Tuesday, October 15, 2024
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आगजनी को फूल बरसाना कह देंगे, नैरेटिव उनके हाथों में है: महादेव का अपमान चर्चा से गायब, एक बयान पर देश भर में दंगे

दुनिया भर में ये चर्चा होनी चाहिए थी कि राँची में थाना प्रभारी का सिर फोड़ने वाले कौन लोग थे? चर्चा ये होनी चाहिए थी कि अपनी महिलाओं-बच्चों को हिंसा में कौन आगे कर रहा है? चर्चा ये होनी चाहिए थी कि मंदिर में पूजा के बाद लोग प्रसाद लेकर निकलते हैं, लेकिन मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद लोग हाथों में पत्थर लिए बाहर क्यों आते हैं?

नैरेटिव, आज के अर्थ में कह लीजिए कि चर्चा का एंगल तय करना। दुनिया भर में भले ही आग लग जाए, लेकिन अगर 4 लोगों के पास नैरेटिव सेट करने की ताकत है तो वो ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि कोई इस आग की चर्चा ही न करे। या फिर वो ये भी फैला सकते हैं कि ये आग नहीं, पानी है। नैरेटिव की ताकत ये होती है कि अपवाद सामान्य लगने लगता है और जो रोज होता है, उसे अपवाद की श्रेणी में डाल दिया जाता है। हमने ‘पीके (2014)’ जैसी फिल्मों में महादेव के अपमान को बर्दाश्त नहीं किया होता तो आज ऐसी नौबत ही नहीं आती।

ताज़ा मामला देख लीजिए। नूपुर शर्मा वाला मामला देख लीजिए। चर्चा इस बात पर होनी चाहिए थी कि नूपुर शर्मा ने जो कहा वो सही है या गलत, वो इस्लाम की पवित्र पुस्तकों में लिखा है या नहीं। चर्चा इस पर होनी चाहिए थी कि जाकिर नाइक ने अगर यही बात कही तो उसकी बात पर हंगामा क्यों नहीं हुआ। चर्चा इस पर होनी चाहिए थी कि नूपुर शर्मा ने शिवलिंग का मजाक बनाए जाने वाले बयानों के जवाब में ऐसा कहा। चर्चा का विषय ये होना चाहिए था कि उनके ऐसा कहने के पहले महादेव को लोगों ने क्या-क्या कहा

लेकिन, चर्चा इस पर होने लगी कि नूपुर शर्मा ने पैगंबर मुहम्मद का अपमान कर दिया। उन्हें पहले ही दोषी ठहरा दिया गया, चैनल को वीडियो हटाने पर मजबूर करते हुए उससे स्पष्टीकरण जारी करने करवाया गया, मुस्लिम मुल्कों के सरकारों पर दबाव डाल कर आपत्तियाँ जारी करवाई गईं, क़तर जैसे मुल्कों ने भारतीय राजदूत को तलब किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करने वालों के दबाव में भाजपा ने ‘गुडविल’ दिखाते हुए अपने दो प्रवक्ताओं को निलंबित भी कर दिया।

मामला यहाँ थम जाना चाहिए था। यद्यपि इससे मुस्लिम कट्टरपंथियों का मनोबल बढ़ा कि वो इस्लामी मुल्कों और इस्लामी मुल्कों के संगठनों से दबाव डलवा कर भारत में कुछ भी करा सकते हैं, लेकिन फिर भी मामला यहाँ रुक जाना चाहिए था। नूपुर शर्मा के कथन में कितने प्रतिशत की सच्चाई है, डर से इसकी चर्चा नहीं हुई – लेकिन, फिर भी इस कार्रवाई के बाद सब ख़त्म हो जाना चाहिए था। शिवलिंग का मजाक बनाने वालों पर कहीं कोई ,लेकिन हिन्दुओं के ही ज़हर का घूँट पीने के बाद नूपुर शर्मा मामले को थम जाना चाहिए था।

लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। प्रयागराज में नाबालिगों को आगे कर के दंगे हुए। राँची में पुलिस पर हमला किया गया। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जुमे की नमाज के बाद हिंसा हुई। नवीं मुंबई में बुर्कानशीं महिलाएँ सड़क पर उतरीं। आम लोग निशाना बने। पुलिसकर्मी घायल हुए। जम्मू कश्मीर में युट्यूबर ने VFX के माध्यम से नूपुर शर्मा का सिर कलम करने का वीडियो भी दिखा दिया। AIMIM सांसद ने उन्हें फाँसी दिए जाने की बात कह डाली

नैरेटिव का खेल देखिए। शिवलिंग के अपमान वाले और भगवान महादेव पर अश्लील टिप्पणी वाले सैकड़ों बयान और मीम्स शेयर करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और ये चर्चा का विषय तक नहीं बना, लेकिन मुहम्मद जुबैर के एक वीडियो शेयर करने से पूरे भारत में दंगे हुए और इस्लामी मुल्कों ने हमारी सरकार पर दबाव बनाया। नैरेटिव सेट करने वालों ने नूपुर शर्मा के कथन की सत्यता पर चर्चे को गौण कर दिया। दंगों को विरोध प्रदर्शन कह दिया, हिंसा को शांतिपूर्ण मार्च कह दिया और पत्थरबाजी करने वालों पर चुप्पी साध ली।

जबकि, होना क्या चाहिए था? दुनिया भर में ये चर्चा होनी चाहिए थी कि राँची में थाना प्रभारी का सिर फोड़ने वाले कौन लोग थे? चर्चा ये होनी चाहिए थी कि अपनी महिलाओं-बच्चों को हिंसा में कौन आगे कर रहा है? चर्चा ये होनी चाहिए थी कि मंदिर में पूजा के बाद लोग प्रसाद लेकर निकलते हैं, लेकिन मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद लोग हाथों में पत्थर लिए बाहर क्यों आते हैं? बहस का बिंदु ये होना चाहिए था कि नूपुर शर्मा के पुतले को दरगाह के पास फाँसी के फंदे पर लटका कर तालिबानी मानसिकता का खुलेआम प्रदर्शन भारत जैसे लोकतंत्र में क्या स्थान रखता है।

चर्चा इस पर होनी चाहिए थी कि नूपुर शर्मा की तस्वीर पर पेशाब करने वाले बच्चों के परिवार वाले कौन हैं। बहस का विषय ये होना चाहिए था कि एक डच सांसद को नूपुर शर्मा का समर्थन करने पर हत्या की धमकियाँ मिलने लगती हैं। मीडिया में ख़बरें ये होनी चाहिए थीं कि नवीन जिंदल को सिर कलम करने की धमकियों के कारण परिवार सहित दिल्ली से पलायन को मजबूर होना पड़ा। बातचीत इस पर होनी चाहिए थी कि नवीन जिंदल को उनके पूरे परिवार का सिर कलम करने की धमकी देने वाले कौन लोग हैं।

उदाहरण के लिए नैरेटिव की ताकत देखिए। सबा नकवी शिवलिंग के खिलाफ बयान देती हैं। उन पर FIR दर्ज होती है तो महिला पत्रकारों का संगठन एक लंबा-चौड़ा बयान जारी कर के इसे ‘महिला’ और ‘मीडिया’ पर हमले का रूप देता है। ये अलग बात है कि इस संस्था की ही कई पत्रकार इसके विरोध में उतर आती हैं। लेकिन, कहीं भी बयान में शिवलिंग के अपमान की चर्चा नहीं की जाती। इसे गौण कर दिया जाता है। ये नैरेटिव में फिट नहीं बैठता।

लेकिन, नूपुर शर्मा के मामले में यही महिला होने वाली बात की चर्चा तक नहीं की जाती। कुछ मुस्लिम बच्चे हँसी-ठहाके लगाते हुए अपने प्राइवेट पार्ट्स बाहर निकाल कर एक महिला की तस्वीर पर पेशाब करते हैं, लेकिन नैरेटिव में फिट न बैठने के कारण इस पर चर्चा नहीं होती। ऐसा दर्जनों बार हुआ है। अर्णब गोस्वामी को महाराष्ट्र पुलिस केवल आलोचना के लिए गिरफ्तार कर ले तो एडिटर्स गिल्ड चूँ तक नहीं करता, बंगाल में पत्रकार मारे जाते हैं तो आह नहीं निकलती, लेकिन प्रोपेगंडा गिरोह के पत्रकार झूठ फैलाएँ और एक FIR भी दर्ज हो जाए तो लंबा-चौड़ा बयान आ जाता है।

जैसे आज किसी के पुतले को फाँसी पर लटकाना आम हुआ है, कल को अफगानिस्तान की तरह हिन्दुओं को लटकाना आम हो जाएगा। भारत के इतिहास में ऐसा हो चुका है। हिन्दुओं के कटे हुए सिरों से पहाड़ बनाए जा चुके हैं, 2000 भालों पर सिखों के कटे हुए सिर लेकर मुग़ल बादशाह को पेश किया जा चुका है, हिन्दू महिलाओं को थोक में सेक्स स्लेव बनाया जा चुका है और ये सब कुछ इस्लामी शासनकाल में ही हुआ है। फिर इस्लामी भीड़ हावी हो रही है, इसकी कोई गारंटी तो है नहीं कि ऐसा नहीं होगा।

हिन्दुओं को नैरेटिव सेट करने की ताकत रखनी होगी। एक घटना को अपने एंगल से पेश करने के लिए 10 विदेशी भाषाओं में अनुवाद कर के ट्विटर ट्रेंड चलाना होगा। हर देश के राजनेताओं को टैग कर के सही स्थिति बतानी होगी। प्रोपेगेंडा फैला रहे विदेशी संगठनों को तस्वीरों-वीडियोज के जरिए चुप कराना होगा। जब झूठ 100 बार बोलने से सच प्रतीत हो सकता है तो सच 10 बार बोलने से ताकतवर सच क्यों नहीं बनेगा? नैरेटिव सेट कीजिए।

दंगों की बात नहीं हो रही अब भी, जहाँ दंगाइयों पर पुलिस ने कार्रवाई की है उसकी बात हो रही, क्योंकि नैरेटिव को यही चाहिए। उनका नैरेटिव कहता है कि 100 पत्थर अगर कोई इस्लामी कट्टरपंथी मारता है तो उसकी बात मत करो, लेकिन उसे शांत करने के लिए पुलिस एक लाठी उसे लगा दे तो इसको पूरी दुनिया में फैला दो। सीजे वर्लमैन जैसे लोग यही कर रहे। ऐसे ही झूठ फैलता है। ये किसे नहीं पता कि दंगाइयों को शांत करने के लिए पुलिस बल प्रयोग करने को मजबूर होती है, लेकिन ये ऐसा दबाव बनाने की क्षमता रखते हैं कि अगली बार से पुलिस उनका फूल-मालाओं से स्वागत करने लगे।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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