Thursday, November 7, 2024
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कमलनाथ को बसपा विधायक रामबाई का अल्टीमेटम, 20 जनवरी तक का दिया समय

मध्यप्रदेश में सरकार बनाने के बाद कमलनाथ को पहली बार गठबंधन दल की तरफ से अल्टीमेटम दिया गया है। मध्यप्रदेश में इन दिनों सपा-बसपा की मदद से कॉन्ग्रेस की सरकार चल रही है। ऐसे में बसपा विधायक का अल्टीमेटम कमलनाथ सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

मध्यप्रदेश के पथरिया की विधायक रामबाई ने कहा, “कॉन्ग्रेस की तरफ से मुझे मंत्री बनाने की वादा किया गया है, मैं 20 जनवरी तक इंतज़ार करूँगी।” जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या उनके बयान को सरकार के लिए ख़तरे के संकेत के रूप में देखा जाए? इस सवाल के जवाब में रामबाई ने कहा कि सरकार को पता है कि उनकी सरकार अगले पाँच साल तक ऐसे ही चलेगी।

मध्यप्रदेश के 230 सीटों वाली विधानसभा में कॉन्ग्रेस के 114 सदस्य हैं जबकि भाजपा के 109 सदस्य हैं। सरकार को सपा और बसपा के दो, समाजवादी पार्टी के एक और चार निर्दलीय विधायकों का साथ है।

ऐसे में यदि सपा और बसपा के विधायक सरकार से समर्थन वापस ले लेते हैं, तो कमलनाथ के लिए बहुमत साबित कर पाना मुश्किल हो जाएगा।

विधानसभा स्पीकर के लिए सदन में हो-हल्ला

आज सदन में विधानसभा स्पीकर पद के लिए चुनाव होना है। मध्यप्रदेश में क़ॉन्ग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों ने विधानसभा स्पीकर पद के लिए दावेदारी पेश कर दी है। ऐसा करके एक तरह से भाजपा सरकार का फ़्लोर टेस्ट भी कर लेना चाहती है।

यही वजह है कि आज जैसे ही विधानसभा की कार्यवाई शुरू हुई दोनों ही पक्ष और विपक्ष के नेताओं में बहस शुरू हो गई। विधानसभा के अंदर गहमागहमी को देखते हुए सदन को दो बार स्थगित करना पड़ा। स्पीकर पद के लिए भाजपा की तरफ से विजय शाह चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि कॉन्ग्रेस की तरफ से नर्मदा प्रसाद प्रजापति इस पद के लिए चुनाव लड़ रहे है।

भाजपा के लखन सिंह को हराकर रामबाई बनी विधायक

पथरिया विधानसभा से बसपा प्रत्याशी रामबाई गोविंद सिंह ने भाजपा के लखन पटेल को 2205 वोटों से हरा दिया है। रामबाई इससे पहले जिला पंचायत की सदस्य थी। विधायक बनने के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। जानकारी के लिए आपको बता दें कि जिला पंयाचत अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में रामबाई ने भाजपा उम्मीदवार शिवचरण पटेल को समर्थन दिया था।

भव्य और सुरक्षित कुम्भ पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सीधी नज़र

“यह अत्यंत हर्ष और सौभाग्य का विषय है कि वर्ष के आरम्भ में 15 जनवरी से 4 मार्च, 2019 तक प्रयागराज में संगम तट पर पवित्र कुम्भ मेले का आयोजन हो रहा है। प्रयागराज की पवित्र धरती भारत की समृद्ध सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत की पहचान रही है। प्रयागराज ही वह एकमात्र पवित्र स्थली है, जहाँ देश की तीन पावन नदियाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं।

कुम्भ को भारतीय संस्कृति का महापर्व कहा गया है। प्रयागराज के इस संगम में कुम्भ के समय कई परम्पराओं, भाषाओं और लोगों का भी अद्भुत संगम होने वाला है। संगम तट पर स्नान और पूजन का तो विशिष्ट महत्व है ही, साथ ही कुम्भ का बौद्धिक, पौराणिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक आधार भी है। एक प्रकार से कहें तो कुम्भ स्नान और ज्ञान का भी अनूठा संगम सामने लाता है।” नरेन्द्र मोदी

कुम्भ को भव्य, सुरक्षित और सुखद बनाने में पीएम मोदी किसी भी प्रकार का कसर नहीं छोड़ना चाहते। पीएम मोदी की दूरदृष्टि अब प्रयागराज में नज़र आने लगा है।

दशकों बाद ऐसा होगा, जब कुम्भ को गौरवशाली बनाने एवं सकुशल सम्पन्न कराने के लिए, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभी गतिविधियों पर सीधी नज़र होगी।

इसकी झलक तैयारियों से स्वतः मिल जाती है। सुरक्षा पर व्यापक इन्तज़ाम के साथ ही कुम्भ पुलिस लाइन में एडिशनल एसपी नीरज पाण्डेय व ओपी सिंह ने पुलिस कर्मियों को विशेष ट्रेनिंग भी दी है। मेला प्राधिकरण की तरफ से मेले के लिए निर्धारित क्षेत्रों और विभागों में बाँटा गया है। साथ ही श्रद्धालुओं के साथ कब और कैसा व्यवहार करना है, इसके बारे में भी बताया गया है।

किसी तरह का कोई हादसा न हो इसके लिए, मुख्य स्नान पर्व पर सर्वाधिक स्नानार्थियों वाले मार्गों, चौराहों पर होने वाली व्यवस्था और सेवा व सुरक्षा के महत्पूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा की गई है।

उत्तर प्रदेश शासन की ओर से बनवाई गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म के द्वारा मेले का विस्तार, विकास, पुलिस की व्यवस्था में होने वाले परिवर्तन व दूसरे तथ्यों से परिचित कराया गया। विश्व प्रसिद्ध कुम्भ मेले में किसी तरह की चूक न हो, इसके लिए पुलिस हर तरह से प्रयासरत है। ड्यूटी पर आई कुम्भ पुलिस को 1954 और 2013 के कुम्भ मेले की डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी दिखाई गई है। पुलिस कर्मियों को यह भी बताया गया कि 1954 में हाथी के कारण ही भगदड़ हुई थी, जिसके बाद से मेले में हाथी का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है।

ऐसा ही साल 1954 में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सीधे निर्देश दिए थे कि मेले की तैयारियों में किसी तरह की कोताही ना बरती जाए। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि 1954 में मेले की तैयारियों के लिए एक उच्च स्तरीय कमिटी बनाई गई थी। मेले की हर जानकारी सीधे पुलिस हेडक्वॉर्टर को भेजी जाती थी। इसके बाद वहाँ से ये सारी जानकारी पीएम नेहरू को भेजी जाती थी। फिर भी उस साल के कुम्भ में मची भगदड़ में कई लोग हताहत हुए थे।

CBI डायरेक्टर मामले में ‘मोदी सरकार को झटका’ : रीढ़विहीन मीडिया फैला रही यह झूठ, आप न बनें मूर्ख!

CBI बनाम CBI के झगड़े को सुप्रीम कोर्ट ने निपटा दिया है। जिस सुप्रीम कोर्ट ने पहले राकेश अस्थाना पर मुहर लगाई थी, उन्होंने ही आज आलोक वर्मा को डायरेक्टर नियुक्त किया – हालाँकि कई नियम व शर्तों के साथ। संक्षेप में सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के तरीके को भी गलत बताया। आलोक वर्मा को डायरेक्टर बहाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह तब तक किसी भी तरह के नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते, जब तक चीफ़ जस्टिस गोगोई, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और नेता विपक्ष वाली उच्चाधिकार समिति द्वारा उनके संबंध में कोई निर्णय नहीं ले लिया जाए।

मोदी सरकार को बड़ा झटका – सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर कई पत्रकारों की त्वरित टिप्पणी यही थी।

मीडिया जब रीढ़विहीन है, तो वह बारीकियों को नजरअंदाज़ करेगी ही। जबकि वास्तविकता में, सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ भी हो लेकिन मोदी सरकार के लिए कम से कम ‘झटका’ तो नहीं है।

नीतिगत निर्णयों से विहीन कर सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को केवल सीबीआई डायरेक्टर के तौर पर बहाल किया है। आलोक वर्मा के नीतिगत निर्णय लेने के संबंध में चीफ़ जस्टिस गोगोई, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और नेता विपक्ष वाली उच्चाधिकार समिति को सुप्रीम कोर्ट ने एक सप्ताह का समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तकनीकी आधार पर आलोक वर्मा को बहाल किया है। कोर्ट ने कहा कि आलोक वर्मा को हटाए जाने के संबंध में केंद्र सरकार को चीफ़ जस्टिस, प्रधान मंत्री और नेता विपक्ष युक्त संबद्ध समिति को बताना चाहिए था।

उच्चाधिकार प्राप्त समिति आलोक वर्मा को हटाती है या रखती है – यह देखना अभी बाकी है। इसलिए अभी से यह कहना कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सरकार के लिए झटका है, बिल्कुल गलत है। यदि वास्तव में, सरकार चाहती थी कि वर्मा कोई नीतिगत निर्णय न ले पाएं, जैसा कि कई पत्रकारों ने दावा किया है, तब तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सरकार को उसकी मुँह-माँगी इच्छा दे दी है।

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि आलोक वर्मा 31 जनवरी 2019 को रिटायर होने वाले हैं। केवल कुछ ही हफ्तों के लिए, इस औपचारिक बहाली को ‘सरकार के लिए झटका’ बताना हद से ज्यादा हास्यास्पद है।

CBI बनाम CBI के झगड़े का दूसरा पहलू भी दिलचस्प है। जो मीडिया वर्मा पर इस तकनीकी फैसले को सरकार के लिए ‘झटका’ बता रही है, वही अस्थाना की नियुक्ति पर चुप रह जाती है। उसी मीडिया के अनुसार, मोदी सरकार ने अस्थाना को वर्मा से ज्यादा प्राथमिकता दी थी। दिसंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने CBI स्पेशल डायरेक्टर के पद पर राकेश अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक क्यूरेटिव याचिका को खारिज़ कर दिया था। अदालत ने यह फैसला प्रशांत भूषण द्वारा गैर-सरकारी संगठन कॉमन कॉज़ के लिए दायर याचिका पर दिया था। सीबीआई में आईपीएस अधिकारी की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2017 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए भूषण ने यह पुनर्विचार याचिका दायर की थी। मज़ेदार यह कि उनके द्वारा इस मामले में दायर यह तीसरी याचिका थी।

सुप्रीम कोर्ट फैसले से ठीक पहले राहुल गांधी ने राकेश अस्थाना के खिलाफ आग उगल दिया था।

राकेश अस्थाना, जिसे विपक्ष पीएम मोदी की ‘आँखों का तारा’ मानता है। उनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखना आलोक वर्मा की तुलना में ज्यादा तार्किक और व्यापक है क्योंकि वर्मा साहब की किस्मत अभी भी अधर में लटकी हुई है।

अस्थाना और वर्मा दोनों को छुट्टी पर भेजने में मोदी सरकार का उद्देश्य सीबीआई की सुचिता को सुनिश्चित करना था, जो दोनों के झगड़ों से तार-तार हो रहा था। साथ ही इन दोनों अधिकारियों के आरोपों की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना भी सरकार का उद्देश्य था। सीवीसी ने आरोप लगाया था कि वर्मा अपने खिलाफ जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे। वास्तविकता में, सीवीसी ने ही दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने की सिफारिश की थी, ताकि उनके खिलाफ जाँच सुचारू रूप से संचालित हो सके। चूँकि सीवीसी ने पहले ही वर्मा के खिलाफ जाँच पूरी कर ली थी, ऐसे में उनको छुट्टी पर भेजने का उद्देश्य पूरा हो चुका था।

सपा नेता आज़म ख़ान ने की समुदाय के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण की मांग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गरीब और सुविधाओं से वंचित रहने वाले सामान्य वर्ग को शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में दिया जाने वाला आरक्षण का फैसला अभी आया ही है, कि सभी विरोधी पार्टियों में हड़कंप मच गया है।

ज़ी न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म ख़ान ने डिमांड की है कि 10 प्रतिशत सवर्णों को मिलने वाले आरक्षण में से 5 प्रतिशत समुदाय विशेष के लिए आरक्षण होना चाहिए।

रिपोर्टों के अनुसार विवादस्पद बयानों के लिए पहचाने जाने वाले आजम ख़ान ने प्रधानमंत्री मोदी से नई आरक्षण पॉलिसी पर सवाल किया है और साथ में बयान दिया है कि हाल ही में हुए चुनावों में ‘भारी हार’ के बाद BJP ने अपने हित में इस नई आरक्षण नीति को लेकर आए हैं। आजम ख़ान ने प्रधानमंत्री मोदी से सवाल किया है कि 10 प्रतिशत मिलने वाले सवर्णों को आरक्षण में समुदाय के लिए कितना कोटा आरक्षित है।

“अगर देश की दूसरी सबसे ज़्यादा आबादी वाली जनसंख्या के लिए इस नई आरक्षण की नीति में किसी प्रकार का कोई विचार नहीं है तो इस आरक्षण का आखिर मतलब ही क्या है?” आज़म ख़ान के अनुसार एक बार फिर चुनावों के दौरान साम्प्रादायिकता का खेल खेला गया है। उनका कहना है कि ये कोई मास्टरस्ट्रोक नहीं है, उन्होंने सिर्फ माँग की है कि उन्हें भी 5 प्रतिशत आरक्षण की तरज़ीह दी जानी चाहिए।

आज़म ख़ान का कहना है कि समुदाय को आरक्षण पहले ही दे दिया जाना चाहिए था। हालाँकि, ये बहुत देर हो गई है कि उनके लिए आगे आरक्षण का प्रस्ताव रखा जाए। गौरतलब है, कि इसके अलावा उनका ये भी बयान आ चुका है कि समुदाय को अनूसुचित जाति की सूची में रख देना चाहिए क्योंकि हमारे देश में दूसरे समुदाय के हालात अच्छे नहीं हैं।

फ़ैक्ट चेक: सोशल मीडिया पर गौ- मांस के साथ पकड़े गए भाजपा नेता वाले वीडियो की सच्चाई क्या है?

फ़ेसबुक पर इन दिनों कई सारे लोग एक वीडियो को शेयर कर रहे हैं। इस वीडियो में बताया जा रहा है कि गुजरात में एक भाजपा नेता को गौ-मांस के साथ पकड़ा गया है। इस वीडियो को देखते ही पता चल जाता है कि किसी ने भाजपा को बदनाम करने के लिए ऐसा किया है। लेकिन इस बात को कहने के लिए हमारे पास ठोस साक्ष्य होना ज़रूरी है। इस वीडियो को आधुनिक तकनीक के ज़रिए जांचने के बाद ऑपइंडिया टीम जिस निष्कर्ष पर पहुँची वो इस तरह है। 

इस वीडियो को फ़ेसबुक पर कई सारे पेज व लोगों के ज़रिये शेयर किया गया है। “Yahan sab kuch milta hai” नाम के एक फ़ेसबुक पेज पर इस वीडियो को 5 जनवरी 2018 को शेयर किया गया है। इस वीडियो को इस पेज से करीब 195 लोगों ने शेयर किया है, जबकि करीब ढ़ाई हजार लोगों ने वीडियो को इस पेज पर देखा है। अब बात करते हैं कि इस वीडियो में ऐसा क्या है, जिसके आधार पर हम हक़ीक़त का पता कर सकें।

fb screen shot on bjp leader with beef
इस वीडियो को कुछ समय बाद फ़ेसबुक पेज से हटा लिया गया

दरअसल 50 सेकेंड की यह वीडियो है। इस वीडियो में कई सारे फोटो को एक साथ जोड़कर बैक ग्राउंड से वॉइस ओवर किया गया है। अब बात उस पहली तस्वीर की जो वीडियो को प्ले करते ही हमारे सामने आता है। इस फोटो में ब्लू कलर के शर्ट में एक व्यक्ति बैठा है। इस इंसान को चारों तरफ से लोगों ने घेर रखा है। इसके सामने किसी चीज की मांस बिखरी पड़ी है। अब सबसे पहले हमने इस फोटो के बारे में गूगल रिवर्स नाम के वेबसाइट के जरिये पता किया। फोटो के बारे में सर्च करते ही इस फोटो की हिस्ट्री हमारे सामने आ गई। इसके बाद हमने देखा कि ‘ट्रूथ ऑफ गुजरात’ नाम के एक वेबसाइट ने इस तरह के फोटो को कई बार 30 मार्च 2014 और फिर 2016 में भी शेयर करते हुए लोगों के फोटो से जुड़ी गलत जानकारी दी है।

जब हमने गूगल पर “bjp leader with beef “ टाईप करने के बाद सर्च किया तो हमारे सामने इंडिया टुडे  वेबसाइट से एक फोटो दिखी। इसके आलावा भी और कई सारी वेबसाइटों की फोटो हमारे सामने दिखने लगी। यदि कोई व्यक्ति इस टैग वर्ड से गूगल पर कुछ सर्च करता है तो पहली नज़र में उसे लगेगा कि काफ़ी सारे भाजपा नेता को गौ-मांस के साथ पकड़ा गया है। इससे लोगों के दिमाग में किसी पार्टी के लिए गलत इमेज तैयार होती है। हिट पाने के चक्कर में तमाम मुख्यधारा की मीडिया इस तरह के टैग को इस्तेमाल कर रही है।

गूगल पर 'BJP LEADERS WITH BEEF ' टाइप करने के बाद इस तरह के वेब पेज खुलता है
गूगल पर ‘BJP LEADERS WITH BEEF ‘ टाइप करने के बाद कुछ इस तरह का वेब पेज हमारे समने खुलता है

इंडिया टुडे वेबसाइट के फोटो पर क्लिक करने के बाद हमने देखा कि इंडिया टुडे ने इस फोटो को राँची की एक खबर के साथ अपडेट किया था। राँची में एक अपराधी को गाय के मांस के साथ लोगों ने पकड़ा था। पकड़े गए अपराधी का भाजपा से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि रांची में पकड़े गए इस अपराधी के बारे में मुख्यधारा मीडिया के किसी वेबसाइट ने यह नहीं लिखा है कि उस इंसान का भाजपा के साथ कोई संपर्क था।

हमें यहाँ से पता चला कि राँची में पकड़े गए उस अपराधी की तस्वीर और फ़ेसबुक पर वायरल हो रहे इस वीडियो में यूज़ की गई तस्वीर एक ही है। इस तरह हम कह सकते हैं कि यह वीडियो फ़र्ज़ी है। इसमें इस्तेमाल की गई तस्वीर संपादित की हुई है। जिसमें कई सारी तस्वीरों को मर्ज़ किया गया है। इसके साथ ही जिस ब्लू शर्ट वाले इंसान को भाजपा नेता बताया गया है, उसका भाजपा से कोई लेना-देना नहीं है।

जब हमारी टीम ने यह पता किया कि क्या किसी मुख्यधारा की मीडिया ने इस तरह के वीडियो या फोटो के बारे में फ़ैक्ट चेक किया है। एक इंडिया टुडे की वेबसाइट को छोड़कर किसी ने इस तरह के फोटो या वीडियो की सच्चाई जानने का प्रयास नहीं किया है। सोशल मीडिया के ज़माने में आम लोगों के दिमाग पर झूठे ख़बरों का काफ़ी बुरा असर पड़ता है। इसी वजह से हमने तय किया है कि हम लोगों को भ्रमित करने वाले इस तरह के अफ़वाहों का पर्दफाश करते रहेंगे।

असम की 6 पिछड़ी जातियों को मोदी सरकार का तोहफ़ा, सभी जातियाँ शेड्यूल कास्ट में शामिल

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट करके बताया कि असम में रहने वाली छ: पिछड़ी जातियों को शेड्यूल कास्ट का दर्जा दे दिया गया है। उन्होंने अपने ट्वीट में यह भी लिखा है कि कैबिनेट की मीटिंग में इन जातियों की माँग को स्वीकार कर लिया गया है। अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में शामिल होने वाली छ: पिछड़ी जातियों में अहोम, कोच-रागबंशी, मोरान, मटक, चुटिया और चाय जनजातियाँ हैं।

पिछड़ी जातियों की यह माँग काफ़ी पुरानी है

3 जुलाई 2017 को असम बंद का ऐलान इन सभी जातियों ने मिलकर बुलाया  था। इस बंद के दौरान अपनी माँग को मजबूती से रखते हुए इन सभी जातियों ने ‘नो एसटी, नो रेस्ट’ (No ST, No Rest) का नारा दिया था। इस बंद के दौरान इन जातियों ने एक स्वर में कहा कि जब तक उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिल जाता है, वो लोग इसी तरह आंदोलन करते रहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद इस मामले पर बोगई गाँव की रैली में बयान दिया था। इस मुद्दे पर मोदी ने कही था कि जल्द ही पिछड़ी जातियों की माँग मान ली जाएगी।

आंदोलन का इतिहास कुछ इस तरह है

एसटी सूची में शामिल करने के लिए पिछड़ी जातियों की माँग काफ़ी पुरानी है। साल 1996 में केंद्र ने कोच-राजबंगशीस समुदाय को 6 महीने के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया था। उस समय इस समुदाय ने एसटी कोटा से होने वाले कॉलेज के प्रवेश के अधिकांश सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। इसके बाद इस मामले ने विवाद को रूप ले लिया। कुछ समुदाय जिसे पहले से ही इस समुह में शामिल हैं, उन जातियों ने इन छ: जातियों के आंदोलन का विरोध किया था। इनका कहना था कि सरकार के इस फ़ैसले से इस समूह में पहले से शामिल जातियों को नुकसान होगा।

बेतुके बयानों से भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस की धूमिल होती छवि

विगत कुछ वर्षों से भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस एक विवादास्पद आयोजन बनकर रह गया है। तीन वर्ष पूर्व विज्ञान कॉन्ग्रेस में प्राचीन भारत में विमान तकनीक पर शोधपत्र पढ़ा गया था जिसपर बवाल हुआ था। रॉयल सोसाइटी के अध्यक्ष नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक वेंकी रामकृष्णन ने तब विज्ञान कॉन्ग्रेस को सर्कस कहा था। 

इस वर्ष जालंधर में संपन्न हुई 106वीं विज्ञान कॉन्ग्रेस में भी वही हुआ जिसकी आशंका थी।विज्ञान कॉन्ग्रेस में प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में देश को उन्नति के पथ पर चलने के लिए जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान के साथ ‘जय अनुसंधान’ का भी नारा दिया परन्तु कुछ विचित्र और अवैज्ञानिक शोधपत्र प्रस्तुत किए जाने से मीडिया में प्रधानमंत्री का इतना महत्वपूर्ण संदेश दब गया।

विज्ञान कॉन्ग्रेस में तमिलनाडु स्थित वर्ल्ड कम्युनिटी सर्विस सेंटर नामक संस्थान से आए कनन जेगाथाला कृष्णन ने एक से बढ़कर एक दावे किए। कृष्णन ने दावा किया कि उनके सिद्धांतों के सामने न्यूटन और आइंस्टीन द्वारा प्रतिपादित भौतिकी के सिद्धांत बौने हैं। कृष्णन ने कहा कि समूचा भौतिक विज्ञान सैद्धांतिक रूप से गलत है किन्तु उन सिद्धांतों के आधार पर जो प्रयोग किए हैं वे सही हैं और यदि कृष्णन के सिद्धांतों को वैज्ञानिक जगत स्वीकार कर लेता है तो भौतिकी की सारी गुत्थियाँ सुलझ जाएँगी।

विचित्र और निराधार बातें करते हुए कृष्णन यहीं नहीं रुके, उन्होंने यह भी कहा कि जल्दी ही अंतरिक्ष में खोजी गई गुरुत्व तरंगों का नाम ‘मोदी तरंग’ और आइंस्टीन द्वारा खोजे गए ‘गुरुत्वाकर्षण लेंस प्रभाव’ का नाम केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन के नाम पर ‘हर्षवर्धन प्रभाव’ रखा जाएगा। कृष्णन के अनुसार सौर मंडल में सारे ग्रह सूर्य की परिक्रमा गुरुत्वाकर्षण बल के कारण नहीं करते बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि अन्तरिक्ष (space) उन्हें संकुचित करता है।

दुखद यह रहा कि न्यूटन और आइंस्टीन को अल्पज्ञानी सिद्ध करने जैसी विचित्र बातें कृष्णन ने भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस में भाग लेने आए बच्चों के सम्मेलन में कही। विज्ञान कॉन्ग्रेस में राष्ट्रीय किशोर वैज्ञानिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें कृष्णन को आमंत्रित किया गया था। इसी सम्मेलन में आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति नागेश्वर राव ने महाभारत का संदर्भ देते हुए कहा कि कौरवों का जन्म टेस्ट ट्यूब तकनीक से हुआ था।

उन्होंने यह निष्कर्ष महाभारत के आदिपर्व के उस प्रसंग से निकाला जिसमें कौरवों के जन्म की कथा है। उस कथा में वर्णन है कि वेद व्यास ने गांधारी के गर्भ के सौ भागों को सौ घड़ों में भर दिया था जिससे कौरवों का जन्म हुआ था। नागेश्वर राव ने यह भी कहा कि रावण के पास केवल पुष्पक विमान ही नहीं बल्कि चौबीस अन्य प्रकार के विमान भी थे।

ऐसे विचार जिनकी प्रमाणिकता आज के समय में प्रयोगों द्वारा सिद्ध न की जा सके, उन्हें बच्चों के सामने प्रकट करने पर क्या संदेश गया होगा यह विचारणीय है। वह भी तब जबकि विज्ञान कॉन्ग्रेस में प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में 2022 तक अंतरिक्ष में गगनयान भेजने का संकल्प लिया। ऐसा ही संकल्प केनेडी ने 1962 में लिया था और अमेरिका का निर्धारित समय से पहले चन्द्रमा पर जाने का अभियान पूरा हुआ था। संकल्प से सिद्धि की यह यात्रा केवल भाषणों से नहीं बल्कि कर्मठ वैज्ञानिकों की मेहनत से पूर्ण हुई थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में इसी प्रेरणा को बल दिया किन्तु दुर्भाग्य से कुछ ऊटपटांग तथा अवैज्ञानिक विचारों वाले व्यक्तियों के चलते विगत तीन-चार वर्षों से निरंतर भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस की छवि धूमिल हो रही है।विज्ञान कॉन्ग्रेस में इस प्रकार के अनर्गल प्रलापों पर भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन ने आपत्ति करते हुए अपने ब्लॉग पर लिखा कि छद्म-विज्ञान को प्रसारित करने वाले जिन गुरिल्लों को कचरे के डिब्बे में होना चाहिए वे मुक्त होकर घूम रहे हैं।

प्रोफेसर राघवन ने अपने ब्लॉग में तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया है। पहला यह कि विज्ञान कॉन्ग्रेस में केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है यद्यपि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा इस आयोजन की पूरी फंडिंग नहीं की जाती। भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस एसोसिएशन द्वारा विभिन्न स्रोतों से अनुदान एकत्रित कर विगत सौ वर्षों से विज्ञान कॉन्ग्रेस का आयोजन किया जाता रहा है।

प्रधानमंत्री तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री इस आयोजन में सम्मिलित होते रहे हैं इसलिए विज्ञान कॉन्ग्रेस में प्रधानमंत्री का संबोधन देश की विज्ञान नीति की दिशा निर्धारित करता है। प्रोफेसर राघवन लिखते हैं कि इस संदर्भ में हमें प्रधानमंत्री के पूर्व में दिए संबोधनों को ध्यान में रखना चाहिए। 2015 से अब तक सभी विज्ञान कॉन्ग्रेस में प्रधानमंत्री के संबोधन हमारी आकांक्षाओं को परिलक्षित करते हैं।

इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष आयोजित विज्ञान कॉन्ग्रेस में प्रधानमंत्री ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि विज्ञान वैश्विक है किन्तु तकनीक क्षेत्रीय है। इसका अर्थ यह हुआ कि विज्ञान भले ही देशों की सीमाओं में न बंधा हो किन्तु तकनीक किसी भी देश की आर्थिक उन्नति हेतु आवश्यक है इसलिए तकनीकी विकास की दिशा में हमें स्वावलंबन पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

प्रधानमंत्री ने यह भी याद दिलाया कि आज समय अंतर्विषयक शोध करने का है जिसमें विषयों में बँधकर शोध नहीं किया सकता। हमें अब विश्व के पीछे चलने की अपेक्षा शोधकार्य में उसका नेतृत्व करने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री का संबोधन उनके उस संकल्प को पुष्ट करता है जिसमें उन्होंने कहा था कि हमें अब ‘रिसर्च एन्ड डेवलपमेंट’ नहीं बल्कि ‘रिसर्च फॉर डेवलपमेंट’ के बारे में सोचना चाहिए। प्रोफेसर राघवन के अनुसार हमें प्रधानमंत्री के विचारों का अनुकरण करते हुए विज्ञान के नवीन विषयों पर छोटे राज्य स्तरीय विश्विद्यालयों में शोध को बढ़ावा देना चाहिए।  

दूसरी महत्वपूर्ण बात जो प्रोफेसर राघवन ने कही वह यह कि विज्ञान कॉन्ग्रेस में बच्चों की भागीदारी बढ़ चढ़कर होती है ऐसे में वक्ताओं का चयन महत्वपूर्ण है। वक्ताओं के चयन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता और यदि भारतीय विज्ञान कॉन्ग्रेस एसोसिएशन कृष्णन और नागेश्वर राव जैसे वक्ताओं को आमंत्रित करता है तो उसे समाज से विरोध झेलना पड़ेगा।

इस पूरे प्रकरण में अनदेखा पहलू यह भी है कि विज्ञान कॉन्ग्रेस में किए जाने वाले छद्म-वैज्ञानिक दावों से न केवल देश की छवि को नुकसान पहुँचता है बल्कि लिबरल-मार्क्सवादी विचारकों को भारतीय सनातन संस्कृति पर हमले करने का मौका भी मिल जाता है। ऐसा वे कई बार कर चुके हैं, उदाहरण के लिए जब केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने डार्विन के सिद्धांत पर प्रश्न उठाए थे तब उन्हें लिबरल-मार्क्सवादी विचारकों की आलोचना झेलनी पड़ी थी।

मार्क्सवादी आलोचक प्रायः इसी ताक में रहते हैं कि जैसे ही सरकार के किसी मंत्री अथवा सरकार द्वारा प्रायोजित किसी आयोजन में छद्म-वैज्ञानिक वक्तव्य दिए जाएँ वैसे ही सनातन संस्कृति का उपहास किया जाए। ऐसी आलोचनाओं का उत्तर देते हुए एक बार प्रख्यात लेखक अरविंदन नीलकंदन ने अपने एक लेख में लिखा था कि कैसे बालासाहेब देवरस से लेकर रमन महर्षि तक सनातन संस्कृति के कई संवाहकों ने डार्विन के सिद्धांत से असहमत होते हुए भी कभी अवैज्ञानिक बातें नहीं कही।

अंत में प्रोफेसर राघवन लिखते हैं कि प्रतिवर्ष विज्ञान कॉन्ग्रेस की एक विशेष थीम होती है। इस वर्ष का विषय भविष्य की तकनीक था। विज्ञान कॉन्ग्रेस में वक्ताओं का एक बार चयन हो जाने के बाद वे क्या कहते हैं इस पर नियंत्रण नहीं रखा जा सकता। आयोजकों के पास वक्ताओं की अर्हता निर्धारित करने का ऐसा कोई प्रावधान भी नहीं है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे छद्म-वैज्ञानिक विषयों पर न बोलें।

वैज्ञानिक सिद्धांतों से असहमति का भी एक इतिहास रहा है। एक जमाने में सोवियत रूस के वैज्ञानिक जेनेटिक्स को नकारते थे, आज जेनेटिक्स के जनक जेम्स वॉटसन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की महत्ता को नकारते हैं। इसलिए विज्ञान की व्याख्या और उसका प्रयोग करने में अत्यंत सावधानी से चिंतन करने तथा जनसामान्य को साथ लेकर चलने की महती आवश्यकता है।

प्रोफेसर राघवन और अन्य संगठनों की तीखी आलोचना के पश्चात इस प्रकरण की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करने के लिए विज्ञान कॉन्ग्रेस एसोसिएशन ने तत्काल प्रभाव से निर्णय लिया है कि आगामी विज्ञान कॉन्ग्रेस में सम्मिलित होने के पहले ही वक्ताओं से उनके शोधपत्र अथवा व्याख्यान के एब्स्ट्रैक्ट ले लिए जाएँगे।

यही नहीं, यदि कोई वक्ता अपने मूल विषय से हटकर अवैज्ञानिक अथवा छद्म वैज्ञानिक विचार प्रस्तुत करेगा तो उसे तुरंत मंच से हटा दिया जाएगा। यह स्वागत योग्य निर्णय है और वैज्ञानिक जगत ने आशा प्रकट की है कि इससे विज्ञान कॉन्ग्रेस जैसे प्रतिष्ठित आयोजन की विश्वसनीयता बनी रहेगी।

मधुर भंडारकर ने नसीरुद्दीन के ‘डर’ को नकारा, मीडिया चला रही है फ़र्ज़ी ख़बर

कुछ दिन पहले ही अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने एक विवादित बयान देकर ‘असहिष्णुता’ की चर्चा को एकबार फिर चिंगारी दे दी है। उन्होंने कहा कि वो एक ऐसी परिस्थिति के बारे में चिंतित हैं जहाँ उनके बच्चों को उग्र भीड़ घेरकर उनसे पूछ रही है कि उनका धर्म हिन्दू है या मुस्लिम? उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय समाज में ज़हर फ़ैल चुका है। मशहूर अभिनेता के बयान ने बहुत सारी प्रतिक्रियाओं को निमंत्रण दे दिया है। बॉलीवुड से भी बहुत से लोगों ने इस पर प्रतिक्रिया दी है।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो डायरेक्टर मधुर भंडारकर और आशुतोष राणा भी नसीरुद्दीन शाह के ‘समर्थन में खड़े हो गए हैं’। इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख की हेडलाइन थी, ‘कानून और व्यवस्था पर शाह के बयान के बाद आशुतोष राणा, मधुर भंडारकर ने दिखाई एकजुटता’। जबकि ‘Quint’ ने लिखा कि आशुतोष राणा, मधुर भंडारकर और अन्य लोगों ने किया नसीरुद्दीन शाह का बचाव’। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि मधुर भंडारकर ने नसीरुद्दीन शाह का बचाव किया। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि ‘आशुतोष राणा, मधुर भंडारकर ने नसीरुद्दीन शाह के बयान का बचाव किया’।

लेकिन ये सभी रिपोर्ट्स मधुर भंडारकर के कथन का विकृत स्वरूप हैं। भंडारकर ने नसीरुद्दीन शाह के बयान का समर्थन नहीं किया बल्कि सिर्फ उनकी अभिव्यक्ति के अधिकार का बचाव किया है। भंडारकर ने लखनऊ में मीडिया से बातचीत के दौरान बयान दिया, जिसका विडियो ANI द्वारा यूट्यूब पर डाला गया है। विडियो में मधुर भंडारकर कह रहे हैं, “सबका अपना-अपना मत है और सबको अभिव्यक्ति का अधिकार है। हम लोकतंत्र में रह रहे हैं। मुझे नहीं लगता है कि इस तरह का कोई डर है। मेरा मानना है कि भारत में सब बराबर हैं और यही उसका नज़रिया है। हमारे देश के बारे में यही ख़ास बात है कि हर कोई अपना विचार रख सकता है। मुझे नहीं लगता है कि यहाँ पर असहिष्णुता जैसी कोई चीज है।’’

नसीरुद्दीन शाह के बयान पर मधुर भंडारकर की टिप्पणी

फ़िल्म निर्माता मधुर भंडारकर कह रहे थे कि वो नसीरुद्दीन शाह की बात से समर्थन नहीं रखते, लेकिन वो शाह के अभिव्यक्ति के अधिकार का समर्थन करते हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्हें देश में असहिष्णुता जैसी कोई बात नज़र नहीं आती है।

शाह के विवादित बयान पर आशुतोष राणा अपने विचार रखते हुए

इसी तरह से आशुतोष राणा ने भी नसीरुद्दीन शाह की बात का समर्थन नहीं किया था, जैसे कि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दिखाया गया है। उनके विडियो में दिए गए बयान में साफ़ नज़र आता है कि वो शाह के बयान की प्रतिक्रियों के बारे में कह रहे थे।

आशुतोष राणा ने कहा कि अगर कोई कुछ कह रहा है, तो उसे बेवजह परेशान नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों के पास बिना डरे हुए अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार होना चहिए, न कि ये कहा है कि देश में डर, असहिष्णुता का माहौल है, और वो नसीरुद्दीन शाह के बयान का समर्थन करते हैं।

ज्ञात हो कि ANI ने 23 दिसम्बर को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसका टाइटल था – ‘मधुर भंडारकर ने किया नसीरुद्दीन शाह के बयान का बचाव’। लेकिन अब ANI ने अपनी वेबसाईट से ये आर्टिकल हटा लिया है। गूगल सर्च रिज़ल्ट में यह आर्टिकल नज़र आ रहा है, लेकिन उस पर क्लिक करने पर सिर्फ ‘error 404’ दिख रहा है।

ANI के सम्बंधित पेज का स्क्रीनशॉट

शायद ANI ने मुद्दे की वास्तविकता को भाँपकर इस आर्टिकल को हटा दिया होगा, हालाँकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स अभी तक अपनी भ्रामक हेडलाइंस पर क़ायम हैं।

‘फ़ेक न्यूज़’ फैलाकर हिंदुओं को अपमानित करने वाली संस्था के समर्थन में कॉन्ग्रेस

कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल के माध्यम से, हेट क्राइम वॉच (HCW) द्वारा फैलाए गए हिंदू विरोधी प्रचार का समर्थन करने का फ़ैसला किया है। यह ‘अमन बिरादरी’ और NewsClick.in के सहयोग से, IndiaSpend के FactChecker.in का एक बहु-संगठित प्रयास है।

आपको बता दें कि IndiaSpend के संस्थापक न्यासी, factchecker.in का मूल संगठन, अब कॉन्ग्रेस पार्टी के डेटा एनालिटिक्स के मुखिया हैं।

प्रशांत पुजारी, डॉ. नारंग और अंकित सक्सेना आदि मामलों पर कॉन्ग्रेस की चुप्पी इस बात की ओर इशारा करती है कि वह हिन्दू पीड़ितों को एक सिरे से नज़रअंदाज़ करती आई है, वहीं दूसरी तरफ उन अपराधों को उजागर करती है जहाँ समुदाय विशेष पीड़ित के रूप में हो।

अपराध का कोई धर्म और जाति नहीं होती लेकिन फिर भी धर्म के आधार पर राजनीति करना कॉन्ग्रेस की पुरानी आदत है। इस पुरानी आदत में हमेशा से ही हिंदुओं को आक्रामक और मजहब विशेष को पीड़ित के रूप में चित्रित करना शामिल रहा है।

जानकारी के मुताबिक़, जब एक परिवार के विवाद में मुस्लिम समूह द्वारा दलित कठेरिया की हत्या कर दी गई थी तब factchecker.in के द्वारा डेटा में हेरफेर किये जाने की बात सामने आई थी। ऐसे मामले एक नहीं, बल्कि अनेकों हैं जो किसी भी मायने में राजनीति के सही पक्ष को नहीं दर्शाता।

वहीं जब एक मंदिर के पास मछली पकड़ने के लिए एक अज़हर ख़ान की हत्या कर दी गई, तो इसे एक धार्मिक घृणित अपराध का रूप दे दिया गया। इस घटना में ऐसे कोई साक्ष्य नहीं थे जो इसे धार्मिक अपराध बनाते थे, बावजूद इसके इसे सांप्रदायिक रंग दिया गया। इसके अलावा ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं, जहाँ factchecker.in इस तरह के कदाचार में लिप्त रही है।

एचसीडब्ल्यू ने दावा किया था कि साल 2018 के दशक में सबसे अधिक धार्मिक घृणित अपराध हुए हैं। इस भ्रमित कर देने वाले डेटा के आधार पर ऐसे दूरगामी निष्कर्ष तक पहुँचना उनके लिए अपमानजनक बात है, जिन्होंने सम्पूर्ण जानकारी ना देने की मानो क़सम ही खाई हो।

स्वराज्य पत्रिका की पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा ने इस बाबत एचसीडब्ल्यू को आड़े हाथों लेते हुए अपनी आपत्ति जताई। गोयल शर्मा ने हिंदुओं को आक्रामक और मुस्लिमों को पीड़ित पक्ष के रूप में चित्रित करने से संबंधित डेटा में हेरफेर करने के तरीके का बड़े स्तर पर पर्दाफ़ाश किया।

धार्मिक आचरण से परे इस तरह के समीकरण जब निकलकर सामने आते हैं, तो इन्हें हल करना आम जनता के लिए दुविधा का कारण बन जाता है। राजनीति के बदलते परिवेश को समझ पाना कभी-कभी मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव-सा प्रतीत होता है जब कॉन्ग्रेस द्वारा अपनाए गए इस तरह के रुख़ से जनता अनभिज्ञ होती है।

कुम्भ 2019: कब और क्या? इतिहास, ज्योतिष और वर्त्तमान पर एक नज़र

कुम्भ पर्व विश्व का सबसे बड़ा और विहंगम सांस्कृतिक एवं धार्मिक आयोजन है। ऐसा बताया जाता है कि कुम्भ का आयोजन 525 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था। माना जाता है कि 617-647 ईसवी में राजा हर्षवर्धन ने प्रयागराज के कुम्भ में हिस्सा लिया और अपना सब कुछ दान कर दिया था।

जनवरी 2019 में प्रयागराज में अर्धकुंभ लग रहा है। जो जनवरी 15 से मार्च 04 तक चलेगा। इससे पहले साल 2013 में प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन हुआ था। अगला महाकुंभ साल 2025 में लगेगा। प्रयागराज में ‘कुम्भ’ कानों में पड़ते ही गंगा, यमुना एवं सरस्वती का पावन सुरम्य त्रिवेणी संगम मानसिक पटल पर छा जाता है।

हिंदू धर्म में मान्‍यता है कि किसी भी कुम्भ मेले में पवित्र नदी में स्‍नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्‍य जन्म-पुनर्जन्म के चक्कर से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। कुम्भ को लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार की कहानियाँ हैं लेकिन इसका महत्व धार्मिक और ज्योतिषीय रूप में अधिक प्रचलित है।

खगोल गणना के अनुसार कुम्भ का आयोजन मकर संक्रांति के दिन तब शुरू होता है, जब सूर्य और चंद्रमा, वृश्चिक राशि में और बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं। कुम्भ को लेकर कई प्रकार की मान्यताएँ हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्वर्ग के दरवाजे खुलते हैं। कुम्भ के दौरान गंगा में स्नान करने वाली आत्मा सहज़ स्वर्ग की भागी होती है। इस बार कुम्भ स्‍नान का अद्भुत संयोग करीब तीस सालों बाद बन रहा है।

कुम्भ: 2019  शाही स्नान की तिथियाँ

  • 14-15 जनवरी 2019: मकर संक्रांति (पहला शाही स्नान)
  • 21 जनवरी 2019: पौष पूर्णिमा
  • 31 जनवरी 2019: पौष एकादशी स्नान
  • 04 फरवरी 2019: मौनी अमावस्या (मुख्य शाही स्नान, दूसरा शाही स्नान)
  • 10 फरवरी 2019: बसंत पंचमी (तीसरा शाही स्नान)
  • 16 फरवरी 2019: माघी एकादशी
  • 1 9 फरवरी 2019: माघी पूर्णिमा
  • 04 मार्च 2019: महा शिवरात्री
कुम्भ की महिमा का गान करता एक पेंटिंग (फोटो साभार: kumbh.gov.in)

कुम्भ मेले की तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी हैं। सड़कें और अन्य निर्माण कार्य तेजी से किए गए हैं। आयोजन से पहले यहाँ का रंग-रूप बिल्कुल बदल चुका है। जगहों को तरह-तरह की पेंटिंगों से सजाया गया है। संगम नगरी जनमानस के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गई है। गंगा-यमुना की नगरी को इस तरह सजाया गया है जैसे साक्षात् देवलोक धरा पर अवतरित हुआ हो।

कुम्भ-2019 में कई विदेशी प्रतिनिधि भी हिस्सा ले रहे हैं। कुम्भ स्‍थल पर तंजानिया, अमेरिका, उजबेकिस्तान, त्रिनिडाड, टोबैगो, ट्यूनीशिया और वेनेजुएला के झंडे लगाए गए हैं।

गौरव गाथा: कुम्भ 2019