इस प्रकार के उग्र-हिंसक प्रदर्शन भी आतंक का ही एक रूप हैं जो समाज और शासन-प्रशासन पर अनुचित दबाव डालकर अपनी बात मनवाने का प्रयत्न करते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे दबाव स्वीकार नहीं किए जा सकते, किए भी नहीं जाने चाहिए।
नैरेटिव सेट करने वालों में बड़ी ताकत है। पूरी दुनिया में आग लग जाए तो उसे वो बाढ़ बता सकते हैं। चर्चा दंगों पर नहीं, एक बयान पर हो रही। चर्चा बयान की सत्यता-असत्यता पर नहीं हो रही। हत्या की धमकियों पर नहीं हो रही।
उनके नियम कहते हैं कि काफिर स्त्रियों को उठाकर संपत्ति की तरह बाँटो और बलात्कार करो। बच्चों को उठाकर ले जाने, खतना करने और गुलाम बनाने की बातें करते हैं।
ज़ुबैर ने निलंबन के बाद न सिर्फ भारतीय मुस्लिमों के साथ जश्न मनाया बल्कि दुनिया भर में फैले उम्माह (मुस्लिमों), इस्लामी राष्ट्रों को भी संज्ञान लेने के लिए उकसाया।