रेल और संचार राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने शनिवार (2 फरवरी 2018) को कुंभ मेले पर भारतीय डाक विभाग का एक विशेष डाक टिकट जारी किया। इस अवसर पर एक विशेष ‘फस्ट डे कवर’ भी जारी किया गया। इसका मूल्य पाँच रुपए है।

इस अवसर पर श्री सिन्हा ने कहा कि कुंभ मेला न सिर्फ़ भारत का बल्कि पूरी दुनिया का एक प्रमुख आयोजन है। मनोज सिन्हा ने कहा कि कुंभ केवल एक धार्मिक और आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि यह पूरे विश्व का एक ज्योतिषीय, सांस्कृतिक और खगोलीय आयोजन भी है। कुंभ को ज्ञान के स्रोत के रूप में भी देखा जाता है।

कुंभ मेले पर जारी किया गया विशेष डाक टिकट

कुंभ पर डाक टिकट जारी करते हुए उन्होंने कहा कि कुंभ मेले पर टिकट जारी करना बड़े गौरव की बात है। इससे पहले की सरकारें इस प्रकार के आयोजनों पर स्मारक डाक टिकट जारी करने से बचती आई हैं। वर्तमान सरकार ने ऐसा साहस दिखाया है और कुंभ पर स्मारक डाक टिकट जारी किया, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ

उन्होंने बताया कि कुंभ पूरे देश के साथ-साथ विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र है। संपूर्ण विश्व के लिए कुंभ मेला आस्था का प्रतीक है, दुनिया भर से लोग यहाँ आते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए स्मारक डाक टिकट और स्मारिका जारी की गई है।

केंद्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने जानकारी दी कि डाक विभाग ने कई क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए हैं। डाक विभाग ने पार्सल के साथ-साथ तक़नीकी का इस्तेमाल कर कोर बैंकिंग की भी शुरुआत की है। इसके अलावा पासपोर्ट सेवा केंद्र भी डाक विभाग में खोले गए हैं। मनोज सिन्हा ने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि हर लोकसभा क्षेत्र में कम से कम एक पासपोर्ट केंद्र हो और हम इस लक्ष्य को फरवरी के अंत तक प्राप्त कर लेंगे। 2014 तक देश में सिर्फ़ 77 पासपोर्ट केंद्र थे, जो अब बढ़कर 300 से अधिक हो चुके हैं।

मनोज सिन्हा ने कहा कि अब इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक के माध्यम से क्रान्तिकारी परिवर्तनों की डाक विभाग में शुरुआत हो चुकी है। इंडिया पोस्ट की लगभग 1,30,000 शाखाएँ खुल चुकी हैं और बीमा क्षेत्र में भी डाक विभाग जल्दी ही अपने क़दम आगे बढ़ाएगा।

बिहार में सीमांचल एक्सप्रेस हादसा: 7 की मौत, इन नंबरों पर करें संपर्क

बिहार में रविवार की सुबह एक बड़ा रेल हादसा हुआ। हादसे में बिहार के जोगबनी से नई दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल जा रही सीमांचल एक्सप्रेस की 11 बोगियां पटरी से उतर गईं। अभी तक की जानकारी में 7 लोगों मौत हो चुकी है, जबकि कई अन्य घायल हैं।

रेलवे अधिकारियों के अनुसार यह हादसा संभवत: पटरी के टूट जाने की वजह से हुआ है। यह हादसा हाजीपुर-बछ़वाड़ा रेल सेक्शन के बीच सहदोई स्टेशन के पास हुआ। हादसे के वक्त ट्रेन फूल स्पीड में थी और पटरी से उतरने के बाद बोगियाँ एक के ऊपर एक चढ़ गई।

रेलवे द्वारा हादसे संबधित जानकारी के लिए जारी किए गए नंबर:

  • सोनपुर- 06158221645
  • हाजीपुर- 06224272230
  • बरौनी- 0627923222
  • पटना- 06122202290, 06122202291, 06122202292, 06122213234

इस बीच रेलवे ने इस हादसे पर मुआवजे का ऐलान कर दिया है। ऐलान के अनुसार, मृतकों के परिजनों को 5 लाख रुपए जबकि गंभीर रूप से घायलों को 1 लाख रुपए तक मुआवज़ा दिया जाएगा। मामूली रूप से जख्मी को 50 हजार रुपए का मुआवजा मिलेगा। इसके साथ ही रेलवे ने हादसे के जाँच के आदेश भी दे दिए हैं।

जब ‘हिजाब’ से पितृसत्ता और धार्मिक कुरीतियों की बू आने लगे… तो उसे उतार फेंकना चाहिए

1 फरवरी को समूचे विश्व में ‘वर्ल्ड हिजाब डे’ मनाया गया। इस दिन हिजाब के महत्वों पर भी बात की गई और कई देश के कोनों-कोनों में इस पर समारोह का भी आयोजन हुआ। इन समारोह में जो मुख्यत: बातें हुईं, वो यह कि आख़िर मुस्लिम महिलाओं को हिजाब क्यों पहनना चाहिए। इस ‘क्यों’ के एक ज़वाब में हिजाब को मुस्लिम महिलाओं की पहचान बताया गया।

इस दिन को पूरे विश्व में मनाने का एक उद्देश्य है कि सभी धर्मों और विभिन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं को एक दिन के लिए हिजाब पहनने और उसे अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। साल 2013 में नजमा खान के द्वारा इस वार्षिक कार्यक्रम की स्थापना की गई थी।

आज हिजाब को न केवल इस्लामिक देशों में बल्की अन्य देशों में भी मुस्लिम महिलाओं की छवि का प्रतिबिंब माना जाता है। ऐसे में अब ज़रा सोचिए कितना कठिन होता होगा उन मुस्लिम महिलाओं के लिए खुद को हिजाब से अलग कर पाना, जो इसे अपने जीवन में जगह नहीं देना चाहती हैं और खुली हवाओं में खुले सिर घूमने की तमन्ना रखती हैं।

हिजाब पहनना किसी विशेष समुदाय की महिलाओं के लिए सिर्फ तभी तक ‘माय लाइफ, माय रूल्स’ का हिस्सा बन सकता है, जब तक उन पर वो थोपा न जाए। जब इससे धार्मिक कुरीतियों और पितृसत्ता की बू आने लगे तो इसे जितनी जल्दी मुमकिन हो, उतारकर फेंक देना चाहिए।

लगभग 6 साल होने को है, जब इरान की एक महिला मसीह अलीनेज़ाद ने हिज़ाब के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया था। अपने हिजाब को उतारकर इस महिला ने कार की स्टेयरिंग पकड़कर सोशल मीडिया पर अपनी फोटो अपलोड की थी। जिसके बाद सोशल मीडिया पर कई महिलाओं ने उनके समर्थन में अपनी तस्वीरें भी साझा करनी शुरू की थी।

मसीह ने अपनी किताब ‘द विंड इन माय हेयर’ में लिखा है कि वो इरान के एक ऐसे मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ी हैं, जिसमें एक लड़की को अपना सर घर के लोगों के आगे भी ढककर रखना होता था। उन्होंने अपनी संस्कृति में औरतों के साथ होती नाइंसाफ़ी को महसूस किया था। अपनी किताब में मसीह ने बताया कि वो मूक लोगों की आवाज़ बनना चाहतीं थी लेकिन इरान में रहते हुए वो हमेशा ही मूक रहीं।

मसीह 2009 से ही यूएस में रह रही हैं। वो गिरफ्तारी की डर की वजह से यूएस से इरान चाहकर भी नहीं जा पाती हैं। वो बताती हैं कि उनके पिता ने उनसे बात भी करनी बंद कर दी है।

आज मसीह के इस आंदोलन से 1000 से ज्यादा महिलाएँ जुड़ चुकी हैं। मतलब साफ़ है कि हिजाब का मामला स्वेच्छा से जुड़ा हुआ तो बिलकुल भी नहीं है।

ईरान की ही राजधानी तेहरान में साल 2017 से 2018 के बीच में लगभग 35 से अधिक हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करती महिलाओं को गिरफ्तार किया गया। साथ ही इस बात की भी धमकी दी गई कि अगर कोई भी महिला हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करती पाई गई, तो उसे दस साल के लिए जेल में भी डाला जा सकता है।

अब ऐसी स्थिति में सोचिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर इस दिन को मनाना क्या वाकई में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर बात करना है या उनकी स्थिति को और भी दयनीय बनाना है।

हिजाब आज मुस्लिम महिलाओं के लिए और भी ज्यादा विमर्श का विषय है क्योंकि बाज़ार से लेकर खेल जगत तक और खेल से सौंदर्य तक हर क्षेत्र में हिजाब को ढाल बनाकर मुस्लिम महिलाओं को इसमें जकड़े रखने की पुरज़ोर कोशिशें की जा रही हैं।

हाल ही में नाइकी जैसी बड़ी कंपनी ने एथलिट के लिए एक डिज़ाइनर हिजाब तैयार किया, जिसको बनाने के पीछे तर्क था कि एथलिट जिसमें सहज है, वो वैसे ही खेले। नाइकी के इस कदम पर तथाकथित नारीवादी लोग वाह-वाही करते नहीं थके।

लेकिन, सोचिए ज़रा! हिजाब की जकड़ मुस्लिम महिलाओं पर कितनी होगी कि जिस बाज़ार का काम हमें विकल्प मौजूद कराना है, वो भी हिजाब के मसले पर सीमित हो गया। ये किसी विशेष धर्म की कुरीतियों को बढ़ावा देना नहीं तो और क्या है कि अब दौड़ के मैदान में भी एक लड़की ‘खिलाड़ी’ बनकर नहीं बल्की ‘मुस्लिम खिलाड़ी’ बनकर दौड़ेगी।

नाइकी ही एक ऐसा नाम नहीं है, जिसने हिजाब को मुस्लिम महिलाओं की सहज़ता से जोड़ा हो। इसी दिशा में पिछले साल ऐसा काम इंडोनेशिया के डिज़ाइनर अनिएसा हसीबुआँ ने किया था और उस समय भी हिजाब को न्यूयॉर्क फ़ैशन वीक में बहुत वाहवाही मिली थी।

अब सोचिए अगर हर स्तर पर इसी तरह से मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब की अनिवार्यता को आधुनिक रूप दे-देकर पेश किया जाएगा तो आने वाले समय में ये ‘मुस्लिम महिलाएँ’ खुद के भीतर की महिला को मारकर सिर्फ ‘मुस्लिम’ को ही जिंदा रख पाएँगी।

आज देश-विदेश में हिजाब को लेकर जो कॉन्सेप्ट चल रहा है, वो बिल्कुल ऐसा है ही कि विश्व के कोने-कोने में लड़कियों को ‘जंजीर’ से छुड़ाने की जगह उनके हाथ-पाँवों को ‘डिजाइनर जंजीरों’ से जकड़ दिया जाए। ताकि वे मॉडर्न बनने की चाह में खुद के अधिकारों पर बात करना बिलकुल बंद कर दें और उसी आबो-हवा में साँस भरें, जिसकी कण-कण से केवल गुलामी की गंध आती हो।

जिस दिशा में हिजाब को इस्लाम का हिस्सा बताकर डिज़ाइनर तरीके से पेश किया जा रहा है, उसी दिशा में जरा दूसरे पहलू पर गौर करें और सोचें कि क्या होगा? जरा सोचिए कैसा लगेगा अगर कोई कंपनी हिंदू धर्म के लिए डिज़ाइनर चिता बनवाए, ताकि कोई सती होकर चिता पर जलना चाहे? सभी धर्मों के अनुरूप बाल विवाह के मंडप भी डिज़ाइनर बनाए जाएँ! कन्या भ्रूण हत्या के लिए डिज़ाइनर इक्विप्मेंट्स बनाए जाएँ! जरा सोचिए।

और ऐसा इसलिए ताकि हर उस कुरीति को जिंदा रखा जाए, जिससे महिलाओं का दमन होता आया है। इसके लिए बाजार को आखिर करना ही क्या है, सिर्फ मूल वस्तु और भाव में डिजाइन को ठूँस देना है। 10-20 जगहों पर समारोह करवा देना है और ट्विटर जैसी बड़ी कंपनियों के सीइओ के हाथ में कुछ भी लिखकर तख्ती पकड़वा देनी है। जरा सोचिए, वो बाजार कितना ख़ौफनाक होगा?